उत्तराखण्ड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता, उत्तराखण्ड में देवता आराध्य तो हैं ही, इसके साथ ही उनसे लोगों की एक विशेष आत्मीयता जु्ड़ी रहती है। अपने काज-बार में वे देवताओं को भी आमंत्रित करना नहीं भूलते...प्रस्तुत शकुनाआंखर में घर की महिला देवताओं से साथ काज में सहभागी सभी कारकों को बुला रही है।
समाये, बंधाये न्यूतिये,
प्रातहि न्यूतू में सूरज, किरणन को अधिकार,
सन्ध्या न्य़ूतू में चन्द्रमा, तारन को अधिकार।
ब्रह्मा-विष्णु न्यूतूं, मैं काज सों, ब्रह्मा-विष्णु सृष्टि रचाय,
गणपति न्यूतुं मैं काज सों, गणपति सिद्धि ले आय।
ब्राह्मण न्यूंतूं मैं काज सों, ब्राह्मण वेद पढ़ाये,
कमिनी न्यूतूं मैं काज सों, कामिनी दीयो जगाय,
सुहागिनी न्यूतूम मैं काज सों,सुहागिनी मंगल गाय,
शंख-घंट न्यूतूम मैं काज सों, शंख-घंट शबद सुनाय,
मालिनि न्यूतूं मैं काज सों, मालिनि फूल ले आय,
कुम्हारिनि न्यूतूं मैं काज सों, कुम्हारिनि कलश ले आय,
अहिरिनी न्यूतूं मैं काज सों, अहिरनी दूध ले आय,
धिवरनी न्यूतूं मैं काज सों, धिवरनी शकुन ले आय,
गुजरिनी न्यूतूं मैं काज सो, गुजरिनी दइया ले आय,
बहिनिया न्यूंतूं मैं काज सों, बहिनिया रोचन ले आय,
बान्धव न्यूतूं मैं काज सों, बान्धव शोभा बढ़ाय,
बढ़इया न्यूतूम मैं काज सों, बढ़इया चौकी ले आय,
बजनिया न्यूतूम मैं काज सों, बजनिया बाजा ले आय,
समाये बधाये न्यूतिये,
आंगनी धाई बढ़ाई, सब दिन होवेंगे काज, दिन-दिन होवेंगे,
काज, समाये बधाये न्य़ूतिये।
कूर्मांचल में अवधी और ब्रज भाषा को सहज रुप से अंगीकार किया गया है, चाहे होली हो या मांगल गीत, दोनों में आपको उनकी छवि मिलेगी। इसके पीछे यह कारण रहा होगा कि इन गीतों को तैयार करने वाले बुजुर्ग और विद्वान शाष्त्रीय विधाओं में पारंगत थे, जिनकी बैद्धिक परवरिश अवधी और ब्रज भाषा में हुई। जिस कारण इनमें भी इन भाषाओं का समावेश हो गया।