Author Topic: House Wood carving Art /Ornamentation Uttarakhand ; उत्तराखंड में भवन काष्ठ कल  (Read 37155 times)

Bhishma Kukreti

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  मझेड़ा (ककलासी) में  राय बहादुर ठा .सुरेन्द्र सिंह डंगवाल की भव्य बखाईयों  में  काष्ठ कला , अलंकरण

कुमाऊं   संदर्भ में उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  ( बखाई , मोरी , छाज ) काष्ठ अंकन लोक कला   श्रृंखला  - 3
Traditional House Wood Carving Art (Bakhai  and Kholi ) of  Kumaon , Uttarakhand , Himalaya -   3
उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाई , मोरी , छाज   )  अंकन लोक कला श्रृंखला  - 94
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  , Uttarakhand , Himalaya -   94
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  अल्मोड़ा जनपद के रानीखेत  , भिकियासैण मंडल में   गाँव   मझेड़ी    तब के  राय बहादुर साब ठाकुर सुरेंद्र  सिंह डंगवाल के कारण प्रसिद्ध था तो आज भी   मझेड़ी   गाँव राय  बहादुर सुरेंद्र  सिंह डंगवाल की निर्मित  बखाई की भव्यता के   कारण प्रसिद्ध ह
  मझेड़ी गाँव में  राय बहादुर ठाकुर सुरेंद्र सिंह डंगवाल की भव्य बखाई में काष्ठ  कला आकलन के लिए तल मंजिल के दरवाजों , व मकान के खिड़कियों , ढाईपुर की खिड़कियों , पहली मंजिल में खोलियों व तल मंजिल में  प्रवेश द्वार पर काष्ठ कला को समझना आवश्यक है।
 ज्यामितीय अलंकरण
  तल मंजिल , पहली मंजिल पर  सामने व किनारे की  खिड़कियों , सामन्य दरवाजों , ढैपुर की खिड़कियों में  ज्यामितीय अलंकरण अंकित हुआ है जैसे तल मंजिल के सामने  के किनारे के दरवाजों पर त्रिभुजाकार आकृतियां उत्कीर्ण की गयी है  अन्य जगहों में सपाट अलंकरण हुआ है।
      ढैपुर   वाले भवन की खोलियों में नक्कासी
 ढैपुर  वाले भाग के पहली मंजिल की खोलियों में   दरवाजों के दोनों सिंगाड़ /स्तम्भों में नक्कासी हुयी है।  आधार पर कमल फूल है फिर स्तम्भ स्पॉट होते है  लेकिन  शीर्ष में मुरिन्ड पट्टिका से मिलने से पहले  स्तम्भों में कमल जैसे ही कुछ नक्कासी हुयी है।  दरवाजे के  शीर्ष पट्टिका (भू  समांतर )  में  प्राकृतिक अलंकरण दृष्टिगोचर होता है।  जालीनुमा अंकन व  आध्यात्मिक प्रतीकात्मक अंकन भी शीर्ष पट्टिका में दिख रहा है।
  बिन ढैपुर  की बखाई की पहली मंजिल में मोटरियों की निर्माण शैली  ढैपुर तले की बखाई की खोली से अलग है व कला पक्ष भी विशेष अलग है।  बिन ढैपुर की बखाई भाग की खोली लगभग  बिंतोली   (बागेश्वर ) के कौस्तुभ चंदोला (भाग 79 )  की बखाई की खली जैसे ही है याने  कि किनारे दो दो स्तम्भ ों का मिलकर एक  एक स्तम्भ बनाना व स्तम्भ आधार  में अधोगामी कमल दल की कुम्भी (घट आकर )  , फिर  डीला  (ring type wooden plate ) , फिर उर्घ्वगामी कमल दल , फिर स्तम्भ का मोटा कम होना व फिर शीर्ष में पंहुचने से पहले डीला , कमल दल व तब स्तम्भ शीर्ष  पट्टिका से मिलते हैं।  शीर्ष पट्टिका  से मिलने से पहले स्तम्भ कुछ अर्ध चाप टॉर्न भी बनाते हैं।  शीर्ष पट्टिका के ऊपर ायतकार पट्टी है जहां सूर्य , अधाय्त्मिक प्रतीकात्मक  अलंकरण उत्कीर्ण  व प्राकृतिक कला अंकन हुआ है।  शीर्ष पट्टिका या मोरी के ऊपरी भाग के बगल में दोनों ओर छपरिका से  नीचे की और नक्काशीयुक्त दीवारगीर हैं व छप्परिका आधार से कायस्थ शंकु भी लटक्क रहे हैं।
   निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि   राय बहादुर  ठाकुर सुरेंद्र सिंह डंगवाल की बखाईयों में प्रत्येक भाग में अलग अलग रंग की   काष्ठ  कला के दर्शन होते हैं व मोरियों /छाज  में तो  ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय ( अधयत्मिक प्रतीक ) तीनों प्रकार के अलंकरण मिलते हैं।  बखाई देख क्र बरबस जबान से शब्द निकल ही जाएगा " ब्वा  वाह  ! राय साब ने क्या  रंगतदार बखाई बनाई है !"   
   
सूचना व फोटो आभार : ठाकुर  बलवंत सिंह डंगवाल  , मझेड़ा
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
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Bhishma Kukreti

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डंगळा (डबरालस्यूं ) में आत्माराम ममगाईं के तिबारी -जंगलेदार मकान में काष्ठ कला अंकन 

डबरालस्यूं संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला /लोक कला  -9

House   Carving  Art (ornamentation ) in Dabralsyun  Garhwal , Uttarakhand  -  9 

  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों  , बखाईयों ,खोलियों ,  मोरियों  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   

  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya     

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  गढ़वाल, कुमाऊं , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाई , मोरियों , खोलियों   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 95

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   95

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 संकलन - भीष्म कुकरेती

 डंगळा डबरालस्यूं का एक महत्वपूर्ण गाँव है।  इस गांव में डबराल , ममगाईं , कुकरेती व कुछ शिल्पकारों के परिवार बसा करते थे।  सुघड़ मकानों के लिए  डंगळा का सम्मान था।  उत्तराखंड के भवन काष्ठ  कला, अलंकरण कड़ी  में आज डंगळा  के आत्माराम ममगाई  की तिबारी व इसी मकान पर बीतए जंगल में काष्ठ  कला पर विस्तृत चर्चा होगी। 

आत्माराम ममगाईं  के  इस भवन में काष्ठ  कला समझने हेतु इसे तीन भागों में बाँट कर समझना। होगा  तिबारी में काष्ठ अलंकरण , पहली मंजिल के जंगले  में काष्ठ कला , तल मंजिल में स्थित खोली (प्रवेशद्वार ) में काष्ठ कला व भाग्य से आंगन दिवार में रखे पुराने  लघु स्तम्भों में काष्ठ कला।

  समान्यतया गंगासलाण  में  मकान में जंगला नहीं बंधा जाता था।  अब तक के सर्वेक्षण में ग्वील व पुरण कोट में यह अपवाद मिला था। 

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आत्माराम ममगाईं के मकान के जंगले के स्तम्भों में काष्ठ कला

 दुखंड /तिभित्या  (एक कमरा नादर व एक कमरा बाहर ) मकान के पहली मंजिल में छज्जे से बाहर काष्ठ पट्टिका लगाकर उसके ऊपर जंगला बांधा  गया व जनलगे में  लगभग दस काष्ठ स्तम्भ है।  प्रत्येक स्तम्भ के मध्य में  एक डीला आकृत अंकित है व डीले  के नीचे अधोगामी कलम दल उभरा है व डीले  के ऊपर उर्घ्वगामी कमल दल की आकृत उत्कीर्ण हुयी है। फिर यही  अंकन क्रम स्तम्भों के शीर्ष में पंहुचने से पहले भी है याने अधोगामी कमल दल फिर डीला  व फिर  उर्घ्वगामी  पद्म दल का नकन . बाकी जगहों में स्तम्भ सपाट  ही हैं।

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      तिबारी में काष्ठ अंकन

 गंगासलाण की अन्य तिबारियों भांति भी आत्मा राम ममगाईं की तिबारी  पहली मंजिल में देहरी पर टिकी है व चार काष्ठ स्तम्भों वाली  तिबारी है। चार स्तम्भ तीन खोली /द्वार /मोरी बनाते हैं।  किनारे के स्तम्भ को दीवार से जोड़ने वाली काष्ठ  कड़ी में रेखाओं से ज्यामितीय कला उत्कीर्ण है जो कई प्रकार की छवि प्रदान करती हैं।  प्रत्येक सम्भ के आधार पर कुम्भी अधोगामी कमल दल से बना है , फिर डीला है , डीले के ऊपर उर्घ्वगामी पद्म दल अंकित है फिर स्तम्भ की मोटाई यहां से कम होती जाती है।  जहां पर स्तम्भ की मोटाई सबसे कम है वाहन ढ़ोगामी कलम दल का पुष्प मिलता है।  अधोगामी कलम पुष्प के बाद डीला है व डीले के ऊपर उर्घ्वगामी कमल  पद्म पुष्प दल हैं।  उर्घ्वगामी कमल दल के ऊपर सीधा स्तम्भ का थांत (wood bat  blade ) शुरू होता है जो अंत में ऊपर शीर्ष /मुरिन्ड  से मिलता है।   जहां से उर्घ्वगामी कमल दल समाप्त होता है वहीं से स्तम्भ से मेहराब /तोरण  का अर्ध चाप भी शुरू होता है। तीनों चाप /मेहराब /तोरण /arch कुछ कुछ ट्यूडर arch  की शक्ल के हैं।  चाप की पर्टयक तह में  प्राक्रितिक व ज्यामितीय  आकृतियां उत्कीर्ण हुयी है।  चाप के ऊपर किनारे की काष्ठ पट्टिकाओं में प्रत्येक किनारे पर धर्म चक्र नुमा आकृति भी स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है।  इसी पट्टिका में प्राकृतिक व ज्यामितीय कलाकारी साफ़ दिखती है।  शीर्ष  पट्टिका (छत के आधार से नीचे  की पट्टिका में भी   ज्यामितीय कला अलंकृत उत्कीर्णित है। 

  स्तम्भ के थांत में छाप दिखाई दे रहे हैं जो इस बात का द्योत्तक है कि स्तम्भ के थांत पर दीवारगीर /bracket लगा था।  आंगन में लघु स्तम्भों की भी फोटो ली गयी है शायद ये लघु स्तम्भ  थांत के ऊपर दीवारगीर थे।  इन लघु स्तम्भों में   उत्कीर्णित कमल दलों  से लगता है दीवारगीर  स्तम्भों में कला उत्कीर्ण थी। 

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  तल मंजिल में खोली  पर काष्ठ कला अंकन

तल मंजिल में ऊपर आने हेतु खोली है।  यद्यपि उत्कीर्ण पूरा साफ़ नहीं दिखाई देता है किन्तु  किनारे के सिंगाड़  की आकृति बताती है कि  आधार पर कमल दल की आकृति थी व ऊपर पत्तियोन का अलंकरण कला।  शीर्ष या  मेहराब /arch नुमा मुरिन्ड है जिसपर अवश्य ही कला उत्कीर्ण हुयी थी जो अब चुने की पुताई के कारण धूमिल पद गया है।

 निष्कर्ष में कह सकते हैं कि डंगळा  (डबराल स्यूं ) के स्व आत्माराम ममगाईं के  तिबारी व जंगला मिश्रित मकान में प्राकृतिक , ज्यामितीय अलंकरण हुआ है किन्तु मानवीय (figurative ) अलंकरण के दर्शन इस तिबारी -जंगल में नहीं दीखते हैं।   

सूचना व फोटो आभार : हिमालय के प्रसिद्ध संस्कृति फोटोग्राफर बिक्रम तिवारी Vickey

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Bhishma Kukreti

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गमशाली गाँव में केदार सिंह फोनिया के मकान में  भवन काष्ठ कला व काष्ठ अलंकरण

(केवल कला व अलंकरण  केंद्रित )

 

House wood Art /ornamentation in House of Kedar Singh Phonia of Gamshali (Chamoli)

 

चमोली , गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार मकानों (तिबारी , बखाई )  में काष्ठ कला , अलंकरण -4

 Traditional House Wood Carving of  Chamoli  Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  -4

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  गढ़वाल, कुमाऊं उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगले दार , बखाई , खोली , मोरी , छाज   ) काष्ठ अंकन लोक कला  अलंकरण   - 96 

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of   Chamoli  , Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -  96 

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 संकलन - भीष्म कुकरेती

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 वास्तुकला की दृष्टि  से चमोली सदियों से भाग्यशाली रहा है।  वास्तव में चमोली की कला , भाषा , संस्कृति पर तीन क्षेत्रों का प्रभाव आज भी दृष्टिगोचर होता है।  चमोली के प्राचीन कलाओं व वाणिज्य शैली पर तिब्बती प्रभाव ,   कुमाऊं का प्रभाव व दक्षिण गढ़वाल का प्रभाव साफ़ झलकता है। 

भारत  व चीन सीमा पर बसे गमशाली गाँव में भूत  पूर्व उत्तर प्रदेश के मंत्री केदार सिंह फोनिया के भव्य मकान में कुमाऊं की बखाई शैली (मोरी आदि ) , गढ़वाल की तिबारी शैली का मिश्रण साफ़ साफ़ झलकता है।

गमशाली में केदार सिंह फोनिया के भवन में  काष्ठ  कला /अलंकरण /काष्ठ नक्कासी विवेचना हेतु  भवन के निम्न भागों को परखना आवश्यक है -

तल मंजिल में सामन्य कमरे के दरवाजों , सिंगाड़ , मुरिन्ड में काष्ठ कला /अंकरण

 तल मंजिल में स्थित खोली /खोळी के दरवाजों , सिंगाड़ों  , मुरिन्ड , व मुरिन्ड ऊपर  काष्ठ  कला /अलंकरण

तल मंजिल में खोली के ऊपरी भाग में दोनों ओर स्थित दीवारगीरों व दीवारगीरों के मध्य पट्टिका पर नक्कासी , अलंकरण ,

तल मंजिल में खिड़की /मोरी में काष्ठ कला

पहली मंजिल में तिबारी में काष्ठ  कला , काष्ठ  अलंकरण

पहली मंजिल में स्थित  अन्य द्वार पर काष्ठ अलंकरण

पहली मंजिल पर स्थित मोरी /खिड़की में काष्ठ कला अलंकरण

 छज्जे के आधार , छत्त आधार पट्टिकाओं में काष्ठ उत्कीरण व अलंकरण

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 तल मंजिल के सांय दरवाजों में नक्कासी , अलंकरण

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भूतपूर्व उत्तर प्रदेश के मंत्री केदार सिंह  फोनिया  के दुखंड /तिभित्या  दो पुर मकान में तल मंजिल के सामन्य कमरे के दरवाजों में ज्यामितीय नक्कासी हुयी है व दरवाजों में सौंदर्य  वृद्धि  हो जाती है।  यद्यपि सिंगाड़ों  में कोई विशेष कला के दर्शन नहीं होते हैं किन्तु   सिंगाड़ों  के आधार पर दार्शनिक कला युक्त दीवारगीर स्थापित किये गए हैं।

मुरिन्ड पट्टिका के केंद्र में काष्ठ देव प्रतिमा जड़ी है जो सम्भवतया  मुकुटयुक्त  चतुर्भुज गणेश की है जिसके एक हाथ में गदा , एक हाथ में कुल्हाड़ी है व गणेश बैठी स्थिति में है। 

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   तल मंजिल में खोली पर नक्कासी कला -

खोली या पहली मंजिल में जाने के लिए अंदरूनी प्रवेश द्वार के दरवाजों पर भी शानदार ज्यामितीय कला उत्कीर्ण हुयी है ठीक जैसे सामन्य कमरे के दरवाजों पर है।  सिंगाड व बगल की पट्टिकाओं में  प्रशंसनीय बेल बूटों की नक्कासी उत्कीर्ण हुयी है। 

   खोली के चार दीवारगीर -

मुरिन्ड /सिंगाड़  के बगल में छजजा आधार से दोनों ओर  दो दो दीवारगीर स्थापित हैं व बीच में बेल बूटे युक्त कलयुक्त पट्टिका भी स्थापित हैं। एक ओर के नीची वाले दोनों दीवारगीरों में प्राकृतिक  अलंकरण का अभिनव प्रयोग हुआ है , पुष्प केशर /फूल के नाल , पराग गण  नाल , ओवरी /अंडाशय आदि  हैं जो एक शंकुनुमा आकृति से बने है और ऐसा आभास भी देते हैं जैसे किसी बड़ी चिड़िया की चूंच हो , इस पुष्प नाभिका या केशर के ऊपर चिलगोजा। छ्यूंती  का एक दल हो व ऊपर घुंगराले बाल की कोई लट  हो जैसा आभाष होता है , इस पुष्प दल नाल , केशर आकृति के ऊपर हर दीवारगीर में पशु अंकित हुआ है।  एक दीवारगीर के ऊपरी भाग में हाथी  अंकित हुआ है तो दूसरे दीवारगीर के ऊपरी भाग में कोई बड़ी चिड़िया अंकित ह्यु है जो वास्तव में डायनासोर की याद दिला देते हैं  (यद्यपि कलाकार का मंतव्य डायनासोर नहीं रहा है ) , हाथी की सूंड में कमल दल व अन्य  वनपस्ति पत्तियों की चित्रकारी हुयी है तो पक्षी के ऊपर भी बेल बूटों  की आकृति  अंकित हुयी है। 

 सिंगाड़   आधार में भी देव  आकृति व प्रकृति आकृ का मिला जुला संगम अंकित वाली पट्टिका स्थापित हुयी है।

 मोरी के मुरिन्ड पट्टिका के केंद्र में भी गणेश प्रतिमा अंकित है।

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 केदार सिंह फोनिया के मकान के पहली मंजिल में  मेहराब युक्त भव्य तिबारी में  काष्ठ अंकन -

मकान की चार स्तम्भों व तीन मोरियों /द्वारों /खोलियों की तिबारी पहली मंजिल पर स्थित है। 

किनारे के स्तम्भों को दीवार से जोड़ने वाली कड़ी में बेल बूटे  अंकित हैं। 

 प्रत्येक स्तम्भ  के आधार में  अधोगामी कमल दल से कुम्भी (पथ्वड़ ) बनता है व उसके ऊपर डीला  है , ढीले के ऊपर उर्घ्वगामी  पद्म    दल अंकित है व दोनों प्रकार के  कमल दलों में पत्तियों जैसे आकृतियां अंकित हुयी है हैं।  उर्घ्वगामी कमल दल  के बाद स्तम्भ की मोटई कम होती जाती है व् जब कम से कम मोटाई आती है तो तीन  डीले  उभर कर आये हैं व ऊपर फिर से उर्घ्वगामी कमल दल उभर कर आये हैं। कमल  पुष्प दल से ही प्रत्येक स्तम्भ से मेहराब arch शुरू होता है जो दूसरे  स्तम्भ के  अर्ध चाप से मिलकर पूर्ण चाप /आर्च /मेहराब बनाते हैं।  मेहराब /तोरण /arch बहु तलीय है व  तोरण के बाह्य पट्टिका के दोनों ओर  की पट्टिकाओं में वानस्पतिक अलंकरण अंकन हुआ है।  प्रत्येक मुरिन्ड  पट्टिका के मध्य धार्मिक प्रतीक (मानवीय अलंकरण ) प्रतिमसा जड़ी है।   याने तिबारी में  इस तरह की कुल तीन प्रतिमाएं है।

   तिबारी के मोरी के दरवाजों पर अलंकरण

  तिबारी दरवाजों पर व पहली मंजिल के कमरे के दरवाजों में दोनों पर ज्यामितीय कला  अलंकरण वास्तव में   काष्ठ कला का अभिनव उदाहरण है।  नमन कलकारों को। 

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पहली मंजिल पर स्थित कमरे के सिंगाड़  व मुरिन्ड में काष्ठ अलंकरण  अंकन -

गमशाली में केदार सिंह फोनिया  के मकान में पहली मंजिल के   दूसरे कमरे  के सिंगाड़ , मुरिन्ड  व दरवाजों पर भी दर्शनीय , नयनाभिरामी कला उत्कीर्णित हुयी है।

स्तम्भ /सिंगाड़ में तकरीबन वैसे ही नक्कासी हुयी है जैसे तिबारी के स्तम्भों में कला अलंकरण।  इस कमरे में भी तोरण /मेहराब /arch बना है जिसके दोनों ओर प्राकृतिक अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है। मुरिन्ड  के ऊपर देव प्रतिमा प्रतीक बिठाया गया है।

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  पहली मंजिल की खिड़की /मोरी में नक्कासी -

 तिबारी व दूसरे  कमरे के मध्य दीवाल में एक मोरी /खिड़की है।  मोरी के सिंगाड़ , दरवाजों , मुरिन्ड में ज्यामितीय कला अंकन है किन्तु खिड़की तोरण /arch  के ऊपर भाग में फूल पत्तियों की नक्कासी हुयी है। इसी चाप नुमा आकृति के ऊपरी भाग  में प्रार्थना नुमा आखर अंकित हैं।

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छत आधार पट्टिका व छज्जे से लटकते शंकु आकृतियां -

छत के आधार की पट्टिकाओं में ज्यामितीय  कला दर्शन होते हैं व नीचे की  पट्टिका से दसियों शंकु आकृति लटकी हैं।  इसी तरह छज्जे के आधार से भी शंकु ाकृत्यं लटकी हैं।

चूँकि खिड़कियों का आकर बड़ा है तो साबित होता है कि  मकान 1960  के पश्चात ही निर्मित हुआ होगा।

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 निष्कर्ष निकलता है कि  भारत के सीमावर्ती गाँव गमशाली  में भूतपूर्व मंत्री केदार सिंह फोनिया का मकान भव्य तो है ही इस मकान में प्राकृतिक , ज्यामितीय व मानवीय अलंकरण बहुत ही उम्दा ढंग से हुआ है और यह तिबारी कला  दृष्टि से उच्च कोटि  में मकान में सुमार होगी ही।

सूचना व फोटो आभार : डा चंद्र प्रकाश कुनियाल

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Bhishma Kukreti

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नाली गांव  (अजमेर ) के प्रताप सिंह नेगी (तहसीलदार साब )   की तिबारी व   खोली में काष्ठ  ,   अलंकरण
  ( उच्च  श्रेणी का तिपुर  व तिबारी  )
अजमेर संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ  कला  अंकन श्रृंखला -  4
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  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बखाई , मोरी , खोली    ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  97

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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 जब भी दक्षिण पश्चिम गढ़वाल की तिबारियों , तिपुरों  की चर्चा होगी तो अवश्य ही नाली गाँव ( अजमेर )  के प्रताप सिंह नेगी 'तहसीलदार साब ' के तिपुर व तिबारी व खोली की  चर्चा होगी , बिना प्रताप सिंह नेगी के तिबारी की चर्चा गंगा सलाण  की तिबारियों की चर्चा फ़िजूल ही मानी जाएगी
  दक्षिण गढ़वाल में पहली मंजिल (दुपुर ) व तीसरी मंजिल (ढैपुर या तिपुर ) निर्माण की शैली वास्तव में ब्रिटिश राज में 1890  के पश्चात ही प्रचलन में आया।  माहमारी दूर करने हेतु ब्रिटिश अधिकारियों ने गौशालाओं  को रहवासी मकानों से अलग निर्माण की प्रेरणा के बाद ही दक्षिण गढ़वाल में तिबारी आदि का प्रचलन बढ़ा। 
नाली गाँव  के स्व प्रताप सिंह नेगी 'तहसीलदार साब '  प्रस्तुत तिबारी व खोली भी द्योतक है कि जब गढ़वाल में कृषि व नौकरी से समृद्धि आयी तो तिबारियों  , निमदरियों या जंगलेदार मकानों का प्रचलन बढ़ा।  नाली गाँव के प्रताप सिंह नेगी के तिपुर  मकान में बड़ी  खिड़की से  अनुमान लगाना सरल है कि  मकान सन  1940  ले लगभग या उसके बाद ही निर्मित हुआ होगा।   
   मकान दुखंड / तिभित्या  व तिपुर (तल व दो अन्य मंजिलें ) वाला मकान है।  मकान में तिबारी है तो तल मंजिल से अंदर ही अंदर जाने हेतु प्रवेश द्वार  या खोली भी है , तिबारी व खोली में काष्ठ कला अंकन के विशेष दर्शन प्रताप सिंह नेगी की तिबारी व खोली में होते हैं।
   नाली गाँव के प्रताप सिंह नेगी के मकान में काष्ठ  संरचना ,कला , अलंकरण समझने ह हेतु तीन भागों में ध्यान देना आवश्यक है
 पाषाण छज्जे को  आधार  देने हेतु  बने कलयुक्त , नक्कासीदार दासों (टोड़िओं ) की संरचना , कला अलंकरण   का आकलन व विश्लेषण
तल मंजिल में कमरों के दरवाजों व खोली (प्रवेशद्वार )  की  काष्ठ  संरचना , कला व अलंकरण  विवेचना
 पहली मंजिल पर तिबारी व तिबारी के ऊपर  तीसरी मंजिल  छत तक काष्ठ  पट्टिका व उस पर नक्कासी , तिबारी पर  काष्ठ   कला व अलंकरण व छत आधार से लटकते  काष्ठ शंकुओं  की काष्ठ कला उत्कीर्णन शैली।
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         -: पाषाण छज्जे के अधहार काष्ठ दासों में नक्कासी :-
  कम  चौड़े पाषाण छज्जे को  काष्ठ दासों  ने आधार दिया है।  हर काष्ठ  दास  में कलात्मक प्राकृतिक अलंकरण अंकन  हुआ है।  दास के सामने नीचे भाग में अधोगामी कमल दल है।  कमल दल के ऊपर बड़े पुष्प की पंखुड़ियां है  व इन पंखुड़ियों के ऊपर पुष्प  केशर नाल है , ऊपर दास का आयताकार गुटका है।  दासों के बगल में  पुष्प चक्र अंकित है  व तरंगे आभास करते कलयुक्त अंकन भी है। 
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-: तल मंजिल में खोली  संबंधी   काष्ठ  संरचना , कला व अलंकरण :-
खोली में दो स्थलों पर कला विवेचना हेतु ध्यान देना अविक है - सिंगाड़ -मुरिन्ड में व खोली के ऊपर अगल बगल में  काष्ठ दीवालगीरों पर नक्कासी
खोली के सिंगाड़/स्तम्भ  व मुरिन्ड  (शीर्ष ) एक बड़ा चाप /तोरण निर्माण करते हैं।   स्तम्भों में आधार पर कमल दल है व ऊपर की और बेल बूटेदार  अंकन हुआ है।  मुरिन्ड में शानदार कलात्मक प्राकृतिक /वानस्पतिक व ज्यामितीय कला अलंकरण हुआ है।  मुरिन्ड के मध्य एक देव /आध्यात्मिक प्रतिमा जड़ी है।
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           :-खोली के बगल में दीवालगीरों में कायस्थ अलंकरण -:
  खोली के ऊपर व मुरिन्ड के अगल बगल दोनों ओर तीन तीन दिवालगीर  हैं जिनपर शानदार हृदय में उत्साह भरने वाली नक्कासी हुयी है।  प्रतीक दीवालगीर  में  नीचे  के दो  स्तरों  में  बड़ा पुष्प केशर नाल  जो चिड़िया चोंच का आभास भी देता है का अंकन हुआ है।  दीवालगीर के ऊपर स्तर में एक आधार /चौकी /impost है जिस पर किनारे में हाथी खड़े हैं व बीच के दीवालगीर में कोई चिड़िया अथवा कोई पशु  अंकित हुआ है।  काष्ठ अंकन चित्रकारी इतनी बारीकी से हुआ है कि  हाथियों के दांत भी नयनाभिरामी हैं। 
तल मंजिल के दूसरे कमरों के मुरिन्ड में  आध्यात्मिक /शगुन /भाग्यदेय पर्तीकात्मक  काष्ठ पुष्प चक्र मंडित  हुए हैं ।
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  -:  पहली मंजिल में  छज्जे के ऊपर स्थित तिबारी में काष्ठ  अंकन -:
 तिबारी की कला विवेचना हेतु दो भागों को समझना आवश्यक है १- मुख्य तिबारी व २- तिबारी के ऊपर तिपुर छत तक काष्ठ  कला , अलंकरण।
 तिबारी क्षेत्र की आम तिबारियों जैसे ही भव्य है जिसमे चार स्तम्भ /सिंगाड़  का तीन खोली /द्वार /मोरी हैं व  मेहराब युक्त  मुरिन्ड हैं।  प्रत्येक स्तम्भ के आधार का कुम्भी अधोगामी पद्म पुष्प दल /petals  हैं जिसके ऊपर डीला /ring type  wood  plate  है जहां से उर्घ्वगामी पद्म दल है व जिअसे ही उर्घ्वगामी कमल समाप्त होता है स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है।  जहां पर स्तम्भ शबे कम मोटा है वहां पर एक डीला उभरता है जिसके ऊपर उर्घ्वगामी कमल दल अंकित है।  कमल दल समाप्त होते ही स्तम्भ  से ऊपर सीधा स्तम्भ थांत भाग (bat blade type ) शुरू होता है जो मुरिन्ड ऊपर की एक समानांतर कड़ी से मिलते हैं।  यहीं पर सत्मव्ह के दूसरी  ओर  मुरिन्ड  का रद्द चाप शुरू होता है जो  दूसरे स्तम्भ के  अर्ध चाप से मिल पूरा arch /मेहराब /तोरण बनाते हैं।  मेहराब /arch /तोरण /चाप ट्यूडर नुमा आकृति की है व बहु तह वाली है। 
    मेहराब के ऊपरी किनारे की पत्तियों में एक एक ओर बहु दलीय  भाग्य डिटक पुष्प अंकित हुआ है व इस पट्टिका में वानस्पतिक कला अंकन हुआ है। स्तम्भों को जोड़ू  कड़ी में वानस्पतिक नक्कासी हई है।
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  -:  मुरिन्ड के ऊपर व तिपुर  छत के नीचे काष्ठ पट्टिका में काष्ठ अलंकरण अंकन :-
नाली गाँव (अजमेर ) के प्रताप सिंह नेगी 'तहसीलदार साब '  का मकान की मुख्य विशेषताओं में एक विशेषता है कि  तिपुर  छत से तिबारी मुरिन्ड  तक एक काष्ठ पट्टिका है जिस पर नकासी तो है ही साथ में  चार स्तम्भों के ठीक  ऊपर इस पट्टिका में  च रचार दीवालगीर (bracket ) उत्कीर्णित हैं।  गंगा सलाण या दक्षिण पश्चिम पौड़ी गढ़वाल  के भूभाग में अभी तक के सर्वक्षण में  ऐसा carving उत्कीर्णन नहीं मिला है।
    लकड़ी के दीवालगीर  कुछ कुछ खोली के दीवालगीर जैसे ही हैं  याने निम्न दो स्तरों में पुष्प केशर नाल (पराग गण नलिका ) व पुष्प जो   चिड़िया चोंच का भी आभास देता है व सबसे ऊपर के स्तर में हाथी या ने पश्य या पक्षी।  मुरिन्ड व तिपुर छत आधार के मध्य की बड़ी पट्टिका में अवश्य ही चित्रकारी उत्कीर्ण हुयी होगी किन्तु भवन के आग लगने से यह भाग नष्ट हो गया है अतः  अंकन  शैली व अर्चना का अनुमान लगाना कठिन है।
                 -:निष्कर्ष -:
 जब भी दक्षिण  पश्चिम गढ़वाल  (गंगा सलाण  )  में तिपुर  व तिबारियों की चर्चा होगी तो अवश्य ही नाली गाँव (अजमेर )  के प्रताप सिंह नेगी 'तहसीलदार साब ' की तिबारी  व मकान की  भी चर्चा होगी।   प्रताप सिंह नेगी की तिबारी व तिपुर  में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरणों का सर्वोचित्त पटयोग हुआ है व कला के सभी सिद्धांतों जैसे - एकरसता , सम्पूर्णता (2 =2 =4  नहीं अपितु इन्फिनिटी ) , एकरसता तोड़ने की रन नीति ;  दोनों ओर  औपचारिक संतुलन , गतिशीलता या तरंग पैदा करने की ताकत आदि सभी कुछ है।

सूचना व फोटो आभार : संजय नेगी , नाली गाँव
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun, Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya     to be  continued 
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला  जारी
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya    to be  continued


Bhishma Kukreti

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पुजालटी (जौनपुर , टिहरी ) में राम लाल गौड़ की भव्य  तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण 

House wood carving art, ornamentation in Tibari of Ram Lal Gaur of Pujalati (Juanpur, Tehri Garhwal ) 

गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाई  ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  98 

संकलन - भीष्म कुकरेती -

   सांस्कृतिक दृष्टी से जौनपुर   गढ़वाल का एक  महवतपूर्ण क्षेत्र है।  जौनपुर ब्लॉक में पुजालटी  गांव कृषि समृद्ध गाँव मन जाता है अब पलायन से कृषि मार खा रही है। 

प्रस्तुत तिबारी पुजालटी गांव के  स्व .  राम चंद्र गौड़ ने निर्मित करवाई थी और कह सके हैं की रामचंद्र गौड़ ने तिबारी हृदय की गहराईयों से निर्मित करवाई है।  एंड रदेवदारु की लकड़ी पर इस तरह की नक्कासी है कि  लगता नहीं किसी सामन्य किसान की तिबारी है अपितु महल लगता है।

 पुजालटी  गांव में राम लाल गौड़ की  मकान दुखंड /तिभित्या  व तिपुर (तल मंजिल + दो मंजिल )  वाला मकान है.

पहली मंजिल पर स्थापित तिबारी में 14  देवदार काष्ठ के खूबसूरत स्तम्भ /सिंगाड़  हैं और ये 14 स्तम्भ तेरह  मोरी /द्वार या खोली बनाते हैं।  स्तम्भ  आधा रकाष्ठ का चाओकोर डौळ हैऔर उस पर स्तम्भ की कुम्भी /पथ्वड़ शुरू  होती है जो अधोगामी कमल दल की आकृति की है ।  अधोगामी मकल दल की समाप्ति पर डीला /ring type wood plate  है व देले के ऊपर खूबसरत उर्घ्वगामी पद्म  दल है।  उर्घ्वगामी व अधोगामी कमल दल में दल या पंखुड़ियों पर कोई चित्रकारी है अपितु सपाट हैं और खूबसूरत हैं।  जहां पर उर्घ्वगामी पद्म दल समाप्त होता हैवहां से स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है और जब सबसे कम मोटाई आती है तो वहां डीला है व डीले  के ऊपर सीधा स्तम्भ का थांत (bat blade ) शुरू होता है व दूसरे ओर मेहराब का अर्ध चाप शुरू होता है जो दूसरे स्तम्भ के अर्ध चाप से मिलकर पूर्ण चाप   arch /खोली निर्मित करता है।  स्तम्भ थांत व मेहराब छत आधार पट्टिका से मिल जाते हैं।  अंदर लम्बे बरामदे या बैठक /तिबारी में छत व दीवारों में कष्ट कलाकारी देखने लायक है और आश्चर्य है कि साडी कला ज्यामितीय ही है व सरल है।  कला में कहा जाता है कि सबसे कठिन कार्य सरल कला  रचना है।  राम लाल गौड़ की भव्यतम तिबारी में कला अपने सरलतम रूप में है किन्तु नयनभिराम सर्वाधिक है ।

तिबारी या मकान भव्य है व् great है , बड़ी तिबारियों में एक ुफड़ाहरण है राम लाल गौड़ की तिबारी . कहा जाता है कि जौनपुर  में इस तरह की  केवल दो त्याबरियाँ ही थीं।

सूचना मिली है कि जब स्व  राम चंद्र गौड़ ने तिबारी निर्माण करवाया था तो एक स्तम्भ की कीमत रूपये 60 आयी थी जो उस समय भारी रकम मानी  जाती थी।  मकान लगभग 1925 के आस पास ही निर्मित  हुआ होगा। 

निष्कर्ष निकलता है कि राम लाल गौड़ की तिबारी वाला मकान भव्य क्या भभ्य तम  हैऔर ज्यामितीय व वनस्पतीय अलंकरण से नयनाभिरामी कला उत्कीर्ण हुयी है।

 

  सूचना व फोटो आभार : हर्ष डबराल

 

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  टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड , हिमालय में भवन काष्ठ  कला अंकन -   6

  Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  -  6

  Traditional House Wood Carving Art (Tibari) Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -  98 

घनसाली तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;  टिहरी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   धनौल्टी,   टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   जाखनी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   प्रताप  नगर तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   देव प्रयाग    तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला; House Wood carving Art from   Tehri;     

 

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धारकोट -मरोड़ा (उदयपुर ) में महीधर मारवाड़ी की  तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण

उदयपुर गढ़वाल, हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों, जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला-15
    गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  99 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  डांडामंडल उदयपुर पट्टी  क्षेत्र की गिनती   संदरतम  स्थलों (मिनी कश्मीर )  में गिनती की जाती है।  इसी क्षेत्र में धारकोट गांव में महीधर  मारवाड़ी बंधुओं की तिबारी की सूचना व फोटो  जग प्रसिद्ध हिमालयी संस्कृति फोटोग्राफर पत्रकार बिक्रम तिवारी ने भेजी है।  मारवाड़ी बंधुओं की तिबारी दुखंड /तिभित्या  मकान की पहली मंजिल पर स्थापित है।  तिबारी में चाट स्तम्भ व तीन मोरी /द्वार/खोली हैं। किनारे के स्तम्भों को दीवार से जोड़ने वाली   कड़ियों में वा ज्यामितीय अलंकरण हुआहै।  स्तम्भ पाषाण देहरी /देळी के ऊपर   चौकोर पाषाण डौळ  के ऊपर स्थित हैं।  चारों स्तम्भों में एक जैसी समान कला उत्कीर्ण हुयी है।  स्तम्भ का कुम्भी आधार अधोगामी पद्म  दल निर्मित करता है। फिर डीला (ring type  wooden plate  on  column ) उत्कीर्ण हुआ है जिसके ऊपर उर्घ्वगामी पद्म  दल उभर कर आया है  व कमल दलों  के ऊपर कोई वानस्पतिक खुदाई नहीं  हुयी है।  उर्घ्वगामी कमल दल जब अंत होता है तो स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है। इस दौरान स्तम्भ में रेखा बनाती कटान की कला है।  स्तम्भ में जहां सबसे कम मोटाई   है वहां एक प्राकृतिक /ज्यामिति अलंकृत डीला उभरा है व उसके ऊपर सादा डीला  है।  सादे   डीले के  ऊपर उर्घ्वगामी मकलदलआभाष  देने  वाली आकृति है जो वास्तव में आयताकार है।  जब यह आयातकार आकृति समाप्त होती है तो स्तम्भ में ऊपर की ओर  सीधा स्तम्भ थांत  (bat blade type ) शुरू होता है व दूसरी और मेहराब का अर्ध चाप शुरू होता है जो दूसरे स्तम्भ के अर्ध चाप से मिलकर पूरा मेहराब या तोरण आकृति बनती है।  बहु तह वाली मरहराब /तोरण /arch  तिपत्ति (trefoil )   मुरिन्ड कड़ी के नीचे    तोरण  के दोनों और पट्टिकाएं हैं व प्रत्येक पट्टिका में दो दो बहुदलीय पुष्प (संभवतया अष्टदल ) अंकित है व वहीं पक्षी भी है अंकित है ।  मरिंड एक समांतर कड़ी है जिस पर र नक्कासी हुयी है।  मुरिन्ड की कड़ी छत आधार पट्टिका से मिल जाती है। a
 अंदर कमरों के व खड़िकियों दरवाजों में ज्यामितीय कला अंकित हुयी  है।
 अपने जमाने की मारवाड़ी बंधुओं की भव्य तिबारी में जायमितीय , प्राकृतिक कला व मानवीय (पक्षी  ) अलंकरण भव्य हुआ है   
 निष्कर्ष निकलता है कि तिबारी भव्य है।  चूंकि ढांगू उदयपुर , डबरालस्यूं में स्थानीय कलाकारों द्वारा तिबारी निर्माण नहीं होता था तो कहा जा सकता है कि धारकोट में इस तिबारी को निर्माण हेतु टिहरी म उत्तरकाशी , चमोली या पौड़ी में चौंदकोट से मिस्त्री  बुलाये गए होंगे।  संभवतया तिबारी  का निर्माण काल 1930  के पश्चात का ही होगा।
 
सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध हिमालयी संस्कृति फोटोग्राफर बिक्रम तिवारी व सुमन कुकरेती
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गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला
  Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Aj
दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बखाइयों ,खोली  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
   गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -   
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  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला

Bhishma Kukreti

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खमण में  'बम्बै क  सेठुं' याने भोला दत्त  कुकरेती बंधुओं की भव्य निमदारी   में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन

खमण  में तिबारियों  , निमदारियों  में काष्ठ  कला , अलंकरण उत्कीर्णन भाग -5

  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 101   

(लेख   अन्य पुरुष में है इसलिए जी , श्री का प्रयोग नहीं हुआ )

 संकलन - भीष्म कुकरेती

खमण कृषि ही नहीं  उन्ना  देस (भैर  देश ) नौकरी  में भी एक समृद्ध  गाँव है।  प्रस्तुत    स्व भोला दत्त कुकरेती , स्व  कृष्ण दत्त कुकरेती बंधुओं की  निमदारी इस बात का साक्षी है कि पलायन के  शुरुवाती दिनों या समय में प्रवासियों ने प्रवास में  अपने रहने खाने में निवेश न कर  अपने पहाड़ी  गाँवों में मकान आदि  में निवेश किया।  उदाहरण सामने है कि स्व भोला दत्त   कुकरेती व स्व  कृष्ण दत्त कुकरेती रेलवे  में नौकरी करते थे किन्तु उन्होंने मुम्बई या देहरादून में पहले अपने रहने खाने की चिंता न कर खमण में भव्य निमदारी पर निवेश किया।  स्व  कृष्ण दत्त कुकरेती ने सन 1968  के लगभग ही मुम्बई में अपने लिए रहने हेतु भवन फ़्लैट खरीदा, किन्तु पहले पहल खमण में निमदारी निर्मित की।

  'बम्बै क  सेठुं' याने  भोला दत्त कुकरेती  बंधुओं की निमदारी  काफी भव्य है व अपने समय में खमण  में  नहीं अपितु आस पास के गाँवों में ' बम्बै क सेठुं  जंगला ' कहलाया जात्ता था।  बरात आदि का स्वगत इसी ' बम्बै क सेठुं जंगलेदार  निमदारी '  में होता था।  खमण में 'बम्बै का  सेठुं जंगला '  एक लैंडमार्क था व एक विशेष पहचान था।  दो मंजिली जंगलेदार  निमदारी  का बिस्तार काफी है , आंगन भी क़ाफी बड़ा है।    तल व पहली मंजिल में  संभवतया दस कमरे हैं। ढांगू , डबरालस्यूं क्षेत्र जैसा ही मकान की पहली मंजिल में पाषाण छज्जा है जिसके आधार  भी पाषाण दास /टोड़ी हैं। पाषाण छज्जे के बाहर काष्ठ  छज्जे  की कड़ी जोड़ी गयी है जिस पर 16 लगभग काष्ठ  स्तम्भ  स्थापित हैं।

  बम्बै क  सेठुं याने भोला दत्त बंधुओं की निमदारी के स्तम्भों  की विशेषता है कि  आधार से कुछ ऊपर (2 फ़ीट करीब ) कटान से  डीला नुमा व घुंडी नुमा वा आकृति अंकित है व फिर कुछ ऊपर  अधोगामी पद्म दल , डीला  व ऊपर उर्घ्वगामी पद्म  दल  उत्कीर्णित है जहां से स्तम्भ का थांत  (bat  blade  type ) आकृति बनती है तो दूसरी ओर  दोनों दिशाओं में  काष्ठ तोरण /मेहराब / चाप /arch का आधा भाग निकलता है जो दुसरे स्तम्भ के आधे चाप भाग से मिलकर तिपत्ति  नुमा मेहराब बनाते हैं।  काष्ठ तोरण /चाप /मेहराब arch  निमदारी की सुंदरता वृद्धि में बहुत अधिक सहायक भूमिका निभाने में सहायक हुए हैं।  एक तरफ स्तम्भ का थांत  (bat blade type wood plate ) मकान के छत आधार काष्ठ पट्टिका से मिलता है तो मेहराब /तोरण शिरा (मुरिन्ड ) भी  पट्टिका स   मिलते  हैं।

 मकान के कमरों के दरवाजों पर कोई विशेष उल्लेखनीय  नक्कासी के दर्शन  नहीं होते हैं।   मकान 1947  के बाद ही निर्मित हुआ होगा। 

निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि  'बम्बै  क सेठुं'   याने स्व भोला दत्त कुकरेती बंधुओं  की निमदारी  में ज्यामितीय व प्राकृतिक अलंकरण उत्कीर्णित हुए हैं और मानवीय अलंकरण नहीं हुआ है।  अपने बड़े होने से  'बम्बै  क सेठुं'   याने स्व भोला दत्त कुकरेती बंधुओं  की निमदारी  भव्य लगती है और आज भी भव्य है।   

सूचना व फोटो आभार : राजेश कुकरेती , बिमल कुकरेती

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  ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला   

 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   

  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बखाइयों ,खोली  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला  -

  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   

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जाजर (पाताल भुवनेश्वर)  में  गणेश सिंह रावल की बखाई में काष्ठ कला , अलंकरण

उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बखाई , मोरी , छाज   ) की  काष्ठ अंकन लोक कला    श्रृंखला  - 102

 संकलन - भीष्म कुकरेती

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  जैसे कि  ग्रामीण उत्तराखंड भवनों के सर्वेक्षणों   व दस्तावेजी करण    से साफ़ पता चलता है कि ब्रिटिश  शासन में गढ़वाल में तिबारी भवन संस्कृति  पली तो कुमाऊं में बखाई संस्कृति जो वास्तव में चंद राजाओं के समय से चली आ  रही भवन संस्कृति का दूसरा या समृद्ध रूप है।
 आज जाजर  में गणेश सिंह रावल के भव्य तिपुर  (तल +2  मंजिल) बखाई  पर चर्चा की जाएगी।  जाजर  गाँव पिथौरागढ़  बेरीनाग  नाग ब्लॉक में भुवनेश्वर पंचायत का हिस्सा है। 
गणेश सिंह  रावल की तिपुर शैली की बखाई में  विवेचना हेतु हमें  पहली मंजिल में तीन बड़ी खोलियों , दूसरी मंजिल में पांच बड़ी खोलियों , दूसरी या सबसे ऊपरी मंजिल में तीन तोरण  या मेहराब नुमा खिड़कियों  में काष्ठ  कला  का अध्ययन आवश्यक है।  मकान में छज्जा बिलकुल छोताहै जो द्घवाल में छज्जा संस्कृति से बहुत ही छोटा है।
  सभी  मोरियों में तकरीबन दोनों किनारों के स्तम्भ/सिंगाड़   वास्तव में  दो दो नक्कासीदार  स्तम्भों के जोड़ से बने  हैं। स्तम्भ के आधार में अधोगामी व उर्घ्वगामी कमल पुष्प व डीले हैं जो सुंदर छवि प्रदान करते हैं , आधार के  सबसे ऊपर का उर्घ्वगामी  कमल दल समाप्त होता है तो स्तम्भ सीधा होकर स्तम्भ शीर्ष या मुरिन्ड से मिल जाते हैं /जाता है। मुरिन्ड या शीर्ष चौकोर कड़ी  से निर्मित है।  शीर्ष /मुरिन्ड  शुरू होने से पहले दोनों  ओर के स्तम्भ से मेहराब /arch .तोरण  शुरू होता है जो  दूसरे  स्तम्भ के अर्ध तोरण  से मिल पूरा  तोरण  बनता है।  तोरण /arch ट्यूड  आकृति का है.  अधिकतर खोलियों में  ऊपर तोरण के विरुद्ध नीचे बिलकुल विरोधी आकृति का तोरण  भी उत्कीर्ण हुआ है। 
  खोली के दरवाजों पर ज्यामितीय अलंकरण ही अंकन हुआ  है।
दूसरी मंजिल या सबसे ऊपरी मंजिल में दो प्रकार की खड़कियाँ है एक सबसे ऊपर व दूसरी किस्म की मध्य में।  उप्पर की खड़कियाँ चौकोर सामन्य है. मध्य की काष्ठ  खिड़कियों  में है तो ज्यामिति अलंकरण किन्तु मेहराब बनने से  खिड़कियों की सुंदरता ही नहीं बढ़ती अपितु  खिड़की के मेहराब मोरियों की सुंदरता में वृद्धिकारक आकृतियां बन जाते हैं। 
  गणेश सिंह रावल की भव्य तिपुर   बखाई   में खोलियों व मेहराबदार खिड़कियों में ज्यामितीय , प्राकृतिक कला अलंकरण हुआ है किन्तु  कहीं भी मानवीय  अलंकरण (मानव , पशु , पक्षी  या आधात्मिक धमरिक प्रतीक) नहीं दिकता है। 

  सूचना व फोटो  आभार: राजेंद्र सिंह रावल , जाजर   
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
कुमाऊं   संदर्भ में उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  ( बखाई , मोरी , छाज ) की काष्ठ अंकन लोक कला   श्रृंखला  - 4
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Kumaon , Uttarakhand , Himalaya -   4

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  , Uttarakhand , Himalaya -    102
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Bhishma Kukreti

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मस्ट  (डबरालस्यूं ) में बिष्ट बंधुओं के  जंगले दार मकान / निमदारी में काष्ठ  कला   , अलंकरण 

डबरालस्यूं  गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला /लोक कला - 10 
  गढ़वाल, कुमाऊं , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बखाई , मोरियों , खोलियों   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 103
 (कला व लंकरण पर केंद्रित )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती

 डबराल स्यूं में  मस्ट पाली चैलू सैण के निकटवर्ती महत्वपूर्ण गाँव है , दोनों गाँवों को एक साथ ही जोड़कर बोलै जाता है।  इसका एक कारण है कि पाली  गाँव मल्ला ढांगू में भी है तो गलतफहमी न हो हेतु मस्ट पाली प्रयोग होता है। 
 मस्ट में बिष्ट बंधुओं का जंगलादार मकान ने मस्ट को एक विशेष पहचान दी।  काष्ठ कला वालनकरण में उच्च कटी का कार्य न होने पर भी जंगलादार  मकान / निमदारी  भव्य है व  बिगरैल ु भी है।
  बिष्ट बंधुओं क ेह मकान दुपुर याने तल व् पहली मंजिल वाला मकान है।  जंगला पहली मंजिल पर है।
तल मंजिल में फुट में दो  बड़े स्तम्भ दिखाई दे रहे हैं , दोनों स्तम्भों में शानदार  नक्कासी हुयी है व दोनों स्तम्भ पहली मंजिल को टेक दे रहे हैं।  फोटो में यह पहचान नहीं हो सक रही  है कि तल मंजिल के बड़े शक्तिशाली स्तम्भ पत्थर/सीमेंट  के हैं या काष्ट के।
   पहली मंजिल प के इस जंगले  में  केवल  सामने की ओर जंगला बंधा है व 15 काष्ठ स्तम्भ हैं।  स्तम्भ सपाट हैं याने उन पर ज्यामितीय अलंकरण हुआ है लेकिन  न तो प्राकृतिक (बेल बूटे ) और ना ही मानवीय (पशु , पक्षी या धार्मिक प्रतीक ) अलंकरण हुआ है
  जंगले के स्तम्भों में ढाई फिट ऊंचाई तक लौह जाली या रेलिंग है।
 निमदारी  के छत में टिन  की पट्टिका व बड़ी खिड़कियों  से साफ़ जाहिर है कि  मष्ट में बिष्ट बंधुओं की निमदारी  सन 1960  के पश्चात ही निर्मित हुयी होगी।   
निष्कर्ष है कि बिष्ट बंधुओं की निम दारी  भव्य है किंतु काष्ठ  कला में कोई उल्लेखनीय अलंकरण नहीं दीखता है

सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध  हिमालयी संस्कृति फोटोग्राफर बिकम तिवारी

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डबरालस्यूं संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला /लोक कला  10
House Wood Carving  Art (ornamentation ) in Dabralsyun  Garhwal , Uttarakhand  - 10
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों  , बखाईयों , मोरियों  , खोलियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -     

  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला   


Bhishma Kukreti

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