Author Topic: Goril Devta famous Jagar in Uttarakhand-गोरिल देवता का प्रसिद्ध जागर  (Read 35511 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We are posting lyric of Goril Devta Jagar in this topic. जागर कैन्तुरी  काल की लोक कथाओं को उजागर करने वाला मुख्या लोक गीत   हैं |

Please go through the Lyric of Jagar-

आज भी गढ़वाल -कुमौं के अनेक गोरिल जागर गीतों तथा गाथाओं में  में डोटी का उल्लेख मिलता है ,

जैसे की -

जै गुरु-जै गुरु

माता पिता गुरु देवत
तब तुमरो नाम छू इजाऽऽऽऽऽऽ
यो रुमनी-झूमनी संध्या का बखत में॥
तै बखत का बीच में,
संध्या जो झुलि रै।
बरम का बरम लोक में, बिष्णु का बिष्णु लोक में,
राम की अजुध्या में, कृष्ण की द्वारिका में,
यो संध्या जो झुलि रै,
शंभु का कैलाश में,
ऊंचा हिमाल, गैला पताल में,
डोटी गढ़ भगालिंग में
कि रुमनी-झुमनी संध्या का बखत में,
पंचमुखी दीपक जो जलि रौ,
स्योंकार-स्योंनाई का घर में, सुलक्षिणी नारी का घर में,
जागेश्वर-बागेश्वर, कोटेश्वर, कबलेश्वर में,
हरी हरिद्वार में, बद्री-केदार में,
गुरु का गुरुखण्ड में, ऎसा गुरु गोरखी नाथ जो छन,
अगास का छूटा छन-पताल का फूटा छन,
सों बरस की पलक में बैठी छन,
सौ मण का भसम का गवाला जो लागीरईए
गुरु का नौणिया गात में,
कि रुमनी- झुमनी संध्या का बखत में,
  सूर्जामुखी शंख बाजनौ,उर्धामुखी नाद बाजनौ।

(Source-himalayilog.com)



M S Mehta   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कंसासुरी थाली बाजनै, तामौ-बिजयसार को नगाड़ो में तुमरी नौबत जो लागि रै,

म्यारा पंचनाम देबोऽऽऽऽऽऽ.........!
अहाः तै बखत का बीच में,

नौ लाख तारों की जोत जो जलि रै,

नौ नाथन की, नाद जो बाजि रै,
नौखण्डी धरती में, सातों समुन्दर में,
अगास पाताल में॥
कि ऎसी पड़नी संध्या का बखत में,
नौ लाख गुरु भैरी, कनखल बाड़ी में,
बार साल सिता रुनी, बार साल ब्यूंजा रुनी,
तै तो गुरु, खाक धारी, गुरु भेखधारी,
टेकधारी, गुरु जलंथरी नाथ, गुरु मंछदरी नाथ छन, नंगा निर्बाणी छन, खड़ा तपेश्वरी छन,

शिव का सन्यासी छन, राम का बैरागी छन,
कि यसी रुमनी-झुमनी संध्या का बखत में,
जो गुरु त्रिलोकी नाथ छन, चारै गुरु चौरंगी नाथ छन,
बारै गुरु बरभोगी नाथ छन, संध्या की आरती जो करनई।
  गुरु वृहस्पति का बीच में।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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तब बिष्णु नाभी बै कमल जो पैद है गो,
तै दिन का बीच में कमल बटिक पंचमुखी ब्रह्मा पैड भो,
जो ब्रह्मा-ले सृष्टि रचना करी, तीन ताला धरती बड़ै,
नौ खण्डी गगन बड़ा छि।
....कि तै बखत का बीच में बाटो बटावैल ड्यार लि राखौ,
घासिक घस्यार बंद है रौ, पानि को पन्यार बंद है रौ,
धतियैकि धात बंद है रै, बिणियेकि बिणै बंद है रै,
ब्रह्मा वेद चलन बंद है रो, धरम्क पैन चरण बंद है गो,
क्षेत्री-क खण्ड चलन बन्द है गो, गायिक चरण बन्द है गो,
पंछीन्क उड़्न बंद है गो, अगासिक चडि़ घोल में भै गईं,
सुलक्षिणी नारी घर में पंचमुखी दीप जो जलण फैगो........
......कि तै बखत का बीच में संध्या जो झुलनें,
दिल्ली दरखड़ में, पांडव किला में,
जां पांच भै पाण्डवनक वास रै गो,

संध्या जो झूलनें इजूऽऽऽ हरि हरिद्वार में, बद्री केदार में,
गया-काशी,प्रयाग, मथुरा-वृन्दावन, गुवर्धन पहाड़ में,
तपोबन, रिखिकेश में, लक्ष्मण झूला में,
मानसरोबर में नीलगिरि पर्वत में......।
तै तो बखत का बीच में, संध्या जो झुलनें इजू हस्तिनापुर में,
कलकत्ता का देश में, जां मैय्या कालिका रैंछ,
कि चकरवाली-खपरवाली मैय्या जो छू, आंखन की अंधी छू,
कानन की काली छू, जीभ की लाटी छू,
गढ़ भेटे, गढ़देवी है जैं।
सोर में बैठें, भगपती है जैं,
हाट में बैठें कालिका जो बणि जैं।
पुन्यागिरि में बैठें माता बणि जैं,
हिंगलाज में भैटें भवाणी जो बणि जैं।
....कि संध्यान जो पड़नें, बागेश्वर भूमि में, जां मामू बागीनाथ छन।
जागेशवर भूमि में बूढा जागीनाथ रुनी,
जो बूढा जागी नाथन्ल इजा, तितीस कोटि द्याप्तन कें सुना का घांट चढ़ायी छ,
सौ मण की धज चढ़ा छी।
संध्या जो पड़ि रै इजाऽऽऽ मृत्युंद्यो में, जां मृत्यु महाराज रुनी, काल भैरव रुनी।
तै बखत का बीच में संध्या जो झुलनें,
सुरजकुंड में, बरमकुंड में, जोशीमठ-ऊखीमठ में,
तुंगनाथ, पंच केदार, पंच बद्री में, जटाधारी गंग में,
गंगा-गोदावरी में, गंगा-भागीरथी में, छड़ोंजा का ऎड़ी में,
झरु झांकर में, जां मामू सकली सैम राजा रुनी,
डफौट का हरु में, जां औन हरु हरपट्ट है जां, जान्हरु छरपट्ट है जां.......।
  गोरियाऽऽऽऽऽऽ दूदाधारी छै, कृष्ण अबतारी छै।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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.......कि तै बखत का बीच में बिष्णु लोक में जलैकार-थलैकार रैगो,
कि बिष्णु की नारी लक्ष्मी कि काम करनैं,
पयान भरै। सिरा ढाक दिनै। पयां लोट ल्हिने,
स्वामी की आरती करनै।

मामू को अगवानी छै, पंचनाम द्याप्तोंक भांणिज छै,
तै बखत का बीच में गढी़ चंपावती में हालराई राज जो छन,
अहाऽऽऽऽ! रजा हालराई घर में संतान न्हेंतिन,
के धान करन कूनी राजा हालराई.......!
तै बखत में राजा हालराई सात ब्या करनी.....संताना नाम पर ढुंग लै पैद नि भै,
तै बखत में रजा हालराई अठुं ब्या जो करनु कुनी,
राजैल गंगा नाम पर गध्यार नै हाली, द्याप्ता नाम पर ढुंग जो पुजिहाली,......
अहा क्वे राणि बटिक लै पुत्र पैद नि भै.......
राज कै पुत्रक शोकै रैगो
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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एऽऽऽऽऽ राजौ- क रौताण छिये......!
एऽऽऽऽऽ डोटी गढ़ो क राज कुंवर जो छिये,
अहाऽऽऽऽऽ घटै की क्वेलारी, घटै की क्वेलारी।
आबा लागी गौछौ गांगू, डोटी की हुलारी॥

डोटी की हुलारी, म्यारा नाथा रे......मांडता फकीर।
रमता रंगीला जोगी, मांडता फकीर,
ओहोऽऽऽऽ मांडता फकीर......।
ए.......तै बखत का बीच में, हरिद्वार में बार बर्षक कुम्भ जो लागि रौ।
ए...... गांगू.....! हरिद्वार जै बेर गुरु की सेवा टहल जो करि दिनु कूंछे......!
अहा.... तै बखत का बीच में, कनखल में गुरु गोरखीनाथ जो भै रईं......!
ए...... गुरु कें सिरां ढोक जो दिना, पयां लोट जो लिना.....!
ए...... तै बखत में गुरु की आरती जो करण फैगो, म्यरा ठाकुर बाबा.....!

अहा.... गुरु धें कुना, गुरु......, म्यारा कान फाडि़ दियो,

मून-मूनि दियो, भगैलि चादर दि दियौ, मैं कें विद्या भार दी दियो,
मैं कें गुरुमुखी ज बणा दियो। ओ...

दो तारी को तार-ओ दो तारी को तार,
गुरु मैंकें दियो कूंछो, विद्या को भार,

बिद्या को भार जोगी, मांगता फकीर, रमता रंगीला जोगी,मांगता फकीर।

उपरोक्त के आधार पर कहा जा सकता है की  डोटी गढ़ का उल्लेख उत्तराखंड और नेपाल  के प्राचीन इतिहास के  एक साक्षी  भूखंड के रूप में होने के साथ साथ ही यहाँ के देबी-देबतौं जो की प्रसिद्ध  ऐतिहासिक वीर भड  थे ,के  अदम्य साहस , वीरता ,प्रेम-प्रसंग ,विद्रोह  की लोक-गाथाओं और लोकगीतों में प्रमुख रूप से मिलता है और उनकी   ऐतिहासिक भूमिका में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है |
 
संदर्भ ग्रन्थ : उत्तराखंड के वीर भड , डा ० रणबीर सिंह चौहान
                     ओकले तथा गैरोला ,हिमालय की लोक गाथाएं
                     यशवंत सिंह कटोच -मध्य  हिमालय का पुरातत्व
 
विशेष आभार : डॉ. रणबीर सिंह चौहान, कोटद्वार  (लेखक और इतिहासकार ), माधुरी रावत जी  कोटद्वार
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 गोरिल, ग्विल्ल, गोरिया , गोल देवता का मन्त्र    Garhwali Kumauni culture
                           Mantra of Goril, Gwill , Goria, Gol Deity
                      गोरिल, ग्विल्ल, गोरिया , गोल देवता का मन्त्र
 (Mantra Tantra in Garhwal, Mantra and Tantra in Kumaun , Mantra and Tantra in Himalaya , Mantra Tanra in uttarakhand )
                            Presented by Bhishma Kukreti
 ( Manuscript : Dharmma nand Pasbola, vill Naini, Banghat Paurigarhwal , Ramkrishn kukreti, vill Barsudi )
                           (Collected and edited by Dr Vishnu Datt Kukreti , vill. Barsudi, Langur Valla)
 नाथपंथ ने कुमाऊं  - गढ़वाल क्षेत्र को की देवता व मन्तर दिए है . इनमे एक मन्त्र ग्विल्ल , गोरिल देवता का सभी गाँव में महत्व है . यदि किसी पर ग्विल्ल/गोरिल का दोष लग जाय तो मान्त्रिक दूध , गुड, ल़ूण,  राख आदि को मंत्रता  है और यह मन्त्र इस प्रकार है :
                    ॐ नमो गुरु को आदेस
 रिया : हंकार आऊ : बावन ह्न्तग्य तोडतो आऊ : हो गोरिया : कसमीर   से चली आयो : जटा फिकरन्तो   आयो,: घरन्तो आयो :गाजन्तो आयो : बजन्तो आयो : जुन्ज्तो आयो : पूजन्तो आयो : हो गोरिया बाबा : बारा कुरोड़ी क्रताणी : कुबन्द : नौ करोडी उराणी कुबन्द : : तीन सौ साट : गंगा बंद , नौ सौ नवासी नदी बंद : यक लाख अस्सी हजार वेद की कला बंध : रु रु बंद : भू भू बंद :   चंड बंद : प्रचंड बंद : टूना पोखर बंद : अरवत्त बंद : सब रत्त बंद :अगवाडा बंद का बेद बंदऊँ  : पीछे पिछवाडा को बेद बंदऊँ : महाकाली जा बन्दों : वन्द वन्द को गोरिया : हो  गोरिया : नरसिंग की दृष्टा बंद : युंकाल की फांस बंद : चार कुणे  धरा बंद : लाया तो भैराऊं बंद : खवायाँ चेडा  बंद : सगुरु विद्या कु बंद निगु
 This Mantra  reveals that Goril came from Kashmir by crossing all hurdles and was brave, tactful and knowledgeable personality . Goril was also knoledgeable to tackel varios problems of common men , geographical or psychological . Goril was available to solve various problems
If readers read the Goril mantra carefully, they will ome to conclusio that there is very less difference in markendey Puran (Devi Puran) and Goril mantra except that Markendey Puran is in sanskrit aand there is praiseful history of Devi and  Goril Mantra is described in Khadi Boli/Braj with some mixing of Garhwali of old time
इस मन्तर के अध्ययन  से साफ़ पता चलता है की इस मन्तर में गोरिल की वीरता व ज्ञान की प्रशंशा की गयी है
9 गोरिल कलुआ देव के भाई थे और राजतंत्र या अधिनायक तंत्र के विरुद्ध जन आन्दोलन में भाग लेते थे  एवम वे विकराल रूप भी धारण करते थे यही कारण है की गोरिल ग्राम देवताओं की सूची में आते हैं क्योंकि वे जन नेता थे )

By - Bhishma Kukreti)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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(हमारी लोककथाएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से चली आ रही हैं। इनमें भारत की सांस्कृतिक एकता और धार्मिक मान्यताओं की सुंदर झलक देखने को मिलती है। दरअसल, कथाएँ बच्चों की सूझ-बूझ विकसित करने और उनकी मानसिक क्षुधा शांत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती साथ ही सामाजिक मूल्य और भारतीय संस्कारों के प्रति चेतना भी जाग्रत होती है।)

ग्वाल देवता 


उत्तरांचल के ग्वाल देवता से सभी परिचित हैं। कुमाऊं अंचल में आज भी उन्हें विशेष सम्मान से पूजा व नचाया जाता है। कहते हैं कि किसी समय चंपावत में राजा झालराई का शासन था। उनकी सात रानियां थीं, किंतु किसी के भी घर में संतान न थी।

एक दिन महाराज शिकार खेलते-खेलते दुबाचौर गांव में पहुंच गए। वहां दो भैंसे आपस में लड़ रहे थे। महाराज ने उन्हें छुड़ाने का प्रयास किया किंतु असफल रहे। वहीं एक सुंदर कन्या तपस्या कर रही थी। कन्या ने राजा से मजाक में कहा, ‘राजा होकर भी इतने कायर हो कि भैंसों की लड़ाई नहीं छुड़ा सकते।’

राजा के सेवक ने उस कन्या से कहा, ‘यदि ऐसी बात है तो तुम ही छुड़ा दो।’ उस कन्या ने कुछ ही क्षणों में भैंसों को सींग से पकड़कर अलग कर दिया। उसका नाम था कालिंद्रा। महाराज उस कन्या की वीरता और सुंदरता से अत्याधिक प्रभावित हुए और उसे ब्याह लाए।

पहली सात रानियां जल-भुनकर खाक हो गईं। कुछ ही समय बाद कालिंद्रा गर्भवती हुई। जब शिशु के जन्म का समय आया तो महाराज को किसी कारणवश राज्य से बाहर जाना पड़ा। सातों रानियों ने आपस में सलाह की और कालिंद्रा से बोलीं, ‘शिशु के जन्म के समय तुम्हारी आंखों पर पट्टी बांधनी होगी। नहीं तो अपशकुन होगा।’ कालिंद्रा मान गई।

उचित समय आने पर उसने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। रानियों ने नवजात शिशु के स्थान पर सिलबट्टा रख दिया। बच्चे को पिटारी में बंद करके गौरी गंगा में बहा दिया। बच्चा एक मछुआरिन के हाथ लगा। वह उसे अपने बेटे की तरह पालने लगी। सारे नगर में ढिंढोरा पीट दिया गया कि आठवीं रानी ने सिलबट्टे को जन्म दिया है। सभी ने इस बात पर विश्वास कर लिया।

वह बालक अदभुत था। उसके बचपन से ही ऐसी घटनाएं घटने लगीं, जिसने सबको आश्चर्यचकित कर दिया। एक दिन सात रानियां पनघट पर पानी भरने गईं हैं। वह बालक भी काठ की घोड़ी पर सवार होकर वहां पहुंच गया और रानियों से कहा, ‘हट जाओ, जरा रास्ता दे दो। मेरी घोड़ी पानी पिएगी।’ ‘अरे पगले, क्या काठ की घोड़ी भी कभी पानी पीती है?’ रानियों ने हँसी उड़ाई।

‘अरी रानियों, क्या राजा की रानी भी सिलबट्टे को जन्म दे सकती है?’ सुनती ही रानियां सकते में आ गईं। भेद खुलने के भय से उन्होंने बालक की शिकायत राजा से की। उन्होंने राजा से कहा कि वह उस बालक को दंड दें; क्योंकि उसने रानियों का अपमान किया है।

बालक ने अपने राजा पिता को गुप्त रहस्य बतला दिया। सातों रानियों को उबलते तेल में फिंकवाने की सजा सुनाई गई। वही बालक गढ़ चंपावत का प्रतापी राजा बना। न्यायप्रिय और सत्यवादी होने के कारण सभी उनका सम्मान करते थे। आज भी उन्हें गोरिल, गौरिया, ग्वेग्वाल्ल या गोल भी कहते हैं।

(साभाऱः भारत की लोक कथाएं, डायमंड प्रकाशन, सर्वाधिकार सुरक्षित।)

http://hindi.in.com/hindi/folk-tales-literature/879522/0

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ग्वाल : Goril Devta
इसको गोरिल, गौरिया, ग्वेल, ग्वाल्ल या गोल भी कहते हैं।  यह कुमाऊँ का सबसे प्रसिद्ध व मान्य ग्राम-देवता है।  वैसे इसके मंदिर ठौर-ठौर में है, पर ज्यादा प्रसिद्ध ये हैं।  बौरारौ पट्टी में चौड़, गुरुड़, भनारी गाँव में, उच्चाकोट के बसोट गाँव में, मल्ली डोटी में तड़खेत में, पट्टी नया के मानिल में, काली-कुमाऊँ के गोल चौड़ में, पट्टी महर के कुमौड़ गाँव में, कत्यूर में गागर गोल में, थान गाँव में, हैड़ियागाँव, छखाता में, चौथान रानीबाग में, चित्तई अल्मोड़ा के पास।
ग्वाल देवता गी उत्पत्ति इस प्रकार से बतायी जाती है - चम्पावद कत्यूरी राजा झालराव काला नदी के किनारे शिकार खेलने को गये।  शिकार में कुछ न पाया।  राजा थककर और हताश होकर दूबाचौड़ गाँव में आये।  जहाँ दो भैंस एक खेत में लड़ रहे थे।  राजा ने उनको छुड़ाना चाहा पर असफल रहे।  राजा प्यासा था।  एक नौकर को पानी के लिए भेजा, पर पानी न मिला, दूसरा नौकर पानी की तलाश में गया।  उसने पानी की आवाज सुनी, तो अपने को एक साधु के आश्रम के बगीचे में पाया।  वहाँ आश्रम में जाकर देखा कि एक सुन्दर स्री तपस्या में मग्न है।  नौकर ने जोर से पुकारा, और स्री की समाधि भंग कर दी।  औरत ने पूछा कि वह कौन है?  स्री ने धीरे-धीरे आँखे खोली और नौकर से कहा कि वह अपनी परछाई  उसके ऊपर न डाले, जिससे उसकी तपस्या भंग हो जाय।  नौकर ने स्री को अपना परिचय दिया, और अपने आने का कारण बताया।  तथा झरने से पानी भरने लगा। तो घड़े का छींट स्री के ऊपर पड़ा तब उस तपस्विनी ने उठकर कहा कि जो राजा लड़ते भैसों को छुड़ा न सका, उसके नौकर जो न करे, सो कम।  नौकर को इस कथन पर आश्चर्य हुआ।  उसने स्री से पूछा कि वह कौन है?  तपस्विनी ने कहा - "उसका नाम काली है, और व राजा की लड़की है।  वह तपस्या कर रही है।  नौकर ने आकर उसकी तपस्या भंग कर दी।' राजा उस पर मोहित हो गये, और उससे विवाह करना चाहा।  राजा उसके चाचा के पास गये। देखा - वह एक कोढ़ी था।  पर राजा काली पर मोहित थे।  उन्होंने उस कोढ़ी को अपने सेवा-सुश्रुषा से संतुष्ट कर लिया, और वह विवाह को राजी हो गया।  अपने चाचा की आज्ञास से उस स्री ने राजा से विवाह कर लिया।  काली रानी गर्भवती हुई। राजा ने रानी से कहा था कि जब प्रसव पीड़ा हो तो वह घंटी बजावे।  राजा आ जाएगा।  रानियों ने छल से घंटी बजाई।  राजा आये, पर पुत्र पैदा न हुआ।  राजा फिर दौरे में चले गए।  रानी के एक सुन्दर पुत्र पैदा हुआ।  अन्य रानियों ने ईर्ष्या के कारण पुत्र को छिपा लिया।  काली रानी की आँखों में पट्टी बाँधकर उसके आगे एक कद्दुू रख दिया।  रानियों ने लड़के को नमक से भरे एक पिंजरे में बन्द कर दिया। पर आश्चर्य है कि नमक चीनी हो गया।  और बच्चे ने उसे खाया।  इधर रानियों ने बच्चे को जिन्दा देखकर पिंजरे को नदी में फेंक दिया।  वहाँ वह मछुवे के जाल में फंसा।  मछुवे के सन्तान न थी।  ईश्वर की देन समझकर वह सुन्दर राजकुमार को अपने घर ले गया।  लड़का बड़ा हुआ और एक काठ के घोड़े पर चढ़कर उस घाट में पानी पिलाने को ले गया, जहाँ वे दुष्ट रानियाँ पानी भरने को जाती थीं।  उनके बर्तन तोड़कर कहने लगा कि वह अपने काठ के घोड़े को पानी पिलाना चाहता है।  वे हँसी, और कहने लगी की क्या काठ का घोड़ा भी पानी पीता है?  उसने कहा कि जब स्री को कद्दुू पैदा हो सकता है तो काठ का घोड़ा भी पानी पीता है।  यह कहानी राजा के कानों में पहुँची।  राजा ने लड़के को बुलाया।  लड़के ने रानियों के अत्याचार की कहानी सुनाई।  राजा ने सुनकर रानियों को तेल की कढ़ाई में पकाये जाने का हुक्म दिया।  बाद में वह राजकुमार राजा बना।  वह अपने जीवन-काल में ही पिछली बातों को जानने के कारण पूजा जाता था।  मृत्यु के बाद तमाम कुमाऊँ में माना जाने लगा।  वह लोहे का पिंजरा गौरी-गंगा में फेंका गया था।




 

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