बिरखांत-64 : प्रथा – परम्परा के नाम पर
संविधान ने तो हमें बराबरी का हक़ दे रखा है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है | आज भी मस्जिदों और कई मंदिरों में महिलाओं एवं चौथे वर्ण के प्रवेश पर प्रतिबन्ध देखने में आता है | अमुक देवता की पूजा स्त्री नहीं कर सकती, अमुक मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष की स्त्री-जात प्रवेश नहीं कर सकती, आदि हमें देख-सुन रहे हैं | प्रथा-परम्परा के नाम का वास्ता दिया जाता है| परम्परा बनाने वाले कौन थे या कौन हैं ?
सारी मान –मर्यादाओं, परम्पराओं और नियम- क़ानूनों का निर्माण केवल महिलाओं या चतुर्थ वर्ण को दबा कर रखने के लिए किया गया लगता है | उदाहरणार्थ विवाहित महिला के लिए कई पहचान चिन्ह बना दिए परन्तु विवाहित पुरुष के लिए कोई भी चिन्ह नहीं बनाया ताकि पता न चले कि वह विवाहित है | किसी पुरुष की पत्नी चल बसी तो श्मशान घाट से ही दूसरे विवाह की खुसुर-बुसुर होने लगती है जबकि विधवा विवाह परम्परा के भंवर में अमर्यादित है | काशी- प्रयाग- मथुरा -वृन्दावन सहित कई जगह विधवाएं अपना वैधव्य रोते -विलखते काट रही हैं जबकि आजतक कहीं विधुर गृह देखने- सुनने में भी नहीं आया | डा. अम्बेदकर ने 1927 में जो ग्रन्थ अग्नि को समर्पित किया था उसमें सारे प्रतिबन्ध महिलाओं एवं चौथे वर्ण के लिए ही थे |
‘समरथ को नहीं दोष गोसाईं’ आज भी चरितार्थ है | चौथे वर्ण का व्यक्ति यदि उच्च आसन या पोजीसन पर है तो फिर छुआछूत नहीं है जबकि अन्य के लिए अब भी छुआछूत का नाग पूर्ण रूप से मरा नहीं है | कई भोजन माताएं इस रोग को भोग रही हैं | शिक्षा के दीप से कुछ अंधकार अवश्य छंटा है परन्तु ग्रामीण भारत में नहीं | मां ने हमें जन्म दिया, बहन ने सहयोग-सहारा दिया, पत्नी ने हमारे बच्चों को जन्म दिया और बेटी ने हमें स्नेह-प्यार से सराबोर किया | ये सब नारी के ही रूप हैं, फिर इनसे नफरत क्यों, इनके मंदिर-मस्जिद में प्रवेश पर प्रतिवंध क्यों?
शिल्पकार हमारे मंदिर, पूजालय, मकान, भवन, दुकान आदि बनाता है | उसके प्रवेश पर भी हमने प्रतिबन्ध लगा दिया, क्यों ? बेकरी, ढाबे, होटल, बारात और तीर्थ में हमारा भोजन कौन बना रहा है हमें इससे कोई परेशानी नहीं है | हमने तो अपने नजदीकी व्यक्ति को कुआं, मंदिर, घर, चौखट, चौपाल से दूर रखा है | ऐसी हालत में यदि कोई अमुकराम धर्म बदल कर कहीं कुछ और नाम रख़ लेता है तो हमें दिखावे का दर्द होने लगता है | हम राम को पूजते हैं परन्तु जिस शबरी- निषाद को राम ने गले लगाया हम उन्हें अपने पास फटकने भी नहीं देते | राम का नाम लो तो राम की बात भी मानो | इन्हीं मुद्दों पर समाज से विषमताओं को उखाड़ फैकने में लगे हुए श्रद्धेय श्री श्री रविशंकर, मोरारी बापू, श्रीराम आचार्य, स्वामी रामदेव जैसे कई समाज सुधारकों एवं अन्धविश्वास के विरोधियों के शब्दों को भी हमें अवश्य सुनना चाहिए | अगली बिरखांत में कुछ और...
पूरन चन्द्र काण्डपाल , 9871388815
11.02.2016