चा पीणकु इतिहास
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सरोज शर्मा ( भोजन शोधार्थी)
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चा कु इतिहास 750 ईसा पूर्व च, आमतौर पर भारत मा चा उत्तर पूर्वी भागों मा और नीलगिरि कि पहाड़ियों मा उगये जांद भारत दुनिया कु सबसे बडु चा उत्तपादक च, हजारों साल पैल बौद्ध भिक्षुओ न चा कु इस्तेमाल औषधि क प्रयोजन से कार, ऐ क पिछनै दिलचस्प कहानि च भारत मा चा पीणक इतिहास 2000 साल पैल एक भिक्षुक क साथ से शुरू ह्वाई बाद मा ई बौद्ध भिक्षुक बौद्ध धर्म का संस्थापक बणिन, यून सात साल कि नींद त्याग कैरिक जीवन सत्य थैं जाण और बुद्ध कि शिक्षा पर विचार करण कु फैसला कार, चितंन क पांचवा साल मा यूंन कुछ पत्ता चबाण शुरू कर यूं पत्तो न ऊं थैं पुनर्जीवित कैर दयाई और जगणा मा भि सक्षम बणाई, जब ऊं थैं नींद महसूस हूंदी त ई प्रक्रिया दोहरांनदा छाई, इन्नी ऊन सात साल कि तपस्या पूर्ण कैर, ई और कुछ न जंगली चा क पत्ति छै, इनकैकि भारत म चा प्रसिद्ध ह्वै, स्थानीय लोगो न चा पत्ति चबाण शुरू कैर दयाई, भारत मा चा कु उत्पादन ईस्ट इंडिया कंपनी न शुरू कार, 19 वीं सदी क आखिर मा असम मा चा कि खेति कु पदभार संभालण क बाद पैल चा कु बगान भि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी न ही शुरू कैर, 16वीं सदी मा देखे ग्या कि चा कु उपयोग भारत मा लोग सब्जी पकाण म भि कना छाई, उबलीं चा पत्ति से भि पेय तैयार कैरिक इस्तेमाल करण लगयां छा, 1823-1831 मा ईस्ट इंडिया क एक वर्कर राबर्ट ब्रूस और ऊं का भाई न पुष्टि कार कि चा कु पौधा असम क्षेत्र मा हूंद, वै क बाद कोलकत्ता मा भि बाटनिकल गार्डन मा एकु बीज क नमूना भेज, लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी क पास चीन क दगड़ चा कू व्यापार कनकु अधिकार छाई इलै ऊन चा उगाण कि प्रक्रिया इस्तेमाल नि कैर, जब कंपनी न अपण एकाधिकार खवै दयाई तब चार्ल्स ब्रूस न चा कि पैदावार बणाण कि स्वाच, चीन बटिक 80 हजार चा क बीज इकठ्ठा कैरिक बाॅटनिकल गार्डन म लगये ग्या, असम मा भि पेड़ो कि छटैंकटैं कैरिक बागानो थैं तैयार किए ग्या, देशी झाड़ियो कि पत्तियो से कालि चा कु निर्माण क साहस किए ग्या, चीन क द्वी चा निर्माताओ कि भर्ती किये ग्या ऊं कि मदद से तेजी से चा उत्पादन क रहस्यों थैं भि सीख, 19वीं सदी मा एक अंग्रेज न गौर क्याई असम का लोग कालु तरल पदार्थ पिनदिन जु एक जंगलि पौधा से पीसिक बणद, इन कैरिक चा आम आदमियो मा भि प्रचलित ह्वै ग्या, आप लोग हर जगा देख सकदो रेलवे प्लेटफार्म, चा कि दुकानो मा असानी से उपलब्ध च।