Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 268599 times)

Pooran Chandra Kandpal

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      मैगी जैसे और भी होंगे कई

   सच्चाई यह है कि भलेही मैगी में मोनो सोडियम ग्लूटामेट (एम् एस जी ) और लैड न भी हो, तब भी यह स्वास्थ्य के लिए उत्तम नहीं कहा जा सकता. बारीक मैदे से बनी कोई भी चीज स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है.  जो अभिभावक अपने बच्चों को चिप्स, कुरमुरे, कुरकुरे, नोड्यूल, मोमोज, बर्गर,पिजा आदि चीजें नियमित दे रहे हैं वे बच्चों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे  हैं.  हमें पारम्परिक व्यंजन जैसे दाल, दलिया, खिचड़ी, हलुवा,  खीर, दूध, सब्जियां बच्चों को परोसनी चाहिए. मांसाहार भी बच्चों के लिए उचित नहीं है. दूध और दूध  से बने पदार्थ पूर्ण आहार हैं बसरते कि उनमें मिलावट न हो.  मैगी के ब्रांड एम्बेसेडरों को तुरंत सुधारात्मक प्रचार करना चाहिए कि उन्होंने कंपनी के कथन पर भरोसा किया था और उन्हें अमुक प्रोडक्ट  के अन्दर भरे गए खतरनाक रसायनों की ज़रा भी जानकारी नहीं थी.  वैसे भी हमारे कई सेलेब्रिटी पान मशाला, शीतल पेय, क्रीम, शैम्पू, सोमरस आदि का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भ्रामक  प्रचार कर रहे हैं.  उन्हें हर कदम फूक-फूक कर रखना चाहिए.  गुट्खा, खैनी, जर्दा, तम्बाकू, धूम्रपान आदि ये सब प्रचार से ही जन-जन तक पहुंचे हैं. पैसा बहुत कुछ है सब कुछ नहीं.  फिल्म सात हिन्दुस्तानी में पांच सौ रुपये के मेहनताने से काम शुरू कर करोड़ों तक पहुँचने  वाले महानायक बन गए  बच्चन साहब ने अनजाने में इस पदार्थ का प्रचार किया होगा ,  ऐसा हमारा मानना है | शीघ्र सुधारवादी प्रचार से भ्रम दूर करना एवं सत्य सामने लाना  समय की मांग है.

पूरन चन्द्र काण्डपाल,
03.06.2015

Pooran Chandra Kandpal

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    दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

    चनरदा तमाकु/धूम्रपान हुणी नुकसान क बारमें बतूं रईं, "  हर साल हाम ३१ मई हुणी धुम्रपान निषेध दिवस मनू रयूं  ताकि तमाकु और धूम्रपान ल हुणी बीमारियों है बै बचि जाओ.  हमार देश में  करीब २५ करोड़ लोग तमाकु/धूम्रपान क सेवन करनी और हर  ४० सेकेण्ड में एक धूम्रपान करणी परलोक सिधार जांछ.  ९०% फेफड़ और गिच क कैंसर  तमाकु ल हुंछ..  हम सबू कें थ्वड  टैम ऊँ लोगों कें जागरूक करण क लिजी निकाऊंण  चैंछ  जो बीड़ी, सिगरट , सुल्प, चरस, अत्तर, गांज, भांग, तमाकु, खैनी,नश्वार, गुट्क, सुर्ती, जर्द, चुन -कत्थ, सुपारि और पान मसाला  क सेवन करैं रईं.  यूं लोग आपण धन/घर फुकि बेर बीमारी मोल ल्ही  रईं.  अगर हाम एक मेंस कें लै य नश है मुक्ति दिलै सकूं तो य भौत ठुलि   समाज सेवा कई जालि.  नानतिन धूम्रपान छूटोंण में भौत मदद करि सकनी.  अगर ऊँ आपण पापा/बौज्यू हुणी भौत विनम्रता क साथ धूम्रपान छोड़न कि बात करला तो ऊँ भलेही आपण घरवाइ कि बात नि मानो पर ऊँ आपण नना कि बात जरूर मानाल.
     सांचि बात त य छ कि लोगों कें धूम्रपान ल हुणी नुकसान क बारमें पत् न्हैति. हमार देश में इस्कूली नान लै तमाकु उत्पाद क शिकार छीं.  भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् क अनुसार देश में करीब ३५-४० प्रतिशत इस्कूली नान य जहर क सेवन करैं रईं.  ऊँ पैली शौकियां तौर पर यैक सेवन करनी फिर उनुकें येकि लत लै जींछ. तमाकु उत्पादों में  एक सौ है ज्यादै खतरनाक रसायन हुनी  जो गिच, फेफड़, खून क कैंसर और दिल-दिमाग  कि बीमारी क लिजी जिम्मेवार छीं. बस लाख बातों कि एक बात- जो लै धुम्रपान/गुट्क/पान मसाला क सेवन करणी देखण में औंछ उहें जरूर य बात कि चर्चा करो. " चनर दा ल द्वि आखर मैगी क बार में लै बता, " मैगी क्वे लै हालत में नना-ठुला लिजी ठीक न्हैति. स्वाद क नाम पर जहर घोई आइटम छ य. टेलीविजन ल येकें  शहर बै गौनूं में पुजा. हमूल आपण नना कें दलिय, खीर, हलू, परौठ, खिचड़ी और साग-दाव-दूद  दींण चैंछ और मैगी, चिप्स, कुरकुरे, कुरमुरे, बर्गर, मोमोज, नोड्यूल, पिजा, ठण्ड-बोतल बंद पेय है दूर धरण चैंछ. भुटी भट और  भुटि या झिलोई चांण नना कें नियमित रूप ल जरूर दींण चैनी, पै देखो नना कि चुस्ती-फुर्ती और दिमाग. नना कें अनाप-सनाप खवै बेर कुरमु नि बनौ ".

पूरन चन्द्र काण्डपाल ,रोहिणी दिल्ली. 
04.06.2015

Pooran Chandra Kandpal

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              गंगा का संताप

   आज गंगा को साफ़ करने की खूब जोर-शोर से बात हो रही है.
बहुत अच्छी बात है.  बात तो पिछले चार  दसकों से हो रही है लेकिन
ढाक के तीन पात. निष्परिणाम का मुख्य कारण- काम कम शोर ज्यादा,
कथनी-करनी में अंतर, वोट बैंक के नाराज होने का डर, अंधविश्वास
से लगाव, अकर्मण्यता का दंश और ईमानदारी का अभाव.  पिछले चार
दसकों से इस मुद्दे पर कई लेखकों की  कलम चल रही है.  मैंने भी
अपनी पुस्तक 'माटी की महक, यथार्थ का आईना, सच की परख,
उत्तराखंड एक दर्पण, उजाले की ओर' सहित कई पत्र-पत्रिकाओं एवं
समारिकाओं के माध्यम से गंगा के संताप की बात विभिन्न तरीके
से उठाई.  गंगा की  लम्बाई २५२५ कि मी है. इसे यदि ५-५ कि मी के
५०५ भागों में बांटा जाय और प्रत्येक ५ कि मी के हिस्से पर कड़ा
पहरा लगाया जाय तो गंगा गन्दगी और अतिक्रमण से बच सकती है.
भाषण में जोर है परन्तु क्रियान्वयन नहीं है.  गंगा में सभी प्रकार का
विसर्जन बंद होना चाहिए.  आज भू-विसर्जन अर्थात सभी प्रकार के
धार्मिक विसर्जन, पूजन सामग्री, मूर्ति विसर्जन आदि को जमीन में
दबाना चाहिए. यदि हमने भू-विसर्जन की परम्परा अपना ली और
सभी गंदे नाले गंगा में गिरने बंद हो गए तो गंगा स्वत: स्वच्छ
हो जायेगी. अन्यथा बिना जमीन में कुछ किये ढोल-डमरू-डुगडुगी
बजाकर शोर मच रहा है, मचाते रहो और बीच-बीच में धर्म को भी
घसीटते रहो.  मदारी के शोर और डुगडुगी के जोर पर ही तो
बन्दर नाचता है. गंगा की डाड़ राजनीति की गाड़ में हमेशा ही
बहती रही है. धर्म- कर्म -पुण्य के नाम पर हम सब नदियों के
रूप-रंग को बिगाड़ रहे हैं. हमें कौन रोकेगा? क्या सभी फेसबुकिये
इस बात की चर्चा अपने घर, मित्रों एवं कर्मस्थान पर करेंगे?

12.06.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                       दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै
 
      कुर्मांचल अख़बार में छपी संपादकीय (१ जून) 'जंगवों कें आग है बचूण  कि फिकर'
पर चनरदा ल बता, "य एक भौत ठुल इत्तफाक छ कि उत्तराखंड क जंगवों में आग लागण
कि चिंता एक्कै दिन तीन जागि म्यार देखण में ऐछ .  दिन छी ऐतवार ७ जून २०१५.  उ
दिन ब्याव  क टैम में नई दिल्ली इण्डिया इण्टरनेशनल सेंटर में कुसुम नौटियाल सम्पादित
'बीरा' पत्रिका क लोकार्पण में मी लै नौत्यार छी.  वां साहित्य जगता कएक जानी -मानी
मन खी ऐ रौछी और मुख्य पौण छी उत्तराखंड क पूर्व मुख्यमंत्री, सांसद में.जन.(से.नि.)
बी सी खंडूड़ी ज्यू.  उनूल आपण व्याख्यान में दुःख क साथ कौ, ' पैली बै जंगवों में आग
लागते ही लोग आग निमूण क लिजी दौड़ि बेर जांछी .   आब लोग चै रौनी, आग लागण
द्यो कौनी, सरकारि जंगव छ, हमर जै क्ये छ कौनी और जंगव भषम है जांछ. लोगों ल यस
नि सोचण चैन .  जंगव भलेही कैकै लै नियंत्रण में हो वीक फैद जो जंगव क नजीक रौनी
उनुकें ज्यादै मिलूं.  आग निमूण क लिजी सबूंल हात बटूण चैंछ."
 
    कर्यक्रम समापन क बाद जब देर रात घर पुजौ तो कुर्मांचल अखबार (१.६.१५) और
'पहरू' मई २०१५ म्ये है पैली घर पुजि रौछी. कुर्मांचल अखबार  क सम्पादकीय में
लै य ई फिकर देखण में ऐछ . आग है जंगव कें बचूंण क लिजी जंगव कि चौकसी और
वन विभाग क पास संसाधनों कि बनावटी कमी आदि मुद्दों पर भल आलेख छी.  रात
भौत है गेछी फिर लै एक सरसरी नजर बिन 'पहरू' पर मारिये नि रै सक.  पन्न पलटन-
पलटनै नजर नाटक " कैक जंगव ? कैकि चिंता ?" पर अटकि गे. गनियाधोली क गोपाल
सिंह रावत ज्यू क लेखी द्वि पन्नों में छपी य नाटक पढ़ी बेर भौत भल लागौ. रावत ल
जंगव क आग में रमका कि ज्वान च्येलि क भड़ीण क बढ़ कचवैन लागणी दृश्य मंचित
करि बेर य सन्देश दी रौछ कि 'जंगव हमरि जिन्दगी छ, य सबूं क संजैत छ, हमूल यैकि
रक्षा करण चैंछ और पतरौव कें देखि उठी रीस जंगव में नि फेड़ण चैनि.' जंगव क तीनै
शुभ चिंतकों कें साधुवाद दींण चानू जो उनूल आपण-आपण हिसाब ल जंगव कि रक्षा
करण क सन्देश देछ.  आग लागी में नाफ देखणी और लापरवाही क साथ धूम्रपान
करणी लोगों कें सदबुधि ऐजो, य लै हमरि अभिलाषा छ. घर फुकि बेर तमाश नि
देखण चैन . एक चिणुक लै बिकराल बनि बेर पुर जंगव कैं भषम करि सकूं |"
 
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल , रोहिणी दिल्ली
12.06.2015

Pooran Chandra Kandpal

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              खनन, पेड़ और परम्परा बदलाव

     प्यारा उत्तराखंड ११-१७ जून २०१५ में छपे दो लेख जनजागृति से सराबोर एवं झझकोरने वाले हैं .  पहले लेख ‘आन्दोलन के साथी’ शीर्षक  के माध्यम से अखबार के संपादक देवसिंह रावत नि मलेथा में खनन की चर्चा की है.  लेख में ‘बन बचाओ’ आन्दोलन में कभी जेल जाने वाले वर्तमान मुख्यमंत्री रावत जी से उत्तराखंड को खनन से बचने के लिए अविलम्ब कड़े कदम उठाने की बात कही गयी है |  दूसरे लेख में सच्चीदानंद  शर्मा  ने गिर्दा की कविता के साथ गिर्दा को याद किया है और हिमालय वासियों से वर्ष में बारह वृक्ष लगाने की विनती के साथ प्रकृति कवि  वर्ड्सवर्थ का सन्दर्भ दिया है |

    दोनों लेख दिल को छूने वाले हैं परन्तु न हमें पेड़ लगाने की चिंता हैं, न पर्यावरण बचाने की और न नदी बचाने की.  उदहारण के लिए यमुना किनारे स्थित निगम बोध श्मशान घाट  दिल्ली की चर्चा करते हैं.
यहाँ पर उत्तराखंड एवं कुछ अन्य लोग शवदाह यमुना नदी के किनारे करते हैं और चार-पांच घंटे में शव दाह कर सम्पूर्ण राख-कोयला यमुना में बहा देते हैं.  काला गंदा नाला बन चुकी यमुना की दुर्दशा निगमबोध घाट पर देखी नहीं जा सकती है. यहाँ पर शवदाह की व्यवस्था सी एन जी फर्नेश से भी है.  छै फर्नेश (भट्टी) चालू  हालत में हैं.  एक शवदाह में एक घंटा बीस मिनट का समय लगता है.  शवदाह में समय तो बचता ही है एक पेड़ ,पर्यावरण, हवा और यमुना बचती है.  शवदाह में सी एन जी खर्च मात्र एक हजार रुपये है जबकि लकड़ियों का खर्च ढाई से पांच हजार रुपये तक हो जाता है. अक्सर फट्टे,लकडियां, चीनी दोबारा मंगाई जाती हैं. यह सब जानते हुए भी लोगों का रुझान सी एन जी दाह के प्रति नहीं दिखाई देता.  अन्धविश्वास की जंजीरें उन्हें बांधे हुए हैं.  यमुना के मायके वाले उत्तराखंडियों को तो यमुना की अधिक चिंता होनी चाहिए. यदि मानसिकता नहीं बदली तो प्रधानमंत्री के बनारस को क्योटो बनाने के सपने का क्या होगा ?  पेड़, पर्यावरण, प्रदूषण एवं नदियों की चिंता के साथ आज परम्पराओं को बदलने की आवश्यकता भी है |

पूरन चन्द्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
16.06.2015

Pooran Chandra Kandpal

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        कथां जांरै कर्म-संस्कृति
    १६ जून २०१३ हुणी केदारनाथ में जो आपदा ऐछ  वीकि  दुसरि बर्षि पr  बेमौत मरणीयां  कें कएक जागि श्रधांजलि दिई गे. चनर दा पूछें रईं, “ मरियां कि याद में कैल कतू डाव-बोट रोपीं,  कतुक्वाल नदियों में विसर्जन क विरोध करौ, नदियों कें बचूण क लिजी गिच खोलौ छ निखोल, अन्धविश्वास कि चद्दर खेड़ी छ निखेड़ी, जास सवाल हमार इर्द-गिर्द रिटें रईं.  अगर क्ये नि करौ तो क्वेरि श्रधांजलि दी बेर खानापूरी हैगे समझो.  जब तक मन क भाव कर्म-संस्कृति में नि बदलन, सारी भावना बेकार छ.  हमूल आपुहैं सवाल पुछण छोडि हालीं.  भाग्य और भगवान् कि नाम कि छात ओड़ि बेर हाम भै जानू और कर्म कें अलग छटकै दिनू.  समाज में जे लै गलत काम हाम देखनू, उकै चुपचाप चै रनू.  गांधीगिरी क साथ एक आंखर गलत काम करणीयाँ कै टमकूण  कि हमरि हिम्मत गध्यरा कि सीर कि चार बुसीगे.”
       चनरदा ल अघिल बता, “कर्म करण कि जब क्वे इंसान ठान ल्यूछ तो उ जरूर सफल हुंछ.  नागपुर में एक सिक्योरिटी गार्ड क च्यल ल य बात सिद्ध करि  बेर देखै. उ कक्षा १२ कि पढ़ाई क दगाड-दगड़े ऑटो रिक्श लै चलूंछी.  एक दिन उ सवारी छोडें  हैं एयरपोर्ट गो.  वाँ वील पायलटों क ग्रुप देखौ और पायलट बनण कि ठान ल्ही.  गरीब होते हुए वील हिम्मत बांधी.  फिर कैले उकैं डी जी सी ए  (डायरेक्टोरेट जनरल आफ सिविल ऐविऐशन) पायलट छात्रवृति क बार में बता.  वील ट्रेनिंग क लिजी मध्य प्रदेश क एक फ्लाईट इस्कूल में एडमिशन ल्हे.  य फ्लाईट इस्कूल में वील टॉप करौ और आज उ इंडिगो एयर लाइन में पायलट बनि बेर विमान उडूरौ. य कर्म-संस्कृति और हिम्मत क एक भल उदाहरण छ.  दगड़-दगडे य लै बतूंण चानू कि  १३ जून २०१५ हुणी भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून बै ६१६ युवा अफसर ट्रेनिंग ल्ही बेर सेना में शामिल है गईं. इनू में हमर राज्य उत्तराखंड जो सैनिक बहुल प्रदेश छ, बै सबूं है ज्यादै ६० सैन्य अफसर बनीं. य खबर भौत भलि लागी. यूं सैन्य अफसरों कें बधाई. पत् ना यूं साठों में बै गौनूं  क कतू छीं.  भौत कचवैन लगूणी एक खबर य लै छ कि ए आई पी एम् टी-२०१५ कि परीक्षा नकलचियों क वजैल रद्द हैगे.  ४४ नकलची पकड़ी गईं.  करीब छै लाख छात्रों कें एक ता आजि चार हफ्त बाद फिर परिक्षा दींण पडलि.  भ्रष्ट नरपिशाचों कि करतूत ल य परीक्षा रद्द है.  छात्रों ल हिम्मत क साथ दोबार परीक्षा में शामिल हुण  चैंछ.” 
पूरन चन्द्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
17.06.2015

Pooran Chandra Kandpal

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      पितृ स्नेह (पितृ दिवस २१ जून )

माली की बगिया की तरह तुमने मुझे संवारा है,
चित्रकार की अनुपम कृति सा जीवन मेरा निखारा है.
चाक उंगुली ज्यों कुम्हार की मिट्टी को जीवित करती,
उसी तरह जीवन की खूबी तुमने है मुझ में भर दी.
तुमसे बढ़कर मित्र न कोई सखा का सुख भरपूर दिया,
पथ प्रदर्शक बन कर तुमने तम जीवन से दूर किया.
जब-जब रूठा हूं मैं तुमसे तुम मनाते  चले गए,
बचपन यौवन से अब तक तुम गले लगाते चले गए.
ऋतु ज्यों हमेशा एक न रहती जीवन में दुःख आते हैं,
दुःख-सुख के जो पाठ  पढाये याद मुझे आ जाते हैं.
जब तक प्राण तन में मेरे स्मृति मन में बनी रहे,
‘पितृ देव ‘ की पावन ज्योति प्रज्वलित मेरे उर में रहे |

21.06.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                     विश्व गुरु बनने के चाह !

    कुछ लोग  कह रहे हैं कि हम विश्व गुरु बनने के दावेदार हैं. बनो, रोक कौन रहा है? पहले गली-मोहल्ले या गाँव से तो शुरुआत करो.  सिर्फ वट्सऐप-फेसबुक-ट्विट्टर-डींग-आडम्बर से गुरु नहीं बनते.  सबसे पहले गुरु बनने का आचरण तो हो.  प्रधानमंत्री ने दो अक्टूबर २०१४ से स्वच्छता दिवस अपनाने को अपने तरीके से कहा.  बापू कह-कह के चले गए. असंख्य  विभूतियों ने भी कहा, वे भी चले गए.  हमने किसी की नहीं मानी.  उलटे हमने अधिक गन्दगी फैलानी शुरू कर दी.  लन्दन की टेम्स हमारी गंगा-यमुना को मुंह चिढ़ा रही है.   हम नदियों में डुबकी लगाने, गन्दगी फैलाने, प्रदूषण फैलाने, अन्धविश्वास बढाने, नशा करने, सड़क-दीवारों पर थूकने, खुले में शौच करने, मह्लाओं को अपमानित करने, नफ़रत-कटुता-बडबोल भरे शब्द उगलने, सामाजिक विष वमन करने सहित अनेकों कदाचारों को फैलाने में जरूर आगे हैं.   एक दिन यू एन ओ में हिंदी बोलने, एक दिन योग करने और एक दिन झाडू लगाने से हम गुरु नहीं बन सकते.  अभी तो यू एन ओ की सुरक्षा परिषद में भी जगह नहीं मिली है.  हर स्तर पर भ्रष्टाचार में हम आकंठ डूबे हैं.  चुनाव के दौरान जो बड़ी-बड़ी रैलियां हमने देखी उनके खर्च का भुगतान भ्रष्टाचार की  भारी-भारी थैलियों से ही हुआ बताया जाता है.  मैं निराशा नहीं फैला रहा परन्तु सत्य यही है.  इस मर्ज का एक ही इलाज है कि हमें अपना आमूल आचरण सुधारना होगा.  पहले हम सुधरें फिर आगे बढें.  अपने पेड़, नदियाँ, पर्यावरण और सार्वजनिक सम्पति की सुरक्षा करें, वेतन के अनुसार सौ फीशदी काम करें, प्रकृति की रक्षा करें, जिस आचरण की उम्मीद हम दूसरों से करते हैं उसे पहले स्वयं अपनाएं.  यदि हम ऐसा कर सके तो फिर हमें  विश्व गुरु बनने से कौन रोकेगा?  वर्तमान में विश्व में जिनकी चौधराहट चल रही है, उनके जैसा हमारे पास अभी बहुत कुछ नहीं है.  इसे पाने के लिए हमारी मदद कोई नहीं करेगा उल्टे वे हमें आगे बढ़ने से रोकेंगे.   हमें ही अपनी कमर कसनी पड़ेगी वह भी सार्थक सोच, कर्म-संस्कृति, दृढ़ निश्चय, ईमानदारी  और हिम्मत के साथ |

24.06.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                 दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

        अच्याल कुछ लोग विश्व गुरु बनण कि बात करें रईं.  य मुदद पर चनरदा ल बता, “ विश्व- गुरु बनो यार, रोकण को रौ ?  पैली गली-मुहल्ल- गौनूं बै शुरू करो.  सिरफ फेसबुक- व्हाट्सेप – ट्विटर पर डींग मारि बेर, आडम्बर देखै बेर विश्व गुरु नि बनन.  सबूं है पैली गुरु बनण क आचरण त हो.  प्रधानमंत्री ल द्वि अक्टूबर २०१४ हुणी स्वच्छता दिवस मनूण कि बात आपण हिसाब ल करी. बापू कौन-कौनै न्है गाय.  कएक अन्य महापुरुष लै य बात कै गईं पर हमूल कैकि नि मानी.  उल्टा हमूल ज्यादै गन्दगी फैलूण शुरू करि दी.  लन्दन कि टेम्स हमरि गंगा-यमुना कैं गिच चिढू रै.  हाम नदियों में डुबकि लगूण, गन्दगी फैलूण, प्रदूषण फैलूण, अन्धविश्वास बढूण, नश करण, सड़क-दीवालों पर थूकण, स्येंणीयां कें अपमानित करण, नफ़रत- कटुता- बड़बोल भरी आंखर बलाण, सामाजिक विष बमन करण सहित कएक कदाचारों कें फैलूण  में जरूर अघिल छ्यूं.   एक दिन यू एन ओ में हिंदी बलाण ल, एक दिन योग करण ल और एक दिन झाडु लगूण ल हाम विश्व गुरु नि बन सकन.  आजि त हमुकें यू एन ओ कि सुरक्षा परिषद में लै जागि नि मिलि रइ. हर स्तर पर हाम भ्रष्टाचार में डुबि रयूं. चुनाव क टैम पर जो भौत ठुल-ठुल रैली हमूल देखीं उनर खर्च क भुगतान भ्रष्टाचार क ठुल-ठुल थैलियों ल हौ बतायी जांछ. मी निराशा नि फैलूं रय पर य सबूं ल देखौ.  य मर्ज क एक्कै इलाज छ कि हमुकें आपण आमूल आचरण कैं सुधारण पडल.  आपण पेड़, नदी, पर्यावरण और सार्वजनिक सम्पति कि सुरक्षा करण, वेतन क अनुसार सौ फीसदी काम करण, प्रकृति कि रक्षा करण और जस आचरण कि उम्मीद हाम औरों हैं बै करनू  उस आचरण पैली करण पडल.  अगर हाम यस करि ल्युलौ पै हमुकें विश्व गुरु बनण है क्वे नि रोकि सकन. ऐल दुनिय में जैकि चौधराहट चलि रैछ, उनर जस हमर पास भौत कुछ न्हैति. उकें पाण क लिजी हमरि मदद लै क्वे नि करा उल्टा हमूकें पिछाड़ि खैंचा ल.  हमू कणी कमर कसि बेर सार्थक सोच, कर्म-संस्कृति, दृढ़ निश्चय, ईमानदारी और हिम्मत क साथ खुट बढूण पडल |”

पूरन चन्द्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
24.06.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                    ठुल बहौन कि सारि चोट

        ‘कस जमान देखौ कस जमान ऐगो, बखता त्येरि ब लै ल्युल बुधिदा  कैगो’| ‘मुक्स्यार’ किताब में छपी य कविता मणमणानै, च्यूना भीं बै हात हटूनै चनरदा बलाय, “अरे भुला क्ये बतूं क्ये नि बतूं? क्ये कूं क्ये नि कूं ? पैली बै कौंछी ‘जसै जौ उसै ग्यूं, उसै ज्याड़ज्यू उसै यूं’.  आज सब बदलि गईं, सब एकनसै है गईं. आज उत्तराखंड क गौनूं में दूद कि उल्टी गंग बगै रै.  पैली बै दूद कि बाल्टि गौ नूं बै कस्ब-शहरों हुणी जै छी, आब कस्ब-शहरों बै दूद कि थैलि गौनूं हुणी जां रै.  आब त घरों में इस्तेमाल हुणी सब चीज कस्ब –शहरों बै जां रौ भलेही उ मिलावट ल भरी हो.  हमरि देश कि सुप्रीम कोर्ट कैं लै मालुम छ कि दूद में भौत मिलावट बढ़ि गे और कोर्ट ल कएक ता मिलावट पर तल्ख़ टिप्पणी लै करि है.  कुछ दिन पैली खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफ एस एस ए आई ) ल  देशभर में एक सर्वेक्षण करा जै में ६८.४ फीसद दूद क नमूनों में मिलावट मिली.  देश में हर चीज में मिलावट क कारबार खुल्लम-खुल्ला चलि रौ.  मिलावट करणी नरपिशाच पनीर, खोया (कुंद) क्रीम और दूद में हमेशा मिलावट करनी पर य काम लगनों क मौक पर भौत बढ़ि जांछ. ६६ फीसद खुल दूद में मिलावट हिंछ.  बजार में मिलावटी सिंथेटिक दूद खूब बेचां रौ.  य दूद में यूरिया, डिटर्जेंट, वाशिंग पौडर, रिफाइंड तेल, कास्टिक सोडा  और सफ़ेद पेन्ट मिलाई जांछ.  य मिलावट यसि तकनीक ल करी जींछ कि शुध्द दूद और मिलावटी दूद में आम आदिम कैं क्ये पत् नि चलन.  य मिलावटी दूद- पनीर- कुंद- मिठै ल किडनी- लीवर- हार्टफेल  और कैंसर जास रोगों ल लोग मरें रईं.  देश में मिलावटखोरों कि सजा  लिजी क़ानून त छ पर शिकैत करण बटि सजा मिलण तक भौत लम्ब पांचर ठोकण पडूं जैक लिजी ठुल बहौन कि सारि चोट चैंछ. चोट नि पड़ण क वजैल मिलावटी कारबार फुफै रौछ. मिलावटी दूद क य बेखौप कारबार पर सरकार ल नजर धरण चैंछ और यूं नरपिशाचों कैं सख्त सजा मिलण चैंछ. सिर्फ आश्वासन/भाषणों ल काम नि चला.  जनता कैं बताई जाण चैंछ कि अमुक समय क दौरान यतू मिलावटखोर पकडीं और यतू जेल में भेजी गईं. कल्पना करो जो नना कैं मिलावटी दूद मिलल उनरि जिन्दगी कसि बनलि और मिलावटी दूद पिनै भावी पीढ़ी बनि बेर  उं  देश क भार कसी उठाल ? घर में दूद दिणी पशु पाउण सब जाग व्यावहारिक न्हैति. गौनूं में लै आब गोभर पर हात लगूण में शरम लागीं.”

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली ,9871388815
02.07.2015

 

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