Author Topic: Kumaoni Khadi Holi Exclusive Collection-कुमाऊंनी खड़ी होली संग्रह, अल्मोड़ा से  (Read 50384 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Deep Chandra DC
kumaon ki khadi holi..............village- palson............kbhi aao mera muluk holi khelan....


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कुमांऊँनी भक्ति परख होली -

कह दीजो महाराज भरत से कह दीजो ।
राजा दसरथ मांछ कटन गए , अंगुठा लागी फ़ांस, भरत से कह दीजो ।
पहिलो पहिरा राणी कौशल्या , चैन कछु न होय ,भरत से कह दीजो ।
दुसरो पहिरा राणी सुमित्रा , रैहना नीन न होय ,भरत से कह दीजो ।
तिसरो पहिरा राणी केकई को सोवैं पांव पसार ,भरत से कह दीजो ।
मुंख में अंगूठा देकर राणी पीड सभी हर लेय ,भरत से कह दीजो ।
जो तू मांगे मांग ले राणी जो मन इच्छा होय ,भरत से कह दीजो ।
जो मैं मांगू ना दो राजा बचन अकारथ होय ,भरत से कह दीजो ।
इक बच्चा , दो , तिरकली बच्चा , बच्चाहार न होय ,भरत से कह दीजो ।
रामचन्द्र बनबासहिं दीजो,दीजो भरतहिं राज ,भरत से कह दीजो ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कुमांऊँनी भक्ति परख होली -

दसरथ को लछिमन बाल - जती ।
बार बरस सीता संग रहिए , पाप न लागो एक रती ।
बार बरस बन खंडन रहिए , नीन न लागी एक रती ।
बार बरस बन खंडन रहिए ,भूक न लागी एक रती ।
बार बरस बन खंडन रहिए ,तीस न लागी एक रती ।
दसरथ को लछिमन बाल - जती । दसरथ को लछिमन बाल - जती ।

विनोद सिंह गढ़िया

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कुमाऊंनी होली

हरि खेल रहे हैं होली,
देबा तेरे द्वारे में।
टेसू के रंग में रंगे कपोल हैं,
चार दिशा दिशा फाग के बोल हैं,
उड़त अबीर गुलाल,
देबा तेरे द्वारे में।
हरि खेल ...
हाथ लिए कंचन पिचकारी,
गावत खेलत सब नर नारी,
भीग रहे होल्यार,
देबा तेरे द्वारे में।
हरि खेल ...
भाग कि मार पड़ी उसके सर,
कौन अभाग है शिव शिव हर हर,
कैसा है लाचार,
देबा तेरे द्वारे में।
हरि खेल ...
गिरिका भी खेलें बची का भी खेलें,
बचुली सरुली और परुली भी खेलें,
कौन करे इंकार,
देबा तेरे द्वारे में।
हरि खेल रहे हैं होली,
देबा तेरे द्वारे में ।
 
स्रोत-PATALI





hemuttarakhandi

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पहाड़ की होली
« Reply #49 on: March 12, 2013, 04:40:04 PM »
होली नजदीक है. और पहाड़ की होली तो और भी मजेदार होती है. पहाड़ में झंडी का कटना, फिर उसे लाल पीले कपड़ों से सजाना, और झुण्ड में उसे लेकर जाना. और फिर झुण्ड में होली के गीतों का गाना. कई लोग होली का बड़े दिनों से इंतजार करतें हैं क्योंकि होली में पीने के बाद गाने में बहुत मजा आता हैं नंदप्रयाग में तो खड़ीं होली में तो समां ही बंध जाता है. हम तो इस दिन के लिए तेयार रहतें हैं. हारमोनियम तथा ढोलक वाले को भी बड़े मुद्दत के साथ जोड़ना पड़ता है क्योंकि वही तो रंग जमाते हैं. पहाड़ में होली ऐसा त्यौहार है जेसे आज टेलीविजन पर गीतों की सारेगामा. लोग होली में गाने के लिए इंतजार करते हैं. होली  के कुछ गानों को हम आपके सम्मुख पेश कर रहें हैं जो हमारे यहाँ पारंपरिक रूप से गाये जातें हैं. हम इन गीतों को और अधिक लोगों के सामने लाना चाहतें हैं. आज जिस तरह लोग पारंपरिक गीतों से दूर हो रहें हैं तथा फूहड़ गीतों को पसंद कर रहें हैं. वही हम इन गीतों के माद्यम से अपनी संस्कृति को और अधिक बढावा देना चाहतें हैं. होली के कुछ सुन्दर गीत जो मैं यहाँ पर रख रहा हूँ.
अच्छा जगजी मेरो मन लागो रे लाल.
अच्छा जगजी मेरो मन लागो रे लाल.
अच्छा जगजी मेरो मन लागो कन्हेया, जगजी मेरो मन लागो रे लाल
कौन शहर की तू ग्वाल गुजरिया कौन शहर दधि बेचो रे लाल.
गोकुल की हम ग्वाल गुजरिया.  मथुरा शहर दही बेचो रे लाल.
अच्छा जगजी मेरो मन लागो रे लाल.
अच्छा जगजी मेरो मन लागो कन्हेया, जगजी मेरो मन लागो रे लाल
जाओ कन्हैया बन को बसेय्या. देय्या और छाछ मिलाओ रे लाल.
देय्या हमारो खांड सो मिठो, देय्या और छाछ मिलाओ रे लाल.
अच्छा जगजी मेरो मन लागो रे लाल.
अच्छा जगजी मेरो मन लागो कन्हेया, जगजी मेरो मन लागो रे लाल

पहाड़ की होली की खास बात यह है की यह अपने आप में सभी वर्ग के लोगों को जोडती है. नंदप्रयाग में गढ़वाली. कुमाउनी तथा मुस्लिम सभी वर्ग के लोग रामलीला की तरह यहाँ भी जोर शोर से भाग लेतें हैं. एक गाने के बोले तो इस तरह से हैं- हजारों मेरा कान का मोती. उपले बाजार में खोयी जो मोती, निचले बाजार में खड़ी होके रोती. हजारों मेरा कान का मोती.      हमारे यहाँ चंडिका मंदिर से ऊपर रहने वालों को ऊपर बाजार और उससे से नीचे निचले बाजार कहतें हैं. पुराने लोगों ने इसी में गीत की रचना कर दी. हमारे एक गुरु जी हैं हसमत गुरु जी वो इस राग को बहुत ही अच्छा गाते हैं. आयो नवल बसन्त सखी ऋतुराज कहायो, पुष्प कली सब फूलन लागी, फूल ही फूल सुहायो´
चीर व निशान बंधन की भी अलग विशिष्ट परंपरायें  हैं। एकादशी को मुहूर्त देखकर चीर बंधन किया जाता है। इसके लिए पय्याँ, मेलुं या अमरुद के पेड़ की शाखा काटकर उस पर एक, एक नऐ कपड़े के रंग बिरंगे टुकड़े चीर´ के रूप में बांधे जाते हैं। होली के गीत गाते हुए उसे हम बगड़ से चंडिका मंदिर तक लातें हैं फिर होलिका दहन के दिन उसकों किसी खेत में दहन करतें हैं. हमारे यहाँ मंदिर के वृद्ध पुजारी हैं सभी उन्हें प्यार से बुबु कहतें हैं लेकिन हम इन्हें पितामह कहतें हैं.  होली में चीर व निशान की विशिष्ट परम्परायें  इन्ही के द्वारा निभाई जाती है. ये हमारे लिए विशिष्ट हैं. इनके हाथों में रंग नहीं छारुणा होता है. और वो जब सर पर पड़ता है लगता है मानो साक्षात शिव आशीर्वाद दे रहें हों. कुछ अन्य गीत आपके लिए
सजना घर आये कौन दिना, सजना घर आये कौन दिना.
सजना घर आये कौन दिना, सजना घर आये कौन दिना.
ओ मेरे सजन को भूख लगी है.
ओ मेरे सजन को भूख लगी है.
अच्छा  लड्डू  पेड़ा और खुरमा, सजन घर आये कौन दिना.
अच्छा  लड्डू  पेड़ा और खुरमा, सजन घर आये कौन दिना.
सजना घर आये कौन दिना.
सजना घर आये कौन दिना, सजना घर आये कौन दिना.
ओ मेरे सजन के तीन शहर हैं.
ओ मेरे सजन के तीन शहर हैं. 
अच्छा दिल्ली आगरा और पटना, सजना घर आये कौन दिना.
अच्छा दिल्ली आगरा और पटना, सजना घर आये कौन दिना.
सजना घर आये कौन दिना.
सजना घर आये कौन दिना.
सजना घर आये कौन दिना, सजना घर आये कौन दिना.
सजना घर आये कौन दिना, सजना घर आये कौन दिना.
 
केकई राम चले बनवास,  केकई राम चले बनवासन को.
अच्छा केकई राम चले बनवास,  केकई राम चले बनवासन को.
सीता जी ने बोई जो क्यारी, ओ सीता जी ने बोई जो क्यारो.
ओ मृगा, चुगी-चुगी जा, केकई राम चले बनवासन को.




 

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