स्वतंत्रता दिवस (१५ अगस्त )
पंद्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालिस
दिवस भारत का प्यारा है,
इस दिन मिली आज़ादी हमको
यह क्षण अपूरब न्यारा है.
सदियों रहे गुलाम स्वदेश में
अत्याचार दिन रात सहे,
कैद हो गए अपने घर में
स्वतंत्रता की कौन कहे.
छोटे छोटे राज्य यहाँ पर
सदा आपस में भिड़ते थे,
अस्तित्व मिटाने एक दूजे का
आपस में सब लड़ते थे.
नहीं एकता थी परस्पर
अलग-अलग ढपली सबकी ,
देख हमारी फूट आपसी
नज़र फिरंगी की चमकी.
हुए अत्याचार जब निरंतर
बांध सब्र का टूट गया,
शुरू हो गया जन आन्दोलन
घुटता साहस फूट गया.
भड़क उठा संग्राम स्वतंत्रता
सभी युद्ध में कूद गए,
जेलों की परवाह नहीं की
फांसी का फंदा चूम गए.
हिंसा नहीं भायी बापू को
आन्दोलन असहयोग किया,
'भारत छोड़ो' नारा देकर
अवज्ञा का उपयोग किया.
साम्राज्यवाद का तख़्त हिल गया
अहिंसा की जीत हुयी,
समझ गया आक्रान्ता गोरा
नहीं भारतवासी छुईमुई.
गए फिरंगी मिली आज़ादी
अगिनत शहादत देने पर,
खून बहाया लड़ी लड़ाई
हुंकारा भारत घर - घर.
दस्ता की कटी बेड़ियाँ
राष्ट्र नांद उदघोष हुआ ,
'वन्देमातरम' का स्वर गूँजा
जन-गन-मन जयघोष हुआ.
फहराया भारतीय तिरंगा
दिल्ली के लालकिले पर,
बोला अर्थ स्वतंत्रता का समझो
रहो आपस में मिलजुल कर.
बनी रहे ह्रदय में हमारे
वीर शहीदों की कहानी ये,
रहे स्वतंत्रता अमर हमारी
कथा नहीं बिसरानी ये.
पूरन चन्द्र कांडपाल (स्वतंत्रता दिवस २०१०)