Author Topic: Delicious Recepies Of Uttarakhand - उत्तराखंड के पकवान  (Read 177777 times)

Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड  में  कड़ी पत्ता मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Curry Tree  as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास - 13                                               
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand -  13                     
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --  102 
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -102

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम -Murraya koenigii
सामन्य अंग्रेजी नाम - Curry tree
संस्कृत नाम -गिरीनिम्ब
हिंदी नाम -कड़ी पत्ता

उत्तराखंडी नाम - नजदीकी पौधा गंद्यल , कड़ी पत्ता
कड़ी पत्ते का पेड़ 4  से 6 मीटर तक ऊँचा पेड़ या झाडी होता है जो भाभर व कम ऊंचाई वाले पहाड़ियों जगहों पर पाया जाता है। 
जन्मस्थल संबंधी सूचना -
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन -सुश्रुता संहिता , राज निघण्टु , आदर्श निघण्टु में कड़ी पत्ते से बनने वाली औषधियों  उल्लेख है (अंजलि मोहन राजीव गाँधी यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ केयर बंगलौर में थीसिस 2012 -13 )
    कड़ी पत्ता का औषधि उपयोग
 पत्तों से बनी औषधि का दस्त , पेट दर्द ,उलटी रोकने हेतु काम आता है। छाल - पेस्ट त्वचा रोग रोकने हेतु उपयोग होता है। जड़ों से गुर्दे की बीमारी में औषधि बनाई जाती है।
    कड़ी पत्ते का मसाले में उपयोग
 कड़ी पत्ता वास्तव में केवल छौंका लगाने के  है और इसकी सुगंध भोजन में स्वाद वर्धन करती है। यद्यपि कड़ी पत्ते के फल मीठे होते हैं किन्तु इसे फल रूप में नहीं खाया जाता।  पहाड़ी समाज कुछ ही सालों से कड़ी पत्ते को छौंका लगाने हेतु उपयोग कर रहा है।



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 ( उत्तराखंड में कृषि,  मसाला ,  व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )


Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड  में  हींग का   मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Asafoetida  , Hing ,Heeng as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास - 14                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand -  14                     
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --   103
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -103

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Ferula asafoetida
सामन्य अंग्रेजी नाम - Asafoetida
संस्कृत /आयुर्वेद नाम - हिंगू
हिंदी नाम -हींग
उत्तराखंडी नाम - हींग
          जन्मस्थल संबंधी सूचना -
डा राजेंद्र डोभाल अनुसार हींग की 170  प्रजातियां हैं और 60 प्रजातियां एशिया में मिलती हैं।  हींग एक पौधे की जड़ों के दूध (latex ) को सुखाकर मिलता है।  उत्तराखंड में डेढ़ मीटर ऊँचा पौधा 2200  मीटर की ऊंचाई वाले स्थानों में मिलता है।  उत्तराखंड के लोग हींग की सीमित खेती करते हैं।  उत्तराखंड में मिलने वाली प्रजाति का जन्म स्थान मध्य एशिया याने पूर्वी  ईरान व अफगानिस्तान के मध्य माना जाता है।
     -हींग , हिंगु का औषधि  उपयोग संदर्भ पुस्तकों में वर्णन -
 हिंगू का उल्लेख चरक संहिता कई औषधि निर्माण  हेतु हुआ है। सुश्रुता संहिता में हिंगू का कई प्रकार की औषधि निर्माण उल्लेख हुआ है। छटी सदी के  बागभट  रचित अस्टांग  संग्रह , सातवीं सदी के अष्टांग हृदय संहिता ; ग्यारवीं सदी के चक्रदत्त चिकित्सा ग्रन्थ , बारहवीं -तेरहवीं सदी के कश्यप संहिता/वृद्ध जीविका तंत्र ,  भेल संहिता , बारहवीं सदी के गदा संग्रह , सारंगधर संहिता , हरिहर संहिता , अठारवीं सदी के भेषज रत्नावली , सिद्ध भेषज संग्रह ( 1953  ) , आयुर्वेद चिंतामणि (1959 ). पांचवी सदी के अमरकोश , धन्वंतरि निघण्टु , राज निघण्टु , मंडपाल निघण्टु , राजा निघण्टु (15 वीं सदी ) , कैयदेव निघण्टु , भाव प्रकाश निघण्टु ,अभिनव निघण्टु , आदर्श निघण्टु , शंकर निघण्टु , नेपाली निघण्टु ,मैकडोनाल्ड इनसाक्लोपीडिया लंदन , इंडियन मेडिकल प्लांट्स ,
 अतः  सिद्ध है कि हींग का कई औषधीय उपयोग होता है।  दादी माँ की दवाइयों में हींग का उपयोग दांत दर्द कम करने , बच्चों के कृमि नाश , पेट दर्द आदि हैं।
     हींग का छौंका
 हींग को विभिन्न सब्जियों , दालों में सीधा मिलाकर या छौंका लगाकर उपयोग होता है।


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 ( उत्तराखंड में कृषि,  मसाला ,  व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )


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उत्तराखंड  में  जख्या  का  मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Asian Spider, Cleome Jakhya    as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास - 15                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand - 15                     
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --  104
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -104

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Cleome viscosa
सामन्य अंग्रेजी नाम - Asian Spider Flower , Wild mustard
संस्कृत नाम -अजगन्धा
हिंदी नाम - बगड़ा
नेपाली नाम -हुर्रे , हुर्रे , बन तोरी
उत्तराखंडी नाम -जख्या
एक मीटर ऊँचा , पीले फूल व लम्बी फली वाला जख्या बंजर खेतों में बरसात उगता है।
जन्मस्थल संबंधी सूचना - संभवतया जख्या का जन्म एशिया में हुआ है।
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन -अजगन्धा जिसकी पहचान Cleome gyanendra आदि  में होती है का उल्लेख कैवय देव   निघण्टु , धन्वंतरि निघण्टु ,राज निघण्टु , में हुआ है।
   औषधीय उपयोग
जख्या पत्तियों  अल्सर की दवाइयां   जाती हैं। बुखार , सरदर्द , कान की बीमारियों की औषधि हेतु उपयोग होता है 

  जख्या का मसाला उपयोग
  उत्तराखंड का कोई ऐसा घर न होगा जो जख्या का छौंका न लगाता  हो।  जख्या केवल छौंके के लिए ही प्रयोग होता है।  उत्तराखंड के प्रवासी भी उत्तराखंड से अपने साथ जख्या ले जाते हैं।

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          उत्तराखंड में लीची का  प्रवेश   (इतिहास) 
           History of Litchi i Introduction in Uttarakhand     
     
          उत्तराखंड परिपेक्ष में  का भारत में फलों का इतिहास -2
                   History Aspects of  Fruits in India in context Uttarakhand  -2

           उत्तराखंड परिपेक्ष में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास -105   

       History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  referring  Uttarakhand -105


                        आलेख : भीष्म कुकरेती


उत्तराखंडी नाम - लीची
हिंदी नाम - लीची
सामान्य अंग्रेजी नांम  लीची
Botanical Name - Litchi chinesis
जन्म मूल स्थान -    क्वांगतुंग , ग्वांगडोंग  दक्षिण चीन -             महाद्वीप - एशिया
फल की भारत व उत्तराखंड यात्रा - लीची  का मूल स्थान दक्षिण पूर्व चीन माना जाता है।  हाँ कुल सम्राट के समय  (140 - 86 ईशा पूर्व ) में लीची का विवरणमिलता है व लीची के बारे में  1059   में पहली बार सन Tsai Hsiang
ने लिखित प्रकाश डाला।  जबकि वॉल्ट्न स्विंगलर का मानना है कि किन्ही चीनी विद्वान् ने 1056  में ही प्रथम बार लीची विवरण प्रकाशित किया।
    लीची को चीन से  बर्मा व भारत के उत्तर पूर्व में  आने में  सैकड़ों साल लगे और कहा जाता है कि लीची  सत्रहवीं सदी में म्यानमार व ( उत्तर पूर्व भारत )  में पंहुची यानी लीची का उत्पादन सत्रहवीं सदी  में शुरू हुआ।  और बंगाल तक आते आते लीची को सौ साल लगे।  याने बंगाल में लीची का उत्पादन अठारहवीं सदी में शुरू हुआ।  1870 में मौरिसिस पंहुची। 
    बंगाल  ( पश्चिम  भाग )  में शायद 1780    प्रवेश किया।  सहारनपुर से लीची ने 1883  में  फ्लोरिडा प्रवेश किया ।  वहां से 1897 में कैलिफोर्निया पंहुची या उगाना शरू हुआ।  जब 1883  में सहारनपुर से लीची फ्लोरिडा पंहुची तो इसका अर्थ है कि 1883  तक लीची  का  सहारनपुर देहरादून व  भाबर में भली भांति उत्पादन शुरू हो गया था।  सहारनपुर, देहरादून , गढ़वाल व कुमाऊं में सन 1750 से 1815 तक राजनैतिक व सामाजिक उथल पुथल का युग था याने उस काल में बंगाल या बिहार से लीची सहारनपुर अथवा  देहरादून बिलकुल नहीं पंहुची  होगी।  ब्रिटिश शासन स्थापित होने के बाद ही लीची ने देहरादून व सहारनपुर प्रवेश किया होगा।  संभवतया ब्रिटिश सैनिक अधिकारियों (सहारनपुर व देहरादून सैनिक छावनियां थीं )  द्वारा ही सहरानपुर व देहरादून में लीची का उत्पादन शुरू हुआ होगा।   अधिक संभावना यह है कि लीची का उत्पादन देहरादून व सहारनपुर में 1857  के बाद ही शुरू हुआ  होगा क्योंकि तब तक सहारनपुर व देहरादून में  अंग्रेजों के लिए तथाकथित अराजक स्थिति  नहीं रही होगी। 
     यह बताना कठिन है कि लीची का उत्पादन देहरादून व सहारनपुर में एक साथ शुरू हुआ या अलग अलग समय।  देहरादून ब्रिटिश काल  सहारनपुर रेंज में आता था तो देहरादून में लीची उत्पादन भी हुआ तो भी नाम  आता रहा होगा। 
उत्तराखंड में लीची लगभग 20 मैट्रिक टन  प्रतिवर्ष पैदा होती है और भारत में सबसे कम पैदावार , उत्पादकशीलता का प्रदेश भी  उत्तराखंड ही है
शुरू से ही लीची उत्तराखंड में रसूखदारों का फल में गिनती होती आयी है।  लीची का पेड़ आकर्षक व फल लाभकारी होते हैं।  लीची में पर्याप्त मात्रा में विटामिन्स , लवण , खनिज ,  पाए जाते हैं  से  लाभ में लीची कामगर साबित हुयी है।  आयु प्रभाव  बालों की सुरक्षा  , तवचा  को चमक देने, ब्लड प्रेसर को स्थिर करने , हड्डी की शक्ति बढ़ाने आदि  में प्रयोग होती है।     
  लीची हेतु गर्म व विशेष मिटटी की आवश्यकता होने के कारण लीची देहरादून , भाबर ,  उगाया जाता है पहाड़ों में कृषकों ने लीची उगाने की कम ही प्रयोग किये।  किन्तु सन 2000 के लगभग , सत्यप्रसाद बड़थ्वाल ने गंगा तट पर बसे गाँव  में खंड , दाबड़ (बिछला , पौड़ी गढ़वाल, गंगा से 1000 फ़ीट ऊंची भूमि )  ) में लीची उगाना शुरू किया। 
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संदर्भ - डा  इंदु  मेहता , - 2017 लीची - द क्वींस ऑफ  फ्रूट्स , जर्नल ऑफ़ ह्यूमनटीज ऐंड   साइंस , वॉलयूम 22 इस्यु 9
Copyright @ Bhishma Kukreti  25 /1/2014

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      उत्तराखंड परिपेक्ष में अमरुद (पेरू) का इतिहास

उत्तराखंड परिपेक्ष में  का भारत में फलों का इतिहास -2
          History Aspects of  Fruits in India in context Uttarakhand -2

       उत्तराखंड परिपेक्ष में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास -107   


      History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  referring  Uttarakhand -1057


                    आलेख :  भीष्म कुकरेती

उत्तराखंडी नाम - अमरुद
संस्कृत नाम - कोई नहीं
हिंदी नाम - अमरुद (कहीं कहीं महराष्ट्र आदि में पेरू भी कहा जाता है
सामन्य अंग्रेजी नांम -Guava
Botanical Name - Psidium  guajava
जन्म मूल स्थान -        मैक्सिको      महाद्वीप   मध्य अमेरिका
फल की यात्रा -   बहु स्वास्थ्यबर्धी , लाभकारी , उष्णकटबंधीय  अमरुद  का मूल जन्म स्थल मैक्सिको  से  मध्य अमेरिका  तक है।  सैकड़ों साल तक अमरुद  मूल स्थान से वेस्ट इंडीज टापुओं में प्रवेश कर फलता फूलता रहा।  पुरानी दुनिया से अमरुद का परिचय पुर्तगाली या स्पेनी   व्यापारियों ने कराया।
   रिकॉर्ड अनुसार सबसे पहले किताबी परिचय स्पेनी घुमकड़ इतिहासकार ओवीडो ने कराया (1514 -1557  हैती की यात्रा ) हिस्ट्री ऑफ इंडीज  (1526 ) में  ओवीडो ने  अमरुद वनस्पति का वृत्तांत दिया और इस फल को गुआयाबो नाम दिया।     अधिकतर इतिहासकार व वनस्पति शास्त्री मानते हैं कि  अमरुद का पेड़ स्पेनिश द्वारा  सत्रहवीं सदी अंत में प्रशांत  महासागर  रस्ते से भारत लाया गया।  जब कि एक स्रोत्र बताते हैं कि स्पेनी प्रसांत महासगरीय द्वीपों में ले गए और पुर्तगाली भारत लाये।  यदि प्रशांत महासागरीय द्वीप से अमरुद पेड़ भारत लाया गया तो कोलकत्ता या बंगाल ही वः जगह होगी जहां अमरुद पेड़ आया या दक्षिण भारत।  वैसे  आईने अकबरी अनुवाद में भी अमरुद का नाम आता है किन्तु वह  फल गुआवा(अमरुद ) नहीं अपितु नासपाती रहा होगा।  अमरुद उत्पादन हेतु बहुत कम मेहनत लगती है जिसके कारण अमरुद को भारत के सभी क्षेत्रों में प्रसारित होने में समय नहीं लगा 
 अमरुद जल्दी फैलने वाला व सभी तरह की मिट्टी में उग जाता है और फलता फूलता है तो अमरुद को उगाने कोई दिक्क्त न आयी होगी और समाज ने स्वतः ही अपना लिया होगा।  उत्तराखंड के बारे में अमरुद प्रवेश पर कोई जानकारी नहीं मिलती।  अतः अंदाज लगाना ही पड़ेगा कि अमरुद को देहरादून , सहारनपुर, पीलीभीत  आदि स्थलों में पंहुचने में डेढ़ सौ साल लगे ही होंगे याने ब्रिटिश राज युग में ही अमरुद का अवतरण उत्तराखंड में हुआ होगा  अमरुद उत्पादन हेतु बहुत कम मेहनत लगती है जिसके कारण अमरुद को प्रसारित होने में समय नहीं लगा 

   सबसे पहले अमरुद का  उत्पादन भाबर , देहरादून ,  उधम सिंह नगर में ही  शुरू हुआ होगा  और शायद ब्रिटिश राज में प्रसार हुआ होगा।  किन्तु ब्रिटिश गजेटों में अमरुद का नाम मुझे पढ़ने को नहीं मिला।  हो सकता है ब्रिटिश काल में अमरुद फल का महत्व उत्तराखंड में जमा भी  नहीं रहा होगा (नगण्य ) . स्वतंत्रता उपरान्त भी देहरादून में जंगल में अमरुद अधिक उगते थे।  (जैसे कांवली गाँव में गुरुराम राय की बागवानी जो जंगल ही जैसा था  में अमरुद बहुतायत में उगते थे )
   पहाड़ों में गर्म जगहों में 3000 - 4500  फ़ीट तक भी अमरुद उगते हैं किन्तु उत्पादनशीलता कम ही होती है।  बारामासा फल देने वाला पेड़ अमरुद कच्चे पके फल , जाम , आइसक्रीम , अन्य बिवरेजेज में उपयोग होता और फलों का राजा कहलाने लायक है।   
   


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Notes on History of Culinary, Gastronomy in Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Pithoragarh Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Doti Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Dwarhat, Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Pithoragarh Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Champawat Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Nainital Uttarakhand;History of Culinary,Gastronomy in Almora, Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Bageshwar Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Udham Singh Nagar Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Chamoli Garhwal Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Rudraprayag, Garhwal Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Pauri Garhwal, Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Dehradun Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Tehri Garhwal  Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Uttarakhand Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Haridwar Uttarakhand;

 ( उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )

Bhishma Kukreti

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  खिचड़ी  पुराण (उत्तराखंडम  खिचडी  इतियास )  Histroy of Khichri in Uttarakhand


 गढ़ भोज वर्ष (२०२१ ) बान  विशेष लेखमाला - १
इकबटोळ - भीष्म कुकरेती

(प्रयत्न च बल ईरानी, अरबी शब्द नि लिए जावन)
-
  खिचड़ी उत्तराखंड इ  ना भारतs  प्रिय पारम्परिक भोजन च. भारत म क्वी इन क्षेत्र नि  होलु  जख खिचड़ी नि  खाये जाये।
खिचड़ी अर्थात दाल , चौंळ  वर्ग व भुज्जि  आदि संगतौ  भोजन पदार्थ। 
 भारतम खिचड़ी इतिहास
इन लगद भारतम  खिचड़ी  कृषि दगड़  इ  ऐ  गे  होली।   वेदों म खिचड़ी  नाम उल्लेख नी  च किन्तु  क्षिरोदाना (खीर ) कु  उल्लेख च।  याने नाम जु  बि  रै  होलु खिचड़ी (अवयव झंगोरा , चौंळ आदि अर  दाळ ) खाये जांद छे।  संभवतया भारत म २५०० वर्ष पैलि  से खिचड़ी पकाणो  संस्कृति पनप  गे छै।    बल  संस्कृत म खिचड़ी नाम च खिच्चा  जु  दाळ -चौंळ  मिळवाकन बणद . संस्कृत म  खेचराना  शब्द च जैक अर्थ हूंद चखुल (चखुल को दाना ) अर  चौंळ  याने जो भोजन चौंळ  अर  चखुलों भोजन  दाणु  से बणद। 
मिश्र राजा सेल्यूकसन (305 - 303  BC  )  बि  लेखी बल भारत म एक भोजन प्रसिद्ध ार रुचिकर च जु  चौंळ अर  दाळ मिलैक पकाये जांद। 
 चाणक्य या कौटिल्य क अर्थ शास्त्रम  खिचड़ी नाम नि आए किन्तु कौटिल्यन  चौंळ , दाल अर  लूण -मर्च कु  संतुलित भों को नाम अवश्य उल्लेख कार।  कौटिल्य न  ये संतुलित भोजनौ  अवयव सूची इन दे -
१  प्रस्था   (1 . ४ पौंड ) - चौंळ
१/४  प्रस्था  - दाळ
१ /62  प्रस्था - लूण
  १/१६ प्रस्था   -घी
सब मिलैक पकाणै  परामर्श दिए गे। 
कौटिल्यौ  समकालीन सिकंदर कु  साहित्यकार मेगास्थिन न एक भोजन कु  उल्लेख कार जु चौंळ अर  दाळ मिलैक पकाये जांद छे बल अर सरा परिवार मिलिक  ख्नादा छ।  अवश्य ही यु भोजन खिचड़ी ही छे।

याने नाम जु  बि  रै  होलु खिचड़ी (अवयव झंगोरा , चौंळ आदि अर  दाळ ) खाये जांद छे।  संभवतया भारत म २५०० वर्ष पैलि  से खिचड़ी पकाणो  संस्कृति पनप  गे छै। 
प्रागैऐतिहासिक  शोधों से जणे  गे  बल  १२ वीं शताब्दी म खिचड़ी खाये जांद छे।
मोराकी यात्री बटुटा जो १४ वीं सदी म भारत आयी वैन  बि  भारत म खिचड़ी खाणो  उल्लेख कार। 
रूसी यात्री निकिटिन  जु  १४६९ म भारत यात्रा पर आयी वैन  बि लेखी बल भारत म  चौंळ , दाळ , घी अर  मिठु  क मेल से खिचड़ी बणदि। 
सोळवीं सदी म फ़्रांसिसी यात्री  तावेर्नियर भारत आयी अर  वैन लिख बल  ग्रामीण भारतीय रातक भोजनम खिचड़ी  (चौंळ , हरी दाळ , दाळ , घी ) खांदन ।
मुगल बादशाह तो खिचड़ी पर भौति आकर्षित  (फ़िदा ) छा।  मुगल बादशाह अकबर  जहांगीर , शाहजहां व औरंगजेब न ग्रामीण भोजन खिचड़ी तै राजमहलौ  भोजन बणाइ  दे।  मुग़ल बादशाहों व  मुगल सरदारों को खिचड़ी भक्षणौ  चाखो ( चस्का ) ब्राह्मण सर्यूळों    कारण लग । 
मुगल काल म इ  मालवा क सुल्तान महल म लिखीं पुस्तक ' नीमतनामा' (भोजन शब्दकोश ) म खिचड़ी का भौं भौं प्रकारों उल्लेख मिल्दो अर खिचड़ी म गुलाब जल , सौंफ , हींग , जीरो , सिरका , अखरोट, आदो , पोदीना व तुलसी पत्ता पटयोग को बि  उल्लेख  ' नीमतनामा' म मिल्दो। 
मुगल काल म खिचड़ी    बिगळयां   बिगळयां  नाम  बि  पड़िन -
सुर्ख खिचड़ी - लाल  खिचड़ी
सब्ज खिचड़ी - हरी खिचड़ी
एइ  समौ  खिचड़ी म गुलाब जल व केशर मिलाणै  परम्परा की पवाण  बि  लग। 
अबुल फजल कृत आईने अकबरी म कतना  इ प्रकारौ  खिचड़ी उल्लेख च अर प्रत्येक प्रकार की  बिगळीं-  बिगळीं  पाक विधियों उल्लेख च।  बीरबल की खिचड़ी बि  अकबर समय प्रसिद्ध ह्वे  छे।
जहांगीर न अपण  आत्म कथा 'तुजुक' म गुजरात की अति विशेष खिचड़ी नाम उल्लेख कार।  यीं  खिचड़ी नाम वैन लजीज खिचड़ी  (स्वदिष्ठ खिचड़ी ) धार।  या लजीज खिचड़ी  बाजरा अर  मत्र मिलैक  बणदी  छे. जहांगीर को या खिचड़ी  प्रिय भोज्य पदार्थों म छे। 
शाहजहां व औरंगजेब क रूस्वड़  म बि  खिचड़ी कु  भौत महत्व छौ।  औरंजेब क  राजकीय रुस्वड़  म खिचड़ी म विकास ह्वे।  औरंगजेब आलम गीर  नामौ  खिचड़ी खांड छौ।  वैकि खिचड़ीम   उबळयां  अंडा अर  माछ बि  जुड़  गे  छौ। 
बहादुर शाह जफर बि  रमजान म  मूँगै  खिचड़ी  रूचि से  खांदो  छौ। 
अवध नबाब नसीर ुद्दें शाह क राजकीय रुस्वड़ म खिचड़ी म पिस्ता , अखरोट डळे  जांद छौ  अर  इन कटे  जांद छा कि  यि  चौंळ  अर  दाळ  जनि  दिखयावन। 

हैदराबाद  का निजाम कु राजकीय रुस्वाड़म खिचड़ी बड़ी महत्ता छे।  निजाम हैदराबाद बि  खिचड़ी म विकास ह्वे  अर  दाळ , चौंळ , का अतिरिक्त  कीमा ( पिस्युं  मटन )  बी डाळण  शुरू ह्वे। 
अर्थात मुगल अर  निजाम काल म खिचड़ी शाकाहारी भोजन से मांशाहारी बण  गे। 
 ब्रिटिश कालम बि  खिचड़ी महत्व कम नि  ह्वे।  इंग्लैण्ड म खिचड़ी नास्ता म प्रसिद्ध ह्वे  गे।   मुंशी अब्दुल करीम न विक्टोरिया रानी तै खिचड़ी कहलायी छे।  विक्टोरिया रानी तै मसूर की खिचड़ी  रुचिकर लगद छे।  अर  यां  इ  से  दळीं मसूर को नाम मल्लिका मसूर पोड़। 
 ब्रिटिश कर्नल  खिचड़ी अपण  देस ल्ही  गेन किन्तु तख नाम म परिवर्तन ह्वे  गे ार खिचड़ी इंग्लैण्ड म  केडजेरे ह्वे  गे ।  हाँ ब्रिटिश लोगुं न खिचड़ी तै मांशाहारी बणै  दे।  खिचड़ी म अंडा, आदो , काळी  मर्च , प्याज , नौणी  अर  माछ बि  आयी गे  दगड़म लिम्बु , धनिया जन  अवयव बि  बढ़ गे  छा। 
जख तक उत्तराखंडौ  प्रश्न च  बल उत्तराखंड म खिचड़ी  इत्यास  वी च जु  भारत म च। 
सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती २०२१
विभिन्न समाचार पत्र जन टाइम्स ौफ़ इण्डिया , इंडियन एक्सप्रेस व अन्य स्रोत्र


Bhishma Kukreti

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५१ से बिंडी  प्रकारै  पारम्पारिक  उत्तराखंडी पळ्यो अर कढ़ी (झुऴळी )


             (प्राचीन  कालै  उत्तराखंडी कढ़ी /झुळ्ळी  विशेष )

  (" गढ़ भोज वर्ष"  कुण  उत्तराखंडौ  पारम्परिक भोजन श्रृंखला)
                  इकबटोळ - भीष्म कुकरेती

  आमतौर पर उत्तराखंड म झुळ्ळी  या कढ़ी  छांच से पकाये जांद . पर दही से बि कढ़ी /झुळ्ळी बणाये जांद . 
 पळ्यो अर  झुळ्ळी  म आधारभूत अंतर् च बल पळ्यो म  पकान्द  दैं मसाला , लूण  नि  मिलाये जांद।  हाँ  गुड़ डाळे  सक्यांद  च। 
इलै जथगा  प्रकारौ झुळ्ळी  तथगा  प्रकारौ  पळ्यो बि हूंद। 
झुळ्ळी /कढ़ी मुख्यतया  तीन प्रकारै हूंदी -
लुण्यां - केवल लूण मर्च आदि।
मिठि - केवल मिठि झुळ्ळी
लुण्या अर मिठि  झुळ्ळी :  गुड़ , चिन्नी।  पैल  शीरा क बि बणदि छे।   
आम तौर पर पैल  बगैर छौंका लगायिक झुळ्ळी /कढ़ी बणदि  छे किन्तु अब छौंकिक बि बणदि।
झुळ्ळी /कढ़ी बणानो कुण  छांच या दही दगड़ आलण, लूण /मिठु , मसाला , हल्दी , हींग , जम्बू , मर्च   मिलैक उबाळे  जांद।     
आम कढ़ी /झुळ्ळी पकाणों  अवयव/ सामग्री  -
आलण , एक कटोरी - झंगर्याळ /आटु
१/२ लीटर छांच
आदो /अदरक
ल्यासण कटयूं
गंद्यला पत्ता (कड़ी पता )
१ चमच  हींग
जम्बू
छौंकणो - राई /जख्या ार लाल मर्च
धणया , हल्दी , गर्म मसाला आदि।   
  आलण (कढ़ी माध्यम ) का अनुसार उत्तराखंड म  निम्न प्रकारै झुळ्ळी /कढ़ी पकाये जांद -
   झंग्वरै  लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी
  झंग्वरै   मिठि  कढ़ी /झुळ्ळी
  झंग्वरै  लुण्या -मिठि  झुळ्ळी / कढ़ी
   कट्यां चौंळुं  लु ण्या कढ़ी /झुळ्ळी
   कट्यां चौंळुं  मिठि  कढ़ी /झुळ्ळी
   कट्यां चौंळुं  लुण्या -मिठि  झुळ्ळी
 कौणिक लु ण्या कढ़ी /झुळ्ळी
   कौणिक मिठि  कढ़ी /झुळ्ळी
   कौणिक लुण्या -मिठि  झुळ्ळी
चूनौ ( क्वादो  आटो  ) लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी
चूनौ ( क्वादो  आटो  )    मिठि  कढ़ी /झुळ्ळी
  चूनौ ( क्वादो  आटो  )  लुण्या -मिठि  झुळ्ळी
मुंगराड़िक  (मकई आटो ) लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी
  मुंगराड़िक  (मकई आटो ) मिठि  कढ़ी /झुळ्ळी
मुंगराड़िक  (मकई आटो )   लुण्या -मिठि  झुळ्ळी
ओगळौ  आटो क लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी
  ओगळौ  आटो क मिठि  कढ़ी /झुळ्ळी
  ओगळौ  आटो क लुण्या -मिठि  झुळ्ळी
काचो मुंगरी पीसिक लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी
  काचो मुंगरी पीसिक मिठि  कढ़ी /झुळ्ळी
  काचो मुंगरी पीसिक लुण्या -मिठि  झुळ्ळी
मरस्वाड़ी (मर्सू , राजगिरा आटौ  )    लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी
  मरस्वाड़ी (मर्सू , राजगिरा आटौ  )  मिठि  कढ़ी /झुळ्ळी
  मरस्वाड़ी (मर्सू , राजगिरा आटौ  )  लुण्या -मिठि  झुळ्ळी
बजरो  आटौ  लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी
  बजरो  आटौ  मिठि  कढ़ी /झुळ्ळी
  बजरो  आटौ  लुण्या -मिठि  झुळ्ळी
जुंडळौ  (जवार ) आटौ लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी
  जुंडळौ  (जवार ) आटौ  मिठि  कढ़ी /झुळ्ळी
  जुंडळौ  (जवार ) आटौ  लुण्या -मिठि  झुळ्ळी
जौ आटौ लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी
  जौ आटौ मिठि  कढ़ी /झुळ्ळी
  जौ आटौ लुण्या -मिठि  झुळ्ळी
भट्टौ आटु लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी
भट्टौ आटु   मिठि  कढ़ी /झुळ्ळी
  भट्टौ आटु -मिठि  झुळ्ळी
बेसणै  लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी
  बेसणै मिठि  कढ़ी /झुळ्ळी
  बेसणै लुण्या -मिठि  झुळ्ळी
उत्तराखंड की कुछ झुळ्ळी /कढ़ी जु  अब प्रचलन म नि छन -
बसिंगो आटौ  लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी
सिरळौ  आटो   या अन्य जंगली जड़ों आटो लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी   
तूंगो   या अन्य  जंगली फलों /बीजों  आटो  से    लुण्या  झुळ्ळी
 तैड़ू क लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी
  शकरकंदै  आटो लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी   
शलजम कु  आटौ   लुण्या कढ़ी /झुळ्ळी 
अकाल समय कुछ जंगल का बीजों।  जड़ से बणयूं आटो से बि  झुळ्ळी /कढ़ी बणदी छे। 
 प्राचीन कालम जख आम बिंडी  हूंद छा  वो कबि कबि छांछौ  स्थान पर खट्टा /कच्चा ऍम बि प्रयोग करदा छा।
 भौत बार इन  बि दिखे  गे  बल झंग्वर , कौणी आटो /पीठ से बि  कढ़ी /झुळ्ळी   बणाये जांद छे। 
कबि कबि  तोरौ  आटो  बि  कढ़ी /झुळ्ळी    बणदी छे अब बेसन उपलब्धि से बंद ह्वे गे। 
copyright@ Bhishma Kukreti 2021
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  पहाड़ी रोट याने बनि बनि परोठा

रुसाळ  - भीष्म कुकरेती

   इन लगद , पहाड़  का रोट  की पहचान तो पंजाबी परोठा  खै  गे।  परोठा  दिखे जाव तो  रोट  से इ बनि बनी पराठा  निर्मित ह्वे  ह्वाल।
गढ़वाली म रोट  का अर्थ च मोटी  रोटी जु  पुल्लिंग ह्वे  जांद। 
पहाड़म रोट  देव पूजन व अन्य धार्मिक कार्यों म पकद। 
रुट कत्ति  प्रकारौ हूंदन याने आटो परिवर्तन से रॉट का प्रकार परिवर्तित ह्वे जांद।

ग्यूं का रोट 
चूनो रोट
मुंगरी  रोट   
जौ ग्यूं मिलौ  रोट
मरसाक   रोट 
 बजरो अर  ग्यूं  मिलैक रोट
 अधिकतर रोट मिठो इ पकाये जांद।   किन्तु लु ण्या  बि  ह्वे  सकद
--
रोट  पकाणो विधि  (Cooking Roat )
-
 आटो - २  छुटि कटोरी (अनाज तुम पर निर्भर )
दूध जु   ऐच्छिक हूंद - अदा कटोरी
गुड़ या चिन्नी - अदा  कटोरी या थोड़ा कम  (अपण  स्वाद अनुसार )
इलैची , सौंफ इच्छानुसार
पाणी
गुड़ पाणीम घुळन चयेंद। 
आटो  तेन गुड़ पाणिम उलण  चयेंद।  रोट  मोती रोटी  इ  हूंद।   
ग्राम तवा म घी गरम  करण   अर  रोट  बणैक पकाण  चयेंद।  पक्यूं  रोट की पछ्याण  च भूरो रंग।  चूँकि रोट  म्वाट  हूंद तो कड़छी न दबान चयेंद। 





Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड में लोबिया के पकवान

उत्तराखंड के चौलाई के पारम्परिक पकवान
उत्तराखंडम सूंट का बनि बनि खाणक –
Traditional food of Uttarakhand cooked by Black Eye bean/pea

सरयूळ – भीष्म कुकरेती

 सूंटू फळड़ – कच्ची खाण
सूंटू फळड़ उस्याइक – बुखाण
सूंटू फळड़ भूज्जी खाण
सूंटू बीज  से उस्यायिक बुखण
सूंटू बीज  से उस्यायिक मस्यटन भरीं रुटि
  सूंटू बीज  से उस्यायिक मस्यटन भर्याँ स्वाळ
भिगयां  सूंट  पीसिक मस्यट क पकोड़ी   
सूंटू बीज   उस्यायिक सूखी भूज्जी
 भिगायां सूंटू बीज   की सूखी भूज्जी
सूंटू बीज   उस्यायिक मस्यट को तरीदार साग
भिगायां सूंटू बीज से  तरीदार साग
भिगायां सूंटू बीज   की
सूंटू बीज  से   रलो-मिसौ दाळ
उस्ययां सूंट या दाळ इ पाणी
सूंटू बीज   की खिचड़ी
वर्तमान म उसयां सूंटू का बनिबनिक सलाद (बुखण ) –
जनकि- सुरा दगड चखना
उस्ययां सूंट-  प्याज दगड सलाद/चखना 
उस्ययां सूंट , गाजर क दगड सलाद
उस्ययां सूंटू स्किल्लेट कुछ कुछ खिचडी या मिश्रण


Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड का  पारम्परिक भोटिया भोजन
-
 उत्तराखंड भोटिया/  रंगपा / रंग /रोंगबा समाज कु  पारम्परिक भोजन जैको जड़ तिबत म छन।  अब भौत सी विधि परिवर्तित ह्वे गेन पर जड़ तो वी च
(भोजन पकाण  विधि , खाद्यान अवयव भिन्न ह्वे  सकद। )
इकबटोळ  - भीष्म कुकरेती
-
जौ  क मोमोज
जौ क नोड्यूल्स
चेंबुरेकी (कुछ कुछ मटन समोसा )
नौणी चा
छांग - बियर
बालेप - रुटि / पकायीं  रुटि /रोट  जन
तिंग्मो - भाप म पकायीं  रुटि /भाप से बण्यु  बन जन
ट्संपा  या जम्बा - जौ  या ग्यूं क  लुण्या सत्तु की रुटि या छुट ढुंगळ  ?
रक्सी - कुछ कुछ जिन जन दारु
थुकपा  या बनि  बनि  नोड्यूल्स  सूप जन डीथक , गुथक
कोईरी - मटन चौप आटो  आदि से
चीज - बनि बनि  चीज (पनीर ? )
शाप्ता  - मुर्गा शिकार  ( रस्सादार )
टोलचा (बाड़ी )
अर्जिया जन कोइरी - मांशाहारी भोजन , मटन आटो  दगड़  मिलैक बणदो।
क्वाक्ला  - नीति माणा  क रोंग्पा नोड्यूल्स

थुई - मिठै

मटन  भोज्य - याक , बखर , ढिबर , मुर्गा आदि
(नाम व अब पकाये जांद कि  न की सूचना इना  उन से लिए गे ,  हौरि  सूचना की जग्वाळ  म )

(नेलांग  उत्तरकाशी का पारम्परिक भोटिया भोजन ,  जधंग  उत्तरकाशी का पारम्परिक भोटिया भोजन , माणा  बद्रीनाथ  में पारम्परिक भोटिया भोजन ,  नीति गढ़वाल   में पारम्परिक भोटिया भोजन ,   दारमा पिथौरागढ़ में पारम्परिक रंग / भोटिया भोजन ,)


 

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