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House Wood carving Art /Ornamentation Uttarakhand ; उत्तराखंड में भवन काष्ठ कल

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Bhishma Kukreti:
सिल्ला में ब्रह्मा नन्द नौटियाल की शानदार चौखंब्या रौंत्याळी तिबार
Traditional House Wood Carving Art (Tibari)  from Silla , Rudraprayag
तिबार निर्माण -ब्रहमानंद नौटियाल,
सिल्ला ,  अगस्त्यमुनि

Collection by : Ashwini Gaur

---साभार- विनोद नौटियाल जी, सिल्ला Rudraparayg  Garhwal ---
भगवान शाणेश्वर महाराज की भूमि सिल्ला गाँव की रौनक, धर्म, आस्था- विश्वास के साथ अपने आप में बहुत कुछ समेटे हुए है।
इसी के बीच काष्ठकला नक्काशी की बात करें तो ब्रहमानंद नौटियाल जी की बनवाई तिबार, लाजवाब काष्ठकला का अनुपम उदाहरण है।
तिबार के चारों स्तम्भ सुडोल पत्थर के आधार पर छज्जे के बराबर भाग पर टिके है।
इन स्तम्भों मे नीचे कमल के सुंदर पुष्प बने है, स्तम्भों के ऊपरी भाग को झालरनुमा लकड़ी के तीन जोड़ मोरीनुमा सुंदर झालर बनकर एक दूसरे से जोडे हुए है।
यह तिबार दिखने में बहुत ही आकर्षक है।
तिबार के ऊपरी भाग को पठ्ठाली से मजबूती देने के लिए चार लकड़ी के मजबूत स्तम्भ छज्जे की सीध तक क्षैतिज रखे थे, जो छत धुरपळै की पठ्ठाली को सपोर्ट भी दे रहे है। अब इन क्षैतिज स्तम्भों में तीन और स्तम्भ जोड़े गए जो अब कुल सात हो गए ।
तिबार का आकर्षण इतना है कि! अनचाहे भी मोबाइल सैल्फी में कैद हो ही जाता है।
शादी समारोह मे लगभग चोदह साल पहले, जब हम इसी तिबार के सामने चौक में बैठे थे, तो सब बरातियों का ध्यान रात के समय बारात पहुचने पर चौक में बेठै तिबार में मांगल गाती बुजुर्ग माताओं की और गया, तो पारंपरिक मांगल के बीच तिबार की पारंपरिक काष्ठकला सबको खींच रही थी।
वास्तव में ये तिबारें शादी-ब्याह मे बारात पहुँचने पर,गांव की महिलाओं की परंपरागत गीत -जागर और दुल्हन-दूल्हे पक्ष के बीच खट्टी-मीठी वार्ता की गवाह बनती थी।
इस तिबार की खूबसूरती को जीवंत रखने में वर्तमान पीढ़ी का अथाह योगदान दिखता है, जिसमें विनोद नौटियाल जी और उनके भाई के सकारात्मक लगाव को नकारा नही जा सकता।
रंग रोगन के साथ समय समय पर तिबार की देखरेख करते मनोभावनाओं को सैल्यूट ।
तिबार की काष्ठकला पर विभिन्न आकृतियाँ उकेरी गयीं है, दो स्तम्भ को जोडती काष्ठकला मोरी पर लाइनिंग को बहुत सुंदर ढंग से सजाया गया है।
चारों स्तम्भों को जोडती मोरी पर कही भी कील का ज्वाइंट नही! लकड़ी को इस तरीके से जोड़ा गया है कि ज्वाइंट का अंदाजा लगाना मुश्किल है।
तिबार तक पहुँचने के लिए खोली सामुहिक प्रवेश द्वार है।
जो अगले बगल की दोनों तिबारों तक पहुँचने का भीतरी रास्ता है।
खोली मे सात सीढ़ियाँ है, तिबार पर पहुँचने पर ठीक सामने एक कमरा है जबकि तिबार के पीछे भी एक कमरा बना है।
तिबार का फर्श पहाड़ी परंपरानुसार मिट्टी से लिपा पुता है।
पहाड़ों में काष्ठकला की सालों पुरानी इस टेक्नालॉजी का आज की मशीनरी युग में भी कोई तोड़ नही।
ये तिबारें हमारे लिए हमारे पहाड़ के लोक में रचीं-बसीं जीवंत लोकपरंपरा की साक्षी है।
काष्ठकला के बेहतरीन कलाकारों की मौजूदगी बयां करती है गाँव मुल्क की ये तिबारे।
फिल्म इंडस्ट्री और पर्यटन होम स्टे योजना में जरूर हमारी ये तिबारे हमारे गाँवों की दशा और दिशा बदलने में मील का पत्थर साबित होंगी।
चहुंमुखी विकास और बारहमासी सदाबहार पर्यटन का ख्वाब दिखाती रिपोर्ट में इन तिबारों को यथोचित स्थान मिलेगा और चारधामों से इतर हमारी परंपराओं में बसी इन लोकसंस्कृति की तरफ शाशन प्रशासन का ध्यान आकृष्ट होगा।
--------------@ अश्विनी गौड़ दानकोट अगस्त्यमुनि ।
रुद्रप्रयाग जिले की भवन  काष्ठकला उत्कीर्णन, व अलंकरण;  दानकोट गाँव में रुद्रप्रयाग जिले की भवन  काष्ठकला व अलंकर; रुद्रप्रयाग सन्दर्भ में गढवाल , हिमालय की भवन काष्ठ उत्कीर्णन कला ; सिल्ला , अज्ञस्तमुनि रुद्रप्रयाग जिले की भवन  काष्ठकला उत्कीर्णन, व अलंकरण; House Wood carving Art from Rudraprayag Garhwal , Himalaya ; House Wood carving Art from Agyastmuni Rudraprayag Garhwal , Himalaya ; House Wood carving Art from Silla,  , Rudraprayag Garhwal , Himalaya ; to be continued …

Bhishma Kukreti:
 
जड़सारी (उदयपुर ) में भोला दत्त बडोला का तीन मंजिले  जंगलेदार भवन पर काष्ठ  कला व अलंकरण

उदयपुर /यमकेश्वर ब्लॉक गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला -13
  Traditional House wood Carving Art of  Tibari  , Nimdari , Jangla/wood Railing  in Udaypur , Ymakeshwar  - 13
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (D Garhwal, Uttarakhand , Himalaya  hangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  72
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    72
(लेख अन्य पुरुष में है अतः श्री , जी का प्रयोग नहीं हुआ है )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  जड़सारी  वास्तव में ठांगर (यमकेशर ) का हिस्सा था। जड़सारी के  बडोला परिवार  ठांगर  से ही  आकर जड़सारी में बसे।  ठांगर  के  बडोला परिवार ढुंगा  से कर बसे थे।   जड़सारी के वन व कृषि समृद्ध क्षेत्र है तो समृद्ध क्षेत्र  होना लाजमी  है।  समृद्धि की पहचान भवन , भवन अलंकरण , पहनावे आदि में झलता है।  जड़सारी के भवन साबित करते हैं कि यह क्षेत्र समृद्ध क्षेत्र रहा होगा। 
     जड़सारी में स्व भोला दत्त बडोला का तीन मंजिला जंगलेदार भवन इस बात का द्योत्तक है कि जड़सारी -ठांगर  एक समृद्ध क्षेत्र है।  जड़सारी  के भोला दत्त बडोला के इस भव्य जंगलेदार  तिपुर की प्रसिद्धि उदयपुर ही नहीं ढांगू , डबराल स्यूं , लंगूर तक भी फैली थी।  भवन दुखंड /तिभित्या है व प्रत्येक मंजिल में कम से कम बारह  कमरे तो हैं।  ऊपरी मजिल में बड़ा बरामदा है जहां आवश्यकता अनुसार काष्ठ पट्टिकाओं के प्रयोग से कमरे बन जाते हैं।  छत टिन  की है। 
 भोला दत्त बडोला के इस भवन में पहली मंजिल व दूसरे   मंजिल में काष्ठ   जंगला फिट हुआ है।  भवन के तीनो तरफ  जंगला  बंधा है व प्रत्येक मंजिल में कम से कम 40  काष्ठ  स्तम्भ हैं।  स्तम्भ के आधार  पर दोनों ओर छिलपट्टियों   से आधार को सुसज्जित किया गया है।  स्तम्भ सपाट हैं याने ज्यामितीय कला ही दर्शित होती है।  पहले व ऊपरी मंजिल के  छज्जे भी लकड़ी के हैं , पट्टिकाएं  व कड़ियों में कोई प्राकृतिक या मानवीय  नक्कासी नहीं दिखाई देती है। 
 भवन की विशेषता इस भवन का बड़ा होना व 36   से अधिक कमरों का भवन  होना है।  भारीतय दर्शन शास्त्र वैशिषिकी  में कहा गया है कि कोई वस्तु/मनुष्य को आप विशेष  (Exclusive ) बना सकते हैं यदि आकर में बहुत बड़ा हो या बहुत छोटा /परमाणु तक।   भोला दत्त  बडोला के इस काष्ठ  जंगलेदार भवन की विशेषता /विलक्षणता है कि यह भवन बड़ा है व इसमें  ३६ से ऊपर कमरे हैं व 8 0  से अधिक काष्ठ स्तम्भ हैं।
भवन लगभग 1940 में निर्मित हुआ होगा। 
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सूचना व फोटो आभार : शांतुन बडोला ,प्रशांत बडोला की वाल , सोहन लाल जखमोला जसपुर

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
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Bhishma Kukreti:
बडनेरा (डोईवाला ) में  श्रीमती मालती रावत की आलीशान तिबारी   में काष्ठ  कला अलंकरण   

देहरादून , गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार मकानों में काष्ठ कला , अलंकरण -1
 Traditional House Wood Carving of Dehradun Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  -1
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला  अलंकरण   -  73
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Dehradun , Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    73
(लेख अन्य पुरुष में है अतः  श्री , जी उपयोग नहीं है )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 श्रीमती मालती  रावत उत्तराखंड के गाँधी स्व  इंद्र मणी बडोनी की  प्रबल समर्थक थीं।  उनकी तिबारी बडनेरा (डोईवाला ) में नामी तिबारी थी जिसे अब उखाड़ क्र पुनः बिठाया जा रहा है। तिबारी तल मंजिल पर ही बिठाई जा रही है।  तिबारी में चार काष्ठ  स्तम्भ हैं व ढाई फुट ऊंची दीवाल  के ऊपर आधारित हैं  , चार स्तम्भ तीन मोरी /द्वार /खोळी  बनाते हैं। स्तम्भ के शीर्ष से तोरण का एक भाग निकलर  दूसरे स्तम्भ के अर्ध मंडल से मिलकर मेहराब या तोरण बनाते हैं। 
प्रत्येक स्तम्भ का कुम्भी चौकोर संगमरमर की चौकी  में टिके हैं।  कुम्भी  अधोगामी कमल दल से बनी है और  हर दल में   फर्न पत्ती  जैसे उत्कीर्णन हुआ है जो नयनाभिरामी है।  स्तम्भ कुम्भी के ऊपर डीला है जिस पर भी बेल बूटे उत्कीर्ण हुए हैं।  डीले के   बाद ऊपर की ओर  उर्घ्वगामी कमल  पुष्प  दल हैं जिनके दलों पर भी फर्न नुमा नक्कासी की गयी है।  इस  उर्घ्वगामी कमल पुष्प दल के ऊपर स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है याने स्तम्भ का शाफ़्ट।  शाफ़्ट पर भी प्राकृतिक /बेल बूटे नुमा नक्कासी carving हुयी है।  स्तम्भ शाफ़्ट की जहां पर सबसे कम मोटाई है वहां से अधोगामी पुष्प दल मिलते हैं व उन दलों में भी फर्न  की पत्ती नुमा नक्कासी हुयी है।  अधोगामी कमल के ऊपर नक्कासी युक्त डीला है जहां  से उर्घ्वगामी कमल दल शुरू होते हैं और प्रत्येल कमल दल में फर्न नुमा नक्कासी हुयी है।  प्रत्येक स्तम्भ के कमल दल का फूल  शीर्ष की बौळी  (पट्टिका ) से मिल जाते हैं. . स्तम्भ शीर्षो को तोरण पट्टिकाएं जोड़ती है और नयनाभिरामी छवि प्रदान करते हैं।  तोरण /arch / मेहराब तिपत्ति  अकार की हैं हाँ मध्य में तीखा आकर है।  तोरण /arch /मेहराब की पट्टिकाओं पर सुंदर प्राकृतिक  पत्तियां व फूल उत्कीर्ण हुए हैं। 
    पहाड़ों की तिबारी व बडनेरा  में श्रीमती मालती रावत की तिबारी में एक मुख्य अंतर् है कि श्रीमती मालती रावत की तिबारी स्तम्भों के मध्य  पहाड़ों से  अधिक अंतर् है। 
   बडनेरा में श्रीमती मालती रावत की तिबारी में प्राकृतिक /वानस्पतिक व ज्यामितीय अलंकरण सुंदर है।  अभी तिबारी जितनी फिट की  गयी है उसमे कोई मानवीय व दार्शनिक (नजर उतरने वाली आकृति  या  देव  आकृति  नहीं दिख  रही है। 
 श्रीमती मालती रावत की तिबारी में अलंकरण व उत्कीर्णन से कहा जा सकता है बल  बडनेरा में  श्रीमती मालती रावत की तिबारी एक भव्य तिबारी है। 

सूचना व फोटो आभार : सुरेंद्र कुमार , बडनेरा (डोईवाला )

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
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Bhishma Kukreti:
रामडा में राम सिंह रुदियाल   की  पहली खोळी  (entry door )  में काष्ठ  अलंकरण

रामडा   (गैरसैण ) में   पारम्परिक भवन काष्ठ अलंकरण /उत्कीर्णन -1
Traditional House Wood  Carving Art/Ornamentation in Ramda (Gairsain ) -1

चमोली , गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार मकानों में काष्ठ कला , अलंकरण -1
 Traditional House Wood Carving of  Chamoli  Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  -1
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला  अलंकरण   -  75
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of   Chamoli  , Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    75
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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उत्तरकाशी , उत्तरी टिहरी गढ़वाल उत्तरी रुद्रप्रयाग व उत्तरी चमोली गढ़वाल में  अति शीत ऋतु  के कारण व  भूकम्प संवेदन शील क्षेत्र होने के कारण सदियों से ही काष्ठ भवन हेतु प्रसिद्ध रहे हैं।  इसीलिए इन क्षेत्रों में भवन काष्ट  कलाएं  गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों से अधिक ही विकसित हुए हैं। 
 रामडा  गैरसैण तल्ला का एक महत्वपूर्ण गाँव हैं। राम सिंह रुदियाल  के सुपुत्र ( हिमालय नव  संचार  ) में तीन अभिनव काष्ठ कलाओं के नमूनों की सूचना व फोटो  भेजे हैं और तीनों की प्रत्येक की अपनी विशेष विशेषता है (exclusivity ( अतः  प्  प्रत्येक काष्ठ   नूमनों का अलग अलग विवरण गढ़वाल काष्ठ  कला व् अलंकरण उत्कीरण समझने हेतु आवश्यक होगा। 
आज राम सिंह रुदियाल  की एक खोळी की  काष्ठ कला अलंकरण पर चर्चा होगी।
   रामडा  के राम सिंह रुदियाल  की खोळी में ज्यामितीय , प्राकृतिक , मानवीय व आध्यात्मिक प्रतीकात्मक कलाओं के दर्शन होते हैं। 
खोळी देहरी /देळी पर आधारित है व दोनों ओर कलायुक्त सिंगाड़ /स्तम्भ हैं व ऊपर मुरिन्ड  /शीर्ष में महहऱाब /arch /तोरण है जिसके ऊपर काष्ठ पट्टिकाओं में कलापूर्ण उत्कीर्ण हुआ है।  खोळी  को वारिश आदि से बचाने हेतु  छत्तिका   भी है।   छत्तिका को आधार देने हेतु काष्ठ के हाथी व पक्षी हैं।
  दोनों ओर स्तम्भ दीवार से कड़ी द्वारा जुड़े हैं व दोनों ओर  के स्तम्भ  वर्टिकली /ऊर्घ्वाकर रूप से तीन भाग में  बनता है
बाह्य स्तम्भ भाग व आंतरिक स्तम्भ भाग में आधार पर तीन तरह के पदम् दल या पुष्प दृष्टिगोचर होते हैं व प्रत्येक पुष्प दल के मध्य   कलायुक्त डीले   (carved round wood plate )  हैं।  मध्य के आंतरिक स्तम्भ कमल फूल के ऊपर से शाफ़्ट या सीधी कड़ी   (   Shaft  of  Column   ) में बदल जाते  हैं कड़ी में बेल बूटों  की नक्कासी हुयी है।  कमल दल स्तम्भ के मध्य वाली कड़ी में भी पत्तियों  की चित्रकारी अंकन हुआ है। स्तम्भ एक ऊंचाई पर पंहुचते हैं तो नक्कासीदार तोरण (arch ) मेहराब  दृष्टिगोचर होता है।  तोरण पट्टिका में फूल व पत्तियों की चित्रकारी या अंकन हुआ है जो नयनाभिरामी दरसीही प्रस्तुत करते हैं
स्तम्भ व मध्य कड़ी ऊपर  मुरिन्ड  में आकर चौखट बनाते हैं।  मुरिन्ड तोरण के ऊपर  आयताकार पट्टिकाओं  में  दो  बहुदलीय पुष्प अंकित हैं जो खोळी की छवि वर्धक हैं।  मुरिन्ड  की एक पट्टिका में दो  सूंड सहित हाथी  की आकृति उत्कीर्ण है। हाथी  की सूंड किसी वानस्पतिक वस्तु व फूल को  छू रहे हैं।  मुरिन्ड में ही ऊपर पट्टिका में एक दार्शनिक /आध्यात्मिक प्रतीकात्मक आकृति अंकित है (नजर उठा न लगे प्रतीक या देव पुरुष की आकृति )
खोळी छत्तिका   दो काष्ठ खड़े आकृतियों  आकृतियों  टिकी है।  दोनों ओर  खड़ी आकृति  वास्तव में हाथी व  व हाथी के ऊपर   फूलों से बने किसी  पक्षी की आकृतियां हैं जो कलात्मक हैं व कला दृष्टि से उत्कृष्ट हैं अंत में यह पक्षी या पुष्प आकृति छत्तिका के आधार पट्टिका से मिल जाते हैं। छत्तिका  काष्ठ दासों  (टोढ़ी ) के ऊपर  टिकी है।
खोळी  के दरवाजों में ज्यामितीय कला पूर्ण अंकन हुआ है और यह ज्यामितीय कलाकृति खोळी  की सुंदरता में चार चाँद  लगा देते हैं।
रामडा खोळी  व मकान के अन्य काष्ठ भाग सन  1965  में  तैयार हुआ था व इन्हे तैयार करने में लोहबा के प्रसिद्ध बढ़ई चंदी  राम , लूथी राम ाव एक ने बढ़ई को 7  महीने लगे थे।
निष्कर्ष में कहा जासकता है रामडा  के रा म सिंह रुदियाल  की खोळी में ज्यामितीय , प्राकृतिक , मानवीय व आध्यात्मिक प्रतीकात्मक कलाओं के दर्शन होते हैं। 
 दो राय नहीं कि लोहबा के मिस्त्री चंदी  राम व लूथीराम अपनेकाष्ठ कला उत्कीर्ण   हुनर में विश्वकर्मा   समान ही हैं   और रमाडा  में राम  सिंह रुदियाल  की खोली कल की दृष्टि से उत्कृष्ट खोळी मानी जाएगी।     

सूचना व फोटो आभार : हिमालय नव संचार पत्रिका
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
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Bhishma Kukreti:
खमण  (ढांगू  ) में विष्णु दत्त लखेड़ा की तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण

Wood Carving Art and ornamentation in Tibari of Vishnu Datt Lakhera of Khaman  (Dhangu )
खमण में तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  -3
House Wood  Carving art in Khaman , Dhangu (Garhwal )  - 3
ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  76
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   76 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 जैसा कि  पहले ही बताया जा  चुका  है कि भौगोलिक दृष्टि से खमण डबरालस्यूं में है किंतु  सामजिक कारणों से खमण गाँव मल्ला ढांगू का हिस्सा है।  कहा जाता है कि ग्वील के संस्थापक व जसपुर के मूल निवासी 'बृषभ जी'  की मां  को डबरालों  ने खमण दहेज में दान दिया था (देखें   चक्रधर कुकरेती रचित कुकरेती वंशा वली  )
  गुरु राम राय  दरबार के पूर्व महंत   मोक्ष प्राप्त इंदिरेश चरण दास  भी खमण के ही थे।
  आज खमण में विष्णु दत्त लखेड़ा की तिबारी की विवेचना होगी।  तिबारी जीर्ण शीर्ण दशा में है और मकान मरोम्मत का कार्य चल रहा है  .
आम तिबारी की भांति तिबारी पहली मंजिल पर बिठाई गयी है।  तिबारी चार स्तम्भों /सिंगाड़ की व तीन मोरी /खोळी से बनी है व स्तम्भ/सिंगाड़  के शीर्ष में arch /मेहराब /तोरण व मुरिन्ड  के ऊपर पट्टिका है जो छत आधार को छूती में कोई कला अलंकरण नहीं है।
किनारे के दोनों स्तम्भ दिवार से काष्ठ कड़ी से जोड़े गए हैं।  कड़ी में बेल बूटों  की नक्कासी है।  सम्भ का आधार  कुम्भी अधोगामी पद्म   पुष्प  दल से बनता है व अधोगामी पुष्प दल के ऊपर तक्षणयुक्त डीला  ( carved round wood plate ) है जहां से स्तम्भ  सिंगाड़ में  उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल फूटता है।  पद्म   पुष्प जैस ही  समाप्त होता है स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है।  जहां पर स्तम्भ का  शाफ़्ट /कड़ी की सबसे कम मोटाई है वहां से तीन  कला तक्षण युक्त  डीले  मिलते हैं व डीलों के ऊपर उर्घ्वगामी  पद्म  पुष्प दल है।  यहीं से स्तम्भ का थांत आकृती (bat blade नुमा )  शुरू हो ऊपर छत आधार पट्टिका  से मिल जाता है, यहीं से तोरण /arch /महराब की अर्ध  पट्टिका  शुरू होती है जो दूसरे    स्तम्भ के अर्ध तोरण पट्टिका मिल कर पूर्ण तोरण बनाते हैं।  तोरण का बनावट तिपत्ति  नुमा है किन्तु बीच मध्य में  कटान तीक्ष्ण है।  तोरण पट्टिका पर प्राकृतिक (बेल बूटे ) अलकंरण उत्कीर्ण हुआ हिअ व तोरण पट्टिका के दोनों किनारों में  एक एक अष्टदलीय पुष्प  उत्कीर्णित हैं।  कुल  मिलाकर तिबारी में   6  अष्टदलीय  पुष्प मिलते हैं.
स्तम्भ व मुरिन्ड  व मुरिन्ड  के ऊपर  खिन भी मानवीय या धार्मिक प्रतीक की कोई  आकृति खमण के विष्णु दत्त लखेड़ा की तिबारी  में नहीं मिलते हैं।  आश्चर्य है कि   खोळी  भी  साधारण  है या कलायुक्त खोळी (entry gate  at  ground floor ) की सूचना  आनी बाकी है।
निष्कर्ष निकलता है कि खमण में विष्णु दत्त लखेड़ा की तिबारी ढांगू , उदयपुर , लंगूर , डबराल स्यूं की अन्य  सामन्य तिबारियों जैसे  ही प्राकृतिक व ज्यामितीय अलंकरण  से कलायुक्त व अलंकृत है।  क्षेत्र की अन्य तिबारियों से अलग कोई विशेष कला /अलंकरण विष्णु दत्त लखेड़ा की तिबारी में नहीं मिलते हैं।  यह सत्य है कि एक  या दो   दशक पूर्व तक विष्णु दत्त लखेड़ा की तिबारी खमण व विष्णु दत्त  लखेड़ा की विशेष पहचान ( brand identity ) थी। 

सूचना व फोटो आभार : बिमल  कुकरेती,  व राजेश कुकरेती , खमण
Copyright @  B  . C . Kukreti, 2020 
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