लो फिर आ गया मौसम बरसात का
पिछली बरसात की त्रासदी के घाव अभी भरे भी नहीं थे कि अगली बरसात प्रारम्भ हो गयी. इस विषय परकुछ भी लिखने के पूर्व मित्रों आप सबसे माफी मांगना चाहता हूँ, क्योंकि इतने दिन से मैं गायब था, हायिबरनेट कर रहा था और आज फिर बरसाती मेढक के समान आपके सामने उपस्थित हो गया. पर यकीन मानिए ऐसा मजबूरीवश होता है, जानबूझकर नहीं.
खैर अब बात करे बरसात की. उत्तराखंड में बरसात तो पिछले दो करोड वर्षों से हो रही है, आज कोई नई बात नहीं है. इसलिए जब कोई कहता है कि इस वर्ष वर्षा अधिक हुई तो मुझे हंसी आती है क्योंकि कहने वाल तुलना करता है पिछले वर्ष की वर्षा से. यहाँ तो करोड़ों वर्षों की बात हो रही है. इन्ही प्रागैतिहासिक बरसातों के कारण पहले नालियों का, फिर गधेरों का और फिर छोटी और बड़ी नदियों का जन्म हुआ.
इसी बात तो दूसरे नजरिये से सोचिये कि यदि इस ड्रेनेज का क्रमिक विकास न हुआ होता तो आज क्या होता-पर्वतवासी भी सब मेरी भाँती 'प्लेन्स' में रह रहे होते! अर्थात प्रकृति ने जल की निकासी का पूरा ध्यान रखा. जहां पर निकासी न हो सकी और पानी अधिक रुक गया वहाँ पर ताल बन गए.
आज से लगभग १०० वर्ष पूर्व की बात करे तो मेरे नानाजी बरसात के दिनों में उस समय के अल्मोडा जनपद के दौरे पर जाते थे और सिवा इसके कि बरसात में अक्सर सामान भीग जाता था और कोई परेशानी नहीं होती थी. बारिश तब कुछ अधिक ही होती थी आज से, ऐसा मौसम विभाग के आंकड़े बोलते हैं. भूस्खलन तब भी होता था, पर मुख्य मोटर मार्ग काठगोदाम-रानीखेत-अल्मोडा यदा-कदा ही बंद होता था. क्योंकि प्रकृति के रूप को पहचानते हुए 'क्रूर' अँगरेज़ शासकों ने मोटर रोड की 'ब्रेस्ट वाल' और 'रिटेनिंग वाल' दोनों में कुछ कुछ दूरी पर 'वीप होल्स' छोड़े हुए थे-जिनको हमेशा साफ़ रखा जाता था. लिहाजा बारिश का पानी बिना रुके तुरंत बह कर घाटी में चला जाता था. सड़क की एक निश्चित लम्बाई के लिए गैंग लगी रहती थी और उनका एक मेट होता था. सिस्टम तो आज भी वही है, लेकिन हम हिन्दुस्तानी उस टाईम में भी 'मस्टर रोल' में गडबड करके अमीर बनने की कोशिश करते थे, पकड़े गए तो अँगरेज़ 'इनक्वायरी ' नहीं करता था, सीधे जेल भेजता था-इसलिए ज्यादातर लोग ऐसा करने से डरते थे. जो निडर थे वे 'ओपरसेठ' (ओवर सीयर) कहलाये, पर नाम को ही, क्योंकि नौकरी नहीं बच पाती थी. कुल नतीजा यह था कि भूस्खलन कम होते थे, हुए भी तो तुरंत साफ़ कर रोड खोल दी जाती थी.
आज क्या होता है यह यहाँ मुझे लिखने के जरूरत नहीं है.
सवाल यह है कि क्या इस बरसात में सडकें बचेंगी? इसका उत्तर तो सरकार दे सकेगी. पर आप सोचिये कि इस बरसात में क्या आप अपनी पिछाड़ी की दीवार को गिरने से बचा सकेंगे? इसका उत्तर है 'हाँ'. यदि आप इस लेख को पढते ही उस दीवार पर बने 'वीप होल्स' की सफाई करा लें, दीवार के ऊपर यदि ढलान है और उसमे पद नहीं है तो कमसे कम उस पर घास लगवा कर उसके क्षरण पर रोक लगाएं, घर के चारों और जो नाली है उसे साफ़ रखे और इस बात की पुष्टि करें कि आपके घर से जल निकासी का मार्ग अवरुद्ध नहीं है.
मित्रों अनहोनी को छोड़ दें तो बरसात में काफी हद तक भूस्खलन से बचा जा सकता है यदि जल की उचित निकासी हो. इसलिए अपना और अपने पड़ोसी के घर को बचाने के लिए आपस में मिल कर निकासी का निरीक्षण अवश्य करें.
मोटर मार्ग के किनारे यदि आपका घर है तो इस बात का ध्यान रखें कि आपके घर से निकलने वाला जल मार्ग में न बहे, बल्कि उसकी त्वरित निकासी हो.
पिछली बरसात में जो हुआ, इस बरसात में ना हो इस बात की कामना सहित आपसे बिदा लेता हूँ. शीघ्र मिलूँगा.