Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 61467 times)

Pooran Chandra Kandpal

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पीड़ित का उपचार

उच्चतम न्यायालय ने बलात्कार को नैतिक और शारीरिक रूप से
सबसे निंदनीय अपराध बताते हुए कहा है कि' यह पीड़ित के शरीर,
 मन और निजता पर बहुत बड़ा अघात है।'  वैसे भी बलात्कार एक
घिनौना कृत्य है जिसका पीड़ित पर मनोवैज्ञानिक सदमा पहुंचता
है.  सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि पीड़ित इस कुकृत्य के सदमे से कैसे उभरे?
कई बार पीड़ित को इतना बड़ा अघात लगता है कि वह आत्महत्या
तक कर लेती है। उसे न्याय पर भरोसा तो होता है पर लम्बी न्याय
प्रक्रिया एवं पुलिस-वकील उलजलूल प्रश्नों के आघात का भी डर
होता है।  साथ ही समाज ने जो ' इज्जत लुट गई' का दंश इसे बनाया
है वह भी असहनीय है। इसी कारण पीड़ित पुलिस तक नहीं
पहुंचती  और नरपिशाचों को सह मिलती है.  बलात्कार के
 नरपिशाचों से निपटने के लिए सबसे पहले इसे ',इज्जत लूट', ली
जैसे शब्दों से निजात दिलानी होगी। इसे इस तरह समझना
चाहिए जैसे कि एक जंगली जानवर हमारे शरीर पर आक्रमण
कर देता है और वह हमारे शरीर के किसी भी अंग को नुकसान
 पहुंचा देता है.  पीड़ित को उस नरपिशाच की तुलना एक पागल
जंगली जानवर से करनी चाहिए तभी वह उसके उस अमानवीय
कृत्य को स्नैहै-स्नैहै भूल सकती है. यह बात समाज को भी
समझनी चाहिए तथा इस 'इज्जत या अस्मत लूट ली गई'
जैसे शब्दों से दूर रख कर पीड़ित का मनोबल बढ़ाना चहिये.
बलकृत के प्रति सहानुभूति की आवश्कता है न कि उसे हेय
दृष्टि से देखने कॆ. बलात्कारी को सजा दिलाने  में क़ानून का
 सहयोग, न्याय के लिए लड़ने की हिम्मत, उच्च मनोवल
तथा जीने की प्रबल इच्छा जगाना ही पीड़ित का एकमात्र
उपचार है.
पूरन चन्द्र  कांडपाल ,रोहिणी दिल्ली
28.05.2013

Pooran Chandra Kandpal

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पर्यावरण की बात
 
   [पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण को बचाने के लिए बहुत बातें मीडिया में
देखने-सुनने को मिली।  हमारे देश में इस विषय पर खानापूरी बहुत होती है
परन्तु क्रियान्वयन नाम मात्र का भी नहीं।   जो पौधे रोपे जाते हैं न तो उनकी
देखभाल  होती हैं और न ही उन्हें जीवित रखने के लिए पानी दिया जाता।
देश में पौधे रोपने का कोई त्यौहार भी नहीं मनाया जाता जबकि पेड़ काट कर 
उनकी ल कड़ी जलाते हुए दो त्यौहार अवश्य मनाये जाते हैं -होली और लोहड़ी।
होली पर होलिका दहन के नाम पर और लोहड़ी पर   लोहड़ी पूजन के नाम पर
करोड़ों टन लकड़ियों का दहन होता है। इस बात पर कोई चिंतन नहीं होता  है
कि कम से कम दो त्यौहार पौध रोपड़  के भी होने चाहिए। यदि लोग चाहें तो
देश में म नाये जाने वाले दो विशेष त्यौहार -नवरात्रि और पितृपक्ष पर पौध
रोपड़ का कार्य  हो सकता है। दो  नवरात्रि के अठारह दिन और पितृपक्ष के
पंद्रह दिनों में से कोई भी एक दिन यदि हम एक पौधा लगायें और उसकी
परवरिश करके उसे बड़ा बना कर पेड़ में परवर्तित करें तो देश का पर्यावरण
स्वत :  ही सुधर जाएगा। पृथिवी बचाओ ,पर्यावरण बचाओ और वनमहोत्सव
मनाओ आदि यह सब कागजों,कक्षाओं और कोरी बातों में ही अटक-सिमट कर
रह गया है . इसको जमीन पर लाने का प्रयत्न कब और कौन करेगा ? आज के
दिन यही सबसे बड़ा प्रशन हमारे सामने है।
 
पूरन चन्द्र कांडपाल ,Rohini delhi
 

Pooran Chandra Kandpal

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कामवाली की बेटी का बालश्रम

           12  जून को देश में विश्व बाल श्रम विरोध दिवस मनाया गया।
भलेही बाल श्रम विरोध मीडिया में ही मनाया गया फिर भी कुछ न कुछ
जन जागृति तो फैलेगी ही। बहुत कम लोग जानते हैं कि हमारे देश में
14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी नियोक्ता द्वारा काम पर लगाना
अपराध है। इस अपराध की सजा एक वर्ष की कैद या बीस हजार रूपया
जुर्माना या दोनों हैं। इसके अलावा अपराधी नियोक्ता को बीस हजार रुपए
बालश्रमी  के पुनर्वास के लिए भी देना पड़ता है।

    बाल श्रम के बारे में जमीनी वास्तविकता कुछ और ही है। हम सभी
देखते हैं कि हमारे इर्द-गिर्द बाल श्रम के रूप  में बच्चों का शोषण हो रहा
है। देश में करोड़ों बच्चे हैं जो मजबूरी  में बाल श्रम में लगे हैं। बीडी-तम्बाकू
उद्योग,खिलौना-पटाखा फैक्ट्री , ईट-भट्टे, होटल, ढाबा, साइकिल-स्कूटर
मरम्मत, स्ट्रीट वेंडर, घरेलू नौकर, कूड़ा छटान, कपड़े प्रैस, किराना स्टोर,
कामवाली सहित अनेकों तरह से बाल श्रम करते हुए ये भूख मिटा रहे हैं।
कामवालियां तो अपनी बेटियों से भी घरों में झाडू -बर्तन करवाती हैं। इन
कामों में लगे हुए बच्चे-बच्चियां अपने घरों के लिए आर्थिक मदद जुटाने
के स्रोत बन गए हैं जिस कारण वे स्कूल नहीं भेजे जाते। स्कूलों की कमी
नहीं हैं, सुविधाएँ भी हैं परन्तु घर के आर्थिक स्रोत को गरीब समूह के लोग
बच्चों को स्कूल भेज कर बंद करना नहीं चाहते। जब तक इस समस्या
का हल नहीं ढूंढा जाय, देश बाल श्रम के कलंक से मुक्त नहीं हो सकता।

पूरन  चन्द्र काडपाल   
12.06.2013

Pooran Chandra Kandpal

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अंधविश्वास

   अंधविश्वास हमार समाज में यतू भरी गो कि लोग यै है मुक्ति नि पाण चान.
अच्याल द्यो नि हुण क वजैल कुछ अन्धविश्वासी लोग हवन करी बेर इंद्र देव कें मनू रईं.
यूं अन्धविश्वासी बिचरां कें यूं  आठ लैन समर्पित छीं-

     परम्पराओं क भनेर में बुद्धि-विवेक भष्म हुरौ
   य उसै छ जस एक स्याव  शेर कें भचकूंरौ
   लिंग बतूणी कसाई नंगी छुरी ल च्येलियाँ क खून पींरौ
   मृत्यु-भोज मुंडन पुज-पाठ में पसिण क धन बगैँ रौ
   भेड़-चाल बानर-प्रवृति कि क्वरि नक़ल नि करो
   करो नक् भल क विचार देखा देखी नि करो
   सौ स्यावों क चार नि बासो एक स्यूं चार दहाड़ो
   दी जगौ अन्यार भजौ अंधविश्वास क जाड़ उखाड़ो.

   पूरन चन्द्र कांडपाल
      13.06.2013

Pooran Chandra Kandpal

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 बौज्यू (पितृ दिवस १६ जून २० १ ३)

इस्कूल में जै बेर जे नि सिख
उ बौज्यू ल नना  कें  घर सिखा
आपण हतै  ल उनर  हात  पकड़ी
कमेट कलम ल पाटि में लेखण सिखा.
 
बौज्यू चानेर हा्य उना्र ना्न 
पढि लेखि  भौत  होश्यार है जा्न
नि पिछडन जिन्दगी में उं कभें लै
आपण बाब है भा्ल कामयाब है जा्न.
 
जिन्दगी फूलों क बिछौण  न्हें 
सिसौण  का्नमुन लै ग्वेर में छें
बौज्यू ल बता बा्ट क ठोकर है बचिया
जरा देखि समई बेर  हिटण  चें .
 
बौज्यू कभतै   फटकार लै लगूनीं
झिटै   घडि़म  प्यार  लै  जतूनीं 
उनु  है  ठुल न्हें  क्वे  मितुर   दगडी़
ठाङर बनि लगुलै  चार बढ़ण  बतूनी.
 
बौज्यू नना लिजी हा्य मालि कुम्हार
दिनेर हा्य नना कें डा्व-भना जौ अकार
सिखुनेर हा्य मान मर्यादा संस्कृति 
ऐ जनेर हय नना जिन्दगी में निखार .
 
बौज्यू बताई बा्ट में जो लै हिटा्ल
हात पकड़ी सिखा जो उनूल, याद धरा्ल
उनर समझाई देखाई  तजुरबे कि फाम करा्ल 
उं जिन्दगी में सफलता  क  स्वागत करा्ल.
 
पूरन चन्द्र कांडपाल
16.06.2013

Pooran Chandra Kandpal

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   कुछ लोग कहते हैं कि अमरनाथ,केदारनाथ,बद्रीनाथ आदि जैसे
क्षेत्रों में सड़क या हेलिपैड नहीं बनाने चहिये . यह प्रकृति से छेड़छाड़
है। अवैध निर्माण पर रोक लगाने में सरकार सख्ती से पेश आती
तो मौत का यह तांडव कम होता। सच्चाई यह है कि उत्तराखंड के
प्रत्येक गाँवऔर पर्यटन स्थल  को पक्की  सड़क  से जोड़ने की
जरुरत है। वर्तमान आपदा को आये सात दिन हो गए हैं। सड़क
और हेलिपैड की कमी सबको खल रही है। यदि सड़क और हेलिपैड
होते तो राहत जल्दी पहुँचती। प्राकृतिक आपदा कब और कितनी
भयंकर आयेगी यह कोई नहीं जानता। हमारे राष्ट्रिय आपदा प्रबंधन
को अधिक चुस्त होने की जरुरत है। आज सब लोग सेना और सुरक्षा
प्रहरियों की ओर देख रहे हैं। वे लोग जान हथेली पर लेकर काम कर
रहे हैं परन्तु उनकी भी एक सीमा है। उत्तराखंड  की भौगोलिक  रचना
को वर्तमान में छूना उतना आसान नहीं है फिर भी सेना पर भरोसा
है कि वह अपने मिशन में खरी उतरेगी। अब समय आ गया है
जब राज्य सरकार को खनन माफिया, जंगल माफिया,भवन-होटल
माफिया और अवैध निर्माण माफिया तथा बड़े बांधों की सोच 
पर अवश्य ही और तुरंत सख्त से  सख्त नकेल लगानी
पड़ेगी तभी उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र भविष्य की प्राकृतिक
आपदाओं से निपट सकता है और बच  सकता है।

22.06.2013

खीमसिंह रावत

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kandpal ji
koi nahi sunta abhi abhi taajaa hai jaraa baasi hone do fir vahi chaal dhaal ho jayegi

Pooran Chandra Kandpal

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उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा

    15  और 16 जून को बादल फटने से आई प्राकृतिक आपदा ने
उत्तराखंड राज्य को तो पूरी तरह से हिला दिया, इस त्राशदी से पूरा
राष्ट्र स्तब्ध रह गया। जान माल का कितना नुकसान हुआ इसका
अंदाज लगाना अभी कठिन है.  अकस्मात मौत के मुह में समाये
लोगों की संख्या हजारों में बताई जा रही है जबकि एक हजार से
अधिक यात्रियों की मृत्यु की पुष्टि बताई जा रही है।

      बादल फटने अथवा प्राकृतिक आपदा की घटना को कोई रोक
नहीं सकता। इसकी पुनरावृति कभी भी हो सकती है। वर्तमान  त्राशदी
में जिन त्रुटियों को गिनाया जा रहा है उनमें सबसे अधिक ध्यान बटाने
वाली है पर्यटकों के  अनगिनत सैलाब उत्तराखंड की ओर अग्रसर होना।
जिस तरह अमरनाथ और वैष्णोदेवी की ओर जाने वाले यात्रियों  का
नियंत्रण किया जाता है उसी तर्ज पर उत्तराखंड में भी किया जाना चाहिए।
यात्रा मार्ग (सडकों) का सुदृढ़ किया जाना, भीड़ पर नियंत्रण रखना, मजबूत
सूचना तंत्र की स्थापना करना, बादलों की स्थिति के लिए रडार लगाना
आदि बिन्दुओं पर विशेष ध्यान की आवश्यकता है। इसके साथ ही सम्पूर्ण
माफिया ( सड़क,भवन, जंगल, खनन,होटल, अवैध निर्माण,) पर सख्ती से
 लगाम की आवश्यकता है। नदी तट का अवैध अधिग्रहण भी रोका जाना चाहिए।
राज्य के आपदा नियंत्रण विभाग को भी चुस्त करने की जरुरत है।

         सरकार को गाली देने, मीडिया में अफवाह फैलाने, अंधविश्वास को
पोषित करते हुए धारिदेवी की चर्चा करने, उत्तराखंडियों को  बदनाम करने
जैसी बातों से लाभ नहीं नुकसान ही होगा। लोगों को  हवन  आदि करने के
बजाय  अपने हाथ मदद के लिए उठाने चहिये.  उन ज्योतिष वालों एवं तांत्रिकों
को भी इस बात पर मंथन करना चाहिए की उन्होंने अपने ज्ञान के बदौलत
यात्रियों को आगाह क्यों नहीं किया कि इस बार की यात्रा में खतरा है।

    इस  बीच चारों  ओर से राहत और मदद पहुँच रही है। यह सही जरुरतमंदों
तक पहुंचे इसका ध्यान रखना जरुरी है।  ध्यान रहे की भ्रष्टाचार के भष्मासुर
इसे हड़प न लें। जागरूक जनता को भ्रष्टों का स्टिंग ओप्रेसन कर मीडिया
अथवा शासन तक पहुँचाना चाहिए।

पूरन  चन्द्र कांडपाल
24.06.2013

Pooran Chandra Kandpal

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A great poet has rightly said-

" our god and soldier both we equally adore,
at the time of danger not before,
after deliverance both are neglected,
god is forgotten and soldier is slighted."

Let us not do this. The great role played by our defence personnel
in saving the human lives in Uttarakhand is not only admirable but
highly commendable. We should not forget them, we should salute
them. Some of our brave men sacrificed their lives in the rescue
operation, we should never forget them and should stand beside
the family members of the SHAHEED.

pooran chandra kandpal
28.06.2013

Pooran Chandra Kandpal

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उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा

     उत्तराखंड में व्याप्त प्राकृतिक आपदा के लिए देवी-देवताओं
को दोष देने या उनके रूठने की चर्चाएँ कएक चैनलों पर हो रही
है।  हरेक की अपनी -अपनी श्रृद्धा है। एक की श्रृद्धा दूसरे पर
थोपी नहीं जा सकती। कोई भी देवी रुष्ठ होकर निर्दोषों के प्राण
नहीं लेती।

       देश में धर्म और पूजा-पाठ के नाम पर अपनी दुकान
चलाने वाले , अपने को भगवान का एजेंट बताने वाले बाबा ,
तांत्रिक, पंडित, ज्योतिषी, संत, सदगुरु, राष्ट्र संत, महां संत
आदि लोगों ने जनता  को क्यों नहीं चेताया कि इस बार
 विप्पत्ति आने वाली है, उत्तराखंड की यात्रा पर नहीं जाएँ। ये
सब अपने को चमत्कारी बताते हैं। थोडा चमत्कार उत्तराखंड
में भी दिखाते,. पर ऐसा देखने-सुनने में नहीं आया। अब कुछ
तथाकथित साधु-साध्वियां अपनी राजनीति करने लगे हैं।
लाखों दीए जलाने की बात की जा रही है।  देशवासियों को
किसी के वर्गलाने नहीं आना चाहिए और कर्म की राह पर
आगे बढ़ते  हुए मदद के लिए आगे आना चाहिए।  यही हमारा
राष्ट्र धर्म है। साथ ही भारतीय सेना, वायु सेना, अर्ध सैनिक बलों
और उन सभी स्थानीय निवासियों  को नमन करना चाहिए
जो मनुष्य के रूप में भगवान बन कर पीड़ितों के पास पहुंचे
और उन्हें राहत पहुँचाने के साथ ही उन्हें आपदा क्षेत्र से
बाहर निकालने में मदद की। अपना कर्तव्य निभाते हुए
हमारे सैन्य बल के जो कर्मचारी शहीद हुए उन्हें और उनके
परिवारों को हमें कभी नहीं  भूलना चाहिए। यही उन शहीदों
के लिए हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
 
28.06.2013

 

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