मूल में जागर क्या है?.......कि सिद्धिदाता भगवान गणेश, संध्याकाल का प्रज्जवलित पंचमुखी पानस, माता-पिता, गुरु-देवता, चार गुरु चौरंगीनाथ, बारगुरु बारंगी नाथ, नौखण्डी धरती, ऊंचा हिमाल-गहरा पाताल, कि धुणी-पाणी सिद्धों की बाणी-बिना गुरु ग्यान नहीं, कि बिणा धुणी ध्यान नहीं, चौरासी सिद्ध-बारह पंथ-तैंतीस कोति देवता-बावन सौ बीर-सोलह सौ मशान, न्योली का शब्द-कफुवे की भाषा, सुलक्षिणी नारी का सत, हरी हरिद्वार कि, बद्रीकेदार, पंचनाम देवताओं का सत, इन सभी के धीर-धरम, कौल करार और महाशक्ति को साक्षी करके बजने लगा......शंख...कांसे की थाली और बिजयसार का ढोल और ढोल के बाईस तालो के साथ जगरिया बजाने लगा हुड़्का- भम भाम, पम पाम और पय्या के सोटे से बजने लगी कांसे की थाली........।
मेरा सभी सदस्यों से अनुरोध है कि जागर में प्रयुक्त होने वाले शब्दों का यहां पर उल्लेख किया जा रहा है, वह सभी पवित्र और हमारी स्थानीय आस्था से जुड़े हैं, मैं कई दिनों से ऊहापोह में था कि इनको फोरम में लिखा जाय या नहीं, विचार-विमर्श से तय हुआ कि यह हमारी लोक भाषा में आरती के समान है। तो मेरा इसे पढ़्ने वाले सुधी सदस्यों से अनुरोध है कि इसकी पवित्रता बनायें रखें, इसे पढे़ और इनका उच्चारण अशुद्ध जगहों पर न करें। बाकी आप सभी विद्वान हैं....।