Author Topic: Let Us Know Fact About Our Culture - आएये पता करे अपनी संस्कृति के तथ्य  (Read 24727 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पौड़ी

पौराणिक रूप से पौड़ी भगवान शिव से निकट से संबद्ध है। स्कंद पुराण  में केदार खंड के अध्याय 179 में शहर के ऊपर क्यूंकालेश्वर मंदिर का वर्णन हुआ है। प्राचीन ग्रंथ में इस स्थान को कीनाश पर्वत कहा गया है, जहां यमराज (मृत्यु देवता) ने ताड़कासुर राक्षस से त्रस्त होकर मुक्ति के लिये भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव ने उनके सामने प्रकट होकर एक वरदान दिया। यमराज ने भगवान शिव एवं उनकी पत्नी देवी पार्वती को यहां आकर रहने का आग्रह किया। तदनुसार इस पूज्य मंदिर में लिंग के रूप में शिव शक्ति तथा देवी पार्वती की एक छोटी मूर्ति स्थापित है। कहा जाता है कि यमराज के दो सेवक थे– उज्वद एवं बैजल जिनके नाम से यहां दो गांव है: ऊजेदी एवं बैजोली।

क्यूंकालेश्वर नाम कंकालेश्वर का अपभ्रंश रूप है और माना जाता है कि भगवान शिव की खोज में यमराज कंकाल-समान हो गये थे।

इस मंदिर के पास ही कंडोलिया या घंडियाल देवता को समर्पित एक मंदिर है जो पौड़ी के भूमियाल देवता हैं। भूमि के स्वामी के रूप में यह पौड़ी एवं पास के क्षेत्र के संरक्षक हैं। कहा जाता है कि उनका यह नाम इसलिये पड़ा क्योंकि यहां के मूलवासियों ने अपने साथ उन्हें एक कंडी (टोकरी) में लाया था।

लोगों की कल्पना में एक अन्य रहस्य का बड़ा प्रभाव है। पौड़ी के ऊपर घने देवदार जंगल में नाग देवता को समर्पित एक छोटा मंदिर है। माना जाता है कि उनका जन्म पास के एक गांव के डोबाल परिवार में हुआ था जिसका स्वरूप आधा बच्चा और आधा नाग का था। उसने अपने पिता से उसे जंगल में छोड़ आने का आग्रह किया और ऐसा ही किया गया। तब से ही वे पौड़ी के निकट रहे। डोबाल लोग नाग को दादा कहते हैं और उसे कभी नहीं मारते।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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श्रीनगर

पौराणिक काल से ही श्रीनगर का प्राचीन शहर, जो बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है, निरंतर बदलाव के बाद भी अपने अस्तित्व को बचाये रखा है। श्रीपुर या श्रीक्षेत्र उसके बाद नगर के बदलाव सहित श्रीनगर, टिहरी के अस्तित्व में आने से पहले एकमात्र शहर था। वर्ष 1680 में यहां की जनसंख्या 7,000 से अधिक थी तथा यह एक वाणिज्यिक केंद्र जो बाजार के नाम से जाना जाता था, पंवार वंश का दरबार बना। कई बार विनाशकारी बाढ़ का सामना करने के बाद अंग्रेजों के शासनकाल में एक सुनियोजित शहर के रूप में उदित हुआ और अब गढ़वाल का सर्वश्रेष्ठ शिक्षण केंद्र है। विस्थापन एवं स्थापना के कई दौर से गुजरने की कठिनाई के बावजूद इस शहर ने कभी भी अपना उत्साह नहीं खोया और बद्री एवं केदार धामों के रास्ते में तीर्थयात्रियों की विश्राम स्थली एवं शैक्षणिक केंद्र बना रहा है और अब भी वह स्वरूप विद्यमान है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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डीडीहाट

डीडीहाट कैलाश-मानसरोवर यात्रा मार्ग पर है तथा इस क्षेत्र को हमेशा से देवों से आशीर्वाद प्राप्त माना गया है। प्राचीन बहुत से साधु एवं संत इस क्षेत्र से गुजरे होंगे।
यह भी कहा जाता है कि पांडव भी अपने 14 वर्ष के वनवास में यहां आये थे।

डीडीहाट का एक आकर्षक भाग, वास्तव में पंचाचूली हिमालय की पहाड़ी भूमि पर पांच चूल्हा के नाम पर आया है जहां स्वर्गारोहण यात्रा से पहले अंतिम बार पांडवों ने भोजन पकाने के लिये पांच चूल्हा जलाया था।

संपूर्ण कुमाऊं क्षेत्र महान इतिहास में वर्णित है तथा इस क्षेत्र के धार्मिक पहाड़ प्राचीन नायकों तथा देवों के विभिन्न अवतार के प्रतीक हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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dharchula.

धारचूला को कैलाश-मानसरोवर यात्रा का प्रवेश द्वार माना जाता है तथा इस क्षेत्र को सदैव ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त क्षेत्र माना गया है। कई प्राचीन मुनियों ने इसे अपनी तपोस्थली, बनाया जिनमें व्यासमुनि सर्वाधिक विख्यात थे। वास्तव में, इस शहर का नाम भी मुनि की किंवदन्ती से ही जुड़ा हुआ है। धारचूला दो शब्दों से बना है "धार" या किनारा/पर्वत एवं चूला या चुल्हा या स्टोव। कहा जाता है कि जब व्यास मुनि अपना भोजन पकाते थे तो धारचूला के इर्द-गिर्द तीन पर्वतों के बीच अपना चुल्हा जलाते थे और इसीलिये यह नाम पड़ा।

कहा जाता है कि पांडव भी अपनी 14 वर्ष के वनवास की अवधि में यहां आये थे।

इससे संबद्ध एक अन्य पौराणिक कथा कंगदाली उत्सव से जुड़ी है, जो शौका या रंग भोटिया लोगों द्वारा मनाया जाता है एवं जिनका धारचूला में सबसे बड़ा आवास है। कथा है कि अपने फोड़े पर एक बालक ने कंग-दाली झाड़ी की जड़ों के लेप का इस्तेमाल किया और उसकी मृत्यु हो गयी। क्रोधित होकर उसकी मां ने जड़ी को शापित किया तथा शौका-महिलाओं को आदेश दिया कि वे कंग-दाली पौधे की जड़ों को उखाड़ फेंकें, जब वह पूर्ण-रूप से पल्लवित हो, जो 12 वर्षों में एक बार होता है।

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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लोहाघाट

लोहाघाट की पौराणिकता पास ही स्थित बाणासुर किले की संबद्धता से है। हिन्दू दर्शन के अनुसार बाणासुर हजार हाथों वाला एक राक्षस था जो बाली का पुत्र एवं रावण का वंशज था। बाणासुर एक शक्तिशाली, भयानक असुर तथा भगवान शिव का उपासक था।
बाणासुर की सुंदर पुत्री ऊषा सपने में ही श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरूद्ध के प्रति आसक्त हो गयी। अपनी सखियों की सहायता से उसने द्वारका से अनिरूद्घ का अपहरण कराकर चुपके से विवाह कर लिया। जब बाणासुर को यह पता लगा तो उसने अनिरूद्ध को बंदी बनाकर सांपों के बंधन में डाल दिया। जिसके कारण एक बड़ी सेना के साथ भगवान श्रीकृष्ण ने उस पर आक्रमण कर दिया। यह युद्ध वर्षों तक चलता रहा और निरसता में इसका अंत हो गया क्योंकि भगवान शिव ने बाणासुर की सहायता की। युद्ध में कई देवों एवं दानवों की मृत्यु हुई और यही कारण है कि लोहाघाट के आस-पास की मिट्टी का रंग लाल है तथा उनके रक्तपात से ही लोहावती नदी का नाम भी ऐसा पड़ा। लोहाघाट का अपना नाम भी इसी किंवदन्ती पर आधारित है।

नीरस युद्ध की समाप्ति भगवान शिव के अनुरोध पर भगवान श्रीकृष्ण की उस स्वीकृति से हुई, जिसके अनुसार उन्होंने बाणासुर के चार हाथ काटकर उसे जीवन दान दे दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने ऊषा के साथ अनिरूद्ध का विवाह कर दिया और उन्हें द्वारका ले आये। बाणासुर हिमालय चला गया और उसने भगवान शिव की आराधना में शेष जीवन बिताया।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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PITHORAGARH.

किंवदन्ती के अनुसार जब कभी भी सूखा पड़े तब मोस्ता देवता को संतुष्ट करने के लिये समुदाय द्वारा धन जमाकर एक यज्ञ का आयोजन करने पर वर्षा अवश्य होती थी। यह कार्य आज भी जारी है। (मोस्ता देवता नेपाल में भगवान शिव का ही नाम है जिनका एक मंदिर पास में ही स्थित है।)
पिथौरागढ़ का संबंध पांडवों से भी है जो अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान इस क्षेत्र में आये थे। पिथौरागढ़ में सबसे छोटे पांडव नकुल को समर्पित एक मंदिर भी है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चम्पावत

जोशीमठ की गुरूपादुका नामक ग्रंथ के अनुसार नागों की बहन चम्पावती ने चम्पावत के बालेश्वर मंदिर के पास प्रतिष्ठा की थी। वायु पुराण में चम्पावतपुरी नामक का उल्लेख मिलता है जो नागवंशीय नौ राजाओं की राजधानी थी। स्कंद पुराण के केदार खंड में चंपावत को कुर्मांचल कहा गया है, वह स्थान जहां भगवान विष्णु ने एक कछुए का अवतार लिया था। कुमाऊं वास्तव में कुर्मांचल का अपम्रंश है। चंपावत का संबंध महाभारत के प्रणेताओं पांडवों से भी है। माना जाता है कि अपने 14 वर्षों के निर्वासित जीवन के दौरान पांडव इस क्षेत्र में आये थे तथा यहीं भीम की मुलाकात राक्षसी हिडिंबा से हुई थी, जिसने भीम पर आसक्त होकर उनसे विवाह कर लिया। चंपावत में घटोत्कच्छ मंदिर भीम और हिडिंबा के पुत्र घटोत्कच्छ को समर्पित है।
चंपावत तथा इसके आस-पास बहुत से मंदिरों का निर्माण महाभारत काल में हुआ माना जाता है। एक दूसरी प्रचलित किंवदन्ती ग्वाल देवता से संबंधित है, जिन्हें गोरिल या गोलु भी कहते हैं तथा जिन्हें न्याय का देवता माना जाता है। चंपावत के ग्वारैल चौर में इन्हें समर्पित एक मंदिर हैं जो हजारों-हजार तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र है क्योंकि वे पद दलितों को न्याय प्रदान करते हैं।

Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी

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dajuw tumne to kamal kar diya thaira

Risky Pathak

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Uttrakhand : Anek Rishiyo Ki Tapasthali
« Reply #28 on: February 23, 2008, 01:18:57 PM »
Uttrakhand Anek Rishiyo Ki Tapasthali Rahi Hai

Name          TapaSthali

Agastya:     Agastya Muni
Angeera:     BadriNaath
Kashyap:     Haridwaar
Kapil:         Gudiyaar(UttarKashi)
Gautam:     NandaKini(Chamoli)
ParsuRaam: Faraasu(Srinagar)
Anusuya:    Anusuya Aashram(Mandal Chamoli)
Chawark :   Near BadriNaath
Atri:          Mandal Chamoli
Jamdagni:   Nakuri(UttarKaashi)
Vaivshwat:  Badhaan(Chamoli), VishnuPraayg
Vaalmiki:     Kot(DevPryaag)
Durwaasa:  Kandai(BadriNaath)
Chyawan:   Chywan Danda(LansDown)
Jaimini:       Near BadriNath
NarNarayan: BadriNath
Bhardwaj:    Near Haridwar
Vashisth:     GuptKaashi, Hindaaw(Tehri)
Vyaas:         VyaasGhaat Vyaasi
Paraashar:     GangNaali(UttarKashi)
VishwaaMitra: Near Tilwada
Bhrigu:          Near TungNaath
Punarvasu:    Mandal Chamoli
Rudra:          Kaul Parwat(Near Mandakini)

Risky Pathak

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Continue:
« Reply #29 on: February 23, 2008, 01:25:49 PM »
Bhaagirath:     Near GandhaMaadan
SukhDev:        GaneshGufaa(BadriNaath)
Pulastya:        Shwet parwat
Matang:          KaaliMath
Daksha:          KanKhal(Haridwaar)
Raawan:         Vairaas Kund(Chamoli)
Vishnu:           Vishnu Parwat
Karny:            Maaso(NandPryaag)
MaarKandey:   Bhagirath Ke tat par(BadriNaath)

Thanks

 

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