Uttarakhand > Culture of Uttarakhand - उत्तराखण्ड की संस्कृति
House Wood carving Art /Ornamentation Uttarakhand ; उत्तराखंड में भवन काष्ठ कल
Bhishma Kukreti:
ठंठोली (मल्ला ढांगू ) में कालिका प्रसाद बडोला के जंगले दार मकान में काष्ठ कला व लौह कला, अलंकरण
ठंठोली (मल्ला ढांगू ) में लोक कला (तिबारी , निमदारी , जंगला ) कला -4
ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला -
Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya 37
दक्षिण पश्चिम गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं अजमेर , लंगूर , शीला पट्टियां ) तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण 37
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गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 63
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 63
( लेख में श्री , जी नहीं लगे हैं )
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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मकान निर्माण मनुष्य की समस्या आदिकाल याने गुफा काल से ही रही है। मकान निर्माण हेतु संसाधन , निरंतर आय व तकनीक सुलभता की आवश्यकता गुफा काल में भी थी और आज भी।
गढ़वाल में सन 1890 तक लगभग तल मंजिल मकान या झोपड़े (उबर ) ही थे। बिरलों के सिलेटी पत्थर की छतदार मकान होते थे या रहे होंगे (जौनसार में कुछ अपवाद छोडकर ) . गोरखा या उससे पहले गढ़वाली राजाओं के समय मकान पर बहुत अधिक कर लगने के कारण मकान ऊपर मंजिल की और न बढाकर भू समांतर बढ़ाये जाते थे। आधे से अधिक परिवार तब गोठ में ही सोते थे। जैसे जसपुर के कुछ परिवार पल्ल के नीचे ग्वील में सोते थे व जाड़ों में ऊपर जसपुर आ जाते थे।
एक मंजिला मकान की परम्परा ब्रिटिश काल में तब शुरू हुआ जब संसाधन बढ़े व तकनीक- तकनीशियन व उपकरण (पत्थर तोड़ने , मिटटी खोदने ) सुलभ होते गए।
तिबारी निर्माण लगभग 1910 के पश्चात ही शुरू हुआ होगा। जंगलेदार मकान को प्राचीन शैली नहीं कहा जा सकता अपितु आधुनिक ही कहा जायेगा (लगभग 1940 के बाद ) । वास्तव में जंगलेदार मकान वे ही निर्माण करते थे जिन्हे पाषाण छज्जे की समस्य हेलनि पड़ती थी अथवा नौकरी की वजह से जो मैदान व ब्रिटिश शैली से कुछ प्रभावित होते थे।
जैसा कि पहले भी चर्चा की गयी थी कि ठंठोली में सब प्रकार के मकान थे जैसे तिबारियां , निमदारियां , काष्ठ युक्त जंगलेदार मकान , लौह के जंगलेदार मकान (जैसे शेखरा नंद , सुदंर लाल कंडवाल का पैतृक मकान ) . काष्ठ जंगलेदार मकानों की शृंखला में आज ठंठोली के कालिका प्रसाद बडोला के काष्ठ जंगले में कला विवेचना होगी।
कलिका प्रसाद बडोला वर्तमान में मुंबई में निवास करते हैं। कलिका प्रसाद बडोला का चार कमरों वाले जंगलेदार मकान में पहली मंजिल पर लकड़ी का छज्जा , लकड़ी के दासों पर टिका है और जंगले में लकड़ी के छज्जे पर T आकृति के स्तम्भ है। T आकर के स्तम्भ ही इस भवन के जंगले को ढांगू के अन्य जंगलेदार मकान से अलग कर देते हैं। स्तम्भ के ऊपरी भाग याने ऊपर टी T अकार आकृति छत आधार की कड़ी से जोड़े गए हैं । स्तम्भों के ऊपरी भाग में T आकृति जंगके को तोरण नुमा छवि प्रदान करती है और यही है ठंठोली में कलिका प्रसाद बडोला क ेजंगले की विशेष्ता।
जंगल के स्तम्भों को भू समांनांतर लौह पट्टिकाओं या सरियाओं से जोड़ा गया है जो मकान की छवि वृद्धि में कामयाब है। ठंठोली के कालिका प्रसाद बडोला के जंगलेदार मकान में काष्ठ कला में केवल ज्यामितीय अलंकरण के दर्शन होते हैं कहीं भी प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण के दर्शन नहीं होते हैं।
कालिका प्रसाद बडोला का जंगलादार मकान में काष्ठ कला , अलंकरण दृष्टि से दक्षिण गढ़वाल में अन्य जंगलेदार कला युक्त जंगला जैसा ही ही किन्तु स्तम्भ के शीर्ष में T अकार ने इस जंगल को अलग दर्जा दे दिया है। टी आकर कम ही मिलता है .
मकान सन 1958 में निर्मित हुआ था ।
सूचना व फोटो आभार : सतीश कुकरेती कठूड़ व मुकेश बडोला
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
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Bhishma Kukreti:
गटकोट में पंडित महानंद जखमोला के जंगलेदार तिपुर मकान में काष्ठ कला
गटकोट में /तिबारी जंगलेदार मकान में काष्ठ कला - 5
House Wood Carving art in a Railing or Jngaledar House of Mhanand Jakhmola of Gatkot
ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला -
Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya -38
दक्षिण पश्चिम गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं अजमेर , लंगूर , शीला पट्टियां ) तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण -38
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गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 64
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 64
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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टिहरी गढ़वाल , चमोली गढ़वाल हो या हो ढांगू गढ़वाली , सभी जगह यह पाया गया है कि जंगलेदार (railing ) मकानों में काष्ठ कला अलंकरण कम ही पाया गया व ज्यामितीय कला ही अधिक हावी हुयी है।
प्रलेखीकरण या दस्तावेजीकरण हेतु आवश्यक है कि प्रत्येक गाँव की तिबारियों , निमदारिओं , डंड्यळ -डंड्यळियोन व जंगलेदार मकानों का विवेचन हो व डिजिटल मीडिया या इंटरनेट माध्यम में जाय।
दस्तावेजीकरण में आज गटकोट में प्रसिद्ध कर्मकांडी पंडित महानंद जखमोला के जंगलेदार मकान में काष्ठ कला की विवेचना होगी। गटकोट में महानंद जखमोला का जंगलेदार तिपुर मकान क्षेत्र में गटकोट छवि वृद्धि कारक ही न था अपितु गटकोट में कई सामाजिक का सामूहिक कार्यों के लिए भी कारक था जैसे रामलीला मंचन का सामन रखना , रामलीला रिहर्सल , सामूहिक भांड कूंड रखना , बरात ठहराना आदि हेतु महा नंद जखमोला की तिबारी कई वर्षों तक उपयोग रही है। अब पलायन के कारण उपजे विभिन्न समस्याओं से यह तिपुर जूझ रहा है जीर्णोद्धार की प्रतीक्षारत है।
जैसा कि तिपुर नाम से ही पता चलता कि मकान पहाड़ी शैली में दो मजिला उबर /तल मंजिल के उपर डेढ़ या दो मंजिल और हैं. मुख्य जंगला railing ) पहली मंजिल पर है , जंगले या स्तम्भ तल मंजिल व पहली मंजिल दोनों में हैं।
मकान का छज्जा पाषाण का है किन्तु उस बढ़ाने हेतु लकड़ी का छज्जा भी लगाया गया . पहले मंजिल का छज्जा दो मिटटी पत्थर के स्तम्भों /columns पर टिका है। पहली मंजिल में 30 ज्यामितीय शैली में कटे स्तम्भ हैं जिन पर कोई प्राकृतिक या मानवीय कला अलंकृत नहीं हुयी है किन्तु ठंठोली के कालिका प्रसाद बडोला के जंगले की भाँति ही इस जंगले स्तम्भों के ऊपरी भाग अंग्रेजी टी T आकर हैं जो जंगले को एक विशेष छवि प्रदान करने में सक्षम हैं व दूर से ऐसा लगता है स्तम्भों के मध्य शीर्ष में तोरण बंधा हो। स्तम्भों के मध्य दो फिट का फासला है व दो फिट ऊपर तक छोटा जंगले हैं जो मकान को विष छवि प्रदान करते हैं।
निष्कर्ष निकलता है कि गटकोट में महा नंद जखमोला के जंगलेदार मकान अपने वृहद रूप ही नहीं अपितु तिपुर (जिस मकान पर तीन मंजिल भूतल के ऊपर दो और मंजिल ) में जंगले , जंगले में ज्यामितीय कला , जंगले के काष्ठ स्तम्भों के ऊपर अंग्रेजी टी T आकर के लिए याद की जाएगी। जंगले दार निमदारियों निर्माण का प्रचलन सन 1940 के पश्चात ही प्रचारित हुआ तो महा नंद जखमोला का काष्ठ युक्त स्तम्भों से सजा जंगलेदार मकान भी सन 1950 के बाद का ही होगा व स्थानीय मिस्त्रियों ने ही जंगलेदार मकान का निर्माण किया होगा।
सूचना व फोटो आभार : विवेका नंद जखमोला
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Bhishma Kukreti:
ग्वील में तारा दत्त कुकरेती की तिबारी में भवन काष्ठ कला अलंकरण
ग्वील (ढांगू , द्वारीखाल ब्लॉक ) गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगले में काष्ठ कला अलंकरण -4
Wood carving Art on Tibari of Gweel (Dhangu) Garhwal - 4
ढांगू संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला -
Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya -39
दक्षिण पश्चिम गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं अजमेर , लंगूर , शीला पट्टियां ) तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण -39
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गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 65
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 65
(लेख अन्य पुरुष में है तो श्री , जी शब्द नहीं जोड़े गए है )
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संकलन - भीष्म कुकरेती -
तारा दत्त कुकरेती की तिबारी भी ग्वील की समृद्धि का एक साक्ष्य है।
आम गढ़वाली तिबारियों जैसे ही तारा दत्त कुकरेती की तिबारी भी है। प्रथम मंजिल पर चार स्तम्भों से तीन मोरी . खोली य ाद्वार बनते हैं व खोली में तीन पत्ती जैसे तोरण किन्तु केंद्र में तीखा तोरण है। किनारे के दो स्तम्भ दिवार से कड़ी मार्फत जुड़े है , कड़ी में वनस्पति या प्रकृती व ज्यामितीय कला दर्शन होते है। प्रत्येक स्तम्भ में आधार पर व ऊपर तोरण शुरू होने से पहले अधोगामी पदम् पुष्प दल ( 2 x 4 = कुल आठ ) मिलते है व इसी तरह कुल 8 उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल हैं। ऊपरी कमल दल से तोरण शुरू होता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक स्तम्भ में दो दो डीले (round wood plate ) है (कुल 8 डीले ) हैं। तोरण की बगल वाली पट्टिकाओं में अस्टदल पुष्प है (कुल 6 अस्टदल पुष्प ) मिलते हैं। तोरण ढैपर की दिवाल की काष्ठ पट्टिका से मिल जाते हैं व इस जोडू काष्ठ पट्टिका में भी प्राकृतिक अलंकरण हुआ है।
तिबारी सम्भवतया 1930 के आस पास ही निर्मित हुयी होगी। यह तय है कि मकान तो सौड़ के शेर सिंह नेगी परिवार व बणव सिंह नेगी परिवार ने ही निर्मित किया होगा किन्तु तिबारी बाहर के कलाकारों ने ही निर्मित की होगी।
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि तारा दत्त कुकरेती की आकर्षक तिबारी में प्राकृतिक व ज्यामितीय कला अलंकरण मिलता है व कहीं भी मानवीय अलंकरण व आध्यात्मिक प्रतीक अलंकरण नहीं मिलते हैं।
सूचना व फोटो आभार : राकेश कुकरेती , ग्वील
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Bhishma Kukreti:
ढुंगा सकरा में बडोला बंधुओं की भव्यतम तिबारी में उत्कृष्टतम कला अलंकरण दर्शन
House wood Carving Art of Udaypur Patti (Yamkeshwar) -12
गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला -
Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya 40
दक्षिण पश्चिम गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं अजमेर , लंगूर , शीला पट्टियां ) तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण 40
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गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 66
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 66
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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अब तक समीक्षित तिबारियों में ढुंगा सकरा गांव में ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं की तिबारी काष्ठ कला अलंकरण दृष्टि से सबसे उत्कृष्ट तिबारी है। भव्य है बड़ी है और कई तरह की कलाएं /अलंकरण बडोला बंधुओं की तिबारी में हैं। अब यह भव्य तिबारी हर्ष मोहन बडोला की तिबारी कहलायी जाती है।
ढुंगा उदयपुर /यमकेश्वर क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण गाँव है जहां बडोला जाती का संख्या अधिक है , ढुंगा तीन हैं अकरा , ढुंगा पल्ला सकरा ढुंगा , वल्ली सकरा ढुंगा। ढांगू , डबराल स्यूं लिए ढुंगा का अर्थ था रिस्तेदारी हो गयी तो उच्च गुणवत्ता के उड़द , काले सफेद लुब्या /किंडनी बीन्स की दाल बीज व ढुंगा गए तो दाल के संग कटोरी भर घी। याने अन्य क्षेत्रवासियों की दृष्टि में ढुंगा याने कृषि व पशु पालन में समृद्ध गाँव।
कहा जाता है कि बड़ोली एकेश्वर से बडोला ढुंगा में बसे व यहाँ से उदयपुर के अन्य क्षेत्रों में ठांगर , पण चूर, जड़सारी आदि ही नहीं बेस अपितु ढांगू में ठंठोली में भी बेस।
सम्प्रति तिभित्या म, दुखंड मकान में छह कम तल मंजिल व पहली मंजिल में है (याने तीन बंद कमरे व बाहर कमरों का मकान किन्तु तिबारी हेतु तीन कमरों को बरामदा में बदल दिया गया है। आम तिबारी चार स्तम्भों व तीन मोरियों की तिबारी देखि गयीं किन्तु ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं (वर्तमान हर्ष मोहन बडोला ) की तिबारी में छह स्तम्भ हैं व पांच द्वार /मोरियां /खोळियां हैं। अब तक समीक्ष्य तिबारियों से विलक्षण तिबारी हुयी ढुंगा सकरा में ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं की तिबारी।
मकान पत्थर के छज्जों वाला है , दास भी पत्थर के ही हैं। पत्थर की देळी /देहरी ऊपर छह के छह स्तम्भ हैं , ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं की तिबारी में स्तम्भ ालकरण भी क्षत्र की तिबारियों से भिन्न है। क्षेत्र की अन्य स्तम्भ आधार कुम्भी अधोगामी पदम् दल (descending lotus flower petals ) से अलंकृत होता है किन्तु बडोला की तिबारी में स्तम्भ कुम्भी में भिन्न प्रकार का पत्ती अलंकरण हुआ हो इस तिबारी को अन्य तिबारियों से ही देता है।
स्तम्भ में दोनों डीले (round wood plate ) भी अन्य तिबारियों जैसे ही हैं , आधार में कुम्भी के बाद डीला व फिर उर्घ्वगामी पदम् दल की शैली भी क्षेत्रीय शैली से मिलती जुलती है। किन्तु स्तम्भ के ऊपरी सिरे याने डीले के ऊपर कुम्भी/पथोड़ा आकृति कमल दल से नहीं अपितु फूल व पत्ती मिश्रित चित्रकारी से अलंकृत है जो ढुंगा सकरा में ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं की तिबारी को दक्षिण गढ़वाल की अभी तक विवेच्य तिबारियों से अलग कर देने में सक्षम है।
ऊपर प्रत्येक स्तम्भ शीर्ष में थांत/ bat blade नुमा काष्ठ आकृति शुरू होती है जो छत की आधार पट्टिकाओं के नीचे की पट्टिका से मिल जाता है. थांत पट्टिका से काष्ठ छिप्पटी /ब्रैकेट /bracket निकले हैं जिनमे उत्कृष्ट कला उत्कीर्ण हुयी है। व यहीं से स्तम्भ से तोरण /मंडन अर्ध चाप /arch बनाने की पट्टिका भी शुरू होती है जो दुसरे स्तम्भ की पट्टिका से मिल सम्पूर्ण अर्ध चाप या तोरण बनाती है।
थांत पट्टिका से निकले छिप्पटी में पक्षी व पुष्प /पात /flowers leaves की प्राकृतिक कला अलंकरण हुआ है याने इस छिपट्टी /ब्रैकेट /wood bracket में प्राकृतिक , ज्यामितीय व मानवीय या पशु पक्षी युक्त कलाओं /अलंकरणों का सम्मिश्रण हुआ है जो कला दृष्टि से अभिनव माना जाता है। पक्षी तोता या मोर की छवि प्रदान करता है व पंख में फूल पत्तियों का अलंकरण है।
प्रत्येक ब्रैकेट /छिपट्टी ऊपर छत के आधार पट्टिका से मिलते हैं व छत की आधार काष्ठ पट्टिका से लटकते शंकु नुमा आकृतियां तिबारी को भव्य छवि perception प्रदान करने में सफल सिद्ध हुए हैं। तोरण शीर्ष व छत आधार पट्टिकाके मध्य पट्टिका में भी प्राकृतिक ज्यामितीय अलंकरण हुआ है। ऐसे ही शंकु सौड़ ढांगू में शेर सिंह नेगी की तिबारी में भी मिले हैं।
कला विदों की स्पष्ट राय है कि ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं , अजमेर , लंगूर व शिला पट्टियों में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय (पक्षी) का सम्मिश्रित अलंकरण की दृष्टि से ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं की तिबारी भव्यतम व उत्कृष्टतम तिबारियों में से एक है व यह तिबारी कई विशेषता लिए भी है जो क्षेत्र की अन्य तिबारियों में नहीं मिलते हैं ua utne haavi nhi hai ।
तिबारी का निर्माण सम्भवतया 1930 के लगभग हुआ होगा व कलाकार तो आयतित ही रहे होंगे। कहा जाता है कि कलाकार श्रीनगर या मथि गढ़वाल से ही आये थे।
सूचना व फोटो आभार : शिव प्रसाद बडोला , ढुंगा , सकरा
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Bhishma Kukreti:
स्यूपुरी सतेरा (नागपुर ) थोकदार धन सिंह बर्तवाल की तिबारी व खोळी में काष्ठ / अलंकरण
House wood Art (ornamentation ) of Tibari of Thakur Dhan Singh Bartwal of Syupuri, Satera ( Nagpur region)
रुद्रप्रयाग गढवाल , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) -1
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Rudraprayag , Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -1
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गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 67
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 67
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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उत्तराखंड में जहाँ जहां शीत ऋतू प्रकोप व भ्यूंचळ /भूकंप प्रकोप रहा है वहां वहां काष्ठ भवन निर्माण की प्रवृति /प्रचलन सदियों से रहा है। उत्तरकाशी , चमोली व उत्तरी रुद्रप्रयाग , उत्तरी पिथौरागढ़ में काष्ठ भवन निर्माण एक सामन्य घटना ही मानी जाएगी। तिबारी कला कहाँ से पनपी व किस तरह एक क्षेत्र से दुसरे क्षेत्र पर अभी भी कला विदों व कल्ला इतिहासकारों की एक राय न बन सकी है।
नागपुर पट्टी के स्यूपुरी सतेरा के थोकदार ठाकुर धन सिंह बर्त्वाल की ख्याति बड़ी थी । उनकी तिबारी की भव्यता ही नहीं इतिहास सेक्रेट भी प्रसिद्ध है।
थोकदार धन सिंह बर्त्वाल की वह तिबारी में ही बद्रीनाथ स्तुतिनामा /प्रार्थना की पाण्डुलिप मिली थी।
ठाकुर धन सिंह बर्त्वाल की तिबारी में ही उत्तराखंड की प्रथम फिल्म जग्वाळ का फिल्मांकन हुआ था। इसके अतिरिक्त घुघति घुरोण लग गे मेरो मैत , व मेरु रंग बाजू रंग रंगा रंग बिचारि गीत का फिल्मांकन भी इसी तिबारी हुआ था।
थोकदार /मालगुजार धन सिंह बर्त्वाल तिबारी वास्तव में गढ़वाल की तिबारियों की प्रतिनिधि तिबारी है।
तिभित्या /दुखंड भवन के पहली मंजिल पर बाहर के दो कमरों में परिवर्तन कर बरामदे बनाकर बरामदे को तिबारी से अलंकृत किया। तल मंजिल से पहली मंजिल जाने के लिए तल मंजिल पर नक्कासीदार खोळी भी है।
थोकदार धन सिंह बर्त्वाल की तिबारी में चार काष्ठ स्तम्भ हैं जो तीन द्वार /मोरी /खोळी बनाते हैं। दिवार से काष्ठ कड़ी से जुड़े हैं व कड़ी में बेल बुते उत्कीर्ण हुए हैं। पाषाण छज्जे के ऊपर पत्थर की देहरी /देळी है जिस पर स्तम्भ चौकोर पत्थर डौळ के ऊपर टिके हैं। स्तम्भ का आधार कुम्भी है जो छवि /धारणा perception से अधोगामी कमल दल लगता है किन्तु कमल दल में प्राकृतिक या पत्तियां उत्कीर्ण जो कमल शोभा वृद्धिकारक। हैं
स्तम्भ के कुम्भी नुमा अधोगामी कमल के ऊपर डीला /round wood plate है जहां से उर्घ्वगामी पदम् दल फूटते दीखते हैं व पत्येक कमल दल petal पर पत्तियां उत्कीर्ण हुयी हैं। उर्घ्वगामी कमल दल से स्तम्भ का शाफ़्ट की मोटाई कम होती जाती से यहीं से फिर से अधोगामी पत्तीदार नकासी युक्त कमल दल उत्कीर्ण है। अधोगामी कमल दल के ऊपर डीला /धगुल है जहां से उर्घ्वगामी फूटता है व कमल पत्तिया उत्कीर्ण हुयी हैं।
इसी कमल दल से स्तम्भ का ऊपरी भाग नक्कासी युक्त थांत पट्टिका शीर्ष /मुरिन्ड पट्टिका से मिलती है व यहीं से अर्ध चाप तोरण का एक भाग है जो दूसरे अर्ध चाप से मिल पूरा तोरण /आर्च , मेहराब बनता है। तोरण arch तिपत्ति व मध्य का तोरण arch तीखा शार्प है। तोरण बाहर पट्टिका जो स्तम्भ थांत पट्टिका के बगल में है में प्राकृतिक याने बेल बूटों की नक्कासी लिए हुए है व तोरण के बाह्य पट्टिका के किनारे पर दो सोलह दलीय फूल हैं और इस तरह कुल 6 फूल हैं। मुरिन्ड /शीर्ष पट्टिकाओं (जो छत के आधार पट्टिका से मिलते हैं)हैं ) में भी बेल बूटे उत्कीर्णहुआ है।
थोकदार धन सिंह की तिबारी शानदार है जानदार है व आज भी भव्य है। तिबारी में वानस्पतिक (natural ) व ज्यामितीय अलंकरण (ornamentation ) हुआ है व मानवीय या प्रतीकत्मक अलंकरण देखने को नहीं मिला।
ठाकुर धन सिंह के पड़ पोते महेंद्र सिंह बर्तवाल ने सूचना दी कि काष्ठ तिबारी निकट के गाँव जवाड़ में निर्मित हुयी थी व वहीँ से लाकर स्यूपुरी में बिठाई गयी थी। कलाकार जवाड़ के ही थे। तिबारी का निर्माण काल 1910 के पश्चात ही होना चाहिए जब थोकदारी पूरी तरह से ब्रिटिश शाशन में सेटल हुयी व थोकदार समृद्ध होने लगे.
थोकदार धन सिंह बर्तवाल की खोली में काष्ठ कला उत्कीर्णन
खोली के सिंगाड़ों मुरिन्ड पट्टिकाओं में वानस्पतिक कलंकरण हुआ है व मुरिन्ड /शीर्ष में गणेश मूर्ति बिठाई गयी प्रतीकत्मक कला /अलंकरण खोळी में मिलता है। अर्थात खोळी में ज्यामितीय , प्राकृतिक (बेल बूटे ) व प्रतीकात्मक (गणेश जी ) अलंकरण हुआ है।
सूचना व फोटो आभार : महेंद्र सिंह बर्त्वाल , सतेरा
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