जिसका जनेऊ संस्कार हो गया हो, उसके लिये त्रिकाल संध्या, प्रातः, मध्याह्न और सायंकाल सन्धया करने का नियम होता है। सन्धया-बधन में सर्वप्रथम आचमन, शिखाबंधन, न्यास, ध्यान, प्राणायाम, मार्जन. अधमर्षण, सूर्यार्धदान, उपस्थान और अंत में गायत्री जप करना होता है।
अब त्रिकाल सन्धया करने वाले लोग कम हैं लेकिन कुछ लोग प्रातः सन्धया करते हैं।