Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 61259 times)

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
विचार-गोष्ठी, पुस्तक लोकार्पण तथा
कुमाउनी-गढ़वाली कवि सम्मलेन
 
  व्यक्ति, समाज और राष्ट्र-हित में, रूढ़िवाद-अन्धविश्वास के विरोध में, शहीदों की याद,
निज भाषा स्नेह और महिला सम्मान में कलम को रस-रंग देने वाले साहित्यकार
पूरन चन्द्र कांडपाल के साहित्य सृजन परिप्रेक्ष्य में  १६ अक्टूबर २०११ को गढ़वाल
भवन नई दिल्ली में एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई.  विचार गोष्ठी में साहित्यकार
डा.हरिसुमन बिष्ट, डा. आशा जोशी, ज्योतिर्मई पंत, हेमा उनियाल, डा. बी डी बेलवाल ,
पत्रकार चारू तिवारी, डा. मनोज उप्रेती,  आचार्य प्रकाश चन्द्र फुलोरिया, प्रवक्ता प्रयाग
दत्त जोशी ,  कर्नल (डा.) डी पी डिमरी, लेखक पवन मैठानी सहित कई प्रबुद्ध जनों ने
'रचनाकार के सरोकार' विषय पर अपने विचार व्यक्त किये.  अल्मोड़ा से लोकसभा
 सांसद प्रदीप टम्टा, निगम पार्षद हरीश अवस्थी तथा दिल्ली प्रदेश कांग्रेस  सचिव
हरिपाल रावत सहित सभी बुधिजिवीयों ने पूरन चन्द्र कांडपाल के कुमाउनी  काव्य
संग्रह 'मुक्स्यार' का लोकार्पण किया.  इस अवसर पर समाजसेवी श्री गोपाल दत्त पंत
प्रेम सुन्द्रियाल, पी सी नैनवाल, आकाश जोशी, हरीश हितैषी , रनजीत सिंह मेहरा, देव   
सिंह बिष्ट, मोहन बिष्ट  सहित कई पत्रकार, बुद्धिजीवी तथा  सामाजिक कार्यकर्त्ता उपस्थित थे.
साहित्यिक  समारोह के दूसरे सत्र  में कुमाउनी-गढ़वाली कवि सम्मलेन में दिनेश ध्यानी ,
दयाल पांडे, चंद्रमणि चन्दन, नेत्रपाल सिंह असवाल  सहित दो दर्जन कवियों ने काव्य पाठ किया.
आयोजन में १५१ बार रक्तदान करने वाले दादा सुरेश एच  कामदार को सम्मानित
किया गया.  आयोजन में पूरन चन्द्र कांडपाल की उन्नीस साहित्यिक रचनाओं का
प्रदर्शन भी किया गया.
16.10.2011

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
बाल पठकों के लिए सामान्य ज्ञान 
 
१. गेट वे आफ इंडिया कहाँ है?
२.देश की प्रथम महिला एवेरेस्ट विजेता का नाम क्या है?
३.चने में कौनसा भोजन तत्व मिलता है?
४.maatridivas  (मदर्स डे) कब मनाया जाता है?
५.टेलीफोन की खोज किसने के?
६.गोदान के लेखक कौन हैं?
७.कौनसा शहर झीलों का शहर के नाम से जाना जाता है?
८.देश के सर्वोच्च  नागरिक सम्मान का नाम क्या है?
९.बागेश्वर किन नदियों के संगम पर बसा है?
१०.उत्तराखंड का वह स्थान जहाँ १८८४ में रेल पहुँची?
उत्तर-
१.मुंबई, २.बचेंद्री पाल, ३.प्रोटीन, ४.११ मई, ५.ग्राहम्बेल
६.प्रेमचंद,७.उदयपुर,८.भारत रत्न ९.सरयू और गोमती
१०.काठगोदाम 

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
     'साथी हाथ बढ़ाना' कहते,   साथी बढ़ तू आगे
      सौहार्द्र भाईचारा  और स्नेह के, बटते जा तू धागे ,
      बटते जा तू धागे     संस्कृति का कर संरक्षण
      डाल-डाल और पात में पनपे जनसहयोग के लक्षण
      कह 'पूरन' समाज उत्थान की जगे घर घर में बाती
      जन जन का सहयोग बटाकर हाथ पकड़ ले साथी.

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
  रेल रह गई सपने में, जन जन गया तरस
रेलमंत्री का आश्वासन  सुनते बीते चौसठ बरस,
बीते चौसठ बरस, फ़रियाद हर बरस लगाईं
सामरिक सीमावर्ती राज्य क्यों स्मृति बिसराई
कह 'पूरन' उत्तराखंड संग क्यों खेल रहे खेल
जागो देश के कर्णधारो ,सीमा पार आ गई रेल.

मनरेगा  के  नाम से  खूब खड़ंजे  डाल
भ्रष्टाचार के दौर में मिली ताल से ताल,
मिली ताल से ताल सड़क नहीं गाँव में आयी
बहरे तंत्र  में  कब पहुंचे  जो  धाद  लगाई
कह 'पूरन' कलमकार से काहे तंत्र डरेगा
खूब कमाई  हो  रही  दौड़  रहा  मनरेगा. 

संस्कृति खतरे में पड़ी जब देश खतरे में पड़ा
निगलने संस्कृति को पश्चिम का दानव है खड़ा,
पश्चिम का दानव है खड़ा, युवा तन मन  भज रहे
उनकी नक़ल कर रहे, अपनी संस्कृति तज रहे,
कह 'पूरन' बोले हिमालय, अपनाओ मत ये विकृति
सारे जहाँ से अच्छी अपने भारत की संस्कृति.

 

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
कुमाउनी एक भाषा है 
 
      रु - ब - रु के अंतर्गत  पद्मश्री डा. रमेश चन्द्र शाह का हेमंत जोशी द्वारा लिया
गया   साक्षात्कार में कुमाउनी भाषा के बारे में उचित टिप्पणी नहीं है.  कुमाउनी
मूल के शाह जी कुमाउनी बोलने  और लिखने के बारे में भी जाने जाते हैं. कुमाउनी
को भाषा नहीं मानना और ये कहना "अरे भई कुमाउनी को भाषा बनाकर क्या
होगा, ये सब अलगाववादी प्रवृतियाँ हैं" अत्यंत ही सोचनीय एवं दुखदायी है.
संविधान की आठवीं अनुसूची में २४ भाषाएँ हैं उनसे तो अलगाववाद नहीं आया.
 
     कुमाउनी एक भाषा है जिसकी लिपि भी हिंदी की तरह देवनागरी है. हमारे
देश में लगभग दस भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं.  कुमाउनी तो चंद राजाओं
की राजभाषा रही है.  इसके प्रमाण मौजूद हैं.  कई ताम्रपत्र , बहीखाते , पाषाणलेख ,
दानपात्र आदि कुमाउनी में लिखे गए हैं. गोरखा शासनकाल में इसके अवनति
हो गयी.
 
    हमें लोक रत्न गुमानी पन्त (१७९०-१८४६) की कई रचनाएँ देखने को मिलती हैं.
इसी क्रम में कृष्ण पाण्डेय, शिवदत्त सती, गौरदा (गौरी दत्त पाण्डेय), गिर्दा (गिरीश
चन्द्र तिवारी) सहित कई रचनाकारों ने कुमाउनी में लिखा है. वर्त्तमान में कुमाउनी
के लगभग ३५० रचनाकारों की रचनाएँ 'पहरू'  कुमाउनी मासिक पत्रिका में छप
चुकी हैं . अल्मोड़ा से डा. हयात सिंह रावत द्वारा सम्पादित  इस पत्रिका के ३६ अंक
छप चुके हैं.  अल्मोड़ा में  ही कुमाउनी भाषा, साहित्य और संस्कृति प्रचार समिति ,
कसार देवी से हमारी मातृभाषा  कुमाउनी के प्रचार-प्रसार में लगातार कार्य कर रही है
जो 'पहरू' के साथ मिलकर विगत तीन वर्षों से कुमाउनी भाषा सम्मलेन अल्मोड़ा में
आयोजित कर रही हैं.  उत्तराखंड भाषा संस्थान कुमाउनी को अधिक समृद्ध बनाने हेतु
प्रोत्साहन दे रहा है.  कुमाउनी रचनाकार इस संस्थान से पुरस्कृत हो रहे हैं. 
 
    ऐसे में डा शाह द्वारा कुमाउनी के बारे में की गयी टिप्पणी कुमाउनी भाषा और
कुमाउनी के रचनाकारों का हतोत्साहित करती है.  कुमाउनी के रचनाकार हिंदी को
कुमाउनी की दीदी समझते हैं.  उनका हिंदी से वही स्नेह है जो दो बहनों का होता है.
कुमाउनी लिखने-पढने से हिंदी पीछे नहीं जाती बल्कि आगे ही बढती है.  अत: डा शाह
ने यह कुमाउनी विरोधी टिप्पणी क्यों की , यह वही जाने.
 
पूरन चन्द्र कांडपाल
23.11.२०११
(यह लेख सृजन पत्रिका (जुलाई-दिसंबर २०११) में छपे डा. शाह के साक्षात्कार के सन्दर्भ में है)

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
राजधानी और भाषा कि बात लै करौ
 
'दिल्ली बै चिट्टी ई रै' कालम पढ़ी बेर लोग पूछें रईं कि
उत्तराखंड में चुनावों क मौक पर राजधानी गैरसैण और कुमाउनी-
गढ़वाली भाषा कि मान्यता कि बात लै हुण चेंछ. य मौक पर
लोगों क कूण छ -

भाषा उत्तराखंड राज्य कि लगूं रै धत्योधात
और भाषाओँ कि बात हूरै हमरि नि उं रई याद,
हमरि नि उं रई याद, मान्यता कब तक नि द्यला
साहित्य अकादमी मानी  गे, आब तुम कब मानला ,
कलमकारों हूँ कुरु वोटर झन छोडिया तुम आशा
आठू अनुसूची में शामिल ह्वली, एक दिन हमरि लै भाषा.

पहाड़ में एकै बात चलि रै, कुहुक्याव एक एक डा्न
राजधानी गैरसैण बनौ, कुंरीं स्येणी मैंस ना्न,
कुंरीं स्येणी मैंस ना्न, नेताओं नि करो मनमानी
देहरादून बै जल्दी हटौ अस्थायी राजधानी ,
वोटर कुरों सुणो नेताओ, य उत्तराखंड कि दहाड़
गैरसैण क नाम तय हैरौ, राजधानी बनौ पहाड़.

राजधानी गैरसैण नि गेई, रैगे देहरादून
नेताओं क कानू में, घुसी  गीं पिरुवा क बून ,
४२ शहीद पूछें रईं, क्यलै बहा हमूल आपण  खून
कैल खायीं ख्वारम लठ्ठ, छातिम गोई अनाधून.
य कसि थिति कै पर कसि बिती
नेता कूरीं हमुकें के खबर न्हिती.

पूरन चन्द्र कांडपाल

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
छब्बीस जनवरी 

कांग्रेस लाहौर अधिवेशन
रावी तट गूंजी आवाज ,
छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ उनतीस
माँगा हमने पूर्ण स्वराज.

मिली स्वतंत्रता हमने माना
हो भारत का नया संविधान ,
गठन हुआ संविधान सभा का
सर्वजन का जो करे कल्याण.

पैंतीस महीने अठारह दिन में
संविधान तैयार हुआ,
छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास
देशहित में अंगीकार हुआ.

अपनों ने अपनों के लिए
बनाया संविधान अपना,
गई हकूमत फिरंगियों की
साकार हुआ देखा सपना.

देशप्रेम के गीत गूँज उठे
जगा जन-जन में विश्वास,
धूम मची गणतंत्र पर्व की
छाया चतुर्दिक हर्षोल्लास.

राष्ट्रध्वज भारत का तिरंगा
हमने गगन में फहराया,
हर भारतवासी के मन मंदिर
राष्ट्र-प्रेम रंग गहराया.

गणतंत्र आयोजन पूरे देश में
मुख्य राजपथ  पर  छाये ,
देश-प्रेम की खुशबू निराली
उमंग भारत की लहराए.

भव्य परेड गणतंत्र दिवस  की
विजय चौक से आगे बढ़ी,
राजपथ इण्डिया गेट गुजरते
लालकिला मैदान खड़ी.

राजपथ पर राष्ट्र शक्ति का
अद्भुत दृश्य निहार लिया,
राष्ट्रपति को देती सलामी
परेड का सत्कार किया.

राष्ट्र समृधि की कई झांकियां
प्रफुल्लित करती जनमन को,
मंत्रमुग्ध हो जाते दर्शक
देख विमान छूते नभ को.

स्मरण शहीदों का भी होता
राष्ट्र प्रहरियों पर अभिमान,
राष्ट्र सेवा में जो हैं तत्पर
गाते उनका गौरव गान.

गणतंत्र  परेड का स्वागत करने
जन सैलाब उमड़ कर आता,
राष्ट्र-शक्ति की देख झलक
गर्वित हर्षित मदमाता.

पूरन चन्द्र कांडपाल

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
महाशिवरात्रि , शिव और हम 

    शिव का अर्थ है कल्याण.  महाशिवरात्रि के इस पुनीत अवसर पर
हमें अपने चिंतन, व्यवहार और चरित्र की ओर देखना ही शिव की
आराधना करना है.  समुद्र मंथन में चौदह रत्न निकले-

          श्री रम्भा बिष बारुनी अमिय शंख गजराज
          ध्वनंत्री धनु धेनु तरु चंद्रमा मणि बाजि.

  जब विष निकला तो भगवान् शिव ने विषपान कर विष को अपने
कंठ में रोक लिया और सृष्टि को बचाकर नीलकंठ कहलाये.  इसका अर्थ
है कडवाहट को पीओ और अपने दिल में मत बैठाओ.  शिव के बहाने
हम आज भी नशा कर रहे हैं और शिव को भंग,धतूरा, गांजा और चरस
चढाने की बात कर रहे हैं.  हम ऐसा करके नशे  की प्रवृति को बढ़ावा
दे रहे हैं.

     यदि हम मनन करें तो भगवान् शिव का सन्देश है की हम मृत्यु
को याद रखें, अश्लीलता और कामुकता को भष्म करें, समाज में व्याप्त
हिंसा, छुआछूत , भेदभाव , अन्धविश्वास, भ्रम ,नशा और कुरीतियों को
समाप्त करें तथा सादा जीवन, परोपकार, जनसेवा, समाज सुधार,
उच्च विचार , समरसता , आपसी सौहार्द्र और जीओ और जीने दो  के
 सिद्धांत  को बढ़ावा दें.

       हम  छद्म पर्पंचों और पाखंड से दूर रहना सीखें.  भेडचाल में शिव
भक्त कहलाने का ढोंग नहीं करते हुए इस पुनीत अवसर पर भगवान्
शिव के संदेशों को जीवन में उतारना ही शिव आराधना है. हमें अपनी
पृथ्वी  और पर्यावरण को बचाने के लिए वृक्षारोपण कर वृक्षों  को सिंचित
करते हुए उन्हें बचाना चाहिए .  अपने इर्द-गिर्द एवं जल स्रोतों में हम सब
जाने-अनजाने कूड़ा डाल रहे हैं.  यदि हम किसी को ऐसा करने से नहीं
रोक सकते हैं तो स्वयं को तो रोक सकते हैं.  भू-विसर्जन अपनाना ही
इसका एकमात्र हल है.

     हमें आज शिव का ध्यान करते हुए उनके सन्देश को स्वयं में
अंगीकार करने का संकल्प  लेकर  भगवान शिव का सच्चा श्र्धालू
बनना है. आओ इस पर मंथन करते हुए इस ओर एक कदम तो बढ़ाएं.

      महांशिवरात्रि की शुभकामनायें.

     पूरन चन्द्र कांडपाल

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
महाशिवरात्रि पर द्वि बात (कुमाउनी में)

महाशिवरात्रि , शिव और हा्म

  शिव क अर्थ छ भाल या कल्याण.  महाशिवरात्रि क मौक पर
हमुकें आपण चिंतन और व्यवहार क तरफ देखण कि जरवत
छ और य ई  भौत  ठुली  शिव अराधना छ.

    समुद्र मंथन क टैम पर १४ रत्न निकली -

श्री रम्भा बिष बारुणी अमिय शंख गजराज ,
ध्वनंत्री धनु धेनु तरु चन्द्रमा मणि बाजी.

   सृष्टि कें बचूणा लिजी शिव ज्यू ल बिष आपण कंठ
में धरी ले और उं नीलकंठ कवाईं.  आज हा्म शिव ज्यू कें
भांग, धतुर, गांज और चरस चढूंणै कि बात करि बेर नशे कि
प्रवृति कें बढों रयूं.   भगवान शिव क सन्देश छ कि हमूल
मौत कें याद धरण चैंछ, अश्लीलता और कामुकता कें भष्म
करण चैंछ,  समाज में व्याप्त हिंसा, छुआछूत, भेदभाव, भैम,
अंधविश्वास,  नश और कुरीतियों कें ख़तम करण चैंछ और
सा्द जीवन, परोपकार, समरसता, उच्च विचार, सौहार्द्र कें
बढूँ ण  चैंछ.

    हमूल भेड़ चाल छोड़ी बेर शिव ज्यू क सन्देश कें आपण
जीवन में उतारण चैंछ और य मौक पर य दुनी कें हरी-भरी
धरण लिजी कम से कम एक डा्व जरूर लगूण चैंछ और
कुड-करकट ल आपणी जागि- जमीन  कें गंद नि करण चैन.
अगर हा्म यूं बातों कें गाँठ पाड़ी सकुल त ये है ठुल शिवरात्रि
व्रत के न्हातीं.  सबूं कें महाशिवरात्रि कि शुभकामना.

Pooran Chandra Kandpal

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 425
  • Karma: +7/-0
 नदियों क हाल नि बिगाड़ो

  हा्म लोग विसर्जन क नाम पर आपण नदियों क हालत
खराब करते जां रयूं.  नदियों में धार्मिक कुड- कभाड लाफाऊण
कि पुराणी परम्परा हमुकें छोड़ण पड़लि.  अगर हा्म विसर्जन
क नाम पर य परम्परा नि छोडुला त एक दिन हमा्र सबै
नदी विलुप्त है जा्ल. धार्मिक कुड़ कें नदियों में लाफाऊण क
बजाय यकें जमीन में गड्ड खोदि बेर दबै दीण चेंछ. य हूँ
हा्म भू विसर्जन लै कै सकनू.  अंध श्रधा और परम्परा क नाम
पर हा्मु कें य ख्याल नि उं रय कि भविष्य में हमा्र नदियों
क क्ये ह्वल और हमरि भावी  पीढी कें पाणी कां बै मिलल .
एक अप्रैल २०१२ हुणि  रामनौमी दिन यमुना नदी में लोगू ल
यतू धार्मिक कुड़ लाफाई दे कि यमुना क बची  हुई पाणी
अद्यखौव हैगो.  हमार धर्माचार्यों ल लोगू कें बतूंण चेंछ  कि
आ्ब जल में विसर्जन कि परम्परा कें बदली बेर भू-विसर्जन
कि परम्परा अपनौ . रामनौमी एक अप्रैल हुनि छि.

पूरन चन्द्र कांडपाल
02.04.2012

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22