Author Topic: House Wood carving Art /Ornamentation Uttarakhand ; उत्तराखंड में भवन काष्ठ कल  (Read 37107 times)

Bhishma Kukreti

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रैंस (द्वारीखाल ब्लॉक ) में भैरव दत्त बिंजोला की तिबारी व खोली में काष्ठ  कला , अलंकरण

  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ अलंकरण अंकन   -  105

 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  पिछले  अध्याय में नैल की लोक कलाएं में    उल्लेख हो गया है किमल्मला  ढांगू में  नैल -रैंस  जुड़वां गाँव है जहाँ बिंजोली (चौंदकोट )  से बिजला बसे।  रैंस  से कुछ तिबारियों व जंगलेदार निमदारियों की खबर मिली है।  प्रस्तुत तिबारी भैरव दत्त बिंजोला की तिबारी है जो आज  शायद ध्वस्त हो गयी है।  तिबारी बड़ी भव्य  थी  व शयम लाल बिंजोला बताते हैं कि  भैरव दत्त बिंजोला की तिबारी रैंस  की शान थी पहचान थी व मल्ला  ढांगू ही नहीं उत्तरी डबरालस्यूं , पश्चमी लंगूर में भी प्रसिद्ध तिबारी थी। 
 भैरव दत्त बिंजोला का मकान दुखंड /तिभित्या व तल व पहली मंजिल का था है व तल मंजिल में खोली है तो पहली मंजिल में भव्य तिबारी स्थापित हुयी है।  पाषाण छज्जा ढांगू के आम छज्जों से कम चौड़ा है। 
खोली के काष्ठ सिंगाड़ों /स्तम्भों व खोलीदार /मेहराब युक्त मुरिन्ड /मोर में प्राकृतिक उत्कीर्णन हुआ था। 
भैरव दत्त बिंजोला की तिबारी भी चार स्तम्भों /सिंगाड़ों की है व ऊपर मोर /मुरिन्ड  में चाप है। स्तम्भ दीवाल से बेल बूटे  की कलायुक्त कड़ी से जुड़े हैं।   स्तम्भ का आधार /ड्यूल  से  शुरू होता है व अधोगामी कमल दल से कुम्भी बनता है , अधोगामी कमल दलों के ऊपर डीला /धगुल है जिसके ऊपर उर्घ्वगामी (ऊपर जा हुआ) कमल दल हैं और यहाँ से स्तम्भ की मोटाई कम   होती जाती है।  कमल पंखुड़ियों के ऊपर पत्तियों जैसे अलंकरण  उत्कीर्ण  हुआ है (प्राकृतिक  अलंकरण ) . जहां स्तम्भ की सबसे कम मोटाई है  वहां से नक्कासीदार  अधोगामी कमल दल है व फिर डीले /ड्युले /ringed  wood plate  हैं और उर्घ्वगामी कमल दल है व वहीं  से स्तम्भ का थांत  (bat blade type ) शुरू हो सीधा मथिण्ड  से मिल जाता है।  यहीं  से कमल दल के बगल से तोरण।/arch /चाप शुरू होता है , चाप /तोरण /मेहराब बहुतलीय हैं।  प्रत्येक मेहराब इ ऊपर किनारों पर त्रिभुजाकार जालीनुमा  बेल बूटों सस्ज्जित है व दो बड़े बहुदलीय फूल (चक्रनुमा )  भी अंकित है अतः  ऐसे कुल 6 फूल हैं।  मेहराब के ऊपर आयताकार तीन चार पट्टियां  )मथिण्ड )  हैं जिन पर प्राकृतिक अलकंरण उत्कीर्ण हुआ है। 
मथिण्ड पट्टिकाओं के ऊपर  एक चुआड़ी अलंकृत  पट्टिका है जो छत आधार पट्टिका से मिलती है।  छत आधार  पट्टिका से शंकुनुमा   आकृतियां लटकी हैं। 
छत आधार पट्टिका लकड़ी के दासों /टोड़ी  पर आधारित हैं।  दासों के अगर भाग में  ज्यामितीय अंकन हुआ है।  तिबारी में  कहीं भी मानवीय (पशु , पक्षी , देव आकृति ) अंकन नहीं दिखा हिअ
  निष्कर्ष में कहा जा सकता है  कि  भैरव दत्त बिंजोला की  भव्य तिबारी व खोली  थी जिसमे प्राकृतिक व ज्यामितीय अलंकरण हुआ है व आमनवीय अलंकरण नहीं हुआ है

  सूचना व फोटो आभार : श्याम लाल बिंजोला , रैंस 
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बखाइयों ,खोली  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
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  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 105
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला

Bhishma Kukreti

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  तुंगाना (आरगढ़ ) में स्व.अमर सिंह नेगी की तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण

( कला व अलंकरण केंद्रित )
गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाई  ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  106   

संकलन - भीष्म कुकरेती
 टिहरी गढ़वाल के घनसाली ब्लॉक में  तुंगाना गाँव  पुरुषार्थी व्यक्तियों व कृषि समृद्ध गाँव है।  जैसे कि दोनों गढ़वाल  के अन्य  भागों में  गोरखा काल के उपरान्त समृद्धि  आयी वैसे ही घनसाली ब्लॉक के तुंगाना गाँव में भी समृद्धि   आयी व समृद्धि के प्रतीक शानदार , ठाठदार भवन बनने लगे।  1900 के दो तीन दशक बाद तक   शानदार मकान का  अर्थ होता  था तिबार /तिबारी निर्माण।  इसी तरह तुंगाना गांव के समृद्ध व्यक्ति  अमर सिंह नेगी ने भी 1915 -1925  के मध्य  तुंगाना  में शानदार दुखंड , तिभित्या , दुपुर तिबार /तिबारी  निर्माण की।  अब यह ऐतिहासिक तिबार /तिबारी ध्वस्त हो चुकी है और यहाँ नया मकान बना चुका  है।
जैसा कि तब युग में रिवाज था कि तिबारी चार स्तम्भों की हो व उसमे तीन खोली /मोरी /द्वार हों जैसे ही अमर सिंह नेगी की तिबारी थी,
 पहली मंजिल के छज्जों पर स्थित तिबारी के स्तम्भ  देळी में   पाषाण ड्यूल पर टिके हैं व उसके बाद अधोगामी /उल्टा कमल फू पंखुड़ियां से कुम्भिका।/पथ्वड़  आयकर बनता है व फिर डीला /ड्यूल है व उसे ऊपर उर्घ्वगामी /सीधा कमल दल है। कमल पुष्प के ऊपर फिर से गोल डीला हाइवा वहीं से स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है। जहां पर सबसे कम मोटाई है वहां पर एक डीला है व उसके ऊपर उर्घ्वगामी /सीधा कमल दल है जहां से स्तम्भ ऊपर सीता थांत (bat blade type ) में बदलता है व दूसरी तरफ यहीं से चापत फूटता है।  मेहराब .चाप या तोरण के ऊपर  के दोनों  त्रिभुजाकार किनारों पर पट्टिका में नक्कासी है व दो दो बहुदलीय फूल हैं याने कुल  छह फूल यहाँ हैं। 
मथिण्ड  तक जो थांत है उसमे दीवालगीर /bracket हैं और इस तरह चार  दीवालगीर हैं। दीवालगीर में ज्यामितीय व पुष्प केशर नाल आकृति अंकित है (अनुमान ) व संभवतया केशर नाल चिड़िया चोंच का आभास देता है।
   ब्रैकेट छोड़ बाक़ी कहीं भी पशु , पक्षी व देव आकृति नहीं अंकित है।
 निष्कर्ष नकलता है कि स्व अमर सिंह नेगी की अपने समय की तुंगाना  की पहचान वा शान तिबारी  में प्रकृतिक व ज्यामितीय अलकंरण हॉबी है व मानवीय अलंकरण केवल ब्रैकेट में दीखता है वह भी आभास रूप में। 

  सूचना व फोटो आभार : महिपाल सिंह नेगी, तुंगाना 
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाई  ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  106
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -
  Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  -   
  Traditional House Wood Carving Art (Tibari) Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -   
घनसाली तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;  टिहरी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   धनौल्टी,   टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   जाखनी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   प्रताप  नगर तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   देव प्रयाग    तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला; House Wood carving Art from   Tehri;           

Bhishma Kukreti

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डाबर (डबराल स्यूं ) में  कैप्टेन राम कृष्ण डबराल     बंधुओं  की तिबारी में काष्ठ  कला, अलंकरण
 
ढ़वाल, कुमाऊं , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बखाई , मोरियों , खोलियों   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 107

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 संकलन - भीष्म कुकरेती

जैसा कि पहले एक अध्याय में  उल्लेख किया गया है कि  डबरालस्यूं ( दक्षिण , पौड़ी गढ़वाल ) में डाबर डबरालों का  पहला गाँव है जहां डबरालों की बसाहत शुरू हुयी थी  . हर्ष डबराल ने  डाबर से डबराल बंधों की  एक तिबारी की सूचना भेजी है जो वहां   एक रीछ पकड़ते से समय फोटो  ली  गयी थी (27 नवंबर 2018 ) । 
 दुखंड /तिभित्या , एक मंजिला वाला मकान में तिबारी स्थापित है व पहली मंजिल में स्थापित चार काष्ठ स्तम्भों व तीन खोली , द्वार वाली तिबारी है। तिबारी साधारण तिबारी है।  चारों स्तम्भ व मुरिंड  सपाट हैं व कोई कलाकारी  कहीं भी नहीं दिखती है।
   इस तिबारी में एक अनुत्तरित प्रश्न है कि साइड की दीवाल में खड़िकी के ऊपर नहीं बल्कि कुछ दूर उप्पर एक छोटा छज्जा बंधा है , इस छज्जे का उपयोग क्या रहा होगा का प्रश्न अभी भी  अनुत्तरित है। 
     यद्यपि आज तिबारी /निमदारी बड़ी साधारण लग रही है  किन्तु जब रुपया उपलब्ध न था , तकनीक  , उपकरण व कलाकार सरलता से सुलभ न थे तब ऐसी तिबारी निर्मित करना बड़ी सोच व धनी लोगों के ही बस की बात थी। तिबारी में काष्ठ  कला कम है किंतु मकान व तिबारी में टिकाऊपन पूरा है। 

सूचना व फोटो आभार : हर्ष डबराल

Copyright@ Bhishma Kukreti  for detailing

डबरालस्यूं संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला /लोक कला  -
House Wood Carving  Art (ornamentation ) in Dabralsyun  Garhwal , Uttarakhand  -
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों  , बखाईयों , मोरियों  , खोलियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -     107

  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला   


Bhishma Kukreti

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बुरसावा डांडा में एक बुसुड़ , कोटी -बनाल/काठ खुनी /काठ कन्नी   शैली के मकान में काष्ठ  कला,  अलंकरण 

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई , खोली  , काठ बुलन ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन  - 108 
Traditional House Wood Carving art , Ornamentation of  Jaunsar, Ravain , Garhwal
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
 जौनसार बाबर सैकड़ों सालों से गढ़वाल हेतु  ऐतिहासिक , सांस्कृतिक व सामजिक  विन्यास हेतु सदा ही  है।  घूमना से पूर्व में पूर्वी गढ़वाल के लिए जौनसार , बाबर व रवाईं रहस्यात्मक क्षेत्र भी रहा है।  कला व  सांस्कृतिक मामले में  जौनसार  रवाईं  पूर्वी गढ़वाल से  कई मामले में विशेष रहा है।  ब्रिटिश काल से पहले व ब्रिटिश काल में भी जौनसार की भवन कला पूर्वी गढ़वाल की  से अलग ही रही है। 
   आज बुरसावा डांडा  (चकराता ) गाँव के जिस भवन की  विवेचना  जायेगी व  कई मामले में पूर्वी गढ़वाल कमिश्नरी से बिलकुल अलग ही है। 
 अति शीत  व भूकंप संवेदनशील क्षेत्र होने के कारण पूर्वी हिमाचल , उत्तर पश्चिम उत्तरकाशी व उत्तर पश्चिम देहरादून में भवन शैली का विकास कुछ विशेष तरह से हुआ जो इस भूभाग की भौगोलिक वा वानस्पतिक स्तिथि से मेल भी खाता है।  कुछ ही प्राचीन समय पहले तक इस क्षेत्र में अधिकतर काष्ठ व पत्थर युक्त मकानों की प्रथा रही है।  देवदारु वृक्ष उपलब्ध होने से इस भूभाग में कई मकान  या काष्ठ -पत्थर मंदिर 900 साल पुराने बताये जाते हैं ।
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  भूभाग में काष्ठ -पाषाण के मकान शैली काठ खुनी , काठ की कन्नी (हिमाचल में ) व उत्तराखंड में कोटि बनाल नाम से  प्र सिद्ध हैं।
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 काठ की खुनी /काठ कोना /काठ की कन्नी अथवा कोटि बनाल शैली की विशेषता है कि मकान की दीवार में काष्ठ कोना महत्वतपूर्ण होता है।  मकान में नींव  के ऊपर  से ही दीवारें तीन स्तर की बनती  हैं दोनों किनारों में लकड़ी की पट्टी /कड़ी होती है व बीच में  बगैर मिटटी /मस्यट  के रोड़ी  या पत्थर भरे जाते हैं।   मकान की मंजिलों के हिसाब से पत्थर का भार कम होता जाता है ।   चूँकि देवदारु भी टिकाऊ ( होता है व   पत्थर भी टिकाऊ होते हैं तो मकान टिकाऊ होते हैं।  कहते हैं देवदारु की लकड़ी १००० साल तक टिक सकती  है। 
 मकान बनाने की विधि है कि नींव भरी जाती है व नींव को भूमि से एक या दो फ़ीट ऊपर उठाया जाता है व तब लकड़ी व पत्थर (बिना मिट्टी मस्यट के ) की दीवारों से भवन की चिनाई होती है। याने दो तह में लकड़ी व बीच में पत्थर।  कोने में भी बाहर लकड़ी की तह।     जैसे बुसड़ /अनाज भंडार के नीचे पाए उठे होते हैं वैसे ही इस क्षेत्र के मंदिरों व मकानों में आधार उठे रहते हैं जिससे जल भराव व भूकंप का असर न हो।  आधार के ऊपर दोनों और लकड़ी की कड़ियों व बीच में रोड़ी  पत्थर भरण से से मकान की दीवार बनती है व ऊंचाई बढ़ती जाती है।  मंजिल में छज्जे बनाने हेतु भी लकड़ी की कड़ी बाहर की ओर  बढ़ा दी जाती है.  जिस मंजिल पर भी छत हो वह छत सिलेटी पत्थरों की ही होती है व ढलान वाली होती हैं।मंजिल के अनुसार भारी पत्थरों का प्रयोग कम होता जाता है।     अधिकतर छत  बुसड़ नुमा   या पिरामिडनुमा होती है।  लकड़ी में धातु कील आदि का प्रयोग नहीं होता था। केवल काष्ठ कील का ही उपयोग का रिवाज था।   
  अधिकतर यह देखा गैया है कि   तल मंजिल में जानवरों को रखा जाता है व् ऊपर की मंजिलों में बसाहत   होती है तो छज्जा व छज्जों में  कला अलंकरण एक  आवश्यकता है।  छज्जा एक ओर  भी हो सकता है व चारों ओर भी।  तल मंजिल से पहली मंजिल व ऊपरी मंजिलों तक जाने अंदुरनी हेतु रास्ते होते हैं जिसका मुख्य प्रवेश द्वार /खोली तल मंजिल में होता है।
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  बुरसावा गाँव के कायस्थ मकान में काष्ठ कला व अलंकरण
बुरसावा  (चकराता )  डांडा  में स्थित प्रस्तुत मकान में पहला मंजिल व तल  मंजिल व आधा मंजिल (दढैपुर या तिपुर  )  हैं। इस मकान में भी तल मंजिल  में गौशाला व अन्न भंडार है।  वसाहत ऊपर के पहली मंजिल में होती है।  तल मंजिल की दीवारें तो कोटि -बलन या कोटि बालन (काट खुनी /काट कन्नी ) हैली में हुआ है।  तल मंजिल में पांच नक्कासीदार स्तम्भ हैं व चार खोला /खोली हैं।  स्तम्भों के ऊपर मुरिन्ड /मोर में महराब निर्मित हैं।  स्तम्भ  के आधार में  कुम्भी , कुम्भी के ऊपर
  डीला /ड्युल फिर कमल दल जो कुम्भी जैसा ही दिखता है फिर  ड्यूल  , फिर उर्घ्वगामी कमल दल व फिर स्तम्भ की मोटाई कम होती है।  इस दौरान स्तम्भ में पत्तीदार नक्कासी हुयी है।  जहां स्तम्भ सबसे कम मोटा है वहां एक कमल दल व फिर ड्यूल व वहीं से एक और स्तम्भ सीधा पत्तियों से सजा नक्कासी दार थांत (bat blade  type wood  plate )  रूप में ऊपर छज्जे की निम्न कड़ी ( मथींड ) से मिलता है,  दूसरी ओर यहीं से नक्कासीदार ट्यूडर नुमा मेहराब। arch /तोरण  भी  है व शनदार मेहराब बनता है।  तल मंजिल में कुल चार तोरण /arch /चाप /मरहराब हैं।  मेहराब पट्टिका में अलंकरण के धूमिल   चिन्ह हैं । अधिकतर जौनसार व उत्तर पश्चमी गढ़वाल /उत्तरकाशी में  की खोली/प्रवेश द्वार  के   सिंगाड़।  स्तम्भ, मुरिन्ड / व दरवाजों में सुंदर कलाकृति  उत्कीर्णित होती है।  विवेच्य मकान के तल मंजिल की  खोली में कला अलंकरण उत्कीर्णन के  धूमिल चिन्ह दिखाई देते हैं। 
पहली मंजिल की  छज्जों में अलंकृत स्तम्भ /खम्बे है जो छज्जे से  निकलकर ऊपर ढैपुर  के लघु छज्जे से मिल जाते हैं।
 इसमें संदेह नहीं है कि पहली मंजिल व ढैपुर में काष्ठ  कला उत्कीर्णन के चिन्ह हैं किन्तु वे धूमिल हो गए हैं।  छायाचित्र में  पहली मंजिल व ढैपुर मंजिल में  केवल ज्यामितीय  कला दृष्टिगोचर हो रहे हैं।
 

  अब तक के कुमाऊं व गढ़वाल में  100 अधिक मकान विवेचित हो चुके हैं।  इस दृष्टि से बुरसावा डांडा (चकराता, जौनसार )  के इस गाँव का  मकान  , पूर्वी उत्तराखंड के अन्य भागों के मकान से बिलकुल अलग है।  इस मकान में संरचना कोटी -बलन , काष्ठ -पत्थर (बिन मिट्टी मस्यट के ) तकनीक से  हुआ है व  संरचना , शैली  बुसुड़  नुमा /अनाज भंडार नुमा है।  बुरसावा के मकान में गढ़वाल कुमाऊं की तुलना में तल मंजिल में  कलाकृत स्तम्भ है।  स्तम्भों की संरचना व कला शैली दृष्टि से गढ़वाल -कुमाऊं व   जौनसार के इस मकान के स्तम्भ  एक समान ही हैं।  एक अंतर और है कि गढ़वाल कुमाऊं के दुसरे भागों में पहली मंजिल हो या ढैपुर हो  लकड़ी का इतना उपयोग नहीं होता जितना जौनसार में होता है। 

   
सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध पशु पक्षी फोटोग्राफर दिनेश कंडवाल
सूचना - मकान की विवेचना केवल कला हेतु की गयी है , मिल्कियत की सूचना श्रुति आधारित त है अत; मिल्कियत की सूचना में अंतर हो  सकता है व अंतर् के लिए संकलनकर्ता व सूचनादाता   उत्तरदायी नहीं हैं
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 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   108
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बखाइयों ,खोली  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
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  Traditional House Wood Carving art Kat Kuni, Kat Balan,  , Ornamentation of  Jaunsar, Ravain , Garhwal   
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई, कोटि बनाल , काठ खुनी , काठ कोना मकान   ) में  काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   

Bhishma Kukreti

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धारकोट (उदयपुर ) में महीधर मारवाड़ी  परिवार की जंगलेदार निमदारी  में काष्ठ  कला [/size][/color]

 गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई , खोली  , काठ बुलन ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन  - 109 

 संकलन - भीष्म कुकरेती -

पिछले एक अध्याय में यमकेश्वर अंतर्गत डाडामंडल  अंतर्गत धारकोट व मरोड़ा क्षेत्रों में महीधर मारवाड़ी शर्मा की तिबारी पर चर्चा व विवेचन अहो चुकी है।   आज इन्ही महीधर मारवाड़ी परिवार के एक जंगलेदार निमदारी  की काष्ठ  कला पर चर्चा होगी।

प्रथम दृष्टि से तो  महीधर मारवाड़ी परिवार की इस  दुखंड /तिभित्या  /दुपुर निमदारी   में विशेष कला नहीं दीख रही है।    निमदारी  में पहली मंजिल के काष्ठ छज्जे  के ऊपर  कुल  बारह स्तम्भ हैं जिन पर कोई उल्लेखनीय काष्ठ कला उत्कीर्ण नहीं हुयी है।  स्तम्भ सीधी छज्जे से ऊपर मथिण्ड  के कड़ी से मल जाते हैं और ना ही काष्ठ  छज्जा न ही स्तम्भ व नाही मथिण्ड की कड़ी में कोई कला दर्शन होते हैं।

  निष्कर्ष में कहा जा सकता है है कि  धारकोट में महीधर मारवाड़ी परिवार की यह  जंगलेदार निम दारी कला दृष्टि से साधारण निमदारी  है।  अपने समय में इस निमदारी की विशेष पहचान थी व उपयोग भी था। 

 

सूचना व फोटो आभार : सुमन कंडवाल कुकरेती

 

* यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .

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 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   

  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बखाइयों ,खोली, कोटि बलान मकान में  काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला  -

  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई , कोटी बलन मकान    ) काष्ठ कला अंकन   - 

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   

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Bhishma Kukreti

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अमाल्डू    में   उनियाल बंधुओं के दो  तिपुर व एक चौपुर  भवनों में काष्ठ  कला , अलंकरण

गढ़वाल, कुमाऊं , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखाई , मोरियों , खोलियों   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -- 111
 संकलन - भीष्म कुकरेती
 डबराल स्यूं पौड़ी गढ़वाल में अमाल्डू  एक महत्वपूर्ण गाँव है।  भवन निर्माण  शैली की दृष्टि से भी  अमाल्डू  गंगासलाण  में अभिनव गाँव है।  इस गाँव में अन्य गाँवों की तुलना में तिपुर (तल + दो मंजिल )  भवन अधिक हैं और लगभग सभी भवनों  पर  उनियालों  की कुलदेवी राजराजेश्वरी तिपुर शैली दरबार भवन (देवलगढ़ ) का प्रभाव है।
प्रस्तुत  तीन जंगलेदार तिपुर भवनों  पर  भी परोक्ष व अपरोक्ष  रूप से राजराजेश्वरी दरबार (देवलगढ़ ) का प्रभाव है।
तीनों भवन दुखंड /तिभित्या  हैं।  तल मंजिल से पहली व दूसरी मंजिल तक जाने हेतु आंध्र ही अंदर रास्ता है व खोली  मुख्य प्रवेश द्वार है। तीनों भवनों की खोली में मुरिन्डों  में में अष्टदलीय  पद्म पुष्प  शोभित हैं।       पहली  व मंजिल में  काष्ठ जंगले स्थापित हैं। सूचना अनुसार तीनों तिपुर  भवनों के जनले के काष्ठ   स्तम्भों में ज्यामितीय अलंकरण हिअ हिअ व कहीं भी प्राकृतिक या मानवीय अलंकरण उत्कीर्ण नहीं हुआ है। 
  अमाल्डू  के अशोक उनियाल ने तीनों भवनों के मूल मालिकों या निर्माण कर्ताओं के नाम दिए उनका आभार किन्तु कुछ   नाम  इधर से उधर न हो  जाय इसलिए  प्रत्येक  तिपुर के मालिकों का अलग अलग नाम नहीं दिया जा रहा है।
अशोक उनियाल ने - चौपुर  (1 +3 ) मंजिल की मिलकियत में तोता राम उनियाल व अन्य दो हेतु  स्व  . हीरा मणि उनियाल , स्व . राघवा नंद उनियाल , स्व देवकी नंद उनियाल व कालिका नंद उनियाल का नाम सूचित किया है।
 अशोक उनियाल ने सूचना दी कि भवन  मिस्त्री स्थानीय थे व  स्व चित्र मणि व  भाना राम भवन मिस्त्री   काष्ठ कला निर्देशक भी थे। 
 आज तो तीनों तिपुर अपनी जीर्ण शरण वस्था में हैं किन्तु डबराल स्यूं के पुराने लोग आज भी कहते हैं बल कभी ये तिपुर अमाल्डू  ही नहीं डबरालस्यूं की भी शान थे व लैंडमार्क  थे।  तीनों तिपुर में ज्यामितीय व कमल पुष्प अलंकरण ही हुआ है। 
 
 सूचना व फोटो आभार :  जग प्रसिद्ध सांस्कतिक फोटोग्राफर बिक्रम तिवारी
 सहयोगी सूचना : अशोक उनियाल  अमाल्डू

* यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं .
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डबरालस्यूं संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला /लोक कला 
House Wood Carving  Art (ornamentation ) in Dabralsyun  Garhwal , Uttarakhand  -
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   111
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों  , बखाईयों , मोरियों  , खोलियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   
Traditional House Wood Carving Art (Tibari,bkaahai   ) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -     

  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला   
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बयेला (द्वारहाट ) में पांडे बंधुओं की बखाई के  एक  भाग  में भवन काष्ठ कला अलंकरण  विवेचना

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई , खोली  , काठ बुलन ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन  -  110
 (केवल कला व अलंकरण केंद्रित )

 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 सासंकृतिक व सामजिक परिपेक्ष में बयेला  गाँव , द्वारहाट , अल्मोड़ा (कुमाऊं ) एक महत्वपूर्ण गाँव है. बयेला  से भी उत्कृष्ट कोटि की बखाईयों , मोरियों की सूचना मिली हैं
प्रस्तुत मकान याने पांडे बंधुओं का  आलीशान  भवन में बखाई , मोरी -छाज  व खिड़कियों में उच्च किस्म का काष्ठ  उत्कीर्णन साफ़ दिखता है।  मकान के उत्तराधिकारी प्रमोद पांडे अनुसार मकान निर्माण  के वक्त   उनके पिता जी  की देहरादून  में दुकान थी व आजादी के समय बलवा  के चलते वे गाँव आ गए।  इस मकान को पूरा करने में उन्होंने अपनी पत्नी के गहने तक गिरवी रख दिए थे।  मकान बाहर से ही नहीं अपितु अंदर से भी कला  अलंकृत सुसज्जित  है व कठवड़  (अलमारी ) में भी नक्कासी हुयी है।  आज   बयेला  के प्रस्तुत पांडे बंधुओं के मकान के side बगल वाले भाग  में ही काष्ठ  कला , काष्ठ अलंकरण पर चर्चा करेंगे।
  बयेला (द्वारहाट ) में पाण्डे बंधुओं के ढैपुर  वाले भव्य मकान के  side / बगल वाले भाग में  निम्न भागों में काष्ठ कला उत्कीर्णन व काष्ठ  अलंकरण  की विवेचना होगी -
१-  तल  मंजिल में कमरे के सिंगाड़  /स्तम्भों व  मुरिन्ड /मथिण्ड  में भवन  काष्ठ  कला अलंकरण
  २- तल मंजिल की एक खड़की के  सिंगाड़ /स्तम्भों  व मथिण्ड /मुरिन्ड  व उसके ऊपर मेहराब /तोरण  में काष्ठ  कला व काष्ठ अलंकरण
 ३- पहली मंजिल में  बखाई के एक खड़िकी  के  सिंगाड़ /स्तम्भों  व मथिण्ड /मुरिन्ड  व उसके ऊपर मेहराब /तोरण  में काष्ठ  कला व काष्ठ अलंकरण 
  ४- पहली मंजिल में  मुख्य मोरी /छाज  के सिंगाड़  /स्तम्भों व  मुरिन्ड /मथिण्ड  , मेहराब  में भवन  काष्ठ  कला अलंकरण   
१- बयेला  में पांडे बंधुओं के  मकान के बगल वाले भाग के   तल  मंजिल में कमरे के सिंगाड़  /स्तम्भों व  मुरिन्ड /मथिण्ड  में भवन  काष्ठ  कला अलंकरण :-
  कमरे के दरवाजे पर दोनों ओर  अलंकृत काष्ठ  स्तम्भ (सिंगाड़  column s ) हैं।  सिंगाड़ /स्तम्भ    काष्ठ  की देहरी /देळी में टिके हैं , स्तम्भों के आधार में कमल पुष्प  रूपी कुम्भी बने हैं व ऊपर लंकृत कड़ी (shaft of  column )है जो ऊपर दरवाजे के मथिण्ड /मुरिन्ड  कड़ी से मिल जाते हैं , मेहराब बिहीन मथिण्ड /मुरिन्ड /मोर  चौकोर है।
  २-  बयेला  में पांडे बंधुओं के  मकान के बगल वाले भाग के   तल  मंजिल में  खिड़की  के सिंगाड़  /स्तम्भों व  मुरिन्ड /मथिण्ड  में भवन  काष्ठ  कला अलंकरण :-
  चूँकि भवन  निर्माण शैली  पर आइरिश /ब्रिटिश भवन शैली का पूरा  प्रभाव है (छत , छत में  धुनव छेदिका ) और यह खड़कियों के बड़े आकर होने पर  भी दीखता है।   खड़िकी के दरवाजे के  सिंगाड़ /स्तम्भ भी अलंकृत हैं और अलंकरण /कला  कुछ कुछ  मुख्य दरवाजों के  स्तम्भों से मिलते जुलते है।   प्रस्तुत भवन में बगल की खिड़की में चौकोर मथिण्ड /मुरिन्ड   के ऊपर मेहराब का होना है और यह एक मुख्य  विशेषता में  गिना जायेगा।  खड़की के इस मेहराब में  बहुभुजीय देव आकृति अंकित हुयी है व प्राकृतिक अलंकरण भी मेहराब में हुआ है।
३-  बयेला  के पांडे बंधुओं के मकान के बगल वाले भाग में  पहली मंजिल में  बखाई के एक खड़िकी  के  सिंगाड़ /स्तम्भों  व मथिण्ड /मुरिन्ड  व उसके ऊपर मेहराब /तोरण  में काष्ठ  कला व काष्ठ अलंकरण :-
 पहली मंजिल की खिड़की में उच्च कोटि का कला अलंकरण उत्कीर्णन हुआ है।  स्तम्भों में  नयनाभिरामी चित्र उभरे हैं। खिड़की के दरवाजे  पर दो तरह के आध्यात्मिक प्रतीक अलंकरण  (मानवीय अलंकरण ) चित्र  उत्कीर्ण  हुए हैं।  इसी तरह खिड़की के मथिण्ड /मुरिन्ड  के ऊपर बने मेहराब में उगता सूर्य या अन्य कोई पर्तीकात्मक परालरीतिक अलंकरण अंकित हुआ है।
४- बयेला (द्वारहाट ) में पण्डे बंधुओं के  बखाई भवन  के  पहली मंजिल में  मुख्य मोरी /छाज  के सिंगाड़  /स्तम्भों व  मुरिन्ड /मथिण्ड  , मेहराब  में भवन  काष्ठ  कला अलंकरण: - इस भवन के बगल वाले भाग में पहली मंजिल के मुख्य  खोली के  मोर (जीने बाहर झाँका जाता है ) अंडाकार हैं व उन पर कलाकारी हुयी है।     इस दिशा में मुख्य मोरी    में कुमाउनी शैली के तीन स्तम्भ  (एक एक स्तम्भ दो दो या तीन तीन स्तम्भों से मिलकर निर्मितहोना )  हैं व प्रत्येक स्तम्भ में कमल दल व अन्य प्राकृतिक  छटा के कलाकृतियां अंकित हैं।   स्तम्भ में प्राकृतिक व जयमितीय कला  अलंकरण हॉबी है।  स्तम्भ चौखट मुरिन्ड /मथिण्ड  में भी बेल बूटे  अंकित हुए के छाप दिखाई दे रहे हैं।   अंडाकार खोल या  मोरी /झाँकने का स्थल के बाहर  प्राकृतिक व ज्यामिति काष्ठ कला के दर्शन होते हैं।  कालकृति व बनावट भव्य हैं। 
मकान के बगल वाले मकान के कर्म या मोरी /छाज के स्तम्भों में भी काठ कला  उत्कीर्ण हुयी है। 
 निष्कर्ष में कहा जा सकता   है  कि   आजादी के बाद  सम्पूर्ण होने वाले भव्य मकान में  ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय (मुख्यतया देव आध्यात्मिक आकृति )  अलंकरण उत्कीर्ण हुआ  है। 
सरंरचना दृष्टि से भी मकान में एकरूपता।  समरूपता का ख्याल रखा गया है।  इसी तरह अनऔपचारिक  - औपचारिक संतुलन , एकरसता तोडू कला, समानुपातिक  दूरी व अंतर , गतिशीलता , लयता , आदि सभी का ध्यान रखा गया है।  कलाकार  वास्तव में पारम्परिक स्कूल (परिवार ही स्कूल ) के परीक्षित थे जो इतने बड़े मकान में कला संरचना का पूरा ध्यान रखा गया है। 
सूचना व फोटो आभार : प्रमोद पांडे ,  बयेला 
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं
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  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ  कला अंकन  - 
अल्मोड़ा में बखाई काष्ठ कला  , पिथोरागढ़  में  बखाई काष्ठ कला ; चम्पावत में  बखाई   काष्ठ कला ; उधम सिंह नगर में  बखाई   काष्ठ कला ;; नैनीताल  में  बखाई  काष्ठ कला ; 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Bakhai) of Garhwal , Kumaun , Uttarakhand , Himalaya
 House wood  carving Art in Bakhai, Mori, chhaj   in Almora Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhai, Mori, chhaj   in Nainital   Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhai, Mori, chhaj   in  Pithoragarh Kumaon , Uttarakhand ;  House wood  carving Art in Bakhai, Mori, chhaj   in  Udham Singh  Nagar Kumaon , Uttarakhand ;    कुमाऊं  में बखाई ,  मोरी में भवन काष्ठ  कला ;


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थेपगांव (इड़िया  कोट  तल्ला ) में स्व अम्बा दत्त मधवाल  के  भव्य  निम दारी ,  तिबारी   में उत्कृष्ट काष्ठ कला व अलंकरण
 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई , खोली  , काठ बुलन ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन  -  112 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  पौड़ी गढ़वाल जनपद के धुमाकोट तहसील में नैनीडांडा के इडिया  कोट  तल्ला  के    थेपगांव   अपनी समृद्धि व सौकारपन  के लिए प्रसिद्ध रहा है।थेपगांव  में ही स्व  अम्बा दत्त मधवाल  के  तल मंजिल में भव्य तिबारी  युक्त भव्य जंगलेदार मकान अपने निर्माण सम य सन 1929  से ही क्षेत्र व थेपगांव की पहचान /identity  रहा है। मकान दुखंड /तिभित्या  है।
    स्व अम्बा दत्त  मधवाल की तिबारी युक्त निमदारी  में काष्ठ  कला विवेचना हेतु भवन के तीन भागों पर ध्यान देना पड़ेगा -
१- पहली मंजिल में जंगलों के स्तम्भों में  काष्ठ कला   
२- तल मंजिल में  स्थापित तिबारी (बैठक ) में काष्ठ  कला , अलंकरण (art  and motifs )
३- तल   खोली में काष्ठ कला , अलंकरण
   १- पहली मंजिल में जंगलों के स्तम्भों में  काष्ठ कला :-   
पहली मंजिल में लकड़ी के छज्जे पर बंधे जंगले /निम दारी  में  18  से अधिक स्तम्भ है जो काष्ठ  छज्जे पर  टिके हैं  व ऊपर काष्ट  की छत पट्टिका /कड़ी से मिल जाते  हैं।  स्तम्भ के नीचे वाले भाग में दो दो पट्टिकाएं चिपकी हैं जिससे यह भाग मोटा दीखता है।  जंगल पर लौह रेलिंग लगी है।  स्तम्भों , दासों /सीरा / टोड़ी  व कड़ियों में ज्यामितीय कला , अलंकरण ही हुआ है।
२-  ल मंजिल में  स्थापित तिबारी (बैठक ) में काष्ठ  कला , अलंकरण (art  and motifs ):-
    गढ़वाल में अब तक के सर्वेस्क्षण में  मैंने पौड़ी गढ़वाल के दो ही तिबारियों को तल मंजिल में पाया है एक ज्याठा   गाँव (पैंनों ) में  स्व विश्वम्भर दत्त देवरानी शास्त्री की तिबारी व   स्व मधवाल  की यह   तिबारी  तल मंजिल में स्थापित हैं।  अम्बा दत्त  मधवाल   की तिबारी में उत्कृष्ट  काष्ठ  कला उभर कर   आयी है व नयनाभिरामी भी है।  इस नयनाभिरामी छवि हेतु अम्बा दत्त के पड़पोते विवेका नंद मधवाल  की जितनी प्रशंसा की जाय कम  है  जो भवन की देखरेख बच्चों के बराबर ही कर रहे हैं।   तिबारी में चार स्तम्भ /सिंगाड़ हैं जो तीन द्वार /मोरी /खोली /ख्वाळ  बनाते हैं।  किनारे के स्तम्भ  बेलबूटे से अलंकृत कड़ी से दीवाल से जुड़ते हैं। 
   प्रत्येक स्तम्भ देहरी के ऊपर चौकोर डौळ पर टिके हैं।  डौळ  के ऊपर अधोगामी कमल दल है फिर ड्यूल (ring type  wood  plate ) है।  ड्यूल  के नीचे , ड्यूल में व ड्यूल के ऊपर    सुंदर चित्रकारी अंकित हुयी है।  ड्यूल के ऊपर के धगुल /छल्ला के ऊपर फिर उर्घ्वगामी कमल दल उभर कर आया है।  प्रत्येक कमल दल /पंखुड़ियों के ऊपर   चित्रकारी हुयी है।  यहां से  स्तम्भ की मोटाई कम होती व इस कम भाग शाफ़्ट  में कमल दल से तीर के पश्च भाग जैसी आकृति दोनों और अंकित हुआ है।  स्तम्भ के इस भाग में एक सर्पाकार /spiral  जैसी आकृति अंकित है जिस पर पत्तियों जैसे आकृति अंकित है।  जहां पर स्तम्भ की मोटाई सबसे कम है  वहां पर अधोगामी मकल दल की  फिर कलात्मक ड्यूल है व फिर ऊपर की ओर  उर्घ्वगामी कमल दल है। यहां के कमल पंखुड़ियों के ऊपर पत्तियों या पुष्प जैसे आकृति अंकित हुयी हैं।  उर्घ्वगामी कमल दल  के ऊपर इम्पोसट है जहां से एक  तरफ ऊपर की ओर स्तम्भ का थांत (bat blade type shape ) शुरू होता है और थांत ऊपर सीधे मुरिन्ड /मथिण्ड से मिल जाता है।  यहीं से मेहराब का आधा भाग (half arch ) भी शूर होता है जो दूसरे  स्तम्भ के अर्ध चाप से मिलकर पूरा चाप बना देता है।  मेहराब केंद्र को छोड़ तिपत्ति  स्वरूप है व एक मेहराब के ऊपर त्रिभुज आकृति में  दो  अष्ट दलीय पुष्प हैं तो दोनों अन्य मेहराब के बाहर त्रिभुज में  धर्मचक्र हैं।  याने मेहराब के ऊपर की तिकोनी पट्टिका में दो अष्टदल  पुष्प , चार धर्म चक्र आकृति हैं , प्रत्येक त्रिभुज आकृति में  वानस्पतिक अंकरण उत्कीर्ण हुए हैं।  मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष की कड़ियों में तरंगयुक्त बेल बूटे अंकित हैं।   छज्जे की आधार पट्टिका से कई शंकुनुमा आकृतियां लटक रही हैं जो सुन्र लग रही हैं।
  ३- तल   खोली में काष्ठ कला , अलंकरण  :-
 थेपगांव (इड़ि कोट ) में स्व अम्बा दत्त मधवाल   के मकान में पहली मंजिल में जाने हेतु तल मंजिल से अंदुरनी सीढ़ियां व तल मंजिल में खोली (प्रवेश द्वार ) है जिस पर काष्ठ  कला अलंकरण  प्रशंसनीय  है।  खोली के सिंगाड़ के तीन प्रमुख भाग हैं कड़ी , स्तम्भ व स्तम्भ के बाहर स्तम्भ पट्टिका।  स्तम्भ  व दीवाल से जोडू कड़ी में  व सिंगाड़ के अंदरूनी पट्टिका में वानस्पतिक (बेल बूटेदार ) अलंकरण हुआ है। स्तम्भ व कड़ी में वानस्पतिक कला से अंकित सर्पाकार   आकृति  साफ  दिखती हैं।  खोली की मथिण्ड /मुरिन्ड  की पट्टिका में तीन प्रकार के अलंकरण हुए है जो इस मकान को विशेष बनाने में महत्वपूर्ण हैं। मथिण्ड /मुरिन्ड में चक्राकर धर्म चक्र व अष्टदलीय पुष्प हैं, प्राकृतिक कला ,  व मंदिर  नुमा आकृति अंकित है  जिसमे कृति स्थापित। है  मंदिर नुमा आकृति के बाहर मुरिन्ड /मथिण्ड  पट्टिका में  मंदिर ओर वानस्पतिक आकृतियां  अंकित हैं जो मानव सिर  का  बनाते हैं। 
   निष्कर्ष निकलता है कि थेपगांव (इड़ि कोट ) में स्व अम्बा दत्त मधवाल   के मकान में सभी तरह के काष्ठ अलंकरण  अंकित हुए है , प्राकृतिक कला अलंकरण , ज्यामितीय काष्ठ कला अलंकरण व मानवीय कल अलंकरण।   भव्यता की दृष्टि से भी थेपगांव (इड़ि कोट ) में स्व अम्बा दत्त मधवाल   के मकान  भव्य है।     स्व  अम्बा दत्त मधवाल  ने यह मकान 1929   में निर्मित  करवाया व मिस्त्री थे भौन गांव (इडिया ) धुमाकोट  के  शोभा  मिस्त्री।  स्व अम्बा दत्त मधवाल  के पड़ पोते विवेका नंद की मकान देख रेख हेतु जितनी  भी प्रशंसा हो कम ही पड़ेगी।   
सूचना व फोटो आभार : कवि साहित्यकार रमाकांत ध्यानी , 
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ  कला अंकन  - 
Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; नैनी डांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; रिखणी खाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; जहरी खाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ;

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अवई  (यमकेश्वर ) में स्व प्रताप सिंह बिष्ट के चौपुर निमदारी  में काष्ठ कला विवेचना

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई , खोली  , काठ बुलन ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन  -  113 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 अवई  के स्व प्रताप सिंह बिष्ट का मकान अपनी भव्यता , गढ़वाली व   आइरिश    शैली का मिश्रण  शैली व चौपुर होने के कारण उदयपुर ही नहीं ढांगू , डबराल स्यूं व अजमेर में भी प्रसिद्ध मकान था व एक लैंडमार्क था व कुछ के लिए ऐसा मकान बनाने के सपना भी यह मकान था।
 अवई  यमकेश्वर ब्लॉक का महत्वपूर्ण गाँव है. अवई  के निकटवर्ती गांवों में चमकोटखाल , मजेरा , बड़ोली , गुंडई तल्ला , गुंडई  मला गांव हैं।  आज अवई के पडियार गाँव स्थान  में  स्व प्रताप सिंह बिष्ट के भव्य व उत्कृष्ट कोटि के चौपुर  (1 +3 ) मकान  में काष्ठ  कला , अलंकरण की चर्चा होगी।
ठाकुर प्रताप सिंह बिष्ट का यह मकान कुछ सालों पहले तक  चमकोटखाल क्षेत्र में प्रसिद्ध मकान था।  मकान कुछ कुछ आइरिश शैली  याने ब्रिटिश प्रभावित शैली पर बना है।  स्व प्रताप सिंह बिष्ट  के इस मकान में कुल 12 कमरे हैं व चौथे  मंजिल में हाल  है जो  बारात या अन्य बैठकों हेतु प्रयोग होता था।  अवई  के स्व    प्रताप सिंह बिष्ट के इस मकान में   छत टिन चद्दर  की है व खिड़कियां भी बड़ी हैं, तल मंजिल में पत्थर मिट्टी या गारा  सीमेंट  के स्तम्भों /पाया पर टिका है,  तो निष्कर्ष निकलता है  कि मकान  1947  के पश्चात ही निर्मित हुआ है। 
 मकान के तल मंजिल में एक कमरा है जिसके दरवाजों के सिंगड़  में केवल ज्यामितीय कला  उत्कीर्ण हुयी है।  मकान के  मुरिन्ड  या मथिण्ड  में एक काष्ठ अष्ट दल पुष्प लगाया गया है।
पहली मंजिल में बरामदा है व चार द्वार हैं व उन पर दरवाजे लकड़ी के हैं व सभी दरवाजों व रेलिंग पैर केवल ज्यामितीय कला दृष्टिगोचर हो रही है। 
दूसरे  मंजिल में  एक ओर  चार द्वार हैं तो बगल में दो द्वार का आभास होता है  अत: कहा जा सकता है कि  दूसरे  मंजिल में कुल छह द्वार हैं व उनके सिंगाड़ /स्तम्भ व मुरिन्ड /मथिण्ड  लकड़ी के हैं किन्तु इन स्तम्भों पर भी ज्यामितीय कला अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है।  स्तम्भों के आधार में ढाई  फ़ीट तक दो ओर पट्टिकाएं चिपकायी गयी हैं जिससे स्तम्भ आधार मोटा दिखाई देता है।  आधार के बाद स्तम्भ की मोटाई एक जैसी ही है किन्तु मुरिन्ड /मथिण्ड  की  कड़ी से कुछ नीचे स्तम्भ में एक आयताकार आकृति लगाई गयी है जो स्तम्भ को सुंदरता वृद्धिकारक है।
 तीसरे मंजिल में याने चौपुर मंजिल में  खिड़कियों में ही काष्ठ कार्य है। मकान के सभी दरवाजों पर चौकोर मुरिन्ड /मथिण्ड  हैं खिन भी मेहराब/तोरण / arch  नहीं हैं।
इस तरह  देखा गया है कि  ठाकुर प्रताप सिंह बिष्ट  के भव्य चौपुर निमदारी में केवल ज्यामितीय काष्ठ कला व अलंकरण हुआ है केवल एक मुरिन्ड  में अष्ट दलीय पुष्प छोड़कर कईं भी प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण नहीं देखा गया है।  मकान की भव्यता काष्ठ कला नहीं अपितु मकान की गढ़वाली - आइरिश शैली से निर्मित मिश्रित शैली व चौपुर होने से आयी है। 
सूचना व फोटो आभार : चंद्र प्रकाश थपलियाल यमकेश्वर
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ  कला अंकन  ;
Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; नैनी डांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; रिखणी खाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; जहरी खाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ;


Bhishma Kukreti

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 जल्ठ  में स्व. नंदा दत्त डबराल  की  निमदारी ( जंगलादार  मकान  )  में काष्ठ कला    ,  अलंकरण

गढ़वाल, कुमाऊं , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बखाई , मोरियों , खोलियों  काठ बुलन, छाज ) काष्ठ अंकन   - 115
- स्व नंदा दत्त डबराल रिकॉर्ड के हिसाब से प्रथम सरकारी
 संकलन - भीष्म कुकरेती

पौड़ी जनपद के डबरालस्यूं पट्टी में जल्ठ  गाँव  विद्वता के लिए प्रसीद्ध रहा है और आज  भी प्रसिद्ध है।  पिछले अध्याय में एक खोली की विवेचना हुयी थी  वह खोली वास्तव में  स्व नंदा दत्त डबराल की थी।   रिकॉर्ड के अनुसार  स्व नंदा दत्त डबराल  जल्ठ  के प्रथम सरकारी अध्यापक हुए हैं।  आज उनके दूसरे  मकान याने निमदारी (जंगलादार मकान )  में काष्ठ , कला  व अलंकरण के बारे में विवेचना होगी।
स्व नंदा दत्त डबराल का मकान/निमदारी    ढैपुर है (तल मंजिल + 1 . 5 )  है व दुखंड /तिभित्या  है ।  काष्ठ जंगला   पहली मंजिल पर  बंधा है।
निमदारी   में पत्थर /पटाळ  का बना  छज्जा  है जो लकड़ी के दासों /टोड़ी  पर टिका है।  निमदारी    के   छज्जे के  सामने व बगल में 18 से अधिक स्तम्भ , खम्भे  टिके  हैं जो ऊपर छत आधार काष्ठ पट्टिका से मिलते हैं।
स्तम्भों में आधार कुछ मोटा है व सबसे ऊपर भी मोटाई लिए  आकार है।  दोनों स्थलों (आधार व ऊपर ) कटान से सुंदर आकृति उत्कीर्ण की गयी है। 
 ज्यामितीय  अलंकरण के अतिरिक्त कोई प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण नहीं हुआ है। 
एक समय में  स्व नंदा दत्त डबराल की यह निमदरी जल्ठ  की पहचनों में से एक थी या ठसक वृद्धि करने का एक कारक थी।   बारात ठहराने व कई रौबदार मेहमानों को ठहरने का भी यह निमदारी ठौर था। 
 
सूचना व फोटो आभार : हरीश ममगाईं ,  व हरीश डबराल , जल्ठ

* यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं .
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डबरालस्यूं संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों   बखाई , मोरियों , खोलियों , काठ बुलन, छाज ,, पर काष्ठ  अंकन कला /लोक कला  115
House Wood Carving  Art (ornamentation ) in Dabralsyun  Garhwal , Uttarakhand  -
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों  , बखाईयों , मोरियों  , खोलियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -     

  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला   

 

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