Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 264245 times)

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
 ऐसे होली जलाओ
 
रंगों की होली पर होली जलाओगे /
अनगिनत पेड़ों पर कुल्हाड़ा चलाओगे/
सिर्फ लकड़ी जलाने से होली नहीं मनेगी/
जलानी है तो होली कुछ इस तरह जलाओ |
 

नफ़रत घमंड के रावण की होली जलाओ/
मजहब की दीवार-पर्दों की होली जलाओ/
अंधविश्वास-रुढ़िवाद के फंदों की होली जलाओ/
झूठ- पाखण्ड- अज्ञान की होली जलाओ/
अहंकार- वैमनस्य- क्रोध की होली जलाओं/
अनाचार- कदाचार- दुराचार की होली जलाओ/
राग-द्वेष- अपसंस्कृति की होली जलाओ/
लालच- बेई मानी –मिलावट की होली जलाओ/
लाचारी- भुखमरी- गरीबी की होली जलाओ/
ऊँच- नीच के भेद-भाव की होली जलाओ/

आज मजहब के लिए नहीं, वतन के लिए मिटो/
देश की एकता और तिरंगे के लिए मिटो |
 
सभी मित्रों को होली की बहुत बहुत शुभकामना |

 पूरन चन्द्र काण्डपाल ,
 २३.०३.२०१६
 

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                                                                     दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                                   उत्तराखंड में कुर्सी दौड़
 
     जब मी प्राइमरी पाठशाला क विद्यार्थी छी ( १९५४-५९ ), स्वतंत्रता दिवस क दिन स्कूल बै प्रभात फेरी निकाली जैंछी जो नजदीका क गौनूं में होते हुए फिर इस्कूल में वापस ऐ जैंछी | प्रभात फेरी में गीत हुछी “क्या सुहाना वक्त है कैसा मुवरक राज है, राजेन्द्र जी के सिर पर देखो विराज ताज है”, “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा, इसकी शान न जाने पावे, चाहे जान भलेही जावे” आदि आदि | काल क पहिय घुमनै ४२ शहीदों कि धधकी चिताओं क उज्याव में ९ नवम्बर २००० हुणि देवेगौड़ा ज्यू घोषित (१५ अगस्त १९९६) उत्तराखंड राज्य बनि गोय | आशा, आकांक्षा, अपेक्षा और उम्मीदों क उत्तराखंड क हमूल ढोल- नगार बजै बेर और गीत- कविताओं कि प्रभात फेरी क साथ जोरदार स्वागत करौ और घर- घर में ख़ुशी मनाईगे |

     राज्य त बनिगो पर शुरुआत कुछ अटपटी हैछ | भूमिय क थान में गलत ढुंग थाप दे | नईं राज्य कि बागडोर उ आदिम कैं सौंप दि जैकैं मडु- झुंगर और पहाड़ कि ठंडी हाव कि पछ्याण नि छी | तब बटि यूं सोल वर्षों में आठ मुख्यमंत्री बनि गईं | यूं सबूं क राजपाट कस रौछ और राज्य कैं क्ये मिलौ, ये पर एक ठुलि बिरखांत कि जरवत न्हैति केवल एक छंद ल पत् चलि जाल, “बरस सोल  में बनि गईं, राज्य में मुख्यमंत्री आठ/ राज्य क भल नि हय भलेही, उनार हईं खूब ठाट/ उनार हईं खूब ठाट, हमूल देखीं सबूं क हालत/ स्वामी भगत नारायण खंडूड़ी, निशक बहुगुणा रावत/ कूंरौ ‘पूरन’ विकास देखूंहूँ, दूर दराज गो तरस/ पुर नि कर सब्जबाग दिखाईं, बिति गईं सोल बरस |”

     अच्याल देवभूमि कई जाणी राज्य उत्तराखंड विधायक विहीन छ | सबै सत्तर विधायकों में कुछ लुकी गईं और कुछ लुकै हैलीं | दिल्ली में बारि – बारि कै प्रणव दा (राष्ट्रपति महोदय) क सामणि ड्रिल- परेड कदमताल हूं रै | प्रणव दा क्वे जमान में एक जानी-मानी संकट मोचक छी पर आज त आब संविधान संकट काटल | सबूं है ठुल दुःख त य छ कि हमार सबै विधायक सी एम बनण चानी | सी एम कि पोस्ट लै एक्कै हइ | अच्याल सबै केदार बाबा कि स्यो- सलाम पर लै रईं ताकि कुर्सी उनार झ्वाल में ऐ जो | द्वि मुख्य राजनैतिक दल एक दूसरै पर यतू कच्यार लफाऊं रईं कि अतिशयोक्ति अलंकार लै फिक पड़ि जाल | मार्च २०१७ तक सब्र नि करि सक हमार यूं मान्यनीय लोग | मात्र कुछै महैण कि बात छी | यूं कुछ महैण क लिजी थान में एक नईं ढुंग थापण कि जरवत नि हुण चैंछी | आब उथल-पुथल मचि रैछ |

     आब गणतुओं, पुछारियों, डंगरियों, जगरियों कि दुलैचों पर पउ - अद्ध चढूंण क टैम नजीक ओं रौ क्यलै कि चुनाव क दौरान सबै लड़णी या  लड़ण क नाटक करणी सानी –सानि इनार शरण में जै बेर जनता क सामणि अंधविश्वास विरोधी भाषण दिनी |  य बार होइ है पैली  उत्तराखंड में एक निर्दोष घ्वड़ कि टांग खंडित करि कियी गे | आब देखण छ कि ऊँ घ्वड़ पर लट्ठ भाचणी दण्डित हुनी या नि हुन ? होइ में कुछ  होयार कहरू गै बेर जरूर रागि बनी तो दुसरि तरफ हमार कुछ आदरणीय बागि लै बनि गईं | रागियों क राग तो देखि है आब बागियों क तड़ाग (ताल) देखण बाकि छ जैक लिजी २८ मार्च तक इंतज़ार करण पड़ल | 

 
पूरन चन्द्र काण्डपाल,रोहिणी दिल्ली
24.03.2016

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                                                                          बिरखांत-७५ : उत्तराखंड में कुर्सी दौड़
 
     जब मैं प्राइमरी पाठशाला का विद्यार्थी था ( १९५४-५९ ), स्वतंत्रता दिवस के दिन स्कूल से प्रभात फेरी निकाली जाती थी जो स्थानीय गांवों से होते हुए पुनः स्कूल में आती थी | प्रभात फेरी में गीत थे “क्या सुहाना वक्त है कैसा मुवारक राज है, राजेन्द्र जी के सिर पर देखो विराज ताज है”, “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा, इसकी शान न जाने पावे, चाहे जान भलेही जावे” आदि आदि | काल का पहिया घूमते हुए ४२ शहीदों की धधकती चिताओं की रोशनी में ९ नवम्बर २००० को देवेगौड़ा जी घोषित (१५ अगस्त १९९६) उत्तराखंड बन गया | आशा, आकांक्षा, अपेक्षा और उम्मीदों के उत्तराखंड का हमने ढोल- नगाड़े बजाकर  और गीत- कविताओं के साथ जोरदार स्वागत किया |

     राज्य तो बन गया परन्तु शुरुआत कुछ अटपटी हुई | भूमिये के थान में गलत पत्थर थाप दिया | नए राज्य की बागडोर उस व्यक्ति को सौप दी जिसे मडुवे- झुंगरे और पहाड़ की हिमानी बयार का ज्ञान नहीं था | तब से इन सोलह वर्षों में आठ मुख्यमंत्री बन गए हैं | इन सबका राजपाट कैसा रहा तथा राज्य को क्या मिला, इस पर एक बड़ी बिरखांत की जरूरत नहीं है केवल एक छंद से ही पता चल जाएगा, “ बरस सोल  में बनि गईं, राज्य में मुख्यमंत्री आठ/ राज्य क भल नि हय भलेही, उनार हईं खूब ठाट/ उनार हईं खूब ठाट, हमूल देखीं सबूं क हालत/ स्वामी भगत नारायण खंडूड़ी, निशक बहुगुणा रावत/ कूंरौ ‘पूरन’ विकास देखूंहूँ, दूर दराज गो तरस/ पुर नि कर सब्जबाग दिखाईं, बिति गईं सोल बरस |”

     आजकल उत्तराखंड विधायक विहीन है | सभी सत्तर विधायकों में कुछ लुकी गए हैं और कुछ लुका दिए गए हैं | दिल्ली में बारी- बारी से प्रणव दा (राष्ट्रपति महोदय) के सामने ड्रिल- परेड हो रही है | प्रणव दा कभी एक विख्यात संकट मोचक थे परन्तु आज तो अब संविधान ही संकट काटेगा | सबसे बड़ा दुःख तो यह है कि हमारे सभी विधायक सी एम बनना चाहते हैं | सी एम की पोस्ट एक है | आजकल सभी केदार बाबा की उपासना में लगे हैं कि कुर्सी उनकी झोली में आ जाये | दो प्रमुख राजनैतिक दल एक दूसरे पर इतना कीचड़ फाल रहे हैं जिसके लिए अतिशयोक्ति अलंकार फीका पड़ रहा है | मार्च २०१७ तक सब्र नहीं कर सके ये लोग | मात्र कुछ ही महीनों की बात थी | इन कुछ महीनों के लिए थान में एक नया पत्थर थापने की जरूरत नहीं होनी चाहिए थी | अब उथल-पुथल मची हुई है |

     अब गणतुओं, पुछारियों, डंगरियों, जगरियों की दुलैचों पर पव्वे- अद्धे चढ़ने का समय नजदीक आ रहा है क्योंकि चुनाव के दौरान सभी लड़ने वाले या लड़ने का नाटक करने वाले चुपचाप इन्हीं की शरण में जाकर जनता के सामने अंधविश्वास विरोधी भाषण देते हैं | इस बार होली से पहले उत्तराखंड में एक निर्दोष घोड़े के टांग खंडित कर दी गयी | अब देखना है कि वे अमानुष दण्डित होते हैं या नहीं ?  होली में कुछ होयार कहरुआ गा कर जरूर रागी बने तो दूसरी ओर हमारे कुछ आदरणीय बागी भी बन गए | रागियों का राग तो देख लिया अब बागियों का तड़ाग (ताल) देखना बांकी है | अगली बिरखांत में कुछ और ...
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.03.2016

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                                                               बिरखांत-७६ : ग्वेल/ गोरिया /गोलु ज्यु, एक न्यायप्रिय राजा

     उत्तराखंड में ग्वेल/ गोलु/ गोरिल/ गोरिया/ दूदाधारी आदि नाम से जिस देव की पूजा होती है आज की बिरखांत उन लोगों को समर्पित है जो इस देवता में श्रद्धा रखते हैं | भगवान् तो निराकार है, उसे न किसी ने देखा है और न कोई उससे मिला है | फिर भी जब हम व्याकुल होते हैं तो उसे याद करते हैं | कुछ लोग मनुष्य रूप में आकर अपने कर्म से इतने लोकप्रिय हो जाते हैं कि लोग उन्हें देव तुल्य मानते हैं | ऐसे ही एक देवता गोलु भी हैं जिनके उत्तराखंड में कई मंदिर हैं | जगरियों (दास ) के मुख से सुनी गाथा और कुछ ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार गोलु देवता जो उस क्षेत्र के रक्षक माने जाते हैं, इसकी काव्य गाथा मैंने अपनी पुस्तक “उकाव-होराव” (२००८) में लिखी है जिसकी कहानी कुछ इस तरह है –

     उत्तराखंड में कत्यूरी शासन काल ईसा पूर्व २५०० से ७०० ई. तक लगभग ३२०० वर्ष रहा | इस शासन में सूर्यवंशी-चक्रवर्ती राजा हुए जिनका विस्तृत राज्य था | गोलु ज्यु भी कत्यूरी वंश के राजा थे | उनके परदादा तिलराई, दादा हालराई और पिता झालराई थे | गढ़ी चम्पावती-धूमाकोट मंडल इस क्षेत्र का केंद्र था | झालराई के सात विवाह करने पर भी संतान नहीं हुई | आठवीं शादी कालिंका से हुई जिसे पंचनाम देवों की बहन बताया जाता है | कालिंका के गर्भ में गोलु के आते ही सातों सौत ईर्ष्या करने लगी | उन्होंने प्रसव होते ही एक संदूक में गोलु को बहा दिया और प्रसव में ‘सिल- बट्टा’ पैदा हुआ बता दिया’ | संदूक गोरिया घाट पर एक धेवर ने बाहर निकाल कर बालक को बचाया और नाम रखा गोरिया |
 
     जब बालक बड़ा हुआ तो एक दिन झालराई –कालिंका ने गोलु के  सपने में आकर पूरी कहानी के साथ बताया कि वे उनके बेटे हैं | कहानी सुनते ही गोलु एक चमत्कारिक काठ के घोड़े में बैठ कर राणीघाट पहुंचे जहां सात सौत नहाने आई थी | उन्होंने सौतों को पानी में जाने से रोकते हुए कहा, “पहले मेरा घोड़ा पानी पीएगा |” सौतों ने कहा, “काठ का घोड़ा पानी कैसे पीएगा ?” जबाब, “वैसे ही पीएगा जैसे कालिंका ने ‘सिल-बट्टे’ को जन्म दिया था |” सौतों को अपनी करतूत याद आ गयी | गोलु ज्यु सौतों को राजा के पास ले गए और पूरी कहानी बताई तो कालिंका के स्तनों से दूध की धार बहने लगी | तब गोलु ज्यु का नाम दूदाधारी पड़ गया |  राजा ने सौतों को मौत की सजा सुनाई जिसे गोलु ज्यु ने ‘देश निकाले’ में बदलवा दिया |

     जब गोलु ज्यु राजा बने तो वे प्रजा के दुःख दूर करने में लग गए | उन्होंने भ्रष्टाचार, अन्याय, गरीबी और अराजकता दूर की | वे जन हित के लिए सफ़ेद घोड़े में बैठ कर जनता के बीच जाते और सब को न्याय दिलाते | वे एक प्रजापालक और न्यायविद के रूप में बहुत लोकप्रिय हुए जिस कारण लोग उनकी पूजा करने लगे | वे प्रजा के भलाई के लिए शिविर लगाते थे | जिला नैनीताल के घोड़ाखाल नामक स्थान पर वे एक दिन घोड़े सहित जल में विलीन हो गए |
      गोलु ज्यु ने जहां –जहां भी न्याय शिविर लगाए वहाँ आज भी गोलु देवता के मंदिर हैं जिनमें आज भी लोग अन्याय के विरुद्ध फ़रियाद करते हैं | उदाहरण के लिए अल्मोड़ा (चितइ), रानीखेत (ताड़ीखेत), नैनीताल (घोड़ाखाल) सहित कई जगह उनके मंदिर हैं जहां कई फरियादी जाते हैं | इनकी फ़रियाद से बेईमान या अन्यायी पर मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता है जिससे वह सुधरने का प्रयास करता है | 

       ग्रामीण आँचल में स्थानीय देवों के ही बहुत थान-मंदिर हैं जिनकी पूजा में जगरिये-डंगरिये अंधविश्वास का जमकर तड़का ( जिसमें पशु बलि भी है ) लगा कर सुरा-शिकार की जुगलबन्दी का लुत्फ़ उठा रहे हैं | श्रद्धा होना अच्छी बात है परन्तु अन्धश्रधा ठीक नहीं हैं | किसी आम व्यक्ति में अमुक देव का अवतार होना या नाचना एक भ्रम है क्योंकि इनके कथन में कोई जिम्मेदारी नहीं होती | वांच्छित परिणाम नहीं मिलने पर ये लोग भाग्य या कर्मरेख या कर्मगति कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं | कहीं पर तीर-तुक्का लग जाता है | अत: भगवान की पूजा एक निराकार की तरह होनी चाहिए तथा किसी के झांसे में किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं करनी चाहिए |  श्रीकृष्ण का कर्म संदेश हमें स्मरण करना चाहिए |

         हवन करने से बारिश नहीं होती | अगर हवन से बारिश होती तो देश में कहीं भी फसल चौपट नहीं होती | डंगरियों ने अपनी करामात देशहित में दिखानी चाहिए और उग्रवाद पर चुनौती के साथ नियंत्रण करना चाहिए | मुशर्रफ अपनी बेगम के साथ ताजमहल के सामने बैठ कर फोटो खिचवा गया और वापस जाकर उसने कारगिल काण्ड किया जिसमें हमारे ५१७ सैनिक शहीद हुए | बभूत का एक फुक्का इन डंगरियों-जगरियों और तांत्रिकों ने उस पर क्यों नहीं मारा ?  अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
३०.०३.२०१६     

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                                                      बिरखांत – ७७ : आशा की हिम्मत और भोजन माता का संताप 
 
      ३० मार्च २०१६ को उत्तराखंड गया | दिल्ली से काकड़ी घाट तक की रात्रि बस सेवा यात्रा सुलभ हो गयी थी | रात्रि के करीब तीन बजे का समय | बस हल्द्वानी, काठगोदाम, भीमताल, भवाली, कैंची होते हुए अचनाक गरमपानी और खैरना के बीच रुक गयी | हांफती हुई एक करीब २५- ३० वर्ष के महिला बस में घुसी | कंडक्टर ने पूछा, “ इतनी रात ! स्त्री जात यहां क्या कर रही हो ? कौन हो और कहां जाना है ?” मैं सामने की सीट पर बैठे-बैठे ऊंघ रहा था | वह बोली, “औरत हूं इसलिए इतने सवाल एकसाथ पूछ लिए तुमने | डरो मत भूत नहीं हूं, आशा हूं आशा | ग्राम छड़ा जाना है | एक महिला को प्रसव पीड़ा हो रही है | आगे छड़ा जाने वाले मोड़ पर उतार देना | ये लो टिकट दे दो |” उसने पैसे दिए और टिकट लिया |

       कंडक्टर बोला, “ इतनी रात अकले डर नहीं लगता ?” डर काहे का ? नहीं जाउंगी तो वो मर जायेगी, डर गयी तो जा भी नहीं पाऊंगी | जाना ही पड़ता है | तुम मरद लोग क्या जानो इस पीड़ा को | रोक दो बस | यहीं पर उतार दो |” वह उतरी और दनादन चल पड़ी | मैंने बाहर देखा | वह घुप्प अँधेरे में जंगल भरी पहाड़ी पर तेजी से चढ़ रही थी |” उसे गुलदाड़ या कुकुरी बाघ का डर नहीं था | आशा (ऐक्रेडिटेड सोसियल हैल्थ एक्टिविस्ट- ASHA) तेरी हिम्मत, जज्बे, जुझारूपन, निडरता, नारीत्व और सामाजिकता को मेरी यह बिरखांत समर्पित | मैं हिनौले खिलाती बस में बैठे-बैठे सोच रहा था, कौन है ताकताबर ? आशा रूपी यह स्त्री या रात्रि के अँधेरे में किसी की चीख़ सुनकर भी बाहर नहीं निकलने वाला आदमी जिसे आशा मरद कह रही थी ?


      ३१ मर्च २०१६ अपराह्न के समय जीप की प्रतीक्षा में सड़क के  किनारे एक दुकान पर बेंच में बैठे- बैठे बीडी पीने वालों को देख रहा था | अचानक दो अधेड़ उम्र महिला दुकान में आते ही दुकानदार से बोली, “ ददा पैलाग |” दुकानदार बोला, “ और क्ये है रईं, ठीक ठाक हो, नौकरी ठीक चल रही है ?” एक महिला बोली, “मेरी तो ददा ठीक चल रही है, इसकी (दूसरी औरत की ) खतरे में है |” “क्यों क्या हुआ ?” दुकानदार बोला | “चार बच्चे हमारा स्कूल छोड़कर पब्लिक स्कूल में जाने वाले हैं ददा | उनके जाते ही एक भोजन माता की नौकरी चली जायेगी | ददा २५ बच्चों तक एक भोजन माता होती है | चार बच्चों के जाते ही हमारी स्कूल में केवल २४ बच्चे रह जायेंगे | इसकी नौकरी बचाने के लिए चार बच्चों का इंतजाम करो ददा कहीं से जिनका हमारे स्कूल में एडमिशन हो सके |” दुकानदार बोला, “ जब स्कूल में तुम्हारे मास्टर ठीक से पढ़ाएंगे नहीं तो ये हाल तो होना ही था |” एक भोजन माता बोली, “ ददा किताब फ्री, मिड डे मील फ्री, वर्दी फ्री, फीस बिलकुल नहीं और अब पढ़ाई भी अच्छी हो रही है | पब्लिक स्कूल में कुछ भी फ्री नहीं उल्टे मोटी फीस भी देनी पड़ती है, फिर भी लोग वहाँ जा रहे हैं | अंग्रेजी वहाँ पढ़ाते हैं तो हमारे यहां भी पढ़ाते हैं | बस पब्लिक स्कूल का नाम है और सरकारी का बदनाम |”

 
        इतने में मनखियों से लदी जीप आ गयी और मैं जैसे तैसे उसमें घुस गया | अगली जीप दूसरे दिन सुबह नौ बजे आती | मैं सोच रहा था जब सरकारी स्कूल में सब कुछ फ्री है तो लोग पब्लिक स्कूल में इतना खर्च उठा कर अपने बच्चे वहां क्यों पढ़ा रहे हैं ? बदनामी का टीका एक बार लगने के बाद बड़ी मुश्किल से उतरता है | क्यों हुए ये सरकारी स्कूल बदनाम ? इसके लिए हमारा तंत्र, मास्टर साहब, बच्चे और उनके अभिभावक सभी जिम्मेवार हैं | मुझे बाद में पता चला कि उस भोजन माता की नौकरी नहीं बच पायी | तब से मैं उदास हूं | अगली बिरखांत में कुछ और...
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल
03.04.2016

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
   बिरखंत-७८ :आज विश्व स्वास्थ्य दिवस : मधुमेह (diabetes)  से दूर रहे
 
       प्रति वर्ष ७ अप्रैल को विश्व भर में वर्ष १९५० से ‘विश्व स्वास्थ्य दिवस’ मनाया जाता है | विश्व स्वास्थ्य संगठन स्वास्थ्य के मुद्दों पर दुनिया का ध्यान वर्तमान स्वास्थ्य समस्याओं को नजर रखते हुए केन्द्रित करता है | प्रति वर्ष एक खाश विषय चुना जाता है | वर्ष २०१६ के लिए विषय है मधुमेह से बचाव  (safety from Diabetes) | ये मधुमेह क्या है ? जो भी मीठी चीज हम खाते हैं वह हमारे पाचन तंत्र द्वारा हमारे रक्त में मिलती है | शरीर में उपलब्ध इन्सुलिन हारमोन से यह ग्लूकोज (चीनी या मीठा ) हमारे लीवर द्वारा शरीर के उपयोग में लिया जाता है | इन्सुलिन की कमी या काम नहीं करने की स्तिथि में यह ग्लूकोस शरीर द्वारा प्रयोग नहीं होता और हमारे खून एवं मूत्र में बहने लगता है | जब ग्लूकोस शरीर को नहीं मिलेगा तो भूख -प्यास अधिक लगेगी, कमजोरी महसूस होगी और बार बार पेशाब जाने को मन करेगा | रक्त में चीनी की अधिकता के कारण हमारी रक्त-वाहनियों को भी नुकसान होता है |
 
 
    पूरा विश्व इस रोग से त्रस्त है | प्रति -वर्ष दुनिया में करीब सैंतीस लाख लोग मधुमेह के रोग से मृत्यु के ग्रास बन जाते हैं | हमारे देश में भी करोड़ों लोग इस बीमारी से परेशान हैं | राजधानी दिल्ली देश इस रोग से अधिक ग्रसित है | मोटापा भी इस रोग की जड़ है | मोटापा तो सभी रोगों की जननी है |  भारतीय चिकित्सा संघ के अनुसार मधुमेह के साथ ही कैंसर, ह्रदय रोग, जिगर- गुर्दे के रोग, हाइपरटेंसन, और दिमागी रोग सहित कई अन्य प्रकार की जानलेवा  बीमारियाँ इसके कारण तेजी से बढ़ रही हैं | अपना बचाव ही इस रोग का इलाज है बस स्वस्थ रहिये | स्वस्थ कैसे रहें ?
 
 
      एक मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए बस एक से दस तक के अंग्रेजी वर्णमाला के दस अक्षर याद रखने हैं – A B C D E F G H I J जो कोई कठिन कार्य नहीं है | अब इन अक्षरों का मतलब समझ लेते हैं | A-alcohal- अर्थात शराब का सेवन बिलकुल भी न करें | B-blood pressure- अर्थात अपना रक्तचाप नियंत्रित रखें जो 120 / 80 होना चाहिए | भूल कर भी क्रोध नहीं करें और प्रतिदिन ३- ४ ग्राम से अधिक नमक न लें | सलाद में नमक बिलकुल नहीं लें | C- cholestrol अर्थात शरीर में बसा की मात्रा संतुलित रहे (प्रति दिन मात्र ७० ग्राम बसा/चिकनाई से अधिक नहीं ) और मोटापा नहीं पनपे | D- diabetes- अर्थात मधुमेह को नहीं पनपने दें | एक युवा के शरीर में प्रतिदिन ७० ग्राम से अधिक मीठे तत्व (चीनी या मिठाई ) नहीं जानी चाहिए |
 
        E- exercise- अर्थात नियमित कसरत, सैर, योग आदि | यह सब काम छोड़कर प्रतिदिन कम से कम ३० मिनट जरूरी है | या पार्क के चक्कर लगाओं अन्यथा बाद में अस्पताल/डाक्टर के चक्कर लगाओ | F- food- अर्थात संतुलित भोजन नियमित एवं अनुशासित (समय पर दिन में तीन बार ) होना चाहिए | मुंह को gate of haeven बनाओ, door of devil नहीं अर्थात सुख का द्वार बनाओ, राक्षसी दरवाजा नहीं | जो मन आए, जब मन आए मत खाओ | G- Gutka –अर्थात गुटका, तम्बाकू, पान, बीडी, सिगरेट, धूम्रपान, खैनी, जर्दा, सुड़ती आदि से नफ़रत करें | ये सभी नशे हमारी जिन्दगी को बरबाद कर रहे हैं और कैंसर जैसे कई रोगों की जड़ भी हैं |
 
 
      H- happiness –अर्थात प्रसन्न रहने की कोशिश जारी रहे | मांग कम रखेंगे तो प्रसन्नता दर अधिक रहेगी जैसे इस महीने २ या ३ चीजें लानी हैं तो आ सकती हैं | अगर १० या १२ चीजों की मांग होगी तो २ या ३ ही आ पाएंगी और प्रसन्नता दर १०० से घटकर २० फीसदी हो जायेगी तथा टेंसन बनी रहेगी | ‘ते तो पांव पसारिये जेती लाम्बी सौर |’ I- immunity – अर्थात शरीर को नाजुक मत बनाओ और रोग प्रतिरोधक ताकत बनी रहे जिसमें उचित टीकाकरण भी जरूरी है | अंत में J- junk food- अर्थात जंक फ़ूड ( मैगी, बर्गर, मोमोज, चिप्स, कुरमुरे, पिजा, चाउमीन आदि और मांसाहार भी ) मत खाओ | जंक का मतलब है कूड़ा-करकट | ये पदार्थ हर तरह से नुकसानदायक हैं | इनसे बचें | फल- सब्जी, दाल-दलिया-दूध आदि उत्तम भोजन है | १०-१२ गिलास पानी पीना भी जरूरी है |
 
 
        यदि हमारा स्वास्थ्य उत्तम है तो हम सब कुछ कर सकते हैं | स्वस्थ रहने के लिए शुद्ध हवा- पानी, स्वच्छ वातावरण और सात घंटे की नीद भी जरूरी है | इसके अलावा पारिवारिक जीवन के लिए समय भी आवश्यक है जिसमें बच्चों का प्यार, पति-पत्नी का स्नेह- स्पर्श एवं मातृ-पितृ आशीर्वाद, मित्रों और रिश्तेदारों की खैरियत एवं शुभकामना भी जरूरी है | यदि हम उक्त बातों पर ध्यान देंगे तो मधुमेह हमारे नजदीक भी नहीं फटकेगा और हम जिन्दगी को जीयेंगे, काटेंगे नहीं क्योंकि जिन्दगी जीने के लिए है काटने के लिए नहीं |
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल
 ०७.०४.२०१६

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                                                                                                 दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                                              एक न्यायप्रिय राज छी ग्वेल/ गोरिया /गोलु ज्यु

     उत्तराखंड में ग्वेल/ गोलु/ गोरिल/ गोरिया/ दूदाधारी आदि नाम ल जो दयाप्त पुजी जांछ आज कि चिठ्ठी उनुकें कैं समर्पित छ जो उनुमें श्रद्धा धरनी | भगवान् त निराकार छीं, उनुकें न कैल देख और न क्वे उनु दगै मिल | फिर लै जब हम परेशान हुनूं, उनुकें याद करनूं | कुछ लोग मनुष्य रूप में ऐ बेर यतू लोकप्रिय है जानी कि लोग उनुकैं देव तुल्य मानण फै जानी | यसै एक दयाप्त ग्वेल ज्यू लै छीं जनार उत्तराखंड में कएक मंदिर छीं | जगरियों (दास ) क मुख बै सुणी अद्वायी और कुछ ऐतिहासिक स्रोतों क अनुसार गोलु देवता जो उ क्षेत्र क रक्षक मानी जानी, जैकि काव्य गाथा मी ल आपणि किताब “उकाव-होराव” (२००८) में लेखि रैछ, उनरि कहानि कुछ यसि छ -

     उत्तराखंड में कत्यूरी शासन काल ईसा पूर्व २५०० से ७०० ई. तक लगभग ३२०० वर्ष रौछ | य शासन में सूर्यवंशी-चक्रवर्ती राज हईं जनर भौत ठुल राज्य छी | गोलु ज्यु लै कत्यूरी वंश क राज छी | उनार बुड़बुबू तिलराई, बुबू हालराई और बौज्यू झालराई छी | गढ़ी चम्पावती-धूमाकोट मंडल य क्षेत्र क केंद्र छी | झालराई क सात ब्या करण पर लै संतान नि हइ | उनर आठूं ब्या कालिंका दगै हौछ जैकैं  पंचनाम द्याप्तां कि बैणी बताई जांछ | कालिंका क गर्भ में गोलु क आते ही सातों सौत जलंग ल बौयी गाय | उनूल कालिंका क प्रसव होते ही एक सिन्दूक में गोलु कैं गाड़ बगै दे और प्रसव में ‘सिल- ल्वड़’ पैद हौछ बतै देछ | सिन्दूक  गोरिया घाट पर एक धेवर गाड़ बै भ्यार निकाई बेर बालक कैं बचा और बालक क नाम धरौ गोरिया |
 
     जब बालक ठुल हौछ तो एक दिन झालराई –कालिंका ल गोलु कैं स्वैण में ऐ बेर पुरि कहानि बतै कि ऊँ उनार च्याल छीं | कहानि सुणते ही गोलु एक चमत्कारिक काठ क घ्वड़ में भैटि बेर राणीघाट पुजीं जां सात सौत नां हुणि ऐ रौछी | उनूल सौतों कैं पाणी में जाण है रोकते हुए कौ, “पैली म्यर घ्वड़ पाणी प्यल |” सौतों ल जबाब दे, “काठ क घ्वड़ पाणी कसी प्यल ?” जबाब, “ उसीके प्यल जसी कालिंका ल ‘सिल-ल्वड़’ कैं जन्म दे |” सौतों कैं आपणी करतूत याद ऐ गे | गोलु ज्यु सौतों कैं रजा क पास ल्ही गईं और पुरि कहानि बतै तो कालिंका क छाति में बै दूद कि धार बगण फैगे | तब गोलु ज्यु क नाम दूदाधारी पड़ गोय | रज ल सौतों कैं मौत कि सजा दी जैकैं गोलु ज्यु ल ‘देश निकाल’ में बदलै दे |

     जब गोलु ज्यु राज बनीं तो प्रजा क दुःख दूर करण में लागि गईं | उनूल   भ्रष्टाचार, अन्याय, गरीबी और अराजकता दूर करी | ऊँ जन हित क लिजी सफ़ेद रंग क घ्वड़ में बैठि बेर जनता क बीच में जांछी और सबूं कैं न्याय दिलौंछी | ऊँ   एक प्रजापालक और न्यायविद क रूप में भौत लोकप्रिय हईं जैक वजैल लोग उनरि पुज करण फैगाय | ऊँ प्रजा कि भलाई क लिजी कैम्प लगूंछी | जिला नैनीताल क घोड़ाखाल नामक जागि पर ऊँ एक दिन घ्वड़ सहित पाणी में अंतरध्यान है गईं |

      गोलु ज्यु ल जां जां लै न्याय शिविर लगाईं वां आज लै गोलु दयाप्त क  मंदिर छीं जनूमें आज लै लोग अन्याय क विरुद्ध फ़रियाद करनी | उदाहरण क लिजी अल्मोड़ा (चितइ), रानीखेत (ताड़ीखेत), नैनीताल (घोड़ाखाल) सहित कएक जागि उनार मंदिर छीं जां फ़रियाद करणी जानीं | इनरि फ़रियाद ल बेईमान या अन्याइ पर मनोवैज्ञानिक दबाव पडूं जैल उ सुधरण क प्रयास करूं | 

       ग्रामीण आँचल में स्थानीय द्याप्तों क बहुत ज्यादै थान-मंदिर छीं जनरि पुज में जगरिय-डंगरिय अंधविश्वास क जम बेर तड़क ( जमें पशु बलि लै छ )  लग़ै बेर सुरा-शिकार कि जुगलबन्दी क लुत्फ़ उठूनीं |  श्रद्धा हुण भलि बात छ पर  अन्धश्रधा ठीक नि हुनि | एक आम आदिम में अमुक द्यप्त क अवतार हुण या नाचण एक भैम छ क्यलै कि इनरि बात में क्वे जिम्मेदारी नि हुनि | वांच्छित परिणाम नि मिलण पर यूं लोग भाग्य या कर्मरेख या कर्मगति बतै बेर पल्ल झाड़ ल्हिनी | कैं न कैं इनर तीर-तुक्क लागि जांछ | अत: भगवान कि पुज एक निराकार कि चार हुण चैन्छ और कै कै झांस में ऐ बेर क्वे चमत्कार कि उम्मीद नि करण चैनि |  श्रीकृष्ण क कर्म संदेश हमूल याद धरण चैन्छ | 

         हवन करण ल द्यो नि हुन | अगर हवन करि बेर द्यो हुनौ तो देश में कैं लै फसल चौपट नि हुनि | डंगरियों ल आपणी करामात देशहित में देखूण चैंछ और उग्रवाद पर चुनौती क साथ नियंत्रण करण में मदद करण चैंछ | मुशर्रफ आपणी बेगम क दगाड़ ताजमहल क अघिल बै भैटि बेर फोटो खिचै बेर वापस गो और वापस जै बेर वील कारगिल काण्ड करौ जमै हमार ५१७ सैनिक शहीद हईं | बभूत क एक फुक्क इन डंगरियों-जगरियों और तांत्रिकों मुसर्रफ पर मारण चैंछी ताकि वीकि बुद्धि ठीक है जानि |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
०७.०४.२०१६

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
बिरखांत-७९ : ‘जागर’ उपन्यास का नाट्यमंचन

     वर्ष १९९५ में हिंदी अकादमी दिल्ली के सौजन्य से प्रकाशित मेरा उपन्यास ‘जागर’ का १० अप्रैल २०१६ को प्यारे लाल भवन आई टी ओ नई दिल्ली के सभागार में ‘ कलश कलाश्री’ के करीब दो दर्जन रंगकर्मियों द्वारा खिमदा (के एन पाण्डेय) और अखिलेश भट्ट के निर्देशन में मंचन हुआ | डेड़ घंटे के इस मंचन का  साक्षी था वह सभागार जो कला-प्रेमियों और साहित्य -प्रेमियों से खचाखच भरा था | छै सौ पच्चीस सीटों वाले इस सभागार में साहित्यकार, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, कवि, पत्रकार, कलाकार, रंगकर्मी, राजनीतिज्ञ सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे | सुप्रसिद्ध साहित्यकार बल्लभ डोभाल, डा. हरिसुमन बिष्ट, राजनेता हरीश अवस्थी, पत्रकार देव सिंह रावत, चारु तिवारी, डा. पवन मैठानी सहित कई नामचीन व्यक्ति वहाँ मौजूद थे | कई गणमान्य व्यक्तियों का नाम नहीं जोड़ पाने के लिए क्षमनीय हूँ | मैं सभी विभूतियों एवं सभागार में मौजूद सभी दर्शकों का आभार व्यक्त करता हूँ जो इस जिज्ञासा के साथ वहाँ आये थे  कि आखिर लेखक ने ‘जागर’ उपन्यास में क्या कहना चाहा है ?

     ‘जागर’ उपन्यास की रचना के अंकुर १९७१ के भारत-पाक युद्ध के दौरान जमीन के अन्दर बंकर में फूटे जब यह लेखक मात्र तेईस वर्ष का था | उपन्यास की कुछ कड़ियाँ १६ दिसंबर १९७१ को युद्ध समाप्ति के बाद, बंकर में जब भी समय मिलता कागज़ की कुछ कतरनों में लिख लेता था | यात्रा जारी रही और लगभग चार वर्ष में यह उपन्यास पूरा हुआ | १९७५ से १९७५ तक बीस वर्ष यह हस्तिलिपि मेरे बक्से में बंद रही | कई प्रकाशकों के पास गया, सबने छापने के लिए धन मांगा जो मेरे पास नहीं था | १९९४ में समाचार पत्र के एक विज्ञापन को देखकर मैंने इसे टाइप करवाया और हिंदी अकादमी में जमा करवा दिया | यह वह समय था जब मैंने पहली बार हिंदी अकादमी देखी | कुछ महीनों बाद मुझे एक रजिस्टर्ड पत्र मिला जिसमें लिखा था कि अकादमी स्वयं इस उपन्यास को छापना चाहती है | इस तरह १९९५ में हिंदी अकादमी के सौजन्य से यह उपन्यास छप गया |

      उपन्यास छपते ही वही हुआ जिसकी आशंका थी | मसाण उद्योग वाले एवं सभी अन्धविश्वास के पोषक मेरे विरोधी बन गए और जंहाँ- तहां मुझे प्रताड़ित करने लगे | मुझे और मेरे परिवार को इससे बहुत पीड़ा हुयी | ऐसी बात नहीं, बहुत लोग मेरे साथ भी थे जिनमें मेरी पत्नी भी थी | एक संस्था ने इस पूरे विवरण को ‘राष्ट्रीय सहारा’ दैनिक समाचार पत्र में छपवा दिया | ३० अगस्त २००४ को इस अखबार द्वारा मुझे मंदिरों में पशुबलि एवं समाज में अन्धविश्वास का खुलकर कर विरोध करने पर ‘आज का प्रेरक व्यक्तित्व’ सम्मान से सम्मानित किया गया |

     अंधविश्वास एक कैंसर की तरह का रोग है जिसकी समाज में गहरी जड़ है| आज मेरे जैसे हजारों-लाखों लोग इस कैंसर के विरोध में आवाज उठाते रहते हैं | शिक्षा के दीप से अब लोग इस मकड़जाल को समझने भी लगे हैं | यह उपन्यास ‘प्यारा उत्तराखंड’ (संपादक देव सिंह रावत) अखबार में कुछ वर्ष पहले किस्तवार छप भी चुका है | १० अप्रैल २०१६ को इस नाटक को देखने के बाद देव सिंह रावत की टिप्पणी, “यह नाटक एक श्रेष्ठ और प्रेरणादायक पहल है|” डा. पवन मैठानी के अनुसार, “खिमदा की टीम ने नाटक की आत्मा अर्थात उद्देश्य को सार्थक कर दिया |” सोसल मीडिया में इस पर बहुत सार्थक प्रतिक्रिया हुयी है |

     ‘जागर’ के नाट्यमंचन के दो दर्जन कलाकारों के श्रम और कला का मैं  हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ | इन कलाकारों ने गीता, रानी, शंकर की मां, चनिका की घरवाली, सेरी पुछारिन, बंसीधर की घरवाली, डाक्टर, शंकर, रवि, गोपीचंद, चनिका, शास्त्री जी, कलुवा, भगुवा, दौलतिया, बंसीधर, जोरावर, गावं की औरतें, बच्चे और बड़े सहित सभी किरदारों को जीवंत कर दिया और सभागार में खूब तालियाँ बटोरी | सभागार में बैठी उस दौर की ‘गीता’ यह सब देख कर नाटक की गीता, रानी और गीता की सास के अभिनय से भावविभोर हो गई | कुल मिलाकर इन सभी कलाकारों ने खिमदा और अखिलेश भट्ट के निर्देशन में ‘जागर’ उपन्यास उन लोगों तक भी पहुंचा दिया जिन्होंने अब तक उपन्यास नहीं पढ़ा था | नाटक के पीछे सभी अदृश्य हाथों एवं संगीत निर्देशक वीरेन्द्र नेगी, प्रकाश प्रबन्धन तथा गायक कलाकारों  ने भी उम्दा कार्य करके इस मंचन में चार चाँद लगाये | आप सभी को दिल की गहराइयों से साधुवाद | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ‘जागर’ उपन्यास का लेखक   
११.०४.2016

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                 भारत रत्न डा. बी आर अम्बेडकर

         मेरी पुस्तक ‘महामनखी’ में ८ नोबेल पुरस्कृत, २१ परमवीर चक्र, ६६ अशोक चक्र विजेताओं के साथ ४५ भारत रत्नों की भी लघु चर्चा है |  भारत रत्न क्रम २२ में बाबा साहेब के बारे में निम्न शब्द उद्धृत हैं –

      डा. भीमराव रामजी अम्बेडकर (बाबा साहेब) का जन्म महू, मध्य प्रदेश में १४ अप्रैल १८९१ को एक दलित परिवार में हुआ | उनकी पिता का नाम रामजी मालोजी और माता का नाम भीमाबाई था | वे अपने माता- पिता की चौदहवीं एवं सबसे छोटी संतान थे | १६ वर्ष की उम्र में रमाबाई से उनका विवाह हुआ | उनकी शिक्षा मुंबई विश्वविद्यालय, कोलंबिया विश्वविद्यालय, लन्दन विश्वविद्यालय और लन्दन स्कूल आफ इकोनोमिक्स में हुयी | वे एक प्रवक्ता, अर्थशास्त्री, वकील, समाज सुधारक और राजनीतिज्ञ थे | उन्होंने दलितों. महिलाओं एवं मजदूरों के साथ होने वाले सामाजिक भेदभाव का विरोध किया | उन्होंने छुआछूत और अन्धविश्वास के विरोध में भी आवाज उठायी | वे नेहरू कबीनेट में देश के प्रथम क़ानून मंत्री थे | वे संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष भी थे | उन्होंने १९४८ में डा. शारदा कबीर से दूसरी शादी की | १४ अक्टूबर १९५६ को उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया | ६ दिसंबर १९५६ को ६५ वर्ष की उम्र में उनका देहावसान हो गया  | वर्ष १९९० में उन्हें मरणोपरांत देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ प्रदान किया गया |

पूरन चन्द्र कांडपाल,
१४ अप्रैल २०१६ 

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
                                                                             दिल्ली बे चिठ्ठी ऐ रै
 
                                                            आशा कि हिम्मत और भोजन माता क कंकाव
 
      ३० मार्च २०१६ हुणि उत्तराखंड गोयूं | दिल्ली बै काकड़ी घाट तक रात कि बस मिली गेछी | रात क करीब तीन बजिय क टैम छी | बस हल्द्वानी, काठगोदाम, भीमताल, भवाली, कैंची होते हुए अचनाक गरमपानी और खैरना क बीच में रुकि गे | हाफन- हाफनै एक करीब २५- ३० वर्ष के स्यैणि बस में घुसी | निनान कंडक्टर ल पुछौ, “यतू रात स्यैणि जात, को छै तू ! यतू रात कै य अन्यारपट में यां क्ये करैं रैछी ? कां बै औं रई, कां जां रई ?” मी सामणी वाइ सीट में भैटि भैटए ऊंघै रय | उ कड़क आवाज में बलै, “स्यैणि छ्यूं, ये वजैल यतू सवाल दगड़ै पुछीं तुमुल |  डरो ना, भूत नि छ्यू, आशा छ्यूं आशा | छाड़ गौ जां रयूं | एक स्यैणि संती रैछ, फौन ऐ रौ, जल्दी है जल्दी पुजण छ वां | अघिल छाड़ जाणी मोड़ पर उतार दिया | य ल्यो, टिकट दि दियो |” वील पैंस देईं और टिकट ल्ही बेर बटु में धरौ |
 
       कंडक्टर भौचकी बेर बला, “यतू रात यकलै डर नि लागनी ?” स्यैणि ल तड़क जबाब दे, “ डर क्ये बातै कि ? नि जूलौ त उ मरि जालि | डर जूल त जै लै नि सकूं | जाणे पडूं | तुम मरद लोग क्ये जाण छा य पीड़ कैं | रोकि द्यो बस | यती कैं उतारि द्यो |” उ बस में बै फटाफटी उतरी और फाव मारनै न्हैगे | मी ल भ्यार चा | उ घुप्प अन्यार में जंगव भरी उकाव बाट में लमालमी जां रई | उकैं गुलदाड़ या कुकुरी बाघ क डर लै नि हय | मील वीक हाथ नै दातुलि देखि और न जांठी या लाकड़ | आशा (ऐक्रेडिटेड सोसियल हैल्थ एक्टिविस्ट- ASHA) त्येरि हिम्मत, जज्ब, जुझारूपन, निडरता, नारीत्व और सामाजिकता कैं म्येरि य चिठ्ठी समर्पित छ | मी हिनौव खनै बस में भैटि- भैटिये सोचें रय, को छ ताकताबर ? आशा रूपी य स्यैणि या रात क अन्यार में कैकी चीख- पुकार सुणि बेर लै भ्यार नि औणी उ आदिम जै हुणि आशा मरद कूं रै छी ?
 
 
      ३१ मार्च २०१६ धोपरी क टैम पर जीप कि इन्तजार में सड़का निसाव एक दुकाना क बैंच में भैटि-भैटिये बिड़ि पिड़ियाँ कैं देखें रौछी | अचानक द्वि अधेड़ उमरा क स्यैणिय दुकान में आईं और दुकानदार हुणि  बलाय, “ ददा पैलाग |” दुकानदार बलाण, “और क्ये है रईं, ठीक ठाक छा, नौकरी ठीक चलि रै हुनलि ?” एक स्यैणि बलै, “मेरी त ददा ठीक चलि रै, यैकि (दूसरी स्यैणि कि ) ढुंग म छ |” “क्यलै क्ये हौछ ?” दुकानदार बलाय | “चार नान हमार इस्कूल बै छोड़ि बेर पड़ोसा क पब्लिक स्कूल में जाणी छीं ददा | उनार जाते ही एक भोजन माता कि नौकरी डाव लै जालि | ददा २५ नना तली एक भोजन माता हिंछ बल सरकारा क घर बै | चार नना क जाते ही हमार इस्कूल में केवल २४ नान रै जाल | यैकि नौकरी बचूण क लिजी चार नना क इंतजाम करि द्यो ददा कैं बै जनर एड्मिसन हमार इस्कूल में है जो |” दुकानदार बलाय, “मी जै कां बै ल्यूं नान, जब तुमार इस्कूल में मास्टर नना कैं भली-भांत नि पढाला तो या ई हाल ह्वाल |” एक भोजन माता बलै, “ ददा किताब फ्री, मिड डे मील फ्री, वर्दी फ्री, फीस बिलकुल नि हई और आब पढ़ाई लै भली हूँ रै | पब्लिक इस्कूलों  में क्ये लै फ्री नि हय, उल्टा मोटि फीस दीण पड़ीं | फिर लै लोग आपण नना कैं वै ल्ही जां रईं | अंग्रेजी वां लै पढूनी और हमार इस्कूल में लै पढूनी | बस पब्लिक इस्कूल क नाम छ और सरकारी क बदनाम |”
 
 
        यतु में मनखियों ल लदी जीप ऐ गे और मी जसी तसी पिड़ –पिड़ कनै उमें घुसी गोयूं | नि घुसिनौ तो दुसरि जीप अघिल दिन रत्ते नौ बजी औनि | मी सोचें रौछी कि जब सरकारी इस्कूल में सब कुछ फ्री छ  तो लोग पब्लिक इस्कूल में यतू खर्च उठै बेर आपण नना कैं वां क्यलै पढू रईं ? बदनामी क टिक एक ता लागण बाद मुश्किल ल छुटू | क्यलै हईं यूं सरकारि इस्कूल बदनाम ? य बदनामी लिजी हमर तंत्र, मास्टर सैब, नान और उनार मै- बाप सब जिम्मेदार छीं | मी कैं बाद में पत् चलौ कि उ भोजन माता कि नौकरी नि बचि | तब बटि मी उदास छ्यूं | आब कसिक जगल वीक चुल में भनेर ?
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल  रोहिणी दिल्ली
 १४.४.१६

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22