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उत्तराखंड में पशुबलि की प्रथा बंद होनी चाहिए !

हाँ
53 (69.7%)
नहीं
15 (19.7%)
50-50
4 (5.3%)
मालूम नहीं
4 (5.3%)

Total Members Voted: 76

Author Topic: Custom of Sacrificing Animals,In Uttarakhand,(उत्तराखंड में पशुबलि की प्रथा)  (Read 60081 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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ये है एक बुंखाल, पोड़ी का एक झलक जो की इस बेजुबान जानवर की मौत का तमासा दे रहे हैं


Devbhoomi,Uttarakhand

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Devbhoomi,Uttarakhand

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किस तरह दी जाती है देवी देवताओ के नाम पर पशुओं की बलि
 
पौड़ी गढ़वाल के राठ में देवी बूंखाल कालिंका की पूजा के बाद बकरों ओंर भैंसों की बलि दी गई। इसके अलावा इस क्षेत्र के अन्य चार मंदिरों में भी पशुओं की बलि दी गई। राठ क्षेत्र के कई पट्टियों मे देवी बूंखाल कालिंका मंदिर के गर्भगृह में स्थित खड्ड में हर साल पशु बलि दी जाती रही है। पिछले वर्ष भी यहां नर भैंसों की बलि दी गई थी, किन्तु पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष यह आंकड़ा दुगुना हो गया है।

इसके अलावा यहाँ बकरों की अधिक बलि देने के कारन बूंखाल कालिंका का मैदान रक्त से सना नजर आया। यहां के लोग बलि को लेकर गहरी आस्था के वशीभूत होकर हजारों की संख्या में गावं के लोग सुबह होती ही भैंसों को रस्सीयों से बांधकर ढोल-दमाऊ के साथ मंदिर के अगन लाते है ओर भैंसों को रस्सों व हाथों में हथियार लेकर लोग मंदिर पहुचने तक नाचते रहे जब तक नर भैंसे का सिर कलम ना हो जाय। इस पूजा के अलावा लोगों ने देवी को सिरफल और सुपारी की पूजा भी सर्पित की कीया।

 और हजारों की भीड़ मंदिर के गर्भगृह में दर्शनों को पहुंची। और इस दौरान भीड़-भाड़ का माहोल था। इस वर्ष बूंखाल मेले में बलि विरोधी संस्थाएं दूर-दूर तक नजर नहीं आई। कोई भी संस्था मंदिर तक नहीं पहुंच पाई। क्या देवी देवताओ के नाम पर पशुओं की बलि युही चलता रहगा ?

Devbhoomi,Uttarakhand

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क्या हम अपने देवी देवताओं की पूजा मांस ओर बलि की जगह नारियल, दुध ओर फूलो से क्यूँ नहीं कर सकते क्या ऐसे करने से भगवान खुश नही होंगे. हमारे शास्त्रों में कहाँ लिखा हे की बलि देने से ही भगवान खुश होते है!

नही चाहे हमें एसे भगवान जो किसी के अस्तित्व पर ही प्रशनचिन्ह लगा दें!

 साफ सी बात हे की हम लोग सुधारना नही चाहते, हम लोग एसे पुराने रिवाजों से हटकर कुछ नया नही सोचना चाहते हम सब को एक बात याद रखनी चाहिए!

थोडा हट कर सोचो, भगवान को मानना ओर जानना दोनों अलग बाते हे जो मानते है वो जानते नही ओर जो जानते है ऊनेह मानने की जरूरत नहीं पड़ती

Rawat_72

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थोडा हट कर सोचो, भगवान को मानना ओर जानना दोनों अलग बाते हे जो मानते है वो जानते नही ओर जो जानते है ऊनेह मानने की जरूरत नहीं पड़ती



wah kya baat hai jakhi ji apki thinking bhee apki tarah smart hai.

Rawat_72

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Jakhi je just gone through whole thread. ek baat toh saaf jahir hoti hai kee ab ye pratha deere deere samapt ho rahi hai. ek aad saal mein bunkhal mein bhee band ho jayegi. kumaon ke kuch hisson jaise champawat mein abhi bhee log in karayon mein lage hui hai. shayad nepal se border milta hai isliye. mujhe lagta hai uttarakhand ke jin jin hisson mein gorkhon ne raaj kiya wahan ye problem bhee chod gaye.

kuch pade likhe log pahad mein abhi bhee istarh ke katle aam ke favour mein hai..... woh chahate ke istarah har saal mandiro mein kothigs mein khoon kee nadiyaan bahati rahe. 2 members ne iske favour mein vote bhee kiya hai...great.

mera manana hai kee agar koi insan meat nahi khata kyunki insase pashu vadh hota hai parantu devi-devta ke liye pashu vadh karne ko tyara hai hai toh isse bada agyan aur pakkhan kuch nahi ho sakta hai.



Rawat_72

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just imagine delhi mein jahan jahan pahadi jyada rahate hai jaise sant nagar, buradi, vinod nagar, transyamuna areas etc etc. aur wahan par culture aur tradition, as two members here are suggesting, ye sab kaam shuru kar de toh kaisa lagega.
log bolenge ye ghanchakkar kahan se aaa gaye.  :-[

Rawat_72

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we should be thankful to god that we are not born in a religion where there is no room for reformation.

हेम पन्त

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पहाड़ों में बलिप्रथा पर आधारित "बलि वेदना" नाम की एक कुमाऊंनी फिल्म का भी निर्माण हुआ है. मुझे लगता है कि उत्तराखण्ड में अब तक बनी सभी फिल्मों में से अगर 3-4  सबसे अच्छी फिल्में चुनी जायें तो "बलि वेदना" जरूर अपना स्थान बना लेगी.   

इसमें एक युवक पर परिवार की परम्परा के अनुसार अल्मोड़ा के प्रसिद्ध मन्दिर में बलि देने का भार आ जाता है, लेकिन यह युवक बलिप्रथा का विरोधी होता है और पारिवारिक परम्परा और आधुनिक सोच के द्वन्द में फस जाता है.

यह सीन देखिये-
kumaoni film bali vedana

Risky Pathak

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I agree with Hem Da's View.
Bali Vedna Movie is one of the good uttrakhand movies i have seen.
पहाड़ों में बलिप्रथा पर आधारित "बलि वेदना" नाम की एक कुमाऊंनी फिल्म का भी निर्माण हुआ है. मुझे लगता है कि उत्तराखण्ड में अब तक बनी सभी फिल्मों में से अगर 3-4  सबसे अच्छी फिल्में चुनी जायें तो "बलि वेदना" जरूर अपना स्थान बना लेगी.   

इसमें एक युवक पर परिवार की परम्परा के अनुसार अल्मोड़ा के प्रसिद्ध मन्दिर में बलि देने का भार आ जाता है, लेकिन यह युवक बलिप्रथा का विरोधी होता है और पारिवारिक परम्परा और आधुनिक सोच के द्वन्द में फस जाता है.

यह सीन देखिये-
kumaoni film bali vedana

 

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