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House Wood carving Art /Ornamentation Uttarakhand ; उत्तराखंड में भवन काष्ठ कल

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Bhishma Kukreti:
ठंठोली (ढांगू ) में चंद्रशेखर कंडवाल के जंगलेदार मकान में काष्ठ कला  व  अलंकरण

House Wood Carving art in House of Chandrashekhar Kandwal of Thantholi
ठंठोली (मल्ला ढांगू ) में लोक कला (तिबारी , निमदारी , जंगला ) कला -5 
House wood Carving Art in Thantholi - 5
ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला -
    गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  68
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    68
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 संकलन - भीष्म कुकरेती

  ठंठोली एक समृद्ध कृषि प्रधान गाँव होने के अतिरिक्त ढांगू -पश्चिम उदयपुर में कर्मकांड पंडिताई , आयुर्वेद चिकत्स्कों का गाँव हेतु भी प्रसिद्ध था  आयुर्वेद चिकत्सा के लिए ठंठोली अधिक प्रसिद्ध था।  ऐसे में ठंठोली में  नक्काशीयुक्त भवनों का पाया जाना कोई आश्चर्य नहीं।
   चंद्रशेखर कंडवाल का जंगलेदार मकान भी बयां करता है कि  ठंठोली कई दृष्टि से समृद्ध गाँव था व यहां  काष्ठ जंगलेदार  भवन निर्माण की एक परम्परा प्रचलित रही जो बीसवी सदी के अंतिम दशकों में भी बरकरार रही। 
 चंद्रशेखर कंडवाल के काष्ठ जंगलेदार भवन में पहली मंजिल पट लकड़ी का जंगला बंधा है जिसमे 18 स्तम्भ खड़े हैं जो लकड़ी के ही छज्जे पर टिके  हैं व सीधे ऊपर छत के आधार काष्ठ पट्टिका से मिल जाते हैं।  संभो के मध्य नीचे दो ढाई फिट ऊंची लौह जाली बिठई गयी है जो भव्यता प्रदान करने में सफल है। 
 स्तम्भ सीधे सपाट ज्यामिति शैली में निर्मित हैं व कहीं भी कोई प्रांकृतिक या मानवीय चित्र अंकन नहीं मिलता है। जंगले पर कोई इंच भर भी नक्कासी न होना द्योत्तक है कि जंगलेदार भवन 1980 के आस पास या तत्तपश्चात ही निर्मित हुआ होगा।  इसमें संशय न होगा कि  बढ़ई व ओड  ठंठोली या निकटवर्ती गाँव के ही रहे होंगे।
निष्कर्ष निकलता है कि  बीसवीं सदी के अंतिम वर्षों में निर्मित चंद्रशेखर कंडवाल के जंगलेदार भवन  में केवल  ज्यामितीय कला  / अलकनकरण है. दस कमरों के भवन ने इस जंगल को  शानदार छवि दी है।

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सूचना व फोटो आभार : सतीश कुकरेती , कठूड़ 
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला
 

Bhishma Kukreti:
सुकई  गाँव में म 1749 में निर्मित काष्ठ भवन की कला व अलंकरण
सुकई गाँव में  भवन काष्ठ कला , अलंकरण -1
बंगार स्यूं , गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला -1
   Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Bangarsyun , Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -1
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  69
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   69 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 बंगारस्यूं   में सुकयि    गाँव अठारवीं सदी से ही सयाणो /कमीणो   यानी क्षेत्रीय या पट्टी के थोकदारों का गाँव रहा है।  यद्यपि तब ब्रिटिश काल से पहले गढ़वाल देस में आम परिवार झोपड़ी नुमा उबर में ही रहते थे व भारी कर बचाने हेतु पक्के मकान व नए मकान व  पहली मंजिल  वाले मकान निर्मित नहीं करते थे तो भी  1749  में निर्मित व अभी तक सुरक्षित सुकई के सयाणो  के काष्ठ भवन  साबित करता है कि सबल को नहीं नियम गुसाईं याने सयाणे  थोकदार या जमींदार )  तो कर भरने लायक थे किन्तु  प्रजा  इतनी समृद्ध न थी कि  मंज्यूळ  चढ़ा सके।  तब बंगारी सुकई  से ही सयाणा चारि निभाते थे।
बंगारी सयाणो  में गणेशु  बंगारी  का पुत्र सुरती बंगारी  प्रसिद्ध सयाणा  हुआ और बाचस्पति बहुखंडी अनुसार सुरती बंगारी अपनी बिलासता के कारण आज भी क्षेत्र में लोक कथाओं के जरिये याद किया जाता है।
    सुकई  (बंगार  स्यूं , पौड़ी गढ़वाल ) के अठारवीं सदी के सयाणो  के बंशज  संतन सिंह  रावत ने अपने पूर्वजों  द्वारा  निर्मित  काष्ठ    की सूचना व फोटो भेजी है और लिखा है कि भवन में 1749   उत्कीर्ण हुआ था जो अब मिट गया है।  संतन सिंह रावत ने सूचना नहीं दी कि सन  संवत में था या शक में उत्कीर्ण हुआ था।  सुकई आज भी  बंगारी सयाणो के गाँव नाम से प्रसिद्ध है व विवेचित काष्ठ  भवन  सुकई में  दीबा चौक में स्थित है। 
   बंगारी सयाणो  का  काष्ठ भवन  के पहली मंजिल पर काष्ठ संरचना  वास्तव में बीसवीं सदी के तिबारियों से बिलकुल अलग है।  सयाणो  के काष्ठ भवन के प्रथम मंजिल में पांच मोरी , खोली या द्वार हैं जो सात स्तम्भों से बने हैं।  स्तम्भ छज्जे की नक्काशीयुक्त काष्ठ  पट्टिका पर टिके हैं।
   प्रत्येक स्तम्भ पर कमल फूल नुमा आकृति उत्कीर्ण है।  स्तम्भ के शीर्ष से अर्ध तोरण /half arch निकलता है जो दुसरे स्तम्भ के अर्ध तोरण  से मिलकर पूरा तोरण /arch बनाता है।  तोरण /arch  तिपत्तिनुमा है।  मुरिन्ड के ऊपर शीर्ष पट्टिका है जिस पर नक्कासी हुयी है व इस शीर्ष पट्टिका की संरचना के ऊपर  लकड़ी का ढैपर है जो बाहर से बंद नहीं है और यह एक आश्चर्य भी है कि ढैपर क्यों खुला है व बंद क्यों नहीं है। ढैपर  में लकड़ी पर केवल ज्यामितीय कला दर्शनीय है। 
 स्तम्भ में कमल दल , डीले व बेल बूटों की नक्कासी उत्कीर्ण हुयी है।   स्तम्भों की खोली पर लकड़ी  (दरवाजे ) निर्माण समय  174 9  का ही है या अभी लगे हैं की सूचना मिलनी बाकी है।
सुकई के इस काष्ठ भवन से कई प्रश्न भी खड़े हुए हैं कि काष्ठ भवन कलाकार  कहाँ से लाये गए थे व स्तम्भ , तोरणों  पर कलाकारी की प्रेरणा कहाँ से मिली थी याने इस भवन कला पर किस क्षेत्र की संस्कृति का  प्रभाव  था ? यदि तकनीक व कलाकार तब उपलब्ध थे तो  बंगार स्यूं या निकट की पट्टियों में या अन्य गाँवों में इस तरह के भवन क्यों नहीं बने ? क्या अन्य क्षेत्रों की लोक कथाओं अनुसार सुकई  के सयाणो  के भवन के निर्माण कलाकारों की भी बलि चढ़ा दी गयी थी ?  क्या  संबत या शक 1749  में निर्मित इस भवन  का जीर्णोद्धार नहीं हुआ  ? के प्रश्न भी  अनुत्तरित हैं  और इन  प्रश्नों के उत्तर इतिहासकारों को खोजना आवश्यक है। 
'भवन में किस किस लकड़ी का प्रयोग हुआ 'की जानकारी भी इतिहासकारों को खोज करनी बाकि है।   

सूचना , फोटो : संतन सिंह रावत , सुकई
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 
पौड़ी , चमोली गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  ; Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Pauri , Chamoli Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ;  रुद्रप्रयाग , टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  ; Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Rudraprayag , Tehri  Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ;  उत्तरकाशी गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  ; Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Uttarkashi Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ; ,देहरादून  हरिद्वार गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  ; Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Dehradun , Haridwar Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ;

Bhishma Kukreti:
ठंठोली में (ढांगू )  पंडित पूर्णा  नंद कंडवाल के जंगले दार  कूड़  में काष्ठ  कला

ठंठोली में भवन काष्ठ  कला व अलंकरण -7
House Wood Carving Art  in  Thantholi village -7
    ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला श्रृंखला
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण    श्रृंखला 
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  70
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    70
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 मल्ला ढांगू में ठंठोली गाँव   वैद्यकी व पंडिताई हेतु प्रसिद्ध रहा है व जुड़वां  गांव रणेथ  में डळया  गुरुओं के कारण भी प्रसिद्ध रहा है. ठंठोली व रणेथ  के कारण ढांगू की पहचान मिलती थी (identity ) . ठंठोली में तिबारी व जंगलेदार मकानों की कमी नहीं है।
  इसी क्रम  में आज  पंडित पूर्णा नंद कंडवाल के जंगलेदार मकान की चर्चा की जायेगी .  छज्जा पत्थर के दासों (टोड़ी ) पर आधारित है।  लकड़ी  का उभरा छज्जा  लकड़ी के दासों पर टिका है।  पंडित पूर्णा नंद कंडवाल के जंगलेदार कूड़  (मकान ) में पहली मंजिल पर जंगल बंधा  है।   व इस जंगले  में 16 काष्ठ स्तम्भ हियँ जो छज्जे से लगे काष्ठ छज्जे पर आधारित हैं।  स्तम्भ का आधारिक भाग पर छिलवट्टी लगाई गयी है जिससे स्तम्भ का आधार को छवि मिलती है।  स्तम्भ का सिरा या शीर्ष या ऊपरी भाग छत आधार  काष्ठ पट्टिका से मिलता है।    छत आधार के दास  लकड़ी के हैं।  स्तम्भ के ढाई फुट ऊंचाई से एक रेलिंग है जिस पर धातु रेलिंग हैं। 
पूर्णा नंद कंडवाल के जंगलेदार भवन में लकड़ी पर केवल ज्यामितीय कला या  अलंकरण हुआ है कहीं भी प्राकृतिक , मानवीय या प्रतीकात्मक (आध्यात्मिक ) चित्रण नहीं मिलता है।
  ठंठोली में पूर्णा नंद कंडवाल की इस जंगलेदार मकान की मुख्य विशेषता है बड़ा मकान  का होना जो इसे ठंठोली में ही नहीं क्षेत्र में भी प्रसिद्ध बना देता है।   
   
सूचना व फोटो आभार : सतीश कुकरेती , कठूड़
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
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Bhishma Kukreti:

कणोली  (टिहरी  गढ़वाल ) में  कमला नंद , केशवा नंद , सत्या  नंद बडोनी के जंगलादार  कूड़  में काष्ठ  कला

  टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड , हिमालय में भवन काष्ठ  कला अंकन - 1
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Tehri Garhwal, Uttarakhand , Himalaya  -1

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  70
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) Ornamentation of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 70   
- केशव नंद
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  जैसे जैसे तिबारी कला मंहगी होती गयी व तिबारी निर्माण कलाकारों  उपलब्धि कम होती गयी ,  जंगलों पर सरकारी शिकंजा अधिक कसता गया , गढ़वाल में तिबारी की जगह जंगलेदार मकान निर्माण का प्रचलन शुरू हुआ।  शायद 1945  के बाद जंगलेदार मकानों का प्रचलन शुरू हुआ होगा जो 1950 के बाद प्रचलन में वृद्धि हुयी होगी।
  ऐसी ही एक  कणोली  गाँव , विकास खंड कीर्ति नगर , टिहरी गढ़वाल में कमला नंद , केशव नंद , सत्या नंद  बडोनी बंधुओं  के 24  फ़ीट लम्बा  जंगलेदार मकान की सूचना मिली है।  भवन अधिक प्राचीन नहीं  है। एक खंड है तो  6 कमरों और दुखंड हो जंगल 12 कमरों का है।  पहली मंजिल पर काष्ठ जंगल बंधा है।  जंगल में  20 लगभग स्तम्भ हैं जिनका आधार लकड़ी का छज्जा है व छज्जा लकड़ी के दासों  पर टिके  हैं।  स्तम्भ आधार पर ढाई फिट ऊंचाई तक दोनों ओर खपची  लगी हैं जिससे स्तम्भ आधार मोटा ही नहीं दीखता  अपितु नयनाभिरामी छवि भी बन जाती है। खपची से ही जंगल या रेलिंग है।  स्तम्भ सपाट  हैं व सीधे छत आधार काष्ठ पट्टिका से मिल जाते हैं , छज्जा पट्टिका अथवा छत आधार पट्टिका में ज्यामितीय कला के अतिरिक्त प्राकृकित व माविय कला उत्कीर्ण नहीं है।  बड़े ऊँची खिड़कियों से साफ़ जाहिर है मकान नया ही है याने 1975  में मकान निर्मित हुआ व लागत आयी 25  हजार रुपया। 
 ज्यामिति कला वाला  सत्या नंद बडोनी के जंगलेदार मकान की भव्यता इसे बड़े आकर में है। 

सूचना व फोटो आभार : सत्या  नंद बडोनी , कणोली 
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
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Bhishma Kukreti:
  जल्ठ (डबराल स्यूं ) में   सोहन लाल , जगदीश व अनसूया प्रसाद डबराल की खोळी  में काष्ठ कला व अलंकरण

 जल्ठ  (डबरालस्यूं )  की लोक कलाएं -2
डबरालस्यूं गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अलंकरण , अंकन कला  श्रृंखला -6
  Traditional House wood Carving Art/ornamentation   on Tibari, Nimdari, Kholi of   Dabralsyun - 6
  Traditional House wood Carving Art /ornamentation of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  71
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    71
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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जल्ठ डबराल स्यूं ही नहीं अपितु ढांगू उदयपुर में एक प्रसिद्ध गांव है।    पंडिताई में जल्ठ  अगवाड़ी  गाँव था और तभी कहावत या लोक गीत चलता था कि "जल्ठ  कौंकी  'धोती बड़ी"  .' बड़ी धोती' वास्तव में  विद्वता हेतु उपमा दी गयी थी जल्ठ  को।  सिलोगी स्कूल स्थापना में स्व सदा नंद कुकरेती को जल्ठ  के ही डबराल गुरु ने सहायता दी थी। 
 आज का विषय है जल्ठ  में  सोहन लाल , जगदीश व अनसूया प्रसाद डबराल  डबराल बंधुओं की खोली में काष्ठ  कला /अलंकरण ! खोळी  का एक अर्थ होता  है तल मंजिल से ऊपरी मंजिल जाने हेतु अंदरूनी मार्ग का प्रवेश द्वार।  जब दुखंड मकान में तिबारी (बंद या खुला ) में जाने हेतु तल मंजिल में प्रवेश द्वारा बनाया जाता था तो उसमे अधिकतर आध्यात्मिक /प्रतीकात्मक , प्राकृतिक  अलंकरण किया जाता था।
  भोला दत्त -सोहन लाल डबराल की खोळी  में तीन तह वाले स्तम्भ /सिंगाड़  है जो ऊपर शीसरह में जाकर तीन तह वाला तोरण /मेहराब /अर्ध गोलाकार मुरिन्ड बनाते हैं।  स्तम्भ या सिंगाड़  पत्थर के चौकोर डौळ में खड़े हैं व स्तम्भ की हर तह में प्राकृतिक अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है।  तोरण /मेहराब का भीतरी भाग में तिपत्ति आकर का अलंकरण है तो मध्य तह व बाह्य तह में प्राकृतिक अलंकरण उत्कीर्णित हुआ है।   तोरण के  बाह्य तह में पुष्प भी उत्कीर्णित हैं।   बाह्य तह तो काष्ठ उत्कीर्ण कला व अलंकरण का उत्कृष्ट नमूना है।   पुष्प नक्कासी कई छवि बनाते हैं जो एक नायब नक्कासी का सबूत है। 
  सिंगाड़  के तोरण  ऊपर शीसरष में एक कलात्मक काष्ठ  छत  बिठाई गयी है।  छत के  ऊपरी भाग पर ब्रिटिश काल की  टिन  छत या खिड़कियों की छत पर कटान का सीधा प्रभाव दीखता है और यह वास्तु उस समय सिलोगी जैसे स्थलों में फारेस्ट गार्ड की चौकियों में साफ़ दीखता था या आम जनता हेतु देखने हेतु उपलब्ध था।  मुरिन्ड  के  ऊपर पत्थर की छत न हो कर काष्ठ  की छपरिका है।  छपरिका व मुरिन्ड के मध्य दोनों ओर  दो दो  कलात्मक प्रतीकात्मक काष्ठ  ब्रैकेट /दिवालगीर चिपके /फिट  हैं।  प्रत्येक दिवालगीर /ब्रैकेट  में मोरनुमा पक्षी, बेल बूटे  व एक प्रतीकात्मक  आधात्मिक आकर उत्कीर्णित हुआ है।  पक्षी के पंख ऐसे लगते हैं जैसे कमल पुष्प दल  हों।  खोळी /खोली में कला का अद्भुत नमूना का उदाहरण है    जल्ठ   में  सोहन लाल , जगदीश व अनसूया प्रसाद डबराल की भवन खोली। 
शीर्ष में  छप्परिका में ज्यामितीय व प्राकृतिक दोनों अलंकरण हुआ है यद्यपि ज्यामितीय अलंकरण अधिक उभर कर आया है। छपरिका से शंकुनुमा आकृति नीचे लटकी हैं जो खोळी की   सुंदरता वृद्धि करती हैं।  खोली संभवतया 1930 के लगभग निर्मित हुयी होगी।
   निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि जल्ठ  में सोहन लाल , जगदीश व अनसूया प्रसाद डबराल की खोली /खोळी में नक्कासी नक्श का  उमदा  नमूना मिलता है।  जल्ठ    की डबराल बंधुओं की इस खोली/खोळी  में प्राकृतिक /वानस्पतिक , मानवीय (पक्षी व नजर उतरने का प्रतीक ) व ज्यामिति कलाओं /अलंकरणों का नयनाभिरामी प्रयोग हुआ है।   खोली को आज की दृष्टि से नहीं अपितु उस समय की दृष्टि से देखें तो एक ही शब्द जुबान पर आएगा 'वाह ! वाह ! क्या कलात्मक खोली है !'
   
सूचना व फोटो आभार : नरेश उनियाल ,जल्ठ
सूचना व फोटो आभार : नरेश उनियाल ,जल्ठ
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
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