Prema Pande
March 4 at 4:36pm ·
एक अलौकिक ऐहसास ( कुमाँऊनी होली )
मैने देखा कि होली पर्व के आगमन का होली के मतवाले गायक बड़ी आतुरता से प्रतिक्षा करते है , पौष मास के प्रथम रविवार से होली गायन का शुभारम्भ करना शायद कुमाऊँ के अंचलों में ही प्रचलित है !
मुझे बड़ा गर्व है कि मै भी उत्तरा खण्ड के उस अँचल में पली बढ़ी हूँ , बचपन से ही पिताजी को देखती थी , कि वो पूष मास के इतवार का कैसे बेसब्री से इन्तजार किया करते थे , सास्त्रीय सँगीत मे निपुण होली गायको के स्वर आज भी कांनो में गूँजते है !
विवाह के पश्चात ससुराल में आकर भी यही माहौल देखा , ससुरजी गीतों के बड़े शौकीन थे , उन्है गाते हुऐ तो नहीं देखा , पर घर पर लगने वाली बैठक की व्यवस्था में कहीं कमी नही रखते थे , तथा तबला बजाने वाले को ताल का भी ध्यान दिलाते थे , मेरे पति व देवर आज भी बहुत अच्छे गायक व वादक हैं , हमारा परिवार हमेंशा गायक , वादक , व श्रोता रहे हैं , जिनमें मैं भी श्रोता ही रही हूँ !
मेरे पति कहा करते है , कि गीतों के रागों को उनके समयानुसार गाया जाता है , बसंतपन्चमी के बाद से ही होली गायन का आनन्द आता है ,
ज्यों ज्यों एकादशी का समय आता है , त्यों त्यों लोगों का होली के प्रति उत्साव भी बढ़ता जाता है , सभी गायक श्रोता बैठक में रँग भरे कपड़े रंगीन टोपी से सुशोभित होते दिखाई पड़ते है , अबीर गुलाल का टीका लगाना एक दूसरे के गले मिलना , मानो साक्षात राधा कृष्ण बृज भूमि में होली खेल रहे हों , इस संगीत के रस में , गोप गोपियों की ठिठोली , कृष्ण द्वारा मटकी फोड़ना , चूड़ियाँ तोड़ना , बाँहे मरोड़ देना , कृष्ण की बाल लीला का व अन्य देवी देवताओं पर आधारित वर्णन जब इस सँगीत में आता है , तब सभी गायकों की मस्ती व मनोरंजन का वर्णन इन गीतो के साथ साथ होने वाला नृत्य हाथ व चेहरे द्वारा की गई विभिन्न प्रकार की हास्यपूर्ण भाव भँगीमा गायक के हृदय की भावना व्यक्त करती है ,
पुरुषों की होली रात में व महिलाओं की होली दिन में होतीं है !
आज तक जो भी देखा सुना है , यही विषेशता देखी , कि बिना संगीत की शिक्षा ग्रहण किये स्वरों का मूल भूत ज्ञान न होने के बावजूद भी प्रत्येक व्यक्ती जो रुचि रखता हो या नहीं , परम्परागत रुप से एक दूसरे को सुनते हुऐ सीखते चले आये हैं , भले ही प्रत्येक गायक का ताल व राग का आरोह अवरोह आदि का ज्ञान नहीं होता , परन्तु वह किसी भी राग को गाने में सक्षम होता चला जाता है !
उत्तराण्ड वासियों में यही तो खूबी है , कि वहाँ का हर व्यक्ति गायक और कलाकार होता है , अब तो यह भी देखने में आ रहा है कि उत्तराखण्ड के अलावा इस संगीत का आनन्द लेंने हेतु अन्य धर्म भी गाने हेतु आगे बढ़ रहे है !
भारत वर्ष में बसन्त के आगमन पर उसके मोहक वातावरण में खोते हुऐ , अपनी उमँगो को व्यक्त करते हुऐ अकस्मात मुंह से होली पर गाये जाने वाले गीतों के स्वर गूंजने लगते है , उन्हीं गीतों को याद करते करते , होली पर आधारित गीतों को संकलित कर प्रकाशित कराने को मन हुआ !
'आई गयो फाग '
इस संकलन की भूमिका के रुप में अपना बहुमूल्य मंतब्य व्यक्त करने के लिये मैने चिकित्सा जगत में , अपना अग्रणीय स्थान रखने वाले , पद्मश्री से सम्मानित तथा लोहिया चिकित्सालय के निदेशक , स्व० एम ०सी० पन्त जी , की में कृतज्ञ हूँ , सांथ ही सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री घनानन्द पाण्डे ( मेघ ) जी को भी उनके सहयोग के लिये धन्यवाद अर्पित करती हूँ !
यह कार्य मेरे पति श्री दिनेश चन्द्र पाण्डे जी , और मेरे बच्चो के सहयोग के बिना यह किताब का लेखन सम्भव नही हो पाता !
इस संकलन के माध्यम से मैं यह संदेश देना चाहती हूँ , कि स्नेह सौहार्द और एकता के भावों से ओत प्रोत इस परम्परागत पावन होली के त्योहार की गरिमा को बनाए रखते हुऐ विलुप्त हो रही अपनी पौराणिक परम्पराओं की ज्योति जलती रहे ... जात पात ऊंच नीच के भेद भाव से उपर उठ कर मानवता का सँदेश दे सके , समस्त पाठकों के आशीर्वाद की भी आकांक्षी हूँ ....