Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 326400 times)

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                                         दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                                           67ऊँ गणतंत्र दिवस  – कमर कसण का दिन

           हर साल जनवरी क महैण में चार ख़ास दिन इकठ्ठे औनी |  23,  24,  25 और 26 जनवरी | 23 हुणि नेताजी सुभाष जयंती, 24 हुणि राष्ट्रीय बलिका दिवस (य दिन 1966 में श्रीमती इंदिरा गाँधी देश कि पैलि महिला प्रधानमंत्री बनीं ), 25 हुणि मतदाता जागरूकता दिवस और 26 हुणि 1950 में हमर संविधान लागू हौछ | य साल बटि 22 जनवरी हुणि ‘बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ’ दिन लै मनाई जां फैगो | हमूल पिछाड़ि 66 वर्षों में भौत कुछ हासिल करौ और देश में विकास लै हौछ पर लगातार बढ़ते जणी जनसंख्या वजैल य विकास नजर नि औन | 66 वर्ष पैली हम 43 करोड़ छी और आज 125 करोड़ छ्यूं अर्थात उई जमीन में 82 करोड़ जनसंख्या बढ़ गे |

                हमूल मिजाइल बनाईं, ऐटम बम बनाईं, अन्तरिक्ष में धाक जमै,  कृषि उपज बढ़ी, साक्षरता दर जो तब 2.55% छी आब 74.1% छ | रेल, सड़क, वायुयान, उद्योग, सेना, पुलिस, अदालत आदि सब में बढ़ोतरी हैछ  | यतू हुण पर लै हमरि लगभग 30% जनसंख्या गरीबी रेखा है मुणि छ जनरि रोजाना कि आय पचास रुपै है लै कम बताई जींछ | देश कि आदू  जनता क पास शौचालय न्हैति | कएक इस्कूलों और आगनबाड़ी केन्द्रों में पीणी पाणी न्हैति और 25% जनता तक आजि बिजुलि नि पुजि रइ | हर साल हजारों किसान आत्महत्या करैं रईं | अदालतों में करीब तीन करोड़ है ज्यादै केस अटिकि रईं और एक केस निपटूण में कएक साल लागैं रईं | देश बै ब्रेन ड्रेन लै आजि नि थमी रय |

           विदेशों कि नजर में हम निवेशा क लिजी सुरक्षित न्हैति | 187 देशों में हमर नंबर 169 छ अर्थात उनरि नजर में 168 देश उनार लिजी हमूं है ज्यादै सुरक्षित छीं | दुनिया क 200 श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में हमर नाम न्हैति | बतूण क लिजी आजि भौत कुछ छ पर वील हमार मनोबल में हतौड़ कि चोट पड़लि | हर साल नई दिल्ली राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड हमर मनोबल कैं बढीं | हमार सुरक्षा प्रहरी हिम्मत और ताकता क लिजी पुरि  दुनिय में प्रसिद्ध छीं जो हमूकैं सन्देश दिनी कि हमार सीमा सुरक्षित और चाकचौबंद छीं | हमूं कैं आपण देशा क ईमानदारी क पहरुओं पर लै गर्व छ | हम आजि तक विकासशील देश छ्यूं क्यलै कि हमार पास विकसित देशों जस भौत कुछ न्हैति |

             भारत कैं विकसित राष्ट्र बनण में देर नि लागा अगर यूं मुख्य चार दुश्मनों –भ्रष्टाचार, बेईमानी, अकर्मण्यता और अंधविश्वास है उकें   निजात मिलि जो | यैक अलावा नश, आतंकवाद, अशिक्षा, गरीबी, गन्दगी और साम्प्रदायिकता लै हमार दुश्मनों कि जमात में छीं | अगर हाम यूं  दस दुश्मनों कैं जिति ल्यूं तो फिर भारत जरूर सुपर पावर देशों कि जमात में शामिल है सकूं | यूं दुश्मनों कि चर्चा हमार राष्ट्र नायकों सहित देशा  क कएक प्रबुद्ध नागरिकों ल पैलीकै कएक ता करि रैछ | औ य गणतंत्र पर कमर कसो और यूं सब दुश्मनों कैं जड़ बै उखाड़ फेंकण में सहयोग करनै देश कैं महाशक्ति देशों कि जमात में शामिल करो | आपूं सबूं कैं 67 ऊँ गणतंत्र दिवस कि बधाई | 

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली 
28.01.2016

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                       बिरखांत-61 : सल्ट के स्कूल गणतंत्र दिवस

       इस बार 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस २०१६) को उत्तराखंड के सल्ट क्षेत्र, जिला अल्मोड़ा में एक राजकीय इण्टर कालेज में कुमाउनी-गढ़वाली कवि सम्मलेन (आयोजक- उत्तराखंड आर्य समाज विकास समिति ) में भागीदारी देने का अवसर मिला | विद्यार्थियों के बीच कई घंटे आधे दर्जन उत्तराखंडी कवियों के साथ रहा | जब भी समय मिलता बच्चों से बात कर लेता | विद्यार्थियों के शिक्षा स्तर की परख करना ही उद्देश्य होता था | विद्यार्थियों में गणतंत्र, तिरंगा और राज्य की जानकारी अधिक नहीं तो कम भी नहीं थी | अधिक ख़ुशी तब हुई जब वे आपस में कुमाउनी या गढ़वाली में बात करते थे और अपनी बोली-भाषा से सराबोर थे | कवि सम्मेलन में भी उन्होंने अथाह रुचि दिखाई |

           कई विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम में भी व्यावसायिक कलाकारों की तरह अपनी कला का अच्छा प्रदर्शन किया जिसमें छात्रों के बजाय छात्राओं की भागीदारी अधिक थी | इस आयोजन को देख कर ऐसा लगा कि हमारी भाषा पर निराशा का अंधेरा जो सरकार ने कर रखा है उसे इन नौनिहालों, कवियों और आयोजकों ने उजाले में परिवर्तित करने का भरपूर प्रयास किया | कवि मित्र सर्वश्री दिनेश ध्यानी, रमेश हितैषी, ओमप्रकाश आर्य और गिरीश भाउक की प्रेरणादायी कविताओं से उपस्थित जनसमूह को प्रफुल्लित होते देखा | इस सफल आयोजन के सूत्रधार हितैषी जी को साधुवाद |

     आते- जाते समय देवभूमि की माटी के भी खूब दर्शन किये | देव तो दिखते कहां हैं परन्तु भूमि बहुत उदास थी | रामनगर- मडचूला से लेकर महरौली सल्ट तक लगभग डेड़ दर्जन गांव दृष्टिगोचर हुए | यह माघ का महीना था | इस समय खेतों में गेहूं के साथ सरसों, चना, मटर-मसूर- गोइय को लहलहाना चाहिए था लेकिन बिरले ही खेत की निसाव (उपरी छोर) में गेहूं और सरसों के कुछ उदास तिनके देखे जो बारिश के बिना तड़फ रहे थे | सभी खेत टटास (सूखे) थे जिनमें गेहूं-सरसों बोये गए थे जो बारिश के अभाव में उगे नहीं | एक स्थानीय किसान के शब्द, “अपनी मेहनत के अलावा हलिया, बैल, बीज, खाद आदि पर इस फसल पर मैंने दस हजार रुपया खर्च किया जो बुसी (समाप्त) गया है | इन खेतों को देखकर रोना आता है |” इन खेतों में अब हरियाली आने की उम्मीद नहीं थी | देवभूमि के इन खेतों में छाई इस निराशा से निराश होकर ही यहां से पैर उखड़ते हैं अन्यथा बादलों से बूंद को भी घर छोड़ने का दुःख होता है | अगली बिरखांत में कुछ और... 

पूरन चन्द्र काण्डपाल , ९८७१३८८८१५
२९.०१.२०१६ 

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                            बिरखांत-63 : नानीसार का सार

    बहुत दिनों से नानीसार का मुद्दा मीडिया में एवं पूरे उत्तराखंड में छाया हुआ है  | नानीसार उत्तराखंड के जिला अल्मोड़ा में रानीखेत से लगभग 18 कि मी डीडा-द्वारसो का वह क्षेत्र है जहां पर उत्तराखंड सरकार ने ग्रामवासियों (ग्राम पंचायत ) की करीब 353 नाली (7.061) हेक्टेयर जमीन जिंदल ग्रुप की एजुकेशनल सोसाइटी को 22 सिंतंबर 2015 को  आबंटित कर दी | कहा जा रहा है की जिंदल ग्रुप वहाँ पर एक अंतर्राष्ट्रीय स्कूल खोलना चाहता है |  राज्य के मुख्यमंत्री ने 22 अक्टूबर 2015 को इस प्रोजेक्ट का शिलान्यास कर दिया परन्तु जैसा कि बताया जा रहा है, स्थानीय निवासियों के विरोध करने पर आबटन रद्द करने की घोषणा भी कर दी | इसके बाबजूद उस स्थान पर निर्माण जारी रहा |

     इस बार गणतंत्र दिवस से पहले ही उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केन्द्रीय अध्यक्ष पी सी तिवारी ने ग्रामवासियों के साथ इस आवटन का रद्द करने के लिए जम कर विरोध किया जिसमें उनके साथ उत्तराखंड के दो राष्ट्रीय राजनैतिक दल कांग्रेस और बीजेपी को छोड़कर अन्य सभी ने इस आबटन का विरोध किया | यह विरोध अल्मोड़ा, रानीखेत, रामनगर सहित दिल्ली में भी हुआ |  राज्य सरकार जहां इस आबटन को विकास का कदम बता रही है वहीं स्थानीय लोग इस आबटन को उनके प्राकृतिक संसाधनों जल, जंगल, जमीन, रास्ते, गोचर आदि की माफियाओं द्वारा लूट बता रही है | नव गठित नानीसार बचाओ संघर्ष समिति जिसमें उक्त दोनों को छोड़कर अन्य सभी दल हैं, ने सरकार के इस कदम को अप्रजातांत्रिक और दमनकारी बताया है |

      आन्दोलन के अग्रणीय नेता पी सी तिवारी एवं उनके कुछ सहयोगियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर ग्यारह दिन तक अल्मोड़ा जेल में भी बंद किया जिन्हें 2 फ़रवरी 2016 को कुछ शर्तों पर जमानत भी दे दी गयी है | राज्य में अगले वर्ष विधान सभा चुनाव भी है | मुख्यमंत्री हरीश रावत स्वयं जिला अल्मोड़ा के हैं और राजनीति में सुलझे हुए नेता हैं | यदि उनको इस मुद्दे को विकास की दृष्टि से देखना था तो स्थानीय लोगों को उन्हें विश्वास में लेना चाहिए था जिससे यह नौबत नहीं आती | उन्हें यह स्पष्ट करना चाहिए कि ग्राम पंचायत की जमीन और ग्रामवासियों के प्राकृतिक संसाधनों की छाती में बनने वाले इस संस्थान में स्थानीय गरीब जनता के बच्चों को शिक्षा के लिए कितना प्रतिशत मुफ्त आरक्षण होगा जैसे कि देश की राजधानी में बने हुए पब्लिक स्कूलों के गरीब बच्चों के लिए है और प्राकृतिक संसाधनों की क्षति पूर्ती कैसे होगी ? 

       एक अपुष्ट सूचना के अनुसार इस स्कूल में पढ़ने का खर्चा एक वर्ष के लिए कई लाख रुपए बताया जा रहा है जो किसी भी उत्तराखंड निवासी की सामर्थ से बाहर है | उचित तो यही होगा कि सरकार को दमन की नीति छोड़कर राज्यहित और स्थानीय निवासियों के हित में कदम उठाने चाहिए तथा स्थानीय जनता को विश्वास में लेना चाहिए | जब 1 फ़रवरी 2014 को हरीश रावत मुख्यमंत्री बने थे तो राज्य के लोगों को उनसे बहुत उम्मीद थी जिसे उन्होंने कितना पूरा किया यह तो आनेवाला चुनाव ही बताएगा | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ९८७१३८८८१५
06.02.2016

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                            बिरखांत-62 : चाहिए दो अदद पद्मश्री

    हमारे देश में गणतंत्र दिवस के अवसर पर चार नागरिक सम्मान दिए जाते हैं – भारत रत्न, पद्मविभूषण, पद्मभूषण और पद्मश्री | भारत रत्न को छोड़ अन्य तीनों को पद्म सम्मान कहते हैं | पद्म सम्मान प्रति वर्ष अधिकतम 120 लोगों को दिए जा सकते हैं और वर्ष 2016 में ये 112 विभूतियों को दिए गए | किसी एक व्यक्ति को ये तींनों सम्मान मिल सकते हैं लेकिन इसे पाने में कम से कम पांच वर्ष का अंतर होना चाहिए | पद्म सम्मान मरणोपरांत नहीं दिए जाते |

      इस सम्मान का नामांकन प्रति वर्ष 1 मई से 15 सितम्बर तक किया जाता है जो राज्य या केंद्र सरकार के माध्यम से होता है | राज्य सरकारें जिला प्रशासन से नामांकन मांगती है | इसके अलावा कोई सांसद, विधायक, गैर सरकारी संगठन (एन जी ओ ) या कोई व्यक्ति भी अपने स्तर पर किसी को इस सम्मान के लिए नामंकित कर सकता है | प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत बनी एक समिति इसे अंतिम रूप देती है और अंत में प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति इस पर अपनी मुहर लगाते हैं |

      उत्तराखंड में दो ऐसी लोकप्रिय विभूतियाँ हैं जिन्हें लोकप्रियता और जन-मानस की भावना के आधार पर पद्म सम्मान दिया जाना चाहिए | ये दो लोकप्रिय सितारे हैं श्री हीरा सिंह राणा (हिरदा ) और श्री नरेंद्र सिंह नेगी ( नरेन्दा या नरुदा ) | हिरदा का जन्म 13 सितम्बर 1942 को मनीला (अल्मोड़ा, उत्तराखंड) में हुआ | वे विगत 50 वर्षों से अपनी गीत- कविताओं के माध्यम से लोक में छाये हुए हैं | उनकी कुछ पुस्तकें हैं- प्योलि और बुरांश, मानिलै डानि और मनखों पड़ाव में |
      नरेन्दा (नरुदा) का जन्म 12 अगस्त 1949 को गाँव पौड़ी (पौड़ी, उत्तराखंड) में हुआ | नरूदा भी विगत 45 वर्षों से अपने गीत-संगीत-कविता के माध्यम से लोकप्रियता के चरम पर हैं | नरुदा की रचनाएँ हैं- खुचकंडी, गांणयूं की गंगा स्याणयूं का समोदर, मुट्ठ बोटी की रख और तेरी खुद तेरु ख्याल |

      इन दोनों में लगभग कई समानताएं हैं | वर्तमान में दोनों क्रमश: कुमाउनी और गढ़वाली के शीर्ष गायक हैं, दोनों बहुत लोकप्रिय हैं, दोनों ही राज्य आन्दोलन से जुड़े रहे, दोनों भाषा आन्दोलन में संघर्षरत हैं, दोनों ही समाज सुधारक हैं, दोनों की कई कैसेट –सी डी हैं, दोनों के ही गीत संग्रह हैं, दोनों ही कविता पाठ भी करते हैं, दोनों का उच्च व्यक्तित्व है और दोनों ही कई सम्मान और पुरस्कारों से विभूषित हैं |

         इन दोनों की संघर्ष गाथा पुस्तक रूप में प्रकाशित है | हिरदा की संघर्ष यात्रा ‘संघर्षों का राही’ (संपादक-चारु तिवारी, प्रकाशक- उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली) और नरुदा  की संघर्ष यात्रा ‘नरेंद्र सिंह नेगी की गीत यात्रा’ (संपादक- डा.गोविन्द सिंह, उर्मिलेश भट्ट, प्रकाशक- बिनसर पब्लिशिंग क.देहरादून ) का लोकार्पण हो चुका है | इन पंक्तियों के लेखक को इन दोनों विभूतियों के साथ काव्यपाठ करने का अवसर प्राप्त हुआ है | अत: उत्तराखंड की इन दोनों विभूतियों को वर्ष 2017 के गणतन्त्र दिवस पर पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया जाना चाहिए | इस हेतु उत्तराखंड सरकार को शीघ्र से शीघ्र उचित कदम उठाने चाहिए | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ९८७१३८८८१५ 
02.02.2016

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                       बिरखांत-64 : प्रथा – परम्परा के नाम पर

        संविधान ने तो हमें बराबरी का हक़ दे रखा है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है | आज भी मस्जिदों और कई मंदिरों में महिलाओं एवं चौथे वर्ण के प्रवेश पर प्रतिबन्ध देखने में आता है | अमुक देवता की पूजा स्त्री नहीं कर सकती, अमुक मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष की स्त्री-जात प्रवेश नहीं कर सकती, आदि हमें देख-सुन रहे हैं | प्रथा-परम्परा के नाम का वास्ता दिया जाता है| परम्परा बनाने वाले कौन थे या कौन हैं ?

           सारी मान –मर्यादाओं, परम्पराओं और नियम- क़ानूनों का निर्माण केवल महिलाओं या चतुर्थ वर्ण को दबा कर रखने के लिए किया गया लगता है | उदाहरणार्थ विवाहित महिला के लिए कई पहचान चिन्ह बना दिए परन्तु विवाहित पुरुष के लिए कोई भी चिन्ह नहीं बनाया ताकि पता न चले कि वह विवाहित है | किसी पुरुष की पत्नी चल बसी तो श्मशान घाट से ही दूसरे विवाह की खुसुर-बुसुर होने लगती है जबकि विधवा विवाह परम्परा के भंवर में अमर्यादित है | काशी- प्रयाग- मथुरा -वृन्दावन सहित कई जगह विधवाएं अपना वैधव्य रोते -विलखते काट रही हैं जबकि आजतक कहीं  विधुर गृह देखने- सुनने में भी नहीं आया | डा. अम्बेदकर ने 1927 में जो ग्रन्थ अग्नि को समर्पित किया था उसमें सारे प्रतिबन्ध महिलाओं एवं चौथे वर्ण के लिए ही थे |

         ‘समरथ को नहीं दोष गोसाईं’ आज भी चरितार्थ है | चौथे वर्ण का व्यक्ति यदि उच्च आसन या पोजीसन पर है तो फिर छुआछूत नहीं है जबकि अन्य के लिए अब भी छुआछूत का नाग पूर्ण रूप से मरा नहीं है | कई भोजन माताएं इस रोग को भोग रही हैं | शिक्षा के दीप से कुछ अंधकार अवश्य छंटा है परन्तु ग्रामीण भारत में नहीं | मां  ने हमें जन्म दिया, बहन ने सहयोग-सहारा दिया, पत्नी ने हमारे बच्चों को जन्म दिया और बेटी ने हमें स्नेह-प्यार से सराबोर किया | ये सब नारी के ही रूप हैं, फिर इनसे नफरत क्यों, इनके मंदिर-मस्जिद में प्रवेश पर प्रतिवंध क्यों?

         शिल्पकार हमारे मंदिर, पूजालय, मकान, भवन, दुकान आदि बनाता है | उसके प्रवेश पर भी हमने प्रतिबन्ध लगा दिया, क्यों ? बेकरी, ढाबे, होटल, बारात और तीर्थ में हमारा भोजन कौन बना रहा है हमें इससे कोई परेशानी नहीं है | हमने तो अपने नजदीकी व्यक्ति को कुआं, मंदिर, घर, चौखट, चौपाल से दूर रखा है | ऐसी हालत में यदि कोई अमुकराम धर्म बदल कर कहीं कुछ और नाम रख़ लेता है तो हमें दिखावे का दर्द होने लगता है | हम राम को पूजते हैं परन्तु जिस शबरी- निषाद को राम ने गले लगाया हम उन्हें अपने पास फटकने भी नहीं देते | राम का नाम लो तो राम की बात भी मानो | इन्हीं मुद्दों पर समाज से विषमताओं को उखाड़ फैकने में लगे हुए श्रद्धेय श्री श्री रविशंकर, मोरारी बापू, श्रीराम आचार्य, स्वामी रामदेव जैसे कई समाज सुधारकों एवं अन्धविश्वास के विरोधियों के शब्दों को भी हमें अवश्य सुनना चाहिए | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल , 9871388815 
11.02.2016

Pooran Chandra Kandpal

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                                         दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                        द्वि अदद पद्मश्री चैंछ

    हमार देश में गणतंत्र दिवस क मौक पर चार नागरिक सम्मान दिई जानी – भारत रत्न, पद्मविभूषण, पद्मभूषण और पद्मश्री | भारत रत्न कैं छोड़ अन्य तीनों हुणि पद्म सम्मान कई जांछ | पद्म सम्मान हर साल ज्यादै है ज्यादै 120 लोगों कैं दिई जै सकूं और वर्ष 2016 में य 112 विभूतियों को दिई गो | क्वे लै एक झणी कैं यूं तीनै सम्मान मिल सकनी लेकिन यैक लिजी कम से कम पांच वर्ष का अंतर हुण चैंछ | पद्म सम्मान मरणोपरांत नि दिई जान |

      य सम्मान क नामांकन हर साल 1 मई बै 15 सितम्बर तक करी जै सकूं जो राज्य या केंद्र सरकार क माध्यम ल हुंछ | राज्य सरकार जिला प्रशासन बै नामांकन मगींछ | यैक अलावा क्वे लै सांसद, विधायक, गैर सरकारी संगठन (एन जी ओ ) या क्वे अन्य व्यक्ति लै आपण स्तर पर कैकणी लै य सम्मान क लिजी नामंकित करि सकूं | प्रधानमंत्री कार्यालय क अंतर्गत बनी एक समिति यैकैं अंतिम रूप दींछ और अंत में प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति यै पर आपणी मुहर लगूनी |

      उत्तराखंड में द्वि यास लोकप्रिय विभूति छीं जनूकैं लोकप्रियता और जन-मानस कि भावना क आधार पर पद्म सम्मान दिई जाण चैंछ |  यूं द्वि लोकप्रिय विभूति छीं श्री हीरा सिंह राणा (हिरदा ) और श्री नरेंद्र सिंह नेगी ( नरेन्दा या नरुदा ) | हिरदा क जन्म 13 सितम्बर 1942 हुणि मनीला (अल्मोड़ा, उत्तराखंड) में हौछ | ऊँ विगत 50 वर्षों बटि आपण गीत- कविताओं क माध्यम ल लोगों क चहेता बनि रईं | उनार कुछ किताब छीं- प्योलि और बुरांश, मानिलै डानि और मनखों पड़ाव में |

      नरेन्दा (नरुदा) क जन्म 12 अगस्त 1949 हुणि गाँव पौड़ी (पौड़ी, उत्तराखंड) में हौछ | नरूदा लै विगत 45 वर्षों बटि आपण गीत-संगीत-कविता क माध्यम ल भौत लोकप्रिय है रईं | नरुदा क कुछ रचना छीं -  खुचकंडी, गांणयूं की गंगा स्याणयूं का समोदर, मुट्ठ बोटी की रख और तेरी खुद तेरु ख्याल |

      यूं द्विनूं में करीब करीब कएक समानता छीं | वर्तमान में द्विये  क्रमश: कुमाउनी और गढ़वाली क शीर्ष गायक छीं, द्विये भौत लोकप्रिय छीं, द्विये राज्य आन्दोलन दगै जुड़ी रईं, द्विये भाषा आन्दोलन में संघर्षरत छीं, द्विये समाज सुधारक छीं, द्विनूं कै कएक कैसेट –सी डी छीं, द्विनूं कै गीत संग्रह लै छीं, द्विये कविता पाठ लै करनीं, द्विनूं कै   उच्च व्यक्तित्व लै छ और द्विये कएक सम्मान और पुरस्कारों ल लै  विभूषित छीं |

        यूं द्विनूं की संघर्ष गाथा पुस्तक रूप में प्रकाशित लै है रै | हिरदा कि संघर्ष यात्रा ‘संघर्षों का राही’ (संपादक-चारु तिवारी, प्रकाशक- उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली) और नरुदा कि संघर्ष यात्रा ‘नरेंद्र सिंह नेगी की गीत यात्रा’ (संपादक- डा.गोविन्द सिंह, उर्मिलेश भट्ट, प्रकाशक- बिनसर पब्लिशिंग क.देहरादून ) क लोकार्पण है चुकि गो | यूं  पंक्तियों क लेखक कैं यूं द्विये विभूतियों क दगाड़ काव्यपाठ करण क मौक लै मिलौ | अत: उत्तराखंड क यूं द्विये विभूतियों कैं वर्ष 2017 क गणतन्त्र दिवस पर पद्मश्री सम्मान ल अलंकृत करी जाण चैंछ | यैक लिजी उत्तराखंड सरकार कैं जल्दि है जल्दि उचित कदम उठूण चैंछ | 

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली  ९८७१३८८८१५ 
11.02.2016

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                                                                          बिरखांत-65 : प्रथा- परम्परा में बदलाव

     विख्यात जनप्रेरक श्रद्धेय श्री श्री रविशंकर जी ने एक टी वी चैनल पर कहा कि ‘वक्त के साथ परम्पराएं बदलनी चाहिए | महिलाओं पर लगे अनुचित प्रतिबन्ध हँटने चाहिए | इंडोनेशिया में महिला पुजारी हैं | सभी धर्मों में महिलाओं को धर्मगुरु बनना चाहिए | पुरानी परम्पराएं जिनका कोई वैधानिक आधार नहीं हो वे हटनी चाहिए |’ उन्होंने अहमदनगर के शनि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का भी समर्थन किया है | 

     उत्तराखंड में भी विगत कुछ वर्षों में बहुत कुछ बदला है | साठ के दसक तक देवभूमि में शराब नहीं थी जो आज चाय की दुकान में भी खुलेआम मिल रही है | शराब के कारण ही रात्रि की शादी दिन में होने लगी परन्तु बरतिए- घरतिये दिन में ही डोंन हो जाते हैं | पहले बरात सायंकाल को कन्या के आंगन में पहुँच जाती थी और सायंकाल में ही धुलिअर्घ  (दुल्हे का स्वागत) होता था | पूरी रात शादी के रश्में होती थी तथा सुबह सूर्योदय के बाद दुल्हन की विदाई होती थी | वर्तमान में दिन की शादी में शराबियों के कारण बरात दिन में दो बजे के बाद ही आती है | दुल्हन की विदाई तीन बजे करनी होती है ताकि वह समय पर अपने ससुराल के आंगन पर पहुँच जाय | इस तरह आठ घंटे में होने वाली शादी अब मात्र आधे घंटे में हो रही है | इस नई परम्परा को हमने शराब के साथ स्वीकार कर लिया है और किसी को कोई आपति भी नहीं हैं |

     समाज में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद सूतक (शोक) मनाने के भी एक प्रथा है | मैंने अमरनाथ (जम्मू- कश्मीर) से अन्ना स्क्वायर समुद्र तट (तमिल नाडू) तक देश में सूतक की रश्में देखी हैं | विभिन्न स्थानों में सूतक मात्र तीन दिन से लेकर  तेरह दिन तक मनाया जाता है | उत्तराखंड में यह 12 दिन का है | इस दौरान मृतक के  परिवार के एक परिजन को 12 दिन तक कोड़े ( एक विशेष रश्म में इस दौरान कर्मकांड के अनुसार नित्यकर्म करना पड़ता है ) में बैठना पड़ता है  | 12वे दिन पीपलपानी (जल श्रधांजलि देना ) होता है | 12 दिन के सूतक में बिरादरी में सभी शुभकार्य स्थगित कर दिए जाते हैं और पहले से तय किये कार्य रद्द कर दिए जाते हैं | सम्बंधित जनों को 12 दिन तक कार्य बंद करना पड़ता है या अवकाश लेना पड़ता है | इस दौरान यहां तक कि खेत में हल भी नहीं चलाया जाता |

    प्रथा जब बनी थी तब सन्देश भेजने में कई दिन लगते थे और गाँवों में तार (टेलीग्राम) भी देर से मिलते या भेजे जाते थे | आज तार के जगह इन्टरनेट ने ले ली जिससे सन्देश सेकेंडों में पहुँच जाता है | जब हम बदलाव स्वीकार करने के दौर से गुजर रहे रहे हैं तो यह सूतक का समय भी 5 या 7 दिन किये जाने पर मंथन होना चाहिए | मृतक का दुःख हमें जीवन भर रहेगा परन्तु हम 5 दिन का बंधन तो कम कर सकते हैं | श्रद्धांजलि अधिक से अधिक 7 दिन में होने से परिवार, सम्बंधी और मित्रगण 12 दिन के बजाय 7 दिन में ही सूतक से मुक्त हो जायेंगे | इस बदलाव पर अवश्य मंथन करके अपने विचार जरूर व्यक्त करें | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, 9871388815
15.02.2016

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                                                                                 दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                                              प्रथा-परम्परा क नाम पर

        संविधान ल त हमूकें बराबरी क हक़ दी रौछ लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और छ  | आज लै मस्जिदों और कएक मंदिरों में महिलाओं और चौथू वर्ण क लोगों प्रवेश पर प्रतिबन्ध देखण में औंछ |  अमुक दयाप्त कि पुज स्येणी नि करि सकनि, अमुक मंदिर में 10 वर्ष बटि 50 वर्ष तक कि स्येणी नि जै सकनि, यास बात हमेशा देखण –सुणन में ऐंछ | प्रथा-परम्परा क नाम क वास्ता दिई जांछ | परम्परा बनूणी पैली को छी या आब को छै, य सब जाणनी |

           सारी मान –मर्यादाओं, परम्पराओं और नियम- क़ानूनों क निर्माण केवल स्येणियां क लिजी या चौथूं वर्ण क दबै बेर धरण क लिजी करीगो | उदाहरणा क लिजी ब्यवाई च्येली क लिजी कएक पछ्याण चिन्ह बनै देईं पर ब्यवाई मैंस क लिजी क्ये लै पछ्याण चिन्ह नि बनाय ताकि पत्त नि चलो कि अमुक मैंस ब्यवाई छ | क्वे मैंस कि स्येणी गुजरि गेई तो त्यथाण बटि दुसर ब्या कि खुसुर-बुसुर हुण फैजीं जबकि विधाव स्येणी कि दुसर ब्या कैं अमर्यादित समझी जांछ | काशी- प्रयाग- मथुरा -वृन्दावन सहित कएक जाग विधाव स्येणिय आपण दिन विधाव आश्रमों में रुनै- बिलानै काटें रईं जबकि आज तक क्वे लै विधाव मैंस क लिजी कैं लै विधुर आश्रम न्हैति | डा. अम्बेदकर ल 1927 में जो ग्रन्थ पर आग लगा उमें सारै प्रतिबन्ध लागणी क़ानून स्येणियों क लिजी या चौथू वर्ण क लिजी छी |
 
         ‘समरथ को नहीं दोष गोसाईं’ आज चरितार्थ छ | चौथू वर्ण क व्यक्ति अगर उच्च  आसान या पोजीसन पर हुंछ त उ दगै क्वे लै छुआछूत नि हुनि जबकि औरूं लिजी छुआछूत क नाग पुरि तौर पर आजि लै नि मरि रय | कएक भोजन माता य रोग कैं भोगें रईं | शिक्षा क उज्याव ल कुछ अन्यार जरूर कम हैरौ पर ग्रामीण भारत आजि लै अन्यारपट छ | मै ल हमुकैं जनम दे, बैणी ल सहयोग-सहार दे, स्येणी ल  हमार नना कैं जन्म दे और च्येली ल हमूकैं प्यार करि बेर सराबोर करौ | यूं सब स्येणी कै रूप छीं फिर इनु दगै हाम नफरत क्यलै करनू ? इनर मंदिर- मस्जिद में प्रवेश पर प्रतिवंध नि हुण चैन |

         शिल्पकार हमार मंदिर, पूजालय, मकान, भवन, दुकान आदि बनूनी | उनार प्रवेश पर लै हमूल प्रतिबन्ध लगै रौछ जो गलत छ | बेकरी, ढाबे, होटल, बरात और तीर्थ में हमार लिजी  भोजन को बनू रौ, यै मैं हमूकैं क्ये लै परेशानी न्हैति | हमूल त आपण नजदीकी चौथू वर्ण क   व्यक्ति कैं कू, मंदिर, घर, चौखट, चौपाल बटि दूर धरि रौछ | यसि हालत में अगर क्वे अमुकराम धर्म बदलि बेर क्ये दुसर नाम धरि ल्हींछ तो हमूकैं दिखाव कि पीड़ उठि जैंछ | हम राम कैं पुजनू जरूर पर जो शबरी- निषाद दगै राम ज्यू ल अंगाव भिड़ी, हाम उनूकैं आपण नजीक लै नि फटकण दिन | राम क नाम ल्हींछा त राम कि बात लै मानण चैंछ | यूं ई मुद्दों पर समाज बै विषमताओं कैं उखाड़ फैकण में लागी श्रद्धेय श्री श्री रविशंकर, मोरारी बापू, श्रीराम आचार्य, स्वामी रामदेव जास कएक समाज सुधारकों एवं अन्धविश्वास क विरोधियों क शब्दों कैं लै हमूल जरूर सुणण चैंछ और अमल में ल्योंण चैंछ |
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल ,रोहिणी दिल्ली   
 18.02.2016   
 
 

Pooran Chandra Kandpal

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                                                             बिरखांत-66 : अंधविश्वास का विरोध पहले भी हुआ
 
       कबीर ने तो १४ वीं सदी में पाखण्ड और अंधविश्वास का घोर विरोध किया ही था, हमारे उत्तराखंडी कवियों शिवदत सती, गौरदा, गिरदा, शेरदा से लेकर आत्माराम गैरोला, भावानीदत्त थपलियाल, चक्रधर बहुगुणा, अदित्यराम दुदपुड़ी तक सभी ने समाज में व्याप्त रूढ़ीवाद और पाखण्ड का जमकर विरोध किया | साहित्य अकादमी भाषा सम्मान प्राप्त, कई पुस्तकों के रचियता रामनगर निवासी मथुरादत मठपाल जी द्वारा संकलित ‘दुदबोली’ में शिवदत सती ( १८४८-१९४० ई.) ग्राम भड़गांव, जिला अल्मोड़ा रचित ‘मित्र विनोद’ की कुछ पंक्तियाँ आज की इस बिरखांत में उन्हें श्रधांजलि स्वरुप प्रस्तुत हैं –
 
ज्युन छन दुःख दियो, करो बरबाद; मरी बेर गयाकाशी करले सराद |
मरिया की गयाकाशी, माटी लीण जायो; ज्युना कण दुःख दियो जरा नि लजायो |
सराद में आई बेर, मारिया नि खाना; बामण ज्यू खाई जानी बिरादर नाना |
के जाणनी पतड़िया करमों का हाल; पर्वत रौण भलो झन पड़े मॉल |
 
खानदानी बामण त है गईं नौकर; पितलिया पतड़िया है गीं घर घर |
ठगणियां बामण क मानी जले कयो; तनरो त येसो कोणों रुजगार हयो |
नि जानना अनपढ़ यो छ पोप जाल; पर्वत रौण भलो झन पड़े माल |
 
आपण लिजिया सब बामण लिजानी; यजमान बहकाई बेर बैठी-बैठी खानी |
कठुवा बामण ले रचो गरुड़ पुराण; साँची मानी जानी सब यती अनजान |
गरुड़ पुराण छा यो बड़ो झूठो जाल ; पर्वत रौण भलो झन पड़े माल |
 
परबुद्धि अकल में बासी जौ कफुवा; मरिया का लिजिय जो लागौछ ढपुवा |
नि पुजनो नि पुजनो मारिया का उती; बामण को रुजगार लिजाण की बुती |
नि जाणनै मूरख तु ठगण की चाल; परवत रौण भलो झन पड़े माल |
 
बामण ले फोड़ी दियो भारत को दान; कुनली मिलाई बेर होई जानी रान |
बामण का घर देख विधवों को ठाल; पर्वत रौण भलो झन पड़े माल |

भटकछै तीर्थों में कती छन राम; हिरद में ध्यान लगो उती वीको धाम |
शिवदत्त नौ छ मेरो शिबुवा कै दिनी; बिगड़िया खापड़ी का अपयश लिनी |
कथ मरूं मरनेसू हरै गोछ काल: परवत रौण भलो झन पड़े माल |

      शिव दत्त सती आज से ७६ वर्ष पहले १९४० में दिवंगत हो गए| उन्होंने समाज में व्याप्त विषमताओं, अंधविश्वास, छुआछूत, रूढ़ीवाद का जम कर विरोध किया | इसी तरह लखनऊ निवासी वरिष्ठ लेखक प्रयाग दत पंत भी समाज को जगाते रहते हैं | आज हम विज्ञान के युग में रहते हैं और उसी प्रथा – परम्परा को हमें अपनाना या मानना चाहिये जिसका कोई वैज्ञानिक आधार हो | गरुड़ पुराण का श्रवण मैंने भी किया | मैं मित्र विनोद के लेखक से सहमत हूं |
अघिल बिराखांत में कुछ और...
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल, ९८७१३८८८१५
19.02.2016

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Bahut Badia...Kandpal ji

                                                             बिरखांत-66 : अंधविश्वास का विरोध पहले भी हुआ
 
       कबीर ने तो १४ वीं सदी में पाखण्ड और अंधविश्वास का घोर विरोध किया ही था, हमारे उत्तराखंडी कवियों शिवदत सती, गौरदा, गिरदा, शेरदा से लेकर आत्माराम गैरोला, भावानीदत्त थपलियाल, चक्रधर बहुगुणा, अदित्यराम दुदपुड़ी तक सभी ने समाज में व्याप्त रूढ़ीवाद और पाखण्ड का जमकर विरोध किया | साहित्य अकादमी भाषा सम्मान प्राप्त, कई पुस्तकों के रचियता रामनगर निवासी मथुरादत मठपाल जी द्वारा संकलित ‘दुदबोली’ में शिवदत सती ( १८४८-१९४० ई.) ग्राम भड़गांव, जिला अल्मोड़ा रचित ‘मित्र विनोद’ की कुछ पंक्तियाँ आज की इस बिरखांत में उन्हें श्रधांजलि स्वरुप प्रस्तुत हैं –
 
ज्युन छन दुःख दियो, करो बरबाद; मरी बेर गयाकाशी करले सराद |
मरिया की गयाकाशी, माटी लीण जायो; ज्युना कण दुःख दियो जरा नि लजायो |
सराद में आई बेर, मारिया नि खाना; बामण ज्यू खाई जानी बिरादर नाना |
के जाणनी पतड़िया करमों का हाल; पर्वत रौण भलो झन पड़े मॉल |
 
खानदानी बामण त है गईं नौकर; पितलिया पतड़िया है गीं घर घर |
ठगणियां बामण क मानी जले कयो; तनरो त येसो कोणों रुजगार हयो |
नि जानना अनपढ़ यो छ पोप जाल; पर्वत रौण भलो झन पड़े माल |
 
आपण लिजिया सब बामण लिजानी; यजमान बहकाई बेर बैठी-बैठी खानी |
कठुवा बामण ले रचो गरुड़ पुराण; साँची मानी जानी सब यती अनजान |
गरुड़ पुराण छा यो बड़ो झूठो जाल ; पर्वत रौण भलो झन पड़े माल |
 
परबुद्धि अकल में बासी जौ कफुवा; मरिया का लिजिय जो लागौछ ढपुवा |
नि पुजनो नि पुजनो मारिया का उती; बामण को रुजगार लिजाण की बुती |
नि जाणनै मूरख तु ठगण की चाल; परवत रौण भलो झन पड़े माल |
 
बामण ले फोड़ी दियो भारत को दान; कुनली मिलाई बेर होई जानी रान |
बामण का घर देख विधवों को ठाल; पर्वत रौण भलो झन पड़े माल |

भटकछै तीर्थों में कती छन राम; हिरद में ध्यान लगो उती वीको धाम |
शिवदत्त नौ छ मेरो शिबुवा कै दिनी; बिगड़िया खापड़ी का अपयश लिनी |
कथ मरूं मरनेसू हरै गोछ काल: परवत रौण भलो झन पड़े माल |

      शिव दत्त सती आज से ७६ वर्ष पहले १९४० में दिवंगत हो गए| उन्होंने समाज में व्याप्त विषमताओं, अंधविश्वास, छुआछूत, रूढ़ीवाद का जम कर विरोध किया | इसी तरह लखनऊ निवासी वरिष्ठ लेखक प्रयाग दत पंत भी समाज को जगाते रहते हैं | आज हम विज्ञान के युग में रहते हैं और उसी प्रथा – परम्परा को हमें अपनाना या मानना चाहिये जिसका कोई वैज्ञानिक आधार हो | गरुड़ पुराण का श्रवण मैंने भी किया | मैं मित्र विनोद के लेखक से सहमत हूं |
अघिल बिराखांत में कुछ और...
 
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