देहरादून, जागरण संवाददाता: पहाड़ की प्रमुख फसलों में शुमार झंगोरा की खेती अब किसानों की आर्थिकी संवारने का अहम जरिया बनने जा रही है। न केवल टेस्ट बदलने, बल्कि पोषक तत्वों से भरपूर होने की वजह से झंगोरा का जादू महानगरों में भी लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। सितारा होटलों, शादी-ब्याह समारोहों में झंगोरे की खीर पहली पसंद बन रही है। झंगोरा मधुमेह के रोगियों के लिए आदर्श आहार भी है। इसे देखते हुए जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि ने इसकी ऐसी उन्नत प्रजाति विकसित की है, जिससे किसान सामान्य की तुलना में अधिक उत्पादन ले सकते हैं। राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में उत्पादित होने वाले मोटे अनाजों में झंगोरा (ईकाईनोक्लोवा फ्रुमेनटेसिया) प्रमुख फसल रही है। एक दौर में झंगोरा का प्रयोग चावल के स्थान पर पकाकर खाने व खीर बनाने के साथ ही पशुओं को दिए जाने वाले दाने के रूप में होता था। बाद में विभिन्न कारणों के चलते किसान इस प्रमुख फसल से कटते चले गए, लेकिन अब स्थितियां बदली हैं। पौष्टिक गुणों से भरपूर झंगोरा की बीते एक दशक के दौरान बाजार में मांग बढ़ी है। पहाड़ी गांवों में घरों तक सीमित झंगोरे की खीर और छंछ्या को महानगरों में भी खूब पसंद किया जा रहा है। टेस्ट बदलने के साथ ही झंगोरा में मौजूद पोषक तत्व लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.विजय कुमार यादव के अनुसार झंगोरा के दानों में करीब 98 फीसदी रेशा पाया जाता है, इसके कारण झंगोरा मधुमेह रोगियों के लिए आदर्श है। डा.यादव ने बताया कि झंगोरा से बने भोज्य पदार्थो का क्लाइसेमिक इंडेक्स अत्यंत कम पाया गया है, जो मधुमेह रोगियों के रक्त में शर्करा की मात्रा नियंत्रित करने में उपयोगी है। इसमें पाया जाने वाला प्रोटीन व कैल्शियम लगभग चावल के बराबर है, लेकिन वसा, खनिज और लौह तत्व चावल की तुलना में अधिक हैं। उन्होंने बताया कि पंतनगर विवि ने झंगोरा की पीआरजे-1 नाम से उन्नत प्रजाति विकसित की है। इससे किसान सामान्य प्रजाति की तुलना में तीन-चौथाई अधिक उत्पादन ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि किसान अब इसके व्यावसायिक उत्पादन में रुचि ले रहे हैं।