दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै
युद्ध एक त्रासदी ,०१.१२.२०१६
क्वे लै द्वि देशों क बीच में कुल मिलै बेर युद्ध एक त्रासदी छ | सेना क कर्तव्य आपण देशों कि सीमाओं कि रक्षा करण छ और य पवित्र काम क लिजी ऊँ आपण बलिदान लै देते औंरै | यूं शहीदों कैं याद करण देश क पैल कर्तव्य छ | आपण रणबांकुरों कि शौर्य- पराक्रम कि गाथाओं कैं नि भुलण देशवासियों क दायित्व छ | बुद्धिजीवियों क मानण छ कि लोगों कि याददास्त य मामुल में भौत कम हिंछ | पैल और दुसर विश्व युद्ध क शहीद त छोड़ो य कौण कठिन छ कि कतु लोग आजादी क बाद लड़ी गयी वर्ष १९४७-४८, १९६२, १९६५, १९७१, सियाचीन, श्रीलंका, कारगिल युद्ध १९९९ और १९८९ बटिक कश्मीर छद्म युद्ध क शहीदों, घायलों और अपंगों कैं याद करनी ?
कारगिल युद्ध में द्विये देशों, भारत और पाकिस्तान क लगभग एक हजार द्वि सौ है ज्यादै सैनिक शहीद हईं | घैल और अपंगों कि संख्या लै भौत ज्यादै छ | यूं सैनिकों में मैंस, बौज्यू, च्यल और भै सबै रिश्त छी | युद्ध में प्यार-प्रेमा का यूं सबै रिश्त मुर्झे जानी, ख़तम है जानी | यूं सबै रिश्त कएक परिवारों बटि यूं युद्धों में झटकी गयीं | आपण परिवारों क खुशि, उम्मीद और भरौस सब कुछ छी यूं सैनिक | युद्ध ल यूं परिवारों कैं दुःख और दर्द क काव सिमार में हमेशा- हमेशा के लिजी डुबै दे | सैनिक आपण कर्तव्य पथ बै कभै लै पिछाड़ि नि हटन | उ आपणि मातृभूमि पर मर मिटणी अमर सेनानी हुंछ पर मानवता कि दृष्टि ल सोची जो तो हरेक सिपाइ और वीक परिवार य यी चाल कि युद्ध नि हो | विवादों कैं बातचीत क जरियै ल शांति क साथ सुलझै लियी जो | उसी लै इतिहास साक्षी छ कि आज तक जतू लै युद्ध हईं, युद्ध में भिड़णी देशों में बातचीत कै जरियै ल शांति हैछ, युद्ध ल केवल त्रासदी और विनाश हाथ लागौ |
युद्धों ल देशों क आर्थिक विकास रुकि जांछ | जो धन गरीबी- भुकमरी मिटूण, शिक्षा- स्वास्थ्य सहित दुसार विकास कार्यों में लागण चैंछ उ युद्ध कि विभीषिका में स्वाहा है जांछ और युद्ध ल देश पर अपंगों क जमघट लै लैजांछ | अपंग सैनिक जिन्दगी भर रघोड़ी- रघोड़ी बेर आपण जीवन क ब्वज कैं झेलूं | उ न चाहते हुए लै सहानुभूति और दया क पात्र बन जांछ | युद्धों में सैनिकों क अलावा नागरिक लै मारी जानीं | युद्ध क्षेत्र में रौणी नान- ठुल, मनखीमात्र, जीव-जंतु, चाड़- पिटूंग सहित सबै जीव मरि जानी या घैल है जानी | वांक पर्यावरण, वन सम्पदा, प्राकृतिक सौन्दर्य, भू-संरचना सब कुछ नष्ट है जींछ | कारगिल युद्ध में भी हजारों टन गोला-बारूद क धमैक हौछ जैल उ क्षेत्र क ह्यूं लै दूषित है गोय जैक बार में बाद में रिपोर्ट पत्र-पत्रिकाओं में छपी |
युद्ध क दौरान एक ठुलि मानवीय समस्या शरणार्थियों क रूप में ऐंछ | सीरिया क दर्दनाक उदाहरण हमार सामणी छ | युद्ध कि सबू है ठुलि त्रासदी हिंछ देश पर अचानक और बेकारक आर्थिक बोझ | युद्ध कि क्षतिपूर्ति विकास कार्यों पर खर्च हुणी धन ल करी जैंछ या जनता पर कर लगै बेर धन इक्कठ करी जांछ | युद्ध क दौरान शहीदों, घायलों और अपंगों पर खर्च बढ़ि जांछ | नईं साजो सामान, गोला-बारूद, हथियार खरीदण सहित यूं सबू क रख-रखाव क खर्च लै अलग से सहन करण पडूं | युद्ध में उलझी दुसर देश पर लै खर्च क ब्वज क्रमशः यसिकै पडू |
भारत ल हमेशा एक जिम्मेदार पड़ोसी क चार रौण क भल प्रयास करौ | एक ठुल भै क चार हमेशा संयम और सौहार्द क परिचय दे | पाकिस्तान क उल-जलूल, बदलणी -फिसलणी, गैरजिम्मेदार बयानों पर सहिष्णुता दिखै जबकि युद्ध कि शुरुआत हमेशा पाकिस्तान कि तरफ बटि हैछ | घुसपैठिय भेजि बेर वील हमार पुठ में छुर घोपौ | अगर पकिस्तान एक बार फिर विश्वास क वातावरण बनौ, वास्तविकता कै समझो, आतंकवादियों कि मदद नि करो, छद्म युद्ध बंद करो तो द्विये देशो में स्थाई शांति है सकीं | देर-सबेर एक न एक दिन यूं द्विये अणुशक्ति संपन्न स्वतंत्र देशों कैं मिलि-ठि बेर, भूतकाल कि कटुता कैं भुलनै सह-अस्तित्व क लिजी समझौता करण पड़ल तबै दक्षिण एशिया में युद्ध क मंडराणी बादल हमेशा के लिजी छंट सकनीं |
पूरन चन्द्र कांडपाल, ०१.१२.२०१६