Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 269005 times)

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                                                         बिरखांत – २1  (इस्कूल, मास्टर और कोर्ट )   
 
   इलाहाबाद हाईकोर्ट क शिक्षा क बार में १८ अगस्त २०१५ क फैसाल पर चनरदा ल बता, “इलाहाबाद हाईकोर्ट कैं दिल क साथ नमन करण चानू जो उनूल सरकारी इस्कूलों कि दुर्दशा पर सख्त कदम उठा | आब उम्मीद छ कि सरकारी इस्कूलों कि हालत सुधर जालि क्ये लै कि नेतओं, सरकारी अफसरों, बाबुओं और जजों क नान आब यूं इस्कूलों में पढाल | उत्तराखंड सहित देश क सबै राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लै य क़ानून लागू हुण चैंछ | मी य जनहित याचिका करणी कैं हार्दिक साधुवाद दीण चानू | पर दुःख कि बात य छ कि द्वि दिन बाद पत् लागौ कि याचिका कर्ता कैं नौकरी बै बर्खास्त करि है | अन्याय दगै लड़णीयां पर ढुंग – लमथर हमेशा पड़ते आईं और पड़ते आल |”
 
      चनरदा ल उपटापि अध्यापकों कि एक शर्मसार करणी अनाड़ि हरकत कि लै जिगर करी | उनूल बता, “ बतूण में लै शरम लागैं रै य बात | उत्तराखंड बै छपी एक अखबार क समाचार पढ़ि बेर क्ये कूण नि आय पर ज्यादै अचरज लै नि हय | शिक्षा क पवित्र व्यवसाय पर कलंक लगूणी मास्टरों ल आपण तरब बटि क्ये कमी नि धरि रइ | अल्माड़ जिल्ल क एक राजकीय इण्टर कालेज में मिड-डे मील कि रसोई में अभिभावक संघ क सदस्यों ल दिन-धोपरी शिकार क हंड चढ़ी देखौ | सदस्यों कैं कुछ कलंकी अध्यापक पी बेर तर ( डाउन ) लै मिलीं और कुछ टुन्न लै छी | वां इस्कूल क टैम (पढ़ाई क टैम) पर पार्टी चलि रैछी | सुणण में ऐ रै कि अभिभावक संघ कि मांग पर शिक्षा विभाग जांच में जुटि रौछ | शिव दत सती कि कविता याद ऐगे, “कै हैं कौनू को सुण छ जंगला क हाल ?” यसि हालत में उत्तराखंड कि शिक्षा क क्ये स्तर रौल ? क्वे देखणी- सुणणी जै हुनौ आज य हाल नि हुन | तबै त यां कक्षा पांच पास विद्यार्थी कक्षा द्वी कि किताब धड़ा-धड़ी नि पढ़ि सकन | उत्तराखंड क विद्यार्थी कक्षा बार पास करि बेर जब नौकरी क चक्कर में शहरों में पुजनी तो ऊँ महसूस करनी कि ऊँ ‘जीरो’ छीं | शिक्षा विभाग क ठुल अपसर और मुखिया कां छीं ?  क्वे उनुहैं पूछो त सही कि देवभूमि क शराबी मास्टरों पर शिकंज को  कसल और कभणी कसल ? अध्यापक  व्यवसाय पर कालिख  पोतणी यूं मास्टरों कि मुक्स्यार कभणी थमियली ?
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
03.09.2015

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                                                                    बिरखांत – २२ (सल्ट क्रांति की याद में )
 
    स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान ५ सितम्बर १९४२ को खुमाड़ (सल्ट) में फिरंगियों को भगाने के लिए क्रांति हुई थी जिसमें पांच स्वतंत्रता सेनानी खीमानन्द, गंगादत, बहादुर सिंह, बद्रीदत और चूड़ामणी शहीद हो गए और कई घायल हुए | उन शहीदों का स्मरण करने एवं उन्हें श्रधांजलि देने हेतु शाशीखाल, खुमाड़ (सल्ट) जिला अल्मोड़ा में ‘प्रयास सेवा समिति’ संस्था द्वारा प्रति वर्ष आयोजन किया जाता है | विगत वर्ष की तरह इस वर्ष भी शहीदों की स्मृति में यहां ४ सितम्बर २०१५ को दिन में कुमाउनी-गढ़वाली कवि  सम्मलेन आयोजित किया गया | स्थानीय कवियों सहित एक दर्जन से अधिक कवियों ने सम्मेलन में काव्य पाठ किया | कवियों में मुख्य थे – सर्वश्री मथुरादत मठपाल (रामनगर), गोपालदत भट्ट (गरूड़), हीरा सिंह राणा, पूरन चन्द्र काण्डपाल, दिनेश ध्यानी, जयपाल सिंह रावत, रमेश हितैषी, नीरज बवाड़ी, दलीप रावत एवं चन्द्रमणी चन्दन (दिल्ली), जगदीश जोशी (हल्दवानी),  तथा गोपाल सिंह रावत (ताडीखेत)|  सम्मेलन में श्री हीरा सिंह राणा जी की मुख्य भूमिका थी | इस अवसर पर पूर्व सांसद प्रदीप टमटा एवं पूर्व विधायक रणजीत सिंह रावत मुख्य अतिथि थे | उत्तराखंड के अमर शहीदों की स्मृति में आयोजित इस समारोह में स्कूली बच्चों सहित कई गणमान्य व्यक्ति, अध्यापक एवं स्थानीय निवासियों का जनसमूह उपस्थित था | ‘कुमाऊं की बारदोली (सल्ट)” कहे जाने वाले इस आन्दोलन में सल्ट का ऐतिहासिक योगदान रहा है | दिल्ली से सल्ट तक की काशीपुर, रामनगर, मड़चूला, मोहान होते हुए  यह यात्रा छै कवि मित्रों  के साथ अविस्मरणीय रही | इस यात्रा से यह कथन भी प्रासंगिक हो गया – “शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का बस यही एक निशां होगा” और “ आन्दोलन करौ जब देश ल आजादी क उत्तराखंडी पिछाड़ि नि राय, फिरंगियों कैं यस खदेड़ौ उनूल भाजनै पिछाड़ि नि चाय”|  सभी मित्रों को आज ‘अध्यापक दिवस’ एवं ‘श्रीकृष्ण जन्माष्टमी’ (५ सितम्बर २०१५) की सादर शुभकामनाएं |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
05.09.2015

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                                                                     शहीद मोहन गोस्वामी को नमन

      सेना के जांबाज शहीद मोहन गोस्वामी की शहादत को नमन करते हुए ५ सितम्बर २०१५, अध्यापक दिवस और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन हल्द्वानी (उत्तराखंड) के जनसैलाब ने शहीद के प्रति अपार सम्मान प्रकट कर सन्देश दिया है कि हम शहीद परिवार और अपनी लाडली सेना के सुख-दुःख में साथ हैं और उसका सदैव आभार प्रकट करते हैं | १० उग्रवादियों को ढेर करने वाली सैन्य टीम के इस बहादुर सपूत एवं इसकी टीम को हमारा सलाम | आज पुन: कहना पड़ेगा, “दम निकला तूने आह न की सीने में गोली खाई, रखा बुलंद तिरंगा प्यारा अपनी कसम निभाई”| शहादत की इस परम्परा पर भी मन से आवाज आ रही है, “जिस शान से कोई मकदल को गया वह शान सलामत रहती है, यह जान तो आनी जानी है इस जान की कोई बात नहीं |” साथ ही यह  आवाज भी गूंज रही है, “सेना तेरा यह बलिदान, याद रखेगा हिन्दुस्तान |” जय हिन्द, जय हिन्द की सेना |

पूरन चन्द्र काण्डपाल 
06.09.2015

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                                                       बिरखांत – २३ (क्या हुआ..आ.. तेरा वादा..आ..आ.. ? )

     आज के युग मंम वायदा करने मं  लोग देर नहीं लगाते परन्तु निभाने मं  देर की बात छोड़ो, वायदा ही भूल जाते हैं | एक हजार से अधिक वर्ष पुरानी कुमाउनी-गढ़वाली भाषा जो कभी कत्यूरी और चंद राजाओं की राजकाज की भाषा थी, गोरखा आक्रमण मंम मार डाली गई | रचनाकार आगे आए और भाषा पुन: पनप गई | दो दशक पहले कुछ मित्रों ने कहा, ‘आप हिन्दी मंद लिख रहे हैं अच्छी बात है परन्तु कुमाउनी मरने लगी है, इसे भी ज़िंदा रखो |’ मं ने प्रयास किया और कुमाउनी की कुछ विधाओं पर आठ पुस्तकें लिख दी | दो पुस्तकें ‘उज्याव’ (उत्तराखंड सामान्य ज्ञान, कुमाउनी मं  ) और ‘मुक्स्यार’ ( कुमाउनी कविताएं ) निदेशक माध्यमिक शिक्षा उत्तराखंड सरकार ने कुमाऊं के पांच जिल्लों- अल्मोड़ा, बागेश्वर, नैनीताल, पिथौरागढ़ और चम्पावत के सभी पुस्तकालयों हेतु खरीदने के लिए इन सभी जिल्लों के मुख्य शिक्षा अधिकारियों को पत्रांक २२४८१-८६/पुस्तकालय/२०१२-१३ दिनांक २३ जून २०१२ के माध्यम से आदेश दिया | तब से तीन वर्ष बीत चुके हैं, कई स्मरण पत्र देने पर भी आज तक एक भी पुस्तक नहीं खरीदी गई | नीचे से ऊपर तक कुर्सी मंस बैठे हुए जिस साहब से भी कहा उसने वायदा किया परन्तु परिणाम शून्य रहा | यही नहीं दिल्ली और उत्तराखंड की कई नामचीन संस्थाओं एवं कई व्यक्तियों ने भी मेरे अनुरोध पर विद्यार्थियों के लिए लिखी गई मेरी चार पुस्तकों (उज्याव, बुनैद, इन्द्रैणी, लगुल –प्रत्येक का मूल्य मात्र अस्सी रुपए ) को समाज मंम पहुंचाने का कई बार बचन दिया, वायदा किया परन्तु इक्का-दुक्का व्यक्तियों ने ही वायदा निभाया | इन पुस्तकों मंं मंंने सूक्ष्म शब्दों मंद गुमानी पंत, गिरदा, शेरदा, कन्हैयालाल डंड्रीयाल, पिताम्बरदत बड़थ्वाल, शैलेश मटियानी, सुमित्रानंदन पंत, वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली, ज्योतिराम काण्डपाल, बिशनी देवी शाह, टिंचरी माई, लवराज सिंह धर्मशक्तु, सुन्दरलाल बहुगुणा, बछेंद्री पाल, गौरा देवी, विद्यासागर नौटियाल, श्रीदेव सुमन, चंद्रकुंवर बर्त्वाल सहित गंगा, हिमालय, उत्तराखंड राज्य, पर्यटन, स्वतंत्रता सेनानी, किसान, सैनिक, विद्यार्थी, अध्यापक एवं राष्ट्र के कई महापुरुषों, १३ राष्ट्रपतियों, १४ प्रधानमंत्रियों तथा कई अन्य विषयों को छूने का प्रयास किया है | विचार गोष्ठियों एवं सम्मेलनों मंं अक्सर इस साहित्य को गांव-देहात तक पहुंचाने के खूब वायदे सुनता हूं परन्तु क्रियान्वयन शून्य | काश ! हम सब एक-एक पुस्तक भी अपने घर /संस्था मंथ रखते, अपने गांव के अध्यापक- सभापति-सरपंच तक पहुंचाते तो बच्चे अवश्य जानते कि ये ‘गिरदा’-‘गढ़वाली’ आदि उक्त व्यक्ति कौन हैं और हमारी लिखित भाषा भी उन तक पहुंचती | हम आयोजन मंम आए, भाषण दिया, भाषण सुना और वापस | बस | निराश नहीं हूं | वसंत जरूर आएगा | “अभी निराशा का घुप्प अंधेरा नहीं हुआ है, आशा के रोशन चिराग भी हो रहे हैं; खुदकुशी करने का मन जब करता है कभी, पहरे जीने की तम्मन्ना के भी लग रहे हैं |” अगली बिरखांत मंम कुछ और......पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.09.2015

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                                           भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पंत (आज उनकी जयंती पर सूक्ष्म जानकारी)
 
      स्वतंत्रता सेनानी, देशभक्त, कुशल प्रशासक, गरीब और अछूतों की आवाज, भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पंत का जन्म १० सितम्बर १८८७ को खूंट, अल्मोड़ा, उत्तराखंड में हुआ | उनके पिता का नाम मनोरथ पंत और माता का नाम गोविंदी था | उनकी पत्नी का नाम गंगा देवी था | १९०९ में क़ानून की पढ़ाई के बाद उन्होने १९१४ में वकालत शुरू की और स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े | १९१६ में वे कुमाऊं परिषद से जुड़े | १९२१ में कुलीबेगार और छुआछूत का विरोध किया | १९२७ में वे उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के अध्यक्ष बने | साइमन कमीशन-१९२८, नमक आन्दोलन-१९३०, अवज्ञा आन्दोलन-१९३२, व्यक्तिगत सत्याग्रह-१९४० और भरत छोड़ो आन्दोलन-१९४२ में वे जेल गए | १९३७-३९ में वे संयुक्त प्रांत आगरा -अवध के प्रीमिएर रहे | १९५५-५६ में वे भारत के गृहमंत्री रहे | ७ मार्च १९६१ को उनका निधन हुआ | (विद्यार्थियों के लिए लिखी गयी ‘लगुल’ पुस्तक में यह जानकारी तीन भाषाओं- कुमाउनी, हिंदी और अंगरेजी में एक साथ है | )

पूरन चन्द्र काण्डपाल
 10.09.2015

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                                             ‘गिरदा’ गिरीश चन्द्र तिवारी (आज छ उनरि जयंती )

  “ततुक नि लगा उदेख, घुनन मुनइ न टेक” कौणी जन कवि ‘गिरदा’(गिरीश चन्द्र तिवारी) क जन्म १० सितम्बर १९४५ हुणी ज्योलि,अल्माड़ में हौछ | उनर बौज्यू क नाम हंसदत और इज क नाम जीवंती छी | शुरुआती शिक्षा क बाद ऊँ लखनऊ पुजीं |व्यक्तिगत तौर ल कक्षा १२ पास करौ | मोहन उप्रेती, ब्रजेन्द्र लाल शाह, चारूचंद्र पांडे और शेरदा अनपढ़ कि संगत ल ऊँ कवि बनी और ३० वर्ष तक उनूल गीत-नाटक विभाग में काम करौ | उनूल शिखरों के स्वर, हमारी कविता के आंखर, नगाड़े खामोश हैं, धनुष यज्ञ आदि किताबों कि रचना करी | उनूल अंधायुग, अंधेर नगरी, नगाड़े खामोश हैं, थैंक यू मिस्टर ग्लाड, भारत दुर्दशा आदि नाटकों क निर्देशन लै करौ | ऊँ वन बचाओ, नशा नहीं रोजगार दो और अलग राज्य  आन्दोलन दगै लै जुडीं | ४३ वर्ष कि उम्र में उनूल हेमलता दगै ब्या करौ | २२ अगस्त २०१० हुणी ६५ वर्ष कि उम्र में उनूल य दुनिय बै चलि दे | उ दिन पुर उत्तराखंड क आंख बै उनार लिजी बंधार चुगीं | ‘गिरदा’ क बार में जतू लेखी जो उ कम छ | ऊँ भौत कुछ कै गईं और खनन माफियों कैं लै घतै गईं – “नदी-समंदर  अम्बर लूट रहे हो, गंगा-यमुना की छाती में कंकर-पत्थर कूट रहे हो”| ‘गिरदा’ क बार में य सूक्ष्म जानकारी दी बेर उनुकें दिल बटि श्रधांजलि दीण चानू | (‘लगुल’ किताब में उनार बार में तीन भाषाओं –कुमाउनी, हिंदी और अंग्रेजी में विद्यार्थियों क लिजी जानकारी छ | )

पूरन चन्द्र काण्डपाल
10.09.2015

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                                                                 बिरखांत-२४ - (अपनी राजभाषा हिंदी का दर्द  )

    देश में हिन्दी सहित २४ भाषाएं संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हैं | ये सभी राष्ट्र भाषाएं हैं | देश को आजाद हुए ६८ वर्ष हो गए परन्तु हिन्दी पूर्ण रूप से हमारे संघ की राजभाषा नहीं बन पाई | हिंदी एक जनभाषा, मातृभाषा और सबसे बढ़कर एक मेलजोल की भाषा के रूप में देश में विद्यमान है जिसके बोलने-समझने-लिखने-पढ़ने वाले लगभग अस्सी करोड़ से अधिक हैं | जिस देश में ९५ % लोग अंगरेजी नहीं जानते वहाँ अंग्रेजी अपना शासन आज भी जमाये हुए है | जिन घरों में हिन्दी बोली भी जाती है वहाँ बच्चे एक से सौ तक की गिनती हिन्दी में नहीं जानते | देश में हिन्दी से अधिक अंग्रेजी साहित्य का पठन-पाठन हो रहा है | कर्यालयों में मैकाले का ही ‘फार्मेट’ चल रहा है जिसे कोई उखाड़ने को तैयार ही नहीं है | साल में एक बार १४ सितम्बर को ही हिन्दी में चिंदी-बिंदी लगाई जाती है | भोपाल में भी यही हो रहा है | कहने को हमारे नेता संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी में व्याख्यान देते हैं परन्तु देश की संसद में फर्राटेदार अंग्रेजी झाड़ते हैं जबकि अधिकांश सांसद हिन्दी समझते हैं | हमारी सोच भी बहुत लज्जाजनक हो गई है क्योंकि हम हिन्दी को पिछड़ों की भाषा समझने लगे हैं | हिन्दी में हस्ताक्षर करने में हम कतराते हैं | देश – विदेश की अन्य भाषाओं का ज्ञान होना अच्छी बात है परन्तु अपने  देश की एक सर्वमान्य भाषा अभी तक नहीं बन सकी जबकि इसे लागू करने के लिए स्वतंत्रता के बाद मात्र १५ वर्ष की समय सीमा निश्चित थी | हमारे संविधान के भाग १७ अनुच्छेद ३४३ (१) में स्पष्ट लिखा है कि संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी फिर भी हिन्दी लाचार है और अंग्रेजी राज कर रही है | मेरी मातृभाषा कुमाउनी है जिसे में बोलता-लिखता –पढ़ता हूं  परन्तु मैं हिन्दी तथा अंग्रेजी के अलावा देश की कुछ अन्य भाषाएं भी थोड़ा-बहुत जानता हूं | मेरा हिन्दी प्रेम मेरी सत्रह पुस्तकों की ज़ुबानी प्रकट भी हुआ है | अन्य भाषाओं का ज्ञान होना ठीक है पर हिन्दी की कीमत पर नहीं | देश में त्रिभाषा सूत्र कायम रहना चाहिए जिसके अंतर्गत तीन भाषाओं – मातृभाषा (स्थानीय भाषा), हिन्दी (राजभाषा) और लिंक भाषा के रूप में अंग्रेजी (अंतरराष्ट्रीय भाषा ) जारी रहे परन्तु हिन्दी में शिथिलता किसी भी हालत में मान्य नहीं होनी चाहिए | एशिया के देश चीन, जापान और  कोरिया अपनी भाषा में रमते हुए विकास के शिखर पर पहुंच गए  हैं |

पूरन चंद्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
13.09.2015

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Bahut Achha likha hai Kandpal ji.

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                                                   बिरखांत – २५ (भाग्य और भगवान )
   
   कुछ मित्र ‘भाग्य और भगवान्’ पर भी गिच खोलने को कहते हैं | हमने हाल ही में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई | बहुत कम लोगों ने कृष्ण के उस अमर सन्देश “कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर ऐ इंसान” की चर्चा की जबकि चर्चा इस त्यौहार पर कर्म की ही होनी चाहिए | चारों ओर देखें तो सबके अलग- अलग भगवान, ज्यादातर स्थानीय भगवान् ही उनके अराध्य होते हैं, राम-कृष्ण पीछे रह जाते हैं | हम न राम -कृष्ण की मर्यादा पर चल रहे हैं और न उनकी शिक्षा पर | हम भाग्य और भगवान को दोष देने में हमेशा आगे रहे हैं | बात-बात में ‘अरे यार भगवान् नि लिख दिया, भाग्य में यही लिखा था’ कहना अनुचित है | सिर्फ दो बातों के लिए भगवान् का स्मरण उचित है | पहला- हमें जो भी मिला या हमने अपने परिश्रम से जो भी प्राप्त किया वह सब ‘उसने’ दिया, ऐसा मान कर चलें | इससे हम स्वयं श्रेय न लेकर अहंकार (ईगो) से बचेंगे | दूसरा- हम भगवान् से दुःख, परेशानी और विवशता को सहन करने की शक्ति (ताकत) मांगें ताकि हम उस दौर को झेल कर उबर सकें | धन-दौलत, सुख-ऐश-आराम की मांग करना, मन्नत मांगना, अपनी गलती के लिए भाग्य -भगवान पर दोष लगाना, ‘उसको’ यही मंजूर था’ कहना, यह सब अनुचित है | जल में डुबकी लगाने से न पुण्य मिलेगा और न पाप कटेंगे | पुण्य तो परोपकार और राष्ट्र प्रेम से ही प्राप्त होगा, काबा-कैलाश या तीरथ जाने से नहीं | स्वर्ग या तीन लोक का भ्रम भी छोड़ दें | यदि ये होते तो ‘अंकल शैम’ वहाँ कब का पहुँच गया होता | पाप तभी कटेंगे जब उसका उचित प्रायश्चित हो, दिल से क्षमा मांगी जाय और उसकी पुनरावृति न हो | व्यर्थ का आडम्बर, दिखावा तथा अंधविश्वास का लबादा ओड़ कर मन-वचन-कर्म से प्रत्यक्ष या परोक्ष हिंसा करते हुए आगे बढ़ना भी बहुत बड़ा पाप है | कुछ लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगेगी परन्तु कहना ही पड़ेगा कि ‘भाग्य और भगवान्’ को दोष देकर हम हमेशा ही अपने बचाव में छतरी खोलते रहे हैं |  भगवान एक अदृश्य शक्ति है जिसे न किसी ने देखा है और न ‘वह’ किसी से मिला है | समय काटने या दुकान चलाने के लिए भलेही कोई कितनी ही ललित, दिल-बहलाव, मनगणत कथाएं- किस्से कह ले परन्तु वास्तविकता यही है | श्रधा हो परन्तु अन्धश्रधा न हो |  श्रधा के पीछे तर्क हो कुतर्क न हो, विवेक –विज्ञान हो अज्ञान न हो | ये सब बातें मैं मात्र दोहरा रहा हूं | विवेकशील व्यक्तियों द्वारा  यह सब पहले ही व्यक्त किया जा चुका हैं | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.09.2015

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                                              दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै : राजभाषा हिंदी कि पीड़   

    देश में हिन्दी सहित २४ भाषा संविधान क आठूँ अनुसूची में शामिल छीं | यूं सब राष्ट्र भाषा छीं | देश कैं आजाद हई ६८ वर्ष है गईं पर हिन्दी पूर्ण रूप ल हमरि संघ कि राजभाषा नि बन सकि | हिंदी एक जनभाषा, मातृभाषा और एक मेलजोल कि मिठि भाषा छ जैक बलाणी- समझणी- लेखणी- पढ़णी करीब अस्सी करोड़ है ज्यादै छीं | जो देश में ९५ % लोग अंगरेजी नि जाणन वां अंग्रेजी आपण राज आज लै जमै बेर भै रै | जो घरों में हिन्दी बलाई लै जींछ वां क नान एक बै सौ तक कि  गिनती हिन्दी में नि जाणन | देश में हिन्दी है ज्यादै अंग्रेजी साहित्य क पठन -पाठन हूं रौ | ऑफिसों में मैकाले कै ‘फार्मेट’ चलि रौछ जैकें क्वे  उखाडूं हुणी तैयार न्हैति | साल में एक ता १४ सितम्बर हुणी हिन्दी में चिंदी- बिंदी लगाई जैंछ | १० -१२ सितम्बर २०१५ हुणी भोपाल में लै य ई हौछ |  कौण क लिजी हमार नेता संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी में भाषण दिनीं पर देश कि संसद में फर्राटेदार अंग्रेजी झाड़नीं जबकि अधिकांश सांसद हिन्दी समझनीं | यूं लोगों ल १४ सितम्बर हुणी दिन भरि अंग्रेजी में काम करौ और ब्याव कै लोगों क सामणी भाषण में हिंदी कि फिकर करी | हमरि सोच लै भौत शर्मनाक हैगे क्यलै कि हाम हिन्दी कैं पिछड़ों कि भाषा समझनूं | हिन्दी में दसकत करण में हमुकैं शरम लागीं | देश – विदेश कि दुसरि भाषाओं क ज्ञान हुण भलि बात छ पर आपण देश कि एक सर्वमान्य भाषा आजि तक नि बनि सकि जबकि यैकैं लागु करण क लिजी स्वतंत्रता क बाद मात्र १५ वर्ष क टैम तय छी | हमार संविधान क भाग १७ अनुच्छेद ३४३ (१) में स्पष्ट लेखी छ कि संघ कि राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी ह्वलि, यैक बावजूद लै  हिन्दी लाचार छ और अंग्रेजी राज करैं रैछ | म्येरि मातृभाषा कुमाउनी छ जैकैं मी बलानूं, लेखनूं और पढ़नूं पर मी हिन्दी और अंग्रेजी क अलावा देश कि कुछ दुसार भाषाओं क लै थ्वाड़ –भौत जानकारी धरनूं | म्यर हिन्दी प्रेम म्येरि सत्तर (सत्रह) किताबों कि ज़ुबानी प्रकट है रौछ | दुसार भाषाओं क ज्ञान हुण ठीक छ पर हिन्दी की कीमत पर उ नि हुण चैन  | कुमाउनी और गढ़वाली भाषा हिंदी कैं हमेशा आपणी दिदि माननीं और बैणी कभैं लै दिदि क बार में नक् नि सोचनि | देश में त्रिभाषा सूत्र कायम रौण चैंछ जैक अंतर्गत तीन भाषाओं – मातृभाषा (स्थानीय/क्षेत्रीय भाषा), हिन्दी (राजभाषा) और लिंक भाषा क रूप में अंग्रेजी (अंतरराष्ट्रीय भाषा ) जारी रौण चैंछ पर हिन्दी में कमजोरी या शिथिलता क्वे हालत में नि औण चैनि | एशिया क देश चीन, जापान और कोरिया आपणी भाषा में रमि बेर विकास क शिखर पर पुजि गईं |

पूरन चंद्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
17.09.2015

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22