Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 60450 times)

Pooran Chandra Kandpal

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          किसी ज़माने में उत्तराखंड एक देवभूमि के नाम से जानी जाती थी. आज यह बात बिलकुल बदल गयी है . शिक्षा दर जरूर बढ़ी परन्तु अन्धविश्वास बिलकुल नहीं घटा अपितु बढ़ गया .मंदिरों में पशु बलि खूब हो रही है. शराब और धुम्रपान बढ़ते ही जा रहा है. भ्रष्ठाचार चारों ओर फ़ैल गया है. हाल ही में मैं उत्तराखंड गया. मुझे कई बुजर्गों ने बताया, "कांडपाल जी उत्तराखंड अब देवभूमि नहीं रहा. ये अब अन्धविश्वास भूमि, शराबभूमि, धुम्रपान भूमि बन गया है. परदेश गए पढ़े लिखे लोग जब छुट्टी मनाने यहाँ आते हैं तो वे भी जागर ,मशान, हंकार,भूत आदि के चक्करों में मंदिरों को लहूलुहान करते हुए खूब बकरियां काटते हैं. विरोध करने के बजाय अन्धविश्वास में शामिल होना अच्छी बात नहीं है.पूजा करने का यह कौन सा तरीका है जो पशुओं का खून बहाया जाता है.यह सब कुछ लोंगो ने अपने खाने पीने का धंधा बना रखा है. इस पूजा में अब तो शराब भी मगाई जाने लगी है. " मैं इस कालम के माध्यम से सभी से अनुरोध करना चाहूँगा कि आप चाहें तो मांश खाएं परन्तु भगवन की पूजा के नाम पर पशु बलि न दें. पूजा तो हाथ जोड़कर ही हो जाती है. बलि पर खर्च होने वाले धन को अपने आसपडोस के स्कूल में चटाई,दरी,या पानी की व्यवस्था पर खर्च करें.या गाँव में एक पुस्तकालय की व्यवस्था करने का प्रयास करें.या गरीब बच्चों को पाठ्य सामग्री उपलब्ध करादें. इस से बढ़ कर पूजा और क्या हो सकती है. देवभूमि के बारे  तो करते हैं परन्तु यह सत्य है. जमीन में जाकर देखें आप को  वास्तविकता नजर आएगी. 
 

Pooran Chandra Kandpal

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खुद का सञ्चालन

कर खुद अपना सञ्चालन तू
कर उर से अपना मंथन तू.

तू  किसके भरोसे बैठा है
क्यों अपनी जिद पर ऐठा है
खुद को तो पहचान जरा
बैठ कर्म के आसन तू.

जिस दिन विश्वास तेरा जागेगा
तुझे देख अँधेरा भागेगा
विपरीत हवा थम जाएगी
कर नूतन रश्मि आलिंगन तो.
कर खुद अपना सञ्चालन तू.

दरिया की तरह तो बहता चल
बीहड़ में राह बनता चल
भटका रही जो देखे तुझे
कर उसका पथ प्रदर्शन तू.
कर खुद अपना सञ्चालन तू.

तेरी हिम्मत तेरे साथ रहे
विजय पताका तेरे हाथ रहे
दस्तक देता उपहार लिए
कर नव प्रभात अभिनन्दन तू.
कर खुद अपना सञ्चालन तू.

पूरन चन्द्र कांडपाल
१२ जुलाई २०१०

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Ati Sundar Sir.

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खुद का सञ्चालन

कर खुद अपना सञ्चालन तू
कर उर से अपना मंथन तू.

तू  किसके भरोसे बैठा है
क्यों अपनी जिद पर ऐठा है
खुद को तो पहचान जरा
बैठ कर्म के आसन तू.

जिस दिन विश्वास तेरा जागेगा
तुझे देख अँधेरा भागेगा
विपरीत हवा थम जाएगी
कर नूतन रश्मि आलिंगन तो.
कर खुद अपना सञ्चालन तू.

दरिया की तरह तो बहता चल
बीहड़ में राह बनता चल
भटका रही जो देखे तुझे
कर उसका पथ प्रदर्शन तू.
कर खुद अपना सञ्चालन तू.

तेरी हिम्मत तेरे साथ रहे
विजय पताका तेरे हाथ रहे
दस्तक देता उपहार लिए
कर नव प्रभात अभिनन्दन तू.
कर खुद अपना सञ्चालन तू.

पूरन चन्द्र कांडपाल
१२ जुलाई २०१०


Pooran Chandra Kandpal

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हरेला - वृक्षारोपण 

तूने मेरे पर्वतों को खोद कर झुका दिया
बर्फीली चोटियों को हीन हिम से कर दिया,
दिनोदिन मेरे शिखर का रूप बिखरने है लगा
निहारने निराली छटा जन तरसने है लगा.

चीर कर तन तूने मेरा  रंग हरित उड़ा दिया
कर अगिनत घाव तन पर श्रृंगार है छुड़ा दिया,
तरुस्थल को मेरे तूने मरुस्थल है बना दिया
जल जंगल जमीन खजाना सारा दोहन कर दिया.

चाहता मानव के पग बढ़ते रहें जहान में
रंग-रूपहली वसुंधरा न बदले कभी वीरान में,
पर्यावरण की पर्त को संभाल उठ तू जागकर
कर न देरी पग बढा वृक्षारोपण आजकर.

चाहता तू जी सके इस धरा में अमन चैन से
वृक्ष बंधु मान ले लगा ले अपने नैन से,
कोटि पुण्य पा जायेगा एक वृक्ष के जमाव से
स्वच्छ पर्यावरण में फिर जी सकेगा चाव से.

पूरन चन्द्र कांडपाल
हरेला -१६.०७.२०१०


Pooran Chandra Kandpal

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छिपकली की मौत 

   मिड डे मील
   खिचड़ी में छिपकली
   बच्चे बीमार
   किचन सील.

     बैठी इंक्वारी
   बदला ठेकेदार
   किचन चालू
   बदले नहीं हाल
   वही चाल ढाल.

     फिर चालू मिड डे मील
   फिर गिरेगी वो
   फिर बच्चे बीमार
   फिर लगेगी सील
   वही खाल वही जाल.

      कमीशन देने में
   जब भी होगी देरी
   या हटेगा ध्यान
   समझो एक छिपकली
   फिर हो गयी कुर्बान.
             *****
   पूरन चन्द्र कांडपाल
   ३० जुलाई  २०१० 

Pooran Chandra Kandpal

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चार कवितायेँ

(१) सभा
प्रश्नकाल                                                        (२) पुलिश
कैसा काल!                                                        सरेआम
कभी पूछने वाला नहीं                                       कैसा काम
कभी बताने वाला नहीं                                       इतना बदनाम
कभी सभा स्थगित                                             फिर भी तुम्हारे पास         
कभी वक आउट                                                 लेकर आस
कभी ठप्प                                                           बताया त्रास       
कभी हंगामा                                                        परन्तु निराश
कभी मार्शल                                                         मिटा विश्वास     
कैसा परिवेश !                                                     काश! मिटे दाग
हे मेरे देश !                                                         मरे छिपा नाग
क्या यही है काम?                                                 बहे कर्म फाग
अब लगाओ विराम.                                               जाग! वर्दी जाग.   



                                                                        (४) कन्यादान
(३)संस्कारी बहू
                                                                            परायाधन
सबकी सेवा कर                                                    सिर का बोझ
काम से मत डर                                                    पराये धन का
सुबह जल्दी उठ                                                     कन्यादान
रात देर से सो                                                       जब हो गया दान
बोल मत                                                               तो कहाँ रहा
मुंह खोल मत                                                       वजूद और सम्मान   
चुपचाप रो                                                             उधर परायी बेटी
आंसू मत दिखा                                                      इधर परित्यक्ता   
सिसकी मत सुना                                                   आह! खो गयी
सहना सीख                                                           पहचान.
न निकले चीख                                                           ****
जब सबका
हुकम बजाएगी
सेवा टहल लगाएगी
घर आँगन सजाएगी
तब संस्कारी बहू कहलाएगी .
              ******
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बहुत अच्छा लिखा है कांडपाल जी.. बहुत -२ धन्यवाद.

आशा है लोग पसंद कर रहे होंगे ! आपकी लेखनी में विशेषता है !

Pooran Chandra Kandpal

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स्वतंत्रता दिवस (१५ अगस्त )

पंद्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालिस
दिवस भारत का प्यारा है,
इस दिन मिली आज़ादी हमको
यह क्षण अपूरब न्यारा है.

सदियों रहे गुलाम स्वदेश में
अत्याचार दिन रात सहे,
कैद हो गए अपने घर में
स्वतंत्रता की कौन कहे.

छोटे छोटे राज्य यहाँ पर
सदा आपस में भिड़ते थे,
अस्तित्व मिटाने एक दूजे का
आपस  में सब लड़ते थे.

नहीं एकता थी परस्पर
अलग-अलग ढपली सबकी ,
देख हमारी फूट आपसी
नज़र फिरंगी की चमकी.

हुए अत्याचार जब निरंतर
बांध सब्र का टूट गया,
 शुरू हो गया जन आन्दोलन
घुटता साहस फूट गया.

भड़क उठा संग्राम स्वतंत्रता
सभी युद्ध में कूद गए,
जेलों की परवाह नहीं की
फांसी का फंदा चूम गए.

हिंसा नहीं भायी बापू को
आन्दोलन असहयोग किया,
'भारत छोड़ो' नारा देकर
अवज्ञा का उपयोग किया.

साम्राज्यवाद का तख़्त हिल गया
अहिंसा की जीत हुयी,
समझ गया आक्रान्ता गोरा
नहीं भारतवासी छुईमुई.

गए फिरंगी मिली आज़ादी
अगिनत शहादत देने पर,
खून बहाया लड़ी लड़ाई
हुंकारा भारत घर - घर.

दस्ता की कटी बेड़ियाँ
राष्ट्र नांद उदघोष हुआ ,
'वन्देमातरम' का स्वर गूँजा
जन-गन-मन जयघोष हुआ.

फहराया भारतीय तिरंगा
दिल्ली के लालकिले पर,
बोला अर्थ स्वतंत्रता का समझो
रहो आपस में मिलजुल कर.

बनी रहे ह्रदय में हमारे
वीर शहीदों की कहानी ये,
रहे स्वतंत्रता अमर हमारी
कथा नहीं बिसरानी ये.

पूरन चन्द्र कांडपाल (स्वतंत्रता दिवस २०१०)

Pooran Chandra Kandpal

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दम निकला तुने आह न की
सीने   में  गोली  खाई,
रखा बुलंद तिरंगा प्यारा
अपनी कसम   निभायी.

मृत्यु तो एक दिन सब को आती
रजा रंक हो या योगी,
मातृभूमि पर लहू तिलक हो
यह तो मौत की हार होगी.

तेरी   कुर्बानी     के चर्चे
मन   में   लिए   समाये ,
प्रज्ज्वल अमर जवान ज्योति पर
मस्तक   राष्ट्र   झुकाए.

हिंद के सैनिक तुझे प्रणाम
सारी महीं में तेरा नाम,
दुश्मन के गलियारे में भी
होती तेरी   चर्चा  आम.

६४वे स्वतंत्रता दिवस पर सैन्य स्मरण
तथा शहीदों को श्रधांजलि .

पूरन चन्द्र कांडपाल 


Pooran Chandra Kandpal

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गढ़वाल भवन में १५ अगस्त पूर्व संध्या
कविता के कुछ अंश

नेताओं ल  ध्वक दे राजधानी देहरादून अटिकी रै
उत्तराखंडियो क  मन में य बात खटिकी रै
करो हिम्मत द्वि हजार बार में गैरसैण लगौ गस्त
वें जै बेर मनुन ह्वल ऊ साल क पन्द्र अगस्त.

उत्तराखंड में आब saini ली हैगीं शराबक ठेकदार
माफियों दगे मिली रीं भल  चल रौ रुजगार
कच्ची पक्की इंग्लिश प्येऊ  रईं सब छीं मस्त
कैकं छ होश को मनुरौ आजा क दिन   पन्द्र अगस्त.

अरे ओ  लेखक कवियों गीतकार साहित्यकारों
अरे ओ देशाक पहरेदारो  उन कुणा  में जाणी पत्रकारों
उठो कमर कसो अघिल बड़ो तुम निहौ पस्त 
क्वे मनौ  नि  मनौ तुम जरूर मनौ पन्द्र अगस्त.

पूरन चन्द्र कांडपाल , १५ अगस्त 2010


 

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