Author Topic: Kumauni Holi - कुमाऊंनी होली: एक सांस्कृतिक विरासत  (Read 238666 times)

पंकज सिंह महर

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महिलाओं के लिये एक और होली

रंग से रंगे दोनों हाथ, सखि री मेरा घूंघटा संभालो,
घुंघटा संभालो मेरा, घुंघटा सम्भालो,
रंग से रंगे...................
पायल सम्भालो मेरे, बिछुवे सम्भालो,
झांझर सम्भालो दोनों हाथ,
सखि री मेरा................
कंगना सम्भालो मेरी, अंगूठी सम्भालो,
चुडि़यां सम्भालो दोनो हाथ
सखि री मेरा..............
हारो सम्भालो मेरी, माला सम्भालो,
नगने सम्भालो दोनों हाथ
सखि री मेरा........
कुण्डल सम्भालो मेरी, बाली सम्भालो,
झुमके सम्भालो दोनों हाथ,
सखि री मेरा.............
नथनी सम्भालो मेरी, बैंदा सम्भालो,
टीका सम्भालो दोनों हाथ,
सखि री मेरा...........
चुनरी सम्भालो मेरी, साड़ी सम्भालो,
लहंगा सम्भालो दोनो हाथ,
सखि री मेरा...........।

पंकज सिंह महर

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एक और महिला होली

सइयां साड़ी हमारी रंगाए क्यों न दी,
सइयां जी की पगड़ी, हमरी चुनरिया।
एक ही रंग में, हां एक ही रंग में, रंगाई क्यों न दी?
सइयां साड़ी..............
सइयां जी की अंगूठी हमरी नथनियां,
एक ही नग में, हां...एक ही नग में, जड़ाई क्यों नहीं दी?
सइयां साड़ी..............
सइयां जी को फाग, हमरो सावनवां,
एक ही माह में, हां....एक ही माह में , बनाई क्यों न दी?
सइयां साड़ी..............
सइयां जी की बहिना, हमरी बिरनवां,
एक ही घर में, हां एक ही घर में बिवाई क्यों न दी,
सइयां साड़ी..............
सइयां साड़ी..............॥

पंकज सिंह महर

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सैणियों वाली एक होली आजि

बलमा मत बोलो बिखर जाऊंगी_२
मेरे पिछवाड़े में बाग-बगीचे-२
कोयल होके उड़ जाऊंगी,
बलमा मत.......
मेरे पिछवाड़े में महल बहुत हैं-२
रानी बनके रह जाऊंगी,
बलमा मत ......
मेरे आगे गंगा बहत है-२
मछली होके निकल जाऊंगी,
बलमा मत...........
मेरे आगे कुंवा बहुत है-२
मेढ़क होके निकल जाऊंगी,
बलमा मत.......
मेरे पिछवाड़े सौदा बहुत है-२
सौदा बनकर बिक जाऊंगी,
बलमा मत..........
मेरे पिछवाड़े साधु बहुत हैं-२
जोगिन बनकर रह जाऊंगी,
बलमा मत........
मेरे आगे फूल बहुत हैं-२
भौंरा होके निकल जाऊंगी,
बलमा मत..................
मेरे आगे झाड़ी बहुत है-२
कांटा बनके रह जाऊंगी,
बलमा मत बोलो बिखर जाऊंगी-२॥

पंकज सिंह महर

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  अब कुछ भक्ति मार्ग की ओर चला जाय

तुम भक्तन के सुखदायक हरि,
तुम भक्तन के हितकारी हरि,
तुम भक्तन के................
गज और ग्राह लड़े जल भीतर-२
लड़्त-लड़त गज हारो हरि,
तुम भक्तन के................
जौं भर सूंड रहे जल ऊपर-२
तब गज नाम उचारो हरि,
ओऽऽहो तब गज नाम उचारो हरि,
तुम भक्तन के................
गज की टेर सुनी मधुबन में,
आन सहाय भयो हैं हरि,
ओऽऽहो आन सहाय भयो है हरि,
तुम भक्तन के................
द्रौपदी टेर सुनी मधुबन में,
आन सहाय भयो हैं हरि,
तब आन सहाय भयो हैं हरि,
तुम भक्तन के................
खैंचत-खैंचत अन्त न पायो,
अम्बर ढेर लगावें हरि,
ओऽऽहो अम्बर ढेर लगावें हरि,
तुम भक्तन के................
दुःशासन की बांह हटाई,
द्रौपदी कैसी लाज धरी,
ओऽऽऽऽहो द्रौपदी कैसी लाज धरी,
तुम भक्तन के................
प्रह्लाद भक्त खम्भे पर बांधो,
नरसिंह रुप धरियो है हरि,
ओऽऽऽहो नरसिंह रुप धरियो है हरि,
तुम भक्तन के................
दुर्बल गति सुदामा आये,
दुःख दरिद्र हरो है हरि,
ओऽऽहो दुःख दरिद्र हरो है हरि,
तुम भक्तन के................
भिलनी के बेर सुदामा के तंदुल,
रुचि-रुचि भोग लगायो हरि,
ऒऽऽहो रुचि-रुचि भोग लगायो हरि,
तुम भक्तन के................
दुर्योधन के मेवा त्यागे,
साग विदुर घर खायो हरि,
ओऽऽहो साग विदुर घर खायो हरि,
तुम भक्तन के................
देवताओं को सुख दियो है,
कंस के वंश को मारो हरि,
ओऽऽऽहो कंस के वंश को मारे हरि,
तुम भक्तन के................
ओऽऽऽऽहो तुम भक्तन के................॥

पंकज सिंह महर

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हाँ-हाँ जी शम्भू आपु बिराजै झाड़िन में,
झाड़िन में फुलवाड़ी, शम्भू आपु बिराजै झाड़िन में,
हां हां जी.....................
हां हां जी, शम्भू, सतयुग द्वापर त्रेतायुग में,
कलियुग को परिणाम,
शम्भू आपु............
हां हां जी शम्भू, कै कोस की तेरी झाड़ी बनी है,
कै कोस परिणाम,
शम्भू आपु...............
हां हां जी शम्भू, सात कोस की मेरी झाड़ी बनी है,
धरम ओ परिणाम,
शम्भू आपु...............
हां हां जी शम्भू, देश-विदेश से आये दिगम्बर,
बाघम्बर हो बिछाई,
शम्भू आपु............
हां हां जी शम्भू चारों दिशा से यात्री आये,
खोलो धरम केवाड़,
शम्भू आपु..............
हां हां जी शम्भू, बैठे बाघम्बर ओढ़े दिगम्बर,
गौ चंवर डुलाई,
शम्भू आपु.............।

पंकज सिंह महर

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हां हां जी राधे, यमुना अकेली मत जईयो,
वहां रहे चित ओर,
हां हां जी राधे........
राधे यमुना अकेली मत जईयो,
वंशीवट से आन मिलो है,
सुन्दर श्याम स्वरुप,
राधे यमुना अकेली..............
पान खाई मुख मुरुली बजावे,
अंचल प्रेम लगाय,
राधे यमुना............
अंगुली पकड़ी मोरी बइयां मरोड़ी,
खींचत लम्बी चीर,
राधे यमुना.........
अंचल लूट, कदम्ब चढ़ी बैठे,
गोपी चीर चुराय,
राधे यमुना..............

पंकज सिंह महर

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इत रघुवर श्याम युगल चरना,
इतहि अयोध्या निर्मल सरयू,
उत शीतल गंगा जमुना,
भज रघुवर श्याम............
इत कौशल्या गोद खिलावैं,
उत यशोदा झुलावैं पालना,
भज रघुवर श्याम.........
इतमें मोर मुकुट सिर राजे,
उतहिं मुरली मुख पर धरना,
भज रघुवर श्याम.........
इत शंकर को चाप उठायो,
उत गिरिवर नख पर रखना,
भज रघुवर श्याम.........
इत में सीता संग बिराजै,
उत राधे संग लिये रमना,
भज रघुवर श्याम.........
इत रावन के मस्तक छेदे,
उत में कंस को बध करना,
भज रघुवर श्याम.........
इत राम उत कृष्ण दोनों,
चरन कमल पर चित्त धरना,
भज रघुवर श्याम.........

पंकज सिंह महर

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पौराणिक गाथा का होलीमय वर्णन

इन्द्र को पूता यावंत योद्धा,
कागा को रुप धरो है हरि,
ओ हो कागा को रुप धरो है हरि,
इन्द्र को पूता...........
उड़ी-उड़ी कागा मृत्यु लोक आयो,
चम्पा की डाली में बैठो हरि,
ओ हो चम्पा की डाली में बैठो हरि,
इन्द्र को पूता...........
कांस झोपड़िया में सिया जी बिराजें,
कागा ने चोंच से मारो हरि,
ओ हो कागा ने चोंच से मारो हरि,
इन्द्र को पूता...........
सिया जी के पैरों से रुधिर की धारा,
रामा ने बाण चलायो हरि,
ओ हो रामा ने बाण चलायो हरि,
इन्द्र को पूता...........
आगे से कागा, पीछे से बाणा,
तीनों लोक फिरायो हरि,
ओ हो तीनों लोक फिरायो हरि,
इन्द्र को पूता...........
ना मिलो जल, ना मिलो थल,
रामा के चरणों में आयो हरि,
ओ हो रामा के चरणों में आयो हरि,
इन्द्र को पूता...........
रामा हमारे इतने दयालू,
फिर-फिरि मांफ करायो हरि,
इन्द्र को पूता...........
ओ हो फिरि-फिरि माफ करायो हरि
इन्द्र को पूता...........

पंकज सिंह महर

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को खेलें ऐसी होरी, श्याम घर आये न गोरी,
आप तो चैन करें राधा संग, हाँ, राधा संग,
हमसे रहे मुख मोरी,
को खेलें ऐसी................
मैं होई सी जरत बरत हों,
काह उपाय करोरी,
नहीं बस मेरो चलोरी,
को खेलें ऐसी.............
सब सखियन मिलि होरी खेलत हैं,
हाँ होरी खेलत हैं,
रंग रहस्य मचोरी,
ऐ मोरी आली रंग रहस्य मचोरी,
को खेलें ऐसी...........
निठुर श्याम अजहूं नहिं आवत,
लाकन पाती लिखोरी,
लला जिया तरसत मोरी,
को खेलें ऐसी.................
रात दिना मोहि तड़फत बीते,
तनमन आग लगोरी,
ऐसो जी में आवे सखिरी,
अब विष खाय मरोरी,
गुइंया यह बात भलोरी,
को खेलें ऐसी...........
बहुत दिन बीते बनवारी,
कितना पाप बटोरी,
एक कृष्ण के नाम लेते ही,
बहु अध पाप कटोरी,
भजो श्री कृष्ण किशोरी,
को खेलें ऐसी.............।

पंकज सिंह महर

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दधि लूटत नन्द को लाल,
बेचन न जइयो, दधि लूटत नन्द को लाल..............।
कहां के तुम, ग्वाल गुजरिया,
कहां दधि बेचन जाय,
बेचन न जइयो...........
मथुरा के हम ग्वाल गुजरिया,
गोकुल बेचन जाय,
बेचन न जइयो............
कौन राजा के ग्वाल गुजरिया,
कौन लला दधि खाय,
बेचन न जइयो............
कंस राजा के ग्वाल गुजरिया,
कृष्ण लला दधि खाय,
बेचन न जइयो............
दूध दहि सब लूट लियो है,
मटकि देहो फोडि,
बेचन न जइयो............
दधि मेरो खाय, मटकि मेरी फोड़ी,
नाहक राढ़ मचाय,
बेचन न जइयो............
जाय पुकारुं कंस राजा को,
त्वै डारु मरवाय,
बेचन न जइयो............
जाय पुकार जहां तोही भावे,
मैं का की परवाई,
बेचन न जइयो............
कंस मारुं, कंसासुर मारुं,
तब यशोदा को लाल,
बेचन न जइयो............
बेचन न जइयो, दधि लूटत नन्द को लाल।

 

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