[justify]सर्ग तारा, यो जुन्याली रात !
आलेख : श्री उदय टम्टा जी
मित्रो, आज तो कुमाऊँ व गढ़वाल दोनों ही क्षेत्र उत्तराखंड राज्य की दो कमिश्नरियां हैं, पर किसी ज़माने में ये दोनों ही दो अलग अलग ‘देस' माने जाते थे और दोनों के बीच कई लड़ाइयाँ भी होतीं थी. दोनों ही प्रांतरों में शासन व्यवस्था भी अलग अलग थी. परन्तु यह सब होते हुए भी दोनों की लोकभाषा के तत्व तो समान थे ही, साथ दोनों एक ही धार्मिक व सांस्कृतिक डोर से बंधे हुए थे. जागर गायन हो या अन्य कई लोक गीत थोड़े से अंतर के साथ दोनों ही इलाकों में समान ही थे. कुछ कलाकार कुमांऊनी और गढ़वाली दोनों ही भाषाओँ में समान रूप से अपनी पस्तुतियाँ देते थे. ऐसे कलाकारों में जो नाम सर्वोपरि था, वह था श्री चन्द्र सिंह ‘राही’ जी का. श्री राही मूल रूप से गढ़वाल मंडल के निवासी थे, परन्तु उन्होंने कई कुमांऊनी लोकगीतों को उसी रूप में या उसका थोडा बहुत लहजा गढ़वाली बना कर गाया और उन्हें अत्यंत लोकप्रिय बना दिया. इन्हीं में से एक कुमांऊनी लोकगीत है--सर्ग तारा.. यह लोकगीत लोक जीवन में संभवतः प्रथम विश्वयुद्ध के समय से प्रचलित था जब इसे लोग झोडे के रूप में सातों-आठों में गाते थे. कुमाऊँ रेजिमेंट के सैनिक भी रानीखेत या जब इनकी टुकड़ी देश या देश के बाहर कहीं भी हो, इस लोकप्रिय झोडा गीत को बड़ी ही तन्मयता से गाते थे. यही गीत जब साठ के दशक में श्री राही ने अपने सुमधुर कंठ से गाया तो यह लोकजीवन में एक स्थाई गीत के रूप में प्रसिद्ध होगया. इसी का कालांतर में गढ़वाली प्रतिरूप भी आया. आइये इस गीत के बोलों का आनंद लें और इसके माध्यम से ही श्री राही जी को श्रद्धांजलि भी अर्पित करें--(कृपया इसे गढ़वाली में ‘ल’ के विशेष उच्चारण ‘ळ’ में पढ़ें जैसे ‘बल्द’ में )
हो सर्ग तारा, यो जुन्याली रात, को सुणलो यो मेरी बात.
सर्ग तारा....
पाणी को मसिक सुवा पाणी को मसिक, तू न्हेगये परदेस, मैं रूलो कसीक,
सर्ग तारा...
विरहा कि रात भागी विरहा की रात, आंखन में आंसू झड़ी, लागि बरसात,
सर्ग तारा......
तेल तौ निमड़ी गोछ, बुझी रोंछी बाती, मेरी लै मकणी दियो सरपै की भाँती,
सर्ग तारा....
अंस्याली को रेट सुवा, अंस्याली को रेट, आज का जाईयां बटी, कब होल भेट,
हो सर्ग तारा, यो जुन्याली रात, को सुणलो यो मेरी बात,
हो सर्ग तारा...!
Let’s have a look into it with this crude rendering I have tried--
Oh, heavenly stars,
I say it very much in your benign presence,
In this moonlit night;
I have a question in mind,
As to who is there to listen to my tale ?
Talk of the water bag, O my beloved,
Bag full of water;
The black night of separation, O blessed one,
You have gone to a foreign land;
Tell me how will I live here alone ?
My eyes are in tears as if it were,
The heavy showers of rain,
The oil in the lamp has exhausted now,
And the light has gone off,
And my love has thereby rolled away--
Like a serpent.
The sweetening herb Ansyali be the witness,
Be it to testify;
And tell clearly--
As to when will we meet again ?
Tell me O heavenly stars,
Tell me !
On this blessed moonlit night !