[justify]यूँ तो उत्तराखण्ड में अनेक लोक पर्व/त्यौहार मनाये जाते हैं जो कृषि या उनके पशुधन से सम्बंधित होते हैं और इन पर्वों को क्षेत्र के समस्त लोग बड़े हर्ष एवं उल्लास के साथ मानते हैं। लेकिन उत्तराखण्ड में बागेश्वर जिले के कपकोट (पोथिंग) क्षेत्र में एक ऐसा त्यौहार भी मनाया जाता है, जिसे सिर्फ ‘गढ़िया परिवार’ के लोग मानते हैं। और यह त्यौहार ‘गढ़िया बग्वाल’ के नाम से जाना जाता है। बागेश्वर या अन्य क्षेत्रों में भैयादूज के दिन सभी परिवार ‘च्युड़े’ बनाते हैं और इस पर्व को ‘च्युड़ी बग्वाल’ या ‘द्वितीया’ या ‘नगरी बग्वाल’ नाम से जानते हैं। इस ‘च्युडी बग्वाल’ या ‘द्वितीया’ को गढ़िया परिवार के लोग नहीं मनाते हैं और न ही च्युड़े बनाते हैं। इसी ‘च्युडी बग्वाल’ के बदले गढ़िया परिवार के लोग इस त्यौहार को दीपावली के ठीक एक माह बाद मनाते हैं। यह त्यौहार मार्गशीर्ष चतुर्दशी के शाम और अमावस्या की सुबह मनाया जाता है। अन्य पर्वों की तरह ही ‘गढ़िया बग्वाल’ के दिन तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं। अपने कुल देवी-देवताओं और अपने पितरों को पूजा जाता है। पालतू जानवरों जैसे गाय, बैल, भैंस की पूजा की जाती है। जानवरों को पिठ्या(टीका) लगाया जाता है और सींगों पर तेल लगाया जाता है। फिर जानवरों को जौ के लड्डू यानि ‘पिण्ड’ खिलाये जाते हैं। लेकिन ‘नगरी बग्वाल’ की तरह जानवरों के ऊपर विस्वार के छापे लगाने का रिवाज नहीं है। बग्वाल के दिन सभी गढ़िया परिवार के लोगों द्वारा अपनी बेटियों को भोज के लिए ससुराल से मायका जरुर बुलाया जाता है, किसी कारणबस बेटियां नहीं आ पाती हैं तो परिवार का एक सदस्य बेटी के ससुराल (घर) त्यौहार पर बनाये गए पकवान पहुँचाने जाता है। इस त्यौहार पर ब्याही बेटियां बड़े उत्साह के साथ अपने मायका आते हैं। बहुत बार बेटियों को कहते हुए सुना कि उन्हें इस त्यौहार का बेसब्री से इन्तजार रहता है। पहाड़ के हाड़ तोड़ मेहनती बेटियों के लिए यह पर्व ‘आराम का पर्व’ भी है। क्योंकि इस पर्व के आने तक वे अपने सम्पूर्ण कार्य जैसे फसल समेटना,बुवाई करना, घास काटना इत्यादि पूर्ण कर चुकी होती हैं और वे बेफिक्र होकर मायके का आनंद ले सकती हैं। ‘गढ़िया बग्वाल’ कपकोट विधानसभा क्षेत्र के पोथिंग, गड़ेरा, तोली, लीली, डॉ, लखमारा, छुरिया, बीथी-पन्याती, कपकोट, पनौरा, फरसाली आदि गांवों के गढ़िया परिवार के लोग मानते हैं। उत्तराखण्ड के कुमाऊं व गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों में भी गढ़िया परिवार रहते हैं लेकिन वे ‘पोथिंग के गढ़िया’ लोगों के इस पर्व के बारे में अनभिज्ञ हैं।
‘गढ़िया’ लोगों द्वारा अलग ही अपना त्यौहार ‘गढ़िया बग्वाल’ मनाने पीछे लोगों के अपने-अपने तर्क हैं। लोग कहते हैं कि जब दीपावली के बाद द्वितीया पर्व (च्युड़ीबग्वाल) मनाया जाता है तब शायद गढ़िया परिवार का कृषि कार्य पूरा नहीं हुआ होगा क्योंकि इस समय खेतों में गेहूं, जौ इत्यादि की बुवाई का काम चरम पर होता है। इसी व्यस्तता के कारण गढ़िया परिवार के पूर्वजों ने इस त्यौहार को बाद में मनाने का निर्णय लिया हो।
गढ़िया त्यौहार (बग्वाल) मानने के पीछे जो भी तर्क हों लेकिन आज हमारे सामने चुनौती है तो अपने लोक पर्वों, तीज-त्यौहारों, मेलों आदि को जीवित रखे रहने की।
धन्यवाद
विनोद सिंह गढ़िया
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