(परदेशी पिया के होली पर घर न आने से उदास विरहिणी की होली, जिसमें वह अपने पति से शिकायत कर रही है कि जहां आज होली के दिन में जहां सभी देवगण अपनी पत्नियों के साथ और सभी नाते-रिश्तेदार अपनी पत्नियों के साथ होली खेल रहें हैं, वहीं मैं अपना मन मार रही हूं, लीजिये----)
नयनवां रस के भरे, सईयां आओगे कौन घड़ी,
गणपति भी खेलें, रिद्धि संग होली,
हमही रहे मन मारे, बलमा जी आओगे कौन घडी।
ब्रह्मा भी खेलें, सरस्वती संग होली.
हमही रहे मन मारी, सईयां आओगे कौन घड़ी॥
विष्णु भी खेलें, लक्ष्मी संग होली,
हमही रहे मन मारे, बलम जी आओगे कौन घड़ी।
शंकर भी खेलें, पार्वती संग होली,
हमही रहे मन मारे, सईयां आओगे कौन घड़ी॥
राम भी खेलें, सिया संग होली,
हम ही रहे मन मारे, बलम जी आओगे कौन घड़ी।
कॄष्णा भी खेलें, राधा संग होली,
हमही रहें मन मारे, सईयां आओगे कौन घड़ी॥
सासुल भी खेलें, ससुर संग होली,
हमही रहे मन मारे, बलम जी आओगे कौन घड़ी।
जेठ भी खेलें, जेठानी संग होली,
हमही रहे मन मारे, सईयां आओगे कौन घड़ी॥
देवर भी खेलें, देवरानी संग होली,
हमही रहे मन मारे, बलम जी आओगे कौन घड़ी।
ननद भी खेलें, नन्दोई संग होली,
हमही रहे मन मारे, सईयां आओगे कौन घड़ी॥