Uttarakhand > Culture of Uttarakhand - उत्तराखण्ड की संस्कृति
Holy Mantras Related To Our Culture - हमारी संस्कृति से संबंधित मंत्र
पंकज सिंह महर:
साथियो,
आप लोगों को ग्यात है कि हमारी संस्कृति आदिकाल से चली आ रही है और देवभूमि के लोगों में भगवान और अपनी संस्कृति के लिये बहुत आस्था है। हमारी संस्कृति से जुड़े कई मंत्र भी हैं, लेकिन हम लोगों को इसकी जानकारी कम है। इस अमूल्य विरासत को सहेजने के लिये हम लोग एक कोशिश करेंगे।
इस थ्रेड पर मैं अपने वरिष्ठ और विद्वान सदस्य श्रद्धेय हेम पाण्डे जी से विशेष अनुरोध करुंगा कि वे अपना मार्गदर्शन हमें दें।
पंकज सिंह महर:
सर्वप्रथम सूर्य भगवान को अर्ध्य देने का मंत्र ( श्री हेम पाण्डे जी द्वारा उपलब्ध कराया गया है)
सुबह सूर्य को अर्घ्य देने के लिए गायत्री मन्त्र पढ़ने के बाद 'ब्रह्मस्वरूपिणे सूर्यनारायणाय नमः' बोल कर अर्घ्य दिया जाता है. वैसे किसी भी समय निम्न मन्त्र द्वारा भी सूर्य को अर्घ्य दिया जा सकता है-
एही सूर्य सहत्रान्शो तेजो राशि जगत्पते
अनुकम्पय माम भक्त्या ग्रहणार्घ्य दिवाकर.
पंकज सिंह महर:
नई जनेऊ धारण करने की विधि एवं मंत्र
जनेऊ को हल्दी से रंग कर एक शुद्ध स्थान (जैसे -घर का मन्दिर- द्याप्तैथान) में एक शुद्ध थाल या शुद्ध पत्तों में रख कर जल छिडकें, फ़िर निम्नलिखित छह मन्त्र पढ़ कर एक - एक फूल या चावल चढायें :
प्रथमतन्तौ ॐ ओंकारमावाहयामि | द्वितीयतन्तौ ॐ अग्निमावाहयामि | तृतीयतन्तौ ॐ सर्पानावाहयामि | चतुर्थतन्तौ ॐ सोममावाहयामि | पंचमतन्तौ ॐ पितृनावाहयामि |षष्ठतन्तौ ॐ प्रजापतिमावाहयामि |
प्रथमग्रन्थौ ॐ ब्रह्मणे नमः, ब्रह्माणमावाहयामि | द्वितीयग्रंथौ ॐ विष्णवे नमः, विष्णुमावाहयामि |
फ़िर दस बार गायत्री मन्त्र पढ़ कर जनेऊ को अभिमंत्रित करें | इसके बाद नए जनेऊ धारण हेतु संकल्प कर के विनियोग का मन्त्र पढ़ कर जल गिरायें | फ़िर जनेऊ धारण का मन्त्र पढ़ कर नई जनेऊ धारण करें| इसके बाद पुरानी जनेऊ त्यागने का मन्त्र पढ़ते हुए पुरानी जनेऊ को माला (कण्ठी) जैसा बना कर उसे जल में प्रवाहित करें या तुलसी में रख दें |
सौजन्य- श्री हेम पाण्डेय जी
पंकज सिंह महर:
जनेऊ पहनने और उतारने के मंत्रों को एक जगह ले आते हैं, इससे सभी सदस्यों को सहूलियत हो जायेगी और चाहें तो प्रिंट भी निकाल सकते हैं।
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत सहजं पुरस्तात|
आयुष्यम अग्रयं प्रतिमुच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः||
ॐ यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवितेनोपनह्यामी|
यज्ञोपवीत -धारण हेतु विनयोग:-
ॐ यज्ञोपवीतं इति मन्त्रस्य परमेष्ठी ऋषि:,लिंगोक्ता देवता:,त्रिष्टुप् छंद:,यज्ञोपवीत धारणे विनियोग: |
पुरानी जनेऊ त्याग का मन्त्र
एतावद्दिन्पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया |
जीर्णत्वात् त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथासुखं ||
यह मन्त्र पढ़ कर जनेऊ को जल में विसर्जित करना चाहिए |
सौजन्य- श्री हेम पाण्डे जी
पंकज सिंह महर:
रक्षा सूत्र बंधन मंत्र
रक्षा सूत्र बांधते समय इस मंत्र का पाठ किया जाता है।
येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः
तेन त्वामभिबध्नामि, रक्षे माचल माचल|
नोट- रक्षा सूत्र पुरुषों के दांये हाथ में बांधा जाता है तथा कंवारी कन्याओं के दांये हाथ में बांधा जाता है और विवाह के बाद बांये हाथ में बांधा जाता है।
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