Author Topic: House Wood carving Art /Ornamentation Uttarakhand ; उत्तराखंड में भवन काष्ठ कल  (Read 38393 times)

Bhishma Kukreti

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मलारी  (चमोली गढवाल  ) के एक प्राचीन भवन (भग्न भवन )  में काष्ठ कला , अलंकरण, लकड़ी पर नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी   - 183
(अलंकरण व कला पर केंद्रित ) 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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मलारी क्षेत्र सीमावर्ती गाँव के कारण ही नही ऐतिहासिक नर मुंडों के कारण जग प्रसिद्ध  क्षेत्र है I  मलारी गाँव में आज दो तीन प्रकार के भवन पाए जाने लगे हैं I आधुनिक बव्हं जो  स्वतन्त्रता के आस पास निर्मित मकान और प्राचीन शैली में निर्मित भवन Iमलारी के सभी प्रकार की शैल्यों की विवेचना की जायेगी I
  आज मलारी गाँव के एक प्राचीन (अति प्राचीन नही )  शैली में निर्मित भवन की काष्ठ कला , काष्ठ अलंकरण उत्कीर्णन पर विचार किया जाएगा I बर्फ गिरने वाले क्षेत्र , अत शीत क्षेत्र में लकड़ी के मकानों की एक प्रकार इ शैली नेलंग , जाडंग , मुन्सियारी , गमसाली व मलारी  गाँवों में कुछ कुछ मिलती जुलती है I
 मलारी के इस भवन का नाम मलारी भवन संख्या 1 दिया गया है . मलारी भवन संख्या 1 दुपुर मकान है I इसी भवन से बिलकुल सटा दूसरा मकान है जो कुमाऊं में बाखलियों की  याद दिला देता है I मलारी भवन संख्या 1 के तल मंजिल के बरामदे को उपर लकड़ी के छज्जे से ढका ग्या  हैI तल मंजिल से उपर के बरामदे में जाने हेतु आंतरिक रास्ता है याने सीढ़ी से ही उपर जाया जा सकता हैI आगे आये छज्जे को  तल मंजिल में स्थापित चार गोल खम्बों  (बली) से उठाये रखा गया है I पहली मंजिल की छट के आधार में दो सतह हैं व दोनों लकड़ी से ही निर्मित हैं I पहली मंजिल के बरामदे को काष्ठ आकृति से ढका गया है और यह आकृति विशेष आकृति कहलाई जायेगी I पहली मंजिल के बरामदे को पहले 12 खम्बों /स्तम्भों से ढका गया है व फिर इन स्तम्भों के आधार पर दो लकड़ी के पटलों (चपटी पट्टी ) व सबसे  ऊपर  (मुरिंड कड़ी के नीचे) लकड़ी के एक पटले (चपटी पट्टी ) से ढका गय है व बीच में खोळ छेदिका निर्मित हुआ है जो बाहर झाँकने के काम आता है I
  आधार के निम्न स्तर के पटले पर हर खोह /ख्वळ में सुंदर अलग अलग काष्ठकला के  दर्शन होते हैं याने आधारिक पटले में 11प्रकार की कला उत्कीर्ण हुयी है .
  दूसरे मकान से चिपकी तरफ से पहला ख्वाळ के पटले में कला अंकन -  छाया चित्र में कुछ भी पता नही चल रहा है पर यह निश्चित है कि मानवीय  या  प्राकृतिक  अलंकरण  उत्कीर्ण हुआ है I 
2सरे ख्वाळके पटले में गोल फूल या फर्न पत्ती नुमा कला आकृति के चिन्ह दिखाई दे  रहे हैं I
3सरे ख्वळ के पटले पर गोल फूल ,  सर्पिल , गुंथी चोटी की आक्रति दिख रही है व मध्य में जैसे चिड़िया की चोंच हो के चिन्ह दिख रहे हैं .
4थे व पांचवें ख्वळ के पटलों में भी आक्रति मिट गयी हैं I
6ठे  ख्वळ के पटले  में बड़ा गोल फूल व एक चिड़िया व एक जानवर की आकृति अंकन का आभास हो रहा हैI 
7वें ख्वाळके पटले पर मानव आकृति और सम्भवतया कोई मिथकीय आकृति अंकित हुयी दिख रही है I
8वें ख्वाळ के पटले पर भी कोई पुराण /मिथकीय आकृति लग रही है जैसे कोई देव हो जिसके हजारों हाथ हों या देव से किरण पुंज बिखर रहे हों  I अंकन में आभास अलंकार लग रहा है I
9वें ख्वाळ के पटले में नीचे हाथी उत्कीर्ण (खुदाई ) हुआ है  व उपर एक मानव हनुमान सुमेरु पर्वत उठाये लग रहा है व दूसरी आकृति ऐसे लग रही जैसे शिवजी के हाथ में डमरू हो I
 10 वें ख्वाळ के पटले में  पूजा करते समय चौकी में  जो नव ग्रह का प्रतीक रचा जाता है वाही आकृति दिख रही है I
11 वीं ख्वाळ के पटले पर  कला अंकन सर्वथा अस्पष्ट है  .
भवन के कड़ीयों , खम्बों, तल मंजिल के कमरे के दरवाजों  आदि पर ज्यामितीय कटान के अतिरिक्त कोई विशेष कला अंकन नही दीखता है .
  मलारी भवन संख्या 1 को अध्ययन के पश्चात  कहा जा सकता है कि मलारी के भवन में लकड़ी प्रयग शैली में शीतप्रदेशों  निलंग –जाडंग घाटी;  जौनसार; मुन्सियारी, गमशाली आदि जैसे हैं या कई मामलों में समानता है विशेषत: पहली मंजिल में बरामदे को लकड़ी के पटलों से द्ज्कने की शैलीI
मलारी भवन संख्या 1 के पहली मंजल के पटलों में वानस्पतिक , मानवीय व ज्यामितीय व आध्यात्मिक /धार्मिक प्रतीक का अलंकरण बड़े सलीके से हुआ हैI
Copyright@ Bhishma Kukreti
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , मोरी , खोली,  कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन , लकड़ी नक्कासी श्रंखला जारी   
   House Wood Carving Ornamentation from  Chamoli, Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation/ Art  from  Joshimath ,Chamoli garhwal , Uttarakhand ;  House Wood Carving Ornamentation from  Gairsain Chamoli garhwal , Uttarakhand ;     House Wood Carving Ornamentation from  Karnaprayag Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation from  Pokhari  Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   कर्णप्रयाग में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ;  गपेश्वर में  भवन काष्ठ कला, नीति में भवन काष्ठ  कला, नक्कासी   ; जोशीमठ में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  , पोखरी -गैरसैण  में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ,

Bhishma Kukreti

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चमोला गाँव (कर्णप्रयाग ) में  देवी प्रसाद डोभाल की चौखंब्या - तिख्वळ्या- तोरणदार  तिबारी व खोली में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी

   House Wood Carving Ornamentation from  Chamola village of Chamoli garhwal
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी   - 184
(अलंकरण व कला पर केंद्रित) 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 चमोला गाँव चमोली गढ़वाल का महत्वपूर्ण गाँव है व  समृद्ध गाँवों में गिनती थी।  चमोला (कर्णप्रयाग ) से कुछेक तिबारियों की सूचना मिली है जिसके बारे में अगले खंडों में चर्चा होगी।      आज चमोला गांव के देवी प्रसाद डोभाल परिवार की लगभग 100 वर्ष पुरानी तिबारी व खोली में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , लकड़ी में नक्कासी पर चर्चा  होगी।
चमोला में देवी प्रसाद डोभाल  परिवार का मकान दुपुर व  , दुखंड / दुघर/तिभित्या  है  .  मकान में तिबारी पहली मंजिल में स्थापित है व ऐसा लगता है मकान के तल मंजिल में भी में तिबारी संरचना शुरुवाती दिनों में  थी क्योंकि तिबारी के मुरिन्ड आकृति /संरचना अभी तक ज्यों की त्यों है। 
   - तल मंजिल में खोली में काष्ठ कला , लकड़ी पर नक्कासी -
कला व अलंकरण या नक्कासी  दृष्टि से चमोला में देवी प्रसाद डोभाल  परिवार  के मकान के तल मंजिल में खोली  में ही कला /अलंकरण  विवेचना लायक है।  खोली  के  दोनों ओर  के स्तम्भ कुमाऊं  की बाखलियों  की याद दिलाती हैं याने  गढ़वाल व  कुमाऊँ  दोनों क्षेत्रों में खोली के स्तम्भों में  संरचना शैली  व कला उत्कीर्णन  एक समान पायी गयी है।  यह एक यक्ष प्रश्न है कि यह शैली /कला  उत्तराखंड में कहाँ से पहले पहल आयी और इसका प्रसार किस लाइन /लगुली से हुआ।   चमोला में देवी प्रसाद डोभाल  परिवार की खोली में  एक एक ओर के स्तम्भ  छह लघु स्तम्भों या shaft या कड़ियों से मिलकर निर्मित हुए है। दीवार  से सटे लघु स्तम्भ पर  कुछ कुछ चूड़ी नुमा या गोलाई में कटे करेला जैसी आकृतियां अंकित हुयी है।  यह कड़ी ऊपर जाकर मुरिन्ड की एक तह बनाती है।  इस कड़ी /लघु स्तम्भ के बाद सपाट कड़ी है जो मुरिन्ड की तह बनते भी सपाट ही  रहती है। फिर इस लघु स्तम्भ या कड़ी के बाद  दो कड़ियाँ  (युग्म ) मिली हैं , एक कड़ी सीधी है व अंदर की ओर दूसरी कड़ी आधार पर थांत (क्रिकेट बैट का ब्लेड  जीएसए ) की आकृति में है व ऊपर थांत  के हत्थे जैसा आकृति लिए मुरिन्ड की तह  बनाता है। थांत  के हत्ते कड़ी में बेल -बूटे  अंकित हैं।   सबसे अंदर की कड़ी /लघु स्तम्भ से पहले वाली कड़ी के आधार में मानवीय जैसे हाथ , मुंडी , व अन्य आकृतियां अंकित हैं यह कड़ी ऊपर जाती है और आधार के बाद इस कड़ी में बेल बूटे अंकित है जो मुरिन्ड  की तह बनाते वक्त भी हैं।  मोरी के सत्मव्ह के सबसे अंदर वाले उप स्तम्भ /कड़ी गोल व सपाट हैं। 
अनुमान लगाने की आवश्यकता नहीं है कि  चमोला (कर्णप्रयाग )  में देवी प्रसाद डोभाल  परिवार के मकान की खोली के मुरिन्ड में देव आकृतियां फिट होंगीं .
  -चमोला  गांव में देवी प्रसाद डोभाल  परिवार     की तिबारी  में लकड़ी की नक्कासी -
  चमोला  गांव में देवी प्रसाद डोभाल  परिवार     की तिबारी  चौखंब्या - तिख्वळ्या- तोरणदार   याने चार स्तम्भों व तीन ख्वाळ  व मेहराब वाली तिबारी है ।  आम गढ़वाली तिबारी स्तम्भ जैसे ही   डोभाल परिवार की इस तिबारी  के स्तम्भ  देहरी के  डौळ के ऊपर टिके हैं।  प्रत्येक स्तम्भ के आधार में उल्टा कमल फूल है उसके ऊपर  ड्यूल है , ड्यूल के ऊपर सीधा खिला कमल फूल है व यहाँ से स्तम्भ की आकृति लौकी जैसे होने लगती है व सबसे कम मोटाई की जगह में उल्टा कमल फूल है जिसके ऊपर ड्यूल है व ड्यूल  के ऊपर सीधा कमल फूल है।  कमल फूल  के ऊपर एक चौकोर ड्यूल है व वहीं से स्तम्भ ऊपर की ओर बढ़ते हुए  चौड़े थांत  (क्रिकेट बैट ब्लेड आकृति ) की सजकल अख्तियार करता है व यहीं कमल दल के ऊपर से मेहराब की ार्ध चाप शुरू होती है जो दूसरे  स्तम्भ के अर्ध मंडल से मिलकर पूरा मेहराब बनाता है।  मेहराब का आंतरिक कटान  तिपत्तिनुमा है। 
स्तम्भ को दीवार से जोड़ने वाली लकड़ी की कड़ी पर कुदरती पेड़ लताओं की  नक्कासी हुयी है। 
  जहां पर स्तम्भ   थांत    स्वरूपी है वहां सभी स्तम्भों में देव आकृति खुदी हैं।  मेहराब  के ऊपर बाहर दोनों त्रिभुजों  के किनारे बहु दलीय पुष्प अंकित हैन  बीच में मेहराब के ऊपर पट्टिका में  देव आकृत्तियाँ , बीज मंत्र अंकित है जो तिबारी की विशेष विशेहता बन जाती है।  मेहराब के बाहरी त्रिभुजों में प्रकृति आकृति   अंकन हुआ है।  मुरिन्ड  की कड़ियों में बेल बूटे अंकित हैं।   
छत के काष्ठ आधार से कई शंकु लटके हैं। 
  निष्कर्ष निकलता है कि   चमोला  (कर्ण प्रयाग , चमोली )  गांव में देवी प्रसाद डोभाल  परिवार के मकान में जायमितीय कटान , प्राकृतिक अलंकरण अंकन व मानवीय  अलंकरण  अंकन हुआ है व भवन व तिबारी उच्च श्रेणी में रखा  जा सकता है। 

सूचना व फोटो आभार : द्वारिका प्रसाद चमोला

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:  वस्तुस्थिति में  अंतर   हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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Bhishma Kukreti

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  कैन्डूळ  (ढांगू ) में जुयाल  परिवार की तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण  अंकन , घर लकड़ी नक्कासी


Traditional House wood Carving Art of  Kaindul , Garhwal 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , खोली  , कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन,  नक्कासी  -  185
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  द्वारीखाल ब्लॉक में ढांगू पट्टी अंतर्गत , नयार नदी तीरे  कैन्डूळ   एक महत्वपूर्ण गाँव है।  लोक कथा है कि   सती सावित्री को   यमराज ने  कैन्डूळ  में ही उसका पति   जीवित कर लौटाया था।  इसीलिए   कैन्डूळ  में हर वर्ष मेला लगता है। 
   कैन्डूळ  में तिबारियां व निमदारियां  थीं किन्तु सम्भवतया ध्वस्त कर नए भवन बन गए हैँ .  रवि जुयाल से उनकी तिबारी की सूचना मिल पायी है।
जुयाल परिवार की तिबारी ढांगू या पड़ोसी गाँव  वरगडी (चर्चा हो चुकी है ) से कुछ अलग है।    कैन्डूळ  में जुयाल परिवार की तिबारी ढांगू की अन्य तिबारियों जैसे चौखम्या -तिख्वळ्या  कि जगह् तिखम्या -दुख्वळ्या   है याने  कैन्डूळ   में जुयाल परिवार की तुबारी में तीन स्तम्भ व दो ख्वाळ  हैं।  कैन्डूळ  के जुयाल परिवार का घर दुपुर -दुघर /दुखंड है।  तिबारी पहली मंजिल पर है।  तीनों सिंगाड़ /स्तम्भ एक जैसे ही हैं व पत्थर के छज्जे के ऊपर पत्थर के देहरी के ऊपर स्थापित हैं।   प्रत्येक स्तम्भ  देहरी में एक पत्थर डौळ  के ऊपर स्थित है।  स्तम्भ के आधार में उल्टे कमल दल ने कुम्भी बनाई है जिसके ऊपर ड्यूल है फिर सीधा खिला कंडल फूल है व यहां से  स्तम्भ लौकी का रूप धारण कर लेता  है।  जहां पर स्तम्भ सबसे कम मोटा है वहां अधोगामी (उल्टा ) कमल दल है फिर ड्यूल है फिर सीधा कमल दाल है जहाँ से स्तम्भ दो भागों में बंट जाता है।   यहां से स्तम्भ का सीधा भाग   चौकोर आयताकार आकृति  ले ऊपर मुरिन्ड से मिल जाता है।    जहाँ से स्तम्भ से आयत शुरू होता है वहीं स्तम्भ से मेहराब का आधा भाग भी शुरू होता है जो दुसरे स्तम्भ के आधे बाहग से मिलकर पूरा मेहराब बनता है।  मेहराब में तिपत्ति (trefoil ) कटान है.
मेहराब के बाहर त्रिभुजों  के किनारे एक एक बहु दलीय फूल अंकित हुए हैं व प्रत्येक  त्रिभुज में चिडयों व गुल्मों की नक्कासी हुयी है।  मेहराब व स्तम्भ के ऊपर  छह स्तरीय मुरिन्ड है जिन पर तरह तरह की नक्कासी हुयी हैं।  मुरिन्ड के ऊपर छत आधार से नीचे एक चौड़ी काष्ठ पट्टिका है जिस पर फूल पत्तियों की नक्कासी हुयी है। 
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि  कैन्डूळ   (द्वारीखाल )  में जुयाल परिवार की तिबारी में  ज्यामितीय कटान , प्राकृतिक व मानवीय तीनों तरह का अलंकरण हुआ है व तिबारी शानदार  तिबारियों में गिनी जाएगी। 
सूचना व फोटो आभार :  रवि जुयाल  कैन्डूळ
यह लेख  भवन  कला,  नक्कासी संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:   वस्तुस्थिति में अंतर      हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलियों  ,खोली , कोटि बनाल  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण,  नक्कासी  श्रृंखला  -
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,  बाखली , खोली, कोटि बनाल   ) काष्ठ अंकन लोक कला , नक्स , नक्कासी )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , नक्कासी  , हिमालय की  भवन काष्ठ कला  नक्कासी , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला , लकड़ी पर नक्कासी , नक्स , नक्कासी 


Bhishma Kukreti

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बनाणी (ढाई ज्यूळी) में ममगाईं परिवार की  निमदारी में काष्ठ कला 

बनाणी (ढाई ज्यूळी ) में ममगाईं परिवार की प्राचीन  निमदारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , लकड़ी पर नक्कासी 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी   -  186
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  मेरी इस श्रृंखला आने से   भवन कलाओं  में क्षेत्रीय भिन्नता पता लगने से मेरे मित्र व पाठक कई प्रश्न करते रहते हैं।  पौड़ी गढ़वाल में मकानों में वह भव्यता व बिचित्रता /विशेषता  नहीं   दिखती जो अल्मोड़ा , चमोली , रुद्रप्रयाग व जौनसार , रवाई आदि क्षेत्रों में मिलती है।   पौड़ी गढ़वाल मकान कला   में  उतना उन्नत नहीं जितना उत्तरी गढ़वाल या कुमाऊं . कारण दो तीन हैं।  पौड़ी गढ़वाल विशेषतर  रोहिला /गुज्जर  छापामारी का शिकार होता रहा है व उदयपुर ,   चंडीघाट के डाकुओं की छापामारी का शिकार  होता रहता था।  सामन्य लोग ही नहीं थोकदार- कमीण  भी भव्य मकान नहीं निर्माण करते थे कि लुटेरों की नजर न पड़े।  मंदिर भी ध्वस्त हटे रहते थे और यही कारण है दक्षिण गढ़वाल में मंदिर मूर्ति को गुज्जरों द्वारा कुल्हाड़ी से तोड़ने की लोक कथाएं अधिक प्रचलित हुयी है (पढ़ें , गोदेश्वर व डवोली  मंदिर की लोक कथा )  I  दुसरा  मुख्य कारण दक्षिण गढ़वाल में देवदारु लकड़ी   उस मात्रा में उपलब्ध भी  नहीं होती तो देवदारु सरीखी  मजबूत लकड़ी नहीं मिलने से पुराने घर भी नहीं बचें है जैसे चमोली या उत्तरकाशी जौनसार में या पिथौरागढ़ में। 
    बनाणी (ढाई ज्यूळी )  की निमदारी के बारे में  आचार्य नवीन ममगाईं  ने इस मकान को 200  साल पुराने  की सूचना दी किन्तु  पौड़ी गढ़वाल में मेरे सर्वेक्षण में पक्के घर 1890  से पहले के नहीं मिले हैं (अपवाद -बंगार   स्यूं ) I   मकान का निर्माण समय जो भी हो मकान अपने समय का भव्य मकान है व उस समय यह मकान अवश्य ही साहूकार परिवार (सौकार ) ने ही निर्मित किया होगा।  अपने समय में ऐसे भवन बारात व सरकारी अधिकारियों  ठहरने हेतु व सामजिक  बैठकों हेतु उपयोग होते थे। 
ममगाईं परिवार के निमदारी मकान दुपुर  व दुखंड मकान है।  निमदारी पहले मंजिल में स्थापित है व  12  स्तम्भ /खम्भे हैं।  स्तम्भ में ज्यामितीय कटान ही है व अन्य कोई कला अंकित नहीं है।  स्तम्भों के आधार  एक डेढ़ फिट ऊंचाई तक लकड़ी के पटिले  से ढक दिए गए हैं।  हाँ आज यह मकान साधारण लगता होगा किंतु  कभी ऐसे मकानों  की गिनती शनदार जानदार मकानों में होती थी। 
   निष्कसरश निकलता है अपने समय कि  भव्य निमदारी में   ज्यामितीय कटान के अतिरिक्त कोई विशेष अलंकरण अंकन दृष्टिगोचर नहीं हुआ है

सूचना व फोटो आभार :  आचार्य नवीन ममगाईं
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्कासी   - 

Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, नक्कासी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नैनी डांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नक्कासी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; रिखणी खाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; जहरी खाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , नक्कासी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नक्कासी , भवन नक्कासी  नक्कासी, नक्श

Bhishma Kukreti

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साबळी (बीरोंखाळ ) में बहुखंडी परिवार के मकान में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन ,  लकड़ी नक्कासी

 Tibari House Wood Art in   Sabli , Bironkhal   , Pauri Garhwa   
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी   - 187   
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 पौड़ी गढ़वाल के बीरोंखाळ  क्षेत्र  का  गढ़वाल में ऐतिहासिक , सामजिक  व सांस्कृतिक  महत्व है।  इसी  तरह  कैलाड़ खंड में में साबळी  गांव भी महर्वपूर्ण  गाँव है।  साबली से बहुखंडी पधान की तिबारी की सूचना देते हुए  बाचस्पति  बहुखंडी ने  लिखा है कि   बहुखंडियों  प्रथम पुरुष   अखिला नंद बहुखंडी  पंडिताई हेतु गुसाईं भूस्वामी के निमंत्रण  पर  1812 -18 15 लगभग   साबली में  बसे।  अखिला नंद   बहुखंडी के पुत्र धनीराम  बहुखंडी ने प्रस्तुत  तिबारी युक्त मकान   1860 -65  के लगभग  निर्माण किया था।  आज भवन में बहुत से परिवर्तन हो चुके हैं व मकान अब पधान राजकुमार बहुखंडी के  स्वामित्व में है। 
  मकान दुपुर , दुखंड /दुघर  मकान है व तिबारी पहली मंजिल पर है।  कला , अलंकरण दृष्टि से मकान में तिबारी व  पहली मंजिल के तिबारी  के अगल बगल में दो  कलयुक्त काष्ठ   आकृति की ओर ध्यान देना होगा।  तल मंजिल में दो कमरों के सिंगाड़ -दरवाजों , पहली मंजिल के एक कमरे के सिंगाड़  व दरवाजों व खिड़कियों  में काष्ठ  कला केवल ज्यामितीय कटान तक सीमित है। 
 तिबारी चौखम्या  व तिख़्वळ्या है।  सभी स्तम्भ /खम्बे /सिंगाड़  एक सामान हैं।  स्तम्भ /सिंगाड़   पत्थर की देहरी के ऊपर पत्थर डौळ  के ऊपर स्थापित हैं।  स्तम्भ आधार की कुम्भी उल्टे कमल फूल से बनी है।  उल्टे कमल के ऊपर ड्यूल है व उसके ऊपर सीधा खिला कमल फूल है।  यहां से स्तम्भ लौकी का आकर अख्तियार करता है।  जहां पर स्तम्भ  सबसे  कम मोटा है वहां उल्टा कमल आकृति है व उसके ऊपर ड्यूल है।  ड्यूल के ऊपर खिला सीधा कमल फूल है / यहां से स्तम्भ दो भागों में विभक्त हो जाता है।  एक भाग सीधा ऊपर थांत  की शक्ल अख्तियार कर मुरिन्ड /शीर्ष से मिल जाता है।  थांत (cricket bat blade type )  के ऊपर कुछ अलकंरण हुआ है।   जहाँ से  स्तम्भ थांत आकृति  रूप लेता है  वहीँ से मेहराब का आधा भाग भी शुरू होता है जो दुसरे स्तम्भ के  आधा मेहराब  भाग से मिलकर पूरा मेहराब बनता है।  मेहराब में  अंदर कटान तिपत्ति (trefoli ) नुमा है।  मेहराब के बाहर त्रिभुजों के हर किनारे एक बहु दलीय फूल  उत्कीर्णित हुए हैं व तीरभुज में मछली नुमा या कोई जानवर भी अंकित हुआ है।  मुरिन्ड / शीर्ष में अंकन का पता नहीं चल सक रहा है। 
   तिबारी के मध्य भाग में दीवार  पर तिबारी व खड़कियों के मध्य  एक एक काष्ठ चौखट (decorative ) आकृति फिट है।  प्रत्येक चौखट  आधार पर प्रतीकात्मक  आकृति उत्कीर्ण हुआ है व जिसके ऊपर  हाथी  आकृति अंकित हुयी है। 
  निष्कर्ष निकलता है कि  सांबळी  (बीरोंखाल ) में बहुखंडी परिवार (पधानुं  तिबारी )  की तिबारी व मकान में जायमितीय , प्राकृतिल व मानवीय  ( geomatrical , natural and figurative  ornamnetation ) तीनों तरह के अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है। 

सूचना व फोटो आभार :  बाचस्पति बहुखंडी , साबळी   

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्कासी   - 

Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, नक्कासी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नैनी डांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नक्कासी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; रिखणी खाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी  ; जहरी खाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , नक्कासी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;   खम्भों  में  नकासी , भवन नक्कासी  नक्कासी,  मकान की लकड़ी  में नक्श


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तल्ला गुराड़ (एकेश्वर)   में रौतों   के भव्य मकान की  भव्य तिबारी में काष्ठ कला , लकड़ी नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन ; लकड़ी नक्कासी   -  188
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 पौड़ी गढ़वाल में एकेश्वर खंड का तल्ला गुराड़  एक समृद्ध गाँव है।  यहां से उमेश असवाल ने कई भवनों की सूचना दी है।  आज तल्ला गुराड़  में रौतों /रावतों  की तिबारी में लकड़ी पर अंकन , नक्कासी की विवेचना की जाएगी।
 तिबारी  दुपुर मकान  की पहली ंजील में है व मकान दुघर /दुखंड है।  तिबारी पत्थर के  चौड़े  छज्जे के ऊपर  पत्थर की देहरी की ऊपर सजी है।  तिबारी तेरह  स्तम्भों /सिंगाड़ों से निर्मित है याने तिबारी तेराखम्या या तेराखंब्या  है।  तेरह  सिंगाड़ों /स्तम्भों की तिबारी बड़े सौकारों की  साहूकारपन (धनी का धन )  की निशानी मानी जाती थी।  थोकदार ही तेरह  खंब्या  तिबारी बना सकते व उसकी देखरेख कर सकते थे।  मैदानों  में कहा जाता   है  कि हाथी खरीदना सरल है किंतु हाथी पालना व देखरेख करना मुश्किल होता है।  वैसे ही गढ़वाल में कथ्य है कि बड़ी तिबारी बनाना सरल है किंतु  देखरेख कठिन होता है। 
तिबारी के स्तम्भ सीधे हैं व उनमें  ज्यामितीय उत्कीर्णन  हुआ है स्तम्भों में उभार व गड्ढे (flueting and flilleting ) की ज्यामितीय उत्कीर्णन हुआ है।  स्तम्भ चौखट मुरिन्ड /शीर्ष से मिलते हैं।  मुरिन्ड में भी कोई ख़ास नक्कासी देखने को नहीं मिलती है।
नक्कासी न होने पर भी  तेरह खंबों से मकान शानदार लगता है।   चार या पांच कमरों से तिबारी की बैठक /बरामदा बना है जो गढ़वाल विशेषतः पौड़ी गढ़वाल  में देखने को नहीं मिलता है।   
 मकान व तिबारी में कोई जटिल कला अंकन न होने पर भी बड़े मकान व बड़ी तिबारी ने मकान को भव्य बना दिया है।  मकान  जीर्णोद्धार की बात जोह रहा है और जिस दिन  मकान का जीर्णोद्धार होगा उसी दिन   तल्ला गुराड़  की यह भवतं तिबारी भी इतिहास में समा जायेगी। उत्तरी गढ़वाल व कुमाऊं में पर्यटन विकास ने पुराने भवनों को उसी हालात में रखवाया व अब होम स्टे से   ये  तिबारियां लाभ का साधन बनी है।    किन्तु पौड़ी गढ़वाल में लगता नहीं तिबारियां होम स्टे में बदलेंगी .

सूचना व फोटो आभार : उमेश असवाल , एकेश्वर

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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन; लकड़ी  नक्कासी   - 

Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्कासी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नैनी डांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  लकड़ी नक्कासी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; रिखणी खाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; जहरी खाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , नक्कासी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;   खम्भों  में  नक्कासी  , भवन नक्कासी  नक्कासी,  मकान की लकड़ी  में नक्श


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 ल्ला गुराड़ (चौंदकोट)  में महानतम वीरांगना तीलू रौतेली परिवार के  पुराने भवन में काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी [/color]

 House Wood Art , motifs carving in old house of Tillu Rauteli  in Talla Gurrad 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी   - 189 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 तीलू  रौतेली संसार में एक मात्र वीरांगना हुयी  है जिसने 15 वर्ष की आयु से सात युद्ध लड़े व दुश्मनों द्वारा धोखे से बीरगति को प्राप्त हुयी थीं।  तीलू  रौतेली के परिवार के दो पुराने मकानों की सूचना तल्ला गुराड़  से मिली है।   प्रस्तुत मकान  व भव्य खोली ध्वस्त अवस्था में है।  आज  वीरांगना  तीलू   रौतेली के परिवार  का उजड़ा बिजड़ा  मकान  व खोली पर चर्चा होगी।
 तल्ला गुराड़ (चौंदकोट, पौड़ी गढ़वाल )   में तीलू रौतेली  परिवार के  मकान दुपुर , दुखंड व खोली वाला है।  काष्ठ  कला दृष्टि से तल्ला गुराड़  में तीलू रौतेली परिवार के  उजड़े मकान में तिबारी व खोली पर टक्क लगाई जाएगी।
 तल मंजिल पर स्थापित खोली (ऊपरी मंजिलों में जाने हेतु आंतरिक मुख्य प्रवेश द्वार ) बेमिशाल नक्काशीदार है।   खोली तल मंजिल से पहली मंजिल तक गयी है। खोली के म्वार पर दोनों और सिंगाड़ (स्तम्भ )  हैं व् सिंगाड़  वास्तव में युग्म में हैं (दो तीन लघु स्तम्भों। कड़ियों से मिलकर बनना ) . . तीलू रौतेली परिवार मकान की खोली में चार लघु सिंगा स्तम्भ /कड़ियों को मिलकर एक ओर  का सिंगाड़ बना है।  आंतरिक कड़ी सपाट है जो ऊपर जाकर मुरिन्ड  की भी कड़ी बन जाती है , आंतरिक कड़ी के बाद की कड़ी में बेल बूटों की नक्काशी हुयी है व यह कड़ी भी ऊपर जाकर मुरिन्ड की भूसमानान्तर कड़ी में बदल जाती है, बेल बूटों से सज्जित कड़ी के बाद सपाट कड़ी है जो ऊपर जाकर मुरिन्ड की कड़ी में बदल जाती है। सबसे बाहर मोटी कड़ी है जिसके आधार में कमल युक्त कुम्भियाँ हैं व ऊपर जाकर इस मोटी कड़ी में मुरिन्ड समानंतर में उलटा कमल उभरता है व फिर ड्यूल है व फिर सीधा कमल फूल है। यहां से यह कड़ी थांत  (cricket bat blade type ) की शक्ल ले शिखर  मुरिन्ड से मिल जाता है। स्तम्भ की सबसे बाहर की कड़ी भी बेल बूटों से सज्जित है व यह बेल बूटों से सज्जित कड़ी  ऊपर शिखर मुरिन्ड की कड़ी में परिवर्तित होती है। 
          खोली में  दो मुरिन्ड (शीर्ष ) हैं  तल/अधोभव  मुरिन्ड व  शिखर मुरिन्ड।  अधोभव या नीचे के मुरिन्ड की कड़ियों के ऊपर अर्ध वृत्त आकृति में गणेश आकृति व वानस्पतिक आकृति अंकित हैं। 
 तल या अधोभव मुरिन्ड   के ऊपर एक मेहराब है जो शिखर मुरिन्ड निर्माण करता है। मेहराब के बाहरी त्रिभुजों में फूल अंकन हुआ है।
  शिखर मुरिन्ड के बगल में दो दो दीवालगीर (bracket ) लकड़ी के चौखटों में स्थापित हैं याने कुछ चार दीवालगीर हैं। दीवालगीर के चौखट बैठवाक में एक शेर अथवा हाथी की काष्ठ आकृति स्थापित हुयी  है।  ब्रैकेटों पर भी सुंदर ज्यामितीय व वानस्पतिक कटान हुआ है। 
ब्रैकेटों  के नीचे के भाग  की कड़ियों /पटिलों में सुंदर बेल बूटों  की नक्काशी हुयी है।
छपरिका  से लकड़ी के शंकु भी लटक रहे  हैं। 
    तीलू रौतेली परिवार के प्रस्तुत मकान  में तिबारी पहली मंजिल पर स्थापित है। तिबारी में चार स्तम्भ व तीन ख्वाळ  हैं।  दीवाल को स्तम्भों से जोड़ने वाली दो कड़ियों में शानदार बेल बूटों की महीन नक्काशी हुयी है। 
 प्रत्येक स्तम्भ के आधार किकुम्भी उल्टे खिले कमल की पंखुड़ियों से निर्मित हुयी हैं।  कुम्भी के ऊपर ड्यूल है , ड्यूल के मत्थि  उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल से खिला फूल है व यहां से स्तम्भ लौकी शक्ल ( याने ऊपर की और मोटाई कम होना ) अख्तियार करता है।  जहां पर स्तम्भ की मोटाई सबसे कम है वहां पर एक उल्टा कमल दल है जिसके ऊपर ड्यूल है जिसके ऊपर खिला कमल फूल है व यहीं से स्तम्भ के दो भाग होते जाते हैं एक भाग थांत का आकर लेता हुआ ऊपर मुरिन्ड से मिल जाता है  कुछ ऊपर थांत के किनारे नक्काशी युक्त दो लघु कड़ियाँ भी उभरती हैं व वे भी मुरिन्ड  से मिलते हैं।  स्तम्भ जहाँ से थांत  की शक्ल बन जाती है वहीं से मेहराब का अर्ध मंडल भी शुरू होता है।  मेहराब में प्राकृतिक अंकन हुआ है। 
  तीलू रौतेली परिवार का उजड़ा -बिजड़ा मकान संभवतया 1900 के लगभग ही निर्मित हुआ होगा। 
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि मकान में काष्ठ कला में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरणों का प्रयोग हुआ है।
     
सूचना व फोटो आभार : उमेश असवाल
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी   - 
 
Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्काशी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; नैनीडांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; लकड़ी नक्काशी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; रिखणीखाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; जहरी खाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , लकड़ी नक्काशी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   खम्भों  में  नक्काशी  , भवन नक्काशी  नक्काशी,  मकान की लकड़ी  में नक्श


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कुलसारी  (नारायणबगड़ , चमोली ) में हंसराम कुलसारा के  भव्य मकान में काष्ठ कला, अलंकरण अंकन , लकड़ी नक्काशी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्काशी  - 190
(अलंकरण व कला पर केंद्रित) 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
-
 चमोली, रुद्रप्रयाग , जौनसार  बाबर , रवाई , गर्ब्यांग , धानाचुली आदि क्षेत्रों  से अनोखे Exotic भवनों व उन पर अनोखी काष्ठ कलाकारी की रोज फोटो सहित सूचना मिलती रहती है।  मित्रों के सहयोह का ही कारण है कि अब लेखक को यह सोचना पड़ता है पहले किस भवन से शुरू  करूँ और इस भवन से शुरू करता हूँ तो दूसरा भवन छूट जाएगा का दुःख भी। 
  आज मुंबई में रहने वाले उमेश पुरोहित   द्वारा  सूचित  कुलसारी (नारायण बगड़ , चमोली गढ़वाल )में  हंसराम कुलसारा के  भव्य मकान में काष्ठ कला पर चर्चा होगी।  उमेश अनुसार इस भवन में  घरजवैं फिल्म की सूटिंग भी  हो चुकी है।  कुलसारी गाँव धीरज सिंह नेगी सरीखे नगर श्रेष्ठियों का गाँव है।  समृद्धि की झलक कुलसारी में भवनों पर साफ़ झलकती है।  सूचना मिली है ऐसे ही कुछ मकान और भी कुलसारी गांव में हैं। 
  प्रस्तुत  हंसराम कुलसारा का   भवन  तिपुर (तल मंजिल +2  पुर ), दुखंड /दुघर है व घर के हर खंड में कला  व समृद्धि झलकती है।  काष्ठ  कला दृष्टि से भी कुलसारी  के  हंसराम  कुलसरा के  भवन में उकृष्ट किस्म की कलाकारी , नक्काशी मिलती है।  कला का जहां सवाल है टिन  की छत  के ऊपर  त्रिभुजाकार चिमनी भी ज्यामिति कला का अध्भुत नमूना है।
 विवेचना हेतु मकान में निम्न भागों  में कला , नक्काशी समीक्षा आवश्यक है
तल मंजिल के दोनों कमरों के दरवाजों  व मुरिन्ड ऊपर ज्यामितीय काष्ठ  कला
तीनों मंजिल में  छोटी छोटी कुल 12 मोरियों  में बारीक काष्ठ कला /नक्काशी
तल मंजिल मे से शुरू हो पहली मंजिल तक चली खोली व खोली ऊपर , अगल बगल में  बारीक कला अंकन। 
पहली व दूसरी मंजिल में   बड़ी बड़ी मोरियों या  (कुमाऊं में जिन्हे छाज कहा जाता है।  ) में कला प्रदर्शन। 
 तल मंजिल के दोनों कमरों के दरवाजों में ज्यामितीय  कटान हुआ है व एक द्वार के मुरिन्ड ऊपर त्रितोरण /तीनमहराब आकृति पट्टिका स्थापित हुयी है।  यह त्रितोरण आकृति मकान की सुंदरता में वृद्धिकारक आकृति है। 
 तीनों पुरों /मंजिलों में  हर मंजिल में चार याने कुल  12 मोरियां  या झरोखे स्थापित हैं।   प्रत्येक मोरी का  स्तम्भ कुमाऊंनी बाखली के लघु मोरियों /झरोखों जैसे कई लघु स्तम्भों के युग्म /जोड़ से बना है। 
हंसराम कुलसारा  के  भवन में तीन लघु स्तम्भों से मोरी के दो मुख्य  स्तम्भ बने हैं ।  इस भवन की प्रत्येक मोरी के लघु स्तम्भ आधार पर उलटे कमल फूल से कुम्भी बनी है ऊपर ड्यूल है व फिर सीधा कमल फूल अंकन है व यहां से स्तम्भ सीधा हो ऊपर मुरिन्ड  की एक कड़ी बन जाता है और यह क्रम 12  के 12  मोरियों में उपश्थित है याने मकान में मोरियों पर  शानदार , बारीक, दिलकश नक्काशी युक्त 72 लघु स्तम्भ हैं। 
    खोली की कला तो दर्शनीय है।  तल मंजिल से पहली मंजिल तक खोली है।  खोली के दोनों ओर स्तम्भ हैं।  खोली के दोनों मुख्य स्तम्भ चार स्तरीय (तह ) लघु तंभों के जोड़ (युग्म )  से बना है  याने चौगट  स्तम्भों से मुख्य स्तम्भ बनते हैं।  खोली में स्तम्भों के निर्माण में इस तरह का जटिल कला उत्तराखंड ही नहीं अपितु हिमाचल के जौनसार -रवाई क्षेत्र व नेपाल के  डोटी   व नेवार  क्षेत्रों में भी मिलती  है   .
    दोनो उपस्तम्भों    उसी तरह कमल , ड्यूल की आकृतियां अंकित हैं जैसे मोरियों के लघु स्तम्भों में प्रकट हुयी है।   अन्य दो उप स्तम्भों में  से एक में प्राकृतिक नक्काशी हुयी है व एक सीधी है।  सभी उप स्तम्भ ऊपर जाकर  मुरिन्ड की कड़ी बन जाते हैं यह रूप प्रतिरूप भी  मध्य हिमालय (हिमाचल, उत्तराखंड , नेवार , डोटी )  के सभी भागों  में देखने को मिला है या कमोवेश रूप से एक जैसा ही है।   खोली के मुरिन्ड में देव आकृति अंकित हुयी है। 
  छपपरिका के नीचे मुरिन्ड के ऊपर दोनों  ओर  दो दीवालगीर  (bracket ) फिट हैं  (कुल चार ) व प्रत्येक दीवालगीर में ऊपर नीचे ज्यामितीय व पक्षी नुमा सुडौल आकृतियां हैं उनके बीच एक एक हाथी अंकित है।  छपपरिका से मुरिन्ड ओर   झालर  आकृति भी लटकती सुशोभित है।
  पहली व दूसरी मंजिल में कुल मिलाकर  बड़े बड़े मोरी या तिबारी जैसे ही ख्वाळ  हैं - दो पहली मंजिल ंव तीन दूसरी मंजिल में।  स्तम्भ व मुरिन्ड में कला दृष्टि से इन ख्वाळों /बड़ी मोरियों में कला , अलंकरण बिलकुल  छोटी मोरियों जैसे ही है बस आकर में ही अंतर है।  बड़ी बड़ी मोरियों के द्वारों में ज्यामितीय कटान से दिल्ले /पैनल बनाये गए हैं। 
  कुलसारी (नारायण बगड़ , चमोली गढ़वाल ) के  हंसराम कुलसारा के मकान निर्माण में मिट्टी -पत्थर- टिन व लकड़ी का प्रयोग हुआ है व सभी माध्यमों के मध्य  सामजस्य बढ़िया तरीके से हुआ है जिसे गढ़वाली में कहा जाता है बल छंद से बिठाये  गए हैं।
  कलाओं में सामजस्य व रेखाओं में सामजस्य ,  अकार में अनुपातिक समरसता , गति व ताल का पूरा ख्याल , दोहराव आदि कारकों का  पूरा ध्यान ओड  व बढ़इयों ने रखा है। 
 हंसराम कुलसरा के भव्य भवन का निर्माण सन  1945  के हुआ था
सहर्ष निष्कर्ष निकल जाता है कि  हंसराम कुलसरा के भव्य मकान में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मान्वित तीनों अलंकरण  का अंकन हुआ है व कला  संगठन तकनीक /ब्यूंत  का पूरा ध्यान रखा गया है 
सूचना व फोटो आभार : उमेश पुरोहित , भुवनेश पुरोहित
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:  वस्तुस्थिति में  अंतर   हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , मोरी , खोली,  कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन , लकड़ी नक्काशी श्रंखला जारी   
   House Wood Carving Ornamentation from  Chamoli, Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation/ Art  from  Joshimath ,Chamoli garhwal , Uttarakhand ;  House Wood Carving Ornamentation from  Gairsain Chamoli garhwal , Uttarakhand ;     House Wood Carving Ornamentation from  Karnaprayag Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation from  Pokhari  Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   कर्णप्रयाग में  भवन काष्ठ कला, नक्काशी ;  गपेश्वर में  भवन काष्ठ कला,नक्काशी ;  नीति,   घाटी में भवन काष्ठ  कला, नक्काशी  ; जोशीमठ में भवन काष्ठ कला, नक्काशी , पोखरी -गैरसैण  में भवन काष्ठ कला, नक्काशी श्रृंखला जारी  रहेगी


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जुलेड़ी (उदयपुर  ) में राघवा नन्द ममगाईं निर्मित तिबारी में काष्ठ कला, अलंकरण , लकड़ी नक्काशी

Traditional House Wood Carving Art in Tibari of Raghva Nand Mamgain of Juledi  (Yamkeshwar block) ,  Pauri Garhwal
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , बखाई ,  खोली  ,   कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 191
 संकलन -भीष्म कुकरेती
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पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर ब्लॉक में ढोर पाली, मुगलिया गांव , फल्दाकोट  गावों के निकट जुलेड़ी  गांव एक समृद्ध गांव है।  यहां से भी ब्रिटिश काल में समृद्धि प्रतीक  तिबारियों , निमदरियों की सूचना मिली है।  आज प्रस्तुत है जुलेड़ी  (यमकेश्वर) में स्व   . राघवा नंद ममगाईं निर्मित तिबारी  में काष्ठ  कला चर्चा।  आज राघवा नंद ममगाईं के 81 वर्षीय पौत्र तारा दत्त ममगाईं इस भवन में निवास करते हैं।  इस हिसाब से स्व राघवा नंद ममगाईं का जन्म लगभग  1890 -1900  (एक साखी में 20 वर्ष का अंतर्  सिद्धांत ) बैठता है व प्रस्तुत जुलेड़ी में राघवा नंद ममगाईं की तिबारी लगभग 1930 के बाद ही निर्मित हुयी होगी।  स्व राघवा नंद  ममगाईं के पूर्वज डबरालस्यूं  जल्ठ  से जुलेड़ी  आकर बसे थे।
 जुलेड़ी  में स्व राघवा नंद ममगाईं  का मकान दुपुर , दुखंड /दुघर है व तिबारी पहली मंजिल में स्थित है।   जुलेड़ी  में स्व राघवा नंद ममगाईं  के मकान की तिबारी चौखाम्या व तिख्वाळ्या   (चार स्तम्भ या सिंगाड़ व तीन ख्वाळ वाली )  तिबारी है।  जुलेड़ी  में स्व राघवा नंद ममगाईं की तिबारी  पहली मंजिल में लकड़ी के स्लीपर जैसे देळी  . /देहरी के ऊपर स्थित है , देहरी सपाट चौखट रूपी   है।
   जुलेड़ी  में स्व राघवा नंद ममगाईं   की तिबारी के सिंगाड़ /स्तम्भ  आम गढ़वाली तिबारियों के सिंगाड़ों  जैसे गोल नहीं अपितु चौखट नुमा है  व प्रत्येक सिंगाड़  के आधार में कुम्भी /पथोड़ आकृति उभर कर आयी हुयी है और साथ ही  प्रत्येक सिंगाड़  में आधार से कुछ ऊपर तक तीर पर्ण की आकृतियां  अंकित हुयी है (तीर के पश्च भाग  जैसे पत्तियों से  निर्मित आकृति )  . इसके बाद सिंगाड़  में कोई कला अंकित नहीं है  व सपाट  सिंगाड़ ऊपर चौखट मुरिन्ड  से मिल जाते हैं , मुरिन्ड  बहुस्तरीय , सपाट व  चौखट हैं। 
   जुलेड़ी  में स्व राघवा नंद ममगाईं   के मकान व तिबारी में अन्य कोई विशेष काष्ठ  कला दृष्टिगोचर नहीं  होती है।  मकान में पहली मंजिल में धातु जंगल बाद में  स्थापित हुआ है।
निष्कर्ष निकालना सरल है कि     यमकेश्वर के जुलेड़ी  में स्व राघवा नंद ममगाईं  निर्मित तिबारी में ज्यामितीय व कुछ स्थलों में प्राकृतिक काष्ठ  कला  के दर्शन होते हैं व   जुलेड़ी  में स्व राघवा नंद ममगाईं  के मकान में कोई मानवीय काष्ठ  कला उत्कीर्णन नहीं हुआ है।
सूचना व फोटो आभार : हर्ष डबराल
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , कोटि बनाल   ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   श्रृंखला
  यमकेशर गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;  ;लैंड्सडाउन  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;दुगड्डा  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ; धुमाकोट गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला ,   नक्कासी ;  पौड़ी गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;
  कोटद्वार , गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;


Bhishma Kukreti

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बगोरी (भटवाड़ी  , उत्तरकाशी ) में  एक तिबारी  में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी



बगोरी (भट वाड़ी , उत्तरकाशी ) में भवन काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी श्रृंखला -8 

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , कोटि बनाल )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 197

 संकलन - भीष्म कुकरेती     - 

  बगोरी ( भटवाड़ी , उत्तरकाशी ) में पहले एक तिबारी की विवेचना  हो चुकी है I आज एक अन्य तिबारी की व्वेचना होगी उस भवन का नाम है बगोरी ( , उत्तरकाशी ) में भवन संख्या 7 I  बगोरी के भवन संख्या 7  ढाई पुर  भवन है व तिबारी पहली मंजिल पर है I तल मंजिल  में भंडार है या खाली है जैसे बगोरी गाँव में सामन्य प्रचलन है I

तल मंजिल की छत याने पहली मंजिल का फर्श लकड़ी की कड़ीयों व तख्तों से बना है .पहली मंजिल पर तीन कमरों के आगे लम्बा बरामदा है जिस पट तिबारी के पांच स्तम्भ खड़े हैं I पांच स्तम्भ चार ख्वाळ या खोली बनाते हैं . प्रत्येक स्तम्भ के आधार  पर  उल्टे कमल फूल से कुम्भी निर्मित हुयी है फिर ड्यूल है व ड्यूल के उपर उर्घ्वागामी (सीधा ) कमल फूल है . कमल पंखुड़ियों में  बेल बूटों की सुंदर नक्कासी हुयी है I जहां पर सीधा कमल फूल समाप्त होता है वहां से  स्तम्भ की मोटाई कम होना शुरू हो जाती है I इसी ऊँचाई पर ख्वळ में दो स्तर/तह का जंगला पूरे ख्वाळ के आधार तक बिठाया हुआ है . जंगले का  उपरी स्तर पटले /तख्ते  में छेड़ कर नक्कासी कर जंगला बना है ति निचले स्तर का जंगला क्रोस (X) आकर के पट्टियों से बना है .

  जहां से स्तम्भ सबसे कम मोटा है  वहां  पर उल्टा कमल फूल से घुंडी बनती है व उस उलटे फूल  (अधोगामी कमल दल ) के उपर ड्यूल है व ड्यूल  के उपर सीधा (उर्घ्वागामी ) कमल दल हैI कमल दल के उपर स्तम्भ थांत (Cricket Bat Blade type ) का शक्ल अख्तियार कर लेता है व थांत उपर ढाइ वां मजिल के फर्श की कड़ी से मिल जाता है I स्तम्भ से यहीं से मेहराब चाप का अर्ध खंड भी शुरू होता  है जो दूसरे स्तम्भ के आधे खंड से मिलकर  पूरा  मेहराब बनता है I मेहराब तिपत्ति नुमा है I मेहराब के बाहर त्रिभुजों में नक्कासी हुयी है व  सम्भवतया त्रिभुज के किनारे एक एक फूल भी खुदा है व त्रिभुज में नक्कासी हुयी है . स्तम्भ के थांत स्वरूप में कोई नक्कासी नही दिखीI पहली मंजिल की मुरिंड कड़ी व ढाई पुर के तह  की कड़ी में  भी कुछ नक्कासी नही दिखी . ढाई पुर बंद नही अपितु खुला है I

 पहले मंजिल में ब्रस्म्दा चार पञ्च फीट चौड़ा है व बरामदे के अंदरूनी हिस्से में कमरे हैं व कमरों के दरवाजे मजबूत लकड़ी के हैं I. दरवाजों पर ज्यामितीय कला के दर्शन होते हैं Iबरामदे व कमरों के मध्य दीवार मजबूत लकड़ी के पट्टियों /  बौळइयों  /कड़ीयों  की ही बनी है Iदो कमरे के मध्य दीवाल के उपरी भाग में दो मन्दिर रखने की आकृतियाँ बनी है (यथा  शहरों में आम घरों में मन्दिर रखे जात्ते हैं ) दोनों मन्दिर गृहों में मेहराब बने हैं i

 तीखी ढलवां छत आधार र से एक लम्बी व आयताकार काष्ठ आकृति  फिट है जिस पर लता –सर्पिल पत्ती का अंकन  दीखता है .

    कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बगोरी (भटवाड़ी उत्तरकाशी  की भवन संख्या   7 की तिबारी भव्य व  कला दृष्टि से उच्च स्तर की है व मकान में ज्यामितीय , प्राकृतिक अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है .  मानवीय अलंकरण दृष्टिगोचर नही हुआ I

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020

 Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of   Bhatwari , Uttarkashi Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Rajgarhi ,Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Dunda, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Chiniysaur, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , भटवाडी मकान लकड़ी नक्कासी ,  रायगढी    उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , चिनियासौड़  उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी   श्रृंखला जारी रहेगी

 

 

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