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Journalist and famous Photographer Naveen Joshi's Articles- नवीन जोशी जी के लेख

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नवीन जोशी:
इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2017: उत्तराखंड में 66 नहीं महज 46 फीसद हैं वन

-इनमें भी उथले वनों को हटा दें तो महज 34 फीसद में हैं 40 फीसद से अधिक घनत्व के वन
नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तराखंड में देश में सर्वाधिक 66 फीसद भूभाग पर वन होने की बात बहुप्रचारित की जाती है, किंतु भारतीय वन संरक्षण विभाग की जिस ‘इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2017’ के हवाले से यह बात कही जाती है, उसका बारीकी से अध्ययन करने पर पता चलता है कि वास्तव में उत्तराखंड में केवल 46 फीसद क्षेत्रफल में ही वन हैं। निराशाजनक बात यह भी है कि इस इसमें से 12 फीसद भूभाग में उथले यानी अवनत वन हैं। इस प्रकार सही मायने में उत्तराखंड में महज 34 फीसद क्षेत्रफल में ही 40 फीसद से अधिक घनत्व के वन हैं।
भारतीय वन संरक्षण विभाग की देश के वनों के संबध में जारी ताजा द्विवार्षिक रिर्पोट के अनुसार राज्य के कुल 53483 वर्ग किमी भू भाग में से 4969 वर्ग किमी यानी कुल भू भाग के 9.29 फीसद क्षेत्रफल में अत्यधिक घने वन, 2884 वर्ग किमी यानी 24.08 फीसद भूभाग पर सामान्य घने वन, 6442 वर्ग किमी यानी 12.04 भूभाग में खुले वन, 383 वर्ग किमी यानी 0.71 फीसद में झाड़ी झंकार हैं। इस प्रकार 28805 वर्ग किमी यानी 53.83 फीसद क्षेत्रफल में वन नहीं हैं, एवं कुल 46.17 फीसद क्षेत्रफल में ही वन हैं। इसमें से यदि 12.04 फीसद खुले या अवनत वन क्षेत्र को हटा दें तो राज्य का कुल वन केवल 34.13 फीसद पर ही हैं। राष्ट्रीय वन नीति में भी कुल भूमि के 33 फीसद पर वन होने चाहिये, इस तरह उत्तराखंड ठीक सीमा रेखा पर ही है, जबकि राज्य में 66 फीसद में वन बताये जाते हैं।

23 वर्ग किमी में वन बढ़े, पर भ्रमपूर्ण स्थिति

नैनीताल। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि वन सर्वेक्षण की 2015 की रिपोर्ट के मुकाबले 2017 की रिपोर्ट में अत्यधिक घने वन क्षेत्र में 165 वर्ग किमी, खुले वन में 636 वर्ग किमी, झाड़ी झंकार में 87 वर्ग किमी तथा गैर वन क्षेत्र में 110 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है, जबकि सामान्य घने वन क्षेत्र में 778 वर्ग किमी की कमी आई है। इससे साफ पता चलता है कि सामान्य घना वन क्षेत्र 778 वर्ग किमी घट कर 636 किमी खुले वन में बदल गया और इसी तरह झाड़ी झंकार और गैर वन क्षेत्र भी बढ़ गया है। यह स्थिति गंभीर है यानी वनों का बड़ा भाग उथला या अवनत हो रहा है। हालांकि इसी रिर्पोट में एक जगह यह भी बताया गया है कि आरक्षित वन भूमि 49 वर्ग किमी घट गयी है वहीं वनों के बाहरी क्षेत्रों में 72 वर्ग किमी वन बढ़ गये हैं और इसे प्रचारित भी किया गया है कि हमारे यहां इन दोनों का अंतर यानी 23 वर्ग किमी जंगल बढ़ गये हैं। यह भी हो सकता है कि बाहरी क्षेत्र में बढ़ा वन क्षेत्र केवल कृषि आदि की हरियाली भी हो सकती है।

यह है सर्वेक्षण रिपोर्ट में वनों की परिभाषा

नैनीताल। सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार किसी क्षेत्र में 70 फीसद से अधिक वृक्ष होने पर उसे अत्यधिक घना वन, 40 फीसद से 70 फीसद के मध्य वृक्ष होने पर सामान्य घना वन, 10 फीसद से 40 फीसद के मध्य वृक्ष होने पर   खुला वन एवं 10 फीसद से कम वृक्ष होने परगैर वन कहे जाते हैं। इसके साथ ही रिपोर्ट में यह भी साफ किया गया है कि यह रिपोर्ट धरातल के अध्ययन के बजाय उपग्रह से प्राप्त चित्रों के आधार पर तैयार की जाती है। जिसके कारण इसके संकलन व व्याख्या में कई त्रुटियां रह जाती हैं। रिपोर्ट की प्रस्तावना में भी यह स्पष्टीकरण दिया गया है कि घने बादलों के कारण पड़ने वाली परछायियां वनों की सघनता का आभास दे सकती हैं, तो वृक्षारोपण, गन्ने के खेत, फलों के बगीचे, लैंटाना जैसी झाड़ियां व खरपतवार आदि की लंबे क्षेत्र में फैली हरीतिमा भी वनों के रूप में ही चित्रित हो सकती हैं। लिहाजा यह रिर्पोट पूर्णतः जमीनी सच्चाई के बजाय एक अनुमान ही है।

पौड़ी में सर्वाधिक बढ़े-नैनीताल में सर्वाधिक घटे वन क्षेत्र

नैनीताल। रिपोर्ट का उत्तराखंड के जिले वार अध्ययन करने पर पता चलता है कि वर्ष 2015 से 2017 के बीच पौड़ी जिले में सर्वाधिक 76 वर्ग किमी में वन बढ़े हैं, जबकि नैनीताल में सर्वाधिक 35 वर्ग किमी वन क्षेत्र में कमी आई है। इन जिलों के अतिरिक्त रुद्रप्रयाग में 37, अल्मोड़ा में 17, टिहरी गढ़वाल में 7 व देहरादून में 5 वर्ग किमी में वन क्षेत्र बढ़े हैं, जबकि हरिद्वार में 3, पिथौरागढ़ में 5, बागेश्वर में 10, चंपावत में 11, ऊधमसिंह नगर में 14 चमोली में 15 व उत्तरकाशी में 26 वर्ग किमी में वन क्षेत्र की कमी आई है। इस प्रकार राज्य में 23 वर्ग किमी में वन क्षेत्र की नेट वृद्धि बतायी गयी है। इस संबंध में वन निगम के पूर्व अधिकारी एवं वन विशेषज्ञ विनोद पांडे का कहना है कि जिस पौड़ी जिले में वन क्षेत्र में सर्वाधिक वृद्धि बतायी गयी है, वहां अधिकांशतया चीड़ जैसी पर्यावरण के लिए प्रतिकूल बताई जाने वाली प्रजाति के वनों की अधिकता है, यानी वनों में वृद्धि भी पर्यावरण प्रतिकूल वनों की हो सकती है, जबकि मिश्रित वनों के लिए पहचान रखने वाले नैनीताल जिले में सर्वाधिक 35 वर्ग किमी की कमी भी चिंताजनक है।

वन विभाग में अफसरों व फील्ड कर्मचारियों की कमी

वन सांख्यिकी उत्तराखण्ड की वर्ष 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड वन विभाग में उच्चाधिकारियों के पदों पर जहां स्वीकृत पदों से भी अधिक अधिकारी कार्यरत हैं, वहीं नीचे के स्तर पर कर्मचारियों की भारी कमी है। बताया गया है कि राज्य में 3 स्वीकृत पदों के सापेक्ष 11 प्रमुख वन संरक्षक के, 4 के सापेक्ष 15 अतिरिक्त प्रमुख वन संरक्षक, 14 के सापेक्ष 24 मुख्य वन संरक्षक और 12 के सापेक्षे 18 वन संरक्षक हैं, जबकि फील्ड  स्तर पर  33 के सापेक्ष 24 उप वन संरक्षक, 90 के सापेक्ष सहायक वन संरक्षक, 2445 के सापेक्ष 1987 राजि अधिकारी, उपराजिक व वन दरोगा तथा 3650 के सापेक्ष 2634 वन आरक्षी ही कार्यरत हैं। इससे वनों के संरक्षण के प्रति विभागीय प्रतिबद्धता भी साफ नजर आती है।

rbrbist:
नमस्कार
अति सुंदर
अति ज्ञानवर्धक जानकारी
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