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  • कर्क संक्रान्ति (हरेला): July 16, 2012

Author Topic: Harela Festival Of Uttarakhand - हरेला(हरयाव)  (Read 125905 times)

Bhawani Aama

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Re: हरेला(हरयाव): HARELA FESTIVAL OF UTTARAKHAND
« Reply #60 on: July 17, 2008, 01:09:37 PM »
लियो नाती! तुम सब लोगुन के मेरि तरफ बटि "हरेला" को आशीर्वाद...

http://www.youtube.com/watch?v=VkZw77dUrug

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: हरेला(हरयाव): HARELA FESTIVAL OF UTTARAKHAND
« Reply #61 on: July 17, 2008, 02:49:52 PM »
Aama kahan chali gai thi aap bahut dino baad darshan diye aapne.

लियो नाती! तुम सब लोगुन के मेरि तरफ बटि "हरेला" को आशीर्वाद...

पंकज सिंह महर

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Re: हरेला(हरयाव): HARELA FESTIVAL OF UTTARAKHAND
« Reply #62 on: September 01, 2008, 02:11:10 PM »
जी रये, जगि रये, यो दिन यों मास भेटने रये। बेर जस फल जये, दूब जस फैल जये। श्यों जस तराण हैजो स्याव जसी बुद्धि.।
        इन शब्दों के साथ हरेला सिर पर चढ़ाया जाता है। उत्तरांचल में खुशहाली, समृद्धि, जनकल्याण व पर्यावरण शुद्धि के लिए हरेला त्यौहार मनाया जाता है। यहां के लोगों के विशेष त्यौहारों में से यह एक है। इस दिन हरेले के तिनकों को माताएं व घर के बुजुर्ग अपने बच्चों और परिवार के लोगों को चढ़ाते हैं और उनकी दीर्घायु व खुशहाल जीवन की कामना करते हैं।
हरेले पर्व से दस दिन पूर्व जौ, गेहूं, मक्का, उरद, सरसों, चना, मूंग, धान आदि सात या नौ अनाजों को एक टोकरीनुमा आकार के बर्तन में बोया जाता है। लोग यह अनाज पर्व से नौ दिन पहले बोते हैं। रेलवे बाजार स्थित सनातन धर्म संस्कृत महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डा. गोपाल दत्त त्रिपाठी बताते हैं कि हरेला शब्द हर व काली से बना हुआ है। यहां हर का तात्पर्य शिव और काली का बादल से है। इस पर्व की पूर्व संध्या पर शिव व पार्वती का पूजन होता है।

 हरनाम समुत्पन्ने हर कालि हरप्रिये।
सर्वदा सस्यमूर्तिस्थे, प्रणता‌र्त्त हरे नम:।

शंकर के नाम से उत्पन्न ऐसी हरकाली जो अनाज रुपी मूर्ति में स्थित रहकर धान्य की वृद्धि करती है, ऐसे शंकर व पार्वती को हम प्रणाम करते हैं।
       कर्क संक्रान्ति से सिंह संक्रान्ति तक सौर मास के अनुसार श्रावण का महीना कहा जाता है। जो भगवान के पूजन के लिए विशेष फल देने वाला है। प्रकृति द्वारा इस मास में चारों तरफ हरियाली की छटा दिखती है। प्रकृति स्वरुपा पार्वती का पूजन जनकल्याण व पर्यावरण की शुद्धि के लिए शास्त्रों में करने का प्रावधान है। अपने इष्ट के मंदिर में रखे अनाज को पर्व के दिन हरेले का प्रतिष्ठा-पूजन कर काटा जाता है। सभी घरों में विशेष पकवान बनाए जाते हैं, जो पड़ोस, परिचितों, रिश्तेदारों व नातेदारों को बांटे जाते हैं। पीपलेश्र्वर महादेव मंदिर के स्वामी द्वारिका यति महाराज कहते हैं कि 17 जुलाई से सूर्य कर्क में चला जाता है और 14 जनवरी से फिर मकर में आ जाता है। सूर्य के कर्क में जाने से दिन छोटे होने लगते हैं। इस त्यौहार को चोरों वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र) के लोग मनाते हैं। यह ऋषि-मुनी के समय से चली आ रही प्रथा है। माना जाता है कि कर्क में सूर्य के जाने पर भगवान विष्णु निद्रा में चले जाते हैं।

पंकज सिंह महर

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Re: हरेला(हरयाव): HARELA FESTIVAL OF UTTARAKHAND
« Reply #63 on: July 09, 2009, 01:27:29 PM »
इस बार हरेला ६-७ जुलाई को बोया गया है, जो १६ जुलाई को संकरात के दिन काटा जायेगा और सिर में रखा जायेगा। इसी दिन संक्रान्ति है और सावन का महीना इसी दिन से प्रारम्भ होगा।

हेम पन्त

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Re: हरेला(हरयाव): HARELA FESTIVAL OF UTTARAKHAND
« Reply #64 on: July 16, 2009, 11:58:12 AM »
Sabhi Dosto ko Harela Parv Ki saparivar Shubhakamna...

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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Re: हरेला(हरयाव): HARELA FESTIVAL OF UTTARAKHAND
« Reply #65 on: July 16, 2009, 12:19:58 PM »
जी राया,
जाग राया,
स्यवाक जश बूढी है जो,
स्यो जश तरन है जो,
गंगा यमुना पानी बराबर अजर-अमर है जाया.

हरेला की हार्दीक बधाईया.......

Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी

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Re: हरेला(हरयाव): HARELA FESTIVAL OF UTTARAKHAND
« Reply #66 on: July 16, 2009, 01:39:28 PM »


लाग हरैयी लाग पंचमी
जी रे जागी रे यो दिन यो मॉस भेटने रे
श्याओ जे बुदी ऐए जो स्यो जे तरान ऐए जो
धरती बराबर चाको है जे असमान बराबर उच्च है जे
गाँव पधान है जे,

पैलाग और नमस्कार

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: हरेला(हरयाव): HARELA FESTIVAL OF UTTARAKHAND
« Reply #67 on: July 16, 2009, 03:31:40 PM »
Aap sabhi ko Harela ki haardik Shubhkamnaen.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: हरेला(हरयाव): HARELA FESTIVAL OF UTTARAKHAND
« Reply #68 on: July 16, 2009, 03:40:25 PM »
हरेला के त्योहार पर, जो प्रतिवर्ष श्रावण माह के प्रथम दिवस पड़ता है, बनाये जानेवाले डिकारे सुघड़ परन्तु अपरिपक्व हाथों की करामात हैं जिसमें शिव परिवार को मिट्टी में उतारकर पूजन हेतु प्रयोग में लाया जाता है।

डिकारे शब्द का शाब्दिक अर्थ है - प्राकृतिक वस्तुओं का प्रयोग कर मूर्तियाँ गढ़ना। स्थानीय भाषा में अव्यवसायिक लोगों द्वारा बनायी गयी विभिन्न देवताओं की अनगढ़ परन्तु संतुलित एवं चारु प्रतिमाओं को डिकारे कहा जाता हैं। डिकारों को मिट्टी से जब बनाया जाता है तो इन्हें आग में पकाया नहीं जाता न ही सांचों का प्रयोग किया जाता है। मिट्टी के अतिरिक्त भी प्राकृतिक वस्तुओं जैसे केले के तने, भृंगराज आदि से जो भी आकृतियाँ बनाई जाती हैं, उन्हें भी डिकारे समबोधन ही दिया जाता है।

हरेला का त्यौहार समूचे कुमाऊँ में अति महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक माना जाता है। इस पर्व को मुख्यतः कृषि और शिव विवाह से जोड़ा गया है। हरेला, हरियाली अथवा हरकाली हरियाला समानार्थी है। देश धनधान्य से सम्पन्न हो, कृषि की पैदावार उत्तम हो, सर्वत्र सुख शान्ति की मनोकामना के साथ यह पर्व उत्सव के रुप में मानाया जाता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि हरियाला शब्द कुमाऊँनी भाषा को मुँडरी भाषा की देन है।

पुराणों में कथा है कि शिव की अर्धांगिनी सती न् अपनेे कृपण रुप से खिन्न होकर हरे अनाज वाले पौधों को अपना रुप देकर पुनः गौरा रुप में जन्म लिया। इस कारण ही सम्भवतः शिव विवाह के इस अवसर पर अन्न के हपे पौधों से शिव पार्वती का पूजन सम्पन्न किया जाता है। श्रावण माह के प्रथम दिन, वर्षा ॠतु के आगमन पर ही हरेला त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्य रुप से किसानों का त्यौहार है।

डिकारे की मूल सामग्री सोंधी सुगन्ध वाली लाल चिकनी मिट्टी है। महिलाएँ इस मिट्टी में कपास मिलाकर इसे कूटती हैं। जब मिश्रण एक सारहो जाता है और गढ़ने में सरल तब उनसे डिकारे गढ़ने का क्रम आरम्भ होता है। पहले शिव-पार्वती के प्रतीक के रुप में मिट्टी के ढेले को प्राण प्रतिष्ठा कर पूजा जाता था। डिकारे हाथ से गढ़ने का चलन सम्भवतः बाद में हुआ होगा। इन डिकारों को हलकी धूप या छाया में इस प्रकार से सुखाया जाता है कि उसके चटकने का डर ना रहे। सुखने के बाद चावल के घोल सेहल्के श्वेत रंग का लेप किया जाता है। कई बार गोंद मिले रंगों से उनके ऊपर अवयवों का निर्माण किया जाता है। प्राकृतिक रंगों का प्रयोग भी सम्भवतः बाद में हुआ होगा। ये रंग किलमोड़े के फूल, अखरोट व पांगर के छिलकों से तथा विभिन्न वनस्पतियों के रस के सम्मिश्रण से तैयार किया जाता है। लेकिन वर्तमान में बाजार में बििकनेवाले सिन्थेटिक रंग ही प्रयोग में लाये जाते हैं। रंगों से रेखायें उभारने के लिए तुलिका के श्थान पर लकड़ी की तीलियों का प्रयोग किया जाता है। प्रायः माचिस की तीली और उस पर बंधी रुई का भी प्रयोग होता है।

डिकारे में शिव को नीलवर्ण और पार्वती को श्वेतवर्ण से रंगने का प्रचलन है। आँख, नाक व कान इत्यदि उभारने के बाद का कार्य भी पहले कोयले को पीसकर किया जाता था।

डिकारों में चन्द्रमा से शोभित जटाजूटधारी शिव, त्रिशूल एवं नागधारण किये अपनी अद्धार्ंगिनी गौरी के साथ बनाये जाते हैं। अग्रपूज्य देवता गणेश को भी इनके साथ बनाये जाने का प्रचलन है। कालान्तर में इनके साथ ॠद्धि - सिद्धि, कौटिल्य कभी-कभी गुजरी तो कभी-कभी भिखारिन बनायी जाने की भी परम्परा प्रचलित है। यह कोई निश्चित नहीं है कि डिकारे शिव-पार्वती आदि के अलावा इनके परिवार के कौन-कौन सदस्य बनाये जायें। यह प्रायः कलाकार के अपने क्षमता पर निर्भर करता है। पूजा के उपरान्त इन को जल में प्रवाहित करने  की भी यदा-कदा परम्परा है।

KNOW ABOUT HARELA FESTIVAL.
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हरेला की परम्परा के अनुसार अनाज ११ दिन पूर्व टेपण से लिखी किंरगाल की टोकरी में बोया जाता है। हरेला बोने के लिए पाँच या सात प्रकार के बीज जिनमें कोहूँ, जौ, सरसों, मक्का, गहत, भट्ट तथा उड़द की दाल कौड़ी, झूमरा, धान, मदिरा, मास आदि मोटा अनाज सम्मिलित हैं, लिये जाते हैं। यह अनाज पाँच या सात की विषम संख्या में ही प्रायः बोये जाते हैं। बीजों को बोने के लिए मंत्रोंच्चार के बीट शंखध्वनी आदि से वातावरण को अनुष्ठान जैसा बनाया जाता है। इन टोकरियों को अन्धकार में रख दिया जाता है। जिससे पूर्व फल फूल डिकारों को बीच में रखकर महिलाएँ पूजा अर्चन करती हैं। इस अवसर पर हरकाली की आराधना की जाती है। हरकाली से वि#निय की जाती है कि वे खेतों को सदा धन-धान्य से भरपूर रखने की कृपा करें।

संक्रान्ति के अवसर पर परिवार का मुकिया इन अन्न के पौधों को काटकर देवताओं के चरणों में अर्पित करता है। हरेला पुरुष अपनी टोपियों में, कान में तथा महिलाएँ बालों में लगाती हैं। घर के प्रवेश द्वार में इन अन्न के पौधों को गोबरकी सहायता से चिपका दिया जाता है।

http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/utrn0044.htm

हेम पन्त

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Re: हरेला(हरयाव): HARELA FESTIVAL OF UTTARAKHAND
« Reply #69 on: July 16, 2009, 06:59:27 PM »
हरेला संक्रान्ति के दिन वृक्षारोपण की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है. इस दिन रोपे गये पौधे बहुत सफलता से पल्लवित होते हैं. हम लोग बचपन में इस दिन पेड़ों की डालियां तोड़कर ऐसे ही मिट्टी में रोप देते थे, और लगभग सभी पौधे जल्दी ही जमीन में जड़ें बना देते थे.   

 

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