Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 60458 times)

Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत-१३२ : राजधानी की हवा में जहर

     ३० अक्टूबर २०१६ दीपावली की पूरी रात राजधानी में अंधाधुंध आतिशबाजी हुयी | उच्चतम न्यायालय के रात १० बजे के बाद पटाखे नहीं जलाने के कानून की जमकर अवहेलना हुयी | ३१ अक्टूबर की सुबह से राजधानी में प्रदूषण की धुंध छा गयी | कुछ जगहों पर तो सामान्य से ५ गुना से लेकर १६ गुना तक हवा में जहर घुल गया | इस जहर को पी एम १० एवं पी एम १.० अर्थात रेस्पायरेबल पार्टिकुलेट मैटर के नाम से भी जाना जता है | प्रदूषण के इन सूक्षम कणों का साइज १० माइक्रोमीटर होता है | ये कण ठोस या तरल रूप में वातावरण में होते हैं जो बहुत खतरनाक होते हैं जिनसे कई घातक बीमारियाँ पनप सकती हैं |

     देश की राजधानी में वायु प्रदूषण के कई कारण हैं | यहाँ सबसे अधिक प्रदूषण सड़कों की धूल से होता है | उद्योगों से भी बहुत प्रदूषण होता है तथा जहां- तहां कूड़ा जलने सहित वाहनों के धुएं से भी प्रदूषण होता है | इसके अलावा भवन निर्माण से उड़ने वाली धूल भी प्रदूषण का एक कारण है | इस बीच राजधानी के पड़ोसी राज्यों- हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर धान की पराली जलायी गयी जिससे घना धुंआ राजधानी में छा गया | देश के ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पंजाब सहित इन राज्यों में पराली जलाए जाने पर पाबंदी लगा रखी है परन्तु पटाखों की तरह पराली भी खूब जलायी  गयी और न्यायालय के आदेश की अनदेखी हुयी |

     कुछ लोगों ने इस मानव जनित स्वास्थ्य समस्या को समझने का प्रयास भी किया है | राजधानी में प्रदूषण के खतरनाक स्तर को देखते हुए दिल्ली गुरद्वारा कमिटी ने पर्यावरण को बचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाया है | उन्होंने प्रकाश पर्व १४ नवम्बर २०१६ को नगर कीर्तन के दौरान आतिशबाजी नहीं करने का फैसला लिया है | साथ ही इस संस्था ने मास्क वितरित करने का भी प्रस्ताव किया है और बच्चों के माध्यम से हस्त प्ले कार्ड से जनजागृति करने का बीड़ा भी उठाया है | समाज को इस संस्था से प्रेरणा लेनी चाहिए और त्यौहारों पर आतिशबाजी नहीं करनी चाहिए |

     इस ज्वलंत स्वास्थ्य समस्या को देखकर भारतीय चिकित्सा परिषद् (आई एम ए ) ने जनता से अपील की है की लोग स्वयं इस समस्या से निबटने में सहयोग करें | हम इस धुएं के गुबार से मुक्ति पा सकते हैं यदि हम प्रदूषण कम होने तक धूप- अगरबत्ती न जलायें,( धूप में अक्सर चारकोल और अगरबती में रसायन मिलाई जाती है ) कूड़ा न जलाएं, दाह संस्कार में जहां संभव हो सके सी एन जी फर्नेश का उपयोग करें, धूम्रपान न करें और मिट्टी तेल का प्रयोग न करें | हमें अपने सुकुमार छोटे –छोटे बच्चों के स्वास्थ्य के लिए ये सभी कदम उठाने ही होंगे अन्यथा वे प्रदूषण जनित रोगों के शिकार हो सकते हैं | राजधानी को ३० अक्टूबर दीपावली के दिन से आज ११ नवम्बर तक धुएं की चादर और स्मौग से मुक्ति नहीं मिली है | हमने अपना जीना खुद ही दूभर कर दिया | कुछ तो सबक सीखना होगा | जब जागो तब सबेरा | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ११.११.२०१६ 

Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत-१३३ : आठवां राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन-२०१६,अल्मोड़ा (उत्तराखंड )

       कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति, कसारदेवी, अल्मोड़ा (उत्तराखंड) एवं ‘पहरु’ कुमाउनी मासिक पत्रिका, अल्मोड़ा द्वारा आठवां राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन दिनांक १२, १३ व १४ नवम्बर २०१६ को जिला पंचायत सभागार, धारानौला, अल्मोड़ा में आयोजित किया गया | इस सम्मेलन में देश की राजधानी दिल्ली सहित पूरे उत्तराखंड के लगभग दो सौ कुमाउनी प्रेमियों एवं साहित्कारों ने भाग लिया | इस तीन दिन के सम्मेलन में उत्तराखंड विधान सभा के अध्यक्ष श्री गोविंद सिंह कुंजवाल सहित कई गणमान्य व्यक्तियों की गरिमामय उपस्थिति हुयी |

      उक्त संस्थाओं द्वारा वर्ष २००९ से लगातार सम्मेलन आयोजित किया जाता है | इस सम्मेलन में भी पिछले सात सम्मेलनों की तरह उत्तराखंड की मुख्य भाषा कुमाउनी और गढ़वाली को संविधान के आठवीं अनुसूची में जोड़ने, स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में इन भाषाओं को सम्मिलित करने की बात हुयी | सम्मेलन में लगभग दो दर्जन वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किये जिनमें प्रमुख थे सर्वश्री तारा चन्द त्रिपाठी, डा. शमशेर शिंह बिष्ट, जुगल किशोर पेटशाली, श्रीमती देवकी महारा, प्रयाग दत्त जोशी, ब्रिगेडियर डी के जोशी, प्रोफ़ेसर जगत सिंह बिष्ट और आयोजन समिति के सचिव एवं ‘पहरु’ पत्रिका के सम्पादक डा. हयात सिंह रावत | सभी वक्ताओं ने एक स्वर में अपनी भाषाओं को मान्यता की बात बड़ी दृढ़ता से रखी | साथ ही इन भाषाओं की प्राचीनता, इनमें रचे गए साहित्य और साहित्यकारों की चर्चा भी हुयी |

     सम्मेलन में उत्तराखंड सरकार द्वारा हमारी भाषा एवं साहित्यकारों के प्रति दिखाई गयी उदासीनता पर भी प्रहार किया गया | कई वक्ताओं ने सरकार के रुख को भाषा और साहित्य के प्रति यह कहते हुए विमुख बताया कि देहरादून स्तिथ उत्तराखंड भाषा संस्थान बंजर घराटों की तरह सुप्त हो गया है जहां से विगत कई वर्षों से साहित्य सम्बंधी कोई भी गतिविधि नहीं हुयी और न ही साहित्यकारों की कोई खूस- खबर ली गयी | सरकार की साहित्य के प्रति इस निष्ठुरता की खुलकर निंदा की गयी | अल्मोड़ा में उक्त प्रचार समिति एक भवन का निर्माण भी करने का कदम भी उठा चुकी है जिसके नींव पड़ चुकी है और पिलर निर्माण के बाद कार्य रुक गया है | इस विषय पर निवेदन करने पर भी सरकार ने कोरा आश्वासन ही दिया और कोई मदद नहीं की | अपनी भाषा के प्रति उत्साहित आगंतुकों ने इस अवसर पर स्वेच्छा से आर्थिक सहयोग करने का प्रस्ताव भी पास किया जिसके लिए सभागार में ही डेड़ लाख से अधिक राशि का वचन दान प्राप्त हुआ |

     आठ सत्रों के आयोजन में छठां सत्र कुमाउनी कविता पाठ का था जिसमें करीब तीन दर्जन कवियों ने काव्य पाठ कर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया | सम्मेलन में लोक साहित्य, लोकगीत, गायन सहित अन्य विधाओं  पर भी गहन विचार विमर्श हुआ | यह आयोजन सभी के सहयोग से किया गया जिसमें आवास हेतु स्थानीय होटलों ने स्थान उपलब्ध कराया | आयोजन समिति के प्रमुख डा. हयात सिंह रावत जी की पूरी टीम जिसमें सर्वश्री जमन सिंह बिष्ट, नीरज पंत, चन्दन बोरा, रूप सिंह बिष्ट, अजय तिवारी, पवन ठाकुराठी, राजेन्द्र Dhaila आदि ने बड़ी सुमधुरता से आयोजन में सहर्ष श्रम कर आयोजन को पूर्ण रूपेण सफल बनाया |

      इस अवसर पर लगभग तीन दर्जन साहित्यकारों को विभिन्न विधाओं में सम्मानित भी किया गया तथा एक दर्जन से अधिक पुस्तकों का विमोचन भी हुआ | सम्मेलन में तीनों दिन जय नंदा लोक कला केंद्र उत्थान समिति अल्मोड़ा के कलाकरों ने अपनी विशिष्ट प्रस्तुति देकर सत्रों का शुभारम्भ किया | इस टीम के प्रमुख सुप्रसिद्ध ए ग्रेड हुड़का वादक श्री चन्दन बोरा के साथ थे सुश्री लता पांडे, विमला बोरा, शीला, पूरन कुमार और अन्य | इस टीम ने उत्तराखंड की सांस्कृतिक झलक से सभी आगंतुकों का स्वागत किया जिसकी अत्यंत प्रशंसा की गयी | सम्मेलन में कई पत्र- पत्रिकाओं के संपादक और पत्रकार तथा रेडियो स्टेशनों के रिकार्डिस्ट भी उपस्थित थे | इस सफल आयोजन के लिए पूरी टीम को साधुवाद और शुभकामना |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, १६.११.२०१६     

Pooran Chandra Kandpal

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दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

आठूँ राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन-२०१६, अल्माड़

       कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति, कसारदेवी, अल्माड़ (उत्तराखंड) और ‘पहरु’ कुमाउनी मासिक पत्रिका, अल्माड़ द्वारा आठूँ राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन दिनांक १२, १३ व १४ नवम्बर २०१६ हुणि जिला पंचायत सभागार, धारानौला, अल्मोड़ा में आयोजित करिगो | य  सम्मेलन में देश कि राजधानी दिल्ली सहित पुर उत्तराखंड क लगभग द्वि सौ कुमाउनी प्रेमियों और साहित्कारों ल भाग ल्हे | य तीन दिनी सम्मेलन में उत्तराखंड विधान सभा क अध्यक्ष श्री गोविंद सिंह कुंजवाल सहित कएक  गणमान्य व्यक्तियों कि गरिमामय उपस्थिति हैछ |

      उक्त संस्थाओं द्वारा वर्ष २००९ बटि लगातार सम्मेलन आयोजित करी जानौ | य सम्मेलन में लै पिछाडि सात सम्मेलनों कि चार उत्तराखंड कि मुख्य भाषा कुमाउनी और गढ़वाली कैं संविधान क आठूँ अनुसूची में जोड़न, स्कूली शिक्षा क पाठ्यक्रम में यूं भाषाओं कैं शामिल करण कि बात हैछ | सम्मेलन में करीब द्वि दर्जन वक्ताओं ल आपण विचार धरीं जनूमें मुख्य छी  सर्वश्री तारा चन्द त्रिपाठी, डा. शमशेर शिंह बिष्ट, जुगल किशोर पेटशाली, श्रीमती देवकी महारा, प्रयाग दत्त जोशी, ब्रिगेडियर(से नि ) डी के जोशी, प्रोफ़ेसर जगत सिंह बिष्ट और आयोजन समिति क सचिव एवं ‘पहरु’ पत्रिका क सम्पादक डा. हयात सिंह रावत | सबै वक्ताओं ल एक स्वर में आपणी भाषाओं कैं मान्यता कि बात भौत दृढ़ता क साथ धरी | सम्मेलन में हमरि भाषाओं कि प्राचीनता, इनर साहित्य और साहित्यकारों कि चर्चा लै चैछ  |

     सम्मेलन में उत्तराखंड सरकार द्वारा हमरि भाषा और साहित्यकारों क प्रति दिखाई उदासीनता पर लै गुस्स देखण में आछ | कएक वक्ताओं ल  सरकार क रुख कैं भाषा और साहित्य क प्रति य कौनै भल नि बताय कि देहरादून स्तिथ उत्तराखंड भाषा संस्थान बांज घटों कि चार पट्ट भै गो जां पिछाड़ि कएक वर्षों बटि साहित्य सम्बंधी क्वे लै गतिविधि नि है रइ और नै साहित्यकारों कि क्ये खूस- खबर लियी गेइ | सरकार कि साहित्य क प्रति यसि निष्ठुरता कि खुलिबेर निंदा करिगे | अल्माड़ में भाषा प्रचार समिति ल एक भवन क निर्माण लै करण क कदम उठै हैछ जैकि बुनैद लै डाइ है और पिलर बनूंण क बाद काम रुकि गो | य मुद्द में निवेदन करण पर लै सरकार ल क्वर आश्वासन दी बेर पल्ल झाड़ि ल्हे और क्ये लै मदद नि करि | आपणी भाषा क प्रति उत्साहित आगंतुकों ल य मौक पर स्वेच्छा ल आर्थिक सहयोग करण क प्रस्ताव लै पास करौ | प्रस्ताव पास करते ही भवन निर्माण क लिजी सभागार में उभतै डेड़ लाख है ज्यादै राशि क वचन दान प्राप्त हौछ |

     आठ सत्रों क आयोजन में छठूँ सत्र कुमाउनी कविता पाठ क छी जमें  करीब तीन दर्जन कवियों ल काव्य पाठ करि श्रोताओं कैं भावविभोर करि दे | सम्मेलन में लोक साहित्य, लोकगीत, गायन सहित अन्य विधाओं पर लै गहन विचार विमर्श हौछ | य आयोजन सबूं क सहयोग ल करिगो जमें आवास क इंतजाम स्थानीय होटलों ल करौ | आयोजन समिति क प्रमुख डा. हयात सिंह रावत ज्यू कि पुरि टीम जमें सर्वश्री जमन सिंह बिष्ट, नीरज पंत,चन्दन बोरा, रूप सिंह बिष्ट, अजय तिवारी, पवन ठाकुराठी, राजेन्द्र Dhaila आदि छी जनूल भौत भल काम करि बेर आयोजन कैं सफल बना|

      य मौक पर करीब तीन दर्जन साहित्यकारों कैं विभिन्न विधाओं में सम्मानित लै करिगो और एक दर्जन है ज्यादै किताबों क विमोचन लै हौछ | सम्मेलन में तीनों दिन जय नंदा लोक कला केंद्र उत्थान समिति अल्माड़ क कलाकरों ल आपणी विशिष्ट प्रस्तुति दी बेर सत्रों क श्रीगणेश करौ | य टीम क प्रमुख सुप्रसिद्ध ए ग्रेड हुड़का वादक श्री चन्दन बोरा क दगाड में छी सुश्री लता पांडे, विमला बोरा, शीला, पूरन कुमार और अन्य | य टीम ल उत्तराखंड कि सांस्कृतिक झलक देखै बेर सबै आगंतुकों क स्वागत करौ जैकि भौत प्रशंसा करिगे | सम्मेलन में कएक पत्र- पत्रिकाओं क संपादक, पत्रकार और रेडियो स्टेशनों के रिकार्डिस्ट लै ऐ रौछी | य सफल आयोजन क लिजी पुरि टीम कैं साधुवाद और शुभकामना |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली १७.११.२०१६     

Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत-१३४ : नोट -बंदी की कहानी, चनरदा की ज़ुबानी

 
     8 नवम्बर 2016 की रात लगभग आठ बजे प्रधानमंत्री मोदी जी ने देश में प्रचलित 500 और 1000 रु के नोटों का प्रचलन बंद करने की घोषणा कर दी | साथ ही 500 और 2000 के नए नोट देने की घोषणा भी कर दी | घोषणा के साथ ही प्रधानमंत्री ने सहयोग करने और कष्ट सहने की अपील भी की | घोषणा होते ही चारों और उपापोह मच गई | 9 नवम्बर को बैंक बंद रखने का आदेश था और 10 नवम्बर से बैंकों में 4000 रु प्रति व्यक्ति बदलने का आदेश हुआ जो कुछ दिन बाद क्रमशः 4500 और 2000 हो गया | दस हजार रु प्रति खाता भुगतान का भी आदेश था | यह कदम काले धन पर रोक लगाने के लिए उठाया गया है बताया गया | इस कदम का कुछ राजनैतिक दलों को छोड़कर सभी ने स्वागत भी किया | काला धन अर्थात वह आय जिस पर टैक्स की देनदारी बनती है परन्तु टैक्स नहीं दिया जाता | बैंकों को 30 दिसंबर 2016 तक पुराने नोट खाते में जमा करने का आदेश है |
 
        नोट-बंदी के इस दौर में कुछ टैंस दिख रहे चनरदा जब बैंक से वापस आते हुए रास्ते में मिले तो हमने सवाल दाग दिया, “ क्यों, कैसी रही मोदी जी की यह रात्रि में अचानक चलाई गयी गुलेल ?” चनरदा झट से बोले, “यह गुलेल कोई पहली बार नहीं चली है भाई | 1954 में 1000, 5000 और 10000 के नोट छापे गए जिन्हें 16 जनवरी 1978 को बंद का दिया गया | अक्टूबर 1987 में 500 का और नवम्बर 2000 में 1000 का नोट बाजार में उतारा गया | 8 नवम्बर 2016 की आधी रात जो नोट बंद हो गए हैं इसे  कालाधन के बजाय काली मुद्रा कहना उचित होगा | काला धन केवल मुद्रा की शक्ल में नहीं है | यह आभूषण, जमीन-जायदात, बेनामी सौदों और दूसरे के नाम पर किये गए निवेश सहित कई तरह का हो सकता है | अभी तो मोदी जी ने केवल काली मुद्रा पर गुलेल चलाई है, आगे ख्योंतार (बड़े पत्थर दूर तक फैंकने वाला आला ) चलेंगे, हथौड़े भी बजेंगे | बहुत कुछ बजेगा | आगे- आगे देखो होता है क्या ?

     मैंने चनरदा से अगला सवाल किया, “सर जी कालेधन के बारे में मेरा ज्ञान आपने जरूर बढ़ाया परन्तु नोटों के बारे में भी तो बता देते कि कितने बदले, कितने जमा किये और कितने निकाले ? चनरदा बोले, “10 नवम्बर को चार हजार लेकर बदलने के लिए बैंक में गया | बैंक का समय 8 बजे से 8 बजे बताया जा रहा था परन्तु बैंक 10 बजे ही खुला | तीन घंटे कतार में खड़े रहने के बाद चार हजार बदल दिए | साथ ही एक छोटा सा भुगतान भी चैक द्वारा लिया | एक सप्ताह बाद भार्या द्वारा दिए गए कुछ नोट लेकर फिर जमा करने गया | ये नोट उसने मेरी सेंधमारी करके अपने पास जमा कर रखे थे | पति की सेंधमारी करना पत्नी का संवैधानिक अधिकार है | आज इस गुप्त बचत का भेद खुलने का उसे दुःख तो था पर वह बोली “खर्च तो तुम्ही करते, तुम्हारे ही काम आते, मैंने तो संभाल रखे थे |” बैंक की लाइन में भी कई महिलायें अपने गुप्त धन की बात हँसते हुए अन्य महिलाओं से कर रही थी, “मोदी ने काले धन वालों के साथ हमारी भी पोल खोल दी |”

     चनरदा आगे बोलते गए, “ काली मुद्रा को बाहर निकालने की यह स्कीम अच्छी है | इससे काली मुद्रा जरूर डूबेगी परन्तु इस स्कीम के शुरुआती क्रियान्वयन में कमी भी रही और कोताही भी | मेरे बगल वाली कतार में एक युवक बता रहा था कि वह रात दो बजे से वहाँ खड़ा है | उस समय सवा दस बजे थे | ए टी एम दुरुस्त नहीं रहे जबकि खबर दुरुस्त होने की थी | नए 2000 के नोट को सब्जी वाले और मोबाइल रिचार्ज वाले खुल्ले नहीं होने के कारण ले नहीं ले रहे थे | लोग कह रहे थे “आखिर इस 2000 के नोट की जरूरत क्या थी ? 500 का नया नोट अभी आया नहीं है | दो हजार के बदले एक हजार का नया नोट छापते या दो हजार की जगह दो सौ का छापते | दूध, सब्जी, फल, डबलरोटी तथा अन्य रोजाना के सामान खरीदने पर छुट्टे नहीं होने के कारण कोई भी दो हजार के नोट को लेने को तैयार नहीं है |”

     “निःसंदेह इस नोट बंदी से काली मुद्रा के रद्दी में जाने की उम्मीद तो है परन्तु यह तो वक्त ही बतायेगा कि यह कितनी सफल हुयी | इस स्कीम के आते ही कुछ बंद हो रहे नोटों के टुकड़े नदी में तैरते हुए भी मीडिया ने दिखाए, कुछ जले हए टुकड़े भी दिखाए | यह समाचार भी दुखित करता है कि नोट बंदी या बदली से उपजे हालात से करीब चार दर्जन से अधिक लोग असामयिक काल के ग्रास बन गए जो नहीं होना चाहिए था | इस मुद्दे को लेकर कुछ लोग अदालत में भी दस्तक देने लगे हैं | लम्बी- लम्बी कतारें स्कीम आने के आज चौदहवें दिन भी देखी गयीं | मीडिया कहीं हंगामा, कहीं अफरातफरी, कहीं त्राहि-त्राहि और कहीं खलबली बता रहा है | किसान और विवाह वाले परेशान हैं, संसद चार दिन से ठप्प पड़ी है | इस बीच यह समाचार भी है कि लूपहोलों के जरिये पुराने नोट बदलने का धंधा भी चल पड़ा है | ग्रामीण भारत में भी नोट नहीं पहुंचने की बात भी सत्य है | यदि यह स्कीम ठीक से क्रियान्वित की जाए और लोगों की परेशानी को समझने के प्रयास किया जाए तथा पिछले दरवाजे की कुंडी (चिटकनी ) पूरी तरह से बंद कर दी जाए, साथ ही विपक्ष सरकार की त्रुटियों को उजागर करते जाए तो उम्मीद करनी चाहिए कि स्तिथि कुछ ही दिनों में पटरी पर आ जायेगी |” अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, २३.११.२०१६   

   
 
 


Pooran Chandra Kandpal

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दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

चनरदा लगूंरयीं नौट- बंदी कि बिरखांत

 
     8 नवम्बर 2016 कि रात करीब आठ बजी प्रधानमंत्री मोदी ज्यू ल देश में प्रचलित 500 और 1000 रु क नोटों का प्रचलन बंद करण कि घोषणा कर दी | उभतै उनूल 500 और 2000 क नईं नोट जारी करण कि लै घोषणा कर दी | घोषणा क साथ प्रधानमंत्री ल सबू हैं सहयोग करण और कष्ट सहन करण कि लै अपील करी | घोषणा होते ही चारों तरफ हड़कंप मचि गोय | 9 नवम्बर हुणि बैंक बंद धरण क आदेश छी और 10 नवम्बर बटि बैंकों में 4000 रु प्रति व्यक्ति नोट बदलण क आदेश हौछ जो कुछ दिन बाद क्रमशः 4500 और 2000 हैगो | दस हजार रु प्रति खाता भुगतान क लै आदेश छी | य कदम काव धन पर रोक लगूण क लिजी उठा बताई जांरौ | य कदम क कुछ राजनैतिक दलों कैं छोड़ि बेर सबूंल स्वागत लै करौ | काव धन अर्थात उ कमै जै पर टैक्स कि देनदारी बनी पर टैक्स नि दियी जां रय | बैंकों कैं 30 दिसंबर 2016 तक पुराण नोट खात में जम करने क आदेश छ |
 
        नोट-बंदी क य दौर में कुछ टैंस जास देखीणी चनरदा जब बैंक बटि वापिस औणता बाट में मिलीं तो मील सवाल दागि दे, “क्यलै, कसि रैछ मोदी ज्यू कि य रात कै चलाई गुलेल ?” चनरदा झट बलाय, “यार य गुलेल क्वे पैल बार जै क्ये चलि रैछ ? 1954 में 1000, 5000 और 10000 के नोट छापी गईं जो 16 जनवरी 1978 हुणि बंद करी गईं| अक्टूबर 1987 में 500 क और नवम्बर 2000 में 1000 क नोट बजार में उतारी गो | 8 नवम्बर 2016 कि आदू रात बै जो नोट बंद है गईं इनुहैं काव धन क बजाय काइ मुद्रा कौण ठीक रौल | काव धन केवल मुद्रा कि शकल में न्हैति | य जर-जेवर,  जमीन-जैजात, बेनामी सौद और दुसर क नाम पर करी हुयी निवेश सहित कएक किस्म क है सकूं | आजि त मोदी ज्यू ल केवल काइ मुद्रा पर गुलेल चलै रैछ, अघिल ख्योंतार लै चलाल, हथौड़ लै बाजाल और दगाड़ में भौत कुछ बाजल | अघिलांहूं देखते जौ क्ये-क्ये हुंछ ?

     मील चनरदा हुणि अघिल सवाल पुछौ, “महाराज काव धन क बार में आपूल म्यर ज्ञान जरूर बढ़ा पर नोटों क बार में लै बतै दिना कि कतू बदलीं, कतू जम करीं और कतू निकाईं ? चनरदा भुटी भट क चार तड़म तिड़ि बेर  बलाय, “ अरे यार 10 नवम्बर हुणि रत्ते पर चार हजार रूपै ल्हीबेर बदलण क लिजी बैंक गयूं | बैंक क टैम 8 बजी बटि 8 बजी तक क बतै रौछी पर बैंक रोज की चार 10 बजी खुलौ | तीन घंट लैन में ठाड़ रौण का बाद चार हजार रूपै बदलीं उनूल | उभतै चैक द्वारा एक ननुकौ भुगतान लै ल्हे | एक हफ्त बाद घरवाई क लुकाई- ढकाई कुछ नोट ल्ही बेर फिर जम करि आयूं | यूं नोट वील म्येरि सेंधमारी करि बेर आपण पास जम करि रौछी | मैंस कि सेंधमारी करण घरवाई क पुर हक़ हय | आज य गुप्त बचत क भेद खुलण क उकैं दुःख त छी पर उ बलै, “खर्च त तुमै करना, तुमरै काम औंन, मैल त यैकै लिजी आपण पास समाई रौछी |” बैंक कि लैन में लै कएक स्यैणिय आपण गुप्त धन कि बात आपस में हंसि- हंसि बेर कूं राय, “मोदी ल काव धन वलां क दगाड़ हमरि लै पोल खोल दी |”

     चनरदा आघिल कौनै गाय, “काव धन कैं भ्यार निकावण कि य स्कीम भलि छ | यैल काव धन त जरूर डुबल पर य स्कीम कि शुरुआती क्रियान्वयन में कमी लै रै और कोताही लै हैछ | म्यार बगल वाइ लैन में एक लौंड बतूं रय कि उ रात द्वि बजी बटि वां ठाड़ है रौछ | जब वील मीकैं बता तब साव दस बाजि रौछी | ए टी एम लै दुरुस्त नि छी जबकि खबर दुरुस्त हुण कि छी | नईं 2000 क नोट कैं सब्जी वाल और मोबाइल रिचार्ज वाल खुल्ल नि हुण क वजैल नि ल्ही रौछी | लोग कूं रौछी, “आखिर य 2000 क नोट कि जरूरत क्ये छी ? 500 क नईं नोट आजि लै नि ऐ रय | द्वि  हजार कि जागि कैं एक हजार क नईं नोट छापन या द्वि हजार की जागि कैं द्वि सौ क छापन | दूध, सब्जी, फल, डबलरोटी और सबै रोजाना क सामान खरीदण हूं खुल्ल नि हुण पर द्वि हजार क नोट क्वे लै ल्हीहूं तैयार न्हैति |”

     “निःसंदेह य नोट बंदी ल काइ मुद्रा क रद्दी में जाण कि उम्मीद त छ  है पर य त बखत बताल कि य कतू सफल हैछ | य स्कीम क आते ही कुछ बंद हुणी नोटों क टुकड़ गाड़ में ख्येड़ी हुई मीडिया ल देखाईं, कुछ अदजगी  टुकड़ लै देखाईं | य खबर भौत दुखित करै रै कि नोट बंदी ल पैद हई हालातों  करीब चार दर्जन है ज्यादै लोग असामयिक काव क गास बनि गईं जो कि नि हुण चैंछी | य मुद्द कैं ल्ही बेर कुछ लोग अदालत क द्वार लै खटखटौं रईं | लम्बी- लम्बी लैन स्कीम औण क चौदूं दिन लै देखण में आईं | मीडिया कैं हंगामा, कैं अफरातफरी, कैं त्राहि-त्राहि और कैं खलबली बतूं रौछ | किसान और ब्या वाल लै परेशान छीं, संसद चार दिन बटि ठप्प पड़ी रैछ | य बीच य समाचार लै सुणीरौ कि लूपहोलों क जरिय ल पुराण नोट बदलण क धंध लै बैंकों में चलि रौछ | ग्रामीण भारत में लै नोट नि पुजण कि बात सांचि छ | अगर य  स्कीम ठीक ढंग ल क्रियान्वित करी जानी, लोगों कि परेशानी कैं समझण क प्रयास करी जानौ, बैंकों क पिछाड़ी क द्वार कि कुंडी (चिटकनि ) पुरि तौर ल बंद करी जानी और दगाड में विपक्ष लै सरकार कि कमियों कैं उजागर करनौ तो उम्मीद करण चैंछ कि स्तिथि कुछ दिनों में पटरी पर ऐ जालि और य हायतोबा है लोगों कैं छुटकार मिलौ ल |”

पूरन चन्द्र काण्डपाल, २४.११.२०१६   


Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत -१३५ : पूजा का सच और भगवान को घूस ३०.११.२०१६

     पूजा का सच हम जानते हुए भी इसे छिपाते हैं | पूजालयों में मूर्तियों के सामने धूप- अगरबत्ती जलाकर और भेंट आदि चढ़ाकर अक्सर हम समझते हैं कि पूजा –अर्चना के द्वारा हम ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास कर रहे हैं परन्तु यह सत्य नहीं है | सत्य यह है कि हम मात्र अपने भौतिक सुखों के खातिर ही ईश्वर को याद करते हैं ताकि हमारे घरों में लक्ष्मी का प्रवेश हो, परिवार में सुख-शांति बनी रहे और जीवन में दुःख और परेशानियों का कभी भी सामना नहीं करना पड़े | अन्यथा क्या आपने आज तक किसी  को पूजालयों में मूर्तियों के समक्ष यह कहते सुना है – “हे भगवान्, आप सुखी रहैं, आप खुश रहैं ?’
     हम भगवान को भी घूस देते हैं | भ्रष्टाचार हमारे देश में एक आम बात है जिसमें हमें कुछ भी आश्चर्य नहीं होता बल्कि यह हमारी जीवन में एक शैली बन गयी है | हम भ्रष्टों को सुधारने के बजाय उन्हें सहन करने लगे हैं | हम अपने भगवान को कई प्रकार का चढ़ावा चढाते हैं और बदले में उनसे कृपा चाहते हैं | इस तरह हम कर्मसंस्कृति को त्याग कर भगवान से अपने लिए पक्षपात चाहते हैं | आम जीवन में इस सौदेबाजी को ‘रिश्वत’ कहते हैं | धनी लोग पूजालयों में नकद भुगतान की जगह सोने का मुकुट या आभूषण चढ़ाते है | इस तरह के करोड़ों रुपये के मुकुट- दान का समाचार हम आये दिन सुनते- पढ़ते हैं |
     हमारे देश के कुछ मंदिरों में इतना धन चढ़ावे में आता है कि वे समझ नहीं पाते कि उस धन का क्या करें ? अरबों रुपये की सम्पति तहखानों में पड़ीं है | हम देश के किसी कोने में जाएं, ग्रामीण भारत हो या शहर, हम धन का उपयोग मंदिर बनाने में ही करते हैं | अकूत धन होने पर भी हम कोई स्कूल, पुस्तकालय या वाचनालय, अतिथि गृह अथवा सर्वजन प्रयोग की कोई सुविधा संबंधी निर्माण करने की नहीं सोचते | हमारे स्कूलों में बुनियादी चीजें जैसे अल्मारी, कुर्सियां, डेस्क, श्यामपट, कंप्यूटर कक्ष आदि नहीं हैं | हम इस ओर नहीं सोचते बल्कि पास के मंदिर में घंटी, छत्र या गुम्बद बनाने पर जोर देते हुए वहाँ वाह-वाही लूटने के चक्कर में रहते हैं |  हमें लगता है कि भगवान भी कुछ भला करने के लिए चढ़ावा स्वीकार करता है और हम इस रिश्वत लेन-देन में भ्रष्टाचार में शामिल हो जाते हैं |

     मन में एक बात उठती है कि हमने यह भगवान के साथ सौदेबाजी की संस्कृति क्यों अपनायी ?  हम यदि नैतिक आचरण करते, कर्मसंस्कृति पर विश्वास करते तो हम सबकी उन्नति होती | हम धर्म के आधार पर पूजालयों में बंट कर रह गए | हम भारतीय कहलाने के बजाय हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आदि कहलाने में विश्वास करने लगे | हम भूल गए कि कुछ वर्ष पहले तक हम सब एक ही पंथ के थे | हमारा विभाजन भी धर्म के आधार पर हुआ | हम भूल गए कि हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं |

     आज हम अध्यात्म में अंधविश्वास को मिलाकर परोस रहे हैं | अध्यात्मिकता भी एक दुकानदारी बन गयी है | ग्राहकों की कोई कमी नहीं है, विशेषकर महिला ग्राहकों की | हमारी जिन्दगी में भौतिकवाद ने अधिक तनाव पैदा कर दिया है जिस कारण हम तथाकथित अध्यात्मवादियों की शरण में जा रहे हैं जिनके पास चिकनी- चुपड़ी बातों और पाखण्ड के सिवाय कुछ भी नहीं हैं | हम इस भौतिकता की प्राप्ति की खोज में कई प्रकार के रोगों का शिकार भी हो गए हैं | हमारी इस दुर्बलता का वाकपटुता के विशेषज्ञ खूब लाभ उठाते हैं | इनके चक्कर में हम समय और धन दोनों ही बर्बाद कर रहे हैं | इनके पैर छूने की भी होड़ लगी रहती है | हम यथार्थ को समझते हुए इनके परपंच को जानने -समझने का प्रयास करें |

      जीवन जीना भी एक कला है | सफल जीवन वही है जो कर्मसंस्कृति के पायदानों में चलते हुए, मुसीबतों से न घबराते हुए तथा दूसरों के अनुभवों से सीखते हुए आगे बढ़ता है और अपनी पहचान बनाता है | वही व्यक्ति सफल है जो अंधश्रद्धा अथवा अंधविश्वास के भंवर से अपने को बचाते हुए जनहित के कार्य में अपने धन का सदुपयोग करता है | भगवान कभी भी किसी से कुछ नहीं मांगते जबकि वे कर्मसंस्कृति के राहगीर पर सदैव और सर्वदा अपनी कृपा करते हैं | अच्छा कर्म करने से हमें सुकून मिलता है, हमारा मनोबल शिखर पर पहुंचता है जिससे हम कर्मसंस्कृति के राही बन जाते हैं जिसे दूसरे शब्दों में हम ईश्वर की कृपा कह सकते हैं ताकि हम अहंकार से दूर रहें |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ३०.११.२०१६ 

Pooran Chandra Kandpal

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दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

युद्ध एक त्रासदी ,०१.१२.२०१६
 
   क्वे लै द्वि देशों क बीच में कुल मिलै बेर युद्ध एक त्रासदी छ | सेना क कर्तव्य आपण देशों कि सीमाओं कि रक्षा करण छ और य पवित्र काम क लिजी ऊँ आपण बलिदान लै देते औंरै | यूं शहीदों कैं याद करण देश क पैल कर्तव्य छ | आपण रणबांकुरों कि शौर्य- पराक्रम कि गाथाओं कैं नि भुलण देशवासियों क दायित्व छ | बुद्धिजीवियों क मानण छ कि लोगों कि याददास्त य मामुल में भौत कम हिंछ | पैल और दुसर विश्व युद्ध क शहीद त छोड़ो य कौण कठिन छ कि कतु लोग आजादी क बाद लड़ी गयी वर्ष १९४७-४८, १९६२, १९६५, १९७१, सियाचीन, श्रीलंका, कारगिल युद्ध १९९९ और १९८९ बटिक कश्मीर छद्म युद्ध क शहीदों, घायलों और अपंगों कैं याद करनी ?
 
    कारगिल युद्ध में द्विये देशों, भारत और पाकिस्तान क लगभग एक हजार द्वि सौ है ज्यादै सैनिक शहीद हईं | घैल और अपंगों कि संख्या लै भौत ज्यादै छ | यूं सैनिकों में मैंस, बौज्यू, च्यल और भै सबै रिश्त छी | युद्ध में प्यार-प्रेमा का यूं सबै रिश्त मुर्झे जानी, ख़तम है जानी | यूं सबै रिश्त कएक परिवारों बटि यूं युद्धों में झटकी गयीं | आपण परिवारों क खुशि, उम्मीद और भरौस सब कुछ छी यूं सैनिक | युद्ध ल यूं परिवारों कैं दुःख और दर्द क काव सिमार में हमेशा- हमेशा के लिजी डुबै दे | सैनिक आपण कर्तव्य पथ बै कभै लै पिछाड़ि नि हटन | उ आपणि मातृभूमि पर मर मिटणी अमर सेनानी हुंछ पर मानवता कि दृष्टि ल सोची जो तो हरेक सिपाइ और वीक परिवार य यी चाल कि युद्ध नि हो | विवादों कैं बातचीत क जरियै ल शांति क साथ सुलझै लियी जो | उसी लै इतिहास साक्षी छ कि आज तक जतू लै युद्ध हईं, युद्ध में भिड़णी देशों में बातचीत कै जरियै ल शांति हैछ, युद्ध ल केवल त्रासदी और विनाश हाथ लागौ |

     युद्धों ल देशों क आर्थिक विकास रुकि जांछ | जो धन गरीबी- भुकमरी मिटूण, शिक्षा- स्वास्थ्य सहित दुसार विकास कार्यों में लागण चैंछ उ युद्ध कि   विभीषिका में स्वाहा है जांछ और युद्ध ल देश पर अपंगों क जमघट लै लैजांछ | अपंग सैनिक जिन्दगी भर रघोड़ी- रघोड़ी बेर आपण जीवन क ब्वज कैं झेलूं | उ न चाहते हुए लै सहानुभूति और दया क पात्र बन जांछ | युद्धों में सैनिकों क अलावा नागरिक लै मारी जानीं | युद्ध क्षेत्र में रौणी नान- ठुल, मनखीमात्र, जीव-जंतु, चाड़- पिटूंग सहित सबै जीव मरि जानी या घैल है जानी | वांक  पर्यावरण, वन सम्पदा, प्राकृतिक सौन्दर्य, भू-संरचना सब कुछ नष्ट है जींछ | कारगिल युद्ध में भी हजारों टन गोला-बारूद क धमैक हौछ जैल उ क्षेत्र क ह्यूं लै दूषित है गोय जैक बार में बाद में रिपोर्ट पत्र-पत्रिकाओं में छपी |
 
    युद्ध क दौरान एक ठुलि मानवीय समस्या शरणार्थियों क रूप में ऐंछ | सीरिया क दर्दनाक उदाहरण हमार सामणी छ | युद्ध कि सबू है ठुलि त्रासदी हिंछ देश पर अचानक और बेकारक आर्थिक बोझ | युद्ध कि क्षतिपूर्ति विकास कार्यों पर खर्च हुणी धन ल करी जैंछ या जनता पर कर लगै बेर धन इक्कठ करी जांछ | युद्ध क दौरान शहीदों, घायलों और अपंगों पर खर्च बढ़ि जांछ | नईं साजो सामान, गोला-बारूद, हथियार खरीदण सहित यूं सबू क रख-रखाव क खर्च लै अलग से सहन करण पडूं | युद्ध में उलझी दुसर देश पर लै खर्च क ब्वज क्रमशः यसिकै पडू |
 
     भारत ल हमेशा एक जिम्मेदार पड़ोसी क चार रौण क भल प्रयास करौ | एक ठुल भै क चार हमेशा संयम और सौहार्द क परिचय दे | पाकिस्तान क उल-जलूल, बदलणी -फिसलणी, गैरजिम्मेदार बयानों पर सहिष्णुता दिखै जबकि युद्ध कि शुरुआत हमेशा पाकिस्तान कि तरफ बटि हैछ | घुसपैठिय भेजि बेर वील हमार पुठ में छुर घोपौ | अगर पकिस्तान एक बार फिर  विश्वास क वातावरण बनौ, वास्तविकता कै समझो, आतंकवादियों कि मदद नि करो, छद्म युद्ध बंद करो तो द्विये देशो में स्थाई शांति है सकीं | देर-सबेर एक न एक दिन यूं द्विये अणुशक्ति संपन्न स्वतंत्र देशों कैं मिलि-ठि बेर, भूतकाल कि कटुता कैं भुलनै सह-अस्तित्व क लिजी समझौता करण पड़ल तबै  दक्षिण एशिया में युद्ध क मंडराणी बादल हमेशा के लिजी छंट सकनीं |
 
पूरन चन्द्र कांडपाल, ०१.१२.२०१६
 


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बिरखांत- १३६ : शादी में बदलते रिवाज और कीर्तन में देवी,०७.११.१६ 

     हम सब कहते हैं कि ज़माना बदल गया है | पहले के जमाने में ऐसा होता था, वैसा होता था | सत्य तो यह है कि ज़माना नहीं बदलता बल्कि वक्त गुजरने के साथ कुछ परिवर्तन होते रहता है | इस बीच कई शादियों में निमंत्रण निभाया और तरह तरह का बदलाव देखा | धीर-धीरे कैमरे को खुश करने के लिए बहुत कुछ बदलाव हो रहा है | कई बार वर-वधू को दुबारा पोज देने के लिए कहा जाता है | मस्ती के दौर में दोस्त उनसे मुस्कराने की फर्मायस करते हैं | आखिर कोई कितनी देर तक मुस्कराने की एक्टिंग कर सकता है, यह तो मेकअप से लथपथ बेचारी दुल्हन ही जानती है |

     एक रिवाज जो नया चला है वह मुझे अच्छा लगा | दूल्हे से उसके दोस्त कहते हैं, “अबे उठ, वो मंच पर आ रही है तुझे फांसने | तू सीढ़ी से नीचे उतर और दुल्हन का हाथ पकड़ने का ड्रामा कर और उसे ऊपर खीच ला |” दूल्हा महाराज मानो तुरंत प्यार के समुद्र में वहीं पर डूब गए और चल पड़ते हैं दुल्हन का हस्त पकड़ने | मिले हुए मौके का भरपूर फायदा उठाते हुए हस्त दबाने से भी नहीं चूकते | एक जगह तो दूल्हा बिन कहे ही चला गया, उसके दोस्त थोड़ा कम मौडरन थे | उससे रुका नहीं गया और कूद गया नीचे की सीढ़ी तक | उसने कैमरेवालों का आदेश खूब निभाया और फोटोग्राफी बंद होने पर भी पकड़े रहा दुल्हन का हाथ जैसे कि दोनों वहीं पर एक चुम्बकीय कड़े से बंध गए हों | कुछ भी हो यह मुझे अच्छा लगा | जब प्यार किया तो डरना क्या ? हमारे जमाने में ये ड्रामाबाजी नहीं होने का थोड़ा सा मलाल भी हुआ | तब जयमाला तो छोड़ो दुल्हन का मुंह देखने का मौका सभी मेहमानों के जाने के बाद ही मिला |

     अब बात आजकल की जयमाला की कर लें | इस सीन में आजकल जो हो रहा है वह मुझे अच्छा नहीं लगा | मंच के इस सीन में दूल्हा दोस्तों से घिरा है ( कुछ बेवड़े भी लेकिन होश में ) और दुल्हन भाइयों और सहेलियों से घिरी है | दुल्हन को कैमरे से पहले इशारा मिला कि जयमाला दूल्हे को पहनाओ | ज्योंही वह एक कदम आगे बढाकर जयमाला पहनाने लगी तो दूल्हे के दोस्तों ने दूल्हे को ऊपर उठा लिया | दुल्हन पहला चांस मिस हो गया और वह टैंस हो गयी जबकि कैमरा ऐक्सन में है | तुरंत भाइयों के हाथों में उठी हुयी दुल्हन ने दूसरा प्रयास किया और जैसे –तैसे दोस्तों द्वारा ऊपर उठाये गए, पीछे की ओर टेड़ा तने हुए दूल्हे के गले में जयमाला ठोक दी जैसे घर में घुसे हुए तैंदुवे के गले में बड़ी मुश्किल से रस्सी डाल दी हो | इसी तरह दूल्हे को भी दो बार प्रयास करने पर सफलता मिली | दुल्हन का आर्टिफीसियल जेवर भी हिल गया और मेकअप का डिजायन भी बिगड़ गया | एक शादी में तो इस धक्कामुक्की में दूल्हे की कुर्सी ही उलट गयी और माला भी टूट गयी | दोनों ओर के कबड्डी खिलाड़ियों से कहना चाहूंगा कि ये ऊपर उठाने का फंडा बंद करो और दोनों को ही असहज होने से बचाओ | ऐसा न हो कि गर्दन को माला से बचाने के चक्कर में दोनों में से एक गिर जाय | प्यार से नजाकत के साथ उन्हें एक –दूसरे के पास लेजा कर मुस्कराते हुए  मधुर मिलन से माल्यार्पण कराओ | इस क्षण को अविस्मरणीय बनाओ | बेचारों का टेनसन भरा मुर्गा खेल मत कराओ |

     शादी में महिला संगीत और कीर्तन भी दो विधाएं आजकल देखादेखी खूब रंग में हैं | महिला संगीत में स्थानीय भाषाओं को सिनेमा के गीतों ने रौंद दिया है | ‘चिकनी चमेली..., बदतमीज दिल...., जैसे सिने गीतों की भरमार है | कैसेट- सी डी या डीजे लगाओ और आड़े- तिरछे नाचो, हो गया महिला संगीत | कहाँ गये वे ‘बनड़े’ जैसे परम्परागत गीत ? कीर्तन में भी पैरोडी संग नृत्य हो रहा है | सिनेमा के गीत की धुन में शब्दों का लेप लगा कर माता रानी को रिझाने का एक निराला अंदाज बन गया है | इसी बीच हरेक कीर्तन में कुछ महिलाओं में ‘देवी’ आ जाती है जो आयोजकों से हाथ जुड़वा कर ही थमती है | पता नहीं दूसरे के घर में बिन बुलाये ये ‘देवी’ आ कैसे जाती है ? आना ही है तो अपने घर में आ और अपने घरवालों को राह दिखा, दूसरे के घर में यह सबके सामने तमाशा क्यों ? कीर्तन में यह शोभा भी नहीं देता जबकि ‘देवी’ वाली अमुक आंटी चर्चा में आकर भविष्य में गणतुवा भी बन सकती है | | जिस कीर्तन में अपनी ही संस्कृति की झलक हो उसे उत्तम कीर्तन कहा जाएगा | एक सांस्कृतिक आयोजन में एक कलाकार मंच से गायन की ‘जागर’ विधा गा रहा था | इस बीच दर्शकों में बैठी एक महिला को ‘देवी’ आ गयी | चप्पल पहने, बिन हाथ-मुंह धोये दर्शकों के समूह में यह ‘देवी’ पता नहीं क्यों आयी ? अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ०७.१२.२०१६
 

   

     

Pooran Chandra Kandpal

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दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै,०८.१२.१६

 गया और बोधगया में जस देखौ

     हालों में दिल्ली बटि रांची, रामगढ़ (झारखण्ड) होते हुए गया (बिहार) कि यात्रा क मौक मिलौ | दिल्ली बटि रांची करीब १३०० किमी, रांची बटि रामगढ ४५ किमी और रामगढ़ बटि  गया १८० किमी दूर छ | रांची और रामगढ़ झारखण्ड राज्य में छीं जबकि गया बिहार राज्य में छ | य यात्रा क दौरान झारखण्ड क्षेत्र क जंगल लै देखीँ जनूमें चौड़ पातों वाल पेड़ छीं | उत्तराखंड कि चार वांक भौत गौहौ जंगवों में चीड़ा क डाव देखण में नि आय |

     फल्गू नदी क किनार स्तिथ गया शहर कि खाश द्वि जाग घुमण क मौक मिलौ – गया (विष्णुपद मंदिर) और बोधगया ( महात्मा बुद्ध क ज्ञान प्राप्ति स्थान ) | गया बटि  बोधगया कि दूरी करीब १५ किमी छ | गया पहुँचते ही वां पंडो ल घेरि ल्हे | ऊँ शराद करण क लिजी दबाव डाउण फै गाय | उनूकैं मील समझा, “मेरि आस्था शराद क कर्मकांड में न्हैति | मी यां क्वे धार्मिक कारण ल नि ऐ रय बल्कि ऐतिहासिक, सामाजिक तथ्य जाणण और प्रकृति दर्शन क लिजी ऐ रयूं | मी पितरों का स्मरण जरूर करनू, उनुमें मेरि श्रद्धा लै छ पर पर शराद- पिंडदान में न्हैति |”

     वांक दृश्य देखि बेर मी हतप्रभ छी | जां- तां पिंडों क ढेर लै रौछी | क्वे मुंडन करूं रौछी तो क्वे कत्ती कैं लै भैटि बेर शराद करूं रौछी | वां पंड लोगों द्वारा कएक किस्म कि  प्रथा- परम्परा और मान्यता कि बात कै बेर लोगों कैं रिझाई- फंसाई जां रौछी | वां गंदगी कि  कैं लै परवा नि छी | फर्स काव है गोछी और जां- तां शराद में प्रयोग हुणी चीज ख्येड़ी रौछी | भिखारि लै आपणी अलग डड़ा-डड़ में लागि रौछी | अंततः घरवाइ ल कुछ दान गरीबों कैं दे और म्यार कौण पर कुछ दान दानपात्रों में डावौ जैकैं मंदिर समिति उपयोग करीं बता |

     जां श्रद्धा कि बात हो तो वीक अघिल क्ये कौण ठीक नि समझी जान | य श्रद्धा छ या अंधश्रद्धा, यैक फैसाल मनखी कैं आपण विवेक ल करण पड़ल |  कर्मकांड और पिंडदान में म्येरि आस्था न्हैति | यैक बजाय हमूल पितरों कि पुण्य स्मृति में क्ये न क्ये समाज कि भलाई क लिजी काम करण चैंछ | शरादा क पिंड उत्तीकैं पड़ी रौनी और धन पंड ल्ही जानी  | मी लै आपण पितरों क स्मरण करनै पिछाड़ि ग्यारह वर्षों बटि आपण क्षेत्र क कुछ मेधावी नना कैं हर साल स्वतन्त्रता दिवस पर सम्मानित करनू |

     जां तक मी समझनू स्वर्ग नाम कि क्वे लै जागि न्हैति जां पितरों का वास बताई जांछ  | य एक काल्पनिक विचार छ | मृत्यु के बाद देह पंचतत्व में मिलि जैंछ और अजर- अमर आत्मा अदृश्य है जींछ | क्वे लै जीव जो पैद हुंछ उ एक दिन जरूर मरूं | वीकि मौत क बाद कर्मकांड क बजाय एक श्रधांजलि भौत छ और मृतक क नाम पर कुछ जनहित कर्म करण भौत भलि बात हइ | गया में पंडों का तमाश देखि बेर यस लागौ कि ऊँ हरेक श्रद्धालु कैं मिलि बेर लुटैं रईं | य लूट कैं समझण कि जरवत छ |

     बोधगया स्थान गया बटि १५ किमी दूर छ | यां एक पीपव क भौत ठुल डाव छ, भगवान बुद्ध कि ८० फीट ऊँची मूर्ति और बौध श्रद्धालुओं क लिजी सुमिरन-साधना क कएक ठुल- ठुल फ़र्स छीं | पंडों जसि लूट यां निछी | दान पात्रों में दान यां लै दिई जांछ | गया कि चार यां न शोर छी और न गन्दगी | लोग महात्मा बुद्ध क प्रवचनों क आधार पर सुमिरन करते हुए देखीं गयीं | यूं श्रद्धालुओं में अधिकाँश विदेशी छी जनूहैं हम बुद्धिष्ट या बौध मतावलंबी कै सकनूं |

     अंत में य ई कौण चानू कि हमार क्वे लै धर्मस्थल पर (गया सहित ) धर्म क नाम पर अंधविश्वास कि डोर फंसै बेर लूट हिंछ और गन्दगी लै भौत हिंछ | मीकैं देशा क कएक  गुरद्वारों क दर्शन करण क मौक लै मिलौ जां मील भौत भलि सफाई देखी और अंधविश्वास कि लुछालुछ लै वां देखण में नि आइ | श्रद्धा हुण भलि बात छ पर अंधश्रद्धा में डुबण ठीक नि हय | हाम पैली आपूं कैं लुटण दिनू, लुटण क बाद मसमसानू और फिर अघिलां हूंलै आपू कैं लुटण दिनू | य कसि श्रद्धा हइ ? यै पर जरूर मंथन हुण चैंछ |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ०८.१२.२०१६ 

Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत-१३७ : भैम, भ्रम या वहम ,१४.१२.१६

     मैं काल्पनिक बहुत कम लिखता हूं | जो देखा या जो हो सकता है अथवा जिसे किया जा सकता है वही लिखता हूँ | अंधविश्वास का विरोध मैं अक्सर करता हूं | अंधविश्वास का एक रूप भ्रम भी है | भ्रम, भैम या वहम बहुत बुरी चीज है | इसका इलाज भी नहीं है | जो भ्रम का शिकार हो जाता है उसका चैन- सुकून सब उड़ जाता है, यहाँ तक कि वह रोग ग्रस्त भी हो सकता है | मेरा मानना है कि भ्रम को मन में पनपने नहीं दिया जाय | इस सम्बन्ध में एक पुरानी याद यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ |

      बात १९७१ की है जब मैं अपने साथी सैनिकों के साथ पंजाब के हुसैनीवाला बॉर्डर पर सतलज नदी के किनारे एक छोटी सी बैरेक में रहता था | हम आठ लोग उस बैरेक में रहते थे | तब मेरी उम्र मात्र २३ वर्ष की थी और मैं बैरेक में रहने वालों में सबसे छोटा था | छोटा होने के बावजूद भी सब मेरी बड़ी कद्र करते थे, मुझ पर विश्वास करते थे | जब सायं को सभी एकत्र होते थे तो हंसी –मजाक भी चलती थी और आपसी बहसबाजी भी | कभी घर की बात तो कभी ड्यूटी की और कभी इधर-उधर की | कभी कभी आपस में खुराफात या जुमलेबाजी भी करते थे | कुछ अधिक तो कुछ कम बोलते थे परन्तु बोलना या एक-दूसरे को छेड़ना अथवा चुटुकुलेबाजी चलती थी |

      हमारे बीच एक तिवारी जी भी थे जो हमसे कुछ अलग थे परन्तु थे बहुत ही शरीफ | वे कम बोलते थे परन्तु मेरे साथ उनका बोलना- चालना औरों से अधिक था | वे मेरी प्रत्येक बात को बड़ी संजीदगी से लेते थे | वे नहा कर बदन पर सरसों का तेल भी मलते थे | बिलकुल सौम्य प्रकृति थी उनकी | भगवान के नाम पर एक चित्र के सामने रोज अगरबत्ती भी जलाते थे | तेल लगाते समय वे एक एक पैर को बारी बारी से खटिया में रख कर मालिश करते थे | सभी लोग उनके मालिश पर भी कुछ न कुछ कहते थे |

     एक दिन एक साथी को खुराफात सूझी | तिवारी जी तब नहाने गए हुए थे | खुराफाती मित्र बोला, “भई आज तिवारी जब तेल मालिश करेगा तो उससे कह दो कि तेरी एक टांग छोटी है | देखते हैं क्या रिऐक्सन करता है |” दूसरा साथी बोला, “वह यकीन तभी करेगा जब ये (मेरा नाम लेकर ) उससे कहेगा, वरना हमारी तो वह सुनेगा भी नहीं और न यकीन करेगा |” मेरे कई बार मना करने पर भी उन्होंने मुझे मना ही लिया और मैं राजी जो गया | ज्यों ही तिवारी जी नहा कर आये और बारी बारी से टांगों की तेल मालिश करने लगे, मैंने उनकी तरफ देखते हुए कह दिया, “तिवारी जी मुझे आपकी ये बायीं टांग कुछ छोटी नजर आ रही है |” सबने एकसाथ कह दिया, “हाँ दिख तो रही है |” तिवारी जी अपनी दोनों टांगों को एकसाथ कर ध्यान से देखने लगे |

     तिवारी को मेरे कहने से यकीन हो गया कि उसकी बायी टांग छोटी है | एक दिन एकांत में गंभीर हो कर मेरे सी पूछने लगे, “यार ये क्यों छोटी हो गयी होगी ?” मैंने उन्हें समझाया कि ठीक हो जायेगी | तिवारी को भ्रम हो गया कि उसकी टांग छोटी है | लगभग एक महीने बाद तब बहुत दुःख हुआ जब देखा कि तिवारी की टांग सचमुच आधा इंच छोटी हो गयी | मुझे ऐसा लगा कि मैंने मजाक- मजाक में यह कितनी बड़ी गलती कर दी है | तिवारी बहुत उदास रहने लगा और मैं अपने को हत्यारा समझने लगा क्योंकि तिवारी को मुझ पर बड़ा यकीन था कि मैं इस तरह कि घटिया खुराफाती मजाक नहीं कर सकता | मुझे हिम्मत नहीं हुयी कि मैं तिवारी से इस बात को कैसे कहूं ताकि उसका भ्रम मिट जाय |

     आने वाले रविवार को में मौका देखकर तिवारी को यूनिट के नजदीक ही सतलज नदी के किनारे ले गया | वहाँ मैंने तिवारी को शुरू से लेकर आखिर तक की सारी बात बता दी और उसकी गोद में अपना सिर रख कर कई बार माफी मांगी | जब उन्हें मेरी बात का यकीन हो गया तब हम वहाँ से वापस आये | कुछ दिन बाद तिवारी की टांग ठीक हो गयी और वह अब पहले के बजाय थोड़ा-बहुत बोलने या मजाक करने लगे | टांग छोटी होने का कारण था भ्रम | जब हम भ्रम के शिकार हो जाते हैं तो सबसे अधिक हमारे ग्रंथी तंत्र (glandular system) पर असर पड़ता है | कई ग्रंथियां तो काम करना छोड़ देती हैं और कई अधिक सक्रीय हो जाती हैं | तिवारी की एड़ी की मसल इस भ्रम के कारण कुछ सिकुड़ गयी और वे टेड़ा चलने लगे क्योंकि वे मान चुके थे की उनकी एक टांग छोटी है | भ्रम दूर होते ही सब ठीक हो गया पर मैं अपने को माफ़ न कर सका | जो व्यक्ति मुझ पर बहुत यकीन करता था उसके साथ मैंने ऐसा मजाक नहीं करना चाहिए था | अत: इस तरह का मजाक नही किया जाय | साथ ही व्यक्ति को कभी भी भ्रम का शिकार नहीं होना चाहिए क्योंकि भ्रम का कोई इलाज भी तो नहीं है | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, १४.१२.१६   
 

 

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