कामवाली की बेटी का बालश्रम
12 जून को देश में विश्व बाल श्रम विरोध दिवस मनाया गया।
भलेही बाल श्रम विरोध मीडिया में ही मनाया गया फिर भी कुछ न कुछ
जन जागृति तो फैलेगी ही। बहुत कम लोग जानते हैं कि हमारे देश में
14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी नियोक्ता द्वारा काम पर लगाना
अपराध है। इस अपराध की सजा एक वर्ष की कैद या बीस हजार रूपया
जुर्माना या दोनों हैं। इसके अलावा अपराधी नियोक्ता को बीस हजार रुपए
बालश्रमी के पुनर्वास के लिए भी देना पड़ता है।
बाल श्रम के बारे में जमीनी वास्तविकता कुछ और ही है। हम सभी
देखते हैं कि हमारे इर्द-गिर्द बाल श्रम के रूप में बच्चों का शोषण हो रहा
है। देश में करोड़ों बच्चे हैं जो मजबूरी में बाल श्रम में लगे हैं। बीडी-तम्बाकू
उद्योग,खिलौना-पटाखा फैक्ट्री , ईट-भट्टे, होटल, ढाबा, साइकिल-स्कूटर
मरम्मत, स्ट्रीट वेंडर, घरेलू नौकर, कूड़ा छटान, कपड़े प्रैस, किराना स्टोर,
कामवाली सहित अनेकों तरह से बाल श्रम करते हुए ये भूख मिटा रहे हैं।
कामवालियां तो अपनी बेटियों से भी घरों में झाडू -बर्तन करवाती हैं। इन
कामों में लगे हुए बच्चे-बच्चियां अपने घरों के लिए आर्थिक मदद जुटाने
के स्रोत बन गए हैं जिस कारण वे स्कूल नहीं भेजे जाते। स्कूलों की कमी
नहीं हैं, सुविधाएँ भी हैं परन्तु घर के आर्थिक स्रोत को गरीब समूह के लोग
बच्चों को स्कूल भेज कर बंद करना नहीं चाहते। जब तक इस समस्या
का हल नहीं ढूंढा जाय, देश बाल श्रम के कलंक से मुक्त नहीं हो सकता।
पूरन चन्द्र काडपाल
12.06.2013