Author Topic: Hill Jatra - हिल जात्रा  (Read 49170 times)

पंकज सिंह महर

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Re: Hill Jatra - हिल जात्रा
« Reply #50 on: March 12, 2012, 07:37:00 AM »

पंकज सिंह महर

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Re: Hill Jatra - हिल जात्रा
« Reply #51 on: March 12, 2012, 07:37:38 AM »

पंकज सिंह महर

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Re: Hill Jatra - हिल जात्रा
« Reply #52 on: March 12, 2012, 07:38:42 AM »

हलिया

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Re: Hill Jatra - हिल जात्रा
« Reply #53 on: March 12, 2012, 07:50:11 AM »
थैंकयू हो महाराज! आपने तो पूरी हिलजात्रा ही ठैर्या दी हुई.

हेम पन्त

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Re: Hill Jatra - हिल जात्रा
« Reply #54 on: March 12, 2012, 10:06:30 AM »
Pankaj da is baar Dehradoon me hi kara rakhi hai aapne Congress Raath me Hilajtra... Ab jo banta hai Lakhiya Bhoot..

Risky Pathak

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Re: Hill Jatra - हिल जात्रा
« Reply #55 on: August 12, 2012, 02:16:22 AM »
These days Sor valley is celebrating Hiljatra. Please read attach document

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Hill Jatra - हिल जात्रा
« Reply #56 on: August 13, 2012, 01:47:26 PM »

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Hill Jatra - हिल जात्रा
« Reply #57 on: December 24, 2012, 11:10:09 PM »



Hisalu

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Re: Hill Jatra - हिल जात्रा
« Reply #58 on: September 11, 2013, 06:14:13 PM »


सोरघाटी की पहचान हिलजात्रा पर्व आज, दो सदी से हो रहा हिलजात्रा का आयोजन
मुखौटा नृत्य की ऐसी परंपरा और कहीं नहीं


पिथौरागढ़। अपने पहाड़ में उत्सवों की भरमार है पर सोरघाटी (पिथौरागढ़) की सांस्कृतिक पहचान के पर्व हिलजात्रा की बात कुछ और है। मुखौटा नृत्य पर आधारित यह उत्सव मुख्य रूप से कृषि से जुड़ा है।
सोरघाटी में यह उत्सव पिछले दो सौ साल से मनाया जा रहा है। वक्त बदलने पर भी इस पर्व ने आधुनिकता का लबादा नहीं ओढ़ा है। मुखौटा नृत्य की ऐसी परंपरा कुमाऊं में अन्यत्र देखने को नहीं मिलती। हिलजात्रा का मुख्य आयोजन शहर से सटे कुमौड़ में होता है। इस बार यह पर्व 6 सितंबर यानी शुक्रवार को मनाया जाएगा। हिलजात्रा के मुख्य पात्र लखिया भूत का आशीर्वाद लेने के लिए 20 से 25 हजार लोग जुटते हैं।
हिलजात्रा विशुद्ध रूप से लोकनाट्य परंपरा है। पहले जब लोगों के पास मनोरंजन के अन्य साधन नहीं थे, तब ऐसे लोकोत्सवों में जन भागीदारी बहुत ज्यादा होती थी। बरसात के बाद पहाड़ में चारों ओर हरियाली छा जाती है, फसलें लहलहाने लगती हैं, लोग उत्सव मनाकर स्वस्थ मनोरंजन करते हैं।


उपासना, स्वस्थ मनोरंजन का समावेश

इतिहासकारों का मानना है कि मणिपुर, अरुणांचल प्रदेश, सिक्किम आदि प्रांतों में भी मुखौटा नृत्य की परंपरा है। लोग ऐतिहासिक पात्रों की नकल करते हैं। ठीक इसी तरह बंगाल में जात्रा की परंपरा है। हिलजात्रा एक ऐसा नाट्य उत्सव है जिसमें देवी-देवताओं की उपासना और स्वस्थ मनोरंजन दोनों का समावेश है।


एक हफ्ते तक उत्सव में डूबे रहते हैं लोग

सोरघाटी में एक पखवाडे़ तक मनाया जाने वाला यह पर्व कुमौड़, भुरमुनी, मेल्टा, बजेटी, खतीगांव, सिलचमू, अगन्या, उड़ई, लोहाकोट, चमाली, जजुराली, गनगड़ा, बास्ते, देवलथल, सिरौली, कनालीछीना, सिनखोला, भैंस्यूड़ी आदि गांवों में मनाया जाता है।
हिलजात्रा के समय लखियाभूत की उपासना के पीछे मंगल कामना का ध्येय छिपा होता है। ऐसा विश्वास है कि जब लखियाभूत खुश हो जाए तो क्षेत्र में किसी प्रकार की आपदा नहीं आती।




source: http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20130906a_002115006&ileft=-5&itop=1163&zoomRatio=130&AN=20130906a_002

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Hill Jatra - हिल जात्रा
« Reply #59 on: September 10, 2015, 10:12:02 AM »
देखिए, क्या हुआ जब हजारों लोगों को आशीर्वाद देने आया 'भूत'

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में कुमौड़ के ऐतिहासिक मैदान में अनूठी लोक परंपरा की संवाहक हिलजात्रा उत्सव के हजारों लोग गवाह बने और लखियाभूत का आशीर्वाद लिया।

नगर के आसपास के इलाकों के अलावा कुमाऊं के अन्य स्थानों से भी लोग हिलजात्रा देखने पहुंचे। हिलजात्रा पर्व की तैयारी कुमौड़ गांव में मंगलवार से शुरू हो गई थी। मंगलवार देर रात तक सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। बुधवार दोपहर बाद नगर के सभी लोगों का रुख कुमौड़ गांव की ओर था।

कुमौड़ के ऐतिहासिक मैदान में शाम करीब पांच बजे से उत्सव की शुरुआत हुई। इससे पूर्व लोक संस्कृति पर आधारित कार्यक्रम हुए। कुमौड़ के ऐतिहासिक कोट (किले) से सबसे पहले रोपाई करने वाली महिलाओं का दल मैदान में उतरा। इसके बाद गलिया बल्द (आलसी बैल) की जोड़ी लाई गई। काफी देर तक यह कार्यक्रम चला।

बाद में ढोल-नगाड़ों के बीच जैसे ही लखिया भूत को मैदान में लाया गया तो उपस्थित लोगों के रौंगटे खड़े हो गए। लखियाभूत का पात्र इस साल नीरज महर बने थे। वह विशेष प्रकार का मुखौटा पहने थे। उन्हें नियंत्रित करने के लिए बड़ी-बड़ी रस्सियों का सहारा लिया गया।

मान्यता है कि लखियाभूत जितना आक्रामक है, प्रसन्न होने पर उतना ही फलदायी भी होता है। हजारों की तादात में मौजूद महिलाओं और पुरुषों ने लखियाभूत का आशीर्वाद प्राप्त किया।
लोक मान्यता है कि इस तरह की उपासना एवं आयोजन से लखियाभूत खुश हो जाते हैं। इससे गांव एवं इलाके में किसी प्रकार की विपदा नहीं आती। फसल बेहतर होती है।

सूखा और ओलों का प्रकोप नहीं होता है। करीब दो घंटे तक चले इस कार्यक्रम में सांसद अजय टम्टा, विधायक मयूख महर, भाजपा प्रदेश महामंत्री प्रकाश पंत, डीएम विनोद गिरी, एसपी आरएल शर्मा आदि मौजूद रहे। हिलजात्रा महोत्सव समिति के अध्यक्ष गोपू महर, चंद्रशेखर महर, यशवंत महर ने सभी का स्वागत किया।

कुछ इतिहासकार एवं अध्येता लखिया को भगवान शंकर का बारहवां अवतार मानते हैं। हिलजात्रा मूल रूप से नेपाल का पर्व है। वहां इसे इंद्रजात्रा के नाम से मनाया जाता है। कहा जाता है कि यह पर्व नेपाल के राजा ने महरों को भेंट स्वरूप प्रदान किया था।

कहते हैं कि महर लोग अतीत में नेपाल के राजा के निमंत्रण पर इंद्रजात्रा पर्व में शामिल होने गए थे। वहां इंद्रजात्रा शुरू होने से पहले भैंसें की बलि दी जाती थी। भैंसा कुछ इस तरह का था कि उसके सींग आगे की तरफ झुके थे। इस कारण उसकी गर्दन ढक गई। उसे काटने में अड़चन आ रही थी।

महर बंधुओं ने इस पहेली को हल कर दिया, जैसे ही भैंसें ने हरी घास खाने के लिए सिर ऊपर उठाया तो महर ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। राजा ने खुश होकर यह उत्सव भेंट कर दिया।

इस उत्सव के साथ उन्होंने मुखौटे समेत कई अन्य सामग्री भी दी। कुमाऊं में आठों पर्व के समापन के अवसर पर अन्य स्थानों पर भी छोटे स्तर पर हिलजात्रा के आयोजन होते हैं। सभी स्थानों पर मुख्य पात्र के रूप में लखियाभूत का ही पूजन होता है। इसके अलावा हिरन-चितल को भी दिखाया जाता है। (amar ujala)

 

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