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Kumauni Holi - कुमाऊंनी होली: एक सांस्कृतिक विरासत

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पंकज सिंह महर:
प्रभु ने धारो वामन रूप , राजा बली के दुआरे हरी
राजा बली को अरज सुना दो , तेरे दुआरे अतिथि हरी
मांग रे वमणा जो मन ईच्छा , सो मन ईच्छा में देऊं हरी

हमको दे राजा तीन पग धरती, काँसे की कुटिया बनाऊं हरी
मांग रे बमणा मांगी नी ज्याण , के करमो को तू हीना हरी
दू पग नापो सकल संसारा , तिसरौ पग को धारो हरी
राजा बलि ने शीश दियो है, शीश गयो पाताल हरी

पांचाला देश की द्रोपदी कन्या, कन्या स्वयंबर रचायो हरी
तेल की चासनी रूप की मांछी, खम्बा का टूका पर बांधो हरी
मांछी की आंख जो भेदी जाले, द्रोपदी जीत लिजालो हरी
दुर्योधनज्यू उठी बाण जो मारो, माछी की आंख ना भेदो हरी
द्रौपदी उठी बोल जो मारो , अन्धो पिता को तू चेलो हरी
कर्णज्यू उठी बाण जो मारो, माछी की आंख ना भेदो हरी
द्रौपदी उठी बोल जो मारो , मैत घरौ को तू चेलो हरी
अर्जुनज्यू उठी बाण जो मारो, माछी की आंख को भेदो हरी
अर्जुनज्यू उठें द्रौपदी लै उठी, जयमालै पहनायो हरी

पैली शब्द ओमकारा भयो है, पीछे विष्णु अवतार हरी
बिष्णु की नाभी से कमलक फूला, फूला में ब्रह्मा जी बैठे हरी
ब्रह्मा जी ने सृष्टि रची है , तीनों लोक बनायो हरी
पाताल लोक में नाग बसो है , मृत्युलोक में मनुया हरी
स्वर्गालोक में देव बसे हैं , आप बसे बैकुंठ हरी

पंकज सिंह महर:
सतरंगी रंग बहार ,  होली खेल रहे नर नारी
कोई लिये हाथ पिचकारी,कोई लिये फसल की डारी
घर घर में धूम मचाय,होली खेल रहे नर नारी
सतरंगी रंग बहार ,  होली खेल रहे नर नारी
कोई नाच रहा कोई गाये कोई ताल मृदंग बजाये
घर घर में धूम मचाय, होली खेल रहे नर नारी.

पंकज सिंह महर:
झुकि आयो शहर में ब्यौपारी, झुकि आयो शहर में ब्यौपारी
इस ब्यौपारी को भूख बहुत है,पुरियां पकाय दे नथवाली.
झुकि आयो शहर में ब्यौपारी
इस ब्यौपारी को प्यास बहुत है,पनिया पिलाय दे नथवाली.
झुकि आयो शहर में ब्यौपारी
इस ब्यौपारी को नींद बहुत है,पलेंग बिछाय दे नथवाली.
झुकि आयो शहर में ब्यौपारी

पंकज सिंह महर:
काकेश जी के ब्लाग से
पिछ्ले अंक में हमने होली के तीन प्रमुख रूपों की चर्चा की थी. आज हम उसी में से एक रूप खड़ी होली की चर्चा ‘छालड़ी’ के संबंध में करेंगे.जिस दिन देश, दुनिया के अन्य भागों में होली मनायी जाती है उस दिन कुमांऊ में मुख्य होली होती है जिसे “छरड़ी” या “छालड़ी” कहते हैं. यह फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनायी जाती है. इस दिन पानी और रंगों से होली खेली जाती है.

सुबह होते ही घरों में इस होली की तैयारियाँ शुरु हो जाती हैं.एक थाली में अबीर गुलाल रखा जाता है.घर के सदस्यों के लिये आमतौर पर पूरी और आलू के गुटके (आलू की सूखी सब्जी) बनाये जाते हैं. होली में अबीर लगाने वाले लोगों के लिये कुछ चिप्स,पापड़ तले जाते हैं. कुछ लोग आलू,चने या छोले,पकोड़ी आदि भी बनाते हैं. भांग की पकोड़ी भी कुछ जगह बनायी जाती है. पूरी-आलू खाने के बाद घर के पुरुष पहले अबीर लगाने के लिये निकलने की तैयारी करते हैं. अपने होली के कपड़े पहनते हैं. रुमाल की एक पोटली में सूखा अबीर गुलाल रखते हैं. आजकल रुमाल की जगह पॉलीथीन के पैकेट का इस्तेमाल भी लोग करते हैं. जो लोग गीला रंग लगाना चाहते हैं वो एक रुमाल में कोई गाढ़ा रंग रख कर उसे हल्के पानी से भिगा देते हैं और उसे भी एक पॉलीथीन के पैकेट में रख अपनी जेब में डाल लेते हैं.जब भी किसी को गीला रंग लगाना हो तो रुमाल को थोड़ा गीला किया और चुपड़ दिया मुंह में रंग.       

होली की पोशाक पहनने के बाद सबसे पहले द्य्प्ताथान (घर का मंदिर) में भगवान को अबीर-गुलाल लगाया जाता है. फिर घर के सभी सदस्य एक दूसरे को अबीर-गुलाल का टीका लगाते हैं. अपने से बड़े लोगों को पांव छूके या हाथ जोड़ कर नमस्कार किया जाता है. समवयस्क पुरुष और महिलाएं एक दूसरे के गले मिलते हैं.उसके बाद घर के पुरुष अपने अपने दोस्तों के साथ पूरे गांव, मोहल्ले या अपने नाते-रिश्तेदारों के यहाँ अबीर का टीका करने के लिये निकलते हैं.

सुबह दस - साढ़े दस बजे तक सब गांव या मोहल्ले के प्रमुख शिव मन्दिर पर एकत्र होते हैं.यह शिव मंदिर वही होता है जहां सामुहिक चीर बांधी गयी थी. ‘छलड़ी’ के पहले दिन इसी स्थान पर चीर दहन होता है.”छलड़ी’ के दिन होल्यार सबसे पहले चीर दहन की राख का टीका करते हैं और फिर  कोई ढोलक पकड़ता है, कोई मजीरा, कोई झांझर,तो कोई ढपली. होली खेलने वालों को होल्यार कहा जाता है. यह सभी होल्यार शिवमंदिर में शिव की होली से शुरुआत करते हैं.

” अरे हाँ हाँ जी शंभो तुम क्यों ना खेलो होरी लला,
अच्छा हाँ हाँ जी शंभो तुम क्यों ना खेलो होरी लला.
ब्रह्मा जी खेलें , बिष्णु जी खेलें. खेलें गणपति देव
शंभो तुम क्यों ना खेलो होरी लला.
हाँ हाँ जी शंभो तुम क्यों ना खेलो होरी लला. ”

फिर अन्य होलियां गायी जाती हैं जैसे.

“अरे अंबारी एक जोगी आया लाल झुमैला वाला वे
ओहो लाल झुमैला वाला वे ”

होल्यार अपने जुलूस का एक मुखिया चुन लेते हैं जो पूरी होली को नियंत्रित करता है. इसके बाद गांव/मोहल्ले के हर घर में होल्यार जाते हैं जहाँ उनके लिये पहले से दरियां बिछायी गयी होती हैं.सभी होल्यार पहले बैठ के होली गाते हैं. घर के लोग होल्यारों का स्वागत करते हैं. घर का मुखिया सभी होल्यारों को अबीर का टीका लगाता है. उनका स्वागत चिप्स,पापड़,कटे हुए फल, गुझिया, सौप,सुपारी, गरी आदि से किया जाता है कुछ लोग चाय भी पिलाते हैं. घर का मुखिया जुलूस के मुखिया को कुछ पैसे भी देता है. हर घर से कुछ कुछ पैसे लिये जाते हैं. इन पैसों से या तो सामुहिक भंडारा होता है या पूरे मोहल्ले में मिठाई बांटी जाती है या फिर सामुहिक महत्व की चीजें जैसे ढोलक,मजीरा आदि खरीद लिया जाता है.

अंत में होल्यार दरी से उठ कर खड़े होकर होली गाते हैं…घर के सदस्य घर के खिड़कियों जिन्हे पहाड़ में छाजा कहा जाता है उससे रंग वाला पानी डालते हैं. तब बढ़े बूढ़े आगे पीछे हो जाते हैं और युवा लोग मोर्चा संभालते हैं और भीगते भीगते चिढ़ाने के लिये होली गाते रहते हैं.इसमें थोड़ी अश्लीलता का पुट भी कभी कभी आ जाता है जैसे

“कहो तो यहीं रम जायें गोरी नैना तुम्हारे रसा भरे,
कहो तो यहीं रम जायें गोरी नैना तुम्हारे रसा भरे
उलटि पलट करि जायें  गोरी नैना तुम्हारे रसा भरे
कहो तो यहीं रम जायें गोरी तबले तुम्हारे कसे हुए “

या फिर

“सिप्पय्या आंख मार गयो रात मोरे सय्यां ,
सिप्पय्या आंख मार गयो रात मोरे सय्यां “
जबहि सिपय्या ने ….. भरतपुर लुट गयो रात मोरे सय्यां “ 

कुछ दिनों पहले इस गाने को किसी फिल्म में भी लिया गया था लेकिन मैने यह गाना फिल्म से बहुत पहले होलियों में सुना व गाया था.

साभार : http://kakesh.com/?p=357

पंकज सिंह महर:
मेरो रंगीलो देवर घर ऐ रो छ ...

मेरो लाडलो देवर घर ऐ रो छ..

के हुनी साड़ी के हुनी झम्पर,

कै हुनी बिछुवा लै रो छ....

सास हुनी साड़ी ,

ननद हुनी झम्पर,

मैं हुनी बिछुवा लै रो छ ...

मेरो रंगीलो देवर घर ऐ रो छ . . .

मेरो रंगीलो देवर घर ऐ रो छ . . .

मेरो रंगीलो देवर घर ऐ रो छ . . .

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