Author Topic: House Wood carving Art /Ornamentation Uttarakhand ; उत्तराखंड में भवन काष्ठ कल  (Read 37174 times)

Bhishma Kukreti

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महड़  (तल्ला नागपुर)  में चौहान परिवार के  भव्य पैतृक मकान में काष्ठ  कला , अलंकरण विवेचना 

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बखाई , खोली , छाज   ) काष्ठ अंकन   -  116 

 संकलन - भीष्म कुकरेती

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  रुद्रप्रयाग के  दस ज्यूला कंडाई , अगस्त्यमुनि  में महड़  गाँव में चौहान परिवार का   पुराना  भव्य  मकान है जिस पर काष्ठ  कला अलंकरण की जितनी प्रशंसा हो कम ही पड़ेगी। 

महड़   में चौहान परिवार के दुखंड /तिभित्या मकान में निम्न भागों में काष्ठ कला  की विवेचना करनी होगी -

क  -- तल मंजिल के सामन्य कमरों के दरवाजों में काष्ठ  कला अलंकरण

ख  - तल मंजिल में खोली /प्रवेशद्वार में काष्ठ कला अलंकरण

ग   तल मंजिल में पहली मंजिल छज्जे के नीचे व खिड़कियों में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन

घ -  पहली मंजिल में साधारण तिबारी में  काष्ठ कला , अलंकरण अंकन

च - पहली मंजिल में मुख्य तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन

       क -तल मंजिले सामन्य कमरों के दरवाजों पर काष्ठ  कला अलंकरण :-

१- सामन्य कमरों के दरवाजों में ज्यामितीय अलकंरण हुआ है , मुरिन्ड /मथिण्ड  में भी ज्यामितीय अलंकरण हुआ है।

 ख  तल मंजिल में  दो खोलियों  में काष्ठ  कला अलंकरण अंकन

२- खोली या प्रवेश द्वार के सिंगाड़ों  /स्तम्भों में अधोगामी व उर्घ्वगामी कमल पुष्प है व ज्यामितीय कला अलंकरण है

३- सिंगाड़ /स्तम्भ व मुरिन्ड /मथिण्ड  मेदोनों में   पर्ण-पुष्प अलकंरण हुआ है

४- दोनों खोलियों के मथिण्ड /मुरिन्ड में  चतुर्भुज गणेश  (धार्मिक या प्रतीकात्मक अथवा मानवीय अलंकरण ) )  अंकित हैं।   

५- मुरिन्ड /म्थिन्ड के अगल बगल दोनों और ऊपर नीची दो चौखट हैं जिन पर  पुष्प व पर्णालंकार   अंकित हैं याने ४ पुष्प व वैसे ही कई पत्तियां अंकित हैं।

६-  इन उपरोक्त चौखटों में ज्यामितीय कटान के कुल  8 दीवालगीर हैं व प्रत्येक दीवालगीर में कटान से मिशिरत आकृति का आभासी अलंकरण (पशु भी दिखे व वनस्पति भाग भी )

 ६- छत के नीचे  खोली के मुरिन्ड ऊपर काष्ठ की  पट्टिकाएं हैं जिन से शंकु नुमा आकृति लटक रही हैं।  इन काष्ठ पट्टिकाओं में पर्णालंकरण हुआ है।

               ग   - तल मंजिल में पहली मंजिल छज्जे के नीचे व खिड़कियों में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन   

मकान में अन्य मकानों जैसे छज्जे एकसार नहीं हैं अपितु केवल तिबारियों के नीचे ही है याने कुल तीन छज्जे हैं।  इन छज्जों के नीचे तल मंजिल में काष्ठ  नक्कासी निम्न तरह से हुयी है -

७-  छतों के नीचे  कटान से बैकेटों में नक्कासी हुयी है जिनमे   ज्यामिति व कहीं  पुष्प  कली या चिड़िया चोंच का आभासी अंलकरण हुआ है

८-  सामन्य तिबारी के एक छज्जे  के नीचे ग पहले चौकट में  गाय - , बछिया व मनुष्य  गाय को घास खिलाते हुए अंकित हुआ है , इसी स्थान में   दूसरे क चौखट में बड़े आकर की चिड़िया व तीसरे चौखट में बड़ा हाथी व पीछे हाथियों के झुण्ड का आभास का चित्र अंकित है।

९- बाकी छतों के नीचे  बरकतों /डेवलगीरों से बने  चौखटों में पर्ण -पुष्पालंकार अंकन हुआ है। लगभग 16  से अधिक डेवलगीरों से निर्मित चौखट हैं जीने पुष्प-पर्णालंकार अंकित हुआ है।

          घ -  पहली मंजिल में साधारण तिबारी में  काष्ठ कला , अलंकरण अंकन 

 १० -महड़  के चौहान परिवार के पैतृक भव्य मकान में  दो किस्म की तिबारियां हैं।  दो तिबारियां सामन्य तिबारियां है जिनमे चार चार स्तम्भों  से   तीन -तीन खोली बनती हैं।  स्तम्भों  में उर्घ्वगामी व अधोगामी कमल दल अंकित हैं व ज्यामितीय कटान है।  मुरिन्ड चौखट है व कोई मेहराब नहीं है।

 

          च - पहली मंजिल में मुख्य तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन

११- महड़   (रुद्रप्रयाग )  के चौहान परिवार के इस भव्य मकान के पहली मंजिल में मध्य में भारी तिबारी है

१२ - तिबारी में ४ भरी स्तम्भ हैं जो तीन खोली /ख्वाळ  बनाते हैं।  प्रत्येक सम्भ में  दो अधोगामी कमल दल  . दो उर्घ्वगामी कमल दल व दो नक्कासी युक्त ड्यूल हैं

१३- स्तम्भों के शीर्ष में   कुल तीन मेहराब है व प्रत्येक मेहराब के बाह्य तल के त्रिभुज में  पर्णालंकार अंकित है व दो किनारे के मेहराबों के त्रिभुजों के दो दो  सूर्य नुमा बहुदलीय पुष्पालंकार  अंकित हैं.

१४- मेहराब के मुरिन्ड के ऊपर चौखट में शगुन या सुख हेतु एक वीर  देव पुरुष या महामन्व की आकृति अंकित है।

१५- स्तम्भ के ऊपर जब स्तम्भ थांत बनते हैं तो उनमे दीवालगीर  हैं जिनमे पुष्पालंकार व चिड़िया  चोंचालंकार अंकित हैं ,

१६ - मुरिन्ड /मथिण्ड  के ऊपर पट्टिकाओं में पर्ण -पुष्पालंकार अंकित है। 

अभी चौहान  परिवार में हेमंत चौहान  , विजयपाल चौहान , लखपत  सिंह ,  सुभाष  चौहान आदि  मकान की देखरेख में पूरी रूचि लेते हैं

निष्कर्ष निकला जा सकता   है कि  महड़   में चौहान परिवार  के    भव्य पैतृक मकान में  ज्यामितीय , प्राकृतिक  व मानवीय (पशु , पक्षी , मअब , देव प्रतीक )प्रकार के  अलंकरण  हुए हैं व कम से कम 16  प्रकार के अलंकरण हुए हैं। 

     सूचना व फोटो आभार : सुभाष   चौहान , महड़

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020

 Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag    Garhwal  Uttarakhand , Himalaya   

  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बखाइयों , बाखाली , खोली  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 

  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई , बाखली  ) काष्ठ अंकन लोक कला ( नक्कासी )  - 

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ; Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag  Tehsil, Rudraprayag    Garhwal   Traditional House wood Carving Art of  Ukhimath Rudraprayag.   Garhwal;  Traditional House wood Carving Art of  Jakholi, Rudraprayag  , Garhwal, जखोली , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला ; उखीमठ , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला अंकन

Bhishma Kukreti

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जल्ठ  में स्व. नंदा दत्त डबराल  की  निमदारी ( जंगलादार  मकान  )  में काष्ठ कला    ,  अलंकरण

गढ़वाल, कुमाऊं , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बखाई , मोरियों , खोलियों  काठ बुलन, छाज ) काष्ठ अंकन   - 117 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती

पौड़ी जनपद के डबरालस्यूं पट्टी में जल्ठ  गाँव  विद्वता के लिए प्रसीद्ध रहा है और आज  भी प्रसिद्ध है।  पिछले अध्याय में एक खोली की विवेचना हुयी थी  वह खोली वास्तव में  स्व नंदा दत्त डबराल की थी।   रिकॉर्ड के अनुसार  स्व नंदा दत्त डबराल  जल्ठ  के प्रथम सरकारी अध्यापक हुए हैं।  आज उनके दूसरे  मकान याने निमदारी (जंगलादार मकान )  में काष्ठ , कला  व अलंकरण के बारे में विवेचना होगी।
स्व नंदा दत्त डबराल का मकान/निमदारी    ढैपुर है (तल मंजिल + 1 . 5 )  है व दुखंड /तिभित्या  है ।  काष्ठ जंगला   पहली मंजिल पर  बंधा है।
निमदारी   में पत्थर /पटाळ  का बना  छज्जा  है जो लकड़ी के दासों /टोड़ी  पर टिका है।  निमदारी    के   छज्जे के  सामने व बगल में 18 से अधिक स्तम्भ , खम्भे  टिके  हैं जो ऊपर छत आधार काष्ठ पट्टिका से मिलते हैं।
स्तम्भों में आधार कुछ मोटा है व सबसे ऊपर भी मोटाई लिए  आकार है।  दोनों स्थलों (आधार व ऊपर ) कटान से सुंदर आकृति उत्कीर्ण की गयी है। 
 ज्यामितीय  अलंकरण के अतिरिक्त कोई प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण नहीं हुआ है। 
एक समय में  स्व नंदा दत्त डबराल की यह निमदरी जल्ठ  की पहचनों में से एक थी या ठसक वृद्धि करने का एक कारक थी।   बारात ठहराने व कई रौबदार मेहमानों को ठहरने का भी यह निमदारी ठौर था। 
 
सूचना व फोटो आभार : हरीश ममगाईं ,  व हरीश डबराल , जल्ठ

* यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं .
Copyright@ Bhishma Kukreti  for detailing

डबरालस्यूं संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों   बखाई , मोरियों , खोलियों , काठ बुलन, छाज ,, पर काष्ठ  अंकन कला /लोक कला  115
House Wood Carving  Art (ornamentation ) in Dabralsyun  Garhwal , Uttarakhand  -
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों  , बखाईयों , मोरियों  , खोलियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -     

  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला   

Bhishma Kukreti

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गटकोट (ढांगू ) में खिमा नंद -श्री नंद जखमोला की निमदारी  में काष्ठ  कला
 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई , खोली  , काठ बुलन ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन  -  119
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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पौड़ी गढ़वाल जनपद मके  ढांगू पट्टी में गटकोट  गांव में कई तिबारियां व निमदारियां  थीं व अब भी हैं।  आज गटकोट के  प्रसिद्ध जागृ बंधु खिमा नंद व श्री नंद जखमोला की निमदारी  में काष्ठ कला पर चर्चा होगी। खिमा नंद -श्री नंद जखमोला की निमदारी  सामन्य किस्म की  निमदारी है जिस निम दारी ने अपने समय में अपनी भूमिका बखूबी निभायी . आज निमदारी सामन्य है किन्तु अपने समय में शान थी ही।  गटकोट  का यह मकान दुखंड /तिभित्या   व दुपुर है  काष्ठ  निमदारी  पहली मंजिल पर है।  मकान में लकड़ी का ही छज्जा है व दास /सोड़ी निमदारी में कुल   10 स्तम्भ हैं व स्तम्भों में ज्यामितीय कला को छोड़ कोई कलाकारी नहीं दिखती अपितु सपाट हैं।  मकान में अन्य स्थानों के भी काष्ठ कला के दर्शन कम ही हो रहे हैं।
निष्कर्ष निकलता है कि गटकोट में खिमा नंद -श्री नंद जखमोला की निमदारी  कला दृष्टि व भव्यता दृष्टि से सामन्य निमदारी  है। 
ओड व  काठ कलाकार (बढ़ई ) गटकोट  के ही थे। 
सूचना व फोटो आभार : विवेका नंद जखमोला , गटकोट
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरददारी यी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बखाइयों ,खोली  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला  -
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ अंकन लोक कला (  नक्कासी  )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला


Bhishma Kukreti

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तिमली (डबरालस्यूं ) में टीकाराम डबराल के जंगलेदार मकान में काष्ठ कला व अलंकरण , नक्कासी

गढ़वाल, कुमाऊं , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बखाई , मोरियों , खोलियों, काठ बुलन, छाज ) काष्ठ अंकन - 117
(कला अलंकरण पर केंद्रित )
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संकलन - भीष्म कुकरेती

वास्तव में कभी तिमली डाबर का ही हिस्सा था। तिमली सारे अडगईं (क्षेत्र ) में संस्कृत शिक्षा के लिए प्रसिद्ध रहा है। विख्यात संस्कृत लेख सदा नंद डबराल, मेधावी व्यास व लेखक विद्या दत्त डबराल, प्रखर व्यास वाणी विलास डबराल , पार्थ सारथि डबराल , अशोक डबराल आदि सबकी जन्म भूमि तिमली रही है। ज्पुर की ओर तिमली का अर्थ संस्कृत की पढ़ाई व बासणेश्वर महादेव। एक कहावत है कि "तिमलीक गौर बछर बि संस्कृत बुल्दन"। विशेष कारण है कि तिमली में 1882 में संस्कृत पाठशाला स्थापित होना. श्री तिमली संस्कृत पाठशाला को स्थापित करने में बद्री दत्त डबराल , दामोदर प्रसाद डबराल ,राय बहदुर कुला नंद बड़थ्वाल , भीम सिंह बिष्ट व् थोकदार माधो सिंह का हाथ है।
पकांड , प्रखर विद्वानों के इस गाँव में समृद्धि के चिन्ह कलयुक्त मकानों की सूचना मिली है , अधिकतर पलायन जनित कारणों से जीर्ण शीर्ण अवस्था में ही हैं।
उत्तराखंड में मकानों में काष्ठ कला , अलंकरण शृंखला में आज तिमली में टीकाराम डबराल के बड़े जंगलेदार मकान में काष्ठ कला का अध्ययन करेंगे।
बहुत से विद्वजनों ने प्रश्न उठाया कि भव्य तिबारियों के साथ जंगलेदार मकान को लेना तर्क संगत नहीं है। मेरा कहना है जनलेदार मकानों में भी तो काष्ठ कला उपयोग होती ही है। यदि यह कला इतनी सरल थी तो क्यों नहीं आज जंगलेदार कूड़ बनते हैं ?
टीकाराम डबराल का जंगलेदार दुपुर मकान भव्य है व दुखंड /तिभित्या मकान है। टीकाराम डबराल के जंगलेदार मकान में पहली मंजिल पर काष्ठ जंगला बंधा है। पत्थर के छज्जे के आगे लकड़ी का छज्जा बढ़कर उस अतिरिक्त छज्जे के ऊपर जंगले के स्तम्भ स्थापित किये गए हैं। लगता है जंगला मकान के चरों ओर है।
सामने व बगल में कुल बीस काष्ठ स्तम्भ है जो छज्जा कड़ी से ऊपर छत आधार कड़ी से मिलते हैं।
स्तम्भों के आधार पर दो ढाई फ़ीट तक स्तम्भ के तरफ काष्ठ पट्टिका लगाए गए हैं व इससे स्तम्वभ मोटा दीखते हैं
बाकी स्तम्भों , कड़ियों , दासों (टोड़ी ) में ज्यामितीय कला अलंकार छोड़ कोई प्राकृतिक या मानवीय अलंकरण नहीं अंकित हुआ है।
टीकाराम डबराल के मकान में काष्ठ ला जटिल न हो केवल ज्यामितीय कला के दर्शन होते हैं और मकान भव्य है जिसकी प्रसिद्धि सारे निकटवर्ती क्षेत्र जैसे ढांगू , उदयपुर अजमेर में फैली थी।
सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध सांस्कृतिक फोटोग्राफर बिक्रम तिवारी
* यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर के लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .
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 फल्दाकोट मल्ला (यमकेश्वर ) में चंदन सिंह पयाल के निमदारी में काष्ठ कला अलंकरण या  नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , काठ बुलन )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   -  121
संकलन - भीष्म कुकरेती
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 फल्दाकोट मल्ला यमकेश्वर तहसील (पौड़ी गढ़वाल )  का एक नामी गाँव  है।  90 % फल्दाकोट वासी  ब्रिटिश काल से ही पुलिस विभाग में कार्यरत  रहे हैं।  आज भी रोजगार मामले में फल्दाकोट वासियों की पहली पसंद पुलिस महकमा है।  कृषि में समृद्ध गाँव व पुलिस जैसे महकमे में नौकरीशुदा  ग्रामीणों के कारण फल्दाकोट में तिबारी व निमदारियों   की अच्छी खासी संख्या है। 
प्रस्तुत  ढैपुर, दुखंड /टीभीत्या चंदन सिंह   पयाल   की  निमदारी  में काष्ठ कला की चर्चा होगी।  तिबारी या बरामदा पहली मंजिल में  बाहर के तीन कमरों   से बना है व काफी फैलाव वाला बरामदा है।  मकान में कोई छज्जा नहीं है, सीढ़ियों से पहली मंजिल में  जाया जाता है  व निम दारी /डंड्यळ /बैठक सात संतभो /खम्बो से बनी है।  स्तम्भ लकड़ी  की  कड़ी पर आधारित है व आधार से सीधे मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष पट्टिका से मिल जाते हैं।  प्रत्येक स्तम्भ के आधार पर दोनों  ओर छपट्टी /टिकाएं हैं जो स्तम्भ को मोटाई व सुंदरता प्रदान करते हैं।  स्तम्भों के मध्य दो ढाई फिट तक रेलिंग है व लौह जाली है। 
मुरिन्ड /म्थिन्ड से मिलने स ेपहले स्तम्भों  में कटान से सुंदरता आयी है।  निमदारी के किसी भी भाग में लकड़ी पर ज्यामितीय कटान /अलंकरण के अतिरिक्त कहीं भी   प्राकृतिक (पर्ण -लता अलंकरण या बेल बूटे नक्कासी ) या मानवीय (पशु पक्षी देव) कला अलंकरण नहीं पायी गयी है।
आज इन निमदारियों  का महत्व कम ही हो गया है किंतु सन 60 -70  तक तो निमदारी  शानो शौकत , रौब , रुतबे की निशानियां थीं।  अब रुतबा मैदानों  की ओर  चला गया है  बस जीर्ण शीर्ण मकान ही याद  दिला रहे हैं कि कभी चंदन सिंह पयाल की निम दारी फल्दाकोट की एक पहचान थी।   
बड़ी खड़कियों से साफ़ पता चलता है कि मकान निर्माण पर ब्रिटिश प्रभाव है व 1947  के बाद ही निमदारी  का निर्मणा हुआ  है व स्थानीय शिल्पकारों ने ही निर्मणा किया होगा।   

सूचना व फोटो आभार : सी.पी. कंडवाल  व बालम सिंह पयाल (पूर्व प्रधान फल्दाकोट )

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   
अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला  , पिथोरागढ़  में  बाखली   काष्ठ कला ; चम्पावत में  बाखली    काष्ठ कला ; उधम सिंह नगर में  बाखली नक्कासी ;     काष्ठ कला ;; नैनीताल  में  बाखली  नक्कासी  ;
Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of Garhwal , Kumaun , Uttarakhand , Himalaya  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Almora Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Nainital   Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Pithoragarh Kumaon , Uttarakhand ;  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Udham Singh  Nagar Kumaon , Uttarakhand ;    कुमाऊं  में बाखली में नक्कासी ,  ,  मोरी में नक्कासी , मकानों में नक्कासी 

Bhishma Kukreti

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संग्राली (उत्तरकाशी )में स्व . ऋषिराम नौटियाल की  तिबारी -निमदारी   में काष्ठ कला , , अलंकरण, नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , काठ बुलन )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 122
( काष्ठ कला व अलंकरण केंद्रित )

 -संकलन - भीष्म कुकरेती

उत्तरकाशी के भवन काष्ठ कला पर  कई कला विद्व्वानों ने लेखनी चालयी है किन्तु  कुछ ही मंदिरों व कुछ विशेष भवनों पर ही इतिहासकारों (जैसे डा हांडा  व जैन ) व कलाविदों की नजर पड़ी है।  इस  श्रृंखला का उद्येश्य है कि गाँव गाँव के भवन का  प्रलेखन हो सके।   इस श्रृंखला में आज उत्तरकाशी के भटवाड़ी ब्लॉक में   संग्राली    में स्व ऋषिराम नौटियाल के  1948  में स्थापित दुखंड /तिभित्या भवन  में काष्ठ कला अलंकरण , नक्कासी के बारे में चर्चा होगी। 
 ऋषिराम नौटियाल के दुपुर मकान की  विशेषता है कि कम चौड़े छज्जे  वाले पहली मंजिल  में दो  ओर लकड़ी के स्तम्भ वाली निमदारी नुमा आकृति है व एक ओर  6 सपाट स्तम्भों से सजा छज्जा है जो संभवतया सामन रखने के उद्देश्य से निर्मित किया गया होगा।
 भवन के सामने वाले  7 स्तम्भ की निमदारी  है व बगल वाले छोर में भी स्तम्भों से सजी निमदारी है।  स्तम्भ छज्जे के ऊपर कड़ी के ऊपर आधारित हैं व ऊपर मुरिन्ड / मथिण्ड /शीर्ष कड़ी से जुड़ जाते हैं।  स्तम्भ  के आधार में दो ढाई फिट तक दोनों ओर छप्पटिकायें   जुड़ने से स्तम्भ मोटा दिखाई देते है।  इस जोड़ के बाद स्तम्भ में अधोगामी व उर्घ्वगामी  कमल दल ,ड्यूल   व ज्यामितीय आकर की कला दिष्टिगोचर होती है।  शीर्ष /मुरिन्ड /मथिण्ड की कड़ी से नीची भी स्तम्भों में अधोगामी पद्म पुष्प दल व उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल, ड्यूल  की  आकृतियां   व ज्यामितीय  अकृत्यं अंकित हैं, दोनों ओर एक ही प्रकार की आकृतियां सामान अनुपात में काटी गयी हैं।
मकान में अन्य कोई विशेष लकड़ी पर नक्कासी के दर्शन नहीं होते हैं.
1948  में निर्मित  संग्राली में  ऋषिराम नौटियाल  के भवन शिल्पकार बाडागडी उत्तरकाशी के थे।
इस तरह  निष्कर्ष निकलता  है कि  संग्राली के ऋषिराम नौटियाल के मकान में प्राकृतिक (कमल दल ) व ज्यामितीय कला अलंकरण हुयी है और  कहीं भी मानवीय कला अंकन के दर्शन नहीं होते हैं।  भवन शानदार कोटि में आता है जिस पर  काष्ठ अलंकरण सरल कला में है और सुंदर है।
सूचना व फोटो आभार : अम्बिका प्रसाद नौटियाल , संग्राली
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of   Bhatwari , Uttarkashi Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Rajgarhi ,Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Dunda, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Chiniysaur, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   भटवाड़ी , उत्तरकाशी के  भवनों  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , काठ बुलन )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी ; चिनियासौड़ उत्तरकाशी के  भवनों  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , काठ बुलन )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी ;  डुंडा , उत्तरकाशी के  भवनों  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , काठ बुलन )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी ; राजगढ़ी उत्तरकाशी के  भवनों  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , काठ बुलन )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी ;

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कोठार    (मल्ला ढांगू ) में थोकदार   स्व कुशल सिंह    रावत   की तिबारी  काष्ठ कला ,अलंकरण  (नक्कासी )

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , खोली  , काठ बुलन ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन,  नक्कासी  -  123
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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कोठार या कोठार कई गांव है यह कोठार कलसी के निकट याने मल्ला ढांगू (द्वारीखाल ब्लॉक , पौड़ी गढ़वाल ) में   थोकदार कुशाल सिंह रावत  की नायब तिबारी के विषय में है। कलसी कोठार मल्ला  ढांगू  (द्वारीखाल ब्लॉक ) में मकान छत के सिलेटी पटाळों की खानों हेतु प्रसिद्ध  गाँव था व यह  क्षेत्र  कख्वन  सहित शिल्प हेतु  भी प्रसिद्ध क्षेत्र रहा है। 
  जग प्रसिद्ध संस्कृति सरकारी फोटोग्राफर  बिक्रम  तिवारी के सौजन्य से यह फोटो मिली है।  तिवारी लिखते हैं कि  उनके किसी मित्र ने कोठार से प्रिंट फोटो भेजा था।  कोठार की यह तिबारी कई तरह से नायब तिबारी है , काष्ठ कला या नक्कासी दृष्टि से तो उत्कृष्ट किस्म की तिबारी है।
  कोठार की इस तिबारी में ढांगू की अन्य तिबारी जैसे ही चार स्तम्भ हैं जो तीन द्वार /ख्वाळ  /खोली बनाते  हैं।  स्तम्भ में ाहदर से लेकर ऊपर तक  दो अधोगामी कमल दल (पंखुड़ियां )  , दो उर्घ्वगामी पद्म दल व  चार ड्यूल हैं।  कमल दलों (पंखुड़ियों के ऊपर  पर्ण -लता अलंकरण हुआ है। स्तम्भ के ऊपरी वाले कमल दल के ऊपर एक चौखट /  impost है जहां से  स्तम्भ ऊपर की ओर थांत की आकृति ग्रहण करता है व दूसरे ओर  से मेहराब के अर्ध चाप निकलते हैं।
मेहराब तिपत्ति (trefoil ( नुमा है व बीच  में तीखा है व कई तह वाला मेहराब/चाप /तोरण  है।  मेहराब के बाहरी  तह में लता नुमा पर्ण आकृति अंकन हुयी है। 
मेहराब के  बाहर एक त्रिभुजाकार पट्टिका है।  पट्टिका के किनारे एक एक फूल उत्कीर्ण हुए  हैं।  एक फूल बहुदलीय पुष्प है तो दूसरा  सूरजमुखी के फूल  का केंद्रीय भाग (disk floret ) जैसी आकृति का पुष्प  है।
मेहराब के बाह्य तह में भी  पत्ती नुमा आकृति से शोभित है। मेहराब के सबसे ऊपर केंद्र के ऊपर एक छोटा आयत नुमा या सिलिंडर नुमा आकृति भी दिख रही है। 
मेहराब के मुरिन्ड /मथिण्ड   शीर्ष   में  भी पत्ती नुमा आकृति खुदी  हैं।
मेहराब के ऊपर मुरिन्ड /मथिण्ड से लेकर छत आधार पट्टिका तक की पट्टिका में लतनुमा , पर्ण नुमा  नक्कासी तो हुयी है हर मेहराब के मुरिन्ड के ऊपर वे चौखट में दो दो बड़े फूल की  आठ पंखुड़ियां दृष्टिगोचर होते हैं
, स्तम्भ जहां  से थांत (bat blade type )  की शक्ल अख्तियार करता है वहीँ ऊपर छत  आधार पट्टिका से निकला से दीवारगीर (bracket )  का निचला भाग आता है।  इस दीवारगीर के  निचले भाग में  मोर की गर्दन व चोंच  आकृति का आभास देता है व मोर  के शरीर में बहुदलीय सूरज मुखी फूल उत्कीर्ण हुआ है। मोर सिर ऊपर कंलगीं है जो ऊपरी दीवालगीर  के निम्न भाग से मिलता है। 
दीवालगीर का ऊपरी भाग कुछ कुछ डोली -पालकी की याद    दिलाता है।  इस आकृति के निम्न तल पर पाए हैं  जैसे  बैठक चौकी के पाए होते हैं। इसी आकृति में दो चिड़ियाँ भी खुदी दिख रही हैं या  आभास देते हैं।
छत आधार पट्टिका से कई शंकु आकर लटक रहे हैं। 
जहां तक तिबारियों के बढ़ई कलकारों का प्रश्न है ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं में तिबारी बढ़ई स्थानीय नहीं हुए हैं अपितु मथि मुलुक (श्रीनगर से आगे , उत्तरकाशी गंगापार या चौंदकोट  अथवा रामनगर ) से ही  आते थे।  कल्सी कोठार  - सिलेटी रंग के पटाळ की खानों के लिए प्रसिद्ध रहा है व यहीं कलाकार भी पनपे हैं।  इस मकान के ओड कख्वन के भी हो सकते हैं। 
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि कला  दृष्टि  से कोठार (मल्ला  ढांगू ) थोकदार (स्व )  कुशल सिंह   रावत   की  तिबारी भव्य व उत्कृष्ट प्रकार की है।  जो  पर्ण -लता, गुल्म , पुष्प ,  पुष्प दल के ऊपर अलंकरण , चिड़ियाएं , शंकु, पाए  आदि आकृतियों से सजी हैं।   याने तिबारी में  प्राक्रतिक , काल्पनिक, ज्यामितीय व मानवीय (चिड़िया) अलंकरण अंकित हुआ है।  तिबारी कला दृष्टि  से उत्कृष्ट श्रेणी की है।   

सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध  संस्कृति फोटोग्राफर बिक्रम तिवारी
यह लेख  भवन  कला,  नक्कासी संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलियों  ,खोली  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण,  नक्कासी  श्रृंखला  -
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,  बाखली , खोली, कोटि बालन  ) काष्ठ अंकन लोक कला , नक्स , नक्कासी )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला , लकड़ी पर नक्कासी , नक्स , House Wood Art from Kalsi Kuthar (Dhangu)


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 ढौंड  (पौड़ी गढ़वाल ) में पधानुं की  तिबारी व खोली में  काष्ठ कला  , अलंकरण , नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी , काठ बुलन ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी   -  124
  संकलन - भीष्म कुकरेती
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 गढ़वाल में ढौंडियाल स्यूं और डबराल स्यूं ही दो पट्टियां  हैं जो ब्राह्मण जाति पर आधारित हैं।  ढौंड गाँव में  राजपुताना  के गौड़ ब्राह्मण लगभग 17  वीं सदी में बसे थे.  कहा तो यह जाता है कि  ढौंढियालों के मूल पुरुष रूप चंद  ने ढौंड  गाँव बसाया था।  यह तथ्य बिलकुल भ्रान्तिकारक है।  ढौंड  शब्द खस शब्द है याने गौड़  ब्राह्मण इस स्थान  (ढौंड ) में बसने के कारण ढौंडियाल हुए।  पौड़ी गढ़वाल में ढौंड  स्यूंसी बैजरों /बीरों खाल क्षेत्र का महत्वपूर्ण गाँव है। 
ढौंड व ट्विन विलेज पटाया में कई तिबारी व निमदारियों  की सूचना है किंतु  अभी फोटो पधानुं  तिबारी व खोळी की ही मिली है। 
 मकान दुखंड /तिभित्या  है व काफी बड़ा है।   भवन काष्ठ कला अलंकरण , लकड़ी नक्कासी हेतु  दो स्थानों की विवेचना करनी होगी।  खोळी  व तिबारी .
 खोळी  (पहली मंजिल में आंतरिक प्रवेश द्वार ) तल मंजिल पर स्थित है।  खोली के मुख्य  पांच  भाग हैं - स्तम्भ, मुरिन्ड , मुरिन्ड के ऊपर पट्टिकाएं , मुरिन्ड के बगल में दीवालगीर , व  खोली के ऊपर छ्प्परिका  में काष्ठ अलकंरण /नक्कासी , जिनमे उत्कृष्ट काष्ठ  कला  (शानदार नक्कासी )   दृष्टिगोचर होती है.
 खोळी / प्रवेशद्वार के दोनों ओर  के प्रत्येक स्तम्भ /सिंगाड दो तीन  खड़े /वर्टिकल सिंगाड़ों  के मेल से बने हैं।  आधार  में कुम्भी जो कमल दल से बना है।  घुंडी /कुम्भी के ऊपर स्तम्भ  कड़ी /shaft में    पर्ण लता अंकरण हुआ है।  स्तम्भ चौखट मुरिन्ड /मथिण्ड  से मिलते हैं , मुरिन्ड चौखट की चार पट्टिकाओं में  वानस्पतिक अलंकरण हुआ है।  मुरिन्ड की सबसे उपर की तह या पट्टिका के ऊपर एक पट्टिका है जो छ्प्परिका आधार पट्टिका भी है।  इस पट्टिका में ज्यामितीय अलंकरण हुआ है।  आश्चर्य है कि मुरिन्ड  या मथिण्ड  में कोई प्रतीकत्मक /देव प्रतीक नहीं निर्मित हुआ है या समय के साथ मिट गया होगा । 
चौखट मुरिन्ड के बिलकुल बगल में दोनों ओर छ्प्परिका  से दो दो दीवारगीर (brackets ) स्थिर है व प्रत्येक दीवालगीर (bracket ) में चिड़िया चोंच  या गर्दन व पुष्प पराग केशर नालिका उत्कीर्णित हैं।  खोली के ऊपर की मोरी में भी अलंकरण के चिन्ह दीखते हैं ।   
छ्प्परिका के आधार से  कई शंकु नुमा आकृतियां  नीचे की ओर लटकी हैं। 
अतः  कह सकते हैं कि खोली /प्रवेशद्वार में  ज्यामितीय व प्राकृतिक अलंकरण की बहुतायत है व दीवारगीरों में मानवीय अलंकरण /नक्कासी है।
       तिबारी पहली मंजिल पर है व दो बाहर के कमरों से निर्मित बरामदे पर चार स्तम्भों से तिबारी स्थापित हुयी है जिसमे स्तम्भों से  तीन  ख्वाळ बनते हैं।  स्तम्भ को दीवार से  जोड़ने वाली दोनों कड़ियों में  पर्ण लता अलंकरण /नक्कासी हुयी है।    चूँकि  आंतरिक प्रवेश द्वार है तो छज्जा की चौड़ाई बिलकुल कम है। पत्थर के छज्जे के ऊपर पाषाण देळी /देहरी है जिसके ऊपर  चार डौळ  हैं जिनके ऊपर स्तम्भ खड़े हैं।  स्तम्भ के आधार में अधोगामी कमल दल  से  कुम्भी बनती है जिसके ऊपर  ड्यूल (ring type wooden plate ) है व फिर ऊर्घ्वाकार कमल दल ऊपर की ओर है व जहां से कमल दल समाप्त होता है वहीं से स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है जहां पर सबसे कम मोटाई  है वहां पर चार  ड्यूल या छल्ले हैं ऊपरी ड्यूल के ऊपर उर्घ्वगामी कमल दल है।  इस ऊपरी कमल दल से  एक ओर सीधा  स्तम्भ का थांत  (bat blade ) आकृति बनती है व दूसरी ओर तिप्पत्ति नुमा मेहराब चाप शुरू होता है जो दूसरे स्तम्भ के चाप से मिलकर पूरा मेहराब /तोरण  बनता है।  मेहराब के बाह्य त्रिभुज पट्टिका में किनारों पर एक एक बहुदलीय फूल हैं यान ेकुल आठ फूल मेहराब में हैं।  मेहराब के ऊपर मुरिन्ड /मथिण्ड  की पट्टिकाएं छत आधार पट्टिका से मिलती हैं व इन  पट्टिकाओं  में पर्ण -लता ालकंरित है याने पत्ते व लता की नकासी है।
    स्तम्भ के ठीक ऊपर छत पट्टिका से एक एक   दीवालगीर फिट है जो थांत  तक सीमित है।  प्रत्येक दीवालगीर में पक्षी गर्दन व चोंच तो है साथ में पुष्प कली का आभासी या वास्तविक अलकंरण भी है।  यह गढ़वाल के काष्ठ शिल्पकारों की विशेषता रही है कि  दीवालगीरों में ऐसा अलंकरण करते हैं कि आपको जो देखना है वह देखो याने दो किस्म के अर्थ आकृति  उत्कीर्ण करना।  यहाँ पर पुष्प केशर नाभि भी लगती है व चिड़िया की गर्दन या चोंच भी। 
    ढौंड के पधानुं  तिबारी युक्त मकान  के पहली मंजिल में एक मरहराब /तोरण /चाप नुमा मोरी है जिसके सिंगाड़  व मुरिन्ड में प्राकृतिक अलकनकरण के चिन्ह दीखते हैं। 
तिबारी या मकान के शिल्पकारों के बारे में आज की नई पीढ़ी को बिलकुल पता नहीं है।  संभवतया तिबारी 1925 के लगभग निर्मित हई होगी।  एक समय पधानं  तिबारी ढौंड  ही नहीं ढौंडियल स्यूं की पहचान थी , शान थी या identity  थी। 
निष्कर्ष निकलता है कि   पौड़ी गढ़वाल के बीरोंखाल क्षेत्र में ढौंड गाँव में पधानुं  परिवार की तिबारी व खोली में  ज्यामितीय , प्राकृतिक वा मानवीय तीनों प्रकार के अलंकरण हुए हैं व तिबारी उत्कृष्ट किस्म की तिबारी में गणना होगी। 
सूचना व फोटो आभार : जगदीश ढौंडियाल , ढौंड
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ  कला अंकन  - 

Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, नक्कासी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , नक्कासी ; नैनी डांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; रिखणी खाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; जहरी खाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , नक्कासी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; नक्कासी , भवन नक्कासी

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अमाल्डू   (पौड़ी गढ़वाल )  में  स्व राम प्रसाद उनियाल के चौपुर की तिबारी व जंगले में काष्ठ  कला अलंकरण , नक्कासी

 गढ़वाल, कुमाऊं , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखाई , मोरियों , खोलियों,   काठ बुलन, छाज    ) काष्ठ कला, नक्कासी   - 127
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 संकलन - भीष्म कुकरेती

 जैसा कि पहले ही सूचित हो चूका है कि अमाल्डू    (डबराल स्यूं , द्वारीखाल ब्लॉक ) कर्मकांडी ब्राह्मण -ज्योतिष विद्वानों का गाँव  है व अमाल्डु के मकानों की विशेष्ता है अधिकतर मकान ढैपुर  ( 1 +1 . 5  ) , तिपुर  (1 +2 ), चौपुर (1 +3 ) हैं व कहीं कहीं राज राजेश्वरी देवलगढ़ दरबार भवन की छाप लिए हैं।  प्रस्तुत  स्व राम प्रसाद उनियाल के चौपुर (तल मजिल + 3 अन्य मंजिल )  में तिबारी भी है व जंगला भी है। 
 मकान दुखंड /तिभित्या  है व तल मंजिल से ऊपर मंजिल में जाने हेतु आंतरिक पथ प्रवेश द्वार से जाता है जिसे खोली कहा जाता है।  खोली के सिंगाड /स्तम्भ व मुरिन्ड पर सुंदर कला अंकित है , अशोक उनियाल  बताते हैं कि मुरिन्ड  में बहुत बारीकी का अंकन / (नक्कासी ) हुआ है।
  पहली मंजिल पर स्थित तिबारी चार स्तम्भों से बनी  है  जिससे तीन खोली /द्वार , ख्वाळ हैं।  स्तम्भ दीवाल से एक नक्कासीदार कड़ी से जुड़े हैं।  स्तम्भ का आधार कुम्भी उलटे कमल दल से बना है व फिर नककसीदार ड्यूल है , ड्यूल के ऊपर ऊपर गमन करता कमल फूल है व यहां से स्तम्भ की गोलाई  में मोटाई कम होती जाती है व जहां सबसे कम मोटाई है वहां स्तम्भ में   अधोगामी पद्म पुष्प दल है व उसके ऊपर अलंकरण युक्त ड्यूल व ड्यूल के ऊपर खिले कमल की पंखुड़ियां है।  यहां से स्तम्भ सीधा ऊपर मुरिन्ड में मिलने से पहले थांत (bat blade shape ) की शक्ल अख्तियार करता है व दूसरी ओर मरहराब की चाप निकलती है , मेहराब  तिप्पती  नुमा है व बीच में ही तीखा है ,. मेहराब के बाहर त्रिबुज आकृति  में
किनारे पर एक एक बहुदलीय पुष्प हैं. मेहराब के त्रिभुज , मुरिन्ड के पट्टियों  में सर्पिल लता , कहीं पत्तियां   औरकहीं  लता पर्ण अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है।
 मकान में जंगला भी है यह  क्यों बनाया यह तो प्रश्न ही खड़ा करता है।  प्रथम मंजिल के जंगले में दस से  अधिक  सपाट स्तम्भ /खम्बे हैं।  स्तम्भ व जंगल के मुरिन्ड /मथिण्ड  में कोई अलंकरण नहीं है।  कहा जाय तो  जंगले ने तिबारी की सुंदरता को ढका है।
 पत्थर ढोँरी के खान  खांडी सेलाये गए थे व शिल्प कलाकार  गांव के व् आस पास स्थानीय कलाकर ही थे।
निष्करण निकलता  है कि  अमाल्डू  में स्व राम प्रसाद उनियाल  की चौपुर  का तिबारी भव्य है व उसमे प्राकृतिक व ज्यामितीय कला , अलंकरण विद्यमान है।  जंगल ने तिबारी की सुंदरता बिल्कल घटा के रख दी है। 
सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध संस्कृति फोटोग्राफर  बिक्रम तिवारी
सहायक सूचना अशोक उनियाल
* यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से  हैं।  है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं .
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किमसार (यमकेश्वर ) में के. जी. कंडवाल की  निमदारी  में काष्ठ कला     नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , काठ बुलन )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 125
 संकलन -भीष्म कुकरेती

यमकेश्वर (पौड़ी गढ़वाल )  में किमसार  एक महत्वपूर्ण गाँव है और पहले खंडों में सूचित  किया ही जा चुका है कभी किमसार  वैद्यकी व पंडिताई के लिए क्षेत्र में प्रसिद्ध था।  किमसार से भी कुछ तिबारियों व निमदारियां  होने की सूचना मिली है। प्रस्तुत है
 आज किमसार के  की जी कंडवाल की निमदारी की काष्ठ  कला की चर्चा होगी।  पहली मंजिल पर दुखंड /तिभित्या  मकान में स्थित की जी कंडवाल  की निमदारी   की विशेषता इसका बरामदा बड़ा होना है व बरामदे की छत लकड़ी की है व मजबूत है।   किमसार में के जी कंडवाल की इस निमदारी है जिसमे 16  से अधिक स्तम्भ /खम्बे है।    स्तम्भ आधार व ऊपर मुरिन्ड /मथिण्ड   से पहले मोठे या  ज्यामितीय कटान से अलंकृत है। अपने बचपन व यौवन काल में निमदारी के जी कंडवाल परिवार की ही शान व पहचान न थी अपितु किमसार समेत पूरे डाडामंडल हेतु भी गर्व वास्तु थी। 
  मकान व्  निमदारी  निर्मणा में स्थानीय शिल्पकारों का हाथ है।   
  निष्कर्ष निकलता है कि किमसार में की जी कंडवाल की निमदारी में ज्यामितीय कला अलंकरण उत्कीर्ण हुयी है व प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण नहीं है।  लकड़ी नक्कासी  दृष्टि से निमदारी सामन्य है किंतु बरामदे की दृष्टि से निमदारी भव्य ही।
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सूचना व फोटो आभार : श्याम सुंदर बिंजोला , रैंस
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   
अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला  , पिथोरागढ़  में  बाखली   काष्ठ कला ; चम्पावत में  बाखली    काष्ठ कला ; उधम सिंह नगर में  बाखली नक्कासी ;     काष्ठ कला ;; नैनीताल  में  बाखली  नक्कासी  ;
Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of Garhwal , Kumaun , Uttarakhand , Himalaya  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Almora Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Nainital   Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Pithoragarh Kumaon , Uttarakhand ;  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Udham Singh  Nagar Kumaon , Uttarakhand ;    कुमाऊं  में बाखली में नक्कासी ,  ,  मोरी में नक्कासी , मकानों में नक्कासी  ;


 

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