Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 61378 times)

Pooran Chandra Kandpal

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कुमाउनी  और गढ़वाली भाषा

    देवभूमि की पुकार 1-15 जनवरी 2013 में प्रकाशित लेख 'एक उत्तराखंडी भाषा'
के सन्दर्भ में केवल इतना कहा जा सकता है कि उत्तराखंड की भाषाओं को एक
भाषा में नहीं बाँधा जा सकता जैसा कि  कुछ लोगों का विचार है। यह निर्विवाद
 सत्य है की ये सभी अलग-अलग भाषाएँ हैं।

     कुमाउनी और गढ़वाली को जोड़कर एक नई भाषा कैसे बन सकती है? कुमाऊं
क्षेत्र में दस प्रकार की कुमाउनी बोली जाती है और इसी तरह लिखी-पढी भी जाती
है। गढ़वाल क्षेत्र में आठ प्रकार से गढ़वाली बोली जाती है और इसी तरह लिखी-
पढ़ी जाती है।  इन भाषाओँ की सर्वमान्य लिपि हिंदी की तरह 'देवनागरी' है। इन
भाषाओँ के मानकीकरण के लिए उठाये गए कदम प्रगति पर हैं। इस कार्य में
कुमाऊं क्षेत्र में कुमाउनी भाषा,साहित्य एवं संस्कृति समिति कसारदेवी अल्मोड़ा
में निरंतर कार्य हो रहा है।  इसी तरह गढ़वाली के लिए भी भाषा वैज्ञानिक निरन्तर
कार्य कर रहे हैं।

     जहाँ तक कुमाउनी और गढ़वाली भाषा को मिला कर एक नई भाषा के प्रयोग
 का सवाल है, यह केवल प्रयोग तक ही रह जायेगा।  इन दोनों भाषाओँ का अलग-
अलग वजूद तो है ही अधिकांश शब्द सम्पदा भी अलग -अलग है। इन दोनों भाषाओँ
का एक दुसरे में रूपान्तर तो हो सकता है परन्तु मिलान नहीं हो सकता।  अतः
हमें इन दोनों भाषाओँ को अलग-अलग बहनों की तरह फूलने-फलने देना चाहिए।
साथ ही कुछ लोगों को यह डर भी सता रहा है कि  कुमाउनी और गढ़वाली के
समृद्ध होने से हिंदी को  क्षति पहुंचेगी। यह सोच सर्वथा अनुचित एवं  कल्पनीय
है।  हिंदी भाषा कुमाउनी और गढ़वाली की बड़ी बहन (दीदी) है। बहनों के समृद्ध
होने से दीदी को कोई हानि नहीं होती बल्कि वह लाभान्वित होती है।

पूरन  चन्द्र कांडपाल
19.01.2013

Pooran Chandra Kandpal

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अंततः गैरसैण  ही बनेगी राजधानी

      उत्तराखंड में बारह वर्ष में सात मुख्यमंत्री बने। विजय
बहुगुणा ने  12 मार्च 2012 को गद्दी संभाली और 14 जनवरी
2013 को गैरसैण  में विधान सभा भवन का शिलान्यास
करके राज्यवासियों के आशावाद को सिंचित किया है।
जो दल गैरसैण में ग्रीष्मकालीन राजधानी की बात कर रहे
हैं वह सरासर बेमानी है।  स्मरण रहे देहरादून राज्य की
अस्थायी राजधानी है।

     राज्य की राजधानी देर-सबेर गैरसैण  ही जायेगी।
बहुगुणा जी को इस शिलान्यास और दो वर्ष में विधान
सभा भवन निर्माण के वायदे की लिए जनता ने साधुवाद
देना चाहिए। बहुगुणा जी का यह कदम गैरसैण को
राजधानी बनाने के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
रह गई बात उन लोगों की जिन्होंने अलग राज्य के
 निर्माण का समर्थन नहीं किया और आन्दोलन से कोषों
दूर रहे, ऐसे लोगों का प्रसंग करना भी अब उचित नहीं
है।  बहुगुणा का यह ऐतिहासिक कदम राज्य की जनता
की भावनाओं के अनुरूप ही नहीं  अपितु उन 42
शहीदों को भी श्रधांजलि है जिन्होंने राज्य के लिए
अपनी कुर्बानी दी थी।

पूरन  चन्द्र कांडपाल
22.01.2013

Pooran Chandra Kandpal

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ऐगो  बसंत

माघ- फागुण  राग बसंत
ऋतु  चैत  बैसाग बसंत।

प्यौरोड़ी फूलों ल भिड़  पिगं ऊ
किर्मौडू  पर बसंती च्वाव
ह्यूं  पड़ी जस हिसाऊ डाव
बन्स्फा डौरी रौ   भिड़  कनाव।

सिमोव  लाल बुरुंश लाल
रंगिल चाड  सरग पताल 
बांजों  में पौ  भिमू  में कल्ल
डाव  बोट बसंत ल हैंगी निहाल।

क्यार बिनौडम चहकें रौ बसंत
डाव बोटों  में  महकें रौ बसंत
मिहोव खुमानी आरु क्वैराव
रंग सुकिलसांक करिगो बसंत।

बसंत पंचिमी बै लै जां बसंत
होयार गिदारों क गीत बसंत
पिगंइ  टोपि  पिङ्गइ  रुमाव
जौ  क तिनाड दगै  पौन बसंत।

दैणा  फूलों ल खेत पिङ्गइ  रीं
पिङ्गइ चदर जस दूर बै देखीं रीं
दैणा  डावा  कें  हलूरै  पौन
लागेंरौ रंगिल कौतक्यार नाञ्चै रीं।

बजूरै  पौन बसंती राग
चौतरफ़ा उडैरै बसंती फाग
ब्योली जसि छाजि रै बसोधरा
कें रंगवाई पिछौड़ कें पिङ्गइ पाग।

फूलों में मौ कि है रै बहार
को छ य रंगरेज बन अप्छ्याँण
कैल फोक हुनल  य अबीर गुलाल
को बौरै  गो आमों कें लगै  तराण।

'पूरन' पूंछें रौ  कस  य बसंत
लेखण   बतूंण  कठिन बसंत
मांघ -फागुण  राग बसंत
रितू चैत  बैसाग बसंत।

पूरन चन्द्र कांडपाल
14.02.2013

Pooran Chandra Kandpal

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डी जे में परोसी  जांरै  अश्लीलता

देवभूमि उत्तराखंड में शराब, धूम्रपान, अत्तर , गांज  और
अंधविश्वास त खूब फ़ुफ़ै रौछ, दगड़ -दगडै यां डी जे
अश्लीलता लै  दिनोदिन बढ़ते जांरै। ब्या  में महिला संगीत
हो या रिसेप्शन पहाड़ में डी जे लगूण  स्टेटस सिम्बल
बनिगो। देखादेखी सबै डी जे लगूं  रईं भलेही दुसरी
व्यवस्था भलि  झन हो।

     डी जे में कुमाउनी  गीत नाम मात्र कै  बाजें रईं .
कुमाउनी गीतों कि जागि  पर फ़िल्मी अश्लील गीतों
कि  मांग बढ़ी  रैछ। यूं आयोजनों में 'फेबिकोल' और
'चिकनी चमेली' गीतों दगै  डी जे में भै , बैणी, मै , च्यल
सब दगडै  नाचै रईं  यानै  पुर परिवार  अश्लील गीतों
में भोंडापन  कि  हद पार करि  जां  रईं। क्वे लै  डी जे
में यूं गीतों पर ऐतराज नि करन। कुछ लोगों क
मसमसाट  पर एक-द्वि जागि यूं गीतों कें अवश्य
बंद करीगो।

        जाट  और गुजर  समाज ल डी जे पर प्रतिबन्ध
लगै  हैछ। हमरि  संस्कृति पर डी जे कि  य अश्लीलता
भारि  पडि  रैछ। ढोल ,दमू ,बीनबाज  यूं उत्तराखंड में
क्वे लै  ब्या  में नि देखीं राय  जबकि मैदानी क्षेत्रों में
यूं बाज-गाज  कएक  आयोजनों में देखीं रईं . हमूल
अश्लील गीतों क विरोध में गिच  खोलण  चेंछ , खाली
मसमसै  बेर के निहुन  बेझिझक गिच  खोलि  बेरै
यूं अश्लील गीत बंद ह्वाल।

पूरन  चन्द्र कांडपाल
21.02.2013

Pooran Chandra Kandpal

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भारतीय धरोहर : नदियाँ


     हमारा देश त्योहारों का देश है और लगभग प्रत्येक त्यौहार
में विभिन्न विसर्जनों  के नाम पर नदियों, तालाबों, नहरों ,कुओं
सहित सभी जलस्रोतों को प्रदूषण की मार झेलनी पड़ती है।
जलस्रोतों को प्रदूषण से बचाने के लिए जरूरी है कि विसर्जन की
पुरानी परम्पराओं को बंद किया जाय।  हमें पूजा की बची हुयी
सामग्री, मूर्तियाँ आदि का विसर्जन जल में करने के बजाय
उनका भू-विसर्जन करें अर्थात उन्हें जमीन में दबाएँ तो समस्या
काफी हद तक काबू में आ सकती है।   भू-विसर्जन का सन्देश
देश के बुद्धिजीवियों, धमाचार्यों, संतों, गुरुओं, नेताओं आदि
को देश-समाज के हित में देना चाहिए।

                                 कुम्भ में जो   
गन्दगी लोगों ने डाली वह हमारे सामने है।  दुनिया के
कुछ देश नदियों को कारसेवा के माध्यम से स्वच्छ कर
रहे हैं।  हम विसर्जन के नाम पर नदियों को गन्दा करने
जाते हैं। आपने यमुना का जिक्र किया है। निगमबोध  घाट
यमुना किनारे शव दाह  होता है। वहां पर यमुना नाले में
बदल गयी है। हमारी नदियाँ तभी स्वच्छ रह सकती हैं
जब हम बदलाव को स्वीकार करें। नदियों के प्रदूषण
के अन्य कारणों  पर सरकार को ध्यान देना है परन्तु
विसर्जन पर प्रतिवंध के लिए समाज को आगे आना पड़ेगा।

     भू-विसर्जन की बात करनी ही पड़ेगी। शव राख सहित
विसर्जन की जाने वाली सभी वस्तुएं को जमीन में दबाना
ही नदियों को बचाने का एकमात्र उपाय है। अंधविश्वास
की माला जपकर अपनी दुकान  चलाने वाले धर्म के ठेकेदार
इस बदलाव में हमेशा रुकावट डालते रहे हैं। हमें इस
बदलाव को घर से आरम्भ करें की आवश्कता है।

06.03.2013

Pooran Chandra Kandpal

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              होली

शुभकामना, रंग-फूलों की होली
आस्था श्रधा प्रेम मिलन की होली
वतन के प्रिय उन शहीदों को नमन
जो खेल गए राष्ट्र प्रेम की होली।

और  जरा संभल के

शरबत में शकरीन  मिठाई में रंग है
हर मिष्ठान मिलावट के रंग से सजा है
लगती मिठाई जो शुद्ध देशी घी की
वह घी नहीं सिर्फ बसा ही बसा है।

'वर्क' मिठाई जो ओड़े हुए है
जहर अपने में वह जोड़े हुए है
बर्फी में आलू समाया हुआ है
दूध में रसायन मिलाया हुआ है।

होली की  बहुत बहुत शुभकामनाएं ,

पूरन चन्द्र कांडपाल
26.03.2013

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bahut-2 shubhkamanye... Holi aapu ke mahraj..

              होली

शुभकामना, रंग-फूलों की होली
आस्था श्रधा प्रेम मिलन की होली
वतन के प्रिय उन शहीदों को नमन
जो खेल गए राष्ट्र प्रेम की होली।

और  जरा संभल के

शरबत में शकरीन  मिठाई में रंग है
हर मिष्ठान मिलावट के रंग से सजा है
लगती मिठाई जो शुद्ध देशी घी की
वह घी नहीं सिर्फ बसा ही बसा है।

'वर्क' मिठाई जो ओड़े हुए है
जहर अपने में वह जोड़े हुए है
बर्फी में आलू समाया हुआ है
दूध में रसायन मिलाया हुआ है।

होली की  बहुत बहुत शुभकामनाएं ,

पूरन चन्द्र कांडपाल
26.03.2013


Pooran Chandra Kandpal

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अपने बच्चों की बुराई भी देखें

   १ ६ दिसंबर २ ० १ २  और १ ५ अप्रैल २ ० १ ३ की घिनौनी हरकत
से देश दुखी है और  लोगों को इन दोनों घटनाओं की निंदा करने के
शब्द नहीं मिल रहे हैं .इन  घिनौनी हरकतों के ९७  % जिम्मेदार लोग 
जाने-पहचाने या रिश्तेदार हैं। माता-पिता को अपने बच्चों की हरकत
और व्यवहार का  बहुत कुछ पता होता है.  कई बार तो माता-पिता
अपने लाडलों की बुराई को जानबूझ कर छिपाते हैं। जब उन्हें कोई
उनके बच्चों की हरकत के बारे में बताता है तो वे उलटे बतानेवाले से
ही लड़ने लगते हैं। आज तक कोई भी माँ या बाप अपने वहशी बेटे
को थाने नहीं ले गया.  उक्त घटनाओं के नरपिशाचों को सभी अपने -
अपने हिसाब से सख्त सजा देने की बात कर रहे  हैं  और अपने बेटों
की बुराई छिपाने की पूरी कोशिश होती है.  अपने   घर में हम गांधारी
और धृतराष्ट्र बन गए हैं। हम ही अपने लाडलों को दुर्योधन बना रहे
हैं। यदि समाज से इस वहशीपन को मिटाना है तो घर से शुरुआत
 करनी  होगी  तभी हमारी बेटियां बच सकती हैं। इस मानसिक
विकृति का इलाज सिर्फ और सिर्फ हमारे पास है। पुलिस और क़ानून
बाद की बात है. कितने अभिभावक अपने बच्चों से पूछते हैं कि
वह इतनी रात तक कहाँ था और  क्या कर रहा था ?

पूरन चन्द्र कांडपाल
रोहिणी ,दिल्ली
. 23.01.2013

Pooran Chandra Kandpal

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               ' शहीद' पर राजनीति नहीं करें

   सरबजीत सिंह की मृत्यु एक दुखद कांड है.  उसकी मृयु पर
पूरे देश को शोक है। सरबजीत के परिवार के प्रति भी सबकी
सहानुभूति है.  उसके परिजनों को मदद भी मिलनी चहिये. 
परन्तु सरबजीत शहीद नहीं कहा जा सकता। शहीद वे कहे
जाते हैं जो देश के लिए क़ुरबानी देते हैं। सेना एवं सुरक्षा
बलों का प्रत्येक सदस्य शहीद कहा जाता है यदि वह राष्ट्र
के सेवा अथवा अपना कर्तव्य निभाते हुए वीरगति को प्राप्त
होता है। देश का कोई भी नागरिक तभी शहीद कहा जाता है
जब वह देश के लिए जान देता है. शहीद शब्द के साथ
राजनीति करना शहीदों का अपमान है.

पूरन चन्द्र कांडपाल
07.05.2013

Pooran Chandra Kandpal

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हम कितने शक्तिशाली हैं ?

   चीन द्वारा लद्धाख की देपसांग  घाटी में टैंट गाढ़ने पर एक चैनल ने
सर्वे कराया था कि हम कितने शक्तिशाली हैं तो नब्बे प्रतिशत लोगों
ने हमें कमजोर राष्ट्र बताया था.  ये कमजोर बताने वाले वही लोग थे
जिन्होंने ने आई सी -8 1 4  विमान अपरहण पर तीन आतंकवादियों
को छोड़ने और विमान यात्रियों को काबुल से वापस लाने पर दिल्ली में
हायतोबा मचा दी थी।  शक्तिशाली राष्ट्र के नागरिक राष्ट्र आन -बान -शान
के  सरकार का होसला बुलंद करते हैं न कि यात्रियों की रिहाई के लिए
चिल्लाते हैं।

      शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के लिए अपनों को भुला कर देश स्मरण करना
पड़ता है। सेना के जवान इसी जज्बे से अपने परिजनों को भूलकर देश
के लिए स्वयं को न्योछावर कर देते हैं। जिस देश में आतंकवादियों का
शहीद स्मारक बनाया जाय, वन्देमातरम गाने पर संसद से वहिर्गमन
किया जाय तथा देश के शहीदों को स्मरण करने का जज्बा बुलंद नहीं
किया जाय वह राष्ट्र शक्तिशाली नहीं कहा जा सकता। ऐटम बम पास
होने से शक्ति का ऐहसास तो होता है, लड़ने का होसला भी बुलंद होना
चाहिए, सरकार ही नहीं नागरिकों में भी देशप्रेम का जज्बा होना चहिये।
सहारा परिवार का 'भारत भावना दिवस' पर राष्ट्रीय  गान गाए जाने
के क्षण का गिन्नीज बुक में दर्ज होना देशप्रेम  जगाने का एक
उत्कृष्ट उदाहरण है।

पूरन चन्द्र कांडपाल
13.05.2013

 

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