दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ,१५.१२.१६
पुज क सच और भगवान कैं घूस
पुज क सच हम जाणि बेर लै छिपूनू | पूजालयों में मूर्तियों क सामणि धूप- अगरबत्ती जलै बेर और भेंट आदि खिति बेर अक्सर हम समझनू कि पूजा –अर्चना क द्वारा हम ईश्वर कैं ख़ुशि करण क प्रयास करै रयूं पर य सांचि बात न्हैति | सांचि बात त य छ कि हम मात्र आपण भौतिक सुखों क खातिर ईश्वर कैं याद करनू ताकि हमार घरों में लक्ष्मी क बाट खुली रो, परिवार में सुख-शांति बनी रो और जीवन में दुःख और परेशानियों क कभै लै सामना नि करण पड़ो | अन्यथा क्ये आज तक कैलै मंदिरों में मूर्तियों क सामणि कैकणी य कौण सुणछ कि – “हे भगवान्, तुम ख़ुशि रया, और सुखल रया ?’
हम भगवान कैं घूस लै दिनू | भ्रष्टाचार हमार देश में एक आम बात छ जमें हमुकैं क्ये लै ताजुब नि हुन बल्कि य हमरी जीवन में एक शैली बनि गे | हम भ्रष्टों कैं सुधारण क बजाय उनुकैं सहन करण फै गोयूं | हम आपण भगवान कैं कएक किस्म कि भेट चढूनू और बद्याल में भगवान हैं बै कृपा चानू | यसिक हम कर्मसंस्कृति क त्याग करि बेर भगवान हैं बै आपण लिजी पक्षपात चानू | आम जीवन में सौदेबाजी हैं ‘रिश्वत’ कई जांछ | धनी लोग पूजालयों में नकद भुगतान कि जाग पर सुन क मकुट या आभूषण चढूनीं | यास किस्माक करोड़ों रुपै क मुकुट- दान क समाचार हम आये दिन सुणनू या पढ़ते रौनू |
हमार देशा क कुछ मंदिरों में यतू धन चढ़ाव में औंछ कि मंदिरों वाल य समझि निपान कि उ धन क्ये करीजो ? अरबों रुपै कि सम्पति तहखानों में पड़ि रैछ | हम देशा क क्वे लै कुण में जौ, ग्रामीण भारत हो या शहर, हम धन क उपयोग मंदिर बनूण में ई करनूं | अकूत धन हुण पर लै हम क्वे स्कूल, पुस्तकालय या वाचनालय, अतिथि गृह अथवा सर्वजन उपयोग कि क्वे सुविधा संबंधी निर्माण करण कि नि सोचन | हमार इस्कूलों में बुनियादी चीज जस कि अल्मारि, कुर्सि, डेस्क, ब्लैक बोर्ड, कंप्यूटर कम्र आदि न्हैति | हम इनार बार में नि सोचन बल्कि नजीक क मंदिर में घंटी, छत्र या गुम्बद बनूण पर जोर दिनू और वाह-वाही लुटण क चक्कर में रौनू | हमुकैं लागूं कि भगवान लै कुछ भल करण क लिजी चढ़ाव स्वीकार करनीं और हम य रिश्वत लेन-देन क भ्रष्टाचार में शामिल है जानूं |
मन में एक बात उठीछ कि हमूल य भगवान दगै सौदेबाजी कि संस्कृति क्यलै अपनै ? हम अगर नैतिक आचरण करना, कर्मसंस्कृति पर विश्वास करना, ईमानदारी ल गुजार करना तो हम सबूंकि उन्नति हुनि | हम धर्म क आधार पर पूजालयों में बांटी बेर रै गाय | हम आपूं कैं भारतीय कई जाण क बजाय हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आदि कई जाण में विश्वास करण फै गाय | हम भुलि गाय कि कुछ वर्ष पैली तक हम सब एकै पंथ छी | हमार बंटवार लै धर्म कै अधार पर हौछ | हम भुलि गाय कि हम सब एकै ईश्वर कि संतान छ्यूं |
आज हम अध्यात्म में अंधविश्वास कैं मिलै बेर परोसै रयूं | अध्यात्मिकता लै एक दुकानदारी बनि गे | ग्राहकों कि क्वे कमी न्हैति, विशेषकर महिला ग्राहकों कि | हमरि जिन्दगी में भौतिकवाद ल भौत तनाव पैद करि है जैक वजैल हम तथाकथित अध्यात्मवादियों कि शरण में जा रयूं जनार पास चिकनी- चुपड़ी बातों और पाखण्ड क और क्ये न्हैति | हम य भौतिकता कि प्राप्ति कि खोज में कएक किस्माक बीमारियों क शिकार लै है गोयूं | हमरि य कमजोरी क वाकपटुता क विशेषज्ञ खूब लाभ उठूनीं | इनार चक्कर में हम समय और धन द्विनों कि बर्बादी करै रयूं | इनार खुट छुंगण कि लै होड़ लै रीं | हमूल यथार्थ कैं समझते हुए इनार परपंच कैं जाणण- समझण क प्रयास करण चैंछ |
जिन्दगी कैं जीण लै एक कला छ | सफल जीवन उ ई छ जो कर्मसंस्कृति क पायदानों में चलते हुए, मुसीबतों देखि नि घबराते हुए और दुसरां क अनुभवों ल सिखनै अघिल बढूं, आपणि पछ्याण बनूं | उ ई मनखी सफल छ जो अंधश्रद्धा अथवा अंधविश्वास क भंवर बटि आपूं कैं बचूनै जनहित क काम में आपण धन क सदुपयोग करूं | भगवान कभै लै कै हूं क्ये नि मांगन जबकि ऊँ कर्मसंस्कृति क राहगीर पर सदैव और सर्वदा आपणि कृपा करनीं | भल काम करण ल हमुकैं सुकून मिलूं, हमर मनोबल माथ उठूं जैल हम कर्मसंस्कृति क बटौव बनि जानूं जैहूं दुसार आखंरों में भगवान कि कृपा लै कै सकनूं ताकि हम अहंकार है दूर रै सकूं |
पूरन चन्द्र काण्डपाल, १५.१२.२०१६