Author Topic: House Wood carving Art /Ornamentation Uttarakhand ; उत्तराखंड में भवन काष्ठ कल  (Read 37176 times)

Bhishma Kukreti

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  जौहर घाटी के बरफू गाँव में  मकान में' ढुंगकटण  ब्यूंत ' की पाषाण कला
( हिमालयी ' ढुंग कटणौ  ब्यूंत ' व  'पगार चिणनौ ब्यूंत ' तकनीक  का कमाल ) 
 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में   पाषाण  उत्कीर्णन कला   -  168
 संकलन - भीष्म कुकरेती
 
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 इस लेखक का विषय मकान में काष्ठ कला है ना कि पाषाण कला किन्तु जब इस लेखक को  जब   इंटरनेट में खोज करते  पिथौरागढ़ के बरफू गाँव में ध्वस्त मकान का चित्र मिला तो इस मकान को सामने लाने से न रह  सका।   1962  से पहले भारत  तिब्बत  व्यापार मार्ग  में  स्थापित बरफू गाँव कभी    आबाद गाँव था व रौनक दार गांव था तब बरफू में मिटटी पत्थर व लकड़ी के मकान थे अब चीनी अड़ंगा के कारण  तकरीबन खंडहर  हो चुके हैं।  इन्ही खंडहरों में से एक पत्थर के मकान अभी भी तेज बर्फीली हवाओं व बर्फ के मध्य खड़ा है और अपना इतिहास बयान कर रहा है। यद्यपि तिब्बत प्रभावित गृह शैली में मकान बहु मंजिले होते हैं यह मकान तल मंजिल तक ही सीमित है। 
 मकान अंदर से सम्भवतया दुखंड या तिखंड  है।  सामने बरामदा है व छत  दो बड़ी किनारे की पत्थर की दीवारें व मध्य में तीन  पाषाण स्तम्भों पर टिका है। एक किनारे की दीवार चौड़ी है।  मकान में पाषाण कला की दृष्टि से मध्य के तीन पाषाण स्तम्भ ही महत्वपूर्ण हैं।  पत्थर कटान  हिमालयी    'ढुंगकटणौ   ब्यूंत ' तकनीक पर आधारित है। 
प्रत्येक स्तम्भ  में कला या शैली तकरीबन एक जैसे ही है किन्तु  इसे कार्बन कॉपी भी नहीं  कहा जा सकता है।  सभी स्तम्भ लगते हैं गोल हैं।  मुरिन्ड छत का अधहार लकड़ी की कड़ी है।
  'ढुंगकटणो  ब्यूंत; से पत्थर इस तरह काने गए हैं व किनारे  चिने  गए हैं कि  स्तम्भ का आकर नीचे से ऊपर मुरिन्ड  तक गोल है।   पत्थरों की चिनाई  में 'पगार चिणनौ  ब्यूंत '  या ' पगार लगाणौ ब्यूंत ' तकनीक प्रयोग हुआ है।  स्तम्भ के  आधार में  पत्थरों  की हाथी पांव  आकृति है।  हाथी पाँव आकृति के ऊपर गोलाई में पत्थर चिने  गए हैं व ऊपर ड्यूल  नुमा आकृति के पत्थर लगे हैं।  प्रत्येक स्तम्भ में  आधार से कुछ ऊपर एक  ड्यूल हैं व एक ड्यूल आकृति  शीर्षफलक /abacus  से नीचे है वास्तव में सबसे उप्पर का पत्थर भी कुछ कुछ ड्यूल नुमा  ही है।   हिमालयी   पत्थर कटान 'ढुंगकटणौ   ब्यूंत ' तकनीक का ही कमाल है कि दो स्तम्भ की गोलाई नीचे से ऊपर तक तकरीबन एक समान है।  किनारे का एक स्तम्भ दो ड्यूल के मध्य चौकोर आकृति का है। 
  स्तम्भों से बने ख्वाळ  में लकड़ी की संरचना थी जो द्वार भी हो सकता  है अर्द्ध  ढकनी भी हो सकती है।  तल मंजिल में बरामदे के अंदर आग जगाने की मेहराब पाषाण अंगेठी या ढुंग बड़  (पत्थर की  छोटी आलमारी ) से पता चलता है की भवन में लकड़ी के काम में भी उच्च स्तर की नक्कासी हुयी होगी। 
मकान के तल मंजिल के किनारे की दीवारों के या पौ  चौंतरा /  नींव  के चौंतरा (foundation plateform )  के पत्थर भी  हिमालयी ' 'ढुंगकटणो  ब्यूंत ' तकनीक  से  काटे गए हैं  व हिमालयी  ' 'पगार लगाणौ ब्यूंत ' तकनीक अनुसार  पत्थरों की चिनाई  हुयी है। 
  बरफू (जोहर घाटी , पिथौरागढ़ ) के ध्वंस पाषाण मकान   में पत्थर की कटाई ज्यामिति कटाई ही हुयी है व कहीं भी प्राकृतिक या मानवीय अलंकरण नहीं दिखे हैं।   
बरफू (जोहर घाटी , पिथौरागढ़ ) के ध्वंस पाषाण मकान से सिद्ध होता है कि इस गाँव में  'ढुंगकटणो  ब्यूंत व  'पगार लगाणौ ब्यूंत ' तकनीक  उच्च स्तर की थी व कलाकार दोनों शैली के अभ्यस्त कलाकार थे।    ढुंग कटण  वळ  व 'पगार चिणन वळ'   कलाकार   जौहर घाटी के ही थे इसमें शक नहीं होना चाहिए। 
सूचना व फोटो आभार : शुभम मानसिंगका  (इंटरनेट )
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 कैलाश यात्रा मार्ग   पिथोरागढ़  के मकानों में  पत्थर पर   कला युक्त  नक्कासी ;  धारचूला  पिथोरागढ़  के मकानों में  पत्थर पर   कला युक्त  नक्कासी ;  डीडीहाट   पिथोरागढ़  के मकानों में    पत्थर पर   कला युक्त  नक्कासी ;   गोंगोलीहाट  पिथोरागढ़  के मकानों में    पत्थर पर   कला युक्त  नक्कासी ;  बेरीनाग  पिथोरागढ़  के मकानों में    पत्थर पर   कला युक्त  नक्कासी;  House wood art in Pithoragarh

Bhishma Kukreti

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जाजार (पिथौरागढ़  )  में  स्व . मोहन  सिंह दसौनी के मकान  (बाखली भाग ) में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   -  178
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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जाजार   पिथौरागढ़ के पाताल भुवनेश्वर के निकट बेरीनाग ब्लॉक  का महत्वपूर्ण  गांव है।   राजेंद्र रावल ने  जाजार  गाँव से तीन चार बाखलियों की सूचना दी है।  प्रस्तुत  स्व मोहन सिंह दसौनी  का तिपुर भवन    (तल मंजिल + 2  मंजिल ) वास्तव में  बाखली  शैली का ही भवन है किन्तु   भवन के दूसरे  भाग  का आधुनिकीकरण से यह भाग पूरा बाखली नहीं रह गया है।   भवन तल मंजिल व दो ऊपरी मंजिल का है व दुघर /दुखंड शैली का है।  दसौनी के भवन में तल मंजिल में काष्ठ कला या  काष्ठ अलंकरण  संबंधी  दर्शाने के लिए  कोई विशेष काष्ठ   भाग नहीं है।   काष्ठ  कला या नक्कासी समझने हेतु पहली मंजिल व दूसरी मंजिल पर ही ध्यान देना आवश्यक है।
जाजार  के मोहन सिंह दसौनी के भवन के पहली मंजिल  में एक कमरे के दरवाजों व  दो खिड़कियों में ज्यामितीय कटान  के अतिरिक्त विशेष कुछ उल्लेखनीय कला नहीं मिलती है।  पहली मंजिल में  काष्ठ  कला की विवेचना हेतु झरोखे पर ध्यान देना आवश्यक है।  स्व .  मोहन सिंह दसौनी के भवन के पहली मंजिल पर स्थित  झरोखा /छाज कुमाऊं के अन्य बाखलियों के झरोखे /  छाज के सामान   ही है।  इस झरोखे/ छाज  में दो  अंडाकार ढुढयार (झरोखे ) हैं व  तीन तीन लघु स्तम्भों   से मिलकर तीन स्तम्भ हैं।  यह शैली लगभग कुमाऊं के प्रत्येक बाखली में   सामान्य    शैली है।   प्रत्येक लघु स्तम्भ  के आधार में  अधोगामी पद्म  पुष्प है फिर ड्यूल  है उसक ेऊपर सीधा कमल दल है व उसके ऊपर से स्तम्भ  सीधे ऊपर जाकर मुरिन्ड /मठिंड / शीर्ष  के तल /layer  बन जाते हैं।   छाज के दोनों दरवाजों के  मध्य खरोखा है जिसमे मेहराब कटान हुआ है। 
मोहन सिंह दसौनी  के बाखली भवन के  दूसरे मंजिल में  दो बड़े झरोखे /छाज व दो छोटे झरोखे /छाज हैं जो पहली मंजिल के झरोखे की  लगभग  प्रतिलिपियाँ ही हैं केवल आकार का अंतर् है। ऊपरी मंजिल के छाजों में डी दरवाजे नहीं है व तीन स्तम्भों की जगह दो ही स्तम्भ है। 
  निष्कर्ष निकलता है कि जाजार (बेरीनाग , पिथौरागढ़ ) के बाखली भाग में ज्यामितीय , प्राकृतिक (कमल दल आदि ) अलंकरण हुआ है और इस लेखक को  मानवीय (figurative   ornamentation  ) नहीं देखने को मिला।  भवन के तल मंजिल से शुरू होने वाली व पहली मंजिल में  समाप्त  होने वाली खोली भी  पत्रों से भर दी गयी है अतः  मानवीय अलंकरण के चिन्ह भी मिट गए हैं।  (खोली में दैव  प्रतीक होता ही है ) .   
सूचना व फोटो आभार : राजेंद्र रावल , जाजार
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 कैलाश यात्रा मार्ग   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;  धारचूला  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;  डीडीहाट   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;   गोंगोलीहाट  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;  बेरीनाग  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी;  House wood art in Pithoragarh

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लाखामंडल  (देहरादून ) शिव मंदिर व  गढ़वाल में  तिबारी काष्ठ  सिंगाड़  कला की लगुली (link )

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाली , कोटि बनाल , खोली , मोरी    ) में  काष्ठ अंकन लोक कला  अलंकरण, नक्कासी    -  164
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Dehradun , Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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मंदिर में पाषाण या काष्ठ कला, अलंकरण  इस श्रृंखला का कोई अंग नहीं है।  फिर भी तिबारी, बाखली , निमदारी , कोटि बलान , खोली , मोरियों में  काष्ठ कला  शैली व अलंकरण शैली का उद्भव , प्रचार -प्रसार हेतु प्राचीन मंदरों की कला को समझना भी आवश्यक हो जाता है (फिर भी  यह  लेखक  मंदिरों में नहीं उलझना चाहता  है व अपने को  केवल मकानों तक ही सीमित रखना चाहता है ) ।   
जौनसार , रवाईं की गृह काष्ठ कला ने सभी कला विदों को आकर्षित किया है और  लाखामंडल  के मंदिर में  संभवतया सत्रहवीं सदी के जीर्णोद्धार हुआ व  लकड़ी के काम में बदलाव आया हो।  शिव मंदिर  जैसे  वास्तु  से गढ़वाल में तिबारियों में स्तम्भ के  कड़ी/link  मिल जाते हैं व कई परतें आगे जाकर खोलने में सक्षम होगा। 
  लाखामंडल के पांचवे छठे  सदी के नागर शैली का शिव मंदिर जिसका जीर्णोद्धार सम्भवतया 17   वीं सदी में हुआ होगा में काष्ठ  कला समझने हेतु निम्न केंद्रों पर टक्क लगाना आवश्यक है - तल मंजिल में  स्तम्भ व मेहराब या तोरण , पहली मंजिल में स्तम्भ व तीसरी मंजिल में स्तम्भों में ला।  मंदिर की मंजिल व जौनसारी /रवाईं  के कोटि बलान  शैली में ही निर्मित  दिख रहे हैं। 
  लाखामंडल के   इस मंदिर (    मंदिर  में  सम्भवतया  400  साल पुराना  लकड़ी का काम हुआ होगा ) के शिव मंदिर के तल मंजिल में  दो पत्थर स्तम्भ हैं व तीन काष्ठ स्तम्भ (लखड़ का सिंगाड़ ) हैं व तीनों सिंगाड़  दो प्रवेश द्वार /ख्वाळ  बनाते हैं।   स्तम्भ के आधार में कुम्भी उलटे कमल से बना है , इसके ऊपर ड्यूल है , उसके  ऊपर सीधा कमल दल है व उसके ऊपर स्तम्भ लौकी की शक्ल अख्तियार करता है व जब स्तम्भ की सबसे कम मोटाई होती है वहीं से स्तम्भ थांत  (cricket  bat   blade  type  ) की शक्ल परिवर्तित कर लेता है।  यहीं से स्तम्भ से  मेहराब का  अर्द्ध  चाप निकलता है जो दूसरे स्तम्भ के अर्ध चाप से पूर्ण मेहराब बना लेता है।
मेहराब  द्विजा (ओगी  ogee )  शैली में निर्मित हुआ है। 
 तल मंजिल व पहली मंजिल के  संधि भाग मोटी  कड़ी  से निर्मित है है। 
पहली मंजिल में सामने (नदी की ओर )  पांच स्तम्भ हैं व  अगल बगल में एक एक स्तम्भ हैं याने   सात  स्तम्भ पहली मंजिल पर हैं।  सभी स्तम्भ तल मंजिलों के स्तम्भों से हू बहू मिलते हैं।  पहली मंजिल के छत से एक पट्टी नीचे लटकी है जिस पर झालर लगे हैं। यहीं पट्टिका के केंद्र या  छत के मुण्डीर / मूंड नीचे   सूर्य नुमा देव प्रतीक लगा है।  पट्टिका पर सर्पिल  आकृति की लता अंकन हुआ है। 
 दुसरे मंजिल में एक बुर्ज नुमा मंदिर शीर्ष आकृति है जिसमे चार काष्ठ स्तम्भ लगे हैं।  तीसरे मंजिल के मंदिर शीर्ष में भी  छह लकड़ी के सिंगाड़ लगे हैं जो  शैली व कला दृष्टि से तल मंजिल के सिंगाड़ों /स्तम्भों का ही रूप हैं।
   चूँकि इस लेखक का उद्देश्य मंदिर काष्ठ  कला नहीं है अपितु  मंदिरों में प्रयुक्त  स्तम्भों में रूचि थी।  यदि  पांचवीं सदी में निर्मित मंदिर का  जीर्णोद्धार सत्रहवीं सदी के आस पास हुआ  या 18  सदी में भी हुआ तो भी  कहा जा सकता है बल गढ़वाली -कुमाउँनी  ,यहां तक कि  नेपाल सीमा के धारचुला  क्षत्र के भवन स्तम्भ शैली में पिछले तीन - चार सौ सालों में कोई अंतर नहीं आया है।  और यदि मंदिर में कायस्थ कार्य ब्रिटिश कल में हुआ है तो भी यह दर्शाता है कि  तिबारी स्तम्भ मामले में यमुना के पूर्वी भाग व काली नदी के पश्चमी भाग में सर्वत्र स्तम्भों में कला , शैली अलंकरण एक ही रहा है। 
*** मंदिर में जीर्णोद्धार लकड़ी का काम 400  साल पहले हुआ होगा केवल अनुमान है, सत्यता से दूर हो सकता है । 
फोटो आभार :  पंकज असुन्दी , सूचना अरुणा  धीर
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देहरादून , गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार, बाखली , कोटि बनाल  मकानों में काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी  श्रृंखला जारी रहगी
 Traditional House Wood Carving of Dehradun Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  will be continued -
  House Wood Carving Ornamentation from Vikasnagar Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from Doiwala Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from Rishikesh  Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from  Chakrata Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from  Kalsi Dehradun ;  चकराता , देहरादून में मकान में लकड़ी पर नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी ;  डोईवाला देहरादून में मकान में लकड़ी पर नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी ;  विकासनगर देहरादून में मकान में लकड़ी पर नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी ; कालसी देहरादून में मकान में लकड़ी पर नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी ;  ऋषिकेश देहरादून में मकान में लकड़ी पर नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी   

Bhishma Kukreti

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 हरसिल में   विल्सन   का  1843 -44  में निर्मित  विल्सन कॉटेज में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , लकड़ी पर नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , कोटि बनाल )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 165
 संकलन - भीष्म कुकरेती     

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हरसिल का राजा या पहाड़ी विलसन  या फ्रेड्रिक  विलसन का गढ़वाल इतिहास में टिहरी राजा से अधिक चर्चित हुआ था।   विलसन   सन 1830  से पहले ब्रिटिश सेना में था व बाद में  वह  रुग्ण हुआ  या कुछ कहते हैं कि वह  ईस्ट इण्डिया कम्पनी सेना का  भगौड़ा था।  स्वास्थ्य सुधार हेतु विलसन  को  मसूरी भेजा गया था जहाँ उसे हिमालय इतना पसंद आया कि  विलसन  गढ़वाल का हो गया।  विलसन  शिकारी बन गया व जंगली जानवरों  के अंग बेचकर विलसन  ने खूब  धन कमाया।  1845  में विलसन  ने हरसिल में रहना आरम्भ कर दिया उसने स्थानीय लोगों से घनिस्टता स्थापित   की व जंगली जानवरों के अंग का व्यापर में वृद्धि करता गया।  विलसन  ने हरसिल में सेव के बगीचे भी लगवाए व स्थानीय परिवारों को भी सेव बागवानी हेतु प्रोत्साहित किया।   विलसन  ने संग्रामी शिल्पकारण  से विवाह  किया  .  जंगली जानवरों के अंग प्रत्यंग से कमाए धन से विलसन  ने  1843 -1844  में विलसन फारेस्ट मैनसन   निर्मित किया जिस घर की दीवारें व कमरों के फर्श लकड़ी के स्लीपरों के थे।  (डबराल )  .  बाद में टिहरी रियासत के वनों के ठेके लेकर विलसन  ने अकूत धन कमाया।    विलसन  कॉटेज टिहरी  देश के इतिहास हेतु  तो महवत्वपूर्ण है ही  अपितु  पहाड़ों  में नए  वास्तु कला  के जन्म हेतु भी महत्वपूर्ण है। 
अनुमान किया  जाता है कि  गढ़वाल में निमदारी निर्माण  शैली संभवतया 1843 -44  में निर्मित विलसन  कॉटेज के      प्रभाव से ही जन्मी।  कुमाऊं  में  ब्रिटिशरों या अंग्रेजों के जंगलेदार मकान 1890  के बाद ही दीखते हैं व इस श्रृंखला में भी अल्मोड़ा व चम्पावत जिले  के लगभग 1900 के  निर्मित निमदारियों का वर्णन किया गया है।  गढ़वाल में हरसिल में ही इस प्रकार की  निमदारी 1843  में निर्मित हो गयी थी।  हो सकता है  पश्चिमी गढ़वाल में विलसन  कॉटेज   शैली का प्रभाव  पड़ा होगा व पूर्वी गढ़वाल व कुमाऊं  पर अन्य अंग्रेजों के भवनों से निमदारी भवन शैली का प्रभाव पड़ा होगा। 
यदि हम जौनसार , नेलंग  घाटी , टिहरी  गढ़वाल  उदाहरण राजमिस्त्री नारायण दत्त भट्ट  का मकान ) के  व   चमोली , रुद्रप्रयाग व कुमाऊँ के  १८९० से पहले के मकानों का ध्यान करेंगे तो पता चलेगा कि  इससे पहले  मकानों में छज्जा नमात्र का ही होता था या होता ही न था।   विलसन  की निमदारी के बाद ही  शायद गढ़वाल में  मकानों में पहली मंजिल में छज्जा  व निम दारी शैली का प्रवेश हुआ होगा।   पौड़ी गढ़वाल में इड़ा , सुकई  व चमोली गढ़वाल में  किमोठ   में  1890  के पहले बताये  गए मकानों में भी छज्जा  नहीं पाए गए हैं। 
विलसन  कॉटेज  फरवरी 1997  में आग में   भस्म    हो गया था व प्रस्तुत फोटो 1983  में ली गयी थी। 
 प्रस्तुत विलसन  कॉटेज को गढ़वाली शब्दावली /ग्लोसरी  हिसाब से भव्य निम दारी ही कहा जायेगा।   विलसन  कॉटेज दुपुर शैली में है व छत टिन  की है व  यॉर्कशायर या आयरिश शैली में छत बनी है।  तल मंजिल में लम्बा बरामदा है जिसके अंदर कमरे हैं।  तलमंजील के बरामदे के सभी स्तम्भों  के ऊपर पहली मंजिल में  लकड़ी का छज्जा /बरामदा सजा था व जिस पर जंगला सजा था।   
 
  तल मंजिल में  बरामदे में बड़ा प्रवेश द्वार है जिसके बाह्य किनारे पर  (चौक स सटकर )  एक तरफ एक स्तम्भ व दूसरी तरफ दो  काष्ठ स्तम्भ  थे  . बरामदे के बाकी दोनों किनारों पर    एक एक भाग में दो दो स्तम्भ थे।   विलसन  कॉटेज के तल मंजिल के स्तम्भ  कला में लगभग  जौनसार से लेकर अन्य गढ़वाल क्षेत्र के काष्ठ  स्तम्भों से मेल खा रहे हैं।  याने विलसन  ने स्थानीय कला स्वीकार की व  स्थानीय शिल्पकारों ने ही विलसन  कॉटेज के काष्ठ स्तम्भों का निर्माण किया।   स्तम्भ ऊपर पहली मंजिल के फर्श की आधारिक कड़ी से मिल जाते हैं। 
ऊपरी मंजिल  का फर्श  लकड़ी की कड़ियों या स्लीपरों से ही बना है।   पहली मंजिल की निमदारी पर 12 स्तम्भ हैं जो पहली मंजिल के फर्श के आधारिक कड़ी से उठकर ऊपर की कड़ी से मिल जाते हैं।   परएक स्तम्भ का आधार थांत  (criket  bat blade ) आकर  का है व कुछ ऊंचाई से मोटई कम होती है।  इसी ऊंचाई पर ऊपरी रेलिंग भी है जिस पर आयत में X  से भव्य जंगल ा बना था।  जंगल व बाकि सब जगह ज्यामितीय कला का प्रदर्शन ही था। 
   निष्कर्ष निकलता है कि  1843 -44  में       निर्मित विलसन  कॉटेज में काष्ठ   कला के हिसाब से यॉर्कशायर -आयरिश शैली व गढ़वाल शैली का समिश्रण हुआ है।  तल मंजिल के स्तम्भ गढ़वाली शैली व कलाकृति के हियँ बाकि लकड़ी का काम ब्रिटिश शैली का है।   बा तक के सर्वेक्षण में  जिन भी  निंदारियों की जानकारी मिली है वह 1900  बाद के ही हैं।  तो कहा जा सकता है विलसन  कॉटेज ही   गढ़वाल  की पहली निमदारी मानी जायेगी . यहां  तक  कि  कुमाऊं भाग में भी अब तक इस लेखक को किसी भी निमदारी नुमा भवन की सूचना नहीं मिली जो 1900  से पहले निर्मित हो तो कह सकते हैं कि  विलसन  कॉटेज उत्तराखंड  की पहली निम्दारी होगी।  और यह  कहना अतिशयोक्तिपूर्ण न होगा कि  गढ़वाल में निमदारी भवन शैली प्रवेश में विलसन कॉटेज की निमदारी का हाथ अवश्य है। 
 
  सूचना - शिव प्रसाद डबराल , व मनोज इष्टवाल , उत्तराखंड टूरिज्म सूचना विभाग
फोटो - स्वामी उपेंद्र व उत्तराखंड टूरिज्म विभाग
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 Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of   Bhatwari , Uttarkashi Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Rajgarhi ,Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Dunda, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Chiniysaur, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , भटवाडी मकान लकड़ी नक्कासी ,  रायगढी    उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , चिनियासौड़  उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी   श्रृंखला जारी रहेगी

Bhishma Kukreti

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बगोरी (   , उत्तरकाशी ) की  एक निमदारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन, नक्कासी
बगोरी (   , उत्तरकाशी ) में भवन काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी श्रृंखला -5
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , कोटि बनाल )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 166
 संकलन - भीष्म कुकरेती     
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    प्राप्त सूचना व फोटो अनुसार बगोरी  में प्रस्तुत निमदारी वास्तव में जीर्णोधार हो रहा है या जीर्णोद्धार हो चूका है I बगोरी  का भवन संख्या 5  दुपुर है व बगोरी प्रथा की तरह तल मंजिल  संभवतया  गौशाला या भंडार हेतु उपयोग होता रहा है जबकि अब तल मंजिल में दुकाने खुलने के संकेत हैं I तल मंजिल में लकड़ी का काम केवल दरवाजों पर हुआ  है एवं दरवाजे पटिलों या तख्तों से निर्मित हुए हैं . तख्तों पर किसी  प्रकार की उल्लेखनीय या साधारण नक्कासी के दर्शन नही होते हैं I  बगोरी (   , उत्तरकाशी )  के भवन संख्या 5 के तल   मंजिल में बरामदे को ढका नही ग्या है व खुला है I तल मंजिल से उपर पहली मंजिल में जाने हेतु बहर से सीढ़ी है जो परम्परागत शैली  (आन्तरिक द्वार ) के मुकाबले अटपटा लगता है I
बगोरी (   , उत्तरकाशी ) के भवन संख्या 5 की निमदारी पहले मंजिल में स्थापित है I पहली मंजिल का फर्श लकड़ी का ही है व बाहर छज्जा  भी काष्ठ कड़ीयों से निर्मित हुयी है I बरामदा या छज्जा /बालकोनी काफी लम्बा है I
बगोरी (   , उत्तरकाशी )  के भवन संख्या 5  के पहली मंजिल के लम्बे छज्जे पर निमदारी कसी गयी है I लम्बे छज्जे पर आठ से अधिक स्तम्भ दूरी पर स्थापित हैं व स्तम्भ मध्य ख्वाळ बड़े आकार के हैं I स्तम्भ छज्जा आधार से उठकर उपर मुरिंडकी कड़ी से मिल जाते हैं Iमुरिंड की कड़ी छत आधार पट्टिका के नीचे है I छत टिन की है जो भवन के जीर्णोधार की सूचना ही देता हैI छजे पर स्थापित स्तम्भ चौकोर व सपाट हैं और उन पर कोई कलाकारी अंकित नही हुयी है I
  छज्जे पर ख्वाळ में दो फिट या ढाई फिट की ऊँचाई तक जंगला कसा गया है I  .ख्वाळ पर जंगला  सात लकड़ी के तख्तों से निर्मित है व जंगला जंगला न लगकर लकड़ी की आधी दीवार लग रही है I लकड़ी के तख्तों का यह जंगला भवन के दोनों ओर कसा गया है I  तख्तों पर कोई कलाकृति दृष्टिगोचर नही होती है I
बाकी बगोरी (   , उत्तरकाशी ) के भवन संख्या 5 में  प्रयोग लकड़ी के किसी भी भाग में कोई कलाकृति नही हुयी है I
निष्कर्ष निकलता है कि बगोरी (   , उत्तरकाशी ) के भवन संख्या 5 में केवल ज्यामितीय कटान हुआ है व  अन्य  कोई अलंकरण नही हुआ है I
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 Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of   Bhatwari , Uttarkashi Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Rajgarhi ,Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Dunda, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Chiniysaur, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , भटवाडी मकान लकड़ी नक्कासी ,  रायगढी    उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , चिनियासौड़  उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी   श्रृंखला जारी रहेगी


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केदारनाथ -बद्रीनाथ   ट्रैक  सड़क पर  कांचुला  खरक के   रेस्ट हाउस  में काष्ठ   कला, अलंकरण  अंकन , लकड़ी पर नक्कासी

ढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी   - 169

(अलंकरण व कला पर केंद्रित ) 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  चमोली गढ़वाल के  गोपेश्वर  मंडल में कांचुला खरक  क्षेत्र  अपने वन्य जीवियों   विश्व प्रसिद्ध  क्षेत्र है।  केदनरनाथ -बद्रीनाथ ट्रेक ( साहसिक आनंद हेतु पैदल सड़क )  में कांचुला क्षेत्र में यात्रियों हेतु एक रेस्ट  हाउस  भी यहाँ स्थापित है जिसकी  फोटो व सूचना किशोर रावत  से साभार मिली।  इस भवन की मुख्य विशेषता है कि  छत को छोड़ बाकी हिस्से  का अधिकतर हिस्सा लकड़ी से निर्मित है व बहुत ही आकर्षक है।   मकान को देखकर बरबस  ब्रिटिश जमाने में जंगलों के बीच  फारेस्ट गार्ड चौकी मकान की याद आ जाती है।  यह भवन ब्रिटिश शैली व गढ़वाली शैली का मिला जुला रूप है। 
मकान उबर (केवल तल मंजिल ) शैली का है व अंदर हॉल , बेड  रूम आधुनिक  सुविधाएँ हैं।  शौचालाय भी बाहर है व अभिनव शैली का है।  खम्बों में ज्यामितीय कटान  हुआ है और खड्डा -उभार शैली आकर्षण पैदा करने में सक्षम है।  बरामदे के आधार पर कटघरा /जंगल े है व दो रेलिंग के मध्य जंगले  हैं।
मकान के बाहर दो मुख्य चौकोर बरामदे हैं जिनकी घेराबंदी चार चार खड़े स्तम्भ करते हैं।  स्तम्भ सीधे सपाट  हैं तथा  खम्बों में ज्यामितीय कटान  हुआ है और खड्डा -उभार शैली आकर्षण पैदा करने में सक्षम है।  बरामदे के आधार पर कटघरा /जंगला  है व दो रेलिंग के मध्य जंगल हैं।  कमरों के दरवाजों में सिंगाड़ /फ्रेम  पर भी ज्यामितीय कला उपयोग हुआ है।  मकान को सबसे अधिक आकर्षक बनाने में दीवारों पर समानांतर (पड़े रूप में ) काष्ठ पट्टिकाों के उपयोग से हुआ है।  ये पट्टिकाएं ही रेस्ट  हॉउस  की सुंदरता का  विशेष कारण है।  छत के नीचे तिकोने स्थान  में भी खड़ी पट्टिकाओं का प्रयोग हुआ  है।  शौचालाय की दीवारों में भी पड़ी पट्टिकाओं का प्रयोग हुआ है।
मकान में प्राकृतिक व मानवीय अ लंकरण नहीं हुआ है केवल ज्यामितीय कटान से ही मकान को आकर्षक बना दिया व थका यात्री को भवन की  सुंदरता  देखकर ही राहत पंहुच जायेगी ।   ज्यामितीय कटान से भी  आकर्षक भवन निर्मित हो सकते हैं इसका उदाहरण है कांचुला के खरक  का यह रेस्ट हाउस।   भवन निर्माण में  'गढ़वाली लखड़ कटण ब्यूंत  ' तकनीक व 'गढ़वाली काठ चिरण  ब्यूंत ' तकनीक का ही उपयोग हुआ है।   

सूचना व फोटो आभार : किशोर रावत 

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी श्रुति     माध्यम से  मिलती है अत:  वस्तुस्थिति में  अंतर   हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , मोरी , खोली,  कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन , लकड़ी नक्कासी श्रंखला जारी   
   House Wood Carving Ornamentation from  Chamoli, Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation/ Art  from  Joshimath ,Chamoli garhwal , Uttarakhand ;  House Wood Carving Ornamentation from  Gairsain Chamoli garhwal , Uttarakhand ;     House Wood Carving Ornamentation from  Karnaprayag Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation from  Pokhari  Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   कर्णप्रयाग में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ;  गोपेश्वर में  भवन काष्ठ कला, नीति में भवन काष्ठ  कला, नक्कासी   ; जोशीमठ में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  , पोखरी -गैरसैण  में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  , केदारनाथ -बद्रीनाथ मार्ग में रेस्ट हाउस में काष्ठ कला , कांचुला खरक में रेस्ट हाउस में लकड़ी नक्कासी ,  House Wood Carving Ornamentation in rest house of Badrinath Kedarnath track ;  House Wood Carving Ornamentation in a rest house of Kachula Kharak

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   कोलसी (यमकेश्वर ) के  एक भवन की तिबारी में काष्ठ कला,  अलंकरण अंकन , नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , बखाई ,  खोली  ,   कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 179

 संकलन -भीष्म कुकरेती

कोलसी  , यमकेश्वर ब्लॉक में बड्यूण, ग्वाड़ी ,  कस्याळी , पहरीसार  के  निकटवर्ती महत्वपूर्ण गाँव है।  कोलसी  से भी कुछ तिबारियों व निमदारियों की सूचना मिलीं हैं विस्तृत सूचनाएं मिलने के बाद उन सभी पर एक एक कर चर्चा की  जाएगी। 
आज कोलसी  की एक तिबारी  में काष्ठ  कला पर चर्चा होगी।  तिबारी आम उदयपुर , ढांगू     की भांति  दुपुर , दुघर /दुखंड  मकान के पहली  मंजिल पर  स्थापित है।  तिबारी दो कमरों से बने बरामदे के बार काष्ठ स्तम्भों से निर्मित है।  कोलसि की  यह तिबारी  चार स्तम्भों से बनी है जो तीन ख्वाळ /खोली बनाते हैं।  तिबारी में तीन  नक्कासीयुक्त मेहराब भी है।
 प्रत्येक स्तम्भ पत्थर की देळी /दहलीज /thershold   के ऊपर  स्थापित हैं व किनारे के स्तम्भ दीवार से एक एक बेल बूटों से अंकित कड़ी के मार्फत जुड़े हैं।  स्तम्भ का आधार  पर एक पत्थर का  गोल डौळ है , फिर स्तम्भ का काष्ठ  आधार कुम्भी नुमा है जो  अधोगामी पद्म पुष्प दलों से निर्मित है।   उल्टे  कमल पुष्प के ुप्त एक ड्यूल (ring type wood plate ) है जिसके ऊपर सीधा खिला कमल फूल  है , यहां से स्तम्भ लौकीनुमा हो जाता है।  जहां पर स्तम्भ की सबसे कम गोलाई है वहां पर एक    उल्टा कमल फूल है फिर ड्यूल है व उसके ऊपर  सीधा खिला कमल फूल है।   सभी  नीचे व ऊपर के कमल पंखुड़ियों  के ऊपर  बेल बूटों  की नक्कासी हुयी है।  ऊपरी कमल दल में कुछ अलग किस्म का अंकन हुआ है।   जहां पर ऊपर कमल फूल है वहां  से स्तम्भ दो भागों में बंट जाता  है।  सीधा भाग थांत  (crikcet bat blade  जैसे  ) शक्ल  अख्तियार करता है व ऊपर शीर्ष /मुरिन्ड कड़ी से मिल जाता है।  थांत के दोनों तरफ  नक्कासी युक्त लघु स्तम्भ हैं।  जहां से स्तम्भ थांत रूप धारण करता है वहीँ से कई परतों वालाे  मेहराब की अर्ध चाप भी शुरू होती है।  मेहराब दो स्तम्भों के ऊपरी भाग  की मध्य में में स्थापित है।  मेहराब का कटान तिपत्ति (trefoli ) नुमा है।  मेहराब में  चार परते हैं व बाहर दो त्रिभुज हैं।  दोनों त्रिभुजों के किनारे  बहुदलीय पुष्प (लगभग सूरजमुखी जैसे )  अंकित है जिसके  बाहर चिड़िया अंकित है।
तिबारी के अंदर कम के मुरिन्ड में देव प्रतीक आकृति स्थापित है।
 तिबारी का मुरिन्ड /मथिण्ड  चार  तहों (बारीक़ कड़ियों ) से निर्मित है व प्रत्येक कड़ी में प्राकृतिक अलंकरण अंकन हुआ है।
     निष्कर्ष निकलता है कि  यमकेश्वर  ब्लॉक में  कोलसी गाँव की इस प्रतिनिधि तिबारी में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरणों का अंकन हुआ है।  यमकेश्वर ब्लॉक के कोलसी की यह तिबारी भव्य थी में कोई  संशय नहीं होनी चाहिए। 
सूचना व फोटो आभार: जग प्रसिद्ध संस्कृति फोटोग्राफर  बिक्रम तिवारी
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , कोटि बनाल   ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   श्रृंखला
  यमकेशर गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;  ;लैंड्सडाउन  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;दुगड्डा  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ; धुमाकोट गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला ,   नक्कासी ;  पौड़ी गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;
  कोटद्वार , गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;  House Wood art in a Tibari in Kolsi , Ymakeshwar


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गंगोली हाट (पिथौरागढ़ ) में  गोपू बिष्ट परिवार  की  भव्य बाखली में काष्ठ कला अलंकरण अंकन , नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला,  अलंकरण,  लकड़ी नक्कासी   - 180 

 संकलन - भीष्म कुकरेती

-   उत्तराखंड में पारम्परिक भवन   काष्ठ  कला गंगोलीहाट व आस पास पाताल  भुवनेश्वर क्षेत्र से कई भव्य भवनों , बाखलियों की  सूचना व फोटो मिली हैं।  ऐसी ही गंगोलीहाट  के एक  भव्य मकान , बाखली की सूचना फोटो सहित मिली है।  बाखली आकार में व कला में कुछ विशेष है इसमें दो राय नहीं होनी चाहिए।   
बिष्ट परिवार  की तिपुर  (तल +2  मंजिल )  बाखली निर्माण शैली बिलकुल  कुमाऊं की  विशिष्ठ भवन  निर्माण शैली बाखली अनुसार ही है।   गोपू बिष्ट  की बाखली में काष्ठ कला विवेचना हेतु  निम्न बिंदुओं पर टक्क लगानी आवश्यक है -
1 - गोपू  बिष्ट परिवार की बाखली में तल मंजिल में  भंडारों या गौशाला के कमरों के द्वारों पर लकड़ी नक्कासी  -
  गंगोलीहाट के  गोपू बिष्ट  परिवार की बाखली में  तल मंजिल में  चार भण्डारो में बड़े बड़े द्वार हैं और  सपाट हैं अर्थात कोई विशेष काष्ठ अंकन नहीं हुआ  है।
2 -   गोपू  बिष्ट परिवार की बाखली में  लघु झरोखे /खिड़की /मोरी /छाज में काष्ठ  कला व अलंकरण प्रायोजन -
  गंगोलीहाट के  गोपू बिष्ट  परिवार की बाखली में    कुल 12 लघु छाज /झरोखे /मोरी /खिड़की हैं व  सभी लघु  छाजों  का रूप आकार वा काष्ठ अंकन एक  जैसा ही है। लघु   छाज    चौखट का है व स्तम्भों व शीर्षों की  कटाई  ज्यामितीय ढंग से हुयी है याने ज्यामितीय अलंकरण वाले सिंगाड़ /स्तम्भ , मुरिन्ड /शीर्ष  व दरवाजे हैं।   लघु छाज के  दरवाजे में  अंडाकार छेद / ढुढयार  है।  लघु छाजों   की मुख्य विशेषता है कि  छाज के ऊपर अर्धवृत आकृति निर्मित है जिसमे बेल बूटों  की आकृति अंकन आभास हो रहा है।  लकड़ी के अंकित अर्ध वृत्त के ऊपर पाषाण अर्ध वृत्त है।
3  - गोपू  बिष्ट परिवार की बाखली में  बड़े ऊँचे झरोखों /छाजों  में काष्ठ  कला , अलंकरण अंकन  , नक्कासी -
  गंगोलीहाट के  गोपू बिष्ट  परिवार की तिपुर बाखली के पहली मंजिल में    कुल  बड़े   चार छाज हैं व उनके ठीक ऊपर  ही चार बड़े छाज / झरोखे हैं याने पहली मंजिल के छाज का मुरिन्ड /सर /शीर्ष  दूसरी मंजिल के बड़े छाज का आधार भी है।  इस भव्य बाखली के बड़े छज्जों के दो झरोखे या द्वार हैं।   झरोखे के किनारे , दीवार इ लगे  मोठे स्तम्भ युग्म लघु स्तम्भ  से निर्मित हैं तो   दोनों झरोंखों के मध्य का मोटा स्तम्भ तिर्गट (तीन मिलकर ) लघु स्तम्भों से बने हैं।  लघु स्तम्भों के आधार में बारीकी से उल्टा कमल , ड्यूल व सीधा (उर्घ्वगामी ) कमल फूलों का अंकन है व फिर यहाँ से  स्तम्भ सीधे हो मुरिन्ड /शीर्ष  जाते हैं।  प्रत्येक स्तम्भ मुरिन्ड /सर /शीर्ष का एक तह /स्तर बनाता है।  झरोखों के नीचे एक एक आयात आकृति में  की काल्पनिक /प्राटीकात्मक या प्राकृतिक अलंकरण अंकित हुआ है व बारीकी से नक्कासी हुयी है।
 बाखली के ऊपरी मंजिल या दूसरे मंजिल के बड़े छज्जों में दो झरोखों के  मध्य स्तम्भों में ऊर्घ्वाकर कमल फूल से ऊपर शीर्ष/ मुरिन्ड तक  दैव आकृति अंकिं हुयी है। 
4 - गंगोलीहाट के  गोपू बिष्ट  परिवार की बाखली में  तल मंजिल से  ऊपर  पहली मंजिल तक  की दो खोलियों   (मुख्य प्रवेश द्वार में काष्ठ कला , काष्ठ अलंकरण अंकन , लकड़ी पर नक्कासी।
  गंगोलीहाट के  गोपू बिष्ट  परिवार की बाखली में    दो खोलियाँ  (ऊपर मजिल जाने हेतु मुख्य प्रवेश द्वार ) स्थापित हुयी हैं।  दोनों खोलियों  में  किनारों पर दो मुख्य स्तम्भ  हैं। प्रत्येक मुख्य   स्तम्भ  तिरगट  लघु स्तम्भों से मिलकर बना है व ऊपर  स्तम्भों की लकीरे ही  मुरिन्ड के तह  बनाते हैं जैसे बड़े  छाजों में है।  एक खोली के ऊपर अर्ध वृत्त है जैसे लघु  झरोखों के ऊपर है व इस काठ के अर्ध वृत्त में जाली व चौखट आकार अंकन हुआ है  . इस अर्ध वृत्त के ऊपर पाषाण अर्ध वृत्त यही। लकड़ी के अर्ध वृत्त में देव आकृति फिट है।  दूसरी खोली के मुरिन्ड ऊपर चौखटाकार की आकृतियां अंकित है जो ज्यामितीय कटान से सम्भव हुआ है।  यहाँ एक देव आकृति भी फिट हुयी है ।
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि गंगोलीहाट के  गोपू बिष्ट  परिवार की  भव्य व शानदार बाखली में  प्राकृतिक , ज्यामितीय ही नहीं  मानवीय  प्रतीकात्मक  अलंकरण अंकन हुआ है व नक्कासी  में  बारीकी व उत्कृष्टता साफ़ झलकती है।  निर्माण व कला दृष्टि से गंगोलीहाट के  गोपू बिष्ट  परिवार की बाखली  उत्कृष्ट वर्ग की बाखली है। 

सूचना व फोटो आभार : पंकज महर व गोपू बिष्ट
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 कैलाश यात्रा मार्ग   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;  धारचूला  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;  डीडीहाट   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;   गोंगोलीहाट  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;  बेरीनाग  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी;  House wood art in Pithoragarh

Bhishma Kukreti

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  बासुलीसेरा   (अल्मोड़ा ) में  नंदन सिंह बनेशी परिवार की  बाखली  में काष्ठ कला , काष्ठ अलंकरण अंकन , नक्कासी [/color]

कुमाऊँ , गढ़वाल, हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी पर नक्कासी   - 181
(काष्ठ कला व अलंकरण पर केंद्रित )
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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अल्मोड़ा जनपद का द्वारहाट क्षेत्र समृद्ध क्षेत्र माना जाता है और द्वारहाट क्षेत्र से कई बाखलियों , भवनों की सूचना मिली है जो द्वारहाट की समृद्ध द्योतक हैं।  इसी क्रम में बासुलीसेरा के नंदन सिंह बनेशी परिवार के बाखली नुमा  भवन की काष्ठ कला पर चर्चा होगी।  चूँकि फोटो भवन के एक ही भाग की मिली है तो इसे बाखली नुमा भवन नाम दिया है। 
भवन दुपुर (तल मंजिल +पहली मंजिल ) है व दुघर /दुखंड  (एक कमरा आगे व एक पीछे ) है।   बासुलीसेरा के नंदन सिंह बनेशी परिवार की बाखली  में काष्ठ कला मुख्यतया खोली व दो छाजों /झरोखों /मोरियों में ही मिलती है।  बाकी तल मंजिल  के दो कमरों व भवन की खिड़कियों में ज्यामितीय कटान के अतिरिक्त अन्य कला दृष्टिगोचर नहीं होती है।
   --- बासुलीसेरा   (अल्मोड़ा ) में  नंदन सिंह बनेशी परिवार के बाखली के खोली में काष्ठ कला -------
  बासुलीसेरा   (अल्मोड़ा ) में  नंदन सिंह बनेशी परिवार के बाखली की खोली भी आम कुमाऊंनी बाखलियों की खोलियों की तरह ही तल मंजिल से शुरू हो पहली मंजिल तक है।  खोली की देहरी .दहलीज /देळी तक जाने हेतु तीन पाषाण सीढ़ियां है।   खोली के दोनों ओर  के सिंगाड़ /स्तम्भ  चार चार लघुस्तम्भों (चरगट छुट सिंगाड़  ) को मिलाकर निर्मित है।  आठों के आठों लघु स्तम्भ एक ही शैली व कला से निर्मित है।    याने  आठों स्तम्भों में समान  कला  सजी  है।   लघु स्तम्भ  के आधार में  अधोगामी पद्म पुष्प दल कुम्भी बनता है व उसके ऊपर ड्यूल  है  जिसके ऊपर  उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल है जिसके ऊपर ड्यूल है फिर उलटा छोटा कमल  फूल है व उसके ऊपर सीधा कमल फूल है।  यहां से प्रत्येक लघु स्तम्भ  सीधाी  कड़ी रूप ले ऊपर मुरिन्ड  की तह बनाते हैं।  तल मुरिन्ड   (शीर्ष ) में भी मेहराब है तो मथि (ऊपरी ) मुरिन्ड में भी मेहराब है व  दोनों मेहराब तिपत्ति शक्ल की हैं।  मथि मुरिन्ड (ऊपरी सिर ) में मेहराब के मध्य चौखट नुमा  क्षेत्र में  चार गणपति , तीन अन्य देव की आकृतियां स्थापित हैं व दो जंजीर से बंधा हाथी की आकृतियां हैं।   मानवीय अलंकरण का  महीन उत्कीर्णन  का  उत्तम उदाहरण नंदन सिंह बनेशी की बाखली भवन में  मिलता है।  इसी तरह स्तम्भों का सीधी कड़ी में बदलना व उनसे मेहराब के अर्ध चाप निकलना भी बारीकी का काम दर्शाता है।
-------बासुलीसेरा   (अल्मोड़ा ) में  नंदन सिंह बनेशी परिवार के बाखली के झरोखों /छाजों में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन --------
  नंदन सिंह बनेशी की बाखली भाग में पहली मंजिल पर दो छाज /मोरी /झरोखे स्थापित हैं।   छाज के दोनों सिंगाड़ /स्तम्भ  तिरगट लघु स्तम्भों (तीन स्तम्भों का जोड़ ) को मिलाकर निर्मित हैं। तिरगट लघु स्तम्भ के आधार पर उल्टा कमल कुम्भी बनाता है फिर ड्यूल है फिर अधोगामी (उल्टा ) कमल फूल है उसके ऊपर ड्यूल है व फिर सुल्टा /उर्घ्वगामी कमल दल की आकृति उत्कीर्ण हुयी है व यहां से स्तम्भ सीकढ़ी कड़े बनता है फिर ऊपर  उलटे कमल दल , ड्यूल , कमल दल , सीधा कमल दल व फिर से स्तम्भ का कड़ी बनकर ऊपर मुरिन्ड /शीर्ष का स्तर /तह /layer  बन जाते हैं।  छहों  लघु स्तम्भों में एक जैसी ही काष्ठ  कला उत्कीर्ण हुयी है व सब कार्य बारीकी की नक्कासी का काम बखूबी से हुआ है।  नक्कासी में बारीकी
 के पुरे दर्शन होते हैं व शिल्प की  प्रशंसा हेतु प्रशंसा  शब्द अपने आप    मुंह पर आ जाते हैं। 
खिड़कियों के बड़े आकर से अनुमान लगता है कि मकान संभवतया 1950 के बाद निर्मित हुआ है अथवा  बाखली का जीर्णोंद्धार हुआ है। 
निष्कर्ष निकलता है कि  बासुलीसेरा   (अल्मोड़ा ) में  नंदन सिंह बनेशी परिवार के बाखली में  ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय (धार्मिक देव आकृतियां  व हाथी ) अलकनकरण अंकन हुआ है व महीन काम बखूबी हुआ है। 

सूचना व फोटो आभार : दीपक मेहता, द्वारहाट

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली, कोटि  बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   
अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; भिकयासैनण , अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ;  रानीखेत   अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; भनोली   अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; सोमेश्वर  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; द्वारहाट  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; चखुटिया  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ;  जैंती  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; सल्ट  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ;


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चम्पावत के भुतहा चर्च व मुक्ति कुटीर में काष्ठ  कला

चम्पावत के अति प्रसिद्ध भुतहा मकान मुक्ति कोठरी (एबोट चर्च ) में काष्ठ  कला अलंकरण, नक्कासी
  कुमाऊँ ,गढ़वाल,  हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   -  182
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 चम्पावत  (कुमाऊं ) का एबोट चर्च भारत में भुतहा  स्थ्लों में से एक स्थल रूप में प्रसिद्ध है।  1900  सन  में निर्मित एबोट  चर्च में  1915  के लगभग  एक चिकित्सालय भी था जो तब   एबोट  चिकित्सालय की गिनती भारत में मुख्य चिकित्सालयों में होती थी।  चर्च के बगल में स्थापित  एक कोठरी थी जहाँ  1920  के लगभग डाक्टर मॉरिश अपने विशेष मरीजों का इलाज करते थे व  डा मोरिस के बारे में कई तरह के भ्रामक लोक कथाएं आज भी चम्पावत में ही नहीं भारत की ट्रैवेल पत्रिकाओं में भी तैरती हैं  . चूँकि इस श्रृंखला का उद्देश्य  भवन में काष्ठ कलाओं तक सीमित है तो एबोट चर्च , डा मोरिस   आधारित  लोक कथाएं किसी अन्य लेखक हेतु छोड़ दिए गएँ  हैं। 
मुक्ति कोठरी का निर्माण 1900  व  1915     के मध्य है और यह चर्च   कुमाऊं में वास्तु शिल्प के इतिहास के लिए भी महत्वपूर्ण होगा कि कैसे ईसाई समज के भवनों ने कुमाऊं के पारम्परिक भवनों की वास्तु व काष्ठ कला को प्रभावित किया। 
  प्रस्तुत एबोट चर्च की जो भी जानकारी , सूचनाएँ व फोटो  प्राप्त हैं उससे साफ़ पता चलता है कि  चर्च भवन ब्रिटिश चर्च शैली में  निर्मित हुआ है और कहीं भी  मध्य कुमाऊं  के बाखली शैली व कला  व सीमा के गाँवों जैसे गर्ब्यांग , कुटी या दुग्तू गाँवों के भवन शैली व कला का प्रभाव नहीं मिलता है।  ब्रिटिश लोगों को भारत की भवन शैली पसंद नहीं आयी व शायद उन्हें भारतीय या पराधीन समाज की हर संस्कृति निम्न स्तर की ही लगी।  एबोट चर्च में लकड़ी का काम कमरों के स्तम्भों व शीर्ष में ही दीखता है या मुक्ति कुटी के  बाहर छपरिका के नीचे  छह खम्भे हैं व कड़ियाँ हैं जो ज्यामितीय कटान से बनी हैं , मुक्ति   कुटीर के दोनों  दरवाजों में वानस्पतिक काष्ठ  कला दर्शनीय है व मुक्ति कुटीर की  यह  काष्ठ कला कुमाऊं  काष्ठ  कला पर ब्रिटिश प्रभाव समझने में काम आएगा। 
 प्रत्येक दरवाजे में तीन आयताकार चौखट हैं व प्रत्येक चौखट में   हवा में तैरते जैसे चार गुब्बारों  अंकन हुआ है व गुब्बारों के अंदर बेल बूटे  आभासी अंकन हुआ है।  बाकी सारे चर्च में लकड़ी  के काम में ज्यामितीय  कला ही प्रदर्शित हुयी है। 
निष्कर्ष निकक्लता है कि  सन  1900  में निर्मित चर्च व 1900 -1915  के मध्य मने चिकित्सालय व मुक्ति कुटीर में लकड़ी पर ज्यामितीय कटान काम हुआ है किन्तु मुक्ति कुटीर के दरवाजों पर ही  प्राकृतिक अलंकरण अंकन हुआ है। 
सूचना व फोटो आभार : संजय शेफर्ड
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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