सोमेश्वर (अल्मोड़ा)। रिकार्ड तोड़ महंगाई से आम का जीना दूभर हो गया है। हालत यह है कि चैत्र मास में उत्तराखण्ड में बहन को दी जाने वाली भिटौली भी इससे प्रभावित हो गयी है।
उत्तराखण्ड की यह प्राचीन परम्परा है कि चैत्र मास में भाई अपनी बहिन को भिटौली देना नहीं भूलता। इसकी मान्यता व महत्ता का अंदाजा इस बात से लगता है कि लोकगीत भी इसके बिना पूरे नहीं हो पाते। पारंपरिक गीतों में इस परंपरा का बहुतायत उल्लेख मिलता है। भिटौली देने के लिए पूड़ी, हलवा, खजूरे, गुड़ तथा मिष्ठान के साथ ही वस्त्र भी भेंट किए जाते है। इस परम्परा को निभाने में महंगाई आड़े आ गयी है। महंगाई की पीड़ा हर उस चेहरे में दिखाई दे रही है, जो अपनी बहन को हर वर्ष देने वाले उपहार उतने नहीं दे पाया जितना मन था।
खाद्य पदार्थो, तेल, घी, आटा, चावल, गुड़ की आसमान छूती कीमतों ने उन लोगों का बजट संतुलन काफी खराब किया है। बयाला-खालसा के कै.उम्मेद सिंह कैड़ा महंगाई पर चिंता व्यक्त करते हुए बताते हैं कि सामान्य व्यक्ति को भी आज की कीमतों से भिटौली की व्यवस्था करना बड़ा मुश्किल हो गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में भिटौली देना इसलिए भी महंगा हो गया है, क्योंकि गांवों में आज भी पूरे गांव में भिटौली की पूड़ी, हलुवा तथा गुड़ देने की परंपरा है।
सामान्य वर्ग के लिए महंगाई की मार का यह असर है तो जो लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते है व अधिक बेटियां भी इन्ही क्षेत्रों में होती है तो उनके आंसू कौन पोंछेगा।