एक संस्कृति जो आज लुप्त प्रायः है-
दोस्त को हमारे पहाड़ों में मिज्यू या दगड़िया कहा जाता है, पूरुषों में और महिलाओं में संज्यू कहा जाता है। पहले जमाने में तो लोग जब आपस में दोस्ती करते थे तो बकरी काटकर एक पूरी प्रक्रिया अपनाई जाती है और उस मित्रता को आगे की पीढियां भी निभाती थीं। पिताजी के इस प्रक्रिया के तहत बनाये गये मित्र को "मितबाज्य़ू" और उनकी पत्नी की "मितईजा" कहा जाता था और इन दोनों परिवारों में एक परिवार का भाव पैदा होता था। शादी-ब्याह और अन्य पारिवारिक कार्यों में भी इस परिवार को विशेष प्रिफरेंस दिया जाता था, इस परिवार को अपने परिवार में ही समाहित माना जाता था। इन परिवारों में शादी आदि के बाद अपने परिवार के अन्य सदस्यों की ही तरह दैज देने की भी परम्परा है, यदि मित्र परिवार ब्राह्मण हो और मेजबान राजपूत, तो भी ब्राह्मणॊं के लिये दी जाने वाली दक्षिणा की जगह दैज (शादी में प्राप्त वस्तु-गागर, परात आदि) या गोला दिये जाने का प्रचलन है।
लेकिन आज स्वार्थ और भौतिकतावादी युग में यह सब कहां रह गया। स्वयं सिद्ध है कि उत्तराखण्ड में मित्रता का बहुत पुराना और पारिवारिक नाता रहा है।