जैसी हेम दा ने कथा सुनाई उसी प्रकार की १ प्रकार की लोक कथा जेहन मे याद आती है|
१ बार १ गाँव मे कुछ दगड़ी लोग आपस मे गपशप लड़ा रहे थे| उनमे से १ बोलता "यार मी ब्यी ग्वाव जै रो छी, वा मील ७ बाघ एके दगर देखि"(Yaar me kal gaay charaane gyaa thaa, whaa maine 7 baagh 1 saath dekhe)|
दूसरा बोलता: "येस हई न सकेन, कॉ बेति उनन ७ बाघ यो हमार जन्गाव मे.."(Esa ho hi nahi sakta. Humaare jungle me 7 baagh kha se aayenge)|
पहला बोलता: "यार मील ज्यादा ध्यान न देई, ६ हुनाल पे"(Yaar maine jyada dhyaan nahi diya hogaa.. 6 Honge)|
तीसरा बोलता: "६ बाघ ले कति हूनी कि एके दगार... तू झूठ नि बुला..."(Are bhai jhuth mat bol. Kahi 6 baagh bhi hote hai kya ek saath)
पहला बोलता: "होय यार गणन मे गलती है गे नहल... ५ बाघ पक्क छी.."(Haa yar shayad ginne me galti ho gyi hogi. Par 5 to pakka the)
इसी तरह वो दाज्यु ४, ३, २, १ बाघ पे पहुंचे|
अंत मे कहते: "हुनल पे क्ये श्याव कुकुर "(Hogaa Yaar koi Siyaar-Kutta..)