बिरखांत -१२६ :हिन्द के सैनिक तुझे प्रणाम ०६.१०.२०१६
यह कविता रूपी ‘बिरखांत’ अपने देश के सैनिकों को समर्पित है जो अपनी कर्तव्यपरायणता, कर्तव्यनिष्ठा, बहादुरी, आत्म –बलिदान, अद्वितीय शौर्य और देशप्रेम के लिए स्वदेश में ही नहीं, दुश्मनों के खेमे में भी चर्चित है-
हिन्द के सैनिक तुझे प्रणाम, सारी मही में तेरा नाम,
दुश्मन के गलियारे में भी, होती तेरी चर्चा आम |
गुरखा सिक्ख बिहारी कहीं तू, कहीं तू जाट पंजाबी,
कहीं कुमाउनी कहीं गढ़वाली, कहीं मराठा मद्रासी |
कहीं राजपूत डोगरा है तू, कहीं महार कहीं नागा,
शौर्य से तेरे कांपे दुश्मन, पीठ दिखाकर भागा |
नहीं हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, तू है हिन्दुस्तानी,
मातृभूमि पर मर मिट जाए, ऐसा अमर सेनानी |
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, चाहे जिस कोने का वासी,
रग में तेरे हिन्द की माटी, तू है निश्च्छल भारतवासी |
वीर शहीदों का सुर्ख लहू, करता तेरे तन में संचार,
राणा शिवाजी लक्ष्मीबाई तेगबहादुर जैसे अपार |
भगतसिंह सुकदेव राजगुरु, सुभाष बोस बिस्मिल अस्पाक,
लाल-बाल-पाल मंगल पण्डे, चन्द्रशेखर की तुझ में राख |
पहरेदार तू मातृभूमि का, जल थल और आकाश में,
बसंत ग्रीष्म वर्षा शरद में, दिवस अंधेरी रात में |
बर्फीला सियाचीन हो या, थार का तप्त मरुस्थल,
नेफा लेह लाद्द्ख कारगिल, रन कच्छ का दलदल |
कई युद्ध लड़े हैं तूने, स्वतंत्रता के बाद में,
सैंतालीस बासठ पैंसठ इकहत्तर, निनानबे के साल में |
दुश्मन परास्त हर बार हुआ, मुंह की उसने खायी,
युद्ध विराम की हाथ जोड़, फरियाद उसने है लगाई |
इकहत्तर के युद्ध में तूने, दुनिया को चौंका ही दिया,
आत्मसमर्पण किया दुश्मन ने, बंग देश ने जन्म लिया |
निनानबे में दुश्मन ने, कारगिल में आ घुसपैठ लगाई,
तोलोलिंग जुबेर टाइगरहिल में, तूने दुश्मन की कब्र बनायी |
कांगो कोरिया कम्बोडिया लेबनान मोजाम्बिक सोमालिया,
बन कर प्रहरी राष्ट्रसंघ का, अमन चैन पैगाम दिया |
विपत्ति पडी पड़ोसी पर तो, जाकर तूने पीड़ हरी,
मालद्वीप श्रीलंका पन्हुन्चकर, निपटाई संकट की घड़ी |
मात- पिता पत्नी बच्चे, रिश्तेदार या घर संसार,
आँख के आगे ये नहीं होते, सामने जब करतब का भार |
सूखा बाड़ भूकम्प दंगा, तुरत प्रकट हो जाता तू,
हर त्रासदी में देश का रक्षक, हर गर्दिश में सखा है तू |
दम निकला तूने आह न की, सीने में गोली खायी,
रखा बुलंद तिरंगा प्यारा, अपनी कसम निभायी |
मृत्यु तो एक दिन सबको आती, राजा रंक हो या योगी,
मातृभूमि पर लहू तिलक हो, यह तो मौत की हार होगी |
मृत्यु से जीत हुयी है तेरी, हरदम गयी वह तुझसे हार,
तेरी जीत के गीत गूजेंगे, जब तक गंगा में जलधार |
तेरी कुर्बानी की यादें, मन में लिए समाये,,
प्रज्ज्वल ‘अमर जवान ज्योति’ पर, मस्तक राष्ट्र झुकाए |
अगली बिरखांत में कुछ और... पूरन चन्द्र काण्डपाल