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Festival Dates - उत्तराखंड के विभिन्न त्योहारों एव मेलो को मनाने की निश्चित तिथि

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Bhishma Kukreti:
होलि का बनि बनि रूप, साहित्य म होली अर होली संगीत
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सरोज शर्मा-गढ़वाली जन प्रिय साहित्य
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होलि रंगो और कु और हंसण खेलण कु त्यौहार च जु आज सरया दुनियाभर म मनयै जांद
भारत म अलग अलग हिस्सों म अलग अलग तरीका से मनयै जांद ,ब्रज कि होलि आज भि सरया दुनियाभर मा प्रसिद्ध च,और आकर्षण क बिंदु च, बरसाने कि लठठ मार होलि काफी प्रसिद्ध च, ऐ मा पुरूष महिलाओ पर रंग डलदिन और महिलाए ऊं पर लठठ और कपड़ा क बणयां कोड़ा से मरदिन, ऐ प्रकार से मथुरा और वृन्दावन म भि 15 दिनों तक होलि मनयै जांद, कुमांउ कि गीत बैठकी म शास्त्रीय संगीत कि सभा हुंदिन, ई सब होलि से कै दिन पैल शुरू ह्वै जांद,
हरियाणा कि धुलंडी म भाभी द्वीयूर थै परेशान कनक रिवाज च,बंगाल कि दोल जात्रा चैतन्य महाप्रभु क जन्म दिन क रूप मा मनयै जांद, जुलूस निकालिक गांण बजांण भि हूंद, ऐक अतिरिक्त महाराष्ट्र कि रंग पंचमि मा गुलाल से खेलणा कि प्रथा च, गोवा म शिमगो म जुलूस निकणक बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम क आयोजन हूंद, पंजाब मा होला मोहल्ला मा सिखों द्वारा शक्ति प्रदर्शन कि प्रथा च,
तमिल नाडू की कमन पोडिगई कामदेव कि कथा पर आधारित वसंतोत्सव च जबकि मणिपुर म याओसांग वै छवटि झोपड़ी क नाम च जु पूर्णिमा क दिन नदी तट पर बणयै जंदिन, दक्षिण गुजरात क आदिवासियो खुण होलि सबसे बढ़ पर्व च ,
छत्तीसगढ कि होलि म लोकगीतों कि परम्परा च, और मध्यप्रदेश क मालवा अंचल क आदिवासी इलाका भौत धूमधाम से मनयै जांद,
भगोरिया जु होलि क ही रूप च, बिहार क फगुआ खूब मौज मस्ती क पर्व च, नेपाल कि होली मा भि धार्मिक व सांस्कृतिक रंग हूंद, धार्मिक संस्थाओ जनकि इस्कॉन, वृन्दावन, बांकेबिहारी मंदिर, म भिन्न भिन्न प्रकार से होली क श्रंगार व उत्सव मनाण कि परंपरा च ,
होलि मनाण का तरीका
होलि कि पूर्व संध्या वला दिन होलि पूजा और होलिका दहन हूंद, होलि कि परिक्रमा शुभ मने जांद, सार्वजनिक स्थान मा लकड़ी उपलों से होलि तैयार किए जांद, होलि से काफी दिन पैल से ऐ कि तैयारि कियै जांद, गाय क गोबर का उपला जै मा बीच मा छेद हूंद जैथैं गुलरी, भरभोलिये या झाल भि ब्वलेजांद, ऐ मा मूंज कि रस्सी से माला बणयै जांद,
लकडियों व उपलो से बणी होली क विधिवत पूजन किए जांद, होली क दिन घौर मा पकवान बणैकि भोग लगयै जांद, दिन ढलण मा होलिका दहन कियै जांद, ऐ आग म गेंहू जौ चना क बलड़ा भुनै जंदिन, दूसर दिन लोग अबीर गुलाल से होली खेलदिन, ढोल बाजा और होली क गीत गंनदिन, घर घर जैकि होली खेलदिन, मित्र और रिस्तेदारों से मिलणकु जंदिन,
टोलि बणैकि रंग बिरंगा कपड़ा पैरिक नचदा गांदा छन, बच्चा पिचकरी से रंग खेलदिन, प्रीति भोज और गाणबजांण कु आयोजन भि हूंद,
होलि मा बच्चा सबसे ज्यादा खुश हूंदिन, सब्यों पर रंग डलदा भगदा दौड़दा खूब मजा करदिन, होली है, होली है कि अवाज से मोहल्ला गुंजै दिंदिन, दुफरा बाद नहयै धुवै कि नया कपड़ा पैरिक आराम कनक बाद शाम कु एक दुसर क घौर मिलणकु जंदिन,
साहित्य म होलि कु वर्णन
प्राचीन काल मा होलि संस्कृत साहित्य म होली क अनेक रूपों क वर्णन मिलद, श्रीमद्भागवत म रसों क समूह रास क वर्णन च,और रचनाओं म रंग नौ क उत्सव कु वर्णन च, जैमा हर्ष कि प्रियदर्शिका व रत्ना वली और कालिदास कि कुमरसंभव और मालिविकाग्निमित्रम शामिल छन, कालिदास रचित ऋतुसंहार म एक पूर सर्ग वसंतोत्सव थैं अर्पित च।
भारवि माघ और भि भौत कवियों न वसंत कि खूब चर्चा कैर। चंदबरदाई कि पृथ्वीराज राज रासौ मा होली क खूब वर्णन च।भक्ति काल और रीतिकाल क हिन्दी कवियों न भि होलि और फाल्गुन मास थैं विषेश महत्व द्या। आदिकालीन विध्यापति से लेकि भक्तिकालीन सूरदास, रहीम,रसायन,पद्माकर, जायसी, मीराबाई, कबीर,और रीतिकालीन बिहारी, केशव, घनानंद, आदि कवियों कु भि ई प्रिय विषय रै,महाकवि सूरदास न बसंत और होलि पर 78 पद लिखिन ऐ विषय मा कवियों न जख नितांत लौकिक नायक नायिका क बीच ख्यलै गै अनुराग प्रेम कि होलि क वर्णन कैर वखी राधा कृष्ण कि बीच ख्यलै गै प्रेम और छेडछाड़ से भरीं होलि क माध्यम से निर्गुण और सगुण प्रेम कु वर्णन कैर। सूफी संत निजामुद्दीन औलिया, अमीर खुसरो,और बहादुर शाह जफर जना मुस्लिम समुदाय वलों न भि होली पर सुंदर रचनाऐं लिखि छन,
आधुनिक हिन्दी काहनियों मा प्रेमचंद, राजा हरदिल,प्रभु जोशी, अलग अलग तीलियां, तेजेन्द्र शर्मा कि एक बार फिर होली, ओमप्रकाश अवस्थी कि होली मंगलमय हो, स्वदेश राणा कि होली,मा होलि का कै रूप मिलदा छन ,भारतीय फिल्मो मा भि होलि का दृश्य और गीत सुंदरता क साथ चित्रित किए गैन,
होलि क संगीत
भारतीय शास्त्रीय, उपशास्त्रीय लोक तथा फिल्मी संगीत कि परंपराओ म होलि क विशेष महत्व च। शास्त्रीय संगीत म धमार क होलि से गैरू रिश्ता च, हालांकि ध्रुपद, धमार, छवट व बड़ा ख्याल ठुमरी म भि होलि क गीतों क सुंदरता देखदा हि बणद, कत्थक नृत्य म भि होलि, धमार, और ठुमरी कि भौत हि सुंदर बन्दिश जनकि चलो गुइयां आज खेलें होरी कनहैया घर आज भि लोकप्रिय च। ध्रुपद मा गयै जाण वलि खेलत हरी संग सकल रंग भरी होरी सखी, भारतीय शास्त्रो म कुछ राग इन छन जु होलि मा विषेश रूप से गयै जंदिन, बसंत बहार, हिंडोल,और भि भौत राग छन होलि म गांण बजांण क वातावरण अफ्यी बण जांद। होली कि लोकप्रियता क अंदाज ऐ बात से हि लगयै जांद कि संगीत कि एक शैलि कु नाम ही होलि च,अलग अलग प्रान्तो म विभिन्न वर्णन सुणना कु मिलद होलिक, बृजधाम म राधा कृष्ण कि होलि, अवध मा राम सीता कि होलि, जनकि होली खेलें रघुवीरा अवध में,राजस्थान म मोइनुद्दीन चिश्ती कि दरगाह म आज रंग है री मन रंग है, अपने महबूब के घर रंग है, इन्नी शंकर जी से संबंधित होली में दिगंबर खेले मसाने मे होली, भारतीय फिल्मों म भि अलग अलग रागों म होली गीत प्रस्तुत कियै गैं, जनकि रंग बरसे भीगे चुनरवाली, नवरंग कु आया होलि का त्यौहार उड़े रंग की बौछार थैं लोग आज भि नि भूल सकदा।

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