Author Topic: Tantra and Mantra of Garhwal, Tantra and Mantra of Kumaun, Tantra and Mantra of  (Read 88416 times)

Bhishma Kukreti

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Kumauni- Garhwali Folk Literature

                                   Saabri Mantra
                 Presented by Bhishma Kukreti
 When a person is effected by wicked thought of enemy /other person, the Sabari reads the following mantra . In this mantra, Sabari takes the names of female desciple of Great Guru gurokhnath and Guru Gorakhnath is very powerful to finish the bad Oman on the person (Pashva)
 

               साबरी मन्त्र (बुरी नजर /हाकडाक सेबचने का मन्त्र )

                  प्रस्तुति : भीष्म कुकरेती

               ऊनमो आदेस गुरु को आदेस बाबोड़ी को आदेस
 
               जोगी को आदेस अच्लानात सूब को आदेस
 
                काउर देस ते आय सक्य महा महाघोर
 
                डैणी जोगणी को लेषवार , नाटक चेटवार को फेरवार
 
                 मण भर षतड़ी, मण भर गुदडी लुवा की टोपी बज्र की षन्ता   
 
                 हरब षोलु   पूरब  षोलु  षोलु ल़ूणी  डोमणी की हंकार षोलु

                 राड़ी बामणी  को हंकार षोलु, खसणी  को जैकार षोलु

                  बरमा की मुंडी हंकार षोलु , भूत प्रेत का बाण षोलु

                   जोगी को नरसी उषेलु  , भात को कलबू उषेलु

                   डोम को अघोरनाथ भैरों उषेलु , सन्यासी को कच्छइया उषेलु
 
                    हाक टेक लगे तो सकती पातळ जावे
 
                  हीर्र हीर्र हीर्र हीर्र हीर्र फटे सुबाहा फुर्र मन्तर इश्वरोवाच :
 
     Abodh Bandhu Bahuguna named these poems as Adi Pady or Adigady (Original poems or prose). However, these cant be original Garhwali because the language is completely Braj language and it is know fact that the Gorakhnathi preachers used to create Mantra in Braj or Rajasthani dialects

 
 
ष = ख

                 
 
                       
 
 
 
 
 
 स्रोत्र अबोध बंधु बहुगुणा : धुंयाळ 

Bhishma Kukreti

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ढोल सागर के बारे में जानकारियाँ -१

 

प्रस्तुतकर्ता : भीष्म कुकरेती

ढोल दमाऊ गढ़वाल कुमाऊँ के पारम्परिक वाद्य यंत्र है इन यंत्रों को बजने वाले दास या औजी कहलाते हैं

औजी का शि अर्थ है शिव भक्त

ढोल सागर टाल सम्बन्धी ग्रन्थ है इस ग्रन्थ पर स्वर्गीय केशव अनुरागी , डा. विजय दस् काम कार्य उल्लेखनीय है तथापि अबोध बंधु बहुगुणा , मोहन बाबुलकर व डा विष्णु दत्त कुकरेती का कार्य भी उल्लेखनीय है भीष्म कुकरेती ने भी इंटरनेट पर ढोल सागर के विषय में जानकारी दी हैं

जहाँ तक ढोल सागर का प्रश्न है यह अद्भुत दर्शन शास्त्र है जिसमे शिव पार्वती संवाद वैसे ही हैं जैसे की विज्ञानं भैरव में है . ढोल सागर जहाँ गुरु गोरखनाथी सम्प्रदाय की देन है तो गोरखनाथी भी शिव उपासक ही हैं इसलिए ढोल सागर पर विज्ञानं भैरव का प्रभाव पड़ना समुचित ही है केशव अनुरागी ने ढोल सागर की गोरख्नाठी साहित्य के साथ तुलना की है (बैरिस्टर मुकंदी लाल स्मृति ग्रन्थ पृष्ठ ३३० )

जब की मै समझता हूँ ढोल सागर को विज्ञानं भैरव की दार्शनिकता के हिसाब शे देखना भी आवश्यक है. जरा देखें की विज्ञानं भैरव व ढोल सागर में कितनी साम्यता है

पार्वती उवाच

श्रुतं देव मया सर्व रुद्रयामल्सम्भवं

त्रिकभेदमाशेषेण सरात्सारविभागश : विज्ञानं भैरव --१---

किम रूपम तत्वतो देव शब्दराशीकलामयम --२--

किम व नावात्मभेदेन भैरवो भैरवा कृतौ

त्रिशिरोभेदभिन्नम वा किम वा शक्तित्रयात्मकम ---३---

नादबिंदुमयम वापी किम चंद्रार्धनिरोधिका:

चकरारुढ़मन्चकम वा किम वा शक्तिस्वरुप्कम --वि.भ.---४--

विज्ञानं भैरव शाश्त्र के प्रथम सर्ग में पारवती शिव शे प्रश्न करते है की सुख का साधन क्या है

इसी तरह ढोल बाडन प्रारम्भ में ढोल वादकों के प्रश्न उत्तर इस प्रकार हैं

पार्वती उवाच ---

अरे आवजी ! नहीं सास नही आस

नहिं गिरी नहिं कविलास

सर्वत धुन्द धुंधकारम

तै दिन की उत्पति बोली जै

इश्वरो उवाच

हमीं उंकार उंकार तैं धौंधोकार

नाद बूंद हमी , कवटों (कर्ता ) विनटो हमी

 निरंकार निरंजन हमारू नौंउ

निरंकार ते साकार श्रिस्ठी रची ली

रची लेई नौखंड पिरथिवी

अरे आवजी ! अगवान पिछवान बोली जै

प्रथमे माई क़ि पूत प्रथमे

प्रथमे गुरु क़ि चेला प्रथमे

प्रथम पौन क़ि पाणि प्रथमे

प्रथमे बीज क़ि बिरछि प्रथमे

इश्वरो उवाच --

अरे आवजी गुणि जन प्रथमे सुन्न

 सुन्न से सुनान्कार सुनान्कार से साकार

पारवती उवाच

अरे आवजी कस्य पुत्रे भवे शब्दम

इश्वरो उवाच

शब्द इश्वर रूप च , शब्द क़ि सुरती साखा

शब्द का मुख विचार , शब्द का ज्ञान आँखा

यो शब्द बजाई हृदया जै बैठाई

विज्ञान भैरव के प्रथम श्लोक से लेकर चौबीसवें श्लोक तक पार्वती व शिवजी का वार्तालाप ही ढोल सागर में भी औजी प्रारंभ करते हैं

हाँ ढोल सागर क़ि भाषा ब्रज है केवल कुछ शब्द ही गढ़वाली/कुमाउनी के है . दर्शन शास्त्र का ऐसा अनोखा ज्ञान है ढोल सागर



जहां तक ढोल सागर के प्रकाशन का प्रश्न है ढोल सागर का संकलन श्री ब्रह्मा नन्द थपलियाल द्वारा सन १९१३ में पुरा हुआ और प्रथम बार सन १९३२ में ही प्रकाशित हुआ (मोहन बोलकर क़ि सूचना )

मोहन बाबुलकर ने ढोल सागर को अपणी पुस्तक गढ़वाल के लोक धर्मी (१९७७) के परिशिष्ट में दिया , केशव अनुरागी ने ढोल सागर के संगीत लिपि भी लिखी डा विष्णु दत्त कुकरेती ने अपने ग्रन्थ में उल्लेख किया . डा विजय दास ने ढोल सागर के कई नए तथ्यों को साधरण जन को बताया

Copyright @ Bhishma Kukreti, bckukreti@gmail.com

 
ढोल सागर का रहस्य

प्रस्तुतिकरण : भीष्म कुकरेती

मूल संकलन स्रोत्र : पंडित ब्रह्मा नंद थपलियाल, श्री बदरीकेद्दारेश्वर प्रेस , पौड़ी , १९१३ में शुरू और १९३२ में जाकर प्रकाशित

( आभार स्व. अबोध बंधु बहुगुणा जन्होने इसे गाड म्यटेकी गंगा में आदि गद्य के नाम शे छापा, , स्व. केशव अनुरागी जिन्होंने ढोल सागर का महान संत गोरख नाथ के दार्शनिक सिधान्तों के आधार पर व्याख्या ही नही की अपितु ढोल सागर के कवित्व का संगीत लिपि भी प्रसारित की , , स्व शिवा नन्द नौटियाल जिन्होंने ढोल सागर के कई छंद को गढ़वाल के नृत्य-गीत पुस्तक में सम्पूर्ण स्थान दिया, एवम बरसुड़ी के डा विष्णुदत्त कुकरेती एवम डा विजय दास ने ढोल सागर की व्याख्या की है )

श्रीगणेशाय नम: I श्री ईश्वरायनम : i श्रीपारत्युवाच i ऊँ झे माता पिता गुरुदेवता को आदेसं ऊँ धनेनी संगति वेदति वेदेतिगगन ग्रीतायुनि आरम्भे कथम ढोलीढोल की सीखा उच्चते i कथर बिरथा फलम फूलं सेमलं सावरीराखम खड़कं पृथ्वी की साखा कहाऊं पजी पृथ्वी कथभूता विष्णु जादीन कमल से उपजे ब्रमाजी तादिन कमल में चेतं विष्णु जब कमल से छूटे तबनहि चेतं i ओंकार शब्द भये चेतं II अथ ऊंकारशब्दलेखितम II यदयाताभ्यां मेते वरण गाद्यामह गिरिजामाप्रं आतेपरत्या हार करी तपस्या म्ये श्रिश्थी के रचते I सातद्वीप नौखंडा i कौन कौन खंड i हरितखंड I भरतखंड २ भीम ० ३ कमल ४ काश्मीरी ० ५ वेद ० ६ देवा ० ७ हिरना ८ झिरना ० ९ नौखंड बोली जेरे आवजी अष्टपरबत बोली जेरे आवजी मेरु परबत I सुमेरु २ नील ० ३ हिम ४ हिंद्रागिरी ०५ आकाश ० ६ कविलाश ०७ गोबर्धन ०८ अष्टपरबत बोली जे गुनिजनम प्रिथी में उत्पति कौन कौन मंडल पृथ्वी ऊपरी वायुमंडल वायु मंडल ऊपरी तेजमंडल तेजमंडल ऊपरी मेघमंडल मेघमंडल ऊपरी गगनमंडल गगनमंडल ऊपरी अग्निमंडल अग्निमंडल ऊपरी हीनमंडल हीनमंडल ऊपरी सूर्य्यमंडल सूर्य्यमंडल ऊपरी चन्द्रमंडल I तारामंडल I तारामंडल २ सिद्ध ० ३ बुद्ध ०४ कुबेर ०५ गगन ०६ भगति ० ७ ब्रम्हा ०८ विष्णु ०९ शिव ०१० निरंकारमंडल II वैकुंटमंडल इतिपृथ्वी की शाख बोलीजरे गुनी जनम बोल रे ढोली कथम ढोल की शाखा I उतब उतपति बोली जा रे आवजी I इशवरोवाच I I अरे आवजी कौन भूमि ते उत्पनलीन्यों कौन भूमिते आई कौन भूमि तुमने गुरुमुख चेतीलीन्या कौन भूमिते तुम समाया I I पारव्त्युंवाच I I

अरे गुनीजन जलश्रमिते उत्पनलीन्या अर नभमिते आया अनुभुमिते गुरुमुख चेतीलीन्या सूं भूमितेसमाया I I श्रीईश्वरीयउवाच I I अरे आवजी कौन द्वीपते ते उत्पन्न ढोल कौन उत्पन्नदमाम I अरे आवजी कौन द्वीपते कनकथरहरीबाजी I I कंहाँ की चारकिरणे बावजी कौन द्वीपते मेंऊँ थरहरीबाजी कौन द्वीपते सिन्धुथरहरी बाजी कहाँ की चार चामणेबाजी कहाँ की चार चरणेबाजी कहाँ की चारबेलवाल बाजी I श्री पारबत्युवाच I I अरे आवजी ढोलं द्वीपते उत्पन्न ढोलं ददीद्वीपते उत्पन्न दमामं कनक द्वीपते कनक थरहरी बाजी किरणो मंडचारचासणेलते चार किरणी बाजे सिन्धुद्वीपते सिन्धु थरहरीवाजी नंदुथरहरीते सिंदुथरहरीवाजी चौदिशा की चार चामणे बाजी चारचासणे की चारचासणेबाजी की चार बेलवाले बाजी I श्री इश्वरीवाच I I अरे आवजी ढोल किले ढोल्य़ा किले बटोल्य़ा किले ढोल गड़ायो किने ढोल मुडाया , कीने ढोल ऊपरी कंदोटी चढाया अरेगुनी जनं ढोलइश्वर ने ढोल्य़ा पारबती ने बटोल्या विष्णु नारायण जी गड़ाया चारेजुग ढोल मुडाया ब्रह्मा जी ढोलउपरी कंदोटी चढाया I श्री इश्वरोवाच I I अरे आवजी कहो ढोलीढोल का मूलं कहाँ ढोली ढोल कको शाखा कहाँ ढोली ढोली का पेट कहाँ ढोली ढोल का आंखा II श्री पारबत्युवाच II अरे आवजीउत्तर ढोलीढोल का मूलं पश्चिम ढोली ढोल का शाखा दक्षिण ढोल ढोली का पेट पूरब ढोल ढोली का आंखा I श्री इश्वरोवाच II अरे आवजी कस्य पुत्रं भवेढोलम कस्य पुत्र च ड़ोरिका कस्यपुत्रं भवेनादम कस्यपुत्रं गजाबलम

ii श्री पारबत्युवाच II अरे आवजी ईश्वरपुत्रभवेढोलं ब्रह्मा पुत्र चंडोरिका पौनपुत्र भवेनाद भीमपुत्रं गजाबल ii श्री इश्वरोवाच II अरे आवजी क्स्य्पुत्रभवेढोल कस्य पुत्र च ड़ोरिका कस्यपुत्रभवेपूड़मकस्यपुत्रं कंदोंटिका कस्य पुत्र कुंडलिका कस्य पुत्र च कसणिका शब्द ध्वनीकस्यपुत्र चं कस्यपुत्र गजाबलम ii श्री पारबत्युवाच II अरे गुनीजनम आपपुत्र भवे ढोलम ब्रह्मा पुत्र च ड़ोरिका विष्णु पुत्रं भवे पूडम कुंडली नाग पुत्र च कुरूम पुत्र कन्दोटिका गुनी जन पुत्रं च कसणिका शब्दध्वनिआरम्भपुत्रं च भीम पुत्रं च गजाबल ii श्री इश्वरोवाच II अरे ढोलीढोल का वारा सरनामवेलीज्ये अरे गुनी जन श्रीवेद I सत २ पासमतों ३ गणेस ४ रणका ५ छणक ६ बेचीं ७ गोपी ८ गोपाल ९ दुर्गा १० सरस्वती ११ जगती १२ इतिवारा शर को ढोल बोली जारे आवजी ii श्री इश्वरोवाच II अरे आवजी कस्यपुत्रं भवेनादम कस्यपुत्रं भवेडंवा कस्यपुत्रं कंदोटी कस्य पुत्रं जगतरां ii पारबत्युवाच II अरे आवजी आपपुत्रं भवेनादं नाद्पुत्र च ऊंकारिका ऊंकारपुत्र भवे कंदोटिका कंदोटीपुत्रं जगतरा ii श्री इश्वरोवाच II अरे आवजी आण का कौन गुरु है I कौन है बैठक की माया लांकुडि का कौन गुरु है i कौन गुरु मुख तैने ढोल बजाया i पारबत्युवाच ii अरे गुनीजन आण का गुरु आरम्भ i धरती बैठकर की माया I लांकूडी का गुरु हाथ है गुरुमुख मैंने शब्द बजाया ii श्री इश्वरोवाच II अरे आवजी कौन तेरा मूलम कौन तेरी कला कौन गुरु चेला कौन शब्द ल़े फिरता हैं ह्दुनिया मिलाया I पारबत्युवाच II अरे आवजी मन मूल मूलं पौन कला शब्द गुरु सूरत चेला सिंहनाद शब्दली फिरा में दुनिया में लाया I ईश्वरोवाच II अरे आवजी कौन देश कौन ठाऊ कौन गिरी कौन गाऊं I पारबत्त्युवाच II अरे गुनी जन सरत बसंत देश धरती है मेरी गाँव अलेक को नगर ज्म्राज्पुरी बसन्ते गाँव I ईशव्रोवाच II अरे आवजी तुम ढोल बजावो नौबत बाजि शब्द बजावो बहुत अनुपम कौन है शब्द का पेट कौन है शब्द का मुखम I पार्बत्यु वाच II अरे गुनी जन मै श्री ढोल बजाया नौबत वाली शब्द बजाया बहू अनूप I ज्ञान है शब्द का पेट बाहू है शब्द का मुखम II ईश्वरोवाच II अरे आवजी कौन शब्द का रूपम I कौन शब्द का है शाखा I शब्द का कौन विचार I शब्द का कौन आँखा I शब्द का कौन मुख डिठ
I टोई पूछ रे दास यो शब्द बजाई कहाँ जाई बैठाई I पार्बत्युवाच I I अरे गुनी जन शब्द ईशरी रूपं च शब्द की सूरत शाखा I शब्द को मुख विचारम शब्द का ज्ञान है आँखा शब्द का गुण है मुख डिठ टोई मैई कहूँ रे गुनी जन यो शब्द बजायी हिरदया जै बैठाई I ईश्वरोवाच I I अरे आवजी तू कौन राशि छयी I कौन राशि तेरा ढोलं I कसणि कौन राशि छ I कन्दोटि कौन राशि छ I कौन राशि तेरो दैणा हाथ की ढोल की गजबलम I पारबत्युवाच I I अरे आवजी शारदा उतपति अक्षर प्रकाश I I अ ई उ रि ल्रि ए औ ह य व त ल गं म ण न झ घ ढ ध ज ब ग ड द क प श ष स इति अक्षर प्रकाशम I इश्वरो वाच I I अरे आवजी आवाज कौन रूपम च I कौन रूप च तेरी धिग धिग धिगी ढोलि तू कौन ठोंऊँ छयी कौन ठाउ च तेरी ढोल I ईश्वरोवाच I I अरे गुनी जन अवाज मेघ रूपमच गगन रूपम च मेरी धिगधिगी ढोली मेई सिंघठाण छऊ गरुड़ ठाण च मेरी ढोल मारी तो नही मरे अण मरी तो मरी जाई I बिन चड़कादिनी फिरां बिन दंताऊ अनोदिखाई इह्तो i मुह मरिये कथं रे आवजी I पारबत्यु वाच I अरे आवजी ढोल का बारासर कौन कौन बेदंती I प्रथम वेदणि कौन वेद्न्ति दूत्तिया वेद्न्ति कौन वेद्न्ति तृतिया ३ कौन चतुर्थी ४ पंचमी ५ षष्ठी ६ सप्तमी ७ अष्टमी ८ नवमे ९ दसम १० अग्यार वै वेदणि ११ बार वै वेदणि १२ I ईश्वरोवाच I I अरे गुनीजन प्रथमे वेदणि ब्रह्मा वेद्न्ति ० द्वितीय ० विष्णु ० ५ त्रोतीय देवी ० चतुर्थ ० महिसुर ४ पंचमे ० पांच पंडव ५ ख्स्टमें ० चक्रपति ६ सप्तमे वेदणि सम्बत धूनी बोलिज्ये ० ७ अष्टम अष्टकुली नाग ८ नवे ० नव दुर्गा वेद्न्ति ९ दसमें वेदणि देवी शक्ति वेद्न्ति I एकादसी वेदणि देवी कालिकाम वेद्न्ति बारों वेदणि देवी पारबती देवी II इति पाराशर ढोल की वेदणि बोलिज्ये I ईश्वरोवाच II अरे आवजी ढोल की क्रमणि का विचार बोलिज्ये I प्रथमे कसणि चड़ायिते क्या बोलन्ती I द्वितीये २ त्रितये ३ चतुर्थ ४ पंचमे ५ ख्ष्ट्मे ६ सप्तमे ७ अष्टमे ८ नवमी ९ दस्मे १० एकाद्से ११ द्वार्वे १२ i पारबत्युवाच II अरे आवजे प्रथमे कसणि चड़ाइते त्रिणि त्रिणि ता ता ता ठन ठन करती कहती दावन्ति ढोल उच्च्न्ते I त्रितिये कसणि चड़ा चिड़ाइतो त्रि ति तो कनाथच त्रिणि ता ता धी धिग ल़ा धी जल धिग ल़ा ता ता अनंता बजाई तो ठनकारंति खंती दावम ति ढोल उचते I चौथी कसणि चड़ाइत चौ माटिका चैव कहन्ति दागंति ढोल उचते I पंचमे कसणि चड़ इतों पांच पांडव बोलन्ति कहन्ति दावन्ति ढोल उचते I खषटमे कसणी चड़ायितो छयी चक्रपति बोलंती कहन्ति दावन्ति ढोल उचते I सप्तमे कसणी चड़ाइतो सप्त धुनी बोलिज्यौ कहन्ति गावन्ति ढोल उचते I अष्टमे कसणी चड़ाइता अष्टकुली नाग बोलन्ती क० ढो ० ढाल उचते I नवमे कसणी चड़ाइतो निग्रह बोलन्ती क० ढा ० ढो ० उ ० I दसमी कसणी चड़ाइतो दुर्गा बोलन्ती क ० दा ० ० ढो ० उ ० i अग्यारे क ० च ० देवी कालिका बोलन्ती क ० दा ० ० ढो ० उ ० i बारों देवी पारबती बोलंती क ० दा ० ० ढो ० उ ० i इति बारो कसणे का विचार बोली जेरे गुनीजन II अरे आवजी क्योंकर उठाई तो ढोल क्योंकरी बजाई तो ढोल फिरावती ढोलम क्योंकरी सभा में रखी ढोलम I इश्वरो वाच Ii अरे गुनी जनम उंकार द्वापते उठाई तो ढोल सुख म बजाई तो ढोल I सरब गुण में फेरे तो ढोल लान्कुड़ी शब्द ते राखऊ सभा में ढोल I पारबत्यु वाच II प्रथमे अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I द्वितीये अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I तृतीय अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I चतुर्थ अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I पंचम अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I I इश्वरो वाच II अरे आवजी प्रथमे अंगुळी में ब्रण बाजती I दूसरी अंगुली मूल बाजन्ती I तीसरी अंगुली अबदी बाजंती I चतुर्थ अंगुली ठन ठन ठन करती I झपटि झपटि बाजि अंगुसटिका I धूम धाम बजे गजाबलम I पारबत्यु वाच I अरे आवजी दस दिसा को ढोल बजाई तो I पूरब तो खूंटम . दसतो त्रि भुवनं . नामाम गता नवधम तवतम ता ता तानम तो ता ता दिनी ता दिगी ता धिग ता दिशा शब्दम प्रक्रित्रित्ता . पूरब दिसा को सुन्दरिका I बार सुंदरी नाम ढोल बजायिते I उत्तर दिसा दिगनी ता ता ता नन्ता झे झे नन्ता उत्तर दिसा को सूत्रिका बीर उत्तर दिसा नमस्तुत्ये I इति उत्तर दिसा शब्द बजायिते I

अग्न्या वायव्या नैरीत्मच ईशानछ तै माशी प्रतक विवाद शब्द दक्षिण दिशा प्रकीर्तित्ता I दक्षिण दिसा को वाकुली बीर वकुली नाम ढोल बजायिते I दक्षिण दिसा नमोस्तुते I इति दक्षिण दिसा बजायिते I पश्चिम दिसा झे झे नन्ता ता ता नन्ता छ बजाइते पश्चिम दिसा प्रक्रीर्तता : II को झाड खंडी बीर झाड खंड नामा ढोल बजाइते पश्चिम दिस नमोस्तुते इति पश्चिम दिसा : II अथ बार बेला को ढोल बजाइता II सिन्धु प्रातक रिदसम अहम गता जननी कं चैव एवम प्रात काल ढोल बजाइते I प्रा प्रा प्रवादे चैत्र पुर कालं सवेर कं जननी क च व प्रराणी नाम ढोल बजाइते I मध्यानी मध्यम रूपम च सर्वरूपी परमेश्वर कं जननी कं चैत्र एवम मध्यानी ढोल बजाइते I लंका अधि सुमेरु वा चैत्र रक्तपंचई शंकरो I सूं होरे आवजी चाँद सूर्य्य का कहाँ निवासं कहाँ समागता सुण हो देवी पारबती I इश्वरो वाच II अरे आवजी चाँद सूर्य्य पूर्ब मसा सूर्य मंडल निगासा II सुमेरु पर्वत अस्त्नगता II इति बार्बेला को ढोल बजायते II अथ चार युग को ढोल बजायते I अरे आवजी


ढोल सागर के बारे में जानकारियाँ -२

 

प्रस्तुतकर्ता भीष्म कुकरेती

 

ढोल सागर गढ़वाल -कुमाओं का दर्शन शाश्त्र है जो कि संस्कृत कर्मकांड में नही मिलता है . भाषा सरल व ब्रज -गढवाली-कुमाउनी मिश्रित है

ढोल कैसे बना इस पर औजियों के मध्य वार्तालाप हॉट है कि -

चारि जुग ढोल मड़ाया

विष्णु ने घोल्या (लकड़ी का खोळ बनाया )

पारबती ने बटोल्या (ढोल पर पूड़ चढ़ाई )
 
ब्रम्हा ढोल कन्दोरी चढाया (कंधे कि पट्टी )

महेश ने ढोल्या (और महेश ने ढोल धारण किया)

इसी ढोल को शिव जंत्री कहते हैं .

ढोल का उर्घ्व्मुखी मूल ही नाद कि शुरुवात है

उत्तर ढोली ढोल का मूल

पच्छिम ढोली ढोल क़ी साखा

दखिन ढोली ढोली का पेट

पूरब ढोली ढोली का आँखा

आभार : केशव अनुरागी, नाद नंदनी (अप्रकशित )


  ढोल सागर में वर्णित गढ़वाल के वाद्य यंत्र
भीष्म कुकरेती

ढोल सागर गढवाल के दर्शन शास्त्र का एक महत्व पूर्ण साहित्य है. इसे अबोध बन्धु बहुगुणा ने आदि गद्य माना है , (जिस सिद्धांत मै विरोध करता आया हूँ ) . सातवी सदी से बारहवीं सदी तल नाथपंथियों के सिद्धों ने नाथपंथी साहित्य गढ़वाल मंडल को दिया . ढोल सागर भी नाथपंथी साहित्य है और शायद बारहवीं या तेरवीं सदी में इसका रचनाकाल हो. जैसे के हर गढवाली नाथपंथी साहित्य का चरित्र है ढोल सागर भी ब्रज भाषा में है और इसमें गढवाली शब्द नाममात्र के हैं . गढवाली शब्दों से अधिक शब्द संस्कृत के हैं .
 
ढोल सागर शिवजी और पार्वती संवाद में है एवम विज्ञानं भैरव शैली में है

ढोल सागर में वाद्य यंत्रों का भी वर्णन है :

I पारबती वाच II अरे आवजी छतीस बाजेंत्र बोलिजे I

ओम प्रथमे I जिव्हा बाजत्र बाजे २ शंख, ३ जाम, ४ ताल, ५ डंवर ६ जंत्र ७ किंगरी ८ डंड़ी ९ न्क्फेरा १० सिणाई ११ बीन १२ बंसरी १३ मुरली १४ विणाई १५ बिमली १६ सितार १७ खिजरी १८ बेण १९ सारंगी २० मृदंग २१ तबला २२ हुडकी २३ डफड़ी २४ श्रेरी २५ बरंग (२६ से ३१ का वृत्तांत भी है ) ३२ रणडोंरु ३३ श्राणे ३४ नगारा ३५ रेटि (रौंटळ/रौंटी) ३६ ढोल II it ढोल की उतपति बोली जे रे आवजी II

 

पंडित ब्रह्मा नन्द थपलियाल द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ में जो छह वाद्य  यंत्र नही हैं वे शायद झांझ, थाली , चिमटा, सींग, घुंघरू ,होंगे

इससे एक बात पता चलती है कि मुस्क्बाजा ब्रिटिश राज के देन है . हारमोनियम का भी वर्णन ढोल सागर में नही है ( सन्दर्भ : सेमलटी, १९९० )

सन्दर्भ : ब्रह्मा नन्द थपलियाल  १९१३/१९३२ ढोल सागर , बद्रीकेदारेश्वर प्रेस , पौड़ी

अबोध बंधु बहुगुणा , १९७५ गाड मटयकी गंगा

सुरेन्द्र दत्त सेम्लटी , १९९०, गढ़वाल के वाद्य यंत्र , गढवाल की जीवित विभूतियाँ , पृष्ठ २७६ -२८०

 

                          Damau Sagar (दमौ सागर )

 

Presented by /प्रस्तुति Bhishma Kukreti (भीष्म कुकरेती )

 

Dhol Sagar and Damau Sagar are the treasurar of Garhwal as these literature are philosophical literature . damau sagar is about explaining the music

The language is Braj with a couple of Garhwali words. As karmkand is in Sanskrit the Garhwali philosophy is in Braj Language because the Nath sect preachers were from Rajasthan, Mathura area who came to Garhwal (from 6th century to 1200 AD)



अथ दमामे सागर -लिखितम I . जब उर्द घोट ताल बाजंती , लबीता तानी ता झे तानी ता तनक झेनता आप वेश्वर चले बलि नन्द न लोई अटल को भेंट मिली

नन लोई दुहातो मिले अग्नि I ज्ल्लाब सरड़ लान्कुड़ गरड़ का पूड़ बाजन्ती हांणी डे दमामे निसाण कापूड़ जै दिनन सुननी सन तै दिन बी तू दमामी कहाँ छयो जै दिन चंदनी सुरजि पौन नि पाणी तै दिन बी तू दमामी कहाँ छयो जै दिन मातानी पितानी तै दिन बी तू दमामी कां छयो जै दिन जातीनी जायो जै दिन तू दमामी काँ छयो अनंग गड़ो अनंग मडो बार जाती नगाजन्ती शब्द संकार चार लान्कुडि काँ काँ बाज्न्ती रे आवजी चम्म लान्कुडि धौंस बाज्न्ती I शब्द लान्कुडि मेरा ढोल का पूड़ बाजन्ती संकार (जोड़ा) लान्कुडि मेरा दमामी का पूड़ बाज्न्ती रे आवजी बारा स्र (स्वर) को ढोल बतीस स्र को दमामम ठणम ठाण बीजे खाणम के ते बार जालता सर एक रग दुई बीर हर सर तीन कुलोली सर (स्वर) चार ब्रुदम बंदनी सर पांच जन्ता सर छै सांवला सर सात अगसर (अक्षर ) आट नी सर नौउ दरमिदरी दमामी निसाण का पूड़ सर दास गोउ गजन्ता सर गयार विरदावली सबद को लान्कुड़ सर बार तेघरंग ते परा सर तेर चंप घर चपेला सर चौद पर ना हो पारबती का नाम सर पन्द्र सोल मदे सेला ब्ररण (वर्ण) सर सोल सबद में सबद धातु बाज्न्ती सर सतर बाट में असट धुनी बाजन्ती सर अट्ठार येंक नंग एक त्रिगुटी बाजन्ती सर उन्नीस छांटी लान्कुड़ बेला बल बाजन्ती सर बीस एक नंग त्रिगुटी सर य्क्कीस बरम कला उच्चारन्ती सर बाईस से घरंग तेपरा सर त्यइस चंप पर चंपेला सर (स्वर ) चौबीस पर ण हो पारबती का नाम सर पचीस छत्र लोक कमन दाव्न्ती सर छबीस सबद में सबद धातु बाजन्ती सर सताईस असट (अष्ट ) में असट धुनों बाजन्ती सर अठाइस नऊ में दरबिंदु ड्या सिंदु सर उणतीस करम लील्या बौ बाजन्ती सर त्रीस टोकती दमामं बाजन्ती कुलोलं सर एकतीस पंच अगुनी मरद नाम टकती सर बत्तीस गारा सर को ढोल बत्तीस सर (स्वर ) को दमामं इति अगम दासं पूड़ हांणी ढे दमामी का निसतारं आदि पुनादी (अद्दी पुन्यादी )

 



Curtsey ; Shri Prem lal Bhatt of Village, Seman, Dev Prayag, for his collection

Abodh Bandhu Bahuguna , Gad Matyk Ganga

Dr Vishnu Datt Kukreti for interpretetion in His Nathpanth Book

Late Keshv Anuraagi and Dr Vijay Das also wrote comments on this Philosphical literature



Copyright for comments @ Bhishma Kukreti

 
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ढोल सागर में ढोल के ३९ तालों का वर्णन और संगीत लिपि
 

(केशव अनुरागी व डा शिवा नन्द नौटियाल का गढवाल के लोक गीतों के संरक्षण में योगदान, भाग -१ )

भीष्म कुकरेती

गढवाल के लोक साहित्य को अक्षुण रखने के लिए कई विद्वानों व गुनी जनों का अथक योगदान है
इनमे से स्व केशव अनुरागी व डा शिवा नन्द नौटियाल का योगदान कहीं अलग भी है . केशव अनुरागी ने ढोल बाडन की शैली को

देहरादून में प्रायोगिक धरातल में प्रचारित व प्रसारित किया . केशव जी राम लीला या अन्य कार्यकर्मों में ढोल बाडन ही नही करते थे अपितु

कईयों को ढोल बाडन का प्रशिक्षण भी देते थे. मुझे अनुरागी जी द्वारा ढोल बादन सुनने का अवसर चुखुवाले की गढ़वाली रामलीला में प्राप्त हुआ है

केशव जी ने कई लोक गीतों की स्वार लिपि भी तैयार कीं हैं और श्री शिवा नन्द नौटियाल जी ने कई लिपियों को अपने ग्रन्थ में स्थान भी दिया है

यथा एक उधाह्र्ण है जिसमे केशव जी ने ढोल सागर के चैती प्रभाती में ढोल दमाऊ युगल बंदी की स्वर लिपि . ढोल में ३९ टाल हैं व दमाऊ में तीन

१ २ ३ ४ ५ ६ ७ I ८ ९ १० ११ १२ १३ १४

झे नन तू झे नन ता - I झे गा तु झे ननु ता --

 ०

 १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ I २२ २३ २४ २५ २६ २७ २८

त ग ता झे गु त - I झे गा झे न्ह न ता --

२९ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ ३६ ३७ ३८ ३९ I १ २ ३

ता - क झे ना तु झे गा --- ता -- I झे ननु तु

यह लोक गीत चैत महीने में बजाया जाता है जिसे चैत प्रभाती कहते हैं चैत संगरांद के दिन औजी अपने ठाकुरों के यहाँ घर घर जाकर सुबह इस्ताल पर ढोल दमाऊ बजाते हैं

इस पारकर हम पाते हैं की केशव अनुरागी ने आने वाली पीढ़ी के लिए एक विरासत छोडि है . प्रवास में जब अब प्रवासी इन ढोल बजाना नही जानते हैं वे इन सन्गीएत लिपियों के बल पर शी तरह से ढोल-दमाऊ बजा सकते हैं

हमारा नमन स्व केशव अनुरागी को और डा शिवा नन्द नौटियाल को जिन्होंने हमारी धरोहर को बचाने में अतुल्य योगदान दिया

सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती

लिपि अधिकार @ श्रीमती केशव अनुरागी



 
 


Regards
B. C. Kukreti

 

Bhishma Kukreti

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    Damau Sagar        (दमौ सागर )

 
 
                    Presented by /प्रस्तुति      Bhishma Kukreti (भीष्म कुकरेती )

 
 
 Dhol Sagar and Damau Sagar are the treasurar of Garhwal as these literature are philosophical literature . damau sagar is about explaining the music

 The language is Braj with a couple of Garhwali words. As karmkand is in Sanskrit the Garhwali philosophy is in Braj Language because the Nath sect preachers were from Rajasthan, Mathura area who came to Garhwal (from 6th century to 1200 AD)

 

                      अथ दमामे सागर -लिखितम I . जब उर्द घोट ताल बाजंती , लबीता तानी ता झे तानी ता तनक झेनता आप वेश्वर चले बलि नन्द न लोई अटल को भेंट मिली
 
नन लोई दुहातो मिले अग्नि I  ज्ल्लाब सरड़  लान्कुड़ गरड़ का पूड़ बाजन्ती हांणी  डे दमामे निसाण कापूड़ जै दिनन सुननी सन तै दिन बी तू दमामी कहाँ छयो जै दिन चंदनी सुरजि पौन नि  पाणी तै दिन बी  तू दमामी कहाँ  छयो जै दिन मातानी पितानी तै दिन बी तू दमामी कां छयो जै दिन जातीनी जायो जै दिन तू दमामी काँ छयो अनंग गड़ो अनंग मडो बार जाती नगाजन्ती शब्द संकार चार लान्कुडि काँ काँ बाज्न्ती रे आवजी चम्म लान्कुडि  धौंस बाज्न्ती I  शब्द लान्कुडि मेरा ढोल का पूड़ बाजन्ती संकार (जोड़ा) लान्कुडि मेरा दमामी का पूड़ बाज्न्ती रे आवजी बारा स्र (स्वर)  को ढोल बतीस स्र को दमामम ठणम ठाण बीजे खाणम के ते बार जालता सर एक रग दुई बीर हर सर तीन कुलोली सर (स्वर)  चार ब्रुदम बंदनी सर पांच जन्ता सर छै सांवला सर सात अगसर (अक्षर ) आट नी सर नौउ दरमिदरी दमामी निसाण का पूड़ सर दास गोउ गजन्ता सर गयार विरदावली सबद को लान्कुड़ सर बार तेघरंग ते परा सर तेर चंप घर चपेला सर चौद पर ना हो पारबती का नाम सर पन्द्र सोल मदे सेला ब्ररण (वर्ण) सर सोल सबद में सबद  धातु बाज्न्ती  सर सतर बाट में असट धुनी बाजन्ती सर अट्ठार येंक नंग एक त्रिगुटी बाजन्ती सर उन्नीस छांटी लान्कुड़ बेला बल बाजन्ती सर बीस एक नंग त्रिगुटी सर य्क्कीस बरम कला उच्चारन्ती सर बाईस से घरंग तेपरा सर त्यइस चंप पर चंपेला सर (स्वर ) चौबीस पर ण हो पारबती का नाम सर पचीस  छत्र लोक कमन दाव्न्ती सर छबीस सबद में सबद धातु बाजन्ती सर सताईस असट (अष्ट ) में असट धुनों बाजन्ती सर अठाइस नऊ में दरबिंदु ड्या सिंदु सर उणतीस करम लील्या बौ बाजन्ती सर त्रीस टोकती दमामं  बाजन्ती कुलोलं सर एकतीस पंच अगुनी मरद नाम टकती सर बत्तीस गारा सर को ढोल बत्तीस सर (स्वर ) को दमामं  इति अगम दासं पूड़ हांणी ढे दमामी का निसतारं आदि पुनादी (अद्दी पुन्यादी )
 
 

 

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ढोल सागर का रहस्य

                              प्रस्तुतिकरण : भीष्म कुकरेती

                   मूल संकलन स्रोत्र : पंडित ब्रह्मा  नंद  थपलियाल, श्री बदरीकेद्दारेश्वर  प्रेस , पौड़ी , १९१३ में शुरू और १९३२ में जाकर प्रकाशित

                    ( आभार स्व. अबोध बंधु बहुगुणा जन्होने इसे गाड म्यटेकी   गंगा में  आदि गद्य के नाम शे छापा, , स्व. केशव अनुरागी जिन्होंने ढोल सागर का महान संत  गोरख नाथ के  दार्शनिक सिधान्तों के आधार पर व्याख्या ही नही की अपितु ढोल सागर के कवित्व का संगीत लिपि भी प्रसारित की  , , स्व शिवा नन्द नौटियाल जिन्होंने ढोल सागर के कई छंद को गढ़वाल के नृत्य-गीत पुस्तक में सम्पूर्ण स्थान दिया, एवम   बरसुड़ी  के डा विष्णुदत्त कुकरेती एवम डा विजय दास ने ढोल सागर की व्याख्या की है )

            श्रीगणेशाय   नम: I श्री ईश्वरायनम : i श्रीपारत्युवाच  i ऊँ झे माता पिता गुरुदेवता को आदेसं ऊँ धनेनी संगति वेदति वेदेतिगगन ग्रीतायुनि आरम्भे कथम ढोलीढोल  की सीखा उच्चते i कथर बिरथा फलम फूलं सेमलं सावरीराखम   खड़कं   पृथ्वी की साखा कहाऊं पजी पृथ्वी कथभूता विष्णु जादीन कमल से उपजे ब्रमाजी तादिन कमल में चेतं विष्णु जब कमल से छूटे तबनहि  चेतं i ओंकार शब्द भये चेतं II  अथ ऊंकारशब्दलेखितम   II यदयाताभ्यां  मेते वरण गाद्यामह गिरिजामाप्रं आतेपरत्या हार करी तपस्या म्ये श्रिश्थी के रचते I सातद्वीप  नौखंडा i कौन कौन खंड i हरितखंड I भरतखंड २ भीम ० ३ कमल ४ काश्मीरी ० ५ वेद ० ६ देवा ० ७ हिरना ८ झिरना ० ९ नौखंड बोली जेरे आवजी अष्टपरबत बोली जेरे आवजी मेरु परबत I सुमेरु २ नील ० ३ हिम ४ हिंद्रागिरी ०५ आकाश ० ६ कविलाश ०७ गोबर्धन ०८ अष्टपरबत बोली जे गुनिजनम प्रिथी में उत्पति कौन कौन मंडल पृथ्वी ऊपरी वायुमंडल वायु मंडल ऊपरी तेजमंडल तेजमंडल ऊपरी मेघमंडल मेघमंडल ऊपरी गगनमंडल गगनमंडल ऊपरी   अग्निमंडल अग्निमंडल ऊपरी हीनमंडल  हीनमंडल ऊपरी सूर्य्यमंडल सूर्य्यमंडल ऊपरी चन्द्रमंडल I  तारामंडल I तारामंडल २ सिद्ध ० ३ बुद्ध ०४ कुबेर ०५ गगन ०६ भगति ० ७ ब्रम्हा ०८ विष्णु ०९ शिव ०१० निरंकारमंडल II  वैकुंटमंडल इतिपृथ्वी  की शाख बोलीजरे गुनी जनम बोल रे ढोली  कथम ढोल की शाखा I  उतब उतपति बोली जा रे आवजी I  इशवरोवाच I I  अरे आवजी कौन भूमि ते उत्पनलीन्यों  कौन भूमिते आई कौन भूमि तुमने गुरुमुख चेतीलीन्या कौन भूमिते तुम समाया I I पारव्त्युंवाच I I

अरे गुनीजन जलश्रमिते उत्पनलीन्या अर नभमिते आया अनुभुमिते गुरुमुख चेतीलीन्या सूं भूमितेसमाया I I  श्रीईश्वरीयउवाच I I  अरे आवजी कौन द्वीपते  ते उत्पन्न ढोल कौन उत्पन्नदमाम I   अरे आवजी कौन द्वीपते कनकथरहरीबाजी I I  कंहाँ की  चारकिरणे बावजी कौन द्वीपते मेंऊँ थरहरीबाजी कौन द्वीपते सिन्धुथरहरी बाजी कहाँ की चार चामणेबाजी  कहाँ की चार चरणेबाजी कहाँ की चारबेलवाल बाजी   I श्री पारबत्युवाच I I अरे आवजी ढोलं  द्वीपते उत्पन्न ढोलं  ददीद्वीपते उत्पन्न दमामं  कनक द्वीपते कनक थरहरी बाजी किरणो मंडचारचासणेलते चार किरणी  बाजे सिन्धुद्वीपते सिन्धु थरहरीवाजी नंदुथरहरीते सिंदुथरहरीवाजी चौदिशा की चार चामणे बाजी चारचासणे की चारचासणेबाजी की चार बेलवाले बाजी I श्री इश्वरीवाच  I I  अरे आवजी ढोल किले ढोल्य़ा   किले बटोल्य़ा किले ढोल गड़ायो किने  ढोल मुडाया , कीने ढोल ऊपरी कंदोटी चढाया अरेगुनी जनं ढोलइश्वर ने ढोल्य़ा पारबती ने बटोल्या विष्णु नारायण जी गड़ाया चारेजुग ढोल मुडाया ब्रह्मा जी ढोलउपरी कंदोटी चढाया I श्री इश्वरोवाच I I अरे आवजी कहो ढोलीढोल  का मूलं कहाँ ढोली ढोल कको शाखा कहाँ ढोली ढोली का पेट कहाँ ढोली ढोल का आंखा II श्री पारबत्युवाच II  अरे आवजीउत्तर ढोलीढोल का मूलं पश्चिम ढोली ढोल का शाखा दक्षिण ढोल ढोली का पेट पूरब ढोल ढोली का आंखा I  श्री इश्वरोवाच II अरे आवजी कस्य पुत्रं भवेढोलम  कस्य पुत्र च ड़ोरिका कस्यपुत्रं भवेनादम कस्यपुत्रं गजाबलम

 ii श्री पारबत्युवाच II  अरे आवजी ईश्वरपुत्रभवेढोलं ब्रह्मा पुत्र चंडोरिका पौनपुत्र भवेनाद  भीमपुत्रं गजाबल  ii श्री इश्वरोवाच II  अरे आवजी क्स्य्पुत्रभवेढोल कस्य पुत्र च ड़ोरिका कस्यपुत्रभवेपूड़मकस्यपुत्रं  कंदोंटिका कस्य पुत्र कुंडलिका कस्य पुत्र च कसणिका   शब्द ध्वनीकस्यपुत्र  चं कस्यपुत्र गजाबलम   ii श्री पारबत्युवाच II  अरे गुनीजनम आपपुत्र भवे ढोलम ब्रह्मा पुत्र च ड़ोरिका विष्णु पुत्रं  भवे पूडम कुंडली नाग पुत्र च कुरूम  पुत्र कन्दोटिका गुनी जन पुत्रं च कसणिका शब्दध्वनिआरम्भपुत्रं च भीम पुत्रं च गजाबल  ii श्री इश्वरोवाच II  अरे ढोलीढोल का वारा सरनामवेलीज्ये अरे गुनी जन श्रीवेद I सत २ पासमतों ३ गणेस ४ रणका  ५ छणक ६  बेचीं ७ गोपी ८ गोपाल ९ दुर्गा १० सरस्वती ११ जगती १२ इतिवारा शर को ढोल बोली जारे आवजी ii श्री इश्वरोवाच II  अरे आवजी कस्यपुत्रं भवेनादम  कस्यपुत्रं भवेडंवा कस्यपुत्रं कंदोटी कस्य पुत्रं जगतरां  ii  पारबत्युवाच II  अरे आवजी आपपुत्रं भवेनादं नाद्पुत्र च ऊंकारिका ऊंकारपुत्र भवे कंदोटिका कंदोटीपुत्रं जगतरा  ii श्री इश्वरोवाच II  अरे आवजी आण का कौन गुरु है I कौन है बैठक की माया लांकुडि का कौन गुरु है  i   कौन गुरु मुख तैने ढोल बजाया i पारबत्युवाच ii अरे गुनीजन आण का गुरु आरम्भ i धरती बैठकर की माया I लांकूडी का गुरु  हाथ है गुरुमुख मैंने शब्द बजाया ii श्री इश्वरोवाच II  अरे आवजी कौन तेरा मूलम कौन तेरी कला कौन गुरु चेला कौन शब्द ल़े फिरता हैं ह्दुनिया मिलाया I पारबत्युवाच II अरे आवजी मन मूल मूलं पौन कला शब्द गुरु सूरत चेला सिंहनाद शब्दली फिरा में दुनिया में लाया I ईश्वरोवाच II अरे आवजी कौन देश कौन ठाऊ कौन गिरी कौन गाऊं I पारबत्त्युवाच  II  अरे गुनी जन सरत बसंत देश धरती है मेरी गाँव अलेक को नगर ज्म्राज्पुरी बसन्ते गाँव I ईशव्रोवाच II  अरे आवजी तुम ढोल बजावो नौबत बाजि शब्द बजावो बहुत अनुपम कौन है शब्द का पेट कौन है शब्द का मुखम I पार्बत्यु वाच II  अरे गुनी जन मै श्री ढोल बजाया नौबत वाली शब्द बजाया बहू अनूप I  ज्ञान है शब्द का पेट बाहू है शब्द का मुखम II ईश्वरोवाच II  अरे आवजी कौन शब्द का रूपम I  कौन शब्द का है शाखा I शब्द का कौन विचार  I  शब्द का कौन आँखा I   शब्द का कौन मुख डिठ
I  टोई पूछ रे दास यो शब्द बजाई कहाँ जाई बैठाई I पार्बत्युवाच I I  अरे गुनी जन शब्द ईशरी रूपं च शब्द की सूरत शाखा I  शब्द को मुख विचारम शब्द का ज्ञान है आँखा शब्द का गुण है मुख डिठ टोई मैई कहूँ रे गुनी जन यो शब्द बजायी हिरदया जै बैठाई I ईश्वरोवाच I I अरे आवजी तू कौन राशि छयी I  कौन राशि तेरा ढोलं I  कसणि कौन राशि छ I कन्दोटि कौन राशि छ I  कौन राशि तेरो दैणा हाथ की ढोल की गजबलम I  पारबत्युवाच I I  अरे आवजी शारदा उतपति अक्षर प्रकाश I I  अ ई उ रि ल्रि ए औ ह य व त ल गं म ण न झ घ ढ ध  ज ब ग ड द क प श ष स इति अक्षर प्रकाशम I  इश्वरो वाच I I  अरे आवजी आवाज कौन रूपम च I कौन रूप च तेरी धिग धिग धिगी ढोलि तू कौन ठोंऊँ छयी कौन ठाउ च तेरी ढोल I  ईश्वरोवाच I I अरे गुनी जन अवाज मेघ रूपमच गगन रूपम च मेरी धिगधिगी ढोली मेई सिंघठाण छऊ गरुड़ ठाण च मेरी ढोल मारी तो नही मरे अण मरी तो मरी जाई I  बिन चड़कादिनी फिरां बिन दंताऊ अनोदिखाई इह्तो i मुह मरिये कथं रे आवजी I पारबत्यु वाच I  अरे आवजी ढोल का बारासर कौन कौन बेदंती I  प्रथम वेदणि कौन वेद्न्ति दूत्तिया वेद्न्ति कौन वेद्न्ति तृतिया ३   कौन चतुर्थी ४ पंचमी ५ षष्ठी ६ सप्तमी ७ अष्टमी ८ नवमे ९ दसम १० अग्यार वै वेदणि ११ बार वै वेदणि १२ I  ईश्वरोवाच I I अरे गुनीजन प्रथमे वेदणि ब्रह्मा वेद्न्ति ० द्वितीय ० विष्णु ० ५ त्रोतीय देवी ० चतुर्थ ० महिसुर ४ पंचमे ० पांच पंडव ५ ख्स्टमें  ०  चक्रपति  ६  सप्तमे वेदणि सम्बत धूनी बोलिज्ये ० ७ अष्टम अष्टकुली नाग ८ नवे ० नव दुर्गा वेद्न्ति ९ दसमें वेदणि देवी शक्ति वेद्न्ति I एकादसी वेदणि देवी कालिकाम वेद्न्ति बारों वेदणि देवी पारबती देवी II  इति पाराशर ढोल की वेदणि बोलिज्ये I  ईश्वरोवाच II अरे आवजी ढोल की क्रमणि का विचार बोलिज्ये I  प्रथमे कसणि चड़ायिते क्या बोलन्ती I  द्वितीये २ त्रितये ३ चतुर्थ ४ पंचमे ५ ख्ष्ट्मे ६ सप्तमे ७ अष्टमे ८ नवमी ९ दस्मे १० एकाद्से ११ द्वार्वे १२  i  पारबत्युवाच II  अरे आवजे प्रथमे कसणि चड़ाइते त्रिणि त्रिणि ता ता ता ठन ठन करती कहती दावन्ति ढोल उच्च्न्ते I  त्रितिये कसणि चड़ा चिड़ाइतो त्रि ति तो कनाथच त्रिणि  ता ता धी धिग ल़ा धी जल धिग ल़ा ता ता अनंता बजाई तो ठनकारंति खंती दावम ति ढोल उचते I चौथी कसणि चड़ाइत चौ माटिका चैव कहन्ति दागंति ढोल उचते I पंचमे कसणि चड़ इतों पांच पांडव बोलन्ति कहन्ति दावन्ति ढोल उचते   I  खषटमे कसणी चड़ायितो छयी चक्रपति बोलंती कहन्ति  दावन्ति  ढोल उचते I सप्तमे कसणी चड़ाइतो सप्त धुनी बोलिज्यौ कहन्ति गावन्ति ढोल उचते I अष्टमे कसणी चड़ाइता अष्टकुली नाग बोलन्ती क० ढो ० ढाल उचते I  नवमे कसणी चड़ाइतो निग्रह बोलन्ती क० ढा ० ढो ० उ ० I  दसमी कसणी चड़ाइतो दुर्गा बोलन्ती क ० दा  ०  ० ढो ० उ ० i  अग्यारे क ० च ० देवी कालिका बोलन्ती क ० दा  ०  ० ढो ० उ ० i  बारों देवी पारबती बोलंती क ० दा  ०  ० ढो ० उ ० i   इति बारो कसणे का विचार बोली जेरे गुनीजन II  अरे आवजी क्योंकर उठाई तो ढोल क्योंकरी बजाई तो ढोल फिरावती ढोलम क्योंकरी  सभा में रखी ढोलम I इश्वरो वाच Ii अरे गुनी जनम उंकार द्वापते उठाई तो ढोल सुख म बजाई तो ढोल I सरब गुण में फेरे तो ढोल लान्कुड़ी शब्द ते राखऊ सभा में ढोल I पारबत्यु वाच II प्रथमे अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I द्वितीये  अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I तृतीय अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I चतुर्थ अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I पंचम अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I I  इश्वरो वाच II  अरे आवजी प्रथमे अंगुळी में ब्रण बाजती I  दूसरी अंगुली मूल बाजन्ती I तीसरी अंगुली अबदी बाजंती I चतुर्थ अंगुली ठन ठन ठन करती I झपटि झपटि बाजि अंगुसटिका  I  धूम धाम बजे गजाबलम I  पारबत्यु वाच I  अरे आवजी दस दिसा को ढोल बजाई तो I पूरब तो खूंटम . दसतो त्रि भुवनं . नामाम गता नवधम  तवतम ता ता तानम तो ता ता दिनी ता दिगी ता धिग ता दिशा शब्दम प्रक्रित्रित्ता . पूरब दिसा को सुन्दरिका  I बार सुंदरी नाम ढोल बजायिते  I  उत्तर दिसा दिगनी ता ता ता नन्ता झे झे नन्ता उत्तर दिसा को सूत्रिका बीर उत्तर दिसा नमस्तुत्ये I इति उत्तर दिसा शब्द बजायिते I

           अग्न्या वायव्या नैरीत्मच ईशानछ तै माशी प्रतक विवाद शब्द दक्षिण दिशा प्रकीर्तित्ता I दक्षिण दिसा को वाकुली बीर वकुली नाम ढोल बजायिते I  दक्षिण दिसा नमोस्तुते I इति दक्षिण दिसा बजायिते I पश्चिम दिसा झे झे नन्ता ता ता नन्ता छ बजाइते पश्चिम दिसा प्रक्रीर्तता : II को झाड खंडी बीर झाड खंड नामा ढोल बजाइते पश्चिम दिस नमोस्तुते इति पश्चिम दिसा : II अथ बार बेला को ढोल बजाइता II  सिन्धु प्रातक रिदसम अहम गता जननी कं चैव  एवम प्रात काल ढोल बजाइते I प्रा प्रा प्रवादे चैत्र पुर कालं सवेर कं जननी क च व प्रराणी नाम ढोल बजाइते I मध्यानी मध्यम रूपम च सर्वरूपी परमेश्वर कं जननी कं चैत्र एवम मध्यानी ढोल बजाइते I  लंका अधि सुमेरु वा चैत्र रक्तपंचई शंकरो I  सूं होरे आवजी चाँद सूर्य्य  का  कहाँ निवासं कहाँ समागता सुण हो देवी पारबती I  इश्वरो वाच II  अरे आवजी चाँद सूर्य्य पूर्ब मसा सूर्य मंडल निगासा II सुमेरु पर्वत अस्त्नगता II इति बार्बेला को ढोल बजायते II  अथ चार युग को ढोल बजायते I  अरे आवजी

Bhishma Kukreti

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ढोल सागर के बारे में जानकारियाँ -२

 

प्रस्तुतकर्ता  भीष्म कुकरेती

 

ढोल सागर गढ़वाल -कुमाओं का दर्शन शाश्त्र है जो कि संस्कृत कर्मकांड में नही मिलता है . भाषा सरल व ब्रज  -गढवाली-कुमाउनी मिश्रित है

 ढोल कैसे बना इस पर औजियों के मध्य वार्तालाप होता  है कि -

 

चारि जुग ढोल मड़ाया

                   विष्णु ने घोल्या (लकड़ी का खोळ बनाया )

पारबती ने बटोल्या (ढोल पर पूड़ चढ़ाई )

ब्रम्हा ढोल कन्दोरी चढाया (कंधे कि पट्टी )

महेश ने ढोल्या (और महेश ने ढोल धारण किया)

 

इसी ढोल को शिव जंत्री कहते हैं .

ढोल का उर्घ्व्मुखी मूल ही नाद कि शुरुवात है

 

उत्तर ढोली ढोल का मूल

                पच्छिम ढोली ढोल क़ी साखा

                 दखिन ढोली ढोली का पेट

                  पूरब ढोली ढोली का आँखा

   आभार : केशव अनुरागी, नाद नंदनी (अप्रकशित )

Bhishma Kukreti

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Sarp Vish  Nivaran Mantra : A Mantra for Defecting Poison of Snake of Garhwal
Notes on Indian Mysterious Traditional Literature, Himalayan Mysterious Traditional Literature, Uttarakhandi Mysterious Traditional Literature, Mysterious Traditional Literature from Garhwal, Mysterious Traditional Literature from Kumaun

                                            Bhishma Kukreti

                       This author is witness (around 1962-63) that when a girl was bite by snake, instead of going to hospital five miles away from Jaspur  the people sent a man eight miles away to a Mantrik for defecting the poison of snake. Since, most of snakes in Garhwal are non-poisonous the patient bate by snake the Mantra seem to work positively. Till the Mantrik came, a villager who was having knowledge of ant-snake poisonous root went to forest and brought a root and asked the girl to chew the root. A couple of women   were throwing water on the girl that she does not sleep.
                       When Mantrik came, he read some mantras. Since, in old age, the people were uneducated and medical facilities were not available at all, people had to depend on Mantra and Tantra only for curing from all the diseases including bites of snakes, Scorpios or rats.
  The following is a Mantra for Defecting Poison of Snake of Garhwal. The readers can guess easily that Mantra is not in Garhwali language at all. The Mantra is also not very old as there are words of Islamic culture as Topi. Usually, in Nathpanthi Mantra there are words to pray Shivjee and Parvati but in this song the prayer is about Rama, Sita, and Hanuman etc. It means this Mantra is  Vaishnvai prayer. 
सर्प विष निवाराण मंत्र
गुरौ विष उतारणो मंत्र


ओउम नमो गुरु को आदेस ,
ओउम नमो गुरु को आदेस,
ओउम नमो गुरु को आदेस,
जै गुरु नन्दी ने गुरु का वार तैं गुरु को लगु पायें पुआर
इंद्र वंथौ, जाल वंथौ शक्ति की पाताल वंथौ
श्री मारौ, लोहा कील जो इस माटी का शिर पडी पेट पड़ी
अखल करी दखल करी तो राजा राम हे तेरो विष नी छ: मेरो विष बड़ो छ:, सिर
मारौ ब्रज शीला जीवा मारौ लौहा की कील, ज्र्बर टोपी खरबर थैली को वंथौ
तेरो नाप जीने तू जागते ऊपयो , सिर मारो ब्रज की शीला जिव्हा मारौ
लौहा की , जो इस माटी का सिर चढी पेट पड़ी तो राजा परथ की आण
पड़ी , लक्ष्मण की आण पड़ी , रामचंद्र की आण पड़ी , सीता की
आण पड़ी , हनुमंत की आण पड़ी , जती नाम गरुडों की आण पड़ी
फॉर मंत्र ईश्वरा वाच:


Reference :Dr Nandkishor Dhoundiyal, Garhwali Lokmantra (ek Sanklan)
Himadri Prakashan, Kotdwara
Collected by
Sandeep ishtwal, Isodi, Mvalsyun, Pgarhwal,
DhairyaRam Baudai , Bharpoor, Sabali, P Garhwal
Girish Chandra Dabral, Dabar, Dabralsyun, P.Garhwal
Keshvanand Maindola, Sidhpur, Rikhnikhal, P Garhwal
Ghuttaram Jagri, Bilkot, Nanindandaa, P Garhwal

Copyright@ Bhishma Kukreti

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 Bichhu bish Marno mantar: A folk Prose-Song for Traditional Medical Treatments as Rituals for scorpion bite in Kumaun and Garhwal


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                                              Bhishma Kukreti

                  Wayne Adam writes about medieval folk medicines of Europe.  Wayne Adam admits that after fall of Roman rule, the Europeans started leaving professional medical treatments and inclined more towards religious rituals. Wayne Adam further elaborates that folk medicines relied on the herbal remedies; superstitious beliefs and mysticisms that passed from generation to generation. These mysterious curing was administer by local healers (mostly women), shamans, incarnation and other rituals.  Wayne Adam provided a list of many superstitious matters for preventing diseases and bad luck. 
                         Jennie R. Joe (1996) and Virgil J.Vogel (1970) provide many accounts of using rituals and herbs for medical treatment as snakebite among Native American communities
               Sarah Eastlund writes in an e-essay ‘Sicilian folk remedies’ that rituals and superstitions have played a major role in the medical remedies of Sicilian people since old age. Sarah Eastlund confirms that still Traditional Medical Treatments as Rituals exist with Sicilian people. 
   There are many deities and rituals in Korean communities and concepts of ‘Shamanism’ or ‘Muism’ where a woman becomes the intercessors between gods and human beings
             Bichhu bish Marno mantar: A folk Prose-Song for Traditional Medical Treatments as Rituals scorpion bite in Garhwal


                When medical treatment was not possible, people used to depend on superstitious beliefs.          In past, when Scorpion bites a person in rural Garhwal or Kumaun the Mantrik reads the following rituals for curing scorpion bite. The knowledgeable person provides herbs to the patient to chew.
       
 
                      बिच्छु विष निवारण मंत्र
                          बिच्छू बिस मारणो मंतर



ओउम नमो गुरु को आदेस ,
ओउम नमो गुरु को आदेस,
ओउम नमो गुरु को आदेस,
ओउम नमो मरजाय परबन जाय श्री परिसकू बबूल
सूल गाय गोबर ग्यों छ:
ओउम नमो मरजाय परबन जाय श्री परिसकू बबूल
सूल गाय गोबर ग्यों छ:
ओउम नमो मरजाय परबन जाय श्री परिसकू बबूल
सूल गाय गोबर ग्यों छ:
वू बिच्छो सजक को कंकाल वाको ,
सांप पखती हरो नीलो पीलो उतरो व उतारूँ नही तो मोरू कुभ:
को द्वार हर नाग्रून शब्द साँचा , पिंड कांचा , फॉर मंत्र इश्वरो वाच:

 The above prose-song is not in Garhwali or Kumauni language at all but is practiced in the region.

Reference: Dr Nandkishor Dhoundiyal, Garhwali Lokmantra (ek Sanklan)
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           Kaunlbaai Jhadno Mantra: A Folk Rituals /Religious Folk Song for Curing Jaundice

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                       Bhishma Kukreti
                    Folk Rituals /Religious Folk Song for Curing Jaundice in Maya civilization     
                   Colby Benjamin (2004) provides great details of curing by herbs and using rituals of Maya civilization for curing jaundice disease.  The folk rituals and religious folk songs in Maya culture differ region to region.  First, a medicinal man used to precede all the foresight and decided the day of ceremony by seeing divine calendar.  During the expulsion of jaundice evil ceremony, there used to be singing of folk rituals and sacrifices as human or chicken blood and food/ornament offer.
                    Folk Rituals /Religious Folk Song for Curing Jaundice among Kolams tribes     
              Robin D. Tribhuvan in his book ‘Health of Primitive Tribes’ divide healing the disease folk rituals among Kolams as-
1-Healing Folk rituals of diagnosis as diagnosis of jaundice
2-Folk rituals of interpreting the origin and causes of illness as jaundice
3- Folk rituals for collecting medicines for example for jaundice
4- Folk rituals for administrating medicines as for expulsing jaundice
5- Folk rituals for healing or warding of disease as jaundice
6- Folk rituals for thanks giving

      Folk Rituals /Religious Folk Song for Curing Jaundice among Lithuanians
         Sophie Reynolds describes that Lithuanians in old age used to use herbal treatments, used folk rituals as incanting prayers. Such folk rituals were also common for curing jaundice in Lithuanians.
        In Garhwal and Kumaun, in older time the Mantrik used to perform folk rituals and rites and the medicine man used to provide herbal medicines for curing jaundice.
The mantra or folk ritual for curing jaundice is as under:
Kaunlbaai Jhadno Mantra: A Folk Ritual /Religious Folk Song for Curing Jaundice
पीलिया (कौंळ बाई ) झाड़ने का मंत्र
ॐ प्रथम कोरकी राजा , कोरकी राजा को फोर्की राजा ,
फोर्की राजा को किबारी राजा, किबारी राजा को रावण मंडली,
रावण मंडली को राजा रावण कि जन्मी सात कन्या
औशाली , बैशाली , मेघमाला , रायकेला, जाकेला, कौलतिथि, कौंळबाई,
झड़ी जा बैणी ,कौंळबाई झड़ी ना जाई ट पिता रावण को पाप जाई, बड़ा बिभीषण को
पाप जाई, काका कुम्भकर्ण को पाप जाई , दादा इंदु का पाप जाई, गौंत
को छीड़ो, कडुवा तेल की धार, जब को जोड़ो , कांश की काळी झड़ी
जा बैण कौंळबाई झड़ी नी जाई तो महादेव पार्वती के दुहाई , हनुमंत बीर
तेरी केर , सिर चढी , पेट पड़ी , तो पंचनाम देवतों कि कार पड़ी ,
फॉर मंत्र इश्वरो वाच:


Reference: Dr Nandkishor Dhoundiyal, Dr. Manorama Dhoundiyal Garhwali Lokmantra (ek Sanklan)
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Daag Utarno Mantra: A Folk Ritual Song for Removing Influence of Evil Eye of Garhwal and Kumaun


Notes on Asian Folk Culture, Indian Folk Culture, North Indian  Folk Culture, Himalayan Folk Culture, Uttarakhandi Folk Culture, Kumauni Folk Culture, Garhwali Folk Culture

                                By: Bhishma Kukreti

                  The concept of evil eye is universal concept. The evil eye means the look which causes injury or harm. In Garhwal and Kumaun, Evil Eye concept persists in today time too. 
                                         Evil Eye concept in United States
                   Henry Gamache (1946) published a book ‘Terrors of Evil Eye Exposed’ and he delivers the direction for protecting Evil Eyes.
                                         Evil Eye concept in Mexico
  In Mexico the concept of evil eye is called ‘mal ojo’ as a Spanish word.  As in Kumauni and Garhwali community ‘mal ojo’ is also used for an envious evil eye.
                                         Evil Eye concept in Albania
  In Albania the concept of Evil eye is referred as ‘Syni Keg/gheg’ or ‘syri I keg’
                                       Evil Eye concept in Arabic language             
  In Arabic language or Arabic world, the concept of Evil eye and its danger is called ‘ayn al hasud’
                                       Ethiopian  Evil Eye concept
 There is concept of evil eye in Ethiopia and Buda is power of bad eye.
                                            Japanese concept of Evil eye
In Japanese, the word for evil eye is ‘jagan’
                                      Evil Eye concept in Germany
  In German language the Evil Eye concept is called ‘boser blick’
                                          Evil Eye concept in Greece                                   
                                             
  Greek use ‘matiasma’ word for Evil Eye concept and is 600 B.C. old concept.
                                  Evil Eye concept in Turky
The word for Evil eye in Turkish is ‘kem goz’
                                      Words for Evil Eye concept in Brazil and Portugal
   Word for Evil Eye in Brazil and Portugal is ‘mau olhado’

                                           Evil Eye concept in Spain
The word for evil ye in Spanish is ‘mal de ojo’

                                            Evil Eye concept in Israel Hebrew
  The word for Evil Eye in Hebrew is ‘ayin hara’
                                                     Evil Eye concept in Hungary
  Hungarian call ‘szemmelveres’ to evil Eye
                                         Evil Eye concept in Sanskrit
Drishti dosh ‘is word for Evil eye in Sanskrit
                        In all area, the people perform rituals for removing evil eye through the healer or Mantrik

Daag Utarno Mantra: A Folk Ritual Song for removing Influence of Evil Eye of Garhwal and Kumaun
  The following Mantra is common for removing Influence of Evil Eye in Garhwal and Kumaun. Mantrik performs the ritual as is done in Maharashtra. The Mantrik reads ritual and does mix ash making the ash as holy ash.
  There is Islamic influence on this mantra. Therefore, the mantra is new or three hundred old or so.
कुमाऊं व गढ़वाल में प्रचलित दाग उतारने का मंत्र /नजर उतारने का मंत्र
Daag Utarno Mantra: A Folk Ritual Song for removing Influence of Evil Eye of Garhwal and Kumaun


ओउम नमो गुरु जी को आदेस .
हो वीर चक्र धारिणी असमानीय पठान आयो मैद्दा लोदा पठान को नाली
खाप्राचारी को बेटा लद्दाक दलैला पठान अमर पचि म्स्लानी फकरी खुले में पड़ता है
संगी नाम भजता है , पूजा अपनी लेता है ,
सरे जादू मंगता है , चौकी अपनी रखता है,
सुमरन सेज वे कु लगाना पड़ता है, निगुरु पन्थ्य को मार,
लेटा दि मसाणि को मार,
गुजरनि तुरखाणि को मार,
मुसलमानी उढत कौ मार,
सेरजादू को मार,
मुसलमानी की चौट को मार,
मारी बदकरनी लाई तो , स्वा शेर को तु सो नी पायी
मुर्गा की बली नी पायी ,
दम को दरिया को वाच बासो नी पायी , फॉर मंत्र जाग मंत्र जंत्र इश्वरी वाच .

A Folk Ritual Song for removing Influence of Evil Eye popular in Maharashtra, West India 
महाराष्ट्र में प्रचलित दाग उतारने का मंत्र


ओउम नमो गुरु जी को आदेस
तुझ्या नवे भूत पळे , प्रेत पळे, खबीस पळे, सब पळे अरिष्ट पळे
न पळे गुरु की गोरख नाथ की बीद माहीचले गुरु की संगत मेरी भगत चले मंत्र इश्वरा वाचा
  Both the above Mantras of Garhwal-Kumaun and Maharashtra are based on Nathpanth sect. Maharishtrian Mantriks transformed various words of Braj/Rajashthani into Marathi. However, Garhwali and Kumauni Mantrik use same vocabulary of Braj/Rajashthani language Mantras   

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Ratvaa ko Mantra: a Garhwali Folk Rite for Healing Nyctalopia or Night Blindness

               Notes on Asian Mantras for Healing Nyctalopia or Night Blindness, Indian Mantras for Healing Nyctalopia or Night Blindness, North Indian Mantras for Healing Nyctalopia or Night Blindness, Himalayan Mantras for Healing Nyctalopia or Night Blindness, Kumauni Mantras for Healing Nyctalopia or Night Blindness, Garhwali Mantras for Healing Nyctalopia or Night Blindness
                         
                                 Bhishma Kukreti

                 In old age, people used to take help from medicinal man and magic man or Mantriks for  Healing Nyctalopia or Night Blindness.
               C. Meyer (1973) and D.C Jarvis (1985) provide the accounts of folk medicines and folk Mantra or folk Rites/Rituals or religious folk songs used by Native Americans as remedies for various diseases as Nyctalopia or Night Blindness in America, South America and Latin America.
                     David W.Hood provides many accounts of folk beliefs and folk rituals of Scotland (Folk Culture in North east Scotland) for removing diseases as for Night blindness too.

               Philips T. Weller provides many blessings for removing diseases in his book ‘The Roman Rituals’ (1964).
   John Schiffeler provides a glimpse of folk rituals and folk medicines practiced in Shan-hai Ching area of China, in his research long note, “Chinese Folk Medicine” 
                 The following folk rite is practiced by Mantrik in Kumaun and Garhwal for healing Nyctalopia or Night Blindness.

               कुमाऊं व गढ़वाल में प्रचलित रतवा को मंत्र

Ratvaa ko Mantra: a Garhwali Folk Rite for Healing Nyctalopia or Night Blindness



ओउम नमो गुरु को आदेस , जै गुरु की विद्या तैं गुरु को नमस्कार,
प्रथम मही जाल रतवा को मारू , थल रतवा को मरू , ऐरा रतवा को मारू,
वेरा रतवा को मारू, अरचंड रतवा को मारू, उस्वास को आगे जाई मारू,
पिछै रह्या तो अपणा गुरु का मॉस खाई , मेरे गुरु की दूवाई ,
जाग जाग मर -मर के बिस भर,
सात बार उल्ला गरड़ा तेरी कार लूहा, गरुड़ की कार, केरी न टली दो बार,
मेढ़ा कि बली दक्षिण दिशा छुटी जौला ,
फॉर मंत्र इश्वरो वाच:

References:
Mantra from Garhwal source: Dr Nandkishor Dhoundiyal, Dr. Manorama Dhoundiyal Garhwali Lokmantra (ek Sanklan)
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