Author Topic: Kumauni Holi - कुमाऊंनी होली: एक सांस्कृतिक विरासत  (Read 302211 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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उत्तराखण्ड में सर्वाधिक गायी जाने वाली होली।

"सीता वन में अकेली कैसे रही"


विनोद सिंह गढ़िया

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देश में आज की हालात को देखते हुए एक कुमाऊंनी होली गीत।

"होलि कसिकै खेलनुं मन चैन बिना"




[justify]अमानत हुसैन को माना जाता है होली गीतों का जनक

अल्मोड़ा से शुरू हुई कुमाऊंनी होली की परंपरा


अल्मोड़ा। कुमाऊं में होली गीतों का इतिहास सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से शुरू हुआ। दिलचस्प बात यह है कि उस्ताद अमानत हुसैन नामक एक मुस्लिम कलाकार को कुमाऊं की होली का जनक माना जाता है। कुमाऊं में होली गीतों का प्रचलन बृज के लोगों द्वारा हुआ। यही कारण है कि कुमाऊंनी होली में बृज का पुट है। बृज भूमि का इतिहास भगवान राधा-कृष्ण से जुड़ा है। इसी कारण अधिकांश होली गीतों में राधा-कृष्ण के प्रणय प्रसंगों का वर्णन है। बृज के बाद कुमाऊं अंचल में होली का उत्सव कई दिनों तक मनाया जाता है।
समूचे देश में बृज के बाद उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में होली का उत्सव कई दिनों तक मनाया जाता है। पहाड़ में करीब तीन माह पहले पौष से ही होली की बैठकें शुरू हो जाती हैं। शिवरात्रि के बाद होली अधिक जमने लगती है और एकादशी के दिन रंग की शुरूआत होते ही लोग पूरे रंग में आ जाते हैं। ग्रामीण इलाकों में खड़ी होली का आकर्षण अधिक है। लोग घर-घर जाकर होली का गायन करते हैं। इन दिनों गांव में बच्चे, बूढ़े, युवक-युवतियां सभी कलाकार के रूप में होली गाते और नृत्य करते नजर आते हैं। कुमाऊं की सबसे प्राचीन नगरी अल्मोड़ा को सांस्कृतिक नगर के रूप में भी जाना जाता है। कुमाऊंनी होली और संस्कृति के जानकारों का कहना है कि कुमाऊं में होली गीतों का इतिहास अल्मोड़ा से ही शुरू हुआ। उसके बाद नैनीताल, पिथौरागढ़, रानीखेत आदि स्थानों में होली की बैठकें होने लगीं। हुक्का क्लब के सचिव और वरिष्ठ रंगकर्मी शिवचरण पांडे के मुताबिक उस्ताद अमानत हुसैन नामक एक मुस्लिम कलाकार को कुमाऊं की होली का जनक माना जाता है। जानकारी के अनुसार उन्होंने ही यहां जगह-जगह जाकर होली गीत प्रस्तुत किए।
कुमाऊं में होली गीतों का प्रचलन बृज के लोगों ने किया। सैकड़ों साल पहले जब मनोरंजन के साधन नहीं थे तब रामलीला और नौटंकी में निपुण बृज के कलाकार यहां आते थे और एक दो माह यहां रहकर लोगों का मनोरंजन करते थे। इन्हीं लोगों के माध्यम से बृज के गीतों का यहां हस्तांतरण हुआ। यही कारण है कि कुमाऊंनी होली में बृज का पुट है। उल्लेखनीय है कि बृज भूमि का इतिहास भगवान राधा-कृष्ण से जुड़ा है। इसी कारण अधिकांश होली गीतों में राधा-कृष्ण के प्रणय प्रसंगों का वर्णन है। कुमाऊं में प्रचलित होली मुख्यतया शास्त्रीय संगीत पर आधारित है। शास्त्रीय रागों पर आधारित होने के बावजूद होली गाने के लिए कोई शास्त्रीय बंधन नहीं होता।

कुमाऊं में बृज के लोगों ने किया होली गीतों का हस्तांतरण
रामपुर से अल्मोड़ा आए थे अमानत हुसैन


अल्मोड़ा। वरिष्ठ रंगकर्मी और हुक्का क्लब के सचिव शिवचरण पांडे के मुताबिक उस्ताद अमानत हुसैन रामपुर से अल्मोड़ा आए थे। वह किस संगीत घराने से जुड़े थे अथवा नहीं, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है लेकिन यह माना जाता है कि वह1860 से 70 के आसपास अल्मोड़ा में आए और यहां रहकर संगीत के क्षेत्र में काफी काम किया।

गर्ग संहिता में है राधा-कृष्ण की होली का वर्णन
अल्मोड़ा। भगवान कृष्ण के होली खेलने का वर्णन गर्ग संहिता में मिलता है। गर्ग संहिता में होली के दृश्य का सुंदर वर्णन है। इसमें बताया गया है कि राधा के नेतृत्व में गोप कन्याओं ने श्रीकृष्ण को घेर लिया। होली के गीत गाती, हंसी-ठिठोली करतीं इन कन्याओं ने धरती और आकाश को रंगों से भर दिया। यह भी वर्णन है कि श्रीकृष्ण के मुख को रंग से लेपती, अबीर गुलाल बरसाती उन बालाओं ने उन्हें रंग भरी पिचकारियों से खूब भिगो दिया। लगता है उन्नीसवीं शताब्दी अथवा उससे पहले कभी श्रीकृष्ण को रंगोत्सव का नायक बनाया गया और राधा को नायिका। यह माना जाता है कि आज भी बृज का युवक श्रीकृष्ण का प्रतिनिधि बनकर होली खेलने अपने प्रेयसी के द्वार पहुंचता है।

साभार :
दीप जोशी
अमर उजाला -अल्मोड़ा 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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From Prayag Pandey -

गावैं , खेलैं , देवैं असीस , हो हो हो लख रे ।
 बरस दिवाली बरसै फाग , हो हो हो लख रे ।
 जो नर जीवैं , गावैं फाग ,हो हो हो लख रे ।
 आई बसंत कृष्ण महाराज का घरा , हो हो हो लख रे ।
 श्री कृष्ण जीरों लाख बरीस , हो हो हो लख रे ।
 यो गौं  को भूमिया जीरो लाख बरीस , हो हो हो लख रे ।
 यो घर की घरिणी  जीरों लाख बरीस , हो हो हो लख रे ।
 गोठ  की घस्यारी जीरों लाख बरीस , हो हो हो लख रे ।
 पानै की रस्यारी जीरों लाख बरीस , हो हो हो लख रे ।
 हमार फेसबुकिया मित्र , उनरी होम मिनिस्टर ज्यू  ,
  बाल - बच्च और नाती - प्वाथा जीरों लाख बारिश , हो हो हो लख रे ।
 गावैं , खेलैं , देवैं असीस , हो हो हो लख रे ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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From
    प्रयाग पाण्डे
   
     कुमाऊँनी होली

    रंग केसर की पिचकारी भरी ।
    दुरयोधन घर मेवा त्यागे , साग बिदुर घर खायो हरि ।
    गज और ग्राह लडें जल भीतर लडत - लडत गज हारो हरि ।
    जौं भर सूंड रहे जल बाहर तब हरि नाम पुकारो हरि ।
    गज की टेर सुनी द्वारिका में आपुं गरुड तजि आयो हरि ।
    कौरव पांडव चौपड़ खेलें , खेलत - खेलत हार पड़ी ।
    द्रोपदी चीर दुसासन खैचें , चीर को अंत न पायो हरि ।
    जनक रजाज्यू को यो प्रण भारी , को ए उ धनुष उठायो हरि ।
    सियाजी को कंकण खुजत नाही , गांठ को मरम न पायो हरि ।
    रंग केसर की पिचकारी भरी ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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From - Saroj Upreti

होली आई रे सांवरिया
होली आई रे सांवरिया रंग बरसे रंग बरसे हो गुलाल बरसे
होली आई रे सांवरिया रंग बरसे
मथुरा झूमे, वृन्दावन झूमे देख केख छवि न्यारी
यमुना तीरे फाग रचावे गोपीन संग गिरिधारी
राधा लगे प्यारी प्यारी रे भीगे सर से
होली आई रे सांवरिया रंग बरसे

कोरे कोरे मटकों में रंग, घोल रही ब्रिज नारी
भर पिचकारी पकडे दौड़े, आये कृष्ण मुरारी
गोप ग्वाल गा रहें हैं कितने ऊंचे सुर से
होली आई रे सांवरिया रंग बरसे

किसी की अंगिया भीग रही है किसी की भीगे साड़ी
किसे के झुमके कंगना भीगे बनी सभी मतवाली
पायल की झंकार आती ऊँचे सुर से
होली आई रे सांवरिया रंग बरसे
नन्द बाबा घर भीड़ लगी है गले मिलें, नर नर नारी
फगुवा रंग में मस्त हुए सब मिल गई खुशियां सारी
ढोल मंजीरों के धमाके बजते जोर से
होली आई रे सांवरिया रंग बरसे

सरोज उप्रेती

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बैठ होली -

चलत पवन ऋतु आई फागुन की ,
जियरा मेरा नहीं मानत है री ।
एक तो सतावे मुझे बैरी सा बिरहा ,
दूजे ननद मारे ताना री ।
का से कहूँ मन की विपदा ,
जा तन लागी सोई तन जाने री ॥.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कुमाऊँनी खड़ी होली -

मत बोलो बलम मैं बिखर जाऊँगी ,
मत बोलो बलम मैं बिखर जाऊँगी ।
महल अघाड़ी ताल - तलैया ,
मछली बन कर छिप जाऊँगी ।
मत बोलो बलम मैं बिखर जाऊँगी ।
महल पिछड़ी जंगल भारी ,
भंवरा बन कर उड़ जाऊँगी ।
मत बोलो बलम मैं बिखर जाऊँगी ।
महल पिछड़ी कुटिया भारी ,
जोगन बन कर रम जाऊँगी ।
मत बोलो बलम मैं बिखर जाऊँगी ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रयाग पाण्डे
 
कुमाऊँनी खड़ी होली -

रंग में होली कैसे खेलूँगी मैं , सांवरिया के संग । रंग में होली कैसे,,,,
अबीर उड़ता , गुलाल उड़ता , उड़ते सातों रंग ,
भर पिचकारी सन्मुख मारी , अँगिया हो गई तंग ।
रंग में होली कैसे खेलूँगी मैं , सांवरिया के संग ।
तबला बाजे , सरंगी बाजे और बाजे मृदंग ,
कान्हा जी की बांसुरी बाजे राधा जी के संग ।
रंग में होली कैसे खेलूँगी मैं , सांवरिया के संग ।
कोरे - कोरे कलस मंगाए तापर घोला रंग ,
भर पिचकारी सन्मुख मारी , अँगिया हो गई तंग ।
खसम तुम्हारे बड़े निखट्टू , चलो हमारे संग ,
रंग में होली कैसे खेलूँगी मैं , सांवरिया के संग ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रयाग पाण्डे

कुमाऊँनी खड़ी होली :-

शिव के मन माहि बसे काशी ,
शिव के मन माहि बसे काशी ।
आधी काशी में वामन - बनियां ,
आधी काशी में सन्यासी ।
शिव के मन माहि बसे काशी ।
काहे करन को बामन , बनियां ,
काहे करन को सन्यासी ।
पूजा करन को बामन , बनियां ,
सेवा करन को सन्यासी ।
शिव के मन माहि बसे काशी ।
काहे को पूजे बामन , बनियां ,
काहे को पूजे सन्यासी ।
देवी को पूजे बामन , बनियां ,
शिव जी को पूजे सन्यासी ।
शिव के मन माहि बसे काशी ।
क्या इच्छा पूजे बामन , बनियां ,
क्या इच्छा पूजे सन्यासी ।
नव सिद्धि पूजे बामन , बनिया,
अष्ट सिद्धि पूजे सन्यासी ।
शिव के मन माहि बसे काशी ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रयाग पाण्डे


बुरुंशी का फूलों को कुमकुम मारो , डाना - काना छाजि गै बसंती नारंगी ।
पारवती ज्यूकि झिलमिल चादर , ह्यूं की परिन लै रंगे सतरंगी ।

लाल भई छ हिमांचल रेखा , शिव जी की शोभा पिंडली दनिकारी ।
सुरिजा की बेटियों लै सरग बै रंग घोलि , सारी ही गागरी ख्वारन खिति डारी ।

अबीर गुलाल की धूल उडीगे , लाल भया छन बादल सारा ।
घर - घर -" हो - हो होलक " रे धुन , घरवाली जी रों वर्ष हजारा ।

खितकनि झमकनि गौना की भौजी , मालिक दैण हो भरियां भकार ।
पूत कुटम्ब नाती - प्वाता जी रों , घर - बण सबनैकि हो जै - जै कार ....।"

- चारुचंद्र पाण्डे

 

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