Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 114851 times)

Pooran Chandra Kandpal

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दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

फ्री फंड क चक्कर, १२.०१.२०१७

     समाज में व्याप्त समस्याओं पर नजर धरणी चनरदा जब लै भी मिलनी, पुछण पर आपण विचार प्रकट करि दिनी | हमार समाज में कुछ लै मुफ्त में मिलूं तो लोग उ तरब हैं दौड़ि पड़नी | यौ फ्री प्राप्ति कि दौड़ पर चनरदा बलाय, “समाज में जब कुछ लै खैरात बांटी जैंछ तो लोग उकैं पाण क लिजी दौड़ि पड़नी चाहे य डिटरजेंट क सैम्पल हो, साबण हो, चहा हो या टूथपेस्ट या भुष क्यलै नि हो | यौ फ्री क चक्कर में मनखी य नि सोचन कि य अनजान मैंस हमुकैं फ्री में चीज- बस्त क्यलै बांटें रौ ?

     चनरदा बतूनै गाय, “फ्री क प्रसाद दि बेर कुख्यात अपराधी चार्ल्स शोभराज कुछ वर्ष पैली तिहाड़ जेल बै भाजि गो | उ जाणछी कि गेट पर भैटी पुलिस वाल लै प्रसाद खाण में देर नि करा | वील प्रसाद में बेहोश हुण क  नुस्ख मिलै बेर पुलिस कैं खवै दे और चकम दी बेर भाजि गो जो बाद में नेपाल में पकड़ी गो | न्यूतेर (ब्या क पैल ब्याव में फ्री दारू स्वागत ) में फ्री कि शराब प्येवायी जैंछ | रिसेप्शन में लै फ्री प्येवूण क रिवाज चलि गो आब | फ्री मिलै रइ तो बिन ब्रैंड पुछिये लोग औकात है लै ज्यादै गटिकि ल्हीनी  और डिनर हुण तक उनरि भाव- भंगिमा और चाल क कचूमर है जांछ | बाद में उ मुफ्त- गटकू कैं वीक कुछ लंगोठि यार वीकि ठौर तक घुरै औनी | “

     “नवरात्रों में मिलणी फ्री क पुरि लै कंचक बनी नानतिन पार्कों- सड़कों में ख्येड़ि जानी फैंक | क्वे लै हमुकैं फ्री में क्वे धार्मिक यात्रा या दर्शन क लिजी हिटो कई चैंछ हाम खुशि हुनै बिना पुछिये बाट लागि जानूं | ‘जातुरि नाण गाय हुमण दगाड़ लाग |’ फ्री कि मौज- मस्ती क्वे नि छोड़न भलेही बाद में पछताण पड़ो | सड़क दुर्घटना में पेट्रोल क टेंकर पलटि जांछ | देखन- देखनै लोग भान ल्ही बेर वां पुजि जानी और मुणि फना पोखर बदी पेट्रोल कैं आपण भना में भरण फै जानी | यौ ई बीच क्वे बिड़ि सुलगौ और आग लै जांछ | कएक लोग झुलसि जानी | यौ घटना कुछै दिन पैलिक कि छ | मुफ्तियों ल पेट्रोला क पिछाड़ि आपणी ज्यान कि परवा नि करि |”

     चनरदा ल उत्तराखंड में फ्री फंड कि बस यात्रा क बार में लै बता | ऊँ बलाय, “उत्तराखंड सरकार ल वरिष्ठ नागरिकों कैं जीरो टिकट पर फ्री यात्रा सुलभ करि रैछ | सबै सीनियर सिटिजन यैक फैद उठूं रईं | इनूमें ऊँ लै छीं जनरि पेंशन हजारों में छ | ऊँ किराय दीण में सक्षम लै छीं पर फ्री राइड क्यलै छोड़ी जो ? म्यर एक परिचित पिथौरगढ़ बै हल्द्वाणि औं रौछी | लगभग तीन सौ रुपै क टिकट हय और पांच घंट कि यात्रा | उ वरिष्ठ नागरिक नि छी | वील बता, “सबै सीनियर सिटिजन ठाड़- ठाड़े चार-पांच घंट कि फ्री यात्रा जीरो टिकट पर करै राय | पिछाड़ि बै के एम् ओ कि बस खाली औं रइ | टिकट ल्हीण पड़ल कै उमें क्वे नि जान |”

       “सरकारि बस लै कम छीं और इक्का- दुक्का ई चलनी | यात्रा में टिकट नि लागण ल कुछ सीनियर सिटिजन बिन जरवतै (गैर- आवश्यकीय) यात्रा लै करनी जैक वजैल बस में भीड़ है जींछ | ज्यादैतर सीनियर सिटिजन बस में टिकटधारी यात्रियों हैं बै सीट खालि करण कि उम्मीद धरनी | टिकटधारी आपणि सीट यैक वजैल नि छोड़न क्यलै कि टिकट ल्ही बेर ऊँ पांछ घंट ठाड़ नि रौण चान जबकि ऊँ जां बटि बस लागीं वै बै टिकट ल्ही बेर बस में भै रईं |”

     चनरदा बलानै गाय, “अब सवाल उठूँछ कि भलेही उम्र क आदर हुण चैंछ पर यात्री पांच घंट ठाड़- ठाड़े यात्रा करण में परेशान त है ई जाल | यैक वजैल उ जां बटि बस चलीं वै बै सीट हुण पर टिकट ल्युंछ | रेलवे में सीनियर सिटिजन कैं साठ प्रतिशत किराय दीण पडूं | सरकार कि आपणी सोच छ | सरकार कैं त उई करण छ जो वीक हित में हो | फ्री में भौत कुछ दी बेर देशा क एक हिस्स में मरण बाद लै ‘अम्मा- अम्मा’ है रै | एक उ गांधी छी जो आपातकाल क अलावा क्वे लै किस्मे कि मुफ्त खैरात क पक्ष में नि छी | उनर कौण छी कि ‘जो लोग बिना काम करिए खानी या ल्हीनी ऊँ क्वे चोर है कम न्हैति |’ मुफ्त में खैरात बांटण क बजाय काम दियी जाण चैंछ |’ हम ‘मुफ्त का चन्दन, घिस मेरे नंदन’ क मन्त्र ल्ही बेर घूमें रयूं और मुफ्त कि ताक में टकि- टकि लगै बेर भै रयूं |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, १२.०१.२०१७

     

Pooran Chandra Kandpal

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दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

शोर लै एक खतरनाक प्रदूषण छ, १९.०१.२०१७

     ध्वनि प्रदूषण अर्थात शोर (जोर कि आवाज) समाज में एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या छ | कुछ वर्ष पैली सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता मनोज कुमार ल यौ समस्या पर ‘शोर’ नामक कि फिल्म लै बनै जमें लोगों क ध्यान यौ समस्या क प्रति आकर्षित करिगो और जनजागृति करण क प्रयास करिगो | शोर ल हाम काल त है ई सकनूं, यैल याददाश्त में कमी, सद्म, ख्वार पीड़ और तंत्रिका तंत्र में खलबली लै मचि सकीं | शोर क प्रदूषण ल मनखी नपुंसकता और कैंसर क शिकार लै है सकूं | डाक्टरों क मानण छ कि शोर क प्रदूषण ल स्वास्थ्य कैं उ नुकसान है सकूं जैकि भरपाइ कभैं लै नि है सकनि |

     समाज में शोर करणी अर्थात ध्वनि प्रदूषण क कएक कारक छीं | आये दिन हमार इर्द- गिर्द कएक धार्मिक कार्यक्रम हुनी जस कि जगराता या जागरण, अखंड पाठ या क्वे धर्म संबंधी आयोजन | दिवाइ में पटाखों क शोर और रासायनिक प्रदूषण क साथ ब्या क सीजन में बरयातघरों क पास पटाखों क शोर | बरयातघर अक्सर आवासीय कालोनियों क पास हुनी और बरयात क्वे न क्वे कारण ल हमेशा देर रात तक पुजीं | बरयात पुजते ही पटाखों क बक्स धड़ाधड़ खालि हुण फै जांछ | शहरों में य एक आम समस्या छ | जागरण- जगरातों में त पुरि रात भौत जोर क शोर सहन करण पडूं | उ रात उ इलाक क आस-पास क्वे आपण घर में स्ये लै नि सकन |

    वाहनों क हौर्न क शोर लै लोग भौत दुखी छीं | रात कै हौर्न बजूण मना छ पर अक्सर लोग रात कै भौत जोर ल हौर्न बजूनी | द्विपईय वाहनों पर  लोगों ल ट्रकों- बसों क हौर्न लगै रईं ताकि लोग उ हौर्न क शोर ल कम्पित है बेर सड़क छोड़ि दीण | पुलिस कैं य सब देखियूं लै और सुणियूं लै पर उ अणदेखी करि दीं | जागरण क जोर और बरयातघर में बाजणी डी जे – पटाखों क शोर क बार में पुलिस हैं शिकैत करण पर परिणाम क्ये लै नि निकउन | पैली त पुलिस औनी ना और ऐ लै ग्येई तो शोर मचुणियां दगै समझौत करि बेर न्है जींछ | यस अक्सर देखण में औंछ | यैक अलावा रिहायसी इलाकों में कल- कारखानों क शोर लै लोगों कैं भौत दुखी करूं |

     कानून क हिसाब ल शहरों में रात दस बजी बाद पटाखा चलूंण मना छ | रात दस बजी बटि रत्ते छै बजी तली ७५ डेसिबल (अर्थात एक कम्र में साधारण आवाज ) ( कान में खुसू- खुशु बलाण कि आवाज १५ डेसिबल हिंछ ) है ज्यादै क शोर गैर कानूनी छ | य क़ानून क उल्लंघन करण पर एक लाख रुपै क जुर्मान या पांच साल तक कि जेल या द्विये सजा एक साथ है सकनी | यैक लिजी पुलिस में रपोट करण पड़लि और मुकरदम दर्ज करण पड़ल |

     अगर पुलिस में रपोट करी जो तो जागरण, डी जे, हौर्न और कल-कारखानों क शोर है मुक्ति मिल सकीं | समस्या य छ कि लोग पुलिस क सहयोग नि मिलण और कानूनी पेचदगी क डर ल रपोट करण कि हिम्मत नि करन जैकि वजैल शोर प्रदूषण निरोध कानून कि खुलेआम अवहेलना हिंछ | पहल को करल ? हम सब त मसमसाते रौनू | घर में भैटि बेर आपणी बेचैनी बढूंण क बजाय यैक विरोध में पुलिस कैं खबर करण क प्रयास त हम करी सकनूं |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, १९.०१.२०१७



Pooran Chandra Kandpal

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दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै, २६.०१.२०१७

लौंड नपुंसक लै है सकनी मोबाइल फौन ल 

     शुक्राणुओं (नर में पायी जाणी प्रजनन जीवाणु ) पर असर डाउणी मोबाइल फौन क बार में सचेत करणी यौ चिठ्ठी अणब्यवाई लौंडों कैं समर्पित छ | मोबाइल फौन क अविष्कार वर्ष १९७३ में अमेरिका क मार्टिन कूपर ल करौ | हमार देश में यैक प्रचलन १९९५ में हौछ | वर्तमान में हमार देश में मोबाइल फौनों कि अंदाजन संख्या करीब द्वि सौ करोड़ बताई जैंछ जो दिनोंदिन बढ़ते जा रै | मोबाइल क फैद त हम सबै जाणनूं | आज मोबाइल फौन एक भौत जरूरी चीज बनिगो | हम आपण देश में एक साधारण आय वाल मनखिया क पास लै मोबाइल फौन देखैं रयूं | अब त मोबाइल ल कएकों काम करि जां रईं, यां तक कि ‘मेरा बटुवा मेरा बैंक’ लै मोबाइल फौन कैं बताई जांरौ |

     क्वे लै काम औणी चीज क अगर दुरुपयोग है गोयौ तो उ नुकसान दिणी लै है सकीं | ‘अति सर्वत्र वर्जेत’ लै कै गयीं लोग | बताई जारौ कि मोबाइल फौन ज्यादै इस्तेमाल करण ल स्पोंडिलाइटिस सहित कएक बीमारी लै है सकनी | नना क अखां पर लै यैक भौत कुप्रभाव पडूं बतायी जारौ | वदिल स्यैणियां कैं लै ज्यादै मोबाइल इस्तेमाल करण पर नुकसान है सकूं | प्रजनन चिकित्सा विशेषज्ञों ल मोबाइल फौन क सबू है लै ठुल नुकसान पुरुषों में नपुंसकता (इन्फरटिलिटी) क खतर बताई जांरौ |

      एक समाचार क अनुसार डेड़ सौ है ज्यादै चिकित्सा विशेषज्ञों ल यै  पर भौत ठुलि चर्चा करि बेर यौ तथ्य क पत्त लगा | विदेश में करी एक सर्वे और शोध क आधार पर उनूल बता कि रोजाना चार घंट है ज्यादै मोबाइल फौन क इस्तेमाल करणी पुरुषों में शुक्राणुओं कि संख्या और उनरि गतिशीलता सामान्य है लै कम पायी ग्ये | यौ बात क समर्थन ‘फर्टिलिटी एंड स्टर्लिटी’ में प्रकाशित एक अध्ययन ल लै करौ | उनूल स्पष्ट करौ कि मोबाइल फौन क वजैल सेमिनल फ्लूड (बीर्य) कि गुणवता में लै कमी ऐछ | 

     ब्रिटेन में एक्सेटर विश्वविद्यालय में लै एक अध्ययन करिगो जां एक शोध में पाई गो कि सुरयाव (पतलून) कि की जेब में मोबाइल धरण पर शुक्राणुओं कि गुणवता में कमी ऐ जींछ | भारत में यैक वजैल चालीस प्रतिशत मामलों में दम्पतियों कैं गर्भधारण में कठिनाई हैछ जैकैं कएक डाक्टरी उपायों ल ठीक करिगो |

     एक स्वस्थ युवा में शुक्राणुओं (स्पर्म) कि संख्या चार करोड़ बटि तीस करोड़ प्रति मिली लीटर सेमिनल फ्लूड हुण चैंछ | यै है तली कि संख्या कम अर्थात अस्वस्थ मानी जालि | सेमिनल फ्लूड क वौल्यूम लै ढाई मिलीलीटर हुण चैंछ | अगर यूं द्विये कम छीं तो लौंडों कैं बाप बनण क लिजी डाक्टरी  परामर्श ल्हींण भौत जरूरी छ | बचाव क बतौर कई जै सकूं कि अणब्यवाई लौंडों कैं मोबाइल फौन सुरयाव क जेब में नि धरण चैन और खुद कैं स्वस्थ वैवाहिक जीवन में गुजरण दींण चैंछ | कै लै रौछ (‘prevention is better than cure’ ) इलाज करण है बचाव करण उत्तम छ |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, २६.०१.२०१७ 




Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत -१४४ : देश के बहादुर बच्चे

     देश के बहादुर बच्चों को ‘राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार’ भारतीय बाल कल्याण परिषद द्वारा वर्ष १९५७ से प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस पर प्रधान मंत्री द्वारा प्रदान किये जाते हैं | प्रत्येक राज्य में परिषद् की शाखा है | प्रतिवर्ष ०१ जुलाई से ३० जून के बीच छै वर्ष से बड़े और अठारह वर्ष से छोटी उम्र के वे बच्चे ग्राम पंचायत, जिला परिषद्, प्रधानाचार्य, पुलिस प्रमुख एवं जिलाधिकारी की संस्तुति के बाद परिषद् की राज्य शाखा को आवेदन कर सकते हैं जिन्होंने स्वयं को खतरे में डाल कर अपनी जान की परवाह नहीं करते हए दूसरों की जान बचाई हो |

     इस पुरस्कार हेतु पुलिस रिपोर्ट एवं अखबार की कतरन प्रमाण के बतौर होनी चाहिए | वर्ष १९५७ से २०१६ तक ९४५ बच्चों को यह सम्मान मिल चुका है जिसमें ६६९ लड़के और २७६ लड़कियां शामिल हैं | इस पुरस्कार में चांदी का पदक, नकद राशि और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है | सर्वोच्च बहादुरी के लिए स्वर्ण पदक और विशेष बहादुरी के लिए भारत पुरस्कार, संजय चोपड़ा, गीता चोपड़ा और बापू गयाधानी पुरस्कार प्रदान किया जाता है | ये बच्चे गणतंत्र दिवस परेड में विशिष्ट वाहन में बैठकर राजपथ परेड स्थल से गुजरते हैं और राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री से भी मिलते हैं |

     वर्ष २०१६ के लिए यह पुरस्कार २५ बच्चों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा २३ जनवरी २०१७ को दिया गया जिनमें १३ लड़के और १२ लड़कियां हैं | इनमें से ४ बच्चों को यह सम्मान मरणोपरांत दिया गया जिसे उनके अभिभावकों ने ग्रहण किया | इस वर्ष २०१६ का संजय चोपड़ा पुरस्कार उत्तराखंड के रहने वाले सुमित ममगई को प्रदान किया गया | १५ वर्ष के सुमित ने अपने से बड़े चचेरे भाई रितेश को तेंदुवे के ग्रास होने से बचाया | जब तेंदुवा रितेश को घसीटते हुए ले जा रहा था तो रितेश ने सुमित को अपनी जान बचाकर भागने को कहा परन्तु सुमित ने तेंदुवे की पूंछ जोर से पकड़ ली और उसे हंसुवे से तब तक पीटता रहा जब तक वह रितेश को छोड़कर भाग नहीं गया और रितेश के जान बच गयी | हमें उत्तराखंड के इस बच्चे पर गर्व है जिसने अपनी जान पर खेलकर अपने बड़े भाई को बचाते हुए उत्तराखंड के नाम भी बहादुर बच्चों की सूची में जोड़ दिया |

     इस वर्ष के बहादुर बच्चों की सूची में असम, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, केरल, पश्चिम बंगाल, छतीसगढ़, दिल्ली, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान, ओड़िसा, कर्नाटक, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर और  उत्तरप्रदेश राज्यों से हैं |

     हमें इन बच्चों की चर्चा अपने परिवार में और अन्य बच्चों से अवश्य करनी चाहिए ताकि उनमें बहादुरी का जज्बा उपजे और वे भी वक्त की मांग पर दूसरों की जान बचाने में पीछे न रहें | देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिलने का यह सुनहरा अवसर इन्हीं बच्चों को मिलता  है | अगली बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
०२.०२.२०१७

Pooran Chandra Kandpal

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दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

देशा क बहादुर नान

     देशा क बहादुर नना कैं ‘राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार’ भारतीय बाल कल्याण परिषद द्वारा वर्ष १९५७ बटि हर साल गणतंत्र दिवस क मौक पर प्रधान मंत्री द्वारा प्रदान करी जानी | हरेक राज्य में परिषद् कि शाखा छ | हर साल ०१ जुलाई बटि ३० जून क बीच छै वर्ष है ठुल और अठारह वर्ष है कम उम्रा क ऊँ नान ग्राम पंचायत, जिला परिषद्, प्रधानाचार्य, पुलिस प्रमुख और जिलाधिकारी कि संस्तुति क बाद परिषद् कि राज्य शाखा कैं आवेदन करि   सकनी जनूल आपणि जिन्दगी कि परवा नि करि बेर औरों कि ज्यान  बचै |

     यौ पुरस्कार क लिजि पुलिस रिपोर्ट और अखबार की कतरन प्रमाण क बतौर हुण चैंछ | वर्ष १९५७ बटि २०१६ तक ९४५ नना कैं यौ सम्मान मिल चुकि गो जमें ६६९ च्याल और २७६ च्येलिय शामिल छीं | यौ पुरस्कार में चांदी क पदक, नकद राशि और प्रशस्ति पत्र दिई जांछ | सर्वोच्च बहादुरी क लिजि सुन क पदक और विशेष बहादुरी क लिजि भारत पुरस्कार, संजय चोपड़ा, गीता चोपड़ा और बापू गयाधानी पुरस्कार प्रदान करी जांछ | यूं नान  गणतंत्र दिवस परेड में विशिष्ट वाहन में भैटि बेर राजपथ परेड स्थल बटि  गुजरनी और राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री दगै मिलनी |

     वर्ष २०१६ क लिजि यौ पुरस्कार २५ नना कैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ज्यू  द्वारा २३ जनवरी २०१७ हुणि दिई गो जमें १३ च्याल और १२ च्येलिय छी | इनुमें बै ४ नना कैं यौ सम्मान मरणोपरांत दिई गो जैकैं उनार इज-बौज्यू ल ग्रहण करौ | यौ साल २०१६ क संजय चोपड़ा पुरस्कार उत्तराखंड क रौणी  सुमित ममगई कैं दिई गो | १५ वर्ष क सुमित ल आपू है ठुल आपण काक क च्यल (दाद) रितेश कैं गुल्दाड़ क खबाड़ है बचा | जब गुल्दाड़ रितेश कैं घसोड़ि ल्ही जां रौछी तो रितेश ल सुमित हैं आपणि ज्यान बचै बेर भाजण क लिजि कौ पर सुमित ल गुल्दाड़ क पुछड़ जोर ल पकड़ि बेर उकैं दातुलि तब तक मारनै रौ जब तक वील रितेश कैं छोड़ ना | आखिर में गुल्दाड़ रितेश कैं छोड़ि बेर भाजि गो और रितेश कि ज्यान बचि ग्ये | हमुकैं उत्तराखंड क यौ बहादुर नान पर गर्व छ जैल आपणि ज्यान पर खेलि बेर आपण काक क च्यल कैं बचूनै उत्तराखंड क नाम लै बहादुर नना कि सूची में जोड़ि दे |

     यौ साल क बहादुर नना कि सूची में असम, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, केरल, पश्चिम बंगाल, छतीसगढ़, दिल्ली, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान, ओड़िसा, कर्नाटक, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर और  उत्तरप्रदेश राज्यों बटि छीं |

     हमुकैं यूं बहादुर नना कि जिगर आपण घर- परिवार में और दुसार नना दगै जरूर करण चैंछ ताकि उनुमें लै बहादुरी क जज्ब पैद हो और ऊँ लै बखत कि मांग पर औरों कि ज्यान बचूण में पिछाड़ि नि रौण | देशा क राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री द्गै मिलण क जो यौ सुनहरी मौक यूं नना कैं मिलूं छ उ सबू कैं नि मिल सकन | कुर्मांचल अखबार कि पुरि टीम और पाठक यूं बहादुर नना कैं भौत- भौत बधै दीण में फक्र महसूस करैं रईं |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
०२.०२.२०१७


Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत १४५ : गांधी को क्यों नहीं मिला ‘नोबेल पुरस्कार’ ?

     मोहन दास करम चन्द गांधी (महात्मा गांधी, बापू, राष्ट्रपिता) का जन्म २ अक्टूबर १८६९ को पोरबंदर, गुजरात में हुआ | उनकी माता का नाम पुतली बाई और पिता का नाम करम चन्द था | १३ वर्ष की उम्र में उनका विवाह कस्तूरबा के साथ हुआ | गांधी जी १८ वर्ष की उम्र में वकालत पढ़ने इंग्लैण्ड गए | वर्ष १८९३ में वे एक गुजराती व्यौपारी का मुकदमा लड़ने दक्षिण अफ्रीका गए |

     दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने रंग- भेद निति का विरोध किया | ७ जून १८९३ को गोरों ने पीटरमैरिटजवर्ग रेलवे स्टेशन पर उन्हें धक्का मार कर बाहर निकाल दिया | वर्ष १९१५ में भारत आने के बाद उन्होंने सत्य, अहिंसा और असहयोग को हथियार बनाकर अन्य सहयोगियों के साथ स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और देश को अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्र कराया | ३० जनवरी १९४८ को नाथूराम गौडसे ने नयी दिल्ली बिरला भवन पर उनकी गोली मारकर हत्या कर दी | इस तरह अहिंसा का पुजारी क्रूर हिंसा का शिकार हो गया | देश की राजधानी नयी दिल्ली में राजघाट पर उनकी समाधि है |

      पूरे विश्व में महात्मा गांधी का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है | संसार में बिरला ही कोई देश होगा जहां बापू के नाम पर कोई स्मारक न हो | परमाणु बमों के ढेर पर बैठी हुयी दुनिया भी गांधी के दर्शन पर विश्वास करती है और उनके बताये हुए मार्ग पर चलने का प्रयत्न करती है | विश्व की  जितनी भी महान हस्तियां हमारे देश में आती हैं वे राजघाट पर बापू की समाधि के सामने नतमस्तक होती हैं | इतना महान व्यक्तित्व होने के बावजूद भी विश्व को शान्ति का संदेश देने वाले इस संदेश वाहक को विश्व में सबसे बड़ा सम्मान कहा जाने वाला ‘नोबेल पुरस्कार’ नहीं मिला | क्यों ?

     नोबेल पुरस्कार’ प्रदान करने वाली नौरवे की नोबेल समिति ने पुष्टि की है कि मोहनदास करम चन्द गांधी नोबेल शांति पुरस्कार के लिए १९३७, १९३८, १९३९, १९४७ और हत्या से पहले जनवरी १९४८ में नामांकित किये गए थे | बाद में पुरस्कार समिति ने दुःख प्रकट किया कि गांधी को पुरस्कार नहीं मिला | समिति के सचिव गेर लुन्देस्ताद ने २००६ में कहा, “ निसंदेह हमारे १०६ वर्षों से इतिहास में यह सबसे बड़ी भूल है कि गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिला | गांधी को बिना नोबेल के कोई फर्क नहीं पड़ा परन्तु सवाल यह है कि नोबेल समिति को फर्क पड़ा या नहीं ?”

     १९४८ में जिस वर्ष गांधी जी शहीद हुए नोबेल समिति ने उस वर्ष यह पुरस्कार इस आधार पर किसी को नहीं दिया कि ‘कोई भी योग्य पात्र जीवित नहीं था |’ ऐसा माना जाता है कि यदि गांधी जीवित होते तो उन्हें बहुत पहले ही ‘नोबेल शांति’ पुरस्कार प्रदान हो गया होता | महात्मा गांधी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ भी नहीं दिया गया क्योंकि वे इस सम्मान से ऊपर हैं |

     सत्य तो यह है कि अंग्रेज जाते- जाते भारत का विभाजन कर गए | गांधी जी ने विभाजन का अंत तक विरोध किया | जिन्ना की महत्वाकांक्षा ने तो विभाजन की भूमिका निभाई जबकि भारत के विभाजन के बीज तो अंग्रेजों ने १९०९ में बोये और १९३५ तक उन बीजों को सिंचित करते रहे तथा अंत में १९४७ में विभाजन कर दिया | भारत में राम राज्य की कल्पना करने वाले गांधी, राजनीतिज्ञ नहीं थे बल्कि एक संत थे | गांधी को ‘महात्मा’ का नाम रवीन्द्र नाथ टैगोर ने और ‘राष्ट्रपिता’ का नाम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने सम्मान के बतौर सुझाया था | आज भी दुनिया कहती है कि गांधी मरा नहीं है, वह उस जगह जिन्दा है जहां दुनिया शांति और अमन-चैन की राह खोजने के लिए मंथन करती है | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ०८.०२.२०१७   


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 गांधी ज्यू कैं क्यलै नि मिल ‘नोबेल पुरस्कार’ ?

     मोहन दास करम चन्द गांधी (महात्मा गांधी, बापू, राष्ट्रपिता) क जन्म २ अक्टूबर १८६९ हुणि पोरबंदर, गुजरात में हौछ | उनरि इज क नाम पुतली बाई और बौज्यू क नाम करम चन्द छी | १३ वर्ष कि उम्र में उनर ब्या कस्तूरबा दगै हौछ | गांधी ज्यू १८ वर्ष कि उम्र में वकालत पढ़ूं हैं इंग्लैण्ड गईं | वर्ष १८९३ में ऊँ एक गुजराती व्यौपारी क मुकदम कि पैरवी करूं हैं दक्षिण अफ्रीका गई |

     दक्षिण अफ्रीका में उनूल रंग- भेद निति क विरोध करौ | ७ जून १८९३ हुणि ग्वरां ल पीटरमैरिटजवर्ग रेलवे स्टेशन पर उनुकैं धक्क मारि बेर भ्यार निकाइ दे | वर्ष १९१५ में भारत वापस औण क बाद उनूल सत्य, अहिंसा और असहयोग कैं आपण हथियार बनै बेर सहयोगियों क दगाड़ स्वतंत्रता संग्राम लडौ और देश कैं अंग्रेजों कि गुलामी है स्वतंत्र करा | ३० जनवरी १९४८ हुणि  नाथूराम गौडसे ल नयी दिल्ली बिरला भवन क नजीक उनरि गोइ मारि बेर  हत्या करि दी | यसिक यौ अहिंसा क पुजारि क्रूर हिंसा क शिकार हौछ | देश कि राजधानी नयी दिल्ली, राजघाट पर उनरि समाधि छ |

      पुरि दुनिय में महात्मा गांधी क नाम भौत श्रद्धा ल लिई जांछ | दुनिय में शैद क्वे देश ह्वल जां गांधी ज्यू क क्वे स्मारक नि हो | परमाणु बमों क ढेर में बैठी हुयी दुनिय लै गांधी क दर्शन पर विश्वास करीं और उनार बताई  हुई रस्त पर चलण कि कोशिश करीं | दुनिया क जतू लै महान हस्ति हमार देश में औनी ऊँ राजघाट पर बापू कि समाधि क सामणि नतमस्तक हुनी | यश महान व्यक्तित्व हुण क बावजूद लै दुनिय कैं शान्ति क संदेश दिणी यौ  संदेश वाहक कैं दुनिय में सबू है ठुल सम्मान कई जाणी ‘नोबेल पुरस्कार’ नि मिल | क्यलै ?

     नोबेल पुरस्कार’ प्रदान करणी नौरवे क नोबेल समिति ल स्पष्ट करि है कि मोहनदास करम चन्द गांधी नोबेल शांति पुरस्कार क लिजि १९३७, १९३८, १९३९, १९४७ और हत्या हुण है पैली जनवरी १९४८ में नामांकित करी गईं | बाद में पुरस्कार समिति ल दुःख जता कि गांधी ज्यू कैं यौ पुरस्कार नि मिल | समिति क सचिव गेर लुन्देस्ताद ल २००६ में कौछ, “निसंदेह हमार १०६ वर्षों क इतिहास में यौ सबू है ठुलि भूल छ कि गांधी ज्यू कैं नोबेल शांति पुरस्कार नि मिल | गांधी ज्यू कैं बिना नोबेल सम्मान ल क्ये फरक नि पड़ पर सवाल यौ छ कि नोबेल समिति कैं फरक पड़ौ छ या नि पड़ ?”

     १९४८ में जो साल गांधी ज्यू शहीद हईं नोबेल समिति ल उ साल लै यौ पुरस्कार यौ आधार पर कै कैं नि दी कि ‘क्वे लै योग्य पात्र ज्यौन न्हैति |’ यस मानी जांछ कि अगर गांधी ज्यू ज्यौन हुना तो उनुकै भौत पैलिकै यौ  ‘नोबेल शांति’ पुरस्कार प्रदान है जान | महात्मा गांधी ज्यू कैं देश क सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ लै नि दिई गोय क्यलै कि गांधी ज्यू क कद यौ सम्मान है ठुल बताई जांछ |

     सांचि बात त यौ छ कि अंग्रेज जाते- जाते भारत का द्वि दुकुड़ करि गईं जबकि गांधी ज्यूल विभाजन क अंत तक विरोध करौ | जिन्ना कि अथाणि (महत्वाकांक्षा) ल त विभाजन कि भूमिका निभै जबकि भारत क विभाजना क बीं त अंग्रेजों ल १९०९ में बो और १९३५ तक ऊँ बियां कैं खूब मुखुत है बेर पाणी खितौ और अंत में १९४७ में द्वि दुकुड़ करि देईं | भारत में राम राज्य कि कल्पना करणी महात्मा गांधी, राजनीतिज्ञ नि छी बल्कि एक संत छी | गांधी कैं ‘महात्मा’ क नाम रवीन्द्र नाथ टैगोर ज्यूल और ‘राष्ट्रपिता’ क नाम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ल सम्मान क बतौर सुझा | आज लै दुनिय कैंछ कि गांधी ज्यू मरि नि राय, ऊँ उ जागि पर ज्यौन छीं जां दुनिय शांति और अमन-चैन क बाट खोजण में मंथन करें रै |

पूरन चन्द्र काण्डपाल,
रोहिणी दिल्ली  ०९.०२.२०१७   


Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत- १४६ : ऐसे बचेगी उत्तराखंड की भाषा,१५.०२.२०१७

     कुमाउनी और हिंदी के लेखक रतन सिंह किरमोलिया (हल्द्वानी, उत्तराखंड), ने हल्द्वानी से प्रकाशित पर्वत प्रेरणा साप्ताहिक समाचार पत्र (०५.१२.२०१६, संपादक सुरेश पाठक ) में प्रकाशित अपने लेख में उत्तराखंडी भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए जनप्रतिनिधियों से आग्रह करते हुए अपने उद्गार व्यक्त किये हैं | लगभग इन्हीं बिन्दुओं पर आधारित प्रस्ताव आठवें राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन अल्मोड़ा (१२ – १४ नवम्बर २०१६) में भी सर्वसम्मति से पुनः पारित हुआ जबकि ऐसे प्रस्ताव पहले के सभी सातों सम्मेलनों में पारित कर राज्य सरकार को भेजे गए हैं | अपनी भाषा को बचाने के हित में उस लेख के कुछ अंश यहाँ उधृत कर रहा हूँ –

     स्कूली पाठ्यक्रम में कुमाउनी उर गढ़वाली को एक भाषा के रूप में शामिल किया जाए और इसे रोजगार से जोड़ा जाए | इन भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करवाए जाने हेतु राज्य से केंद्र को प्रस्ताव भेजा जाए | सुप्त पड़े उत्तराखंड लोक भाषा संस्थान को सक्रीय  किया जाए ताकि वह अपनी सार्थक भूमिका निभा सके | स्कूली बच्चों के बीच भाषा लेखन कार्यशालाएं आयोजित की जाएं | इससे बच्चे भाषा में बोलना, लिखना, पढ़ना सीखेंगे | कार्यशालाओं में भाषा में ही बोलना अनिवार्य किया जाए | इसके बाद विविध प्रतियोगितायें आयोजित करवाई जाएं | बच्चों की तैयार रचनाओं को भी पुस्तक के रूप में प्रकाशित क्या जाए |

     संस्थान द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कारों ( विगत कई वर्षों से नहीं दिए जा रहे हैं | ) में पारदर्शिता बरती जाए | कुछ वर्ष पहले जिस प्रकार पुरस्कारों की बंदरबांट हुयी और ‘पहले आओ – पहले पाओ’ जैसी परम्परा बनी, उससे बचा जाए | पुरस्कार वितरण में एक स्वस्थ एवं पारदर्शी परंपरा कायम की जाए | चार- पांच दशकों से लगातार लिखते आ रहे रचनाकारों को दरकिनार नहीं किया जाए | ऐसे रचनाकार न तो देहरादून के चक्कर लगा सकते हैं  और न उनकी कोई राजनैतिक सिफारिस होती है | भविष्य में यह भेदभाव नहीं होना चाहिए |

     सरकारी एवं गैर- सरकारी संस्थाओं के पुस्तकालयों, वाचनालयों एवं ग्राम पंचायतों तक हमारी भाषा में प्रकाशित साहित्य और पत्र- पत्रिकाएं पहुंचाई जाएं | इससे जहां लेखकों को प्रोत्साहन मिलेगा, वहीं भाषा एवं संस्कृति को भी फूलने –फलने का अवसर भी मिलेगा | साथ ही भाषा की पत्र-पत्रिकाओं को आर्थिक सहयोग भी दिया जाए | हमारी भाषा के रचनाकारों की पांडुलिपि को सरकार प्रकाशित करे और लेखकों को रायल्टी दी जाए | विश्व- विद्यालयों के पाठ्यक्रम में हमारी भाषा को एक अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया जाए और इन पर शोध कार्य सुनिश्चित हों |

     देहरादून में एक रचनाकार गैलरी और रचनाकारों का एक सन्दर्भ कोष या डाइरेक्टरी तैयार की जाए | प्रत्येक रचनाकार की चुनिन्दा रचनाओं का दस्तावेजीकरण या डाक्यूमेंटेशन किया जाए | वरिष्ठ रचनाकारों को रेल एवं यात्री बसों में मुफ्त यात्रा पास उपलब्ध कराये जाए | विभिन्न मेलों, उत्सवों या खेलकूद रैलियों के अवसर पर भाषा की प्रतियोगितायें आयोजित करवाई जा सकती हैं जिनमें प्रतिभागी उत्कृष्ट बच्चों को पुरस्कृत कर प्रोत्साहित किया जाए तथा प्रतिवर्ष भाषा के रचनाकारों का एक वृहद् सम्मेलन भी अनिवार्य रूप से आयोजित किया जाना चाहिए  |

     लेखक किरमोलिया जी एवं ‘पर्वत प्रेरणा’ के संपादक सुरेश पाठक जी को साधुवाद देते हुए कहना चाहूंगा कि अब तक हमें सभी दलों के सभी नेताओं ने कोरे आश्वासन ही दिए हैं | सभी नेता चुनावों में हमारी भाषा बोलकर वोट माँगने की जादूगरी करते हैं | ईजा, बाबू, कका, काखी, ठुलीजा, ठुल्बौज्यू, दीदी, भुला, च्यला, च्येली, बुवा आदि सम्बंध जोड़कर हमारे आगे से मुनव कनाते हैं | कभी तो गंभीरता से अपनी भाषा के बारे में सोचिये | मुठ्ठी भर बोडो लोगों की भाषा संविधान में है जबकि एक करोड़ बीस लाख उत्तराखंडियों की भाषा को भरपूर साहित्य और दो सौ से अधिक साहित्यकार होने के बावजूद अभी तक मान्यता नहीं मिली है | अगली बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल,
१५.०२.२०१७                           

                         

     

Pooran Chandra Kandpal

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दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै
यसिक बचलि उत्तराखंड कि भाषा, १६.०२.२०१७

     कुमाउनी और हिंदी क लेखक रतन सिंह किरमोलिया (हल्द्वानी, उत्तराखंड), ल हल्द्वानी बटि प्रकाशित पर्वत प्रेरणा साप्ताहिक समाचार पत्र (०५.१२.२०१६, संपादक सुरेश पाठक ) में प्रकाशित आपण लेख में उत्तराखंडी भाषा और संस्कृति कैं बचूण क लिजि जनप्रतिनिधियों हैं आग्रह करनै आपण मन कि बात भ्यार निकाई | करीब करीब यूं ई मुद्दों पर आधारित प्रस्ताव आठूँ राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन अल्मोड़ा (१२ – १४ नवम्बर २०१६) में लै सर्वसम्मति ल दुबार पास हौछ जबकि यास प्रस्ताव पैलिका क सबै सातों सम्मेलनों में लै पास करि बेर राज्य सरकार हैं भेजी गईं | आपणि भाषा कैं बचूण क बाबत उनर लेख बटि कुछ अंश यां शामिल करण रयूं |

     इस्कूली पाठ्यक्रम में कुमाउनी और गढ़वाली कैं एक भाषा क रूप में शामिल करी जो और यैकैं रोजगार दगै जोड़ी जो | यूं भाषाओं कैं संविधान कि आठूं अनुसूची में शामिल करूणा क लिजि राज्य बटि केंद्र हैं प्रस्ताव भेजी जो | बांज पड़ी उत्तराखंड लोक भाषा संस्थान कैं फिर कमन करी जो ताकि उ आपणी सार्थक भूमिका निभै सको | इस्कूली नना क बीच भाषा लेखण क लिजि कार्यशाला आयोजित करी जो | यैल नान आपणि भाषा बलाण, लेखण, पढ़ण सिखाल | कार्यशालाओं में आपणि भाषा में ई बलाण अनिवार्य करी जो | यैक बाद अनेक प्रतियोगिता आयोजित करवाई जो | नना कि रचनाओं कि लै किताब प्रकाशित करी जो |

     संस्थान द्वारा दिई जाणी पुरस्कारों ( विगत कएक वर्षों बटिक नि दिई जां राय | ) में पारदर्शिता बरती जो | कुछ साल पैली जसी वर्ष पुरस्कारों कि लुटालूट हैछ और ‘पैली औ – पैली लिजौ’ जसि परम्परा बनी, उहै बची जो | पुरस्कार बाटण में एक स्वस्थ और पारदर्शी परंपरा कायम करी जो | चार- पांच दशकों बटि लगातार लेखते औणी रचनाकारों कैं दरकिनार नि करी जो | यास रचनाकार न तो देहरादून क चक्कर लगै सकनी और न उनरि क्वे  राजनैतिक सिफारिस हिंछ | भविष्य में यौ भेदभाव नि हुण चैन |

     सरकारि और गैर- सरकारि संस्थाओं क पुस्तकालयों, वाचनालयों और गौं पंचैतों तक हमारि भाषा में प्रकाशित साहित्य और पत्र- पत्रिका पुजाई जो | यैल जां एक तरफ लेखकों कैं प्रोत्साहन मिलौल, वै भाषा और संस्कृति कैं लै फुलण –फलण क मौक मिलौल | दगाड़ में भाषा कि पत्र-पत्रिकाओं कैं आर्थिक सहयोग लै दिई जो | हमरि भाषा क रचनाकारों कि पांडुलिपि कैं सरकार प्रकाशित करो और लेखकों कैं रायल्टी दिई जो | विश्व- विद्यालयों क पाठ्यक्रम में हमरि भाषा कैं एक अनिवार्य विषय क रूप में शामिल करी जो  और इनू पर शोध कार्य सुनिश्चित करी जो |

     देहरादून में एक रचनाकार गैलरी और रचनाकारों क एक सन्दर्भ कोष या डाइरेक्टरी तैयार करी जो | हरेक रचनाकार कि खाश रचनाओं क दस्तावेजीकरण या डाक्यूमेंटेशन करी जो | वरिष्ठ रचनाकारों कैं रेल और यात्री बसों में मुफ्त यात्रा पास दिई जो ये | सब म्याल, उत्सव या खेलकूद रैलियों क अवसर पर भाषा कि प्रतियोगिता आयोजित करी जो जमें भाग ल्हीणी होश्यार नना कैं इनाम दी बेर प्रोत्साहित करी जो और हर साल भाषा क रचनाकारों क एक ठुल सम्मेलन लै अनिवार्य रूप ल आयोजित करी जो |

     लेखक किरमोलिया ज्यू और ‘पर्वत प्रेरणा’ क संपादक सुरेश पाठक ज्यू कैं साधुवाद दिनै कौण चानू कि आज तक हमुकैं सबै दलों क सबै नेताओं ल केवल क्वार आश्वासन देईं | सबै नेता चुनावों में हमरि भाषा बलै बेर वोट माँगण कि जादूगरी करनीं | ईजा, बाबू, कका, काखी, ठुलीजा, ठुल्बौज्यू, दीदी, भुला, च्यला, च्येली, बुवा आदि सम्बंध जोड़ि बेर हमार अघिल मुनव कनूनी | कभै त गंभीरता ल हमरि भाषा क बार में सोचो | मुठ्ठी भर बोडो लोगों कि भाषा संविधान में छ जबकि एक करोड़ बीस लाख उत्तराखंडियों कि भाषा भरपूर साहित्य और द्वि सौ है ज्यादै साहित्यकार हुण क बावजूद आजि तक मान्यता नि मिलि रइ |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली
१६.०२.२०१७                           



 

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