Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 61404 times)

Pooran Chandra Kandpal

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         हिंदी का संवैधानिक हक

      राष्टर्पिता महात्मा गांधी चाहते थे कि हमारे देश में एक राजभाषा हो
और केंन्द्र सरकार का पूरा कामकाज हिंदी में हो।  उनका सपना आज भी
पूरा नहीं हुआ।  राजभाषा अधिनियम की बात  भी आई-गई  हो गई। केन्द्र
सरकार के सभी कार्य अंग्रेजी में हो रहे हैं, संसद में भी अंग्रेजी का ही बोलबाला
है। प्रत्येक वर्ष हम 14 सितम्बर को हिंदी की बात जरूर कर रहे हैं परन्तु इच्छा
शक्ति से इस ओर कोइ कदम नहीं उठ रहा हैं। हिंदी को कभी भी अंग्रेजी से परहेज
नहीं रहा और नहीं हिंदी ने कभी अंग्रेजी का विरोध किया।  हम भलेही कितनी ही
भाषाएं सीखें परन्तु हिंदी को उसका संवैधानिक स्थान मिलना चाहिये।  हिंदी ने
कभी देश की अन्य भाषाओं का भी विरोध नहीं किया बल्कि इनके फ़लने-फ़ूलने
में सहयोग ही किया। देश हित और राष्टरीय एकता के लिये हिंदी को संवैधानिक
हक मिलना ही चाहिये केन्द्र सरकार को हिंदी को राजभाषा का दर्जा शीघ्र देना
चाहिये। वर्ष में एकबार हिंदी को याद करने से हिंदी किनारे पर ही रहेगी।

पूरन चन्द्र कांडपाल , रोहिणी दिल्ली
16.09.2013

Pooran Chandra Kandpal

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                             संतों को पहचानें

मानव सेवा करने पर अल्बानिया में जन्मी भारतीय नागरिक नोबल पुरस्कार एवं भारत रत्न
विजेता मदर टेरेसा को मरणोपरांत 'संत' सम्मान से विभूषित किया गया। मदर टेरेसा सेवाभाव,
विनम्रता, करुणा, सयंम और मानवता की साक्षात् मूर्ति थी। तुलना करने के लिए उनके समकक्ष
 दूर तक कोई मनुष्य/मनीषी नजर नहीं आते। 'संत' कहलाये जाने के लिए अवश्य ही कोई शर्त/
संहिता होनी चाहिए। आज हम किसी  भी उजले-भगवे वस्त्रधारी, दाड़ी -केशधारी और शब्द-जाल
के आखेटक को कुछ प्रायोजित तथाकथित साधकों-शिष्यों के कहने पर संत कहने  लगते हैं।
हम इन स्वयंभू संतों के आचरण, दिनचर्या और समाज के प्रति इनके समर्पण को न देखते हैं
और न परखते हैं। क्रोध, लोभ ,कामुकता और भौतिकवाद से भरे हुए इन पाखंडियों की तथाकथित
तंत्र-मन्त्र विद्या पर विश्वास करने लगते हैं। संत फ़कीर होते हैं, उनके पास अरबों रुपए का कारोबार
नहीं होता। वे वास्तव में समाज सुधारक होते हैं। कबीर, नानक, रैदास, ज्ञानेश्वर,जैसे कई संत
इतिहास ने देखें हैं। आज  साधू-संत वेश में कुछ पाखंडी महिलाओं से एकांत में मिलने की
चाह रखते हैं, धन एकत्र कर रहे हैं और भू-माफिया बन गए हैं। संतों के नाम पर कलंक
लगाने वाले इन पाखंडियों से  सचेत रह कर इन्हें समाज से दूर रखने की आज परम 
आवश्यकता है।

पूरन चन्द्र कांडपाल, रोहिणी दिल्ली 
17.09.2013


 

priyanshurawat5

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अरे इसमें पोस्ट कैसे करते हैं यार कोई मुझे भी बता दो बड़ी कृपा होगी

Pooran Chandra Kandpal

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                        लुप्त होती सकारात्मक सोच

    जब भी चुनी हुई सरकारें जनहित में कोई कदम उठाती है तो
विरोधी इसे  वोट की राजनीति कहने लगते हैं। विरोध करने का यह
एक फैशन बन गया है। जनहित में कार्य करने के लिए ही तो सरकार
को चुना जाता है।  इस बीच हमारे देश में जनहित के कई विधेयक
सरकार ने विपक्ष के संशोधनों को स्वीकारते हुए पारित करवाए फिर
भी इन पर खीचतान हो रही है। विपक्ष को याद रखना होगा कि
प्रजातंत्र में जनता ही सरकार बनाती है और सरकार को पूरे कार्यकाल
तक सकारात्मक विरोध के साथ  कार्य करने देना चाहिए।

        देश के लिए जब भी कोई महत्वपूर्ण खरीददारी होती है तब भी यही
कहा जाता  है कि 'कमीशन' खा लिया। उत्तराखंड त्रासदी के बाद राहत कार्यों
में भी यही उछाल दिया जाता है कि 'खूब खा रहे हैं।'  इस तरह की बातों से
मीडिया में तूफ़ान आ जाता है। यदि घपला या घोटाला हुआ है तो उसके
अकाट्य सबूत पेश किये जाने चाहिए अथवा स्टिंग ओपरेशन से प्रमाण
उपलब्ध किये जाने चाहिए। अगर हम प्रत्येक खर्च पर भ्रष्टाचार की
काल्पनिक बातें करेंगे तो न तो हम देश के लिए उचित खरीददारी कर
सकेंगे और न ही हमारे सांसद-विधायक  अपनी निधि से जनहित में धन
खर्च कर सकेंगे। बेईमानी के प्रमाण जुटाकर ही मीडिया में बात उछाली
जानी चाहिए। नकारात्मक सोच से निराशा फैलती है। हमें सकारात्मक सोच
के साथ जनहित के कार्यों में संयम रखते हुए चौकस निगाहों से भ्रष्टों पर
नजर रख कर उन्हें बेनकाब करना चाहिए।

पूरन चन्द्र कांडपाल , रोहिणी दिल्ली
23.09.2013


Pooran Chandra Kandpal

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                   पितृ पक्ष में दान

    आजकल पितृ पक्ष के बारे में खूब चर्चा हो रही है। राष्ट्रीय सहारा भी
इससे अछूता नहीं है। सभी चर्चाओं में समाज  के एक विशिष्ठ वर्ग को भोज
कराने और इसी वर्ग को द्रव्य दान की बात होती है। यही वर्ग पितृ पक्ष को
अशुभ मानता है जबकि दान-भोज यह कह कर मांगा जाता है कि पितृ पक्ष
में पितर स्वर्ग से भूमंडल पर आते हैं।स्वर्ग कहाँ है यह कोइ नहीं बताता।
पितरों को भगवान् भी कहा जाता है तो फिर पितृ पक्ष अशुभ कैसे हुआ।
शराद,पिंडदान और तर्पण के बाद भोज एवं द्रव्य दान लेने तक ही इनका
 लक्ष्य होता है।

    हमें अपने पूर्वजों/पितरों को अवश्य याद करना चाहिए और उनका स्मरण
निरंतर होना चाहिए। पितरों के नाम पर दान भी दिया जाना चाहिए परन्तु
दान किसी विशेष वर्ग को ही क्यों दिया जाय? दान हमेशा सुपात्र को ही दिया
जाना चाहिए। जनहित में कार्य  वाली संस्थाएं,अनाथालय,विद्यालय,वाचनालय,
अस्पताल आदि इस दान के सुपात्र हैं। यह दान पौध रोपण पर भी खर्च हो
सकता है ताकि वसुंधरा हरी-भरी रहे। हमें अंधविश्वास के सांकलों को तोड़ने
की हिम्मत जुटानी ही होगी। शराद का पिंडदान नहीं, सामर्थानुसार दान की
श्रन्धांजलि ही पितरों तक पहुचेगी।

पूरन चन्द्र कांडपाल, रोहिणी दिल्ली।
27.09.2013

Pooran Chandra Kandpal

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                           एक र्रिपोट

     संयुक्त राष्ट्र कि एक रिपोर्ट पर मुणि छ एक  नानि कविता-

     यू एन ओ कि खाद्य-कृषि संगठन कि रिपोर्ट छ य
   ज्यादै पुराणि न्हें 2013  कि बात छ य,
     दुनिय में सतासि करोड़ लोग रोज भुकै स्येतनी
   पचास करोड़ लोग ज्यादै खै बेर बीमार है जानी,
     हमा्र देश कि 80 % रकम क भोग करैं रईं 20 % लोग
   20 % रकम पर ज्यौन छीं देशा क  80 % लोग
   हमा्र प्रजातंत्र में सब तरक्की करैं रईं,
     गरीब गरीबी क अमीर अमीरी क भोग करैं रईं।

03।10।2013

Pooran Chandra Kandpal

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                        नदियों को बचाओ

    यदि हमने बदलाव को स्वीकार नहीं किया तो हम अपनी नदियों
को नहीं बचा सकेंगे। गणपति पूजा और दुर्गा पूजा की रंग-रसायन
जडी मूर्तियां, दीपावली, छट और महाशिवरात्रि की पूजन सामग्री से
यमुना सहित सभी नदियों का बेहाल है। कुएं और तालाब भी विसर्जन
के नाम से धार्मिक कूड़े से ठूंस दिए जाते हैं।
     जब जल विसर्जन की परंपरा बनी तब नदियां जल से भरी रहती
थी। अब जल घट  गया है और जनसँख्या कई गुना बढ़ गई है। जल
स्रोतों में विसर्जन को धर्माचार्य, ज्योतिष, तांत्रिक और तथाकथित संत
बढ़ावा देते हैं। वोट के खातिर राजनेता भी इन्हीं की भाषा बोलते हैं।
विसर्जन से नदियों को मुक्त रखने का विकल्प कोई नहीं सुझाता।
नदियों को बचाने के लिए विसर्जित की जाने वाली सभी वस्तुओं का
भू-विसर्जन होना चाहिए अर्थात इन्हें गड्ढा खोदकर भूमि में दबाना
चाहिए। इस हेतु सभी धर्माचार्यों को समाज को संदेश देना चाहिए।
यदि हम अन्धविश्वाश में डूब कर लकीर के फ़कीर बने रहे तो हमारी
जीवन दायिनी नदियां प्रदूषित होकर विलुप्त हो जायेंगी। इलाहाबाद
उच्च न्यायालय  का 7 अक्टूबर 2013  का इस सम्बन्ध में दिया
गया आदेश बहुत ही सराहनीय है जब नायालय ने गंगा-यमुना में
मूर्तियों के विसर्जन की अनुमति देने से इनकार कर दिया। हमें
जल विसर्जन की परम्परा को बदलना ही होगा भले ही कानून का
सहारा क्यों न लेना पड़े।

पूरन चन्द्र कांडपाल,रोहिणी दिल्ली
14.10.2013

Pooran Chandra Kandpal

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 संस्कारी बहू

सबकी सेवा कर
काम से मत डर
सुबह जल्दी उठ
रात देर से सो
बोल मत
मुह खोल मत
चुपचाप रो
आंसू मत दिखा
सिसकी मत सुना
सहना सीख
न निकले चीख
जब सबका
हुकम बजाएगी
सेवा टहल लगाएगी
घर-आगन सजाएगी
तब संस्कारी बहू कहलाएगी।
15.10.2013

Pooran Chandra Kandpal

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                    मर गई संवेदना

  13 अक्टूबर को मध्य प्रदेश के दतिया रतनगढ़ मंदिर में हुई
भगदड़ में 115 श्रध्धालुओं की दर्दनाक असामयिक मौत हो गई।
धार्मिक स्थलों पर अक्सर ऐसी भगदड़ मचती रहती है जिसकी
जांच बैठा दी जाती है। रतनगढ़ में भी जांच बैठा दी गई है।
अफ़सोस की बात तो यह है कि इतनी मौतों के हादसे के बाद
कुछ समय के लिए भी मंदिर बंद नहीं हुआ। इतने बड़े हादसे के
बाद इस मंदिर को कुछ दिन के लिए बंद करना चाहिए था परन्तु
यह कुछ देर के लिए भी बंद नहीं हुआ। यह दर्दनाक घटना जिसकी
गलती से भी हुई यह तो जांच के बाद सामने आएगा परन्तु इस
दुःख की घड़ी में शोक अथवा श्रधांजलि स्वरुप मंदिर की तरफ
से इस तरह की असंवेदनशीलता सोचनीय है। आज धर्मस्थल
कमाई के स्रोत बन गए हैं जहां भोली-भाली जनता की धर्म-आस्था
के नाम पर अन्धाधुंध लूट होती है और जनता कुप्रबंधन के
कारण असामयिक  काल की ग्रास बन जाती है। इस क्षेत्र में
कोताही वरतने वालों को सख्त सजा दी जानी चाहिए।
17.10.2013

Pooran Chandra Kandpal

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                   भू-विसर्जन हुण चैंछ

   राजधानी में दुर्गा पूजा मूर्ति विसर्जन क वजैल यमुना क
हाल भौत खराब हईं। पुर देश में मूर्ति विसर्जन क वजैल सबै
नदियों क बुर हाल छ। अगर हा्म बदलाव स्वीकार नि करुल त
हा्म नदियों कें नि बचै सकन।मूर्तियों क रंग-रसायन और दगा्ड
में बगाई जाणी धार्मिक कुड़-कभाड़ नदियों में भौत प्रदूषण हैगो।
जब जल विसर्जन कि परम्परा बनी तब नदियों में  भौत पाणी
छी। आब पाणी घटि गो और जनसंख्या भौत बढिगे। जल में
विसर्जन कि परम्परा कें धर्माचार्य,ज्योतिष,तांत्रिक और स्वयंभू
संत बढा्व  दीं रईं। वोटों क लिजी राजनेता लै इनरी भाषा बलानी।
विसर्जन कि क्वे और विकल्प पर लै बात नि हुनि। नदियों और
जलस्रोतों कें बचूणा लिजी विसर्जन करी जाणी सब चीजों क
भू-विसर्जन हुण चैंछ अर्थात यूं चीजों कें खड्ड खोदि बेर जमीन
में दबै दींण चैंछ। धर्माचार्यों कें यैक बा्र में समाज कें संदेश
दीण चैंछ। अगर हा्म अंधविश्वास में डुबी बेर लकीर क फ़कीर
बनिए रौलां त हमा्र  जलस्रोत एक दिन लापता है जा्ल।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ल हाल में गंगा-यमुना में मूर्ति
विसर्जन कि इजाजत दीण है इनकार करि दे।य न्यायालय क
भौत सराहनीय आदेश छ। हमू कें विसर्जंन कि पुराणि परम्परा
बदलणै पड़लि भलेही कानून क सहा्र ल्हींण पडल।

17.10.2013

 

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